Sunday 3 April 2022

दूध गिरिस-त-गिरिस दुहुना घलो फुटगे

 . *दूध गिरिस-त-गिरिस दुहुना घलो फुटगे!*            ( संगोष्ठी के प्रासंगिकता अउ फालोअप  उपर अनुभवजन्य सम्यक् टिप्पणी )


      कोनो भी संगोष्ठी म भाग लेवइया व्यक्ति मन के संख्या सौ-दू सौ ले जादा नि रहे; काबर कि एमा विषय विशेषज्ञ अउ ओ विषय के जानकार मन ही भाग ले सकथें। कृषि अउ हिन्दी के दर्जनों राष्ट्रीय अउ दू अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी म शामिल होय के साथ कुछ संगोष्ठी म अतिथि-वक्ता के रूप म व्याख्यान देहे के अवसर घलो मोला मिलिस। सन् 2014 म महाराष्ट्र के अमलनेर म आयोजित हिन्दी के त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के अध्यक्ष मंडल म घलो मैं शामिल रहेंव; फेर संख्या बल दू-तीन सौ ले जादा कभू भी - कहीं भी नि रहिस। एखर ले इतर  चुनावी राजनैतिक सभा-समारोह, रैली आदि म लाखों के भीड़ इकट्ठा होथे अउ नेता मन के भाषण ला आम जनता सुनथे- गुनथे!..... ये प्रश्न विचारणीय हे कि जादा भीड़ इकट्ठा होथे तब का राजनैतिक रैली, सभा- समारोह के महत्व राज्यस्तरीय/राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी ले जादा हे? 

     निश्चित रूप म राजनैतिक सभा-समारोह, रैली आदि के अखबार मन म खूब चर्चा होथे- बड़े-बड़े फोटो वाला विज्ञापन घलो छपथे; फेर अइसन सभा-समारोह के महत्व चुनाव के साथ ही खतम हो जाथे अउ एला सुनइया - अखबार पढ़इया मन भूला घलो जाथें; जबकि संगोष्ठी म विषय- विशेषज्ञ मन के व्याख्यान के साथ विषय के जानकार प्रतिभागी मन भाग लेथें। राज्यस्तरीय/राष्ट्रीय/अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी म दिये गये विषय-विशेषज्ञ मन के व्याख्यान ला स्मारिका या फेर अनुसंधान के क्षेत्र म अनुसंधान पत्र ( Research paper ) के रूप म प्रकाशित करथें। आगे चल के एही स्मारिका या अनुसंधान-पत्र मन संदर्भ-ग्रंथ के रूप म काम आथे अउ एही तरा साहित्य/अनुसंधान आदि के काम ह लगातार आघू बढ़त रहिथे। कोई भी संगोष्ठी म भाग लेवइया प्रतिभागी मन के संख्या भलेहि राजनैतिक सभा-समारोह ले हजार गुना कम रहिथे मगर ओखर महत्व राजनैतिक सभा-समारोह ले हजार गुना जादा घलो रहिथे। विषय-विशेषज्ञ मन के संगोष्ठी म दिये व्याख्यान मन ला संकलित-संपादित, करके प्रकाशित नि करे जाही तब ओ संगोष्ठी संदर्भहीन हो के महत्वहीन हो जाथे अउ संगोष्ठी के लाभ अवइया पीढ़ी ला नि मिल सके।अइसन स्थिति ला *कुँआ खोदव अउ खुदे पाट के चल देवव* वाली स्थिति कहे जा सकत हे। एखरे खातिर अनुसंधान पत्र ( Resesrch paper ) अउ स्मारिका ला अवइया पीढ़ी बर मार्गदर्शक माने जाथे अउ ओखर प्रकाशन के महत्व अखबार म छपे बड़े-बड़े विज्ञापन अउ समाचार ले हजार गुना जादा रहिथे।

       एही तारतम्य म छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग लगातार प्रांतीय सम्मेलन करत रहिस अउ आमंत्रित वक्ता/साहित्यकार मन के व्याख्यान ला स्मारिका के रूप म प्रकाशित घलो करत रहिस; जेहर संदर्भ ग्रंथ के रूप म आज भी संरक्षित हे अउ  छत्तीसगढ़ी साहित्य ला आघू बढ़ाय बर काम आवत हे।

      छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग द्वारा 22 जुलाई 2018 के बिलासपुर म आयोजित राज्य स्तरीय संगोष्ठी म प्रदेश के 14 जिला के शताधिक साहित्यकार मन भाग लिन अउ विषय-विशेषज्ञ मन के व्याख्यान होइस। ये संगोष्ठी *छत्तीसगढ़ी के मानकीकरण* बर  *देवनागरी लिपि के 52 वर्ण* के स्वीकार्यता उपर केन्द्रित रहिस। ये संगोष्ठी म अतिथि वक्ता अउ विषय विशेषज्ञ के रूप म *सरला शर्मा, शकुन्तला शर्मा, डाॅ शैल चन्द्रा, डाॅ सोमनाथ यादव, अरुण कुमार निगम, डाॅ विनोद कुमार वर्मा, डाॅ विजय कुमार सिन्हा, डाॅ बलदाऊ प्रसाद* *निर्मलकर, डाॅ चित्तरंजन* *कर, डाॅ विनय कुमार* *पाठक* शामिल होइन।आमंत्रित अतिथि वक्ता भाषाविद् *डाॅ सुधीर शर्मा, डाॅ तृषा शर्मा, डाॅ* *शैल बाला शर्मा,डाॅ जगदीश* *कुलदीप* अउ *नरेन्द्र* *वर्मा* व्यस्तता के कारण संगोष्ठी म शामिल नि हो सकिन। संगोष्ठी म छत्तीसगढ़ी भाषा अउ देवनागरी लिपि उपर गहन विचार-विमर्श के बाद  भाषाविद् *डाॅ चित्तरंजन* *कर* द्वारा ' प्रस्तुत *छत्तीसगढ़ी भाषा के मानकीकरण बर  देवनागरी लिपि के हिन्दी बर अंगीकृत 52 वर्ण के  स्वीकार्यता बाबत् '*  प्रस्ताव सर्वसम्मति ले पारित किये गइस। एही समय छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष *डाॅ विनय कुमार पाठक* अउ *सचिव डाॅ सुरेन्द्र दुबे*  द्वारा संगोष्ठी के व्याख्यान-माला ला दू भाषा- *छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी* म प्रकाशित करे के सिद्धांत रूप म निर्णय लिन अउ संपादन के दायित्व मोला सौंपिन। समय बहुत कम रहिस फेर सहयोगी (सह संपादक ) के रूप म  नरेन्द्र कौशिक अमसेनवी  के साथ मिल के लगभग दू माह म  व्याख्यान-माला ला दू भाषा म संपादित कर कम्प्यूटर टाईप्ड पाँडुलिपि तैयार करेंव अउ छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग म पाँडुलिपि ला सी डी( CD ) सहित जमा करेंव।

   दिनाँक 05 अक्टूवर 2018 के दिन छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के अन्तिम बैठक होइस जेमा अघ्यक्ष,दुनों सदस्य अउ सचिव ( डाॅ सुरेन्द्र दुबे के सेवानिवृति के बाद नवा कार्यकारी सचिव ) शामिल होइन अउ दू भाषा: हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी म लगभग 200 पृष्ट म संकलित राज्यस्तरीय संगोष्ठी के व्याख्यान-माला ला ' *छत्तीसगढ़ी का* *मानकीकरण: मार्गदर्शिका* ' के नाम से शासकीय प्रेस म छपवा के 26 नवंबर 2018 के दिन विमोचन करे के निर्णय लिन। ठीक एखर 2-3 दिन बाद चुनाव के आचार-संहिता लग गे अउ अध्यक्ष/सदस्य  मन के  पद/अधिकार निलंबित/समाप्त होगे।एखर बाद आचार संहिता के आड़ ले के नवा सचिव महोदय एखर प्रकाशन ला रोक दिस।कुछ दिन बाद मैं नवा सचिव महोदय करा मिलेंव त कहिन कि ' *अभी तो अचार संहिता लगे हे फेर हम आपके पुस्तक ला काबर छापबो? '* ......अब आपे मन बतावा कि ओहर मोर पुस्तक कइसे होगे या मैं ओ पुस्तक के लेखक कइसे हो गें...... लेखक अउ संपादक म कुछु अंतर होथे कि नहीं? का अखबार म छपे कविता, कहानी,लेख आदि के लेखक अखबार के संपादक ला माने जाथे?- संप्रति, मैं तो छत्तीसगढ़ राज भाषा आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष के निर्देश म संगोष्ठी के व्याख्यान-माला के केवल संपादन भर करे रहेंव।...... मगर संपादक अउ लेखक के अंतर ला कोई सफेदपोश अधिकारी भला का समझ पाही?......  दरअसल अधिकारी राज एही ला कहिथें!..... ओमन कागजी घोड़ा दउड़ाय म अव्वल रहिथें! साहित्य- संस्कृति से ओमन के का लेना-देना ?- नवा कार्यकारी सचिव के पद-भार म आय के बाद तो जइसन   छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग ला  लकवा मार गे! प्रांतीय सम्मेलन तको स्थगित होगे- एला आप सबो जानतेच्च होइहा!..... दरअसल *राहुल कुमार सिंह* जइसन योग्य अधिकारी-साहित्य मनीषी ला छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के सचिव के प्रभार मिले रहितिस तब स्थिति एकदम भिन्न होतिस अउ छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग लकवाग्रस्त नि होतिस!

      अपन दयनीय स्थिति के बात ला अब मैं काला कहौं अउ का कहौं ?......... मानदेय के बात ला तो छोड़ देवा..... दू महीना के समय-श्रम तो गइस-त-गइस कम्प्यूटर टाइपिंग के दस हजार रूपिया घलो चल दिस! एही ला कहिथें- ' *दूध* *गिरिस-त-गिरिस....दुहुना घलो फूटगे! '*


     संप्रति, वर्तमान  पूर्णकालिक  सचिव *डाॅ* *अनिल भतपहरी* जी स्वयं छत्तीसगढ़ी के सक्षम साहित्यकार  हें। ओमन चाहें त  छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के पुराना फाइल ला देख के संगोष्ठी के  व्याख्यान-माला ला उपयोगी समझहिं त अभी घलो छपवा सकत हें। सादर.....🙏🌹


               - विनोद कुमार वर्मा

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