Friday, 25 April 2025

सूरदास के सूर

 कहिनी             // *सूरदास के सूर* //

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                   अमलीटिकरा गांव के चिन्हारी गजब के रहिस।गाँव के टिकरा,धरसा,कछार सबो जघा कतको किसीम के रुखराई रहिस फेर अमली के रुख जादा रहिस ते पाय के गाँव के नांव अमलीटिकरा धराय रहिस।गाँव के तरिया,मुड़ा,बंधवा,पयठू,डबरी सबो ल गिनती लगाय म छै आगर छै कोरी तरिया रहिस।सबो तरिया के अलगेच-अलग नांव ले चिन्हारी रहिस।पनपिया तरिया ल नवां तरिया कहंय।कोरी अकन तरिया के बिहाव घलो होय रहिस।तरिया मन गाँव के चारो कोती खेत-खार के बीच-बीच म बगरे रहिस।

               बस्ती के लकठेच म एकठन तरिया पनपिया रहिस,जेन म पुराइन पान,कमल फूल,कोकड़ा उड़ियावत अउ पनबुड़ी चिराई तरिया म तउंरत रहय त ओकर सुघराई गजब के नीक लागय।तरिया के पार बने ऊंच रहय अउ चारो कोती पीपर के रुख लगे रहिस।तरिया के पार म एकठन महादेव के छोटकून मंदिर घलो रहिस। तरिया के सुघराई के सोर कोस भर के गाँव ले बगरे रहय।तरिया के फिटिंग पानी सबो के मन ल अपन तीर झींक लेवय।छाती भर के पानी म एकोठन सिक्का गवां जातिस त ओहू रगरग ले दिख जावे।अमलीटिकरा म तरिया होय के सेथी गाँव म दुकाल नि होवय।बरसा ह एको पानी ल ठगे कस करथे त तरिया के पानी ल गरोसा ले लेके टीप खार तक खेत म अपासी करंय जेकर ले फसल सोला आना हो जावय।

            उही अमलीटिकरा गाँव के छेदहा पारा म एकझन गरीब अंधवा रहय।अंधवा के घर माटी के दू खोली के रहिस।घर म ढरका फइरका लगे रहय।फइरका म संकरी लगे रहिस,बाहिर कोती जावय त उही सकरी ल लगा देवय।एकठन परछी अउ छोटकून रंधनी कुरिया रहय।अउ खपरा के छानहीं ओकर ओरवाती दूनों कोती गिरय।घर ओतका जादा बड़े नि रहिस फेर चुकचुक ले सुग्घर रहय।छोटकून अंगना अउ नानचूक चंवरा जेमा तुलसी के बिरवा के खाल्हे म एकठन करिया लोढ़ी जेन ल ओहर शालीग्राम कहे ओहू रहय।सूरदास असनान करके तुलसी चंवरा म अवस के एक लोटा पानी रोजेच रिकोवय।

                 अंधवा ल लोगन मन सूरदास कहंय।हमर देश म अंधवा मन के नांव के जरुरत रहे न काम के।सूरदास बने बुनाय नांव धरा जाथे अउ भीख मंगाई काम।उंकर गुन अउ सुभाव जग-जाहिर रहिथे गवइ-बजइ म जादा चिभिक अउ भक्ति म मन जादा रमे रहिथे,उंकर मन के सुभाविक लक्षन दिख जाथे।उंकर बाहिर के आंखी नि दिखे फेर भितरी कोती के ज्ञान के आंखी जरुर दिखथे।

           हमर देश म कतको झन जनमजात अंधवा होइन हावंय जेन ल सूरदास के नांव ले जाने जाथें।एकझन सूरदास श्रीकृष्ण जी के भगत रहिस,ओहर अपन ज्ञान के आंखी ले श्रीकृष्ण जी के दरशन पाय रहिस अउ अपन रचना के जरिया ले सबोझन ल उंकर लीला के दरशन करवाइस।कोनों  संगीत के क्षेत्र म अलख जगावत हे त कोनों धरम के कारज करत अपन मान बढ़ावत हावंय,कतको झन मंदिर देवाललय,गली-खोर,रेलगाड़ी के डब्बा म सुग्घर गीत गाके भीख मांगत देखे बर मिल जाथे।

              अमलीटिकरा के सूरदास के अलगेच चिन्हारी रहिस।जनमती ओकर आंखी नि रहिस।ओकर नांव घलो धराय रहिस।लोगन मन ओला बरसाती नांव ले चिन्हार करे रहिन।ओहर एको बार काकरो गोठ ल चिन्हारी कर डारय त ओला कभू नि भूलावे।ओहर जबर सुवाभिमानी किसीम के मनखे रहय।लइकुसहा उमर म बरसाती के दाई गुजर गे रहिस।ओकर ददा ह गाय के गोरस पिया के पोसे रहिस।रमायन मंडली म सुग्घर गावय अउ बजावय संगे-संग टीका घलो करे।ओकर तीर म रहे तेन ह चौपाई अउ दोहा के शुरु आखर ल बतावे तहं अपनेच चौपाई,दोहा ल मुअखरा बोल डारय।

             बरसाती के लइकुसहा पन जबर मुसकुल म गुजरे हावे।बरसाती के देखरेख करे बर ओकर ददा दूसरावन बिहाव करिस।समे अपन रंग देखावत जावत रहिस।थोरिक दिन म बरसाती के दूसरावन दाई के एकठन बाबू होइस।दू बछर के पाछू बरसाती के ददा बीमारी ले मउत होगे।बरसाती अंधवा रहिस ते पाय के ओकर दूसरावन दाई ओला नि पतियावय।मोसीदाई के सबो दुख देवइ ल झेले बर परे रहिस,दाई के मया दुलार नि पाईस।ओकर जिनगी म कठिनई अउ चुनौती भरे रहिस,ओकर ले हार नि मानिस।ओहर निराश होइस फेर हताश नि होइस।

               बरसाती जबर सुवाभिमानी रहे ते पाय के आघू बढ़े बर कुछू न कुछू उदीम सोचत रहिस।एकदिन गाँव के स्कूल म मास्टर जी करा सलाव लेहे बर गिस।स्कूल के मुहांटी म जइसे बरसाती खुसरिस मास्टर जी के नजर दुरिहा ले बरसाती ऊपर गिस।एकझन लइका ल लेहे बर भेजिस।लइका दउड़त बरसाती के तीर जाके ठाड़ होगिस। ' गोड़ के अवाज ल ओरखिस '... कोन ?..बरसाती पूछिस!' मैं फेंकू आंव '...मास्टर जी तोला लाने बर भेजिस हे।फेंकू बरसाती के हाथ ल धर के मास्टर जी के तीर लेगिस। '

                 जोहार हे मास्टर जी '....पैलगी करत कहिस!' आ बइठ बरसाती ' .....कुरसी ल देवत कहिस!कुरसी ल टमरत अउ घुंचावत बरसाती बइठिस।' बता कइसे आय हावस बरसाती ' ?......मास्टर जी पूछिस!' एकठन सलाव लेहे आय रहेंव '...संकोचत बरसाती कहिस। ' काय बात तेन ल बता न ' ?....मास्टर जी फेरेच कहिस।' मोर पढ़े के बड़ साध हावे फेर मैं काय करंव मास्टर जी ' ?.....दुखी मन ले कहिस। ' एकठन भैअंकों (भैरा अंधवा कोंदा) ज्ञानदीप स्कूल हावे जिहां तुहिमन कस लइका मन उंहा रहिके पढ़ाई करथें '....सलाव बतावत मास्टर जी कहिस। ' उहां तोर जाय के बेवस्था कर देवत हंव '.....मास्टर जी कहिस।

                   जिनगी म सपना के बड़का महत्तम होथे,सपना एकठन लक्ष्य देथे अउ आघू बढ़े बर पंदोलथे। दूसरावन दिन बरसाती भैअंकों ज्ञानदीप स्कूल चल दिस।उहां भैरा,अंधवा अउ कोंदा लइका मन पढ़त रहिन।सबोझन के बीच म रहिके अपन आप ल बड़ भागमानी समझत रहिस।काबर कि ओकरे कस लइका मन उहां रहत रहिन।उहां के मास्टर जी मन सबोझन ल अलगेच-अलग उदीम करके पढ़ावंय।हाँस के,गा के अउ नाच के पढ़ावंय।उहां लइका मन के सउंख अउ रुचि ल अधार बनाके सिखावत रहिन।उहां के पढ़े लइका मन अपन जिनगी म नांव कमावत जगजाहिर होवत रहिन।

                  बरसाती घलो उहां रहिके पढ़े लागिस।ओकर धियान संगीत कोती जादा रहिस ते पाय के ओला संगीत के पढ़ाई करवाइन।ओहर बने मन लगाके संगीत सीखे लागिस।अउ देखते-देखत बड़ जल्दी संगीत के क्षेत्र म महारथ हासिल कर डारिस।ओहर लोक संगीत,शास्त्रीय संगीत,सुगम संगीत जल्दी सीख गिस।वइसे बरसाती शुरुच ले बढ़िया गावत-बजावत रहिस।फेर सीखे के पाछू अउ सुग्घर गायक बनगिस।

                 ओहर धीरे-धीरे अकाशवाणी,दूरदर्शन म हबर के अपन जघा पोगरिया डारिस।ओहर देखते-देखत म बरसाती अब बड़का कलाकार के रुप म अपन नांव के संगे-संग गाँव के नांव ल जगजग ले अंजोर बगरावत रहिस।बड़का संगीतकार मन के डांड़ म गिनती होय बर धर लिस। " *सूरदास के सूर* " दूरिहा ले सुनाय लगिस।अंधवा ल अउ का चाही बस एकठन लाठी। ' सुग्घर डाहर अउ दिशा मिल जाथे त मनखे ल आघू बढ़े म समे नि लागे,नइ तो उवत सूरुज घलो बुड़त दिखे लगथे '।

✍️ *डोरेलाल कैवर्त " हरसिंगार "*

         *तिलकेजा, कोरबा (छ.ग.)*

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