Friday 29 April 2022

माते मुनगा के फूल**


 

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    **माते मुनगा के फूल**

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      मुनगा के रुख ल फूल म माते देख के भगवन्तीन हर गदगद् हो जावत रहय। घेरी-बेरी मुनगा ल निहारय अउ मने-मन कुलकुल्ला होवय, मुनगा फूल के बड़े-बड़े झोत्था हर छानही ल छुवत रहय तेला देख के ओकर छाती जुड़ावत रहय, कुल मिला के ओकर खुशी के कोनो ठिकाना नइ रहय। 

      भगवन्तीन हर मने-मन म कइनो प्रकार ले सोंचत रहय, येसो तो मुनगा हर फरही त कोनो ल एक्को ठन नइ देंव; सब्बो ल बेंचिहँव, पइसा आही त हाथ के कड़ा हर टूटे हे तेला बदलिहँव। भिनसरहा उठय त सब ले पहिलि मुनगा कति ल देखय। अँगना म कहूँ मुनगा फूल हर थोरको गिरे दिख जाय त ओकर मन हर हदर जाय, सब फूल ल एक-एक ठन बीन दारय अउ साग रांध दारय। जब मुनगा के फूल हर फर धरे लागिस त फर धरत देख के भगवन्तीन के खुशी के ठिकाना नइ रहय, खुशी के मारे फूले नइ समावत रहय। फर मन ल गिने के शुरु कर देथे। एक झोत्था ल गिने के शुरु करीस त गिने नइ सकीस, तभो ले पाँच कोरी कस गिन दारथे। 

      अब भगवन्तीन हर हिसाब लगावत रहय, एक झोत्था म दू सौ घलाव निकल जाही; तभो बहुत ये। एक पउवा म पाँच ठन घलाव चढ़ही अउ पच्चीस रुपया पउवा बेंचिहौं त एक ठन हर पाँच रुपया परही। अब एक-एक ठन फर हर ओला पाँच-पाँच रुपया अस लागत रहे। घेरी-बेरी अपन हाथ ल देखय-संवारय, ओला अभी ले नावा कड़ा पहिरे के एहसास होवत रहय। भगवन्तीन हर सोंचथे; कड़ा ल बदलिहँव त ओमा तो जादा पइसा मिलाय बर नइ लागय, एक ठन काम करिहँव, अपन कनिहा बर चाँदी के करधन घलाव ले लिहौं, मोर अब्बड़ शौंक रहीस करधन पहिरे के फेर कभू पहिरेच नइ पांय, ये दारी के मोर शौंक हर पूरा होही, करधन ले घलाव बाँचही त फेर घेंच बर पीपर पत्ती लिहौं कम-से-कम एको फर के, कलदार ल बेंचे रहेन तब ले घेंच हर दूच्छा परे हे, सोजहे काँच के मोती के माला ल पहिरे हँव, येही म एक ठन पीपर पत्ती डरवा लिहौं।

      भगवन्तीन के जी हर कब मुनगा हर पोठाय त कब बेचंव तइसे होवत रहय। रास्ता म कोनो मिलय तउने ल पूछय; तुमन मुनगा खाथा नहीं; मोर मुनगा फरही त लाहौं हंय; खा के देखिहा, मोर मुनगा कइसे मिठाथे, एक घंव खाहा त फेर बार-बार लिहा। बक्सा के ताला हर जून्ना हो गे रहय, जंग लगत रहय, बजार ले नावा ताला ले आनीस, तारा-कुची हर पोट रहना चाही त पइसा कौडी़ धरे बर बने रही। बक्सा म पइसा कौड़ी हर रही अउ मैं हर मुनगा बेचें बर चल दिहौं त कोनो आके ताला ल झन टोर देवैं। सोवत जागत भगवन्तीन के जी मुनगा म लगे रहय। जउन बखत म मुनगा फरथे तउने बखत म गर्रा-धुँका घलाव हर आथे, भगवन्तीन हर मने-मन म ओही ल डरावत रहय। 

      एक दिन संझा बेरा भगवन्तीन हर अँगना म माची म बईठे रहय तभे कती ले गर्रा-धुँका आगे। भगवन्तीन हर धरा-रपटा घर भीतर म हमा गे अउ फईरका ल दे दीस। धांय-धांय हवा चलत रहय, फईरका मन खट-पट होवत रहंय, टीना-टप्पर मन फेंकावत रहंय, भगवन्तीन के जी धुकुर-पुकुर करत रहय। 

      आज तो मुनगा हर एक्को नइ बाँच जाय सप्फा फूल हर झर जाही तइसे लागत हे। तभे रट ले कछु टूटे के आवाज आथे, मुनगा के कोनो बड़े डारा हर टूट गे सोंच के भगवन्तीन के जी हर धक-धकाय लगथे। रात भर नींद नइ अइस। भिनसरहा उठ के अँगना ल देखथे, देख के भगवन्तीन के आँखी म आंसू आ जाथे, अँगना हर मुनगा के फूल अउ डारा म पटाय रथे। भगवन्तीन हर डारा-पाना ल हटाय के शुरु करथे, आँखी ले आंसू के धार बोहावत रहे। अपन अंचरा म आंसू ल पोंछत रहय अउ ऊपर पेंड़ ल देखय, काल तक ले फूल म लदाय रहीस डारा नइ दिखत रहीस तेहर आज ठूंठ भर दिखत रहय, आधा मुनगा नइ बांचे रहय।

       अँगना ल जतन के नहा-धो के आगे, खाना-पीना नइ सुहात रहय। अँगना के भिथिया म एक ठन छोटे से बजरंगबली के मंदिर बने रहय। भगवन्तीन हर ओही बजरंगबली ल मानय। कछु होय त ओही ल मनावय। भगवन्तीन हर जाके बजरंगबली के आघु म हाथ जोड़ के खड़े हो जाथे अउ बजरंगबली ले शिकायत करथे; हे बजरंगबली, हे पवनदेव, मोर गरीबीन के धन ल काबर उजार देहा अतके तो मोर धन-दौलत ये, कतका का-का सोचे रहें, सब मनसुबहा ल पानी म बोर देहा।

बजरंगबली अब ये जऊन कुछ बाँचे हे तेहर तुंहरेच ये अब येला बँचावा के उजारा सब तुंहरे सेथा ये, अब ये सब ल तुंहला संउपत हंव। अब भगवन्तीन हर आश्वस्त रहय, अब सब बजरंग बली के ऊपर हे ओही हर रक्षा करहीं, मैं हर अब सब ल ओही ल संउप दे हँव। 

     भगवन्तीन हर दिन म कई फईत मुनगा के पेंड़ ल निहारय। मुनगा हर बनेच फर धर दारे रहय, बजरंग बली  ल हाथ जोड़य; बजरंग बली अतका ल बचा दिहा त कम से कम मोर हाथ के कड़ा हर तो बदला जाही।  मुनगा झींकी मन ल बाढ़त देख के  थोरकन मन हर जुड़ावत रहय अउ दुख हर थोरकन कम होय लागीस। एक दिन भगवन्तीन हर पड़ोसी के घर म बईठे रहय त लईका मन आ के बताथें तोर घर म बिकट कन बेंदरा आय हे कइके,भगवन्तीन हर दंउड़त भागथे; अपन घर कती, घर के ताला खोलथे अउ सीधा अँगना म जाथे, आठ-दस ठन बेंदरा मन आ के मार उधम मचाय रहें। मुनगा के डारा-पाना ल सुलर-सुलर के खावत रहंय अउ अँगना  म टोर-टोर के गिरावत रहंय, छानही के खपरा ल उलट-पुलट देहे रहें। भगवन्तीन हर एक ठन सूंटिया ल धर के ओमन ल मारे बर दंउड़इस त एक ठन बेंदरा हर ओही ल मारे बर दंउड़ीस, भगवन्तीन हर सूंटिया ल फेंक के घर भीतर घूसर गे अउ फईरका ल दे दिस।

     बजरंग बली ल याद करके हाथ जोड़थे बजरंगबली अब जउन करिहा तुंहरे सेथा ये बचावा के उजारा। खटिया म बईठ के अपन हाथ ल संवारत रहय। मुनगा ल फूल म माते देख के का का सोंच दारे रहें। कड़ा ल बदलिहँव, करधन लिहँव, पीपरपत्ती पहिरिहँव कहत रहें। मोर अभागीन के भाग म अतको नइ हे; त बजरंगबली हर काय करहीं, अइसने रही त साग खाय बर घलाव नइ मिलही तइसे लागत हे। अँगना म सब शांत-शांत लागीस त बेंदरा मन चल देहें लागत हे कइके भगवन्तीन हर फइरका ल थोरकन खोल के झाँकथे, बेंदरा मन चल देहे रहंय। भगवन्तीन हर मुनगा के रुख ल देखथे, फर मन लटकत रहे तेला देखथे, बजरंग बली कती ल देख के हाथ जोड़थे,   महराज, बाँचे खोंचे हर सब तुंहरे सेथा ये कहेन त सब अपन सेना मन ल बुलवा लेहा। भगवन्तीन हर मने-मन मुचमुचाथे अउ बजरंगबली ल देखथे अइसे लागथे जइसे बजरंगबली घलाव ओला देख के मुचमुचावत हें। 


**अंजली शर्मा **

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ ).

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