लघु कथा- नीबू -मिर्ची
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ऊँघात सो उठ के टुकरु आखी कान ल रमजत खुँटी मं टँगाय गत मइलहा झोरा धरत अपन कुरिया ले भँदई पहिनत निकल गे| फइरका ल वोधावत लुसुर लुसुर रेंगत चाँटीडिह ले अरपा ल नाकत शनिचरी मं हबर गे| आभी -अभी दुकान मन खुलत हें | आज सौदा के बने जोखा होय के उम्मीद धरे |
डहर खोर मं नजर दौड़े लगीस |
सोचत हें| सेठ मनन कब फेंक देही.... टप ले धरे अउ आगु बढ़े के काम हे, ऊँकर धंधा चलय के झिन चलय? हमर तो चलबे करही! साँझ के नीबू -पानी अउ मिर्ची के तीखी चटनी चटा देबो | बरा संग बेंचा जही |
झोरा मं टप -टप बीन के धर के भर ले हे टुकरु |बड़ महिनत के काम आय सियानी जाँगर म निहर के उठाना सड़क मं फेकाय ...... ऊकर बर टोटका | तव टुकरु बर अइटिका | धंधा रोजी रोजगार बर बंदन बुकाय नीबू -मिर्ची|
अश्वनी कोसरे 'रहँगिया' कवर्धा कबीरधाम (छ. ग.)
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