Friday, 25 April 2025

लघुकथा) सबे भूमि गोपाल के

 (लघुकथा)


सबे भूमि गोपाल के

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कका --कका-ये कका थोकुन आवव तो काहत परोस के बहू हा मुँहाटी मा ठाढ़े अवाज देवत राहय। मैं कुरिया ले बाहिर निकल के आयेंव अउ पूछेंव-- का होगे बहू,बड़े बिहनिया ले बलाय ला आये हच---कुछु परेशानी आगे का?"

वो कहिच--- "काला बताववँ कका। मोंगरा के बाबू ला फेर बइगुन उमड़ गे हे।थोकुन समझा देतेव।वो हा ककरो तो सुनय नहीं।तुँहरे बात ला थोर-बहुत मान जथे त मान जथे।"

ले चल कहिके वोकर संग आयेंव त का देखथँव भतीजा मनन हा कुदारी मा घर के भीतर परछी मा पटाव मा चढ़े बर बने सीढ़िया ला ओदारत राहय। कतका बेर के उठे रहिस तेला उही जानय-उत्ती मा बने नहानी खोली ला फोर डरे राहय। मोला देखिच तहाँ ले आके पाँव परिस अउ फेर जाके ओदारे बर भिंड़गे। मै हा कहेंव-- "अरे बाबू तैं हा ये फोरई-टोरई ला बंद कर अउ आके मोर संग थोकुन बइठ ले-- गोठियाले।"

वो हा हव कका कहिके आइस अउ बइठगे।इही बीच मा बहू हा चाय-पानी लाके देइस।चाय पियत-पियत मैं हा पूछेंव-- ये तैंहा का करत हस जी।पुरखा मन के जमाना के बने कतेक मजबूत सीढ़िया ला काबर फोरत-टोरत हस।वो नहानी खोली अउ संडास ला तहीं हा पाछू बछर बनवाये रहे उहू ला काबर फोर देच ? पइसा जादा होगे हे का---का होगे हे तेमा? 

"का बताववँ कका ।ये घर के वास्तु बिगड़ गेहे।जेती सिढ़िया नइ रहना चाही तेती सीढ़िया हे।जेती रँधनी खोली नइ रहना चाही तेती रँधनी खोली हे।जेती नहानी अउ कोठा नइ रहना चाही तेती वोमन बनगे हे।एकरे सेती ये घर फुरत नइये।आये दिन कोनो न कोनो बीमार पर जतन।नइ सोचे रइबे तइसन नुकसान होवत रहिथे"--एक्के साँस मा वो हा सब ला ओरिया डरिस।

"अरे बाबू तोर मति बिगड़ गे हे।इही घर मा तोर पुरखा मन हली-भली जिनगी पहा डरिन।वो मन ल तो कुछु नइ होइस।अच्छा ये बता तैं कइसे जाने ये घर मा खराबी हे?"

"वो दिन टी वी मा देखे हँव कका एक झन पंडित हा बतावत रहिसे के घर मा वास्तु दोष होये ले का का परेशानी आथे।वो बतावत रहिसे के कोन दिशा मा का का होना चाही। पेपर मा तको पढ़े हँव।"

"अच्छा त तोर दिमाग मा वास्तु शास्त्र के कीरा खुसरगे हे अउ वो हा तोला कुट-कुट चाबत हे। ये सब मन के भरम ये रे बेटा।मन चंगा ता कठौती मा गंगा होथे। ये सब बड़े आदमी--पइसावाले मन के  प्रपंच आय।वास्तु के बारे मा महूँ जानथँव।ये दिशा वो दिशा के कोनो मतलब नइये।अतका जरूर हे के कोनो घर हा धुँधुक ले झन राहय।हवा अउ सुरुज नरायेन के अँजोर आये बर बने खिड़की-दरवाजा राहय।इही हा असली वास्तु शास्त्र आय।तोर घर मा एकरे व्यवस्था कर।ओली-खोली,सीढ़िया ला झन टोर-फोर।अच्छा मैं कुछ प्रश्न पूछत हँव तेकर सोंच बिचार के उत्तर देबे।"

"ठीक हे कका।ले पूछ न?"-- वो कहिस।

"अच्छा ये बता ये धरती ला कोन बनाये होही?"

"भगवान हा बनाये हे।"

"अउ ये दिशा मन ला कोन बनाये हे?"

"उहू ला भगवानेच हा बनाये होही कका।"

"ठीक कहे।ये सबो धरती,दिशा-बादर ला भगवान बनाये हे त का वोकर बनाये हा गलत होही?

"भगवान के बनाये कुछु जिनिस गलत नइ हो सकय कका।बने बताये।मोरे समझ गलत होगे रहिस"--काहत मनन हा कुदारी राँपा ला भीतरिया दीच।


चोवा राम वर्मा "बादल"

हथबंद,छत्तीसगढ़

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