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(छत्तीसगढ़ी कहानी)
*केंवची -कांदा*
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(1)
"सरपंच बने के बाद छह महीना तक ल ये नावा सरपंच समेलाल हर बने रहिस । वोकर बाद वोकर म कार्बन आय के शुरू हो गय भई...! "
"कइसे का हो गय जी ?"
"का का ल बताबे ?"
"अरे तभो ले भी ?"
"तँय नई हावस का वोकर परजा... जइसन वो कहत रइथे आजकल अउ अउ कुछु सुने हस...तँय?"
"अरे बने फरिया के परच्छर बता धंधा कस झन जनवा !"
"केंवची कांदा... दु -चार मनखे मन के छोड़ बाकी सब मन वोकर आगू म केंवची कांदा आंय ।... अउ केंवची कांदा के कईसन मुँहू जी ?"
रात के अंधियार म मुँहरन तो नई दिखत ये कि येमन कोन- कोन गोठियात हांवे अइसन फेर अवाज ल लखे ल लागत हे उदल अउ बृज लाल आंय ये दुनो झन...कोसमलाल अइसन गुनिस । फेर वोकर जी म डर पेल दिस। ये तो राजद्रोह आय ! राजा के खिलाफ कुछु कहना हर राजद्रोह नई होइस त काय ये ।सरपंच माने अभी के राजा । वोकर खिलाफ कुछु बोलइ माने सफा सफा राजद्रोह !अउ राजद्रोह के सजा कुछु भी हो सकत हे...
(2)
परेमा सियानीन एक हाथ म अपन लउठी अउ दूसर हाथ म पीतल बाल्टी म असनाने के तेल -साबुन ल धर के नहाय के नांव म निकल गय हे। वोकर बर नहाय जवई माने पूरा जुआर भर के बुता आय । दु तीन बईठान म वो तरिया के वो मुड़ी म पहुँचही जिंहा नहाय बर बहुत पहिली के बने पचरी हे अउ ठीक अइसन करत वोहर वापिस फिरही ।आज तो घर तीर ल आत वोला चक्कर असन आ गय रहिस ।येला देखके वोकर लइका बंशी लाल कउआ गय रहिस ।
आठ -चार दिन के गय ल वोला पता चलिस कि गांव सरपंच हर तरिया म नहाय बर पचरी बनवाने वाला हे अउ वोहर जुन्ना पचरी ले सटा के ये नावा पचरी ल बनवात हे ।
ये पारा के मनखे येला सुनके तुरनतेच जुरिया गिन । बैठक हो गय ।चला जाके कहा जाय सरपंच ल । वोहर ये पचरी ल तरिया के ये मुड़ा म बनवाय । अरे वो कोती नावा -जुन्ना जइसन भी हे पचरी नहाय धोय बर तो होइबे करिस न । ये कहाँ के न्याय ये कि मेखा उपर मेखा ठेंस । मनखे मन जुरिया के गईंन घलव । सरपंच हर हूँ हाँ कूँ काँ कुछु नई करिस अउ जउन करिस वोहर वोकर मन मरजी से होइस । जउन जगहा म तुरत ताही पचरी के जरूरत नई रहिस ,तउन जगहा म पचरी बन गय ।मनखे मन कहिंन -यह तो पूरा के पूरा भेदभाव ये। येहर तो भरे हे तेला भरदे अउ जुच्छा ल ढरका दे असन गोठ हो गय ।
तरिया के ये पार के मनखे मन अब ले भी वो पार नहाय बर जात रहिन । फेर वोमन के मन म ये बात हर तो घर कर गिस कि जउन भी होवत हे तेहर सबके मन के नई होइस । अकेला जउन चाहत हे वो भर होवत हे।
अउ पांच साल ल वोहर जइसन चाहिस वइसन होइस । वो हर सब जुन्ना मन ल नावा बना दिस अउ सब नावा ल जुन्ना । अउ का कहे जाय ? सब विरोधी मन ल टोर दिस कि सरिया के अपन कोती मिला लिस , सबो भेवा करके । जउन मन साम म मानिन तउन मन ल साम म , जउन मन इकन्नी - दुअन्नी खोजिन, तउन मन ल दाम म , दण्ड हर तो सधारण बात रहिस,नहीं त भेद हर तो रईबे करिस ।सब निबट गईंन , फेर एक बाँच गय रहिस...वो रहिस वंशी ! सरपंच समेलाल ल वोकर परामर्शदाता मण्डल मन वंशी के बात बताईंन ।वोकर अब ले भी नई मिंझरे के गोठ गोठियाइन, तब सरपंच समेलाल कहिस - वो वंशी केंवची कांदा ! अउ केंवची कांदा के का...?
(3)
संजोग अइसन ...ये पईत फेर सरपंची बर समेलाल ल फारम भरत बन गय ।लाटरी सिस्टम ले अनारक्षित हो गय रहिस ये पद हर । समेलाल घलव एइच ल चाहत रहिस ।
बाजा -रुंजी घिड़कात वोकर फारम भरिस । का जुलूस...देखे के लइक ! चुनाव होवत रहिस । देखे के लइक खरचा ,खाय के लइक खरचा, पिये के लइक खरचा सबो होवत रहिस । चुनाव परिणाम आइस । समेलाल एक वोट ल हार गय रहिस ।
केंवची कांदा के घलव बड़ ताकत हे इहाँ... !अब समेलाल समझ पाय रहिस।
(केंवची कांदा - तुच्छ वस्तु)
*रामनाथ साहू*
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