Monday, 28 April 2025

नृत्य/नाच:- तब अउ अब*

 "अतंर्राष्ट्रीय डांस डे" के अवसर म


*नृत्य/नाच:- तब अउ अब*


                     बर बिहाव, छट्ठी बरही, पार्टी सार्टी, भागवत, रमायण कस चाहे कुछु भी जुराव या मंगल के कार्यक्रम होय आज बिना नाच(नृत्य) के नइ होत हे। नृत्य जे युगों युगों ले चलत आवत हे, ता आज भला कइसे रुक जही। बल्कि आज तो दुनिया के लगभग 80-85% मनखें नाचत गावत दिखथें। एक जमाना रिहिस जब नचइया गिनती के राहय। सुनब मा आथे कि स्वर्ग लोक मा रम्भा, मेनका, उर्वशी, तिलोत्तमा कस गन्धर्व कन्या मन नाच करें। अउ उही मन ला पृथ्वी लोक मा घलो राजा अउ राक्षस मन अपन शक्ति के दम मा नचावै। खैर वो समय ला छोड़व। जब 1912 मा दादा साहब फाल्के फिलिम बनाए के सोचिस ता वो बेरा मा, उन मन चारो मुड़ा नृत्यांगना अउ फिलिम बर हीरोइन खोजिस, फेर उन ला निरासा हाथ लगिस, आखिर मा पुरुष कलाकार मन ही स्त्री पात्र के रोल करिन। एक दौर रिहिस जब नचई ला बने नइ समझे जावत रिहिस। अउ जे नाचे गावै तेला समाज मा घलो बने मान सम्मान नइ मिलत रिहिस। नोनी मन के शादी बिहाव मा घलो नचई गवई अड़ंगा डाल देवत रिहिस। फेर धीरे धीरे समाज स्वीकारत गिस अउ आज के स्थिति ला तो सब देखतेच हन।

                 लगभग 200 ईसापूर्व मा भरत मुनि नाट्य शास्त्र के रचना करे रिहिन, जिहाँ रंगमंच, नृत्य अउ संगीत के वर्णन मिलथे।  ऋग्वेद के श्लोक मन मा घलो नृत्य के वर्णन हे। प्राचीन वैदिक धर्म ग्रंथ मन मा देवी देवता मन ला घलो नृत्य करे के चित्रण करे गय हे। भगवान शंकर ला तो साक्षात नटराज घलो कहे जाथे।नृत्य करत नटराज के मूर्ति सहज दिखथे। महाभारत मा वर्णन हे, कि अर्जुन हा इंद्रलोक मा नृत्य अउ संगीत के शिक्षा लिए रिहिन। त्रेता युग मा भगवान कृष्ण अउ गोपी मन के द्वारा प्रस्तुत रास नृत्य के वर्णन मिलथे। नृत्यकला 64 कला मा अपन एक महत्वपूर्ण स्थान रखथे। एक मात्र भगवान कृष्ण ला सम्पूर्ण 64 कला मा पारंगत बताए गय हे।

                  वैदिक काल मा नृत्य, देवी देवता मनके आराधना अउ पूजा पाठ करत बेरा करे जावत रिहिस, फेर धीरे धीरे समय अनुसार जम्मों मंगल काज, ताहन फेर मनखें मन के मनोरंजन बर होय लगिस। मोहनजोदड़ो के खुदाई मा प्राप्त तांबा के मूर्ति मन के भाव भंगिमा ला देखे ले नृत्य के पुष्टि होथे। प्राचीन काल में नृत्य के एकमात्र उद्देश्य रिहिस- धार्मिक अउ आधात्मिक उद्देश्य के पूर्ति बर देवी देवता मन के नाच नाच आराधना अउ पूजा। जे शास्त्रीय नियम अउ लय ताल मा बँधाये रहय। भक्तिकाल में रामलीला अउ अउ कृष्णलीला कस कतको दैविक कथा ला नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत करे के वर्णन मिलथे। समय बीतत राजा महाराज अउ मुगलकाल मा नृत्य राजदरबार मा मनोरंजन अउ सभा सदन के मन बहलाये बर होय लगिस। आज घलो विभिन्न अवसर मा नृत्य देखे बर मिलथे।

                  अलग अलग देश, राज अउ क्षेत्र के अलग अलग नृत्य देखब मा मिलथे। पहली भारतीय नृत्य कला के सिर्फ दुई रूप रिहिस शास्त्रीय नृत्य अउ लोक नृत्य। शास्त्रीय नृत्य मा भरतनाट्यम, कत्थक, कत्थक्कली, कुचिपुड़ी, ओड़िसी, मणिपुरी, मोहनीअट्टम,सत्रिया जइसन नृत्य शामिल हे, ता लोक नृत्य मा  भांगड़ा, गरबा, गिद्दा, चौ, लावणी, कर्मा, घूमर कस  नृत्य मन के नाम आथे। बॉलीवुड नृत्य मा ये दुनो के सम्मिश्रण ले विशेष शैली मा नृत्य होय लगिस। एखर आलावा समय के साथ साथ वैश्विक प्रभाव पड़त गिस, अउ  पश्चिमी नृत्य घर करत गिस। ब्रेक डांस,  हिपहॉप, स्विंग, कांट्रा कस कतको नृत्य देखे बर मिले लगिस। समकालीन नृत्य घलो भारतीय नृत्य मा झट झट समाहित होगे। जेमा बैले, जैज अउ आधुनिक नृत्य कस अउ कतको प्रकार नाच शामिल हे।

                   भाव(अभिव्यक्ति), राग(संगीत) अउ ताल(लय) ये तीनों के मधुर समन्वय बिन नृत्य नइ होय। सबे प्रकार के नृत्य के अलग अलग शैली होथे, जेमा भाव, राग अउ लय होबेच करथे। प्राचीन कालीन नृत्य मा चेहरा के भाव अउ हस्तमुद्रा प्रमुख रहय, फेर आज शरीर के अन्य अंग भी शामिल दिखथे।  धार्मिक, आध्यात्मिक ले चालू होके नृत्य मनोंरंजन के साथ साथ आज आकर्षण, ग्लैमर अउ व्यवसायिक होवत जावत हे। आधुनिकता के चकाचौंध मा नृत्य फूहड़ता कोती भागत हे। जे नाच ला देखत आध्यात्मिक अउ मानसिक सुख मिलत रिहिस, उहाँ आज काम वासना जाग्रत होवत हे। आज शारीरिक खुलापन, अउ बेढंग शारीरिक मुद्रा नृत्य के पारम्परिकता ला भंग करत हे। जे चिंतनीय हे। पहली नाच देखे बर मनखें तरस जावत रिहिस, कई कोस के दूरी लांघे के बाद नृत्य के आनंद मिले, उंहे आज सोशलमीडिया के दौर मा, घर बैठे रंग रंग के नाच देखे बर मिल जावत हे। नचइया अतका के देखइया घलो कमती हो जावत हे। नाचे मा छोटे, बड़े, बुढ़वा,  जवान सबे लगे हें, अउ एखर श्रेय जाथे इस्टाग्राम अउ रील ला। रील के चक्कर मा नृत्य के छाती मा खील गोभावत हे। मन ला मोहित करइया अउ परम् शांति प्रदान करइया नृत्य आज उत्तेजक, फूहड़ अउ मन ला अशांत करइया हो गय हे। अइसे भी नही कि सबे नाच मा अश्लिता हे। आज भी विशेष पोशाक अउ शैली के कतको नृत्य जस के तस प्रभावी हे, चाहे कत्थक होय, कुचीपुड़ी होय,ओड़िसी होय या कोनो लोक नृत्य, फेर आधुनिकता के छाप अब नृत्य के शैली, हाव भाव अउ भाव भंगिमा मा आघात करत हे।

                   गुण ज्ञान अउ कला कखरो भी होय यदि मनोभाव सकारात्मक हे, ता वो गुण, ज्ञान अउ कला ला देखत सुनत मन मा आनंद अउ सुख के संचार होबेच करथे, अउ यदि कहीं मनोभाव नकारात्मक हे, ता डाह घलो उपजत दिखथें। यदि वो डाह प्रतियोगिता ला जनम देवत हे, ता तो बने बात हे, फेर यदि टांग खिचई के उदिम होय लगथे, ता वो बड़ घातक हे। आजो कई  कलाकार नृत्य कला के ज्ञान पाय बर बड़ महिनत करत हे, कतको जघा सीखत पढ़त हें। कई ठन नृत्य अउ संगीत के विद्यालय अउ कोचिंग खुलगे हे, जिहाँ नृत्य सीखे के सरलग उदिम होवत हे। कला, साधना के नाम आय, अउ साधना साधे ले सधते। कला ला तपस्या घलो कहे जाथे, जेखर बर ईमानदारी, लगन अउ महिनत के जरूरत पड़थे। फेर आज कला मात्र देख देखावा अउ ग्लैमर के चीज बनत हे, चाहे नचई होय या फेर गवई। जे नही ते देखासीखी बेढंग कनिहा हलावत हे। सोसल मीडिया मा चढ़े डांस अउ अभिव्यक्ति के नशा देखत लाज लगथे। रील बनई के चक्कर मा बहू बेटी मन में मर्यादा अउ डांस के दायरा ला लांघत हें।

                   महतारी कतको भूख मरत रहै, भुखाय लइका के पेट भरत देख, परम् शांति अउ सुख के अनुभव करथे, अउ अपन भूख ला भूला जाथे। घर मा कोनो एक के तरक्की या नाम होय ले, न सिर्फ घर, बल्कि पूरा गाँव गर्व करथे। कहे के मतलब मनखें दूसर के सुख अउ दुख ले आत्मीय भाव ले जुड़े रथे, अउ सुख दुख के अनुभव करथे। वइसने गीत संगीत सुने अउ नाच देखे मा परम् सुख मिलथे। एक गवइया या एक नचइया हजारों करोड़ो के मन ला मोहित कर लेथे। फेर आज मनखें नचइया के संग खुदे नाचत दिखथें या बिन नाचे नइ रही सकत हे। बस कुछु नाचे के बहाना चाही ताहन घर भर कनिहा मटकाए बर धर लेथे। आज वो अनुभव के चीज ला खुदे करे ला धर लेहे। पहली नाचे ते समाज मा असहज महसूस करे, फेर आज जे नइ नाचे तेखर मरना हो जावत हे। इशारा मा नाचना या कठपुतली बनना मुहावरा ला तो सबे जानते हन। येला स्वीकारना बने बात नइ रहय। अइसन करना मतलब अपन आप ला झुका देना या स्वाभिमान ला बेच देना होय। शोले फिलिम मा गब्बर के आघू मा बसंती नाचे बर तैयार नइ रिहिस। बड़े मिया छोटे मिया फिलिम मा अमिताभ अउ गोविदा गुंडा के आघू नाचे बर अनाकानी करथे। कहानी, क्वीन, साहब बीबी और गुलाम, मदर इंडिया, राजी अइसन कतको फिलिम अउ हकीकत दृश्य हे, जिहाँ हीरो हीरोइन अउ मनखें मन गुंडा या कखरो आन के आघू मा नाचे बर या अपन स्वाभिमान बेचे बर मना करथें। फेर आज कोनो भी मनखें कही भी नाच देवत हे, वाह रे जमाना। शादी मा पहली नचइया लगाय जाय, अउ घर भर के मनखें सगा सोदर संग आनंद उठावय। आज घरे के मन सगा सोदर सुद्धा जे बेर पाय ते बेर रही रही के नाचत हें। भागवत, रमायण मा बेढंग ठुमका लगावत मनखें भला का वो पावन ग्रंथ के मरम ला पा पाही? पंडा, पंडित मन घलो नाच ला प्राथमिकता देवत हें। अपने अपन सब मिलजुल के नाचत कूदत हें, अइसन मा जोक्कड़, परी, नचइया अउ गवइया मन के पेट भरना मुश्किल हो जावत हे। नाचत हे ते तो ठीक हे, फेर कुछ भी नाचत हे, ते चिंतनीय हे। रील अउ नेम फेम अउ चंद पइसा के चक्कर मा मनखें मन गिरत जावत हे। छोटे बड़े के लिहाज नइहे। इस्टाग्राम अउ रील के चक्कर मा नचइया मनके बाढ़ आ गय हे। कोनो भी चीज होय, मर्यादा मा ही शोभा पाथे। जिहाँ मरियादा नइ रहय उहाँ इज्जत मान सम्मान के जघा नइ रहय। लाज रूपी चिड़िया आज विलुप्तप्राय होवत जावत हे। बेटी, बहू के फूहड़ नृत्य ला देख के, बाप,भाई अउ पति ऊपर का बीतत होही तेला उही मन जाने? फेर पूरा समाज तो मजा ले ले के देखत हें, यहू बात सही हें। व्यूह,लाइक अउ सब्सक्राब पाय बर आँय बाँय नाच आज निश्चित ही चिंतनीय विषय हे। पर्दा के चीज आज उघरत हे अउ उघरे के चीज तोपावत हे। कोन जन जमाना आघू बेरा मा नृत्य जइसन पाक कला ला अउ कतका गिराही? बहरहाल अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस के आप जम्मों ला सादर बधाई।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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अंतरराष्ट्रीय डांस डे म


"""""*फकत नचइयाँ बाढ़गे*""""


गवइया बजइया कमती होगे,

बढ़िया जिनिस तरी मा माढ़गे।

गांव लगत हे ना शहर लगत हे,

फकत नचइयाँ बाढ़गे-----------।


परी जोक्कड़ मन देख के दंग हें।

नचइया मन मा चढ़े जबर रंग हे।

बिन बाजा के घलो हाथ पांव हलात हें।

आ आ कहिके एला ओला बलात हें।।

नाचते नाचत जाड़,घाम अउ आसाढ़ गे।

गांव लगत हे------------------------।।


टूरा टूरी भउजी भैया ना बहू लगत हे।

एक जघा झूमत सब महू लगत हे।।

चुंहकत हें लाज शरम के फसल ला।

ढेंगा देखावत हे जुन्ना कल ला।।

नाचे संझा बिहना, रति रंभा ला पछाढ़गे।

गांव लगत हे------------------------।।


आज पर के नाच देख, कहाँ मजा आत हे।

नचनइया बनके नाचत हे, तभे मजा पात हे।।

मरनी भर ला छोड़, ताहन सब मा फकत नचई,

सोसल मीडिया मा तो, सबके आ गय हे रई।।

बरतिया कस धक्का मारे, झगड़ा लड़ई ठाढ़गे।

गांव लगत हे-------------------------------।।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Friday, 25 April 2025

शंकर पार्वती के गोठ-बात* - विनोद कुमार वर्मा

 .               *शंकर पार्वती के गोठ-बात*


                                - विनोद कुमार वर्मा 


            ' नाथ, मोला भूमंडल के सैर करे के बड़ इच्छा होवत हे! '

           ' ठीक कहत हस। कैलाश मं बइठे-बइठे महूँ असकटा गे हँव! '

          भोले बाबा अउ माता पार्वती भूमंडल के सैर करे बर निकल गीन।

         ' ये कोन नदी हे बहुत दूर तक लामे हे! '

       ' दू ठिन नदी एक्के म जुड़ गे हे। एक मिसौरी नदी हे जेकर लम्बाई 2540 मील हे। ओहर मिसिसिपी नदी मं मिल गे हे। मिसिसिपी के लम्बाई 2260 मील हे। दुनों ला जोड़ दे त 4800 मील होथे। '

         ' नाथ, तूँ टेप धर के नापे हॅव का? अतका एक्कुरेट बतावत हॅव! '

        ' अरे, नापे के का जरूरत हे, विकीपीडिया मं सब लिखाय हे! '

        ' ये पर्वत चोंटी बहुत ऊँचा दिखत हे! '

        ' हाँ अकोंकगुआ पहाड़ हे। एकर चोंटी तक के लम्बाई 22829 फीट हवय। फेर हमर माउंट एवरेस्ट ले छोटे हे। माउंट एवरेस्ट के उँचाई 29035 फीट हवय! '

        ' त, ऊँचाई ला कइसे नापा? '

       ' अरे पगली, नापे के का जरूरत हे, विकीपीडिया मं सब लिखे हे न! '

      ' ये तो अच्छा बात नोहे कि आन के लिखे पढ़े ला देख के बता देवव! ये तो नकल हो गे! '

      ' अरे त मँय कोई व्यापम या पीएससी के परीक्षा देवंत हँव का!..... सुन भाग्यवान, मनखे मन ला पढ़े-लिखे बर कोन सिखाइस हे?.... ब्रह्मा जी अक्षर बनाइन।अउ तोर बहिनी सरस्वती ओमन ला ज्ञान बाँटिस! ..... नि तो एहू-मन कुकुर-बिलई कस परे रहितीन! '

          ' ये देश के सियान तो बदमाश कस लागत हे! सबो देश ला डरवावत-धमकावत  रहिथें! '

        ' अरे, सबो ओला नि डरावँय। थोरकिन दिन आघू  यूक्रेन कि सियान ओला जम के लताड़िस हे! पत्रकार वार्ता मं दुनों बइठे रहिन त बड़का सियान बँगला झाँके लगिस! कोनो भी देश के सियान ला अइसनेच्च होना चाही। यूक्रेन तो नानबुटी देश हवय। 1991 तक सोवियत रूस के हिस्सा रहिस। फेर जनमत संग्रह के बाद 24 अगस्त 1991 के नवा देश बनिस। जनमत संग्रह मं 90 फीसदी मन नवा देश के समर्थन करे रहिन। अब सोवियत रूस ओला फेर हथियाना चाहत हे! फेर अंगूर अभी खट्टा हे! '

          ' तूँ महाकुंभ मेला देखे गे रहेव का? सुनथों कि अड़बड़ेच्च भीड़ रहिस। '

          ' अरे झन पूछ, प्रयागराज जंक्शन मं उतरेंव त एक ठिन टीसी पकड़ लिस। फाइन ठोंक दे रहिस। फेर गुस्सा मं देखेंव त तीन फीट दूरिहा जा गिरिस। हाँव-काँव हो गे। ले-दे के मँय बाहिर निकल गेंव। झन पूछ 10 -11 किलोमीटर पैदल चले ला परिस तब संगम तक पहुँचेव अउ डुबकी लगायेंव! '

         ' त व्हीआईपी डुबकी नि लगा लेता। तुँहला तो व्हीआईपी पास मिल जातिस! '

       ' अरे भाग्यवान, मँय कोई मंत्री-संत्री हँव का? कि कलेक्टर ओं कि मोला वहीआईपी पास मिल जातिस? कोनो निगम के अध्यक्ष घलो नि हावँव, नि तो पास मिलिच्च जातिस! '

         ' त नागा बाबा मन ला कइसे पास मिल जाथे? '

       ' अरे भाग्यवान, मँय शेर के खाल ला लपेटे रहेंव न!.... तँय बड़ क्वेश्चन करथस, थोरकुन साँस तो लेन दे! '

         पार्वती माता चुप हो गे। फेर शंकर भगवान कहिस- ' अब गोठ-बात ला खतम कर। मोला अड़बड़ भूख लागत हे। चल कैलाश पर्वत लौटत हन। बासी बाँहचे हे, ओइ ला दे देबे। मोला छत्तीसगढ़िया बासी बड़ सुहाथे। नून डारके मिरचा चटनी पीस देबे। ओही मं दुनों खा लेबो! '

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    Story written by-


           *डाॅ विनोद कुमार वर्मा* 

व्याकरणविद्,कहानीकार, समीक्षक

मास्टर झड़ीराम

 मास्टर झड़ीराम


         अस्पताल के बिस्तर म परे-परे मास्टर के हालत दिनो दिन अउ बिगड़त राहय। बेटा, बेटी, पत्नी कोनो ल थोरको वोखर चिंता नइ राहय।फेर कोन ध्यान दय पागल अपाहिज ऊपर। अब तो डाक्टर,नर्स मन ही वोखर देख-रेख करँय। पईसा रुपया के थोरको कमी नइ हे, फेर वोखर बिमारी के कोनो ईलाज घलो नइ हे। 

आज चार महीना होगे राहय पागलखाना म भर्ती होय फेर थोरको फरक नइ परे हे। जब भी जोर- जोर से चिल्लावय अउ भागे ल धरय धर पकड़ के सुजी लगा दँय तहले चार-छय घण्टा तक बेहूस। हाथ म हथकड़ी पाँव मे बेड़ी चौबीसो घण्टा लगे हे। बाहिर म सख्त पहरा लगे हे नानकुन टेटका घलो नइ बुलक सकय। मास्टर के आँखी म टकटकी लगे राहय, अइसे लगय जइसे कोनो चीज के चित्र ह वोखर आँखी म झूलना बरोबर झूलत हे। अउ आँसू के धार चार महीना ले अनवरत बोहावत राहय।

बहुत दिन ले कुछु शोर संदेश नइ पईस त एक दिन उहाँ वोखर जिगरी दोस्त डाँ.तिवारी ह मास्टर संग मिले खातिर वोखर घर गिस ,त पता चलिस कि वोहा तो आज चार महीना होगे हे ,पागलखाना म भरती हे।सुनके तो जइसे तिवारी जी के तरुवा सुखागे, उहू ह मनोरोगी चिकित्सक रिहिस फेर का जानय मास्टर के अइसन हाल ल । ठउँका कुछु पुछे बर मुँहु उलावत रिहिस वोतकेच बेर मास्टरीन जुली ढमकत-ढमकत निकलिस लाली रंग के चमचमावत एम्बेसडर कार म टाटा बाय करत बइठ के भुस ले चल दीस। मास्टरीन के उमर पचास बरीस के होगे राहय फेर सवाँगा सोलह बछर के टूरी घलो फेल खा जतिस,नान नान हिप्पी चूंदी, मिनीफ्राक, फदफद ले लिपिस्टिक, चार आंगुर के बहकट्टी पोलखा, हाथ म घड़ी, सेन्डिल भी उँचा एड़ी वाले, अपन कंधा म लंबा बेग वोरमाए सोनपुतरी बरोबर सजे धजे राहय। आया बाईमन बतइन कि वोहा तो अभी अपन एक पुरुष मित्र के बर्थडे म शामिल होय बर जात हे, दू-तीन बजे रात तक आही। बेटा, बेटी-दामाद सब अपन-अपन नौकरी अउ व्यवसाय म मस्त हें। करोड़ो रुपया के कारोबार फइले राहय, कोनो ल तिवारी करा दू मिनट बइठे के फुरसत नइ राहय थोड़ा बहुत जान पहचान रिहिस उहू ह हाय हैलो तक सिमीत रहि जाय। थोरिक देर गुंगखाय कस बइठे रिहिस अउ एक झन जान पहचान के सेकेटरी ह वोखर चाय, नास्ता सबके बेवस्था करिस फेर मित्र के बिना सब अखरत रिहिस। सेकेटरी ल पागलखाना के पता पूछ के निकल चलिस।

तिवारी पागलखाना म बिकट बेर ले अगोरा करिस तब कही जाके मास्टर संग मिलन दीन। जाके देखिस त फर्श म पड़े मास्टर के लंबा-लंबा चुंदी अउ दाड़ी पटवा डोरी कस झूलत राहय, लाल-लाल अंगरा कस आँखी बइहा -भुतहा कस चिरहा-गोंदहा कपड़ा, हाँथ म हथकड़ी अउ पाँव म बेली भयंकर बिकराल भयावह रुप दिखय, एक क्षण भर तो तिवारी जी के जीव छटाक भर होगे ,रुवाँ-रुवाँ काँप गिस अइसे लागिस जइसे शेर के मांद मे खुसर गेहे, फेर अपन आप हिम्मत करके अउ जय बजरंग बली के नाम लेके जबर छाती करके पीठ ल थपथपावत सहलावत ये झड़ीराम,,,ये झड़ीराम,,, उठ तो देख मँय कोन आय हँव तोर संगवारी मितान तिवारी। का सकल सूरत बना डारे हस। निच्चट बइहा-भूतहा कस दिखत हस चल उठ कहत जोर से चेचकारिस। त आवाज ल सुनके झड़ीराम चउँकगे। ये मोर कान म अतेक मीठ-मीठ अउ गुरुतुर आवाज कहाँ ले आवत हे। कनघटोर लगा के दू चार घाँव अउ सुनलीस त रटपटाके उठीस। आघु म तिवारी खड़े राहय। आँखी ल मल-मल के देखे लागिस, सपना आय कि सिरतोन हाथ म छू के देखिस अउ तिवारी ल पोटार -पोटार के बोमफार के रोय लागिस अतका रोइस कि तिवारी के कमीज पाछू डहन गदगद ले फिंज गे।

बातचीत आगे बढ़ीस त पता चलीस कि वोहा कोनो पागल बइहा नइहे। लाख कोशिस अउ अरजी बिनती करे के बाद घलो वोला छत्तीसगढ़ नइ जान दीन अउ इही बात के गुस्सा अउ तनाव म भारी उपद्रव कर डरीस। खाना पीना सब ला छोंड़ दे रिहिस त अस्पताल म भर्ती कर दीन। एक दिन हाथ म लगे पाइप बाटल सुदधा खिड़की ले कूद के भागत रेहेंव त एक गोड़ के हड्डी टूटगे उही दिन ले सब के सब घर बाहिर पागल समझे लागिन। अब तो एक गुमनाम अउ बेंवारस जिंदगी जिये बर काल कोठरी म कैद होगे हँव मितान कहत सिसक-सिसक के रोय लागिस।

,,, ये पागलखाना मोर बर नरक के समान हे मितान इहाँ मँय जिंदा लाश बनके रिगे हँव कइसनो करके मोर छुट्टी करा दे कहत  मूड़ पटक-पटक के रोय लागिस। मास्टर के बेहाल अउ बदहाल जिंदगी ल देख के तिवारी अन्दर तक सिहरगे। वोखर भीतर मातृभूमि खातिर प्रेम अउ भक्ति भाव देख के अपनो गदगद-गदगद रो भरीस। अपन मित्र ल बंधुवा मजदूर ले बदतर नारकीय जिंदगी ले छोंड़ाय बर मने मन परन करिस अउ अस्पताल ले घर फोन लगाइस। पत्नी तो जइसे पिटपिटी साँप कस तलमलागे फेर बेटा जानसन दस मिनट बर आइस। तिवारी संग बातचीत म उहू अतका संतुष्ट होगे कि तुरन्त अस्पताल ले वोखर छुट्टी करा दीस अउ घर लेगे बर

पिताजी ल बिकट मनाइस फेर झड़ी राम नइ मानिस त तिवारी जी ल वोखर सरी जवाबदारी सउँप के वोखरे घर रेहे के पूरा बेवस्था करके चल दीस। 

             आज दू महीना होगे राहय तिवारी घर आय वोखर हालत तेजी से सुधरे लागिस फेर तिवारी तिवरनिन दुनो छत्तीसगढ़ के मूल निवासी रिहिन। समय समय म वोखर संग वोखर खुशी खातिर छत्तीसगढ़ी बोली म घलो गोठियावँय। इही सब बात ल गुनत मास्टर सोचथे हे! भगवान मँय कतका अभागा रेहेंव जेन माँ-बाप के कहना थेारको नइ मानेव । संगवारी मन संग अमेरिका आय के अइसे भूत सवार होय रिहिस कि पैठू खार के पाँच एकड़ धनहा डोली खड़े फसल म बेचाय रिहिस,इहाँ पढ़ते-पढ़त अमेरिकी लड़की संग परेम म अतका फँसगे कि आज तक इहें के होगे। कतका अच्छा ससुर मिले रिहिस जेन अपन करोड़ो के मालिक मोला बनाके स्वर्ग सिधारगे अउ इही आज मोर जी के जंजाल बनगे हे। 

     आज बीस साल बाद तब अउ अब म कतका अन्तर आगे हे सब कुछ बदल गेहे कतका कमी आगे हे जुली के आदत  व्यवहार म नौकर से भी बदतर समझथे। जाहिल गंवार बिना बाते नइ करय बेटा-बेटी मन तो अमेरिकी वातावरण म अइसे घुल-मिल गेहे कि शिष्टाचार अउ रिश्ता सब ल मजाक समझथें। कुछ डाटना, फटकारना तो जइसे पाप हे।

,,,जब तक ऊंट पहाड़ म नइ चढ़य भरभस नइ टूटय। फेर परेम ह परेम होथे। जुली संग परेम म वो अतका अंधरा होगे रिहिस कि माँ-बाप के काठी-माटी म घलो नइ सँघरिस। पाश्चात्य संस्कृति के मोह म अतका बावला होगे रिहिस कि अपन भूत भविष्य सब भूलागे। सेंट ब्रिज कालेज के जाने-माने हिन्दी प्रोफेसर अपने घर म घृणा अउ तिरस्कार के जिंदगी जिये बर मजबूर होगे। मैडम के वफादार चरणदास जोरू के गुलाम या मेंड़वा जो भी कहना हे सब फिट बइठ जथे।

             अमेरिका,,, वाह रे! अमेरिका ! जिहाँ के  रग-रग म पाश्चात्य संस्कृति के जहर  अइसे घुल-मिल गेहे कि रिश्ता-नाता , इज्जत, मान, सम्मान खिलौना अउ मजाक बनके रिगे हे रोज टूटना अउ जुड़ना उहाँ के संस्कृति बनत जात हे। बिहाव ल उहाँ एक समझौता के रूप म विकसित कर दे गेहे। तलाक खेल मजाक होगे हे। एक-एक झन आदमी दसो ठन बिहाव करत हें, बुढ़िया मन घलो तलाक लेके जवान साथी संग बिहाव रचाथें अउ बुढ़वा मन तलाक लेके नान-नान टूरी मन संग बिहाव रचाथें। शादीशुदा संग इश्क फरमाना जइसे उहाँ के फैशन बनगे हे। ऐती-वोती नजर दउँड़ाके देख ले, चारो कोती एक न एक अलकरहा जोड़ी जरूर देखे म मिल जही जेन ल हमन बाप-बेटी, महतारी बेटा समझबो पता चलथे त वोमन पति-पत्नी (एक साथ डेटिंग) निकलथे। 

    ,,,इही सब फैशन परस्ती ल देख के एक मिनट रेहे के मन नइ करय फेर का करबे घोड़ा के गोड़ म टोटा दबे रिथे त सारेच म भलई हे। भगवान वोला तलाक ले जरूर बचाय रिहिस फेर पति वो नाम मात्र के रिगे रिहिस। बस मेड़वा,,पत्नी जुली कतको बेर, कोनो दिन, कोनो समय, कखरो संग आय-जाय बोले के अधिकार नइ रिहिस।

,,, फेर वोखरे नही, सब घर के महिला चटक-मटक पाबे। दोस्त संग जाना देर रात तक आना पार्टी में नाचना-गाना ,रम के पेग धरे थिरकना आम बात होगे हे। पति पत्नी के पावन रिश्ता आज उहाँ अइसे दर-दर ठोकर खात हे कि बच्चा मन के भविष्य अंधकारमय होगे हे। माँ-बाप हो के लावारिस होगे हें। चारो मुडा़ अँगरेजी के अइसे मायाजाल फइले हे कि सभ्यता अउ संस्कृति शर्मिंदा हो जथे। 

,,,आज छत्तीसगढ़ के झड़ी राम कांवरे अमेरिका मे 'झडीरेम कवरा' होगे हे। शुद्ध अपन नाम सुने बर कान तरसगे रिहस । जी अतका उचाट मारय कि तुरंत भागे के मन हो जाय अउ इही भागे के चक्कर म एक पैर अपंग होगे। बिस्तर म कभू सुतय-कभू उठय मास्टर ल नींद नइ आवय बार-बार सोचय आखिर वो अपन अतेक भरे-पूरे परिवार ल छोड़े के मन काबर कइसे बनाइस।

,,,वोखर बाप चार गाँव के गौटिया रिहिस, बड़े ठाकुर के नाम से तिर तार के सब गाँव जानय। पटवारी ममा के बेटी संग चुमाचाटी होगे रिहिस। आखिर कोनो कमी नइ रिहिस ऊखर प्यार दुलार में फेर मैं कतका अभागा बेटा रेहेंव जेन जीते जी माँ-बाप के सरी सपना के खून कर देंव कहत भीतरे -भीतर दंदर-दंदर के रोय लागिस।

      तिवारी अमेरिका म राहय जरूर फेर छत्तीसगढ़ी संस्कृति के बड़ा पुजारी रिहिन, घर मे रमायन, गीता,भागवत, गंगाजल, ठाकुर जी, शंख घंटी बड़े ही शान के साथ पूजा खोली में रखय साथ में छत्तीसगढ़ी भजन पुस्तक गीत के कैसेड,सीडी, डीवीडी, घलो राखे राहय। एक दिन मास्टर खाना खाके सुते राहय वोखर कान में अचानक छत्तीसगढ़ी गीत गूंजे लागिस

 ,,,,,अरपा पैरी के धार माहानदी हे अपार इन्द्रावती ह पखारे तोर पइयाँ महूँ माथ नवावव भुइयाँ जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मइयाँ ,,,सुन के मास्टर के चोला गदगद होगे। थपड़ी पीट-पीट के नाचे लागिस -वाह मोर छत्तीसगढ़ महतारी मेहा तोला कइसे बीरान समझके इहाँ आयेंव दाई मोला अपन अँचरा के छाँव म बला ले दाई, नजरे-नजर म छत्तीसगढ़ के पावन धरती दरपन बरोबर आँखी-आँखी म झुले लागिस ,गाना के धुन म अतका मतवाला होके बइहा बरन नाचत रिहिस कि कतका बेर के तिवारी -तिवरनीन आघु म खड़े राहय होश नइ रिगे रिहिस। दुनो पति-पत्नी वोखर जुनून ल देख के अपन आँसू नइ रोक सकिन।

         आज तो मास्टर खाना पीना सबला त्याग दीस एकेठन हठ धरलिस की मोला मोर भारत अमरादे,, ,मोर छत्तीसगढ़ महतारी के कोरा म पहुँचादे,,, बस मिट्ठू रटन लगा दिस। तिवारी जी वोखर देशभक्ति अउ दीवानगी ल देख के अपन आप ल घलो नइ रोक सकिस तुरंत वोखर घर फोन लगाइस अउ मास्टर के सब हाल-चाल ल बतादीस। पत्नी नइ आइस, फेर काबर आतिस ? जेन मास्टर के बिना अपन जीवन ल अधूरा समझय आज उही मास्टर ल पताल पान मे घलो नइ सुँघय। बेटा जानसन अउ बेटी रीना आइन। वोखर देश भक्ति से सराबोर तनमन ल देख के ऊखरो दिल दहलगे ऊखर कठोर करेजा आज चानी-चानी होगे। वास्तव मे हमर पिता जी पागल बइहा नइ हे शायद वोखर ईशारा ल हमन वोखरे लइका होके घलो नइ समझ सकेन ऊखरो आँखी डबडबागे। ठीक है तिवारी जी आप संग मे जाकर पूरी व्यवथा करना कीके वोखर सरी जवाबदारी ल सउँप के दुनो भाई-बहन चल दिन। 

             आज मास्टर बिकट खुश हे। भारत आय बर जइसे हि तिवारी संग हवाई जहाज म बैठिस सरी अंग म गुदगुदी समागे,,,मन होवय खलखलाके हाँस लेतिस,,, फेर का करय बाकी सवारी मन वोला बइहा-भुतहा समझतीन अउ उतार घलो देतीन, मन ल बांध के चुरमुटाय बइठे राहय। जिहाज चिरई कस सरग म उड़ावत रहाय अउ मास्टर के आँखी-आँखी म अँगना गली म मेंछरावत बछरू, बरदी के बरदी गरूवा, टेपरा घुंघरू के आवाज कान में बाजे लागिस। छेना बीनत छेनहारिन , पानी भरत पनिहारिन, चाऊर निमारत काकी, पहाड़ ले मीठ-मीठ बोली बोलत मयना, गली मे भुंकरत गोल्लर सब झूलना बरोबर आँखी-आँखी म झूले लागिस।  फेर अमेरिका म तो सब जानवर माटी के लोंदा आय। घोस-घोस ले पलगे हे हमर छत्तीसगढ़ के दैहनहा पड़वा अउ चिरई गोल्लर ल देख के पोंक डरही। नीचे  डहन जिहाज आके रूकिस त रटपटाके उठीस। कतका बेर मुंबई आइस पता नइ चलिस । हाथ धरके तिवारी उतारिस । हवाई अड्डा म झड़ीराम डण्डाशरण गिरगे । जय हो मोर धरती दाई! जय हो भारती दाई!तोर गोदी म आय बर कब के तरसत रेहेंव माता कहत गदगद गदगद रो भरीस। तिवारी जी सम्हाल के वोला फेर आगे बढ़ीस ।  

             छत्तीसगढ़ आये बर जइसे हि हेलीकाँप्टर म बइठिस अपने अपन दूनो आँखी  ले आसू टपके लागिस  फेर छत्तीसगढ़ आये बर तो कब के मन ह चहकत रिहिस, आज वोखर बरसो पुराना सपना पूरा होगे। मन चिरई पिला  कस अकूलावत राहय। दिन के दू बजे माना विमान तल मे जइसे हि विमान ले तिवारी मास्टर ल उतारिस झड़ी राम ऐती- वोती घोण्डे लागिस,,, दू चार घाँव उलानबाटी घलो खागे,,,। बार बार घोलण्ड-घोलण्ड के छत्तीसगढ़ महतारी ल माफी माँगत सिहर-सिहर के रोय लागिस,,,मे कतका मूरख अनपढ़ रेहेंव दाई जेन तोर कोरा ल छोड़ के विदेश चले गे रेहेंव मोला अपनाले दाई, मोला अपनाले दाई कहत धड़ाम ले फेर गिरगे । छत्तीसगढ़ महतारी के कोरा में परे मास्टर ल तिवारी जी सम्हाले लागिस। तभो ले अइरी चिरई कस चिभोरे लागिस ।

            आज के रात मास्टर ल थोरको नींद नइ आइस। होटल के कमरा म कभू सुतय, कभू उठय फेर नींदया रानी जइसे बइरी होगे। आँखी -आँखी  म अमेरिका अउ छत्तीसगढ़ के तुलना कर-करके वीडियो कस चित्र आघू-आघू म घुमे लागिस।  

,,,वाह रे अमेरिका! जिहाँ पिसान झोले के झोलनी म इज्जत बाँचही कीथे। बाथरुम के कपड़ा पहिन के शादी, समारोह, पार्टी म जाथें। जेन पुरुष मन खुल्ला बदन रीं सकथें तेन मन गोड़ ले मूड़ तक मोजा, जूता, सफारी, टाई, चश्मा, टोपी पहिने हें, अउ जेन महिला मन ल मर्यादित ढंग से रहना हे तेन मन नाम मात्र के बदन ऊघारु कपड़ा पहिने हें तेनो मन रंग-ढंग नइ हे। दुनो बाँही, जाँघ, पीठ, पेट ल उघार के घुमथें। नाम बड़े दरशन छोटे | केहे म धनवान अमेरिका,,,फेर कपड़ा लत्ता बर कंगला होगे हे। नाम अमेरिका अइसे लगथे अमर रिहि का ?  पर ये अमर रिगे त ईखर देखा-देखी सारी दुनिया बिगड़ जहीं। उहाँ के फास्ट फूड, पिज्जा, बर्गर म कहाँ सवाद पाबे।सवाद तो हमर छत्तीसगढ़ के चीला, फरा, मुठिया, ठेठरी, खुरमी म रिथे। वो तो कई दिन उहाँ घलो बासी खावय तेखर  मजाक बन जाय वोला सड़े बासी खाने वाला काहँय। कंझावत नींद म झकनाके उठीस त चार बजत राहय। सुबे के अगोरा करत आँखी  ले आँसू मऊहा कस टपाटप चूहे लागिस।

बस्तर,,, जिहाँ आके लोगन मन बस तर जथें। धन्य हे उहाँ के माटी,,,मनोहर सुन्दर घाटी, नदी, नरवा, झील, झरना, पर्वत अउ जीवनदायिनी 

इन्द्रावती मैया। धन्य हे उहाँ के माटी,,, जिहाँ नाना प्रकार के रतन के खजाना गड़े पड़े हे। अपन गाँव तो सबला बड़ा प्यारा होथे। जीप म बइठे-बइठे झड़ीराम अपन गाँव मे बीते बचपन ल सुरता करत राहय।

,,,,,ऊखर एकड़ भर के कोठार म अनसनहार पैरावट गंजाय राहय, गोर्रा भर  डिल्ला गरुवा मन जब हूदन-हूदन खाय राहँय तब सइघो जरजर खोलाय राहय, टीप खेलत-खेलत लइका मन ऊही खोल म लुकाय जाँय। अघ्घन पूस म कुतिया मन घलो उहें जमनय। बड़े-बड़े भइसा, पहाटिया संग धोय बर तरिया जाय त पहटिया बबा ह भइसा ऊपर फलास के बइठार दय। गिल्ली डण्डा, खोखो, चर्रा, लंगड़ी, बितंगी सब खेल म बड़ा आनंद आवय। फटले ब्रेक मारीस त झकनागे। चालीस कि.मी. बस्तर ले वोखर गाँव दूरिहा रिहिस अइसे लागिस जइसे चार मिनट म आगे | डॉ.तिवारी ह हाथ धरके उतारिस। 

,,,वाह मोर मयारु गाँव सरगटोला कतका सुन्दर हे। मोर कतेक सुघ्घर गाँव जइसे लक्ष्मी जी के पाँव,,, कहत कूद-कूद के नाचे लागिस। लइका मन बर खेल-तमाशा होगे। गाँव भरके लोगन जुरियागें। तिवारी जी वोखर परिचय कराइस त सब दंग पतियागें। कका, काकी, भाई, भतीजा, बहू सब मिले बर दउँड़गें। खुशी के मारे बक्का नइ फूटय नान्हेपन के संगवारी मन पोटार-पोटार के रोय लागिन।

,,,आज तो गाँव म जइसे तिहार होगे। बड़े जक बंगुनिया म सब बर चाय बनइन अउ सबला चाय बिस्कुट, मिच्चर के पार्टी दीन। छट्ठी वाले घर कस लगे लागिस। जहुंरिया संगवारी मन दू चार ठन एटम बम फटाका घलो फोड़ीन। मास्टर के जी गदगद होगे। तिवारी जी ह वोखर रेहे बसे के सब व्यवस्था सुघ्घर ढंग ले करिस। बीस लाख रुपया जानसन ह तिवारी जी ल आय के बेर दे रिहिस।

रोज मास्टर झड़ीराम खा पी के गुड़ी चउँक में बइठय तँहले गाँव भर जुरिया जाँय अउ अमेरिका म बिताये वोखर दिन ल पूछयँ। काला बतावव रे बाबू हो कहय अउ शुरु हो जाय,,,अमेरिका के फूहड़ अउ विकृत संस्कृति दुनिया बर खतरनाक हे । वोमन अपन अंधरा संस्कृति ल विकसित संस्कृति कीथे। खुलेआम लड़का-लड़की दोस्त बनके रिथें । आधी रात ले घुमथें। बिना बरबिहाव के एके साथ एके कमरा म रिथें। कोनो टोकइया, बरजइया नइ हे। सुरक्षित यौन संबंध के तरफदारी करइया मन पूरा देश के इज्जत ल बेंच दीन। लड़का- लड़की दोस्ती ल चाहे कोनो लाख जायज ठहरा दँय फेर विपरीत लिंग म दोस्ती कभू अच्छा नइ होय। दोस्ती म पवित्रता बिरले ही री पाही।  हर दू आदमी के पीछू उहाँ कार जरुर मिल जाहि, पर दू परिवार में पवित्र प्यार कभू खोजे म नइ मिलय। टूरा-टूरी मन ल देखबे त चिन्हारी नइ हे 

,,,फेर काला चीन सकबे टूरी मनके हिप्पी चूंदी, जींस, टाउजर, चश्मा, टोपी हूबहू टूरा मन कस दिखथे। उहाँ के टूरी मन ल काला कीबे चटाचट गाल ल धरके चूम देथें। दू चार घाँव वोखरो संग आइसने करीन त कालेज ल छोंड़ के पल्ला भागँव किहिस तँहले सब खलखल-खलखल हाँसे लागिन।

          अमेरिका के बात सुनेबर सब एक गोड़ म खड़े राहँय। पेट भर खा लँय अउ झड़ी मास्टर ल चारो मुड़ा कमरछठ कहानी कस घेर के बईठ जाँय, तँह ले मास्टर घलो शुरु हो जाय

    ,,,ले भई अब कान देके निच्चट सुनहु। तुमन ल तो जतके सुनाथँव वोतके तुँहर साध नइ बुताय। कतका बतावव कईठन बात तो बताय म घलो शरम लागथे। अमेरिका म पुरुश ह पुरुष संग अउ महिला ह महिला संग घलो जोड़ी बनाके रिथें। कानून वाला मन घलो लाचार होगे हें। अब तो ये छूत सब देश म फईलत हे। पऊला भऊजी दंग पतियागे। खड़ा होके इही ल कलयुग कीथे,,ईखरे मूड़ म कलयुग झपागे हे,,। कलयुग कतका खरागे हे जइसन चरितर कभू देखे नइ रेहेन तइसन चरितर सुने ल मिलथे। भला टूरा मनबर टूरी के का दुकाल? अउ टूरी मन बर टूरा के का अंकाल परगे हे। अंधरा घलो अपन रद्दा टमड़ लेथे फेर आदमी आज आँखी  होके घलो अंधरा होगे हे। येमन जंगली जानवर ले घलो गे बीते होगे हें। हमर इहाँ तो जंगली जानवर मन घलो ,पक्षी मन घलो नर मादा रुप में जोड़ी बनाके रिथें। भगवान के बनाय जाँवर जोड़ी ल मजाक बना देहें। भगवान के रचना के खिल्ली उड़इया आइसन हमजाँवर जोड़ी मन ल तुरंत जेल म ठूस देना चाही अउ फाँसी दे देना चाही। 

,,,वाह! पऊला भऊजी वाह! अब तो तुहीं ल विधायक बनाय बर परही कहके माघू कका ह अंखियईस तँहले सब खलखल-खलखल हाँसे लागिन।

           ,,,ले भई एक बात अउ सुनव कीके मास्टर खड़ा होइस। ये मोर मेंछा अउ माई चुटईया ल देखत हव ना। शुरू-शुरू म उहाँ बिकट आदमी ईखर खिल्ली उड़ाय। पर मेछा तो मरद के पहचान आय। जइसे बिना पूंछ के बंदर वइसने बिना मूंछ के मरद शोभा नइ दय। मेछा पुरूष के शान होथे येमा पुरूषार्थ के शक्ति छिपे रिथे। उहाँ कहाँ पाबे सब मेहला कस दिखथें। फेर हमर छत्तीसगढ़ म तो बाप के जियत ले सबो मेछा मुड़ाय के परंपरा घलो नइ हें। कभू-कभू लगय ये मन एक न एक दिन मोर मेछा म घलो शोध करही का ?  कालेज के भव्य सेमीनार म मेछा, माई चुटई अउ सायकल के बारे म जब दहाड़ेव त सब दंग पतियागें। मोर माई चुटई के खिल्ली उड़ईया मन खामोश होगें | मै दबंग आवाज म बोलेंव जेन मोर माई चुटई के हाँसी उड़ाथें का उनला कुछ पता हे कि माई चुटई हमर शरीर बर उही प्रकार ले काम करथे जेन प्रकार से टेलीविजन बर एंटीना अउ डिश एंटीना। मन म साफ-सुथरा अचार-विचार ज्ञान सब दिमाग म ज्ञान के स्त्रोत बर ये माइचुटई सीधा प्रभावित करथे। शिक्षामंत्री सर डिंग-डांग डिंगहा लफंगा जी बड़ा खुश रिहिस। इनाम घलो दिस |

,,,साईकल चलाय के महत्व ल जब बताय त सब वो दरी हाँसय अउ आज उही अमेरिका म सुबे शाम जागिंग के नाम से साईकलिंग चलत हे। डाईटिंग के भूत उतारे बर सबला वोखरे सहारा ले बर परत हे।कतको झन मेछा  अउ चुटई घलो राखे ल धर लिन । कतको झन मोर लिखे पुस्तक पढ़थें । दू चार पुस्तक तो घर -घर म घलो मिल जही।का बढ़िया बात बताय मास्टर कका तब तो तैं उहाँ के हीरो रेहे कीके सबझन हाँसत-हाँसत लोटपोट होगें।

,,,ले आज का सुनावथस मास्टर कीके बाठू कका कोचकीस त मास्टर घलो उहाँ के बात बताय म थोरको कंजूसी नइ करय। ऊहू ल लगय जइसे उहाँ के बात बताय म वोखर पाप हरु हो जथे। लंबा-लंबा सांस लीस अउ शुरु होगे कि जइसे हमर इहाँ बादर ले पानी छनकथे वोइसने उहाँ शादी,पार्टी,समारोह म जाम छलकथे। टूरी जातमन फकर-फकर सिगरेट फूंकथे। छकत ले शराब पीथें अउ अपन पति ल छोंड़ के दूसर के पति संग ढकम-ढकम नाचथें। वोइसने टूरा जात मन घलो अपन पत्नी ल छोंड़ के दूसर के बाई संग कनिहा धरके डडंग-डडंग नाचथें। अइसन फुहड़ आजादी ल जेला देख के सभ्यता, संस्कृति, मर्यादा सब पानी-पानी हो जथे। हमर देश म तो पशु-पक्षी मन घलो जब जोंड़ी बना के रेहें के शुरु करथें त दूसर के जाँवर जोड़ी डहन लहुट के नइ देखयँ। सत ईमान से जोड़ी धर निभाथें। पर अमेरिका म आदमी-औरत के जोड़ी के अतका दुर्गती होगे के कि दुर्गती,,,,, कुकुर गति तक पहुँच गेहें। पत्नी मन हाथ गोड़ के टूटत ले पति मन ल मार के थाऊ बइठा देथे। अब देखव भई तहूँ मन बेलना, बाहरी, लाठी, बेड़गा ल तिरिया के राखहू। कोन जाने कतका बेरा उहाँ के भूत कुदावत हमरों इहाँ आ जही,, बात सुन के सब ठहाका मार-मार के हाँसे लागिन। रामू कका तो  हाँसत- हाँसत अउ खाँसत-खाँसत अकबकागे, का करय बिचारा श्वाँस दमा के पुराना रोगी रिहिस।

         बुटिया काकी चौपाल म आके दू लाख रूपया ल झड़ी मास्टर ल दीस अउ गोहार पारके रो भरीस, सबके आँसू  डबडबागे। परिहार इही दिन बादर म वोखर जवान बेटा लकड़ी लाये बर जंगल गे रिहिस का करय बिचारा? साथी मन छोड़ के भाग गें। हाथी मन के झुंड पटक-पटक मार डरीस। सरकार दू लाख रूपया दे रिहिस। झड़ी मास्टर काकी ल बिकट समझईस,,, देख काकी जंगली जानवर मनके जतका उत्पात होवत हे वोखर बर हमू मन जिमेदार हन। भरूहा काट के हमर माँ-बाप मन बसे रिहिन। आज जंगल ल काट- काट के सब तबाह करदीन। विकास के नाम म जंगल उजार होवत हे,,, ऐखरे सेती जंगली-जानवर मन गाँव -गाँव  के तीर म आथें। पेड़-पऊधा के रनपेट कटई के सेती पानी कांजी घलो नंदागे। धरती माता संग रोज छेड़खानी होवत हे। भगवान के बनाय रचना संग रोज अत्याचार होवत हे। वैज्ञानिक मन शाबासी लूटे बर रोज नावा-नावा भद्दा परयोग घलो करत हें।

,,,,, सुअर संग हमर गऊमाता के क्रास कराके जरसी नस्ल पईदा करदीन। दूध बढ़ाय के नाम म आज हमर शुद्ध गऊमाता के अस्तित्व ह संकट म परगे हे अइसन बेर्रा परयोग ल येमन वर्णशंकर कीथे, शंकर भगवान के नाम ल भँजाय बर घलो पाछू नइ हे। अइसन जरसी गाय मन तुतरू कस मुंहुफार के घिघियाथें, हमर देशी गाय कस फटकार के नइ रंभा सकयँ। येला येमन सफलता कीथें। ये सफलता नही कलंकता आय। कोनो पशु पक्षी ईखर मारे नइ बाँचत हें ऊखर जीव पुतकी अमागे हे। गदहा, घोड़ा, रोजिहा, चितवा, सांभर, कोटरी, कुकुर, बिलई सबके शामत आगे हे। ऊखर पहिचान संकट म परगे हे। मोला तो लगथे ईमन एक न एक दिन नरसिंह अवतार ल घलो चुनौती दे दिही। कतको सनकी वैज्ञानिक मन कलेचुप मानव+पशु के परयोग करके घलो देखहीं सफलता मिल जही त ड़िंढोरा पीटे बर नइ छोड़ँय। पर अभी समाज के डर म चुप होहीं। प्रकृति संग छेड़छाड़ के नतीजा भविष्य म हम सब ला भोगे ल परही कहत-कहत मास्टर के आँखी गंगा-जमुना कस बोहाय लागिस।

          आज गाँव भर सन्नाटा  पसरे राहय। गाँव  के आदमी गांवे म राहय।जंगल में लकड़ी बर जाय के कखरो हिम्मत नइ होइस। काठी-माटी ले आय हे तइसे सब गुंगखाय बइठे राहँय। कखरो मुँह ले भांखा नइ निकलय पर माईलोगन जरुर जोंधरा कस लाई बीच-बीच म फूटँय,,,, 

,,,ये रोगहा दोगला मन न जाने कोन जनम के बदला लेवत हें। कतका दिन ले अइसने तपहि अउ दंवही पता नही कब खपलाहीं। हमर जी मुसकी बंधना म बीतत हे। काली जुवार परोसी गाँव  म पाँच झन जवान लइका मन ला मुखबिरी के शक म 

पीट -पीट के मार डरीन। पुलिस के सइघो जर गाड़ी ल फुटबाल बरोबर उड़ा दीन जेमा 30 झन पुलिस वाला मन शहीद होगें। रोज भांटा मुरई कस आदमी ल काटत भोंगत हे,, कहत-कहत चर्रस-चर्रस अंगठी फोरे लागिन। 

,,,बात सुनके झड़ीराम सुकुड़दुम होगे। होश बिगड़गे, छटाक भर खून छउँकगे, सपना के कुरिया भरभरागे, आँखी  के आघू अंधियार छागे अउ भंवरी कस गरुवा धड़ाम ले गिरगे। सब पानी कांजी लेके दऊड़ीन त थोकिन देर म होंश आइस। पानी पी के पेटभरहा साँस लीस त जी म जी आइस वो कभू सपना म घलो नइ सोंचे रिहिस कि मोर छत्तीसगढ़ म आइसन ताण्डव मचैया राक्षस मनके बसेरा हे।   

                   बिहान दिन मटिया भऊजी ह बताइस कि,,, का बतावव मास्टर बाबू परिहार इही दिन इँहो 19-20 झन इही हत्यारा मन बंदूक धरे -धरे आय रिहिन अउ गाँव भर के आघू म वोखर बेटा रजवा, सिपाही हरे राम अउ कोतवाल भवानी दास ल पीट-पीट के इही चऊक म मार डरीन। गाँव  भर देखत रहिगे फेर कोनो चिटोपोट नइ करिन, सब तमाशा देखत रहिगें | सबके मुंँह म लाड़ू गोजांगे कोनो आम लीम नइ भजीन महूँ दू-चार भाखा बखानेंव त बंदूक के बट म अइसे मारीस की दिन भर बेहूस परे रेहेंव आज तक घाव परे हे। फेर,, कोनो महतारी अपन आँखी  के आघू म बेटा ल मारत कइसे देखतीस कहत सुसक-सुसक के रोय लागिस,, 

,,,कतेक ल बताहू मास्टर बाबू ईखर जऊँहर होय तेन बेर्रा मन गाँव - गाँव  म आके, डरा धमकाके सरकार संग बईरी बनाथें। घर-घर ले बेटा-बेटी मन ल उठाके घलो लेग जथे। घनघोर जंगल म रहिके फरमान चलाथें। मोला तो थोरको समझ नइ आय कि ये मन ल पईसा, रुपया,गोला, बारुद, बंदूक आखिर कोन देथें ? कईझन किथें ईमन ला सरकार ढीलें हें फेंर सरकार ढिलतीस त काबर सरकार संग बिरोधी होतिस?पुलिस सिपाही मनला काबर मारतीस ? अब तो सबला समझ आगे हे ईखर लुटेरा ईरादा ! मुँहु सिटठागें मास्टर बाबू कहत भउजी चूल्हा फूँके लागिस ! 

       ,,,,,सासर भर चाय पी के मटिया भउजी कीथे मास्टर बाबू सरकार ल तो सबे ल देखना हे तेखरे सेती आत्म समरपन करइया नकस्ली मनला घर, नौकरी, रूपया पईसा,जमीन-जघा सब दे के योजना चलावत हे फेर कईझन हमर देशप्रेमी पुलिस वाला मन के खून छऊक जथे ! पांच लाख के ईनामी खुंखार नक्सली बाठा राम  टेटवा ल पुलिस वर्दी म देख के एसपी पारा सिंग के पारा अतका चढ़गे कि अपन आपा खो डरीस !

,,,,जेन पापी हमर सत्तर जवान मन के हत्यारा हे उही ल माफी अउ नौकरी नही ! नही,,,ये तो मोर छत्तीसगढ़ महतारी के घोर अपमान हे कहत बाठा राम टेटवा के टेटवा ल अइसे दबाईस की खून उछरत मर गे !बाद में एसपी साहब गिरफतारी  दे दीस ! ऐती सरकार पुलिस वाला मन ल घिरज धर के अभिायान चलाय बर आर्डर फरमाथे त वोती नक्सली मन बर नावा-नावा योजना  लागू करथे  का करय सरकार धलो भारी असमंजस मे फँसे हे । जोर से जमहासी लेवत भउजी उही मेर सुतगे।

            मास्टर झड़ीराम भंयकर दुखी होगे, मन में सोच विचार के मारे भारी उथल-पुथल मचगे,,,हे भगवान !आखिर मोर छत्तीसगढ़ महतारी ल कोन बइरी दुश्मन मन के नजर लगे हे। मोर चंदा असन दाई बर ये राहु राक्षस मन कहाँ ले झपागे हें | मैं तो अभी तक जंगल के सोनहा कुकुर मन ल जानत रेहेंव फेर ऊखर ले जादा ऊखरे बिरादरी के ये कुकुर मन,,कहाँ ले झपागें। फेर येमन तो ठाड़ छानी में होरा भुंजईया आँय | बिलई के टोटा म घाटी कोन बांधही  फेर,, बांधे ल तो परही। शुकवा उवे ला धरलीस फेर नींद नइ परीस,,, 

            ,,,नही,,नही,,अब तो गाँव-गाँव  जाके एक-एक जनता ल जगाना हे ऊखर अन्दर जोश अउ खरोश भरना हे हर गाँव के लोगन ल सिपाही बरोबर बनाना हे नकस्लीमन के सदा सदा बर अंत करना हे अइसन सोच समझ के प्लान बनाना हे कि वोमन कभू सपना म घलो हमर छत्तीसगढ़ ल लहुट के नइ देख पाँय। मन मे भीष्म प्रति़ज्ञा करके मास्टर झड़ीराम कागज कलम दवात उठालीस। 

                       आज गाँव के अउ पचासो गाँव के सियान-किसान-जवान, महिला, पुरूष सब मास्टर के बुलावा म नागाबावा मंदिर म सकलाईन। सबके आघु म मास्टर अपन बात रखिस, देखव भाई बहिनी हो। हमर स्वतंत्र छत्तीसगढ़ राज के सपना जभे पुरा होही जब हम सबझन मिलजुल के हमर राज ल नक्सली मुक्त बनाबो, हमर छत्तीसगढ़ के बस्तर से ले के राजनांदगाँव  तक खून के होली खेलईया ये लाल सलामी हत्यारा मन ल सबक सिखाबो येखर बर हम सबके एकता जरूरी हे। हमर छत्तीसगढ़ के अनमोल खजाना ऊपर बीपत के बादर मंडरावत हे हमर बहु-बेटी के लाज नीलाम होवत हे अपन घर म वीरान हो जबो। आज मोर संग सब कसम खाके, किरिया खाके परन करव आज ले नक्सली मन ल कखरो घर ले कोनो सहयोग नइ दन। कोनो मनखे ऊखर सभा जुलुस, बैठक म भाग नइलन। तुमन ला हमर छत्तीसगढ़ महतारी के दूध के कसम,दूध के करजा उतारे बर आघू-आवव,,आघू आवव,,

 अपन छपवाये दस हजार परचा बाटीस-गाँव -गाँव  वोखर संदेश पहुँचाय गिस। 'भाग नक्सली भाग-जाग छत्तीसगढ़ जाग'। 'काली नही आज कर-नक्सली हे मुठा भर', 'जात से न पात से भूत भगावव लात से' सब पढ़े लागिन  अउ नइ पढ़े हे तेन मनला वोखर क्रांतिकारी कविता सुनाय लागिन -

       जतबहिरा बेंदरा डहत हे

            झड़ीराम कहत हे।

       नक्सली नहीं बीमारी ये

        एड्स अउ महामारी ये

      अबला के आँसू बहत हे

     जतबहिरा बेंदरा डहत हे 

     झड़ीराम कहत हे। 

        घर-घर ल लड़वावत हे 

        लहू के धार बोहावत हे 

    हरहा गोल्लर कस चरत हे 

       जतबहिरा बेंदरा डहत हे

            झड़ीराम कहत हे। 

कब तक चुप रहिहव संगवारी 

        रोवत हे धरती महतारी 

  पिसनही जांता कस दरत हे

       जतबहिरा बेंदरा डहत हे

             झड़ीराम कहत हे 


                              सबके मन म जोश भरदीस। सब जतबहिरा बेंदरा डहत हें, झड़ीराम कहत हे कहत-कहत अपन-अपन घर बिदा होइन। 

           झड़ीराम नक्सलवादी मनबर एक अपीलनामा जारी करीस,,,

 हे मोर भूले भटके, छटके, बगरे संगवारी हो राम-राम आज तुँहर जिंदगी दर-दर के ठोकर खात फिरत हे ये मानुष तन बार-बार नइ मिलय संगवारी हो, तुँहर नक्सली नेता मन तुँहर तन-मन म देश के प्रति जहर महुरा घोलत हें तुमन सावधान हो जाव। जेन कोख ले जनम धरेव उही ल झन उजारव, भाई-भाई के दुश्मन मत बनव, अपने हाथ म अपने गला ल मत घोंटव, चोर चिहाट कस जंगल-जंगल म छुप-छुप के मत जीअव। कोनो समस्या हे त वोखर उपाय घलो हे सुघ्घर मिल बईठके सुलझा लव। आखिर तुमन काखर विरोध करथव ? गाँव  के विकास के ? गाँव  के आदमी के ? सरकार के, पुलिस के या जंगल के विनाश के ? सब ल पता चलना चाही,,

 ,,,फेर पुलिस वाला मन तुँहर दुश्मन नोहय, तुहरेंच भाई बंधु आँय वोमन अपन परदेश अउ देश के रक्षा खातिर बर बंदूक उठाए हें कभू तुमन ऊखर ऊपर भारी परहू त कभू वोमन तुँहर ऊपर भारी परही | फेर तुमन जेन जघा ल पाए बर लड़ई झगरा करके मरत-कटत हव अगर तूही मन मर जहू त कोन राज करही ? 'मेहनत करही कुकरी अउ अंडा खाही दूसरी'। त तुमन ल का मिलही ? तुहर नेता मन तुहर मजबूरी अउ लाचारी के गलत फायदा तो नइ उठावत हे ? तूमन ला रात-दिन चाऊर चबवा के बलि के बोकरा तो नइ बनावत हे ? जरा सोच के देखव संगवारी हो। ये जिनगी तुँहर का जिनगी हे का तुमन ला अपन परिवार के खुशी नइ चाही ? का जिंदगी भर गोली-बारूद धरे लुका-लुका के जिहू ?  का तुँहर दाई-ददा, भाई-बहिनी मन तुँहर से कोनो अपेक्षा नइ करत होहीं ? एक गोली कब तुँहर काम-तमाम कर दिही जरा ठंडा दिमाग लगाके, चटनी-बासी खाके अपन आत्मा ल पुछव तुँहर छत्तीसगढ़ तुमन ल पुचकार उठही। 

जय जोहार 

जय छत्तीसगढ़ 

तुँहर भाई झड़ीराम 

राम-राम। 

             नकस्लवादी मन ल धीरे-धीरे जनता मन के समर्थन, सहयोग अउ आदर सत्कार मिले बर बंद होगे ,गाँव-गाँव म ऊखर विरोध होय लागिस । जघा-जघा गाँव म ऊखर आना जाना म पहरा लगगे। ऊखर विरोध म नारा जुलूस अउ बइठक होय लागिस एक झन मुँहु बंद करय त दस झन मुँहु खोलिन, गाँव-गाँव म सलवा जुडुम के आंधी चलगे। नक्सलवादी मन घबरागें। ऊखर दल म खलबली मचगे सब खदबदागें। सरकार के मुहिम घलो काम करे लागिस, दल के दल नक्सली मन आत्मसमर्पण करके सरकार के मुख्य धारा म जुड़े लागिन , छत्तीसगढ़ पूरा देश बर मिसाल बनगे। फेर ऐती नक्सलवादी मनके बड़े कमांडर मन बगियागें, दिया तरी अंधियार देखके अउ अपन अस्तित्व बचाय खातिर जी परान लगाके षड्यंत्र बनाय बर भीड़गें।

       चारोमुड़ा ले हताश निराश नक्सलवादी मन एक दिन एक झन लकड़हारा ल जंगल में खूब मार-मार के अधमरा करदीन, का करय बिचारा डंडा परत जाय अउ भूत बकरे कस बकरत जाय,,, ये सब तो अमेरिका ले अपन गाँव आय मास्टर झड़ीराम कांवरे के अभिमान आय, उही ह जब ले इहाँ आय हे तबले गाँव-गाँव  जाके 'नक्सली भगाओ, छत्तीसगढ़ बचाओ' के आंदोलन छेड़े हे। जघा-जघा अपन लिखे कहानी, किताब, पामप्लेट बांटे हे। जनता मनबर अघुवा नेता बनगे हे। भगवान कस सब लोगन वोला मानथें कहत बेहूश होगे। दादामन लकड़हारा के बात सुनके अगियागें, बगियागें, कटकटागें, बेंदरा कस दांत पीसे लागिन, , किरची बाघ कस कूदे लागिन,, फेर हारे जुवाड़ी बाघ बरोबर,,। अपन हार ल जीते खातिर अइसे जनेवा फाँस बनाय बर लगगें तेखर कोनो ल कानोकान भनक तक नइ लागिस।

                    पूस के महीना कन-कनावत हाड़ा टोरईया जाड़ अउ घपटे अंधियारी रात, चारोमुड़ा घोर सन्नाटा अउ खामोशी, बीच-बीच म कोलिहा के हुँवा-हुँवा सुनइ दय, दू पहर रात पहागे राहय उही बेरा बिरबिट करिया अंधियारी रात ल चीरत दू सौ नकस्लवादी-मन धड़धड़- धड़धड़ झड़ीराम के घर म आ धमकीन। तीर के परोसी करा हाँका परवा के मास्टर ल उठईन वोतका बेर मास्टर नावा किताब ‘कूटहा अउ जूटहा लुटेरा नकस्ली’ लिखत राहय। जइसे हि कपाट खोलिस नकस्ली मन टूट परीन। घर ले घिरलावत बीच चऊक म लाके हरदी गाँठ कस कूचरे लागिन ,मास्टर  बेहूश होगे। नकस्लीमन ठहाका मार-मार के हाँसे लागिन । 

      होश म आते साट मास्टर जोर-जोर से चिल्लाईस,,, आवव-आवव हमर गाँव वाले भाई बहिनी हो तुमन घर म बिलई कस झन सपटे राहव,, झन डेरावव ये हत्यारा देशद्रोही मन ल,, ये पापी मन जब तक रिहीं खो-खो के भुंजहीं,, हमर घर के ईज्जत लुटईया,, हमर धरती ल लहू म सनइय्या,, ये पापी मन के भूत भगादव,,, ये हमर देश के गद्दार मन ल मार डरव,,, तुँहर छत्तीसगढ़ महतारी के दूध के किरिया हे ,,,आवव-आवव मत डेरावव।

              नक्सलीमन वोखर चिल्लाहट सुनके ताली बजा बजाके हाँसे लागिन। एक दू झन सनकी मन भड़ाभड़ दू चार रहपट मास्टर ल फेर पीट दीन। नकस्ली मन जानत राहय हमी मन ये गाँव  के दादा अन हमर खिलाफ करके अपन बलि दे बर कोन आहीं? साले चना ढुरू,,आज हमर नाक में दम कर दे हस रे,,ये ईलाका हमर आय। ले कतका फुदरथस,, फुदर काहय अउ भकाभक मारय। लाख कोशिश कर डरीन फेर मास्टर लाल सलाम नइ किहिस, जय छत्तीसगढ़,,, जय छत्तीसगढ़,,,चिल्लाय लागिस | तेलगू कमांडर भन्नागे दूनल्ली बंदूक ल मास्टर के मुहुं म घुसेड़ दीस अउ दनादन गोली दाग दीस। गाँव के लइका सियान जवान सब कटकटागें। सब ल अपन-अपन परन सुरता आगे। नकस्ली मन मास्टर झड़ीराम के लाश म चढ़ के नाचे लागिन , दारू पी-पी के लाश ऊपर पुरके लागिन अउ लाल सलाम-लाल सलाम चिल्लाय लागिन । ऐती जब गाँव वाला मन अपन अपन घर ले बरत लुवाठी धरे चऊँक डहन दउँड़े लागिन मारव-मारव,पकड़व-पकड़व के शोर चारोमुड़ा गूंजे लागिस,कतको झन ढेला पथरा बरसाय लागिन, बरत लुवाठी के चपेट म नक्सली मन आय अउ जरत-बरत गिरत अपटत चिल्लावत भागे लागिन । 

,,,ऐती कोन्टा- कोन्टा म पवडर मारे के डस्टर म मिरचा बुकनी भरे जवान मन अंधाधूंध डस्टर ओट के नकस्ली मन के धुर्रा बिगाड़ दीन | आँखी  कान ल रमजत भागत नकस्लीमन ल माईलोगन मन घलो नइ छोड़िन-मुहाटी के आमने-सामने बाल्टी के डोरी ल लमियाके सपटे-सपटे धरे राहँय, छंदा-छंदा के मुड़भसरा नक्सली मन गिरत जाँय ,तँहले माटी तेल फुग्गा मार दँय, बरत लुहाठी फेंक दँय। हे दाई,,, हे ददा मरगेन,,, नइ बाँचन,,, कहत सब नकस्लवादी मन भागे लागिन । जँगल के चोक्खा-चोक्खा पथरा, माटी तेल वाले फुग्गा, डस्टर म मिरची बुकनी,बाल्टी डोरी ये सब उपाय ल झड़ीराम गाँव-गाँव  म महिना दिन पहिली ले पुरा तइयारी के साथ नक्सली मन ले लड़े बर करवावत अउ सिखोवत आवत रिहिस। आज तो वोखर बातय उपाय ह नक्सली मन के बुधना झर्रा दिस। जनता मन ऊपर ऊखर काल बनके टूट परगे। पचास-साठ झन नक्सली मन गाँव खोर के गली खोर म मरे भुँजाय परे रिहिन, पल्ला भगईया मन कुछ भाग के जंगल मे लुकागें। दइहान डाहन मूड़ कान फूटे अचकुचरा भुंजाय तीस-चालीस झन नक्सली मन बिन पानी के मछरी कस तलमलावत राहय। झिरिया खोल डहन बीस-तीस झन नक्सली मन खुरच-खुरच के मरे परे राहँय। येती मास्टर झड़ी राम  लहुलुहान चोरबोराय गऊरा चंवरा म परे राहय, दुनों हाथ जोड़े धरती मइयाँ ल परलगी करत परान छुटगे राहय। 

 ,,बिहान भर गाँव -गाँव म दुख पीरा शोक के लहर दउँड़गे जेने सुनिन तेने बोमफार के रो डरिन। एक पल बर तो पूरा देश सुन्न होगे। छत्तीसगढ़ के गाँव-गाँव म शोक फइलगे। बस्तर जिला म तो जइसे घर-घर दुख के पहाड़ टूटगे। कखरो घर आज चुलहा नइ फुकिन आज उखर छत्तीसगढ़ महतारी के सेवा करइया दुलारा बेटा झड़ी राम हमेशा-हमेशा बर दाई के कोरा म समागे रिहिस।  

     आज देश अउ छत्तीसगढ़ के ओन्टा कोन्टा ले मास्टर के शव यात्रा म शामिल होय बर गाँव म रेला -पेला होगे राहय। गाँव आय बर नेता, मंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक,राज्यपाल अउ कतको संगठन के नेता मन टूट परिन।  शहीद बेटा के अंतिम दरशन बर इंच भर जघा खाली नइ बाचिस। पुलिस प्रशासन ल हालत काबू करे बर बिकट पसीना बोहाय ल परिस। सरगटोला के बड़े दइहान म चिता सजाय गे रिहिस। मास्टर झड़ीराम ल पुष्पाजंली देवइया मन के बेकाबू भीड़ के मारे बेरा बूड़े ल धरलीस। अबक-तबक चिता मे आगी ढिलाय रितिस ततकेच बेर बादर म गड़गड़-गड़गड़  जिहाज के आवाज पाके सब चउँकगें। सुरक्षा कमांड़ो मन उतरत देखिन अउ दउँड़ परिन।

,,,जिहाज ले एक झन गोरिया- नरिया आदमी उतरके चिता डाहन आइस त आघू म डॉ. संकटमोचन तिवारी ल देख के चिपटगे अउ फफक-फफक के रोय लागिस। मास्टर के चिता ल आगी दे बर वोखर भतीजा ल तइयार करे गे रिहिस फेर आखिरी बेरा म मास्टर के बेटा जानसन आ के मुखाग्नि दीस। चारो मुड़ा जानसन के बड़ई होगे। आखिर लहू तो लहू होथे। जानसन के रग-रग में एक छत्तीसगढ़िया बेटा के लहू तउँरत रिहिस। छत्तीसगढ़ के लहू अउ देश भक्त झड़ीराम के ताकत आज वोला अमेरिका ले छत्तीसगढ़ आय बर मजबूर करदीस। चाहे कोनो भी वातवरण मे पले बड़े राहय समय आथे त जरूर ऊखर लहू पुकार उठथे।देश भक्ति के एक अउ मिशाल पेश होगे । 

         धूं-धूं करके चिता जले लागिस। सबके आँखी म गदगद-गदगद आँसू चले लगिस । कतको झन मुँह ल चपक - चपक के रोवत राहँय। कतको झन गोहार पार के अउ कतको झन बोमफार के रोवत राहँय कतको झन जोर-जोर से मास्टर झड़ीराम जिंदाबाद,, झड़ीराम अमर राहय,, के नारा लागवत राहँय।,,ठउँका वोतकेच बेर धड़धड़-धड़धड़ चालिस ठन  टरक म सवार होके हथियार बंद नक्सली मन पहुँचगे। जहाँ-तहाँ चारोमुड़ा सबला घेर के टरक खड़ा होगे सब आदमी अकबकागें। अक्का आवय न बक्का का करय कक्का,,,

 सुरक्षाकर्मी कमांडर मन मंत्री ,मुख्यमंत्री ,राज्यपाल ल घेरलीन। अभी तक तो नाम सुने रिहिन आज सउँहत आघू म देखके कतको नेता मन के तोलगी गीला होगे,, कतको नेता जेन बड़ा हुशियारी मारय अउ अपन ल तोपचंद समझँय तेन गऊरा चढ़े कस लदलद-लदलद काँपे लागिन,,,

,,,कतको झन संकट से हनुमान छोडा़वे़ कहत हनुमान चालीसा रटे लागिन,, 

,,,अउ कतको झन दुख हरो द्वारिकानाथ शरण मैं तेरी बुदबुदाय लागिन । सब के मन म आशंका होगे कि अब-तब खून के होली शुरू होही। वोतकेच बेर एसपी टाईगर दहाड़ीस कि अगर कोनो भी नकस्लवादी बंदूक धरके आघू बढ़ही त गोली से भूंज दे जाही । हुसियार! सावधान! सब नकस्लवादी मन अपन -अपन बंदूक ल टरक म छोड़ के ,मा़स्टर झड़ीराम के अपीलनामा ल लहरावत आघू बढ़ीन त सब खुश होगें। चारोमुड़ा ताली के गड़गड़ाहट ले आसमान गूंजे लागिस अउ पाँच हजार नकक्ली मन एक सँघरा आत्मसमर्पण करदीन ।

     छत्तीसगढ़ अमर रहे,,,     

मास्टर झड़ीराम अमर हो,,,

के नारा चारो ओर गुँजाय मान होय लागिस । नकस्लीमुक्त छत्तीसगढ़ बनाय बर मास्टर के संकल्प ल वोखर संदेश ल सरकार अउ समाज मिल जुल के पूरा करे के बीड़ा उठाईन । छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा शहीद झड़ीराम काँवरे ल “छत्तीसगढ़ के रतन बेटा” के उपाधि से सम्मानित करे गिस ।

,,,आज भी छत्तीसगढ़ के रतन बेटा झड़ी के सुरता करके आँखी  म आँसू के झड़ी लग जथे।


  कमलेश प्रसाद शर्माबाबू ✍️

ग्राम –कटंगी,गण्डई 

पो-गण्डई

वि ख-छुईखदान

जिला-केसीजी(छत्तीसगढ़)

पिनकोड – 491888

मो न-9977533375

मया चन्द्रहास साहू

                                      

मया

                                     चन्द्रहास साहू

                                   मो 8120578897

सिरतोन मया ही तो आवय जौन अजर अमर रहिथे। मया हा जिनगी जीये के उद्देश्य ला बताथे। भलुक मया के आने आने बरन हो सकथे फेर सब बरन मा मयारुक के मान सम्मान अउ विश्वास करे बर सीखोथे। इही मया ले तो सृष्टि बने हाबे...अउ बिन मया के संसार के कल्पना घला नइ करे जा सके। मया मा पाना भी होथे अउ लुटाना घला होथे। मीरा बाई अपन जिनगी ला लुटा दिस अपन आराध्य बर। हीर रांझा लैला मजनूं ला कोन नइ जाने ? सब मया मा देये तो हाबे भलुक पाये कमती होही ! अउ जौन पाये हाबे तौनो हा अमूल्य आवय। 

.....अउ महूं हा आज मया मा कुछु पाये के उदिम करत हॅंव। फेर...? 

जम्मो ला गुणत-गुणत तियार होवत हाबे मोटियारी रुपा हा। टीवी चलत हाबे अउ वहूं मा मया के महत्तम के गोठ-बात होवत हाबे। आज तो मया के रंग मा सब रंग गे हाबे। आज मया के दिन आवय। विशेष दिन आय-वैलैनटाइन डे  चौदह फरवरी। अब्बड़ दिन ले अगोरा करत रिहिस आज के दिन के। ..अउ आज के दिन आइस तब तो बिहनिया ले बाट जोहत हाबे अपन मयारुक राहुल के। घेरी-बेरी मोबाइल ला देखत हाबे तब घेरी-बेरी घर के मोहाटी ले निकल के देखत हाबे वोला।

"हो गेस तियार। कर डारेस जम्मो जोरा-जारी ला।''

टू.... टू.... मोबाइल घरघराइस। मेसेज देखते साठ वहूं मेसेज पठोइस।

"हाॅंव'' 

अउ अब तो पाॅंख लगगे, उड़ाये लागिस। आँखी मा काजर माथा मा टिकुली होंठ मा मुॅंहरंगी,हरियर सलवार सूट पहिर के अपन आप ला दरपन के आगू मा ठाढ़े होके देखिस तब तो मोटियारी रुपा हा लजा गे।

अब अपन आप ला तियार कर डारिस जाये बर। फेर जरुरत के जिनिस ? वोला तो धरेच नइ हाबे। सकेले लागिस।.... फेर अब डर समावत हाबे हलु-हलु। अपन संगी संगवारी मन ला तो अब्बड़ उपदेश देये रिहिन उदाहरण दे देके। मयारुक हा अपन मया ला पाये बर एवरेस्ट फतह कर लेथे। आग के दरिया ला पार पा लेथे। कनाडा के दीवानी टूरी हा सात समुंदर पार करके आगे नेताम टूरा के मया मा। चार झन लइका के महतारी सीमा ला कोन नइ जाने ? भारत अउ पाकिस्तान के सीमा विवाद ले जादा चर्चित रिहिन पाकिस्तानी सीमा हा। भलुक बिचारी सीमा अफगानिस्तान नेपाल के सीमा लांघ के हमर भारत मा खुसरगे अपन मयारुक सचिन बर। ....अउ मेंहा ?  अपन घर के डेरउठी ला लांघ के मोर मयारु राहुल ले मिले बर नइ जा सकत हॅंव।

रुपा गुणत-गुणत  अपन मन ला पोठ करिस अउ जम्मो जरुरत के समान ला जोरत हाबे। सुटकेस मा क्रीम पाउडर अउ मेकअप के जिनिस संग चार जोड़ी सलवार सूट जींस टाप मफलर ला जोर डारिस। मन मा अब्बड़ उछाह रिहिस रुपा के। ये बेरा ला अब्बड़ जोहत रिहिन।.. फेर अब जाये के बेरा दाई-ददा के सुरता आवत हाबे। अब मन दूमना होये लागिस राहुल के संग जावंव कि नहीं ....? अब्बड़ गरेरा चलत हाबे रुपा के अंतस मा। उम्मर होये के पाछू जम्मो टूरी ला एक दिन बिहाव करे ला लागथे। मेंहा अपन मन ले टूरा संग बिहाव कर लुहूं तब का अनित हो जाही ? दाई ला तो अब्बड़ मनाये रेहेंव फेर ददा ला समझा नइ सकिस दाई हा। उल्टा अब्बड़ गारी बखाना करिस ददा हा। 

"अनजतिया टूरा राहुल ले मिलबे-जुलबे ते गोड़ हाथ ला टोर के खोरी बइठार दुहूं रूपा!'' 

अइसना तो गरजे रिहिन ददा हा। ...अउ दाई हा घला टेड़वाये रिहिन। सब के दाई ददा अपन लइका के जम्मो साध ला पूरा करथे फेर मोर दाई-ददा हा तो कसाई बनगे हाबे। मोर जम्मो उछाह के बलि लेवत हाबे।

                 टीवी मा विद्वान मन के डिबेट चलत हे। एक्सपर्ट मन के तर्क-वितर्क होवत हाबे वेलेंटाइन डे अउ लव जेहाद ऊपर। पंडित, मौलवी,पादरी सब अपन-अपन धर्म ला श्रेष्ठ बतावत हाबे। दुनिया भर ला शांत रहे बर सिखोइया जम्मो विद्वान मन अब एक दूसर बर अगिया बेताल होवत हाबे। कुकुर कटायेन बरोबर झगरा होवत हाबे। रुपा अब चैनल बदलिस। ....जी धक्क ले लागिस। मुॅंहू उघरा रहिगे। आँखी हा टीवी मा चिपकगे बिन मिलखी मारे।

ब्रेकिंग न्यूज चलत रिहिस। 

"फेसबुक का प्यार पड़ा भारी। ईज्जत के साथ पैसा भी गवाई उस लड़की ने। ...और अंत मे जान से हाथ धोना भी पड़ा।''

समाचार प्रस्तोता हा मिरचा मसाला लगाके समाचार ला देखावत हाबे। सनसनी तो अब्बड़ हाबे फेर संवेदना नइ दिखत हाबे एंकर मे।

" ...अंधे कत्ल का मिला सुराग। प्रेमी ही निकला मास्टरमाइंड। प्रेमिका के पैतिस टूकड़े करके लाश फ्रीज मे छुपाया था।''

समाचार बोलइया हा अब लाश के पोटली ला देखावत हाबे। फ्रीज अउ टूरी के रोवत बिलखत दाई-ददा ला घला घेरी-बेरी देखावत हाबे। बड़का स्क्रीन मा सरकार के योजना के विज्ञापन घला चलत हाबे। 

"बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ।''

"बेटी पढ़ेगी, विकास गढ़ेगी।''

"बेटियो की सुरक्षा के लिये बजट मे पंद्रा सौ करोड़ रुपया से बढ़ाकर पच्चीस सौ कर दी गई है।.... अउ छत्तीसगढ़ ला सुशासन बर दिल्ली मे देये जाही बड़का ईनाम।''

रुपा ला झिमझिमासी लागिस। नस-नस मा‌ लहू के संचार बाढ़गे। हाथ गोड़ काॅंपे लागिस। माथ मा पसीना चिकचिकाये लागिस। मुॅंहू चपियागे। ..अउ रंधनी कुरिया मा जाके गड़गड़-गड़गड़ पानी पी डारिस मोटियारी रुपा हा। मन मा गरेरा चले लागिस। मोरो मया तो फेसबुक के मया आवय। मोरो मयारुक राहुल हा अइसने कर दिही का....? जी काॅंपगे एक बेरा अउ। ...न ...न नही। मोर राहुल तो अब्बड़ मया करथे...अपन जान ले घला जादा। तभे तो एक बेरा अपन हाथ के नस ला काॅंट के लव लेटर लिखे रिहिन। पीरा मा काहरत रिहिस फेर होंठ मा स्वीट स्माइल घला रिहिस। पिज्जा के साध पूरा करे बर भोंभरा जरत रोड मा जुच्छा गोड़ गेये रिहिन।....मोर... मोर राहुल तो हजारों नही लाखो करोड़ो मा एक हाबे। ... अब्बड़ मया करथे। अपन मल्टी नेशनल कंपनी मा अब्बड़ मान पाथे। साफ्टवेयर इंजीनियर हाबे पड़पीड़-पड़पीड़ अंग्रेजी बोलथे।..... सुघ्घर हाईट ....सुघ्घर परसानिलिटी। राहुल के सुघरई मा समाये लागिस रुपा हा। 

"...टू...टू.. ।''

मोबाइल मा मेसेज आइस तब धियान टूटिस।

"अभिन तुंहर घर कोती नइ आ सकत हॅंव। अब्बड़ पुलिस चेकिंग चलत हाबे तही बस स्टैंड मा आ जा मोर स्वीट हार्ट रुपा !''

राहुल के मेसेज रिहिस। मेसेज के पाछू हार्ट के संग स्माइली के सुघ्घर इमोजी बने हाबे।

टू...टू....  फेर दुसरइया मेसेज आइस।

"गाहना जेवर अउ रुपिया पैसा धर लेबे। मोर हालत ला जानत हस।''

"ओके''

रुपा घला स्माइली के संग किसिंग इमोजी बनाके मसेज रिसेंड करिस अउ अपन पर्स ला देखे लागिस। पर्स मा एक सौ इक्यावन रूपिया भर हाबे। दाई हा पर्स ला बर्थ डे गिफ्ट देये रिहिस। जुच्छा पर्स दाई ? रुपा के गोठ सुनते साठ ददा हा देये रिहिस एक सौ इक्यावन रूपिया ला । अतका पइसा कहाॅं ले पुरही ? रुपा फुसफुसावत किहिस अउ आलमारी मा खोजे लागिस संग मा गाहना जेवर ला घला खोजत हाबे। ...कोन जन कहाॅं लुका देये हाबे ते मम्मी हा ? संदुक पेटी आलमारी दीवान जम्मो ला देख डारिस फेर नइ मिलिस। मन बियाकुल होगे। .....अउ मिलिस तब जुन्ना संदुक मा, जौन हा रुपा के दाई के जोरन संदुक आवय। माला-मुंदरी,ककनी-बनुरिया, अइठी, रुपिया माला,बिछिया.... सब गाहना ला ससन भर देखिस। दाई हा पहिरे आगू ये जम्मो ला। फेर अब कभु परब तिहार मा पहिर लेथे। कभु-कभु तो रुपा हा घला पहिर के इतरा लेथे। फेर रुपा बर आने जेवर मन हा हाबे दुसर पोटली मा। मांग मोरी, पायल, मंगल सूत्र, रानी हार करधनी,बाजूबंद अउ जम्मो ..... जेवर, दाई हा हियाव करके बिहाव के जोरा जारी करत हाबे। 

                        सिरतोन बेटी हा ठुबुक-ठाबक रेंगे ला धरथे अउ बिहाव के जोरा-जारी करे ला धर लेथे दाई ददा मन हा। रुपा के बिहाव बर जेवर के संगे संग सील बिसा डारे हाबे भांवर किंजरे बर। पंचरतन के बरतन चरण पखारे बर अउ धौरी बछिया ला घला अलगा डारे हाबे टीकावन बर। जम्मो ला गुणत-गुणत सोना  के जेवर मन ला अपन पर्स मा जोरे लागिस रुपा हा। ....अउ पइसा ?  रंधनी कुरिया के कोनो फुला-पठेरा मा मिल जाही। भलुक दाई हा मास्टरीन हाबे फेर हे तो देहाती। 

अब थरथरासी लागत हाबे। जी घुरघुरावत हाबे। जौन दाई ददा हा जनम देये हाबे। पाल पोसके बड़े करे हाबे तौन  ला तियाग के कइसे जावंव। घर के चौखट ला नाहकना जम्मो मरजाद ला टोरना आवय। नत्ता-गोत्ता ला छोड़ना आवय।

रुपा फेर सोच के भंवरी मा अरझे लागिस।

"तिही मोर जम्मो जिनगी आवस। तोर बिना मेंहा मर जाहूं रुपा ! आज वैलेंटाइन डे के दिन कही दुरिहां जाके हमर प्यार के घरौंदा बनाबो, जिहाॅं उछाह अउ अगाध मया रही। आ जा मोर जान ! मोर स्वीट हार्ट कम वेरी फास्ट आई एम वेटिंग हियर।''

राहुल फोन मा फेर समझाये लागिस। .....अउ जब मयारुक के मया के पूरा बोहाथे तब दाई-ददा के गोठ ला बिसरा देथे। रुपा हा अब्बड़ बताये चेताये रिहिस अपन दाई-ददा ला राहुल के बारे मा। एक बेरा तो दाई-ददा ले मिलाये घला रिहिन फेर ददा के खोधा निपोरी।

"का जात आवय तोर राहुल ? का गोत्र हरे ? के झन कका, फूफा, फूफी हाबे। ममा-मामी मन के कतका झन लइका हाबे अउ तुमन के भाई बहिनी होथो ?''

                राहुल एको ठन के उत्तर नइ दे सकिस। भलुक शहर के रहवइया मन हा अइसन ला का जानही। ...अउ‌ ये मन तो हायर एजुकेटेड फैमिली हरे- साफ्टवेयर इंजीनियर। डैड के नाव मा आईल मिल, टेक्सटाइल मिल्स हाबे। सबके दाई-ददा उछाह होथे अइसन अरबपति घर संग नत्ता जुरत हाबे फेर मोर भोकवा ददा ला..... ?  आपत्ति होगे। 

अपन बरोबर के संग नत्ता जुरही रुपा। धन-दोगानी के अंधरा मन ला अपन गोत्र, अपन कका फूफा के नाव नइ जानबा होवय। अइसन घर मा मोर एकलौती बेटी के कन्यादान नइ कर सकंव। रुपा के ददा सोज्झे सुना दे रिहिन।

                        रुपा जम्मो ला गुणत-गुणत अब घर के डेरउठी ला नाहक डारिस। मुड़ी कान ला अइसे बांधिस कि कोनो नइ चिन्ह सके। मेन रोड मा आके राहुल के अगोरा करत हाबे। .... ...जोजन होगे अगोरा करत। ...अउ अइसन मा नानकुन बेरा हा घला अब्बड़ जनाथे। उप्पर ले दाई ददा के डर उदुप ले रद्दा मा ओरभेट्टा झन हो जावय। दुनो कोई आज मातृ-पितृ दिवस मनाये बर पुरखा गाॅंव गेये हाबे।

           ‌ सब्बो ऑटो भीड़ चलत रिहिस। न कोनो  लिफ्ट बर दिखत हाबे न कोनो जुच्छा ऑटो । तभे दूरिहा ले एक झन ऑटो आइस। रुपा हाथ देखाइस।

"बस स्टैंड जाना हे।''

रुपा अब ऑटो मा बइठके बस स्टैंड कोती जाये लागिस। मन के गरेरा अभिन शांत नइ होये हाबे। राहुल ला अब फोन करिस रुपा हा।

"दस मिनट मे अमर जाहूं बस स्टैंड। कोन जगा मिलबे ?''

"अरे, कुछ काम के सेती रेलवे स्टेशन आगे हॅंव। इहीन्चे आ जा।''

ओती ले राहुल के आरो आइस। अब ऑटो हा रेलवे स्टेशन कोती दउड़त हाबे। रुपा के चेहरा अब कुमलाये लागिस। ऑटो वाली दीदी हा जम्मो ला देखत गुणत हाबे। तभो ले काकरो लाटा-फांदा मा काबर पड़ही ? 

"रेलवे स्टेशन अमर जाहूं अब। कोन मेर मिलबे ?''

"वेटिंग हाॅल मा अगोरा करबे रुपा ! माई स्वीट हार्ट! ओनली टू मिनिट देन आई विल मिट इन्फ्रंट आफ यू !'' 

राहुल के गुरतुर गोठ रिहिस।

रुपा ऑटो वाली दीदी ला हिसाब करके पइसा दिस अउ स्टेशन टिकट कटा के वेटिंग हाॅल मा अगोरा करे लागिस।

"कोन शहर जाना हे ? टिकट कटवा लेथो बता ?''

"बस दू मिनट मा आवत हॅंव। आन लाइन साढ़े चार हजार रुपिया ट्रान्सफर कर दे रुपा।''

राहुल के फोन रिहिस।

"हाॅंव !''

रुपा पइसा ट्रान्सफर करिस अउ अगोरा करे लागिस। दू मिनट हा .... पंद्रा मिनट ...आधा घंटा...एक घंटा..... एक ले दू घंटा होगे फेर राहुल नइ आइस। अब्बड़ बेरा फोन करिस तभो ले न कोनो जवाब आइस अउ न कोनो मेसेज पठोइस। 

"कब आबे राहुल ! एक-एक छण अब अब्बड़ पहाड़ लागत हाबे।''

मोबाइल के काॅलिंग बटन ला मसकिस।

"वोह ... सोरी बेबी ! बस टू मिनिट।''

राहुल के गोठ सुनके रुपा अगियावत हाबे। काया मा रगरगी समागे हे। 

"...अउ कतका ? तोर दू मिनट कतका बेरा होथे। एक अकेली लड़की जम्मो घर बार छोड़ के तोर बर आवत हाबे अउ तेहां दू मिनट कहिके मटकावत हावस।''

रुपा अब फट पड़िस। आँखी मा असवन बोहाये लागिस।

"अपन घर ले जाहूं बेबी ! माॅम डैड को भी मनाना पड़ता है।  पच्चीस हजार एकाउंट में ट्रांसफर कर दे। अब ट्रेन ले नइ जावन भलुक प्लेन ले जाबो। उही जावत हॅंव आ जा!''

राहुल अब हवाईअड्डा बलाये लागिस। रुपा खिसियावत हाबे। तभो ले राहुल के मंदरस बोली ले फेर मोहागे। 

                   अब रेलवे स्टेशन के बाहिर फेर ऑटो के अगोरा करे लागिस रुपा हा। ऑटो वाली दीदी फेर मिलगे। सवारी खोजत रिहिस। मोल भाव करिस अउ बइठके अब हवाईअड्डा जावत हे।

"कहाॅं जावत हस बहिनी ! बस स्टैंड ले रेलवे स्टेशन, रेलवे ले हवाई अड्डा ?''

ऑटो वाली दीदी के गोठ सुनके रुपा हा अकबकागे। का बताही ? 

"घर ले भाग के जावत हस न ? अउ वहूं ला गैर जिम्मेदार टूरा संग।''

ऑटो वाली दीदी किहिस। रुपा अकचकागे। 

"न .... नही । हम वइसन घराना के नइ हरन वो दीदी !''

रुपा गला खखारत किहिस।

"भले घर के हरस, सुघ्घर दाई ददा के बेटी आवस तभे तो तोर आँखी मा पट्टी बंधाये हाबे। लबरा टूरा ला नइ जान सकत हस। कहाॅं जाना हे, कइसे जाना हाबे .. बस टूरी ला किंजारत हाबे। कतका दिन के हरे तुंहर मया हा ? कब ले जान पहिचान होये हाबे ? अपन समझके पुछत हावंव। बताबे ते कुछू मदद करहूं अउ नइ बताबे तभो हमर का हे ? दसो झन मनखे ले ओरभेट्टा होथन कोनो ला अपन दुख ला बताथन तब काकरो दुख मा पंदोली देथन।''

रुपा अब्बड़ गुणे लागिस ऑटो वाली दीदी के गोठ ला सुनके। बताओ कि नइ बताओ मन दू मना रिहिस तभो ले बताइस।

"छे महिना आगू जान पहिचान होये हाबे। दू चार बेर सौंहत मिले हावंव। सबले पहिली फेसबुक में मिले रेहेंन। पहिली दोस्ती होइस ताहन मया बाढ़िस अउ अब किरिया खा डारे हावन एक दूसर के साथ निभाबो अइसे।''

ऑटो वाली दीदी ला बताइस रुपा हा।

ट्रिन ट्रिन फोन के घंटी फेर बाजिस।

"पइसा ट्रान्सफर कर मोर स्वीट हार्ट ! टिकट कटाना हाबे।''

टूरा राहुल के फेर फोन आगे।

"कहाॅं हस घेरी-बेरी नचावत हावस।''

"कही नही..! पगली बस दू मिनट.....! पइसा ट्रान्सफर कर। प्लेन के टिकट....!'' 

फोन कटगे। रुपा अब मोबाइल के गुगल पे मा सर्च करे लागिस फेर ऑटो वाली दीदी के गोठ सुनके अतरगे।

"बहिनी !  तोर जिनगी ला कइसे जीबे तौन ला तिही हा बने सुघ्घर जानबे फेर मोर गोठ ला मानबे तब पइसा के ट्रान्सफर झन कर। टूरा ला एक बेर अउ परख ले।''

ऑटो वाली दीदी के गोठ सुनके सिरतोन रुपा हा गुणे लागिस। का सिरतोन ठगावत हावंव मेंहा..?

ट्रिन ट्रिन.......।

फेर फोन आगे अब राहुल के। रुपा फोन उठाइस।

"पइसा ट्रान्सफर कर दे मोर स्वीट हार्ट !''

"कोन जगा हावस तेन ला बता। सौंहत मिलके दुहूं पइसा।''

रुपा के गोठ सुनके राहुल अकचकागे। हड़बड़ावत किहिस "गाॅंधी चौक कोती आबे।''

अब तो रुपा के गाड़ी गाॅंधी चौक कोती दउड़े लागिस।

"नारी के जिनगी मा अब्बड़ बीख रहिथे बहिनी। भोलेनाथ बनके रोज बीख ला पीये ला परथे। ...अउ भरोसा घला अब्बड़ जांच परख के करे ला पड़थे। मोरो जिनगी मा अइसन गरेरा आये रिहिस बहिनी ! दाई-ददा, घर-दुवार ला छोड़ के महूं हा सोहेल संग भागेंव फेर टूरा हा भरोसा के लइक नइ रिहिस कोनो आने के चक्कर मा रिहिस।... मिही हा वोला छोड़ देंव। ......अउ माई-माइके के मोहाटी बंद हो जाथे एक बेरा बेटी के गोड़ बाहिर निकलथे ते। मोरो माइके के मोहाटी बंद होगे। तब ले इही ऑटो हा मोर जम्मो नत्ता-गोत्ता होगे हे।''

ऑटो वाली दीदी किहिस। 

                  अब गाॅंधी चौक मा अमरिस तब तो रुपा के जी धक्क ले लागिस। ठाड़ सुखागे राहुल ला देखिस तब। रोड के वो पार ठाड़े रिहिस राहुल हा। दू झन पुलिस वाला मन धरे रिहिस वोला अउ पुलिस वाला के दल रिहिस हवलदार, इंस्पेक्टर,थानादार अउ एस पी। गांजा तस्कर करत सपड़ाये हाबे राहुल अउ वोकर चार झन संगवारी मन। बस दू मिनट होये हाबे । अभिन-अभिन धराये हे। हाथ मा हथकड़ी पहिरे राहुल हा रुपा ले बांचे के उदिम करत हाबे । फेर कहाॅं लुकाही...? अब तो सब उघरगे। रुपा के आँखी घला।  

ऑटो वाली दीदी अब समझाये लागिस रुपा ला बड़े बहिनी बन के। पोटार लिस।  

अब लहुटत हाबे अपन घर कोती, जम्मो छोटका-बड़का गोठ मा हियाव करइया दाई ददा के अंगना मा। अब दुनिया के सबले सुघ्घर लागत हाबे रुपा ला अपन दाई-ददा हा। संकल्प लेवत जावत हाबे आज अपन दाई-ददा के  जम्मो गोठ ला माने बर। ....पूजा करके आसीस पाये बर। 

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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

बाई के बड़ई

 बाई के बड़ई

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कका --- कका ! थोकुन रुकतो--पड़ोस के भतीजा कहिस।

'काये बता ?'--मैं पूछेंव।

चल ना आज रायपुर जाबो कका।

कइसे--काबर ?

कुछु नहीं।एकक हजार के दू ठो टिकट कटा डरे हँव।एक झन अगमजानी महराज के दरबार में जाये बर।

मैं नइ जाववँ।मोला अइसन अरबार-दरबार पसंद नइये।अइसने कतेक झन ढग-जग मन धंधा चलावत हें। तैं दू ठन टिकट कटाये हस त दूनो परानी जावव न जी।

अब काला बताववँ कका तोर बहू ला रतिहा ले कसके बुखार हे।वो नइ जाववँ कहि दिस तेकर सेती ताय --तोला काहत हँव।मोर एक हजार के टिकट बेकार हो जही।

मैं हा थोकुन हर गुन के कहेंव- 'तैं काहत हस त चल देहूँ फेर कुछु पूछवँ- पाछँव नहीं।'

'ले कुछु नइ होवय कका।संगवारी बरोबर चल देबे ततके काफी हे,मुँहाचाही हो जही' --वो कहिस।

 रायपुर के बड़े जान होटल मा दरबार लगे लागय।हमर पहुँचत ले हाल हा खचाखच भरगे राहय टिकट के बुकिंग के अनुसार कुर्सी लगे राहय।हमन ला आगूच मा जगा मिलगे।

 उहाँ दू झन सुंदर नोनी मन माईक धरे एकर-वोकर सो जात राहँय।जेकर सो जायँ तेन हा अपन समस्या ला-परेशानी ला बतावय तहाँ ले भारी सजे-धजे मंच मा बइठे -- वेषभूषा ले भारी तपसी-महात्मा कस लागत महराज हा दू चार ठन प्रश्न पूछ के बतावय के भगवान के किरपा एमा अटके हे, वोमा अटके हे तहाँ ले उपाय तको बतावय।

 वो एक झन माईक वाले नोनी मोरो सो आके दँतगे अउ बोले ला कहिस।मैं हा माईक ला भतीजा कोती टरका देंव।वो तो तइयार बइठे राहय।माईक ला धरके टिंग ले खड़ा होगे।

महराज बोलिस-- बताओ बच्चा क्या परेशानी है?

 काला बताववँ महराज बहुत परेशानी मा जिनगी चलत हे। मोला थरथरासी- थरथरासी लागत रहिथे।बाई हा सीधा मुँह बात नइ करै।लोग लइका मन बात नइ मानैं।खेती-खार चौंपट होगे।नानचुक दुकान खोले हँव तेनो दिनों-दिन खिरावत जावत हे।ग्राहक नइ आवयँ।।पइसा कमाथँव तेन टिकबे नइ करय।कोनो जादू-टोना करदे हें तइसे लागथे।बँचालव महराज जी---बोलत बोलत भतीचा के गला भर्रागे।आँखी ले आँसू बोहागे।

महराज ढाँढ़स बँधावत कहिस-- बहुत दुखी हो बच्चा सब ठीक हो जायेगा।अच्छा ये बतावो-- मिर्ची भजिया कब खाये हो?

'आजे दू घंटा पहिली खाये हवँ महराज।'

और जलेबी?

'उहू ल आजे वोकरे संग होटल मा नाश्ता करत खाये हँव।'

सुनके महराज थोकुन चुप होके -- अपन आँखी ला मूँद के एक ठन माला ल अपन मूँड़ मा घुमाके ,काय-काय बुदबुदाइस तहाँ ले बोलिस-- 'अच्छा ये बताओ बेटा।तुम्हारी पत्नी है न?'

'हाँ हाँ हाबय न महराज।'

वो भोजन बनाती है कि कोई और?'

'उही बनाथे महराज।मैं कहाँ रसोईया राखे सकहूँ।मोर हैसियत नइये।'

अच्छा ठीक है ।ये बताओ अपनी पत्नी के बनाये खाने का तरीफ कब किये हो?'

'मोला तो सुरता नइ आवत ये महराज।शायदे करे होहूँ।'

बस-बस कारण समझ में आ गया।कृपा वहीं अटकी है।जाओ आज ही तारीफ करना सब ठीक हो जायेगा।'

भतीजा हा हव महराज कहिके चुपचाप बइठगे।

ऊँकर सवाल-जवाब ला सुनके मोला खलखलाके हाँसी आवत रहिसे तभो मुँह ला तोपके चुपचाप बइठे रहेंव।

दरबार सिरइच तहाँ ले घर  लहुटत ले जेवन के बेरा होगे।वोकर जिद्द करे मा महूँ हा सँघरा वोकरे घर जेवन करे बर बइठगेंव।बहू हा लाके जेवन पानी देइस।भतीजा हा एके कौंरा मुँह मा लेगिस तहाँ ले शुरु होगे-- अजी कमला सुन तो।आज के भोजन जोरदार बने हे।आलू साग ला तो झन पूछ----अँगठी ला चाँट- चाँट के खाये के मन करत हे।'

वोतका सुनके बहू हा भन्नावत कहिस-- तोला लाज तको नइ लागय।आलू साग ला फूटे आँखी नइ भावच तेन हा।थारी-कटोरी ला फेंक के औंखर-औंखर गारी देथच तेन हा।तोला तो कुकरी-बोकरा अउ दारू चाही।'

'मैं  दिन भर बुखार मा हँफरत हँव।तोला हरियर सूझे हे।वो तो परोसिसन रम्हला काकी बेचारी हा अलवा-जलवा राँध दे हे त खाये ला मिलगे नहीं ते लाँघन सुते रइते।'

'आँय -का कहे? येला तैं नइ राँधे अच?'

'हव। बताये हँव न।'--बहू कहिस।

मोला लागिस के इँकर कुकरी झगरा मात जही का? भतीचा ला चुपेचाप खाये ला कहेंव अउ भोजन करके अपन घर लायेंव तहाँ ले समझावत कहेंव--'देख बाबू फोकट के ढोंगी मन के चक्कर मा आके दू -ढाई हजार रूपिया ला फूँक देयेच। कृपा तो अभो अटके हे। वो ढोंगी भला का बताइस तेमा? मोर एक बात ला मान जबे ता सदा दिन भगवान के किरपा बरसे ला धर लिही।तैं हा रात-दिन दारू पियई ला छोंड़ दे।तोर तबियत घलो ठीक हो जही।घर के पूरा माहौल दारू के सेती खराब कर डरे हस।लोग लइका,बाई सब टेंशन मा रहिथें। दारू पीके दुकान मा बइठतच त भला कोन ग्राहिक आही? थोक बहुत कमाथस तेन ला दारू मा उड़वाथस त पइसा कहाँ ले बाँचही। एक बात अउ- बहू ले अच्छा बरताव करबे तभे तो गृहस्थी बने चलही।बाई के बड़ई करे मा,वोकर सम्मान करे मा बरकत आथे जी।बात समझ मा आइस न?'

वो हा हव कहिके मुँड़ी ला हलाइस।


चोवा राम वर्मा 'बादल '

हथबंद,छत्तीसगढ़

नवरात्रि

 " या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता , 

 नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै नमो नमः । " 

     30 मार्च ले चैती नवरात्रि शुरु होवइया हे त चिटिक थिरा के सुरता कर लिन ....।

नौ दिन नौ रात जगदम्बा के पूजा , अर्चना करे जाथे त अपन शक्ति अनुसार लोगन उपास रथें जेमन 9 दिन के उपास नइ राखे सकयं तेमन प्रथमा , पंचमी अउ अष्टमी तिथि देख के उपास रथें । 

   अष्टमी के रात ल महानिशा कहे जाथे त आधा रात के श्वेत पूजा के विधान हे , रखिया अउ नींबू के बलि अउ होम धूप देहे जाथे । ये देवी दाई हर धात्री , विधात्री , महाशक्ति आय जेकर दू ठन रुप होथे ....पहिली विद्या दूसर अविद्या । महामाया विद्या मनसे ल मुक्ति देथे त अविद्या संसार के ऊपर लोभ जगाथे , मोहित करथे । महामाया , महादेवी के दस ठन रूप कहे गए हे दस शक्ति जेला हमन काली , तारा , छिन्नमस्ता , धूमावती , बगलामुखी , कमला , त्रिपुर भैरवी , भुवनेश्वरी , त्रिपुर सुंदरी , अउ मातंगी नाव से पूजा करथन इही मन ल महाविद्या घलाय कहिथन । 

     शक्ति आराधक मन ल शाक्त कहे जाथे । निगम माने वैदिक परंपरा त आगम माने तंत्र साधना होथे फेर मंत्र तो दुनों साधना पद्धति के मूल आय । 

शक्ति के पहिली रुप निराकार माने जाथे त दूसर शक्ति मूर्ति , जंवारा रुप मं जाने माने जाते एला परिणामदायिनी माने सांसारिक मनोरथ पुराने वाली कहे जाथे । महामाया सात्विक जगत के कारण आय त माया प्राकृत जगत के मूल आय । 

  सबले जरूरी बात के जगदम्बा के आराधना , पूजा , उपास मं मन शुद्ध होना चाही कोनों किसिम के कल्मष भाव जागही या कोकरो बर अनिष्ट कामना जागही त सुरता राखिहव के ओहर सबके महतारी आय ..हंसाय , खेलाय , पाले , पोंसे के बेरा मया करथे , दुलारथे त सजा घलाय देथे । 

शरणागत हो जाये ले हमर चिंता खतम ओ जानै ....तभे तो शंकराचार्य स्तुति करथें ......

" मत्समः पातकी नास्ति , पापघ्नी : त्वत समा नहि , 

 एवं ज्ञात्वा महादेवि , यथा योग्यम् तथा कुरु । " 

      जगदम्बा तैं तो महाशक्ति , महतारी अस त मैं जौन लाइक हंव तइसने कर ....। संसार के मायाजाल , लोभ मोह के धुर्रा , चिखला मं सनाये हंव फेर तैं भले दू चटकन मार लेबे , अपने अंचरा ल धर के सबो धुर्रा , चिखला ल पोंछबे घलाय तो ...मैं तोर शरण मं आये हंव बस अब तैं जान तोर काम जानय ....।  नवरात्रि उपासना के इही शरणागत भाव ल मन मं बसा के नौ दिन यथा शक्ति पूजा , उपास करना चाही । 

            गुड़ी के गोठ ....डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा    

   से साभार ....

लघुकथा) सबे भूमि गोपाल के

 (लघुकथा)


सबे भूमि गोपाल के

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कका --कका-ये कका थोकुन आवव तो काहत परोस के बहू हा मुँहाटी मा ठाढ़े अवाज देवत राहय। मैं कुरिया ले बाहिर निकल के आयेंव अउ पूछेंव-- का होगे बहू,बड़े बिहनिया ले बलाय ला आये हच---कुछु परेशानी आगे का?"

वो कहिच--- "काला बताववँ कका। मोंगरा के बाबू ला फेर बइगुन उमड़ गे हे।थोकुन समझा देतेव।वो हा ककरो तो सुनय नहीं।तुँहरे बात ला थोर-बहुत मान जथे त मान जथे।"

ले चल कहिके वोकर संग आयेंव त का देखथँव भतीजा मनन हा कुदारी मा घर के भीतर परछी मा पटाव मा चढ़े बर बने सीढ़िया ला ओदारत राहय। कतका बेर के उठे रहिस तेला उही जानय-उत्ती मा बने नहानी खोली ला फोर डरे राहय। मोला देखिच तहाँ ले आके पाँव परिस अउ फेर जाके ओदारे बर भिंड़गे। मै हा कहेंव-- "अरे बाबू तैं हा ये फोरई-टोरई ला बंद कर अउ आके मोर संग थोकुन बइठ ले-- गोठियाले।"

वो हा हव कका कहिके आइस अउ बइठगे।इही बीच मा बहू हा चाय-पानी लाके देइस।चाय पियत-पियत मैं हा पूछेंव-- ये तैंहा का करत हस जी।पुरखा मन के जमाना के बने कतेक मजबूत सीढ़िया ला काबर फोरत-टोरत हस।वो नहानी खोली अउ संडास ला तहीं हा पाछू बछर बनवाये रहे उहू ला काबर फोर देच ? पइसा जादा होगे हे का---का होगे हे तेमा? 

"का बताववँ कका ।ये घर के वास्तु बिगड़ गेहे।जेती सिढ़िया नइ रहना चाही तेती सीढ़िया हे।जेती रँधनी खोली नइ रहना चाही तेती रँधनी खोली हे।जेती नहानी अउ कोठा नइ रहना चाही तेती वोमन बनगे हे।एकरे सेती ये घर फुरत नइये।आये दिन कोनो न कोनो बीमार पर जतन।नइ सोचे रइबे तइसन नुकसान होवत रहिथे"--एक्के साँस मा वो हा सब ला ओरिया डरिस।

"अरे बाबू तोर मति बिगड़ गे हे।इही घर मा तोर पुरखा मन हली-भली जिनगी पहा डरिन।वो मन ल तो कुछु नइ होइस।अच्छा ये बता तैं कइसे जाने ये घर मा खराबी हे?"

"वो दिन टी वी मा देखे हँव कका एक झन पंडित हा बतावत रहिसे के घर मा वास्तु दोष होये ले का का परेशानी आथे।वो बतावत रहिसे के कोन दिशा मा का का होना चाही। पेपर मा तको पढ़े हँव।"

"अच्छा त तोर दिमाग मा वास्तु शास्त्र के कीरा खुसरगे हे अउ वो हा तोला कुट-कुट चाबत हे। ये सब मन के भरम ये रे बेटा।मन चंगा ता कठौती मा गंगा होथे। ये सब बड़े आदमी--पइसावाले मन के  प्रपंच आय।वास्तु के बारे मा महूँ जानथँव।ये दिशा वो दिशा के कोनो मतलब नइये।अतका जरूर हे के कोनो घर हा धुँधुक ले झन राहय।हवा अउ सुरुज नरायेन के अँजोर आये बर बने खिड़की-दरवाजा राहय।इही हा असली वास्तु शास्त्र आय।तोर घर मा एकरे व्यवस्था कर।ओली-खोली,सीढ़िया ला झन टोर-फोर।अच्छा मैं कुछ प्रश्न पूछत हँव तेकर सोंच बिचार के उत्तर देबे।"

"ठीक हे कका।ले पूछ न?"-- वो कहिस।

"अच्छा ये बता ये धरती ला कोन बनाये होही?"

"भगवान हा बनाये हे।"

"अउ ये दिशा मन ला कोन बनाये हे?"

"उहू ला भगवानेच हा बनाये होही कका।"

"ठीक कहे।ये सबो धरती,दिशा-बादर ला भगवान बनाये हे त का वोकर बनाये हा गलत होही?

"भगवान के बनाये कुछु जिनिस गलत नइ हो सकय कका।बने बताये।मोरे समझ गलत होगे रहिस"--काहत मनन हा कुदारी राँपा ला भीतरिया दीच।


चोवा राम वर्मा "बादल"

हथबंद,छत्तीसगढ़

पुरखा के सुरता नाचा के सियान – मंदराजी दाऊ

 1 अप्रैल -114 वीं जयंती मा विशेष 


पुरखा के सुरता 


नाचा के सियान – मंदराजी दाऊ 




धान के कटोरा छत्तीसगढ़ के लोक कला अउ संस्कृति के अलग पहचान हवय । हमर प्रदेश के लोकनाट्य नाचा, पंथी नृत्य, पण्डवानी, भरथरी, चन्देनी के संगे संग आदिवासी नृत्य के सोर हमर देश के साथ विश्व मा घलो अलगे छाप छोड़िस हे। पंथी नर्तक स्व. देवदास बंजारे ,पण्डवानी गायक झाड़ू राम देवांगन, तीजन बाई, ऋतु वर्मा, भरथरी गायिका सुरुज बाई खांडे जइसन कला साधक मन हा छत्तीसगढ़ अउ भारत के नाम ला दुनिया भर मा बगराइस हवय. रंगकर्मी हबीब तनवीर के माध्यम ले जिहां छत्तीसगढ़ के नाचा कलाकार लालू राम (बिसाहू साहू),भुलवा राम, मदन निषाद, गोविन्द राम निर्मलकर, फिदा बाई  मरकाम, माला बाई मरकाम हा अपन अभिनय क्षमता के लोहा मनवाइस. ये नाचा के नामी कलाकार मन हा एक समय नाचा के सियान मंदराजी दाऊ के अगुवाई मा काम करे रिहिन ।मंदराजी दाऊ हा नाचा के पितृ पुरुष हरय. वो हा एक अइसन तपस्वी कलाकार रिहिस जउन हा नाचा के खातिर अपन संपत्ति ला सरबस दांव मा लगा दिस ।

    नाचा के सियान मंदराजी के जनम संस्कारधानी शहर राजनांदगांव ले 5  किलोमीटर दूरिहा रवेली गांव मा एक माल गुजार परिवार मा  1 अप्रैल 1911 मा होय रिहिन ।मंदरा जी के पूरा नांव दुलार सिंह साव रिहिन । 1922 मा ओकर प्राथमिक शिक्षा हा पूरा होइस।दुलार सिंह के मन पढ़ई लिखई मा नई लगत रिहिन । ओकर धियान नाचा पेखा डहर जादा राहय । रवेली अउ आस पास गांव मा जब नाचा होवय तब बालक दुलार सिंह हा रात रात भर जाग के नाचा देखय ।एकर ले 

ओकर मन मा घलो चिकारा, तबला बजाय के धुन सवार होगे. वो समय रवेली गांव मा थोरकिन लोक कला के जानकार कलाकार रिहिस । ऊंकर मन ले मंदराजी हा 

चिकारा, तबला बजाय के संग गाना गाय ला घलो सीख गे । अब मंदरा जी हा ये काम मा पूरा रमगे ।वो समय नाचा के कोई बढ़िया से संगठित पार्टी नइ रिहिस । नाचा के प्रस्तुति मा घलो मनोरंजन के नाम मा द्विअर्थी संवाद बोले जाय ।येकर ले बालक दुलार के मन ला गजब ठेस पहुंचे ।वोहा अपन गांव के लोक कलाकार मन ला लेके 1928-29 मा रवेली नाचा पार्टी के गठन करिन ।ये दल हा छत्तीसगढ़ मा नाचा के पहिली संगठित दल बनगे ।वो समय खड़े साज चलय । कलाकार मन अपन साज बाज ला कनिहा मा बांधके अउ नरी मा लटका के नाचा ला प्रस्तुत करय ।

 मंदराजी के नाचा डहर नशा अब्बड़ लगाव ला देखके वोकर पिता जी हा अब्बड़ डांट फटकार करय ।अउ चिन्ता करे लगगे कि दुलार हा अइसने करत रहि ता ओकर जिनगी के गाड़ी कइसे चल पाही । अउ एकर सेती ओकर बिहाव 14 बरस के उमर मा दुर्ग जिले के भोथली गांव (तिरगा) के राम्हिन बाई के साथ कर दिस ।बिहाव होय के बाद घलो नाचा के प्रति ओकर रुचि मा कोनो कमी नइ आइस ।शुरु मा ओकर गोसइन हा घलो एकर विरोध करिन कि सिरिफ नाचा ले जिनगी कइसे चलही पर बाद मा 

वोकर साधना मा बाधा पड़ना ठीक नइ समझिस ।अब वोकर गोसइन हा घलो वोकर काम मा सहयोग करे लगिन अउ उंकर घर अवइया कलाकार मन के खाना बेवस्था मा सहयोग करे लगिन ।


 सन् 1932 के बात हरय ।वो समय नाचा के गम्मत कलाकार 

सुकलू ठाकुर (लोहारा -भर्रीटोला) अउ नोहर दास मानिकपुरी (अछोली, खेरथा) रिहिस ।कन्हारपुरी के माल गुजार हा सुकलू ठाकुर अउ नोहर मानिकपुरी के कार्यक्रम अपन गांव मा रखिस ।ये कार्यक्रम मा मंदरा जी दाऊ जी हा चिकारा बजाइन ।ये कार्यक्रम ले खुश होके दाऊ जी हा सुकलू

अउ नोहर मानिकपुरी ला शामिल करके रवेली नाचा पार्टी के ऐतिहासिक गठन करिस ।अब खड़े साज के जगह सबो वादक कलाकार बइठ के बाजा बजाय लागिस ।


सन् 1933-34 मा मंदराजी दाऊ अपन मौसा टीकमनाथ साव ( लोक संगीतकार स्व. खुमाम साव के पिताजी )अउ अपन मामा नीलकंठ साहू के संग हारमोनियम खरीदे बर कलकत्ता गिस ।ये समय वोमन 8 दिन टाटानगर मा  घलो रुके रिहिस ।इही 8 दिन मा ये तीनों टाटानगर के एक हारमोनियम वादक ले हारमोनियम बजाय ला सिखिस ।बाद मा अपन मिहनत ले दाऊजी हा हारमोनियम बजाय मा बने पारंगत होगे । अब नाचा मा चिकारा के जगह हारमोनियम बजे ला लगिस ।सन् 1939-40 तक रवेली नाचा दल हमर छत्तीसगढ़ के सबले प्रसिद्ध दल बन गे रिहिस ।


   सन् 1941-42 तक कुरुद (राजिम) मा एक बढ़िया नाचा दल गठित होगे रिहिस ।ये मंडली मा बिसाहू राम (लालू राम) साहू जइसे गजब के परी नर्तक रिहिन। 1943-44 मा लालू राम साहू हा कुरुद पार्टी ला छोड़के रवेली नाचा पार्टी मा शामिल होगे ।इही साल हारमोनियम वादक अउ लोक संगीतकार खुमान साव जी 14 बरस के उमर मा मंदराजी दाऊ के नाचा दल ले जुड़गे ।खुमान जी हा वोकर मौसी के बेटा रिहिन ।इही साल गजब के गम्तिहा कलाकार मदन निषाद (गुंगेरी नवागांव), पुसूराम यादव अउ जगन्नाथ निर्मलकर मन घलो दाऊजी के दल मा आगे ।अब ये प्रकार ले अब रवेली नाचा दल हा लालू राम साहू, मदन लाल निषाद, खुमान लाल साव, नोहर दास मानिकपुरी, पंचराम देवदास, जगन्नाथ निर्मलकर, गोविन्द निर्मलकर, रुप राम साहू, गुलाब चन्द जैन, श्रीमती फिदा मरकाम, श्रीमती माला मरकाम जइसे नाचा के बड़का कलाकार मन ले सजगे ।


   नाचा के माध्यम ले दाऊ मंदराजी हा समाज मा फइले बुराई छुआछूत, बाल बिहाव के विरुद्ध लड़ाई लड़िन अउ लोगन मन ला जागरुक करे के काम करिन ।नाचा प्रदर्शन के समय कलाकार मन हा जोश मा आके अंग्रेज सरकार के विरोध मा संवाद घलो बोलके देश प्रेम के परिचय देवय ।अइसने आमदी (दुर्ग) मा मंदराजी के नाचा कार्यक्रम ला रोके बर अंग्रेज सरकार के पुलिस पहुंच गे रिहिस । 


वोहर मेहतरीन, पोंगा पंडित गम्मत के माध्यम ले छुअाछूत दूर करे के उदिम, ईरानी गम्मत मा हिन्दू मुसलमान मा एकता स्थापित करे के प्रयास, बुढ़वा बिहाव के माध्यम ले बाल बिहाव अउ बेमेल बिहाव ला रोकना, अउ मरानिन गम्मत के माध्यम ले देवर अउ भौजी के पवित्र रिश्ता के रुप मा सामने लाके समाज मा जन जागृति फैलाय के काम करिस ।


1940 से 1952 तक तक रवेली नाचा दल के भारी धूम रिहिन ।


 सन् 1952 मा फरवरी मा मंड़ई के अवसर मा पिनकापार (बालोद )वाले दाऊ रामचंद्र देशमुख हा रवेली अउ रिंगनी नाचा दल के प्रमुख कलाकार मन ला नाचा कार्यक्रम बर नेवता दिस । पर ये दूनो दल के संचालक नइ रिहिन। अइसने 1953 मा घलो होइस ।ये सब परिस्थिति मा रवेली अउ रिंगनी (भिलाई) हा एके मा शामिल (विलय) होगे ।एकर संचालक लालू राम साहू बनिस ।मंदराजी दाऊ येमा सिरिफ वादक कलाकार के रुप मा शामिल करे गिस । अउ इन्चे ले रवेली अउ रिंगनी दल के किस्मत खराब होय लगिस ।रवेली अउ रिंगनी के सब बने बने कलाकार दाऊ रामचंद्र देशमुख द्वारा संचालित छत्तीसगढ़ देहाती कला विकास मंडल मा शामिल होगे ।पर कुछ समय बाद ही छत्तीसगढ़ देहाती कला विकास मंडल के कार्यक्रम सप्रे स्कूल रायपुर मा होत रिहिस।ये कार्यक्रम हा गजब सफल होइस ।ये कार्यक्रम ला देखे बर प्रसिद्ध रंगककर्मी हबीब तनवीर हा आय रिहिन ।वोहर उदिम करके रिंगनी रवेली के कलाकार लालू राम साहू, मदन लाल निषाद, ठाकुर राम, बापू दास, भुलऊ राम, शिवदयाल मन ला नया थियेटर दिल्ली मा शामिल कर लिस ।ये कलाकार मन हा दुनिया भर मा अपन अभिनय ले नाम घलो कमाइस अउ छत्तीसगढ़ के लोकनाट्य नाचा के सोर बगराइस । पर इंकर मन के जमगरहा नेंव रवेली अउ रिंगनी दल मा बने रिहिन ।


  एती मंदरा जी दाऊ के घर भाई बंटवारा होगे ।वोहर अब्बड़ संपन्न रिहिन ।वोहर अपन संपत्ति ला नाचा अउ नाचा के कलाकार मन के आव -भगत मा सिरा दिस ।दाऊ जी हा अपन कलाकारी के सउक ला पूरा करे के संग छोटे छोटे नाचा पार्टी मा जाय के शुरु कर दिस । धन दउलत कम होय के बाद संगी साथी मन घलो छूटत गिस । वोकर दूसर गांव बागनदी के जमींदारी हा घलो छिनागे ।स्वाभिमानी मंदरा जी कोनो ले कुछ नइ काहय ।


मंदराजी दाऊ ला नाचा मा वोकर अमूल्य योगदान खातिर  जीवन के आखिरी समय मा भिलाई स्पात संयंत्र के सामुदायिक विकास विभाग द्वारा मई 1984 मा सम्मानित करिस । अंदर ले टूट चुके दाऊ जी सम्मान पाके भाव विभोर होगे ।

 सम्मानित होय के बाद सितंबर 1984 मा अपन दूसर गांव बागनदी के नवापारा( नवाटोला) मा पंडवानी कार्यक्रम मा गिस । इहां वोकर तबियत खराब होगे ।वोला रवेली लाय गिस । 24 सितंबर 1984 मा नाचा के ये पुजारी हा अपन नश्वर शरीर ला छोड़के सरग चल दिस ।

स्व. मंदरा जी दाऊ हा एक गीत गावय – “


 दौलत तो कमाती है दुनिया पर नाम कमाना मुश्किल है “.दाऊ जी हा अपन दउलत गंवा के नांव कमाइन ।

 मंदराजी के जन्म दिवस 1 अप्रैल के दिन हर साल 1993 से लगातार मंदरा जी महोत्सव आयोजित करे जाथे ।1992 मा ये कार्यक्रम हा कन्हारपुरी मा होय रिहिस ।जन्मभूमि रवेली के संगे संग कन्हारपुरी मा घलो मंदराजी दाऊ के मूर्ति स्थापित करे गेहे ।वोकर सम्मान मा छत्तीसगढ़ शासन द्वारा लोक कला के क्षेत्र मा उल्लेखीन काम करइया लोक कलाकार ला हर साल राज्योत्सव मा मंदराजी सम्मान ले सम्मानित करे जाथे ।नाचा के सियान मंदराजी दाऊ जी ला उंकर जयंती म शत् शत् नमन हे। विनम्र श्रद्धांजलि।


    🙏🙏🙏💐💐💐

          

                      ओमप्रकाश साहू” अंकुर “

ग्राम + पोष्ट – सुरगी (हाई स्कूल के पास) 

तहसील + जिला – राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)

लघुकथा) अग्नि परीक्षा

 (लघुकथा)



अग्नि परीक्षा

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रतिहा सब झन ला भोजन करवाके अउ बर्तन भाड़ा ला धो माँज के हेमलता हा जइसे आराम करे बर अपन कमरा मा गेइस त उहाँ पहिली ले इंतजार करत वोकर पति राजेंद्र हा फट परगे। वोहा गुस्सा मा कहिस--- "ऐ आज चार बजे तैं अउ वो लड़का हा अपन घर लहुत बेरा खड़े खड़े का गोठियावत रहेव।साफ साफ बता।"

"तैं काबर गुस्सा करथस जी।नइ जानज का वो हा मोर सग्गे ममा के लड़का मोर भाई ये।उही ला तो राखी बाँधे बर जाथँव।अउ रहिच बात गोठियाये के त मैं अपन भाई सो तको नइ गोठिया सकवँ का? घर में तहूँ रहेच,सास-ससुर रहिन हें।कोनो नइ रहितेव त भला तैं का समझ लेते तेकर भगवाने मालिक हे"--हेमलता कहिस।

"अरे छोड़ तोर तिरिया चरित ला--बड़ा सफाई देवत हस।मैं खुद देखे हँव वो लड़का हा तोर मूँड़ उपर हाथ रखके का करत रहिसे।"

"नइ जानच का?कोनो हा ककरो मूँड़ मा हाथ रखके कसम खाथे नहीं ते कुछु आशिर्वाद देथे।"

"अच्छा वो कोनो साधू -संन्यासी, महात्मा ये का जेन तोला आशिर्वाद देही ।तोर जहुँरिया उमर के नवजवान टूरा हा कसमे खावत रहिस होही।दूनो झन का कसम खावत-खवावत रहे होहू--बता तो"--राजेंद्र हा आँखी तरेरत कहिस।

"अच्छा ये बात हे।तोर मन मा मंसा पाप समागे हे।तोर आँखी मा शक के चश्मा चढ़गे हे।तैं अइसने आदत के होबे--मैं सपना मा नइ सोचे रहेंवँ।अइसने मा सात जनम ला कोन काहय ,इही एक जनम ला निभा डरबे का? "--काहत काहत हेमलता के आँसू ढरकगे।

'अरे छोड़ तोर आँसू बहाना ला अउ साफ बता का बात ये तेला।"

"मैं हा वोला काहत रहेंव के भाई रे  गलत संगति मा पड़के दारू पीथच कइके सुने हँव।तैं वोला छोड़े के कसम खा त वो हा मोर  पाँव परके अउ मूँड़ उपर हाथ रखके

कसम खावत रहिसे के-- दीदी !अब ले दारू ला हाँथ नइ लगावव । बस अतके बात तो आय तेकर बर तोर मन में पाप हमागे"-- काहत काहत हेमलता के चेहरा मा गुस्सा झलके ला धरलिच।

"छोड़ तोर बनावटी गोठ ला।मोला विश्वास नइ होवत ये।"

"ठीक हे चल मोला मइके मा छोड़ के आजा "--कहिके हेमलता हा अपन कपड़ा-लत्ता ला बेग मा जोरके तइयार होगे।


चोवा राम वर्मा 'बादल '

हथबंद,छत्तीसगढ़

शब्दभेदी बाण चन्द्रहास साहू

 शब्दभेदी बाण


                     चन्द्रहास साहू

                   मो 8120578897


"ददा ! मेहां गाँव के खेत अउ घर ला बेचहूं।''

अफसर बेटा शब्द के बाण चला दे रिहिस। लइका के गोठ सुनिस तब सियान ठाड़ सुखागे। लाहर-ताहर होगे।  कुछु गोठियाये के अब्बड़ उदिम करिस फेर मुँहु ले बक्का नइ फुटिस। ससन भर देखिस बहु-बेटा ला अउ खोर कोती निकलगे।

                    अँजोर इही तो नाव हाबे सियान के। काया बिरबिट करिया। जइसे लोहा के बने हाबे। घाम- पानी,दुख-पीरा जम्मो ला सहि लेथे। ......फेर लोहा कतको पोठ राहय जंग तो लग जाथे। संसो के दियार हा चुनत हाबे तरी-तरी। दुख,गरीबी,मजबूरी के अँधियारी मा तौरत-बूड़त हाबे अँजोर हा।

               अँजोर,बड़का आय। पाँच बहिनी अउ एक भाई। ददा रिहिस थोकिन बने रिहिस फेर चारो बहिनी के बिहाव मा जैजात झर गे। बाचीस ते परसाडोली के पाँच एकड़ अउ माता देवाला के एक एकड़ के खेत हा। ददा घला छेना के आगी बरोबर खपगे नत्ता-गोत्ता के मान-गौन मा। .........अब, अँजोर के पारी हाबे। तेहाँ जम्मो कोई ले नान्हें हरस बिमला बहिनी जतका पढ़बे ओतका पढाहूं-पढ़िस ससन भर बिमला हा। अब बिहाव करत हाबे। भलुक सुरसा के मुँहु कस अब्बड़ महँगाई बाढ़त हाबे फेर महाबीर ऊप्पर जतका भरोसा हाबे ओतकी भरोसा हाबे अँजोर ला अपन फड़कत बाँहा अउ ओगरत पसीना ऊप्पर। सुरता कर-कर के हियाव करत हे अँजोर अउ गोसाइन सीता हा। अदौरी बरी तक ला कमती नइ करत हाबे बिहाव के जोरा-जारी जोरन मा। ....फेर ? हड़िया के मुँहु ला तोप डारतिस अँजोर हा फेर बहिनी के मुँहु ला कइसे तोपे  ?

"भइयां ! हमर जम्मो बहिनी के बिहाव करके ददा-दाई हा सिरागे। अब तिंही हाबस मोर ददा बरोबर - बड़े भाई। मेहां कुछु माँगहूॅॅं तब देबे न ....?''

बहिनी बिमला के आँखी कइच्चा होगे। अँजोर घलो दंदरत हाबे।

"बता मोर दुलौरिन ! अपन मन के गोठ ला। सगा बनबे तभो तोर मान-गौन मा कमती नइ होवय बहिनी !...... मोर  तो डेरउठी मा हाबस तब  मोर जिम्मेदारी हरे तोर सपना पूरा करे के...। मेहां तोर साध ला पूरा करहूॅ ।'' 

अँजोर घला राजा दशरथ बरोबर वचन हार गे।

बिमला माइके मा हाबस तब तक अधिकार हाबे। सगा बन जाबे तब मांग के घला नइ खा सकस। बिमला के मइलाहा मन अउ अंतस के बीख जुबान मा आये लागिस।

"इक्कीसवी सदी के मोबाइल कप्यूटर के जबाना मा पले बढ़े सबल नारी आव भइयां। जतका बेटा के अधिकार ओतकी बेटी के- समान अधिकार। सब ला पढ़े हावन। भइयां ! भलुक ए सी झन दे, टीवी के साइज ला नान्हे कर दे फेर ......... मोला, मोर बर सोन के रानी हार अउ तोर दमाद बाबू बर फटफटी चाहिए।''

बिमला अपन होंठ के एक कोर ला चाबके किहिस। मुचकावत रिहिस रानी कैकयी कस, करू मुचकासी। रानी कैकयी के आगू मा लाचार रिहिस राजा दशरथ हा वइसने लाचार हाबे अँजोर हा।

"नोनी ! मेहां तीर ले घला नइ देखे हंव ओ रानी हार ला फेर अतका जानथो फटफटी अउ रानी हार के कीमत बर पहाड़ कस पइसा कुढ़ोये ला परही। कहाँ ले आनहुं अतका पइसा....?''

" ले ठीक हे भइयां ! संगी-संगवारी,सास-ससुराल के मन गरीब घर के बेटी आय कहि मोला.........। बाप नइ हे तेला तो जानतेच हाबे जम्मो कोई।''

बिमला किहिस अउ अपन कुरिया मा खुसरगे, रोवत। अँजोर समझाये के उदिम करिस फेर कपाट नइ उघरिस। अँजोर घला घेक्खर आय- एक जबनिया।

" अपन नस के लहू ला बेचके पूरा करहुँ तोर साध ला।''

 संदूक ले कुछु कागजात निकालिस अउ झोला मा धरके रेंगे लागिस।

"काहाँ जावत हस मार तरमिर-तरमिर ?''

"उँहिन्चे....। सब ला बेच दुहुँ। खेत खार ..?''

"ताहन हमर एकलौता बेटा हा भीख माँगही ...?''

 अँजोर के गोसाइन सीता आय। बरजे लागिस। 

"इही परीक्षा के घड़ी आय सीता ! मोर ऊप्पर भरोसा राख। आज तक तोर गोड़ मा कांटा गड़न नइ देये हंव तब आगू घला नइ देंव। धनहा खेत ले जादा मोर चाक ऊप्पर भरोसा हाबे। मोर कलाकारी ऊप्पर भरोसा राख। ईमान से मोर लइका के पढ़ई- लिखई मा कोनो कमती नइ होवन देवंव।''

          सीता तो सिरतोन के सीता आय सुख अउ दुख मा गोसाइया के पंदोली देवइया। दुनो कोई गिस शहर के सेठ दुकान मा अउ बेच दिस परसा डोली के चार एकड़ खेत ला। बिसा डारिस फटफटी अउ रानी हार ला।

सीता हा चमकत सोनहा रानी हार ला देखे कभु  तब कभु सेठ के अँगना के मिट्ठी आमा मा गहादे अमरबेल ला।

बिहाव होगे धूमधाम ले अब।


जम्मो ला सुरता कर डारिस अँजोर हा।


              चाक किंजरत हाबे गोल अउ माटी के लोई माड़े हे बीच पाटा मा। कोंवर लोई माटी के जौन बनाबे तौन बन जाही - चुकी-चाकी,पोरा,करसा- कलोरी भगवान के मूर्ति। फेर अँजोर तो अभिन करसा-कलोरी बनावत हाबे। गाँव मा भागवत पुराण होवइया हे। कलश  अउ शोभा यात्रा निकलही। पंच कका ले एडवांस झोंक डारे हाबे। सीता घला पंदोली  देथे। 

         परिया ले माटी खनके मुंधेरहा ले आनथे। सुखोथे कुचरथे फुतकी बना के चलनी मा छानथे। पथरा गोटी ला निमारथे तब पानी रितो के सानथे माटी ला अउ रोटी पिसान बरोबर लोई बना के चाक मा मड़ाथे। लोई के फुनगी ला अँगठा मा मसक के  हाथ मा थपट के फूलोथे। जब बन जाथे  तब ओला पकोथे आगी आंच मा।

"थोकिन सुरता लेये कर संजय के बाबू ! अब तबियत पानी घला ऊँच नीच रहिथे।''

"का सुरताबे सीता ! भगवान के मूर्ति बनाये के हे ओ। भागवत ठउर मा रामजानकी दरबार के मूर्ति मड़ा के पूजा करही। बेरा मा जम्मो ला बनाये ला परही। आ तहुँ हा मोर संग बुता करे ला लाग।''

गोसाइन सीता के गोठ सुनके किहिस अँजोर हा। कोंवर माटी ला बेलके साँचा मा ढ़ाल के  थपट-थपट के बनाये लागिस अँजोर हा। आसीस देवत  प्रभु श्री राम लक्ष्मण माता जानकी अउ माथ नवाके माड़ी मा बइठे लंगुरवा हनुमान जी के मूर्ति। जम्मो मूर्ति सौहत दिखत हे अब रंग रोगन अउ सवांगा चढ़िस  तब। नहा धोके आइस आरुग कपड़ा पहिनिस अउ पूजा के थारी सजा के करिया सादा पालिस ला ब्रश लगाके भगवान के आँखी उघारे लागिस अँजोर हा अउ गाँव के सियान मन जय बोलाइस,पूजा करिस। 

सियावर राम चन्द्र की जय।।

                    आज सिरतोन मन अब्बड़ गमकत हाबे अँजोर के। पाछू दरी भागवत होइस तब पोथी पुराण ला बोहो के संकल्प लेये रिहिस अँजोर हा। लइका के नोकरी लग जाही ते रामदरबार के मूर्ति ला फोकट मा दुहुँ अइसे। आज देवत हाबे बना के। भलुक मूर्ति के दान करे ले नोकरी नइ लगे फेर लइका संजय हा घलो अब्बड़ मिहनत करे रिहिस। ददा के संग कुम्हारी बुता मा पंदोली  देके पढ़े। टाइम मैनेजमेंट करके पढ़िस तभे तो मंत्रालय मा नोकरी लगिस। .... अउ सरकारी नौकरी लगिस तब  बेटी देवइया सगा के का दुकाल ....? शहरिया नेता हा तियार होगे अपन बेटी ला देये बर। 

                   अँजोर ला अइसे लागिस कि जिनगी के जम्मो अँधियारी भगा गे जइसे। सिरतोन मातादेवाला खेत हा अभिन दू तीन बच्छर ले अब्बड़ धान उछरत हाबे। अउ दू रुपिया किलो सरकारी चाउर....। गरीबी के अँधियारी मा जोगनी बरोबर अँजोर करत हे।

          अँजोर हा चाक चला के दू पइसा कमा लेथे । अउ अपन कला देखाके के घला नाचा गम्मत मांदरी नृत्य पंथी करमा सरहुल देखाके। दफड़ा मंजीरा बाँसरी मोहरी रुंजु तमुरा बांस गीत भजन गाके दू पइसा सकेल लेथे अँजोर हा। अँजोर हा तो कलाकार आय मुँहु फटकार के कभु नइ किहिस पइसा बर। वो तो लोगन के थपोली पाके उछाह मनाये फेर संस्था वाला ले भलुक पइसा मिल जाये तौन चाहा पानी के पुरती हो जावय। सिरतोन अँजोर के गरीबी दुरिहाये लागिस। अब्बड़ उछाह अउ धूमधाम ले लइका संजय के बिहाव करिस।

           बारात परघाये के बेरा तो अँजोर बइहागे नाचे बर। समधी भेट करिस अउ माथ मा बरत दीया मड़ाके झूमर-झूमर के मटक-मटक के नाचीस। भुइयाँ मा घोण्डे लागिस फेर दीया नइ बुताइस। जस गड़वा बाजा ताल देवय तस अँजोर के कलाकारी दिखे। कप मा चाउर अउ चाउर मा कपड़ा सीले के सूजी । सूजी के सूचकी अगास कोती कप ले बाहिर कोती निकले हे। अँजोर दफड़ा बाजा बजाके आँखी के पलक ले उठाये के उदिम करिस। फेर बाजा के ताल नइ बिगड़ीस। एक बेरा...... दू बेरा..... अउ अब  सिरतोन उठा डारिस। दुनो आँखी के पलक मा फँसे हे सूजी हा। देखइया जम्मो कोई थपोली मारिस। अँजोर अब्बड़ उछाह मा हाबे। बहुरिया ला परघा के लाने बर गिस तभो अब्बड़ नाचीस अँजोर हा।

"का सुरता करत हस मने मन अब्बड़  मुचकावत हस ।'' 

गोसाइन सीता आवय अँजोर ला मुचमुचावत देखके किहिस। अँजोर सुरता के तरिया ले निकलिस। अउ अब भागवत ठउर मा चल दिस। 

             व्यास गद्दी मा बइठइया महाराज हा भलुक जम्मो कोई बर महाराज जी होही फेर गाँव के आधा जवनहा मन बर गुरुबबा आय। गाय बजाए नाचे कूदे जम्मो कलाकारी ला सीखोये हे अउ अखाड़ा के करतब ला घला। सरलग पन्दरा सोला बच्छर ले गाँव मा आथे भागवत पढ़थे अउ कला के अँजोर बगराथे। कुम्हार अँजोर घला सीखे हे।

            आज राजा दशरथ अउ श्रवण कुमार के कथा ला सुनाइस व्यास गद्दी मा बइठे महाराज जी गुरु बबा हा। कइसे शब्दभेदी बाण चला देथे राजा दशरथ हा बेटा श्रवण कुमार ऊप्पर...।  दाई ददा के तड़पना....।  देखइया, सुनइया के ऑंसू निकलगे। ..... अउ ये का  ? दस ठन गिलास, गिलास मा घुँघरू ला डोरी ले बँधवइस मंच के चारो खूँट। अइसे तकनीक कि डोरी ला जइसे हलाथे वइसने घुँघरू ले आरो आतिस । 

"भक्त वत्सल श्रोता समाज हो ! शब्द भेदी बाण कला के जानकार राजा दशरथ अउ राजा पृथ्वीराज चौहान रिहिस। शब्द माने आवाज- जिहाँ ले उत्पन्न होवत हे उँही ला लक्ष्य मानके, निशाना लगाके भेदना ही शब्द भेदी बाण कला आय। महुँ हा साधना करके सीखे हँव तौन ला देखावत हँव।''

महाराज जी किहिस। आँखी मा पट्टी बाँधिस अउ धनुष बाण ला संघार करके सुमिरन करिस।  मंच मा तीन बेरा परिक्रमा करिस। गाँव के सियान डोरी ला तीरे अउ आरो आय गिलास मा बँधाये घुँघरू ले। निशाना लगाये लागिस आरो कोती- उत्ती बुड़ती रक्सहु भंडार। धनुष ले छुटे बाण छुई......ले करत जातिस..... अउ  ठप्प...ठन्न..... के आरो के संग गिलास कट के गिर जावे। देखइया मन श्री रामचन्द्र की जय बोलावय। एक ...दू... तीन....नौ ....दस ....। जम्मो निशाना भेद डारिस महाराज हा। दस बाण दस निशाना। जम्मो कोती जयकारा होये लागिस।

"अँजोर ! ले बेटा अब तेहाँ देखा अपन कला ला।''

गुरुजी किहिस अउ भजन गाये लागिस। बाजा पेटी गुरतुर धुन निकालिस।

माथ मा लोटा, लोटा मा बरत दीया अउ झूमर-झूमर के नाचे लागिस अँजोर हा। अब भुइयाँ के लोटा मा ठाड़े होगे। लोटा मा फुलकांछ के परात

। परात के बारा मा ठाड़े होगे अब। मुड़ी मा कुंटल भर ले आगर गाड़ा चक्का ला बोहाइस अब संगी मन। गाड़ा चक्का मा जगर-बगर करत ओरी-ओरी दीया। भजन के बाजा गाजा बाजत हाबे अउ अँजोर के मटकना सिरतोन नटराज के आसीस सौहत दिखत हाबे। तभे तो लोटा परात अउ गाड़ा चक्का संग कोन नाच सकही...?

सीता तो अघागे अँजोर ला देख के। 

"हाय दई ! कतक सुघ्घर नाचथे ओ बाबू हा !''

परोसी भौजी हा किहिस अउ सीता लजा जाथे।

अखाड़ा दल वाला मन संग  मुड़ी मा चाहा बनाके गुरुजी ला चाहा पियाथे। कोनो छाती मा पथरा ला फोड़थे अउ कोनो गघरा भर पानी ला दांत मा चाब के उठावत हे....। कतका सुघ्घर साधक हाबे ये गाँव मा। जम्मो के मन गदके लागिस। 

                जम्मो कोई थपोली मार के अँजोर अउ वोकर संगवारी मन ला मान दिस। अउ गुरुजी आसीस दिस।

"बेटा ! तोर साधना मा थोकिन कमी हाबे रे। शब्द भेदी बाण चलाये बर सीखत तो हस फेर निशाना चूक जावत हे।.... अउ मिहनत कर बेटा।''

"हांव गुरूबबा !''

"भागवत कथा के अंतिम दिन गीता पाठ अमृत वर्षा के पाछू जम्मो श्रोता समाज के बीच मा कला के प्रदर्शन करबे तेहां। वो दिन तोर संग फगवा सालिक अउ परदेसी घला शब्दभेदी बाण चलाके अपन कला देखाही। अपन मन ला एकाग्र करके अभ्यास कर। मोर आसीस हे लक्ष्य ला जरूर अमराबे।''

"जी गुरु बबा ! पैलगी।'' 

गुरुबबा के डंडासरन होके पांव परिस अँजोर हा अउ अपन घर लहुटगे।

   उदुप ले घर के मोहाटी चढ़त फेर सुरता आगे बेटा के गोठ हा।

ददा! मातादेवाला खेत ला बेचहूं। अब शहर मा रहिबोन जम्मो कोई। नवा फोरव्हीलर गाड़ी तो होगे हे लोन मा.... । अब, नवा बंगला घला हो जाही...। खेत ला बेचके बिसाबो नवा रायपुर के कॉलोनी मा बंगला। बेटा मुचकावत केहे रिहिस फेर ददा अँजोर के कलेजा कांप गे।  बहिनी के बिहाव के बेरा  महतारी कस परसा डोली बेचाइस अउ अब मातादेवाला बर बानी लगा दे हे । 

"दुसर के लइका तो जुआँ चित्ती खेले बर खेत ला बेच देथे। मंद महुआ भांग पीये खाये बर जैजात ला बिगाड़ देथे । हमर संजय तो शहर मा बंगला बिसाये बर ......? गाँव के ला थोकिन बिगाड़  के शहर मा सिरजाही ते..... उछाह के गोठ आय न संजय के बाबू।''

सीता समझाये लागिस गोसाइया अँजोर ला। अउ संजय....? ओ तो अब्बड़ सपना देखाये लागिस।  

भलुक बहिनी के बिहाव के बेरा के पाछू किरिया खाये रिहिस नानचुन भुइयाँ के बिगाड़ नइ करो अइसे फेर ......? अब अँजोर तियार होगे खेत बेचे बर। मोल भाव होगे सेठ संग।

          आज घलो बहु बेटा गाँव आये हे शहर ले। 

मन अब्बड़ गमकत हाबे कलाकार अँजोर के। अपन धनुष मा रंगबिरंगी फुन्द्रा बाँध डारिस। बाण ला सजा डारिस। दिनभर उपास रहिके  दसो बेरा अभ्यास करिस। सीता कतको बेरा किहिस खाये बर फेर अँजोर तो ढ़ीठ आवय।

"आज मोर साधना के परीक्षा आवय सीता ! मोला झन जोजिया खाये बर। आज मोर कला ला जम्मो गाँव वाला के आगू मा देखाहुं अउ प्रसाद के संग आसीस लुहुँ गुरुबबा ले।...... तब खाहुं।''

अँजोर मुचकावत किहिस। सिरतोन आँखी मा पट्टी बाँधके आज जतका बेरा अभ्यास करिस वोतका बेरा लक्ष्य नइ चूकिस। गुरुबबा कस दस बाण अउ दस लक्ष्य ला साध डारिस अँजोर हा। मुचकावत नवा धोती पहिरिस। कनिहा मा लाल गमछा बाँधिस। महाबीर के पूजा करिस अउ धनुष बाण ला खाँध मा अरोइस । सुमरन करत घर ले बाहिर निकले लागिस फेर.......अब पनही ला खोजत हाबे। अँगना दुवार फुला पठेरा जम्मो ला खोजिस।..... नइ मिलिस। अब बहु बेटा के कुरिया के आगू के पठेरा मा खोजे लागिस। 

बहुरिया के हाँसे के आरो आवत हे अउ दुलरवा बेटा संजय के खिलखिलाये के। 

"तोर कंजूस ददा ला खेत बेचे बर राजी करके बने करेस। आने बड़का साहब के गोसाइन मन बरोबर अब  महुँ हा रानी हार पहिरके इतराहुं। जम्मो संगी संगवारी लरा-जरा ला देखाहूं। तोरो माथ उच्चा अउ छाती चाकर हो जाही। ....मोला कतका सुघ्घर फबही..... ? कतका सुघ्घर दिखहूँ....?''

अँजोर के बहुरिया गमके लागिस अउ बेटा संजय मुचकावत हे।

"सिरतोन गोदभराई के दिन रानीहार बिसा के दुहुँ तोला तब सास ससुर घला देखते रही जाही.....। कतका मान सम्मान बाढ़ जाही मोर.....? सास ससुर बर बेस्ट दमाद बाबू बन जाहूं मेंहा। मोर सोना ! मेंहा तोला नौलखा रानीहार दुहुँ सधौरी के दिन अउ तेहां मोला सुघ्घर लइका के गिफ्ट देबे बेरा मा। सिरतोन मजा आ जाही....हा.... हा..... हा.......।''

अम्मल वाली गोसाइन के पेट ला चूमे लागिस संजय हा। अब दुनो जुगजोड़ी खिलखिलावत हाँसे लागिस। 

              अँजोर कभु काखरो गोठ ला लुका के नइ सुने फेर आज सुन डारिस सौहत शब्द के  बीख बाण ला । झिमझिमासी लागिस। लहू के संचार बाढ़गे। सांस उत्ता-धुर्रा चले लागिस। मुँहु चपियागे । धड़कन बाढ़गे। जइसे शब्द भेदी बाण मा करेजा छलनी होगे। 

"बहुरिया तो पर के कोठा ले आये हे .....! बेटा....! तेहाँ अपन लहू होके मोला ठगत हस रे....। मोला खेत बेचवा के बहुरिया बर रानी हार बिसाये के योजना बनावत हस रे ....! लबरा.. । तेहाँ बोदरा निकलगेस रे.... मोर दाऊ.......!  मोर बर मइलाहा भाव राखेस रे...  ? ..लहू के संचार के संग शब्द के बीख नस-नस मा दउड़े लागिस। अइसे लागिस अँजोर ला जइसे ऋषि दुर्वासा बरोबर श्राप दे देव सर्वस्व नाश के ....? सिरतोन कुछु केहे के उदीम करत दुनो हाथ उठाइस अँजोर हा । 

"तोर लइका तुंहर दुनो के नाव के अँजोर करे रे अउ  श्रवण कुमार बरोबर जतन करे तुंहर दुनो के । मोर आसीस हाबे।''

अँजोर किहिस अब्बड़ मुश्किल ले। छाती मा पीरा उठिस एक उरेर के... अउ गिरगे दुवारी  मा। 

         कोनो ला आरो नइ होइस अँजोर गिरीस तेहां । बहु बेटा के कुरिया मा टीवी ले फ़िल्मी गाना बाजत हाबे अब। अउ गाँव के भागवत पंडाल ले गीता पाठ के आरो। तुलसी वर्षा के बीच गंगा राम शिवारे के भजन  सुनावत हे।

चोला माटी के हे राम , एकर का भरोसा चोला माटी के हे राम.......।।

द्रोणा जइसे गुरू चले गे...।

करन जइसे दानी संगी, करन जइसे दानी.. ।।

बाली जइसे बीर चले गे...।

रावन कस अभिमानी ....।

रावन कस अभिमानी संगी रावन कस अभिमानी ....।।

चोला माटी के हे राम

एकर का भरोसा, चोला माटी के हे राम.....।।

              

              सीता के भाग मा फेर गोसाइया ले वियोग लिखा गे अँजोर के अँगना मा। अउ शब्द भेदी बाण ....? कभु अबिरथा गेये हे का......?

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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

पुरखा के सुरता : 6 अप्रैल -94वीं जयंती पर विशेष जनकवि -विश्वम्भर यादव "मरहा"

 पुरखा के सुरता : 6 अप्रैल -94वीं जयंती पर विशेष


जनकवि -विश्वम्भर यादव "मरहा"


आलेख-

-ओमप्रकाश साहू ‘अंकुर’

[ सुरगी-राजनांदगांव ]


हमर छत्तीसगढ़ म जउन समय म हिन्दी लिखइया साहित्यकार मन के गजब जोर रीहिन हे।अइसन बेरा म कुछेक  रचनाकार मन  छत्तीसगढ़ी म साहित्य साधना करके अपन एक अलग चिन्हा छोड़िस वोमा


पं. सुन्दर लाल शर्मा, कोदू राम दलित, पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र , मेहत्तर राम साहू, नारायण लाल परमार,विमल कुमार पाठक, दानेश्वर शर्मा, लक्ष्मण मस्तुरिया, संत कवि पवन दीवान ,  मेहत्तर राम साहू,मुकुन्द कौशल, रामेश्वर वैष्णव, जीवन यदु,सुरेन्द्र दुबे ,विश्वंभर यादव "मरहा " के नांव सामिल हे ।दलित जी जइसे मरहा जी हा घलो हास्य- व्यंग्य के सुघ्घर कवि रिहिन हे । मरहा जी कवि सम्मेलन के मंच म छा जाय ।जइसे दलित जी के सही मूल्यांकन नइ हो पाइस वइसने मरहा जी के घलो उपेक्षा करे गिस । जउन ढंग ले मान -सम्मान के हकदार रिहिन वोहा नोहर होगे. मात्र एक हफ्ता स्कूल जवइया मरहा ला तो कुछ बड़का साहित्यकार मन कवि घलो नइ मानय। लेकिन ये जन कवि ह अपन छत्तीसगढ़ी कविता के माध्यम ले जउन  पहिचान बनाइस वोहा काकरो ले छुपे नइ हे ।


छत्तीसगढ़ के दुलरवा बेटा ,जन कवि विश्वंभर यादव "मरहा" के जनम दुर्ग शहर के तीर बघेरा गाँव मा 6 अप्रैल 1931 मा पहाती 4 बजे होइस । वोकर ददा हा सुग्घर भजन गावय ।साधारण किसान परिवार मा जनम लेवइया विश्वंभर


हा चन्दैनी गोंदा के संस्थापक दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के घर काम करे के संगे -संग चन्देैनी गोंदा मा अभिनय करके अपन लोहा मनवाइस । वोहा 1944 ले रचना लिखे के चालू करिस ।दाऊ रामचंद्र देशमुख ले वोला लिखे के प्रेरणा मिलिस ।


ले देके अपन नांव लिखे बर सीखे मरहा हा सैकड़ों छत्तीसगढ़ी कविता रचिस । कतको कविता वोला मुँहखरा याद रिहिन।अपन रोजी रोटी बर मरहा हा बढ़ई के काम करे अउ सुग्घर ढंग ले कविता के सृजन करे ।शरीर ले वोहा भले दुबला पतला रिहिन पर वोहा अपन कविता पाठ के समय गजब सजोर नजर आय। धोती कुर्ता अउ गांधी टोपी पहन के वोहा


बुराई, भ्रष्टाचार, अत्याचार करइया मन ला ललकार के समाज सुधार अउ देश प्रेम ला जगाय के काम करय ।छत्तीसगढ़िया मन के सोसन करइया अउ छत्तीसगढ़ी भाखा के हीनमान करइया मन बर अलकरहा बिफर जाय ।सादा जिनगी जियइया अउ उच्च बिचार रखइया मरहा हा संत कबीर के समान कोनो शासक अउ नेता के सामने नइ झुकिस ।


सबले पहिली मरहा ला मेहा सुरगी के तीर मोखला गाँव म रामचरित मानस प्रतियोगिता म काव्य पाठ करत देखे रेहेंव ।वो समय मँय हा हाईस्कूल मा पढ़त रेहेंव ।मरहा के कविता ला सुनके हजारों नर- नारी के मन हा गदगद हो जाय । घंटा भर कविता पाठ करे के बाद जब वोहा बताय कि ले अब मेहा बइठत हंव तब श्रोता मन चिल्ला के कहय कि मरहा जी


अउ  कविता सुनाव । तो अइसन वोकर कविता के जादू राहय ।मरहा हा साल भर कवि सम्मेलन, कवि गोष्ठी अउ सभा म व्यस्त राहय ।वोहा 365 दिन मा मात्र 65 दिन घर म रहय ।छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन अउ छत्तीसगढ़ी ल राजभाखा बनाय बर आयोजित कार्यक्रम म घलो उछाह ले भाग लेवय ।


मरहा उपनाम अइसन पड़िस


 6 मई 2005  के बात आय। मंय ह  मोर कवि मितान दिलीप कुमार साहू अमृत ( सुरगी) के छोटे भाई हेमंत साहू के बराती गे रेहेंव । मोर संग रचनाकार संगवारी भूपेन्द्र कुमार साहू "सृजन"( कोटराभांठा) घलो गे रिहिन। खाना खाय के बाद समय के उपयोग करे के बारे म सोचेन।हम दूनों पूछत - पूछत मरहा के घर पहुंच गेन। मरहा जी ल पैलगी करे के बात गोठ -बात के सुरूआत करेंव। पहिली ले एक दूसरा ले परिचित रेहेन। गोठ बात ल मंय ह एक कागज म लिखत गेंव।


 मंय ह पूछेंव कि आप मन के “मरहा ” नाम कइस पड़िस  ।तब वोहा बताइस कि एक बड़का कार्यक्रम म माई पहुना चंदैनी गोंदा के सर्जक दाऊ रामचंद्र देशमुख ह रिहिन अउ पगरईत संत कवि पवन दीवान जी ह करत रिहिन ।


मंच संचालन के कारज ल श्याम लाल चतुर्वेदी जी ह करत रिहिन  । तब विश्वंभर  यादव जी के शरीर ल देखके दाउ रामचंद्र देशमुख जी के मन म बिचार अइस अउ अपन बात ला पवन दीवान जी ल बताइस कि “मरहा ” उपनाम कइसे रही । अब्बड़ हाँसत दीवान जी ह येकर समर्थन करिन । उही दिन ले  विश्वंभर यादव जी के उपनाम "मरहा" पड़गे।


काव्य शिरोमणि ले सम्मानित होइस


एक घांव बिलासपुर के राघवेन्द्र भवन म राष्ट्रीय कवि  गोपाल दास नीरज जी के सम्मान म “नीरज नाईट “आयोजित करे गे रिहिस ।इही समय डॉ. गिरधर शर्मा जी ल मरहा जी के प्रतिभा के बारे म पता चलिस त वोहा एक हफ्ता बाद उही राघवेन्द्र भवन मा” मरहा नाईट ” के आयोजन रख दिस ।एमा लोगन मन के अब्बड़ भीड़ उमड़गे । मरहा जी ह घंटों काव्य पाठ करके सबके दिल जीत लिस ।मरहा के सम्मान मा उच्च न्यायलय बिलासपुर के न्यायधीश रमेश गर्ग जी हा किहिस कि ” पहिली संत कबीर जी के बारे मा सुने रेहेंव, पढ़े रेहेंव ।आज वोला मेहा मरहा के रुप मा साक्षात सुनत हंव ।”ये कार्यक्रम म मरहा जी ला “काव्य शिरोमणि ” के उपाधि ले सम्मानित करे गिस । गिरधर शर्मा जी हा मरहा के कविता के संकलन करके प्रकाशित करवइस अउ कविता ल जन जन तक पहुंचाय के सुग्घर उदिम करिस ।जब सुरगी मा कवि सम्मेलन होइस तब मरहा जी हा महू ला अपन दो ठन कविता संग्रह भेंट करे रिहिस ।ये दूनों कविता संग्रह ल एक झन मोर संगवारी हा पढ़े बर मांगिस तउन हा आज तक मोला नइ लहुंटाइस ।


   सम्मान -


मरहा जी ल काव्य साधना बर रायपुर, बेमेतरा, राजनांदगांव, सुरगी, कुम्हारी, जेवरा सिरसा, भिलाई, गुण्डरदेही, मगरलोड, मुजगहन, बालोद के कई ठन सभा समिति मन सम्मानित करिस । साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगांव ह मरहा जी ल बछर 2008 म साकेत साहित्य सम्मान ले सम्मानित करिस । येहा मोर सौभाग्य रिहिस कि महू हा उही साल मरहा जी के संग साकेत सम्मान ले सम्मानित होयेंव ।मेहा मरहा जी के संग सात बर कवि सम्मेलन मा काव्य पाठ करे रेहेंव । वोकर कविता हा आकाशवाणी अउ दूरदर्शन म

 प्रसारित होवत राहय ।


मरहा जी अब्बड़ अनुशासनप्रिय आदमी रिहिन । कोनो कार्यक्रम हा चालू होय मा देरी हो जाय नइ ते कोनो व्यवस्था ला कमजोरहा पाय ता आयोजक मन बर नंगत भड़के ।


शोषण करइया मन उपर गजब कविता लिखे हे –


साबर -साबर जइसे चुराके,


हक जमा लेव परिया मा ।


सुई जइसे दान करके,


कोड़ा देव तरिया ला ।


भ्रष्टाचार ला देखके वोहा अइसन कलम चलइस –


सिधवा मन लुलवावत हावय,


अउ गिधवा मन मेड़रावत हावय ।


कुकुर मन सुंघियावत हावय,


अउ खीर गदहा मन खावत हावय ।


दुवारी मा रखवारी करथय कुसुवा मन,


अउ भीतरे भीतर भीतरावत हावय मुसुवा मन ।


नवा नवा कानून बनाथे कबरा मन,


अउ बड़े बड़े पद मा हावय लबरा मन ।


दिनों दिन बाढ़त हावय झगरा मन,


भारत ला लीलत हावय दूसर देश के करजा मन ।


स्वार्थी मन के हाथ मा हावय,


भारत के सब बड़े बड़े दर्जा मन ।


दलाल मन सब मजा उड़ावय,


अउ भोगत हावय परजा मन ।


कब सुधरी हमर भारत के हाल हा,


दलाल मन ला कब पूछहू, कहां जाथे माल हा ।


वोकर कविता मा जन जागरण के स्वर देखे ला मिलथे –


गजब सुते हव अब तो जागव ,


अब्बड़ अकन अभी काम पड़े हे ।


अंग्रेज मन चल दिहिन तब ले ,


अभी अंग्रेजी मन के भूत खड़े हे ।


 


दिन अऊ रात इंहा भाषण देथय,


घुघवा मन ह बन के गियानी ।


हंस बिचारा लुकाय फिरत हे ,


देख- देख के उंकर मनमानी ।


 


मान मर्यादा नियाव ल छोड़ के ,


सब कटचीप मन सुख पावत हे ।


सत धरम म चल के सिधवा मन ,


जिनगी भर दुख पावत हे।


 


गॉव शहर म बंगला हे ,


घूसखोर बेईमान अउ गिरहकट के।


हरिशचन्द्र हावय आज के कंगला ,


रखवार बने हे मरघट के ।


 


जगा – जगा बने हावय अड्डा ,


चोर फोर अऊ हड़ताल के ।


अइसन म हे कउन देखइया ,


दीन दुखी कंगाल के ।


भेदभाव ल छोड़, देश के काम म लगव ,


सुतत – सुतत रात बितायेव, अब तो जागव।


 


मरहा जी ल अपन भाखा छत्तीसगढ़ी ले गजब लगाव राहय ।मरहा के कहना राहय कि -” हमन छत्तीसगढ़ मा बोलन, लिखन अउ पढ़न तभे हमर भाखा हा पोठ होही ।”


नवा लिखइया मन ला वोहा काहय कि -” रचना ला शब्द ले अतेक जादा झन सजावव के ओखर चमक उतर जाय ।जमीन मा रहिके जमीन के बात करना चाही ।”


एक घांव सुरगी म कवि सम्मेलन होइस ।येमा मरहा जी ला विशेष रुप ले आमंत्रण करे रेहेन ।कार्यक्रम सुरू होय से पहिली कवि मन के बइठक बेवस्था मोर घर म रिहिस ।ये कवि सम्मेलन मा डोंगरगॉव के तीर मा बसे गाँव माथलडबरी के आशु कवि तिलोक राम साहू बनिहार जी ह घलो आमंत्रित रिहिस ।बड़े भइया कवि महेन्द्र कुमार बघेल मधु जी (कलडबरी) के संग बनिहार जी हा हमर घर पहुंचिस । मरहा जी, निकुम के गीतकार भैया प्यारे लाल देशमुख जी अउ  दुर्गा प्रसाद श्याम कुंवर जी ह पहिली ले हमर घर पहुंच गे रिहिन । मोर बाबू जी मेघू राम साहू जी संग सुग्घर ढंग ले कवि मन गोठियात बतात रिहिन ।इही बीच मा पहुंचे बनिहार जी हा आतेसात मोर बाबू जी ला देखते -देखत कई ठक कविता सुना डारिस ।बाबू जी हा हाव- हाव काहत सुनत गिस ।पर बनिहार जी हा कविता सुनाय के


चक्कर मा अतिरेक कर डारिस ।ये बात ह मरहा जी ला पसन्द नइ आइस अउ भड़क के बनिहार जी ल टोकिस ।


अइसने बछर 2009 म मोखला म आयोजित साकेत के वार्षिक सम्मान समारोह म सोमनी के बस स्टेन्ड ले मोखला लाय के जिम्मेदारी मोर रिहिस हे ।मरहा जी हा बघेरा ले फोन करिस कि  अंकुर मंय ह  अब मोखला बर निकलत हंव । मेहा थोरकुन ये सोच के देरी कर डारेंव कि मरहा जी ल सोमनी आय म समय लगही ।लेकिन वो दिन मरहा जी ल दुर्ग आतेसात सोमनी बर बस मिलगे ।जब मेहा अपन गाड़ी म मरहा जी ला लाय बर पहुंचेव ता ये देख के मेहा दंग रहिगेंव के मरहा जी दंगर& दंगर पैदल रेंगत भर्रेगॉव पुल के तीर पहुंच गे राहय ।मेहा अकबका गेंव । सबले पहिली मेहा मरहा जी ला देरी मा पहुंचे बर मांफी मांगत पैलगी करेंव खुश राहव जरूर किहिस।पर मरहा जी के रिस ह तरवा मा चढ़गे रिहिस । वोहा किहिस मोर जांगर म अभो ताकत हे।वोहा मोर गाड़ी मा नइ बइठ के तुरतुर -तुरतुर रेंगे ला धर लिस ।फेर मेहा मरहा जी के तीर मा जाके फेर केहेंव कि ले बबा मोर गलती ल माफी देवव अउ गाड़ी मा बइठ जावव ।तहां ले मरहा जी हा गाड़ी मा बइठिस । फेर मध्य हऊंकर घर के हाल चाल पूछेंव अउ


मोर घर के हाल चाल मरहा जी ह पूछिस ।मेहा मने -मन सोचेंव बनिस ददा मोर काम हा ।काबर कि मरहा जी के रिस ला तो मेहा दू तीन बेर कार्यक्रम मा देख चुके रेहेंव ।


स्वाभिमानी मनखे


गरीबी के बावजूद वोहा कभू अपन स्वाभिमान ल नइ बेचिस ।


आयोजन म घलो नेता मन के बखिया उधेड़ के रख देय ।कतको विसंगति उपर जमगरहा कविता सुनाके सुधार के बात करय अउ लोगन मन म जन -जागृति फैलाय के काम करिन ।अइसन जन कवि हा 10 अगस्त 2011 मा अपन नश्वर शरीर ला छोड़ के परम धाम म पहुंच गे ।मरहा जी ला शत् शत् नमन हे । 


      ओमप्रकाश साहू "अंकुर"

      सुरगी, राजनांदगांव