Friday, 25 April 2025

तइहा अउ आज के खवई पियई (खान-पान)*

 *तइहा अउ आज के खवई पियई (खान-पान)*





तइहा के बेरा मा खाए पिए ले लेके... हर जिनिस हा जादातर पारम्परिक अउ देशी ही जादा रहय।

जइसे हमर छत्तीसगढ़ मा पहिली के बेरा मा... बिहनिया के नास्ता माने.... चटनी बासी ,अंगाकर रोटी ,चीला रोटी,पान रोटी,पातर रोटी,फरा अउ मुठिया रोटी रहय...जेहर बड़ स्वादिष्ट भी रहिथे .... अंगाकर रोटी अउ पताल चटनी अउ बासी अउ पताल चटनी के स्वाद के तो का पूछना?....बड़ मिठाथे...भई....अउ कभू-कभू  बिहने फजर कोनो पेज अउ महेरी बन जाय ते ... तो का पुछना?... बड़ मजा आ जावय....अउ तेलहा रोटी पीठा...पहिली कोनो पारम्परिक बड़े तिहार जइसे... हरेली,तीजा-

पोरा,देवारी ,फागुन तिहार अउ बर-बिहाव के बेरा मा ही चुरय....अउ खाय बर मिलय.....अउ इही सब तिहार बार मा हमर छत्तीसगढ़ी व्यंजन खुरमी,ठेठरी,गुझिया,अरसा,करी लाड़ू,गुलगुला भजिया‌ अउ आने-आने कइ किसम के छत्तीसगढ़ी व्यंजन बनावय जेनला लोगन अउ लइका पिचका मन तिहार माने के हफ्ता पंदरही दिन बाद तक घलो स्वाद ले लेके जमावत रहयं.....काबर ओ पहिंत...अभी असन...जादा खई-खजाना घलो नइ मिलय...?अउ कोनों गांव-गंवतरी नइते..बेटी माई... घर जावय तभो इही सब छत्तीसगढ़ी व्यंजन ला धर के जोरन जोर के जावयं.....तइहा के बेरा मा राँधे-गढ़े बर तेल के उपयोग घलो बहुत कम मात्रा मा ही करयं कहिथें.... साग भाजी ला तो माटी के कलौंजी मा बिना तेल के डबका... भुंज-बघार अउ रांध-गढ़ डरयं...कहिथें... अउ बड़ मिठावय घलो कहिथें भई...जेन  स्वास्थ्यगत दृष्टिकोण ले बड़ लाभकारी घलो रहय कहिथें....अउ आज तो अधिकतर लोगन मन आयतामाल के आदि होवत जावत हन.... नाश्ता ते नाश्ता....खाना घलो बंद पाकिट मा मिले ला धर लेहे अउ वहु... आनलाईन घर पहुंच...अउ  अभी के बेरा मा तो सबे गांव के चउंक-चौराहा मा होटल घलो खुल गे हावय.....जिहां रोज दिन भर ...तेलहा रोटी पीठा...बरा, भजिया ,आलूगुंडा अउ समोसा आने हा चुरते रहिथे ....जेन तेलहा -फूलहा रोटी ला मनखे मन पहिली विशेष तिहार-बार मा खावयं तेन ला...आज लोगन मन रोज बिहने ले जमा डरत हें.... अउ कोनो‌ दू चार दिन बर बाहिर डाहर घुमे-फिरे ला जाय रहिबे ता तो बाते....छोंड़ दव... निमगा तेलहा फूलहा अउ मसलहच खवई चलथे... ता कहां ले आज के मनखे स्वस्थ्य रही....? तबियत तो बिगड़बेच करही ना।

अउ एक बात आज के लइका मन के रूचि विदेशी व्यंजन पिज्जा,बर्गर,मैगी,चाऊमिन, पास्ता, मोमोज ,चिप्स, चाकलेट अउ आने आने किसम- किसम के अनगढ़न बिदेशी खान-पान डाहर जादा बाढ़त जावत हे....अउ बड़ चाव के सांथ खाथे घलो..... भई....जेन  ला बइद - गुनिया,सुजानिक अउ स्वास्थ्य के जानकार मनखे मन स्वास्थ्यगत दृष्टिकोण ले बड़ नुकसान दायक घलो बताथें....आज इही सब अनगढ़न खान-पान के कारण कतको लइका मन बचपना मा ही कई ठन बीमारी के घेरा मा आ जावत हे....मतलब बने चिभिक लगाके सोंचबे मंथन करबे ता तइहा अउ आज के खान-पान मा जमीन आसमान के अंतर आगे हावय तइसे घलो लागथे...जेन अवइया पीढ़ी मन बर बड़ हानिकारक अउ नुकसानदायक घलो हावय लगथे....तइहा के बेरा के एक ठन अउ सुग्घर बात...सियान‌ मन के बताय गोठ सुरता आथे....पहिली के मनखे मन कुछ तेल जइसे अरसी ,सरसों अउ कुछ आने तिलहन के तेल ला तो अपने उपजाय अउ पेराय तेल ला ही उपयोग करयं....अइसने चांउर-दार ले लेके...साग-भाजी, बेसन,गहूं पिसान,कनकी,चांउर पिसान,आमा ,लिम्बु, अथान चटनी,आमा खुला ला घलो घरे के उपजाय पेवर जिनिस मन ला ही खाय बर उपयोग करयं....अउ एक ठन बने बात.…ओ पहिंत चना भाजी,लाखड़ी भाजी,गोभी भाजी अउ कई ठन प्रकार के भाजी ला सुखो के रखयं...जेनला सुक्सा भाजी कहे जाथे....जेकर सुवाद के का कहना?अइसने सेमी,भांटा , कांदा अउ आने साग भाजी ला सुखो के रखय जेनला खुला अउ खोइला कहिथे...एकरो सुवाद के कोई सानी नइहे...बड़ मिठाथे....अइसने  अदौरी ,रखिया,पोंगा ,बिजौरी सहित कई  किसम के बरी घलो बनावयं...एकरो अलगे स्वाद रहिथे….अउ अइसने पताल,कायत अउ अमारी फूल ला सुखो के ओकर बुकनी बनाके घलो रखयं...जेकर स्वाद अंगरी मा चांट के खाए मा जादा आथे...ए सब के उपज जादातर जड़कला के मौसम मा होथे ते पाय के इही बेरा इन ला घाम मा सुखो के जतन के रखथें अउ बरसात के दिन मा जब साग-भाजी के‌ कमी रहिथे तेन समे मा उपयोग करथें ....अउ अइसने दलहन चना, मसूर अउ राहेर आदि ला घलो सुरक्षित रखयं.....अउ मसूर के टाहरी अउ राहेर के घुघरी घलो बड़ गजब मिठाथे...वो पहिंत साग भाजी तो अधिकतर घर के बारी -बखरीच मा निकल जावय....वइसने घरो घर पहिली गाय -भंइसी घलो पाले पोंसे...ता दूध,दही अउ घींव घलो बिल्कुल पेवर अउ देशी घरो घर मिल जावय...अब कहां अइसन पाहू?

पहिली के ढेंकी अउ धनकुट्टी मा कुटाय चाउंर के भात-बासी अउ पेज-पसिया भी बड़ स्वादिष्ट रहय...बड़ मिठावय अउ आज तो सब राईस मिल मा एक्के घांव मा कतरो अकन ला कुटवा लेत हें भले ओला दवई डार के रखहीं... ता चाउंर के कतरो विटामिन हा अइसने... अउ जादा साफ -सफई के चक्कर मा घंसा के निकल जाथे कहिथें...काबर आज काल के लोगन मन ला सब आयता माल चाही... कोनो एक्कन निमारना-फूनना नइ चाहे...निकाल अउ सोज्झे ओइर वाले हिसाब-किताब के चलन होगे हावय....अउ एक ठन जमगरहा बात ये हे के अभी के बेरा मा कोनो भी साग-भाजी ,दलहन, तिलहन अउ धान के फसल हा बिना कीटनाशक दवा अउ रसायनिक खातू कचरा के नइ होवत हे?...सबे किसान मन उपज बढ़ा के ...आर्थिक रूप ले सजोर होय खातिर कीटनाशक दवई अउ रसायनिक खातू कचरा के बम्फाड़ उपयोग करत हें.... स्वास्थ्य बर कतका नुकसान दायक हे?तेला सबे जानत हें फेर ये बात ला सब जानसुन के तिरिया देत हावयं.... जेन संभवतः वर्तमान अउ अवइया पीढ़ी के विनास के सबले बड़का कारण भी हो सकत हे.. 

*मादक पेय....* पिए के जिनिस मा पहिली बिहने के बेरा के चाय भर ला जानन ...वहु कभू-कभू अउ कोनो सगा सोदर आ जावय‌ ता ..... अउ गरमी दिन मा लिम्बु पानी, पदीना पानी,बेल के शरबत अउ मही दही....अउ अब तो चाय के कोनों गिनती नइ हे... कतको मन तो दिन भर मा कइ कप ढोंक डरत हें.....अउ आज काल के लइका मन तो झार... ठंढा... कोल्डड्रिंक मा मोहाय हे.....ठंढा तो अब ठंढच रहिगे.... अब तो अधिकतर लोगन मन... एक ठन अइसन मादक पेय के फांदा मा फंसत जावत हे...जेनहा लगत हे के कुछे दिन मा धीरे-धीरे हमर युवा पीढ़ी ला खा जाही....वो हरय दारू मंद ....हां आज अधिकतर युवा पीढ़ी दारू के कई ठन किसम के नशापान मा मोहावत जावत हावय....संझा बिहने चाय के जघा ला अब दारू हा ले डारे हावय....पहिली के बेरा मा दूसर देश के मनखे मन हा एकर उपयोग दिन भर महिनत करे के बाद संझा के बेरा थकान मिटाय बर करयं कहय... कहिके सुनन.... फेर अब तो हमरो देश मा....संझा के बेरा चढ़ात हें ता... बिहनिया बेरा...उतारा के चलन शुरू हो गे हावय...कतको के घर परिवार इही चक्कर मा बर्बाद होवत जावत हे....धन संपत्ति तो सिराबेच करत हें...जवानी मा कतरो लोगन मन के जान घलो चले जावत हें....कइ ठन अलहन दुर्घटना घलो घट जावत हे..इही चक्कर मा कहव...चाहे एकर दुष्परिणाम कहव.…आज कतको बेटी बहिनी मन बहुते कम उमर मा खाली हांथ ता.... कतकोन लइका मन ननपन मा अनाथ हो जावत हें.... कतकोन परिवार हा इही दारू मन के चक्कर मा बिखर जावत हे... छिहीं-बिहीं हो जावत हे....आज हमर देश के युवा पीढ़ी... आज इही मादक पेय के फांदा मा फंसत जावत हे...*युवा पीढ़ी माने देश के रीढ़ के हड्डी...देश के पावर बैंक......हो सकत हे ये गोरख धंधा ले जुड़े लोगन मन ला जमगरहा आर्थिक लाभ होत होही.....फेर नुकसान..... सीधा-सीधा हमर पावर बैंक के होत हे ...पावर बैंक माने हमर युवा पीढ़ी ....आज अइसन गोरख धंधा ले कोनों कतको कमा डरय फेर..... जतका युवा पीढ़ी कमाही....युवा पीढ़ी के कमई ले.... हमर देश जतना सजोर होही... वतना कोनों के कमई ले नइ हो सकय ?....युवा पीढ़ी के कमई ले ही देश आर्थिक रूप ले सजोर होही....* बड़ चिंतन के विषय हे के आज इही सब अनगढ़न खवई - पियई के चक्कर मा *हमर पावर बैंक अर्थात युवा पीढ़ी* धीरे-धीरे कई‌ किसम के अनगढ़न खान-पान के फांदा मा फंसत जावत हे....जेन ला जतना जल्दी हो सकय रोकना... हम सब के बड़का कर्तब्य अउ जिम्मेदारी हे...अउ एकर खातिर हम सब‌ला जुरमिल के कुछ ना कुछ जमगरहा कदम तो उठायेच ला परही...तभे हमन अपन देश के भविष्य ला जतन के रख सकत हन....।

अमृत दास साहू 

ग्राम -कलकसा, डोंगरगढ़ 

जिला - राजनांदगांव (छ.ग.)

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