Friday, 25 April 2025

लघुकथा) अग्नि परीक्षा

 (लघुकथा)



अग्नि परीक्षा

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रतिहा सब झन ला भोजन करवाके अउ बर्तन भाड़ा ला धो माँज के हेमलता हा जइसे आराम करे बर अपन कमरा मा गेइस त उहाँ पहिली ले इंतजार करत वोकर पति राजेंद्र हा फट परगे। वोहा गुस्सा मा कहिस--- "ऐ आज चार बजे तैं अउ वो लड़का हा अपन घर लहुत बेरा खड़े खड़े का गोठियावत रहेव।साफ साफ बता।"

"तैं काबर गुस्सा करथस जी।नइ जानज का वो हा मोर सग्गे ममा के लड़का मोर भाई ये।उही ला तो राखी बाँधे बर जाथँव।अउ रहिच बात गोठियाये के त मैं अपन भाई सो तको नइ गोठिया सकवँ का? घर में तहूँ रहेच,सास-ससुर रहिन हें।कोनो नइ रहितेव त भला तैं का समझ लेते तेकर भगवाने मालिक हे"--हेमलता कहिस।

"अरे छोड़ तोर तिरिया चरित ला--बड़ा सफाई देवत हस।मैं खुद देखे हँव वो लड़का हा तोर मूँड़ उपर हाथ रखके का करत रहिसे।"

"नइ जानच का?कोनो हा ककरो मूँड़ मा हाथ रखके कसम खाथे नहीं ते कुछु आशिर्वाद देथे।"

"अच्छा वो कोनो साधू -संन्यासी, महात्मा ये का जेन तोला आशिर्वाद देही ।तोर जहुँरिया उमर के नवजवान टूरा हा कसमे खावत रहिस होही।दूनो झन का कसम खावत-खवावत रहे होहू--बता तो"--राजेंद्र हा आँखी तरेरत कहिस।

"अच्छा ये बात हे।तोर मन मा मंसा पाप समागे हे।तोर आँखी मा शक के चश्मा चढ़गे हे।तैं अइसने आदत के होबे--मैं सपना मा नइ सोचे रहेंवँ।अइसने मा सात जनम ला कोन काहय ,इही एक जनम ला निभा डरबे का? "--काहत काहत हेमलता के आँसू ढरकगे।

'अरे छोड़ तोर आँसू बहाना ला अउ साफ बता का बात ये तेला।"

"मैं हा वोला काहत रहेंव के भाई रे  गलत संगति मा पड़के दारू पीथच कइके सुने हँव।तैं वोला छोड़े के कसम खा त वो हा मोर  पाँव परके अउ मूँड़ उपर हाथ रखके

कसम खावत रहिसे के-- दीदी !अब ले दारू ला हाँथ नइ लगावव । बस अतके बात तो आय तेकर बर तोर मन में पाप हमागे"-- काहत काहत हेमलता के चेहरा मा गुस्सा झलके ला धरलिच।

"छोड़ तोर बनावटी गोठ ला।मोला विश्वास नइ होवत ये।"

"ठीक हे चल मोला मइके मा छोड़ के आजा "--कहिके हेमलता हा अपन कपड़ा-लत्ता ला बेग मा जोरके तइयार होगे।


चोवा राम वर्मा 'बादल '

हथबंद,छत्तीसगढ़

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