Sunday 10 April 2022

शौर्य की प्रतिमूर्ति 'बिलासा देवी केवट'


शौर्य की प्रतिमूर्ति 'बिलासा देवी केवट'


- दुर्गा प्रसाद पारकर 

 

छत्तीसगढ़ म वीरांगना बिलासा देवी केवट के नाम ले बिलासपुर शहर बसे हे। एकर बारे म सन् 1920 के गजेटियर के एक अंश म लगभग 350 बच्छर पहिली बिलासा देवी के नाम ले बिलासपुर शहर के नामकरण होय के बात केहे गे हे। जनश्रुति के मुताबिक रतनपुर राज्य के लगरा गाँव म परसुराम नाम के केवट राहत रिहिसे। ओकर गोसइन (पत्नी) के नाम बैसाखा रिहिस। परसुराम अपन परिवार के संग डोंगा चलाए बर अउ मछरी के व्यापार करे बर अरपा नदी के किनारा म जाके बसगे। संग म गाँव के कुछ अऊ परिवार गीन। धीरे-धीरे अरपा के किनारा (तट) म मछुआरा मन के बस्ती बनगे। मोपका गाँव के जगेसर केवट अउ पुनिया घलो इही बस्ती म बस के जीवन यापन करत रिहिसे। परसुराम अउ बैसाखा के बेटी के नाम बिलासा रिहिसे। ननपन (बचपन) ले ही बिलासा म विलक्षण गुण दिखे बर धर ले रिहिसे। ओह धरम-करम के संगे संग शौर्य कला म निपूर्ण रिहिस। साथ म भाला, तलवारबाजी अउ नौकायन म घलो पारंगत रिहिसे। ओह निडर, मजबूत इरादा अउ प्रगतिशील मानसिकता वाली नारी रिहिस। ओह कुरीति अउ रूढ़ीवादी मानसिकता ऊपर घलो करारा प्रहार करत रिहिस हे। जगेसर अउ पुनिया के बेटा के नाम बंशी रिहिसे। बंशी घलो खेलकूद, तलवारबाजी अउ नौकायन म दक्ष रिहिसे। योग्य वर देख के बिलासा के दाई-ददा ह बिलासा के बिहाव ल बंशी के संग सामाजिक रीति-रिवाज ले कर दिस।

एक दिन बंशी ह बिलासा ल अखाड़ा देखाये बर लेगे रिहिसे। सदाराम तलवारबाजी म माहिर रिहिसे। ओह तलवारबाजी म सब ल पछाड़ के ललकारे बर धर लिस-कोई माई के लाल हे जउन ह मोर संग मुकाबला कर सके। अतना ल सुन के बिलासा ह किहिस-बेटा नही बल्कि बेटी हे जउन ह तोर से मुकाबला कर सकथे। बिलासा ह अपन तलवारबाजी के पैतरा ले सदाराम ल हरा दिस। सदाराम ल हराये के बाद बिलासा के जय-जयकार होय बर धर लिस। बस्ती वाले मन ल बिलासा के बहादुरी उपर गर्व होवत रिहिसे फेर बंशी के दाई-ददा ल अपन बहू के तलवारबाजी ह थोरको नइ सुहावत रिहिस। एती सदाराम ह बिलासा ले तलवारबाजी म हारे के बाद शर्मिंदा रिहिस। ओह बिलासा अउ बंशी ल अपन रद्दा ले हटाये के योजना बनइस। शिकार करे के बहाना सदाराम अपन संगवारी मन संग मिलके बंशी के हत्या करे बर ओला जंगल म लेग जथे। एकर भनक बिलासा ल लगे के बाद घोड़ा म बइठके तलवार धर के जंगल डाहर गिस। उहां जा के बंधक मन ले बंशी ल छोड़वा के घर लइस। एकर बाद बंशी के दाई-ददा (माता-पिता) बहादुर बहू पा के अपन सौभाग्य समझिन।

ऐतिहासिक तथ्य मन ले मिले जानकारी के मुताबिक रतनपुर रियासत के राजा कल्याण साय ह शिकार करे बर अपन सैनिक मन के संग अरपा नदी के तीर गे रिहिसे। जंगली जानवर मन के पीछा करत-करत घनघोर जंगल म चल दिस। ओकर सैनिक मन पीछू डाहर छूटगे। इही बखत राजा के ऊपर जंगली जानवर मन हमला कर दिन। संयोग ले बिलासा अउ बंशी ह चिल्हाटी गाँव ले अरपा तट के अपन बस्ती लहुटत रिहिन। राजा के आवाज ल सुनके बिलासा ह राजा के प्राण ल जंगली जानवर मन ले बचाइस। राजा घायल होगे रिहिसे। घायल अवस्था म बिलासा अउ बंशी ह राजा ल बस्ती म लानिन। बिलासा के पिता जी ह बदइ (वैद्य) रिहिसे। जड़ी-बूटी के बढ़िया जानकार रिहिस। ओह राजा के उपचार करके ओला बने करिस। बिलासा ह राजा के जान (प्राण) बचाये रिहिसे तिही पाए के राजा ह खुश होके अरपा नदी के दुनो किनारा के भुइयाँ (जमीन) ल बिलासा ल दे के पुरस्कृत करिस। एला बिलासा के जागीर के रूप म जाने गिस।

बिलासा के शौर्य अउ पराक्रम के गूंज दिल्ली तक पहुंचगे। अइसे केहे जाथे कि तत्कालीन दिल्ली के शासक मुगल बादशाह जहांगीर ह राजा कल्याण साय ल दिल्ली ओकर योद्धा मन संग आए बर नेवता दिस। दिल्ली म घलो बिलासा ह हर मुकाबला म वीर साबित होइस।

दिल्ली ले आए के बाद बिलासा ह अपन जागीर म आर्थिक, सामजिक अउ शैक्षणिक विकास बर काम करना शुरू कर दिस। सबो क्षेत्र म आत्मनिर्भर बने बर लोगन मन ल प्रेरित करे बर धर लिस। बिलासा के सूझबूझ ले ओकर जागीर के चहुँमुखी विकास होए बर धर लिस। बिलासा के ताकत ल देख के परोसी राजा ह बिलासा के जागीर ऊपर हमला कर दिस। एकाएक आक्रमण के सेती बिलासा ल राजा कल्याण साय करा खबर भेजे बर मौका नइ मिलिस। बिलासा अपन जागीर ल बचाए बर जय महामाया कहिके घोड़ा म चढ़के तलवार ले डट के मुकाबला करिस। बिलासा जब लड़त रिहिसे तब वोह चण्डी के अवतार कस लागे -


रणचण्डी जइसे दिखे बिलासा

लागय देवी के अवतार

बघनीन जइसे दिखै वोह

सनन-सनन चलाए तलवार


दुश्मन के सैनिक मन चारो डाहर ले बिलासा के जागीर ल घेर ले रिहिन हे। उंकर भारी भरकम सेना के आघू म इंकर सेना कमजोर पड़े बर धर लिस। ए लड़ई म बंशी ह पहिली वीरगति प्राप्त करिस। ओकर बाद अपन जागीर के रक्षा खातिर बिलासा अंतिम सांस तक लड़त-लड़त वीरगति ल प्राप्त करिस। जउन जगह बिलासा ह वीरगति प्राप्त करे रिहिसे उही जगह म राजा कल्याण साय ह बिलासा चबूतरा (चौरा) के निर्माण करवइस। प्राण प्रतिष्ठा करवाए के बाद राजा कल्याण साय ह किहिस-बिलासा ह शक्ति के अवतार रिहिसे, ओह शौर्य की प्रतिमूर्ति रिहिसे, कौशल प्रदेश के गौरव रिहिसे। ओह अपन जागीर के रक्षा करत-करत वीरगति ल प्राप्त करिस। इही पाए के बिलासा के जागीर (अरपा नदी के दोनों किनारे की जमीन) ल बिलासा के सुरता म बिलासपुर के नाम ले जाने जाही। बिलासपुर म देवी के रूप म 'बिलासा देवी केवट' के पूजा होही। बिलासा देवी केवट के शौर्य उपर केन्द्रित दुर्गा प्रसाद पारकर ह छत्तीसगढ़ी उपन्यास 'शौर्य की प्रतिमूर्ति बिलासा देवी केवट' लिखे हे जेला छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित प्रकाशक शिक्षादूत (सत्यप्रकाश सिंह) ह प्रकाशित करे हे जेहा बिक्कट लोकप्रिय होगे हे।

बिलासपुर के कुलदेवी 'बिलासा देवी केवट' के नाम ले बिलासा चबूतरा (पचरी घाट, जूना, बिलासपुर), बिलासा गुड़ी (पुलिस प्रशासन द्वारा), बिलासा गुड़ी खेल परिसर एवं पुलिस नियंत्रण कक्ष (पुलिस प्रशासन द्वारा), बिलासा उपवन (द.पू.म. रेलवे द्वारा), बिलासा ताल (जिला कलेक्टर द्वारा), बिलासा कला मंच (डॉ. सोमनाथ यादव द्वारा), बिलासा छात्रावास (लिगिंयाडीह निषाद समाज बिलासपुर द्वारा), बिलासा सभागार (बिलासपुर विश्वविद्यालय द्वारा), बिलासा विद्या मंदिर (माता बिलासा शिक्षण संस्थान द्वारा), बिलासा ब्लड बैंक (रावतपुरा सरकार द्वारा), बिलासा चौक (नगर निगम द्वारा), बिलासा वार्ड (नगर निगम द्वारा), शासकीय बिलासा कन्या स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय बिलासपुर (छत्तीसगढ़ शासन द्वारा), बिलासा देवी केवट पुरस्कार (छत्तीसगढ़ शासन द्वारा), बिलासा देवी केवट हवाई अड्डा बिलासपुर-चकरभांठा (सन् 2021 छत्तीसगढ़ शासन द्वारा) अउ बिलासा साहित्य संगीत धारा नाम धराये हे।

छत्तीसगढ़ ल बिलासा देवी केवट के शौर्य उपर बिक्कट गर्व हे।

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