Sunday 3 April 2022

छत्तीसगढ़ी भाषा अउ देवनागरी लिपि

 हमन अपन लइका मन ला शुरु ले हिंदी अउ अंग्रेजी माध्यम के स्कूल मा पढ़ावत हन।आज के जमाना मा 💯प्रतिशत नोनी बाबू कम से कम अक्षर ज्ञान अउ प्राथमिक शिक्षा पावत हें। अउ उन लइका मन ला जेन मन ला शुद्ध भाषाई अउ शाब्दिक ज्ञान दे जावत हे उन मन ला छत्तीसगढ़ी के नाँव मा शब्द मन ला विकृत करे के बोझ डालना कतेक जायज हे।बल्कि नवा पीढ़ी ला तो सहूलियत ही होही कि वो स्कूल ला स्कूल ही लिखही। इन ला इस्कूल लिखवाय बर काबर मरे जावत हे कुछ विद्वान मन। 


छत्तीसगढ़ी ला भाषा के रूप मा स्वीकार करत समय राजभाषा विधेयक मा जब देवनागरी लिपि ला स्वीकार करे गे हे तो वोकर प्रकृति ला स्वीकार करे बर काबर हिचक हे, समझ से परे हे। ये अधूरा ज्ञान के लक्षण लागथे मोला। 

छत्तीसगढ़ी के मौलिक /प्रचलित उच्चारण जउन ला आम जन बोलथे उन मा समय के साथ सुधार आवत हे जइसे जइसे शिक्षा के प्रसार होवत हे। सोशल मीडिया अउ वैश्विक संपर्क के कारण आदमी  अप्पड़ नइ रहि गेहे, जागरूकता आय हे, बदलाव ला स्वीकार करत हे। 

मोला सुरता आथे कि आज ले 40 साल पहिली टेलीविजन आय रहिस तब काकरो मुँह ले टेलीविजन नइ कहावय ठीक से। टेलीबीजा, टेलबिजन न जाने का - का कहै। कतको झन सकुचाय बोले बर ।काबर ठीक से उच्चारण नइ होवय। फेर आज हर आदमी टेलीविजन ही कहिथे। तब का हमन वोला छत्तीसगढ़ी बनाय बर टेलिबिजन लिखन? 


का हमन हमर लोग लइका ला तोतराय बर सिखोवन? 


देश दुनिया बहुत आगू बढ़ गेहे।अगर संग चलना हे तो देवनागरी लिपि के 52 अक्षर के साथ - साथ बहुत अकन ध्वनि मन ला घलो स्वीकार करे बर पड़ही, जउन ला अभी लिपि के रूप मा देवनागरी मा नइ पढ़ाय जाय परंतु मानक भाषा मन मा विदेशी शब्द के सही उच्चारण बर मान्य हे जइसे अरबी अँग्रेज़ी के कुछ ध्वनि। 


छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़िया के कल्याण करना हे तो सिर्फ मंच मा बइठ के फूल माला पहनइया विद्वान मन के जघा मा छत्तीसगढ़ी के विकास बर समर्पित व्यक्तित्व मन ला चिन्हे बर लागही।वरना रातभर गाड़ी रेंगे कुकदा के कुकदा।सिर्फ समिति गठित करे ले का होही, समिति काम करत भी तो दिखै।बुद्धिविलासिता के बजाय छत्तीसगढ़ी भाषा बर सरलग माहौल बनावय। क्षेत्रीय साहित्यकार मन ले चर्चा करै करै। इहाँ तो जउन सीट मा बइठत हे तउन अपन मनमर्जी चलाना चाहत हे तब का उम्मीद करबे। 


जब छत्तीसगढ़ी राजभाषा संशोधन विधेयक मा देवनागरी के 52 अक्षर स्वीकृति हे, तो कोनों ला किन्तु परन्तु करे के अधिकार नइ हे, आगू ही बढ़ना चाही फेर घूंचपेल चलत हे।सीट मा बइठत हे तिही ला नइ मालूम कि काबर बइठे हे? 


सरकार उपर साहित्यकार मन के दबाव नइ दिखत हे। छत्तीसगढ़ी छत्तीसगढ़ अउ छत्तिसगढ़िया के बात करइया हमर ये सरकार छत्तीसगढ़ी के कतका हित करत हे या हित मा ध्यान देवत हे, तटस्थ मूल्यांकन होना चाही। साहित्यिक संस्था मन ला आम आदमी मा भाषायी जागरूकता बर लगातार काम करे के जरूरत हे। 

छत्तीसगढ़ मा छंद के छ परिवार एक मिशन के रूप मा काम करत हे। संपूर्ण व्यवहार उहाँ छत्तीसगढ़ी मा होथे, अउ कोई अड़चन नइ हे। लोकाक्षर समूह ला चलत करीब दू साल होगे, जउन लगातार उम्मीद अउ ऊर्जा के संचार करत हे। 

सोशल मीडिया छत्तीसगढ़ी बर संजीवनी होगे हे।लिखने पढ़ने वाले मन के संख्या करोड़ मा पहुंच गे होही। चेतना विश्वास अउ इच्छाशक्ति के कमी तो हमरे बीच दिखथे। छत्तीसगढ़ी छत्तीसगढ़ के राजभाषा के दर्जा पाके प्रथम उत्तराधिकार रखथे फेर ये पूर्णतः राजनीतिक इच्छाशक्ति अउ जनदबाव के बिना सम्भव नइ हे।


फिलहाल मैं ये बात के समर्थक आंव कि छत्तीसगढ़ी ला देवनागरी लिपि के मानक अउ स्वीकृत स्वरूप मा पढ़े लिखे अउ बोले के उदीम किये जाय। 



बलराम चंद्राकर

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