" या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता ,
नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै नमो नमः । "
30 मार्च ले चैती नवरात्रि शुरु होवइया हे त चिटिक थिरा के सुरता कर लिन ....।
नौ दिन नौ रात जगदम्बा के पूजा , अर्चना करे जाथे त अपन शक्ति अनुसार लोगन उपास रथें जेमन 9 दिन के उपास नइ राखे सकयं तेमन प्रथमा , पंचमी अउ अष्टमी तिथि देख के उपास रथें ।
अष्टमी के रात ल महानिशा कहे जाथे त आधा रात के श्वेत पूजा के विधान हे , रखिया अउ नींबू के बलि अउ होम धूप देहे जाथे । ये देवी दाई हर धात्री , विधात्री , महाशक्ति आय जेकर दू ठन रुप होथे ....पहिली विद्या दूसर अविद्या । महामाया विद्या मनसे ल मुक्ति देथे त अविद्या संसार के ऊपर लोभ जगाथे , मोहित करथे । महामाया , महादेवी के दस ठन रूप कहे गए हे दस शक्ति जेला हमन काली , तारा , छिन्नमस्ता , धूमावती , बगलामुखी , कमला , त्रिपुर भैरवी , भुवनेश्वरी , त्रिपुर सुंदरी , अउ मातंगी नाव से पूजा करथन इही मन ल महाविद्या घलाय कहिथन ।
शक्ति आराधक मन ल शाक्त कहे जाथे । निगम माने वैदिक परंपरा त आगम माने तंत्र साधना होथे फेर मंत्र तो दुनों साधना पद्धति के मूल आय ।
शक्ति के पहिली रुप निराकार माने जाथे त दूसर शक्ति मूर्ति , जंवारा रुप मं जाने माने जाते एला परिणामदायिनी माने सांसारिक मनोरथ पुराने वाली कहे जाथे । महामाया सात्विक जगत के कारण आय त माया प्राकृत जगत के मूल आय ।
सबले जरूरी बात के जगदम्बा के आराधना , पूजा , उपास मं मन शुद्ध होना चाही कोनों किसिम के कल्मष भाव जागही या कोकरो बर अनिष्ट कामना जागही त सुरता राखिहव के ओहर सबके महतारी आय ..हंसाय , खेलाय , पाले , पोंसे के बेरा मया करथे , दुलारथे त सजा घलाय देथे ।
शरणागत हो जाये ले हमर चिंता खतम ओ जानै ....तभे तो शंकराचार्य स्तुति करथें ......
" मत्समः पातकी नास्ति , पापघ्नी : त्वत समा नहि ,
एवं ज्ञात्वा महादेवि , यथा योग्यम् तथा कुरु । "
जगदम्बा तैं तो महाशक्ति , महतारी अस त मैं जौन लाइक हंव तइसने कर ....। संसार के मायाजाल , लोभ मोह के धुर्रा , चिखला मं सनाये हंव फेर तैं भले दू चटकन मार लेबे , अपने अंचरा ल धर के सबो धुर्रा , चिखला ल पोंछबे घलाय तो ...मैं तोर शरण मं आये हंव बस अब तैं जान तोर काम जानय ....। नवरात्रि उपासना के इही शरणागत भाव ल मन मं बसा के नौ दिन यथा शक्ति पूजा , उपास करना चाही ।
गुड़ी के गोठ ....डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा
से साभार ....
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