Sunday 3 April 2022

छत्तीसगढ़ी भाषा अउ देवनागरी लिपि

 भाषा के उपयोग वाचिक अउ लिखित दूनो रूप म होथे। वाचिक रूप म मेल जोल के बखत एक दूसर ले मन के बात कहे बर भाषा के जरूरत पड़थे। कभू-कभू इही म इशारा ले गोठबात घलो हो जथे। जेन न के बरोबर होथे। छत्तीसगढ़ शिक्षा के दृष्टि ले बहुतेच पिछड़े क्षेत्र रेहे हे अउ अभियो दुर्गम क्षेत्र म शिक्षा के हाल संतोषजनक नइ हे। इही एक बड़े कारण आय कि इहाँ के भाषा ओतका समृद्ध नइ हो पाय हे। चाहे हम हिंदी के बात लन चाहे छत्तीसगढ़ी के। दूनो के हाल एके हे। 

       छत्तीसगढ़ी के देवनागरी लिपि हे, अउ देवनागरी लिपि म 52 वर्ण हे। अइसन म छत्तीसगढ़ी म 52 वर्ण के प्रयोग होनच चाही। कम पढ़े-लिखे अउ अप्पढ़ मनखे गोठबात म कई ठन शब्द के सही उच्चारण नइ कर पावँय। एकर कतको कारण हो सकथे। देखे म मिलथे कि छत्तीसगढ़िया मनखे अधिकारी कर्मचारी अउ पढ़े लिखे मनखे संग गोठियाय म हिचकथे। कुछ झन मन उँकर मन ले अइसे गोठियाथें कि उँकर भाषा न हिंदी म राहय अउ न छत्तीसगढ़ी च म। अपने अपन रहे म नकल करथे। अधिकारी कर्मचारी के बोले शब्द मन ल उच्चारथें अउ बोले के नकल मारथें, एक्टिंग करथें। इही नकल अउ कठिन शब्द के उच्चारण नइ बने ले शब्द मन उच्चारण बदल जथे। इही बदले शब्द ल भाषाविद् मन अपभ्रंश के नाँव देथें। त्रिवेणी- तिरबेनी, त्रिशूल- तिरशूल/तिरछूल, प्रदेश- परदेश, .....। ए अपभ्रंश ल कुछ बुधियार मन जनमानस के शब्द आय मान के लोकव्यवहार ले साहित्य म लाय के उदिम करे धर लिन। एकरे ले छत्तीसगढ़ी म अपभ्रंश शब्द मन बाढ़गे अउ छत्तीसगढ़ी ल संवारे के जगा बिगाड़े म लगगे।  छत्तीसगढ़ी उन्नत नइ हो पाइस अउ विवाद के पिकी फूटे धर लिस। इही क्रम म आज ए विमर्श चलत हे। 

       शिक्षा के स्तर छत्तीसगढ़ म बढ़े लगे हे। लोगन के मेल-जोल पहिली ले  सहज होवत हे। जेकर से उच्चारण अउ कार्यव्यवहार म सुधार होय हे। सबो के उच्चारण बने होय धर लग गेहे। अब गोठबात म हिचकई अउ शरमई नइ दिखय। एकर ले भाषा के सुधार तो दिखते हे, भाषा समृद्ध होही एमा कोनो संदेह नइ हे। 

      भाषा के लिखित रूप साहित्य अउ शासकीय कामकाज म होथे। छत्तीसगढ़ी भाषा के लिपि देवनागरी हे, त छत्तीसगढ़ी म पूरा 52 वर्ण के उपयोग होना च चाही। कुछ बुधियार मन के कहना हे आने भाषा के शब्द ल छत्तीसगढ़ी म उपयोग करे ले छत्तीसगढ़ी भाषा समृद्ध होही, शब्द भंडार बढ़ही। सही बात आय। फेर लिपि के अनुरूप आने भाषा के शब्द ल 52 वर्ण के मुताबिक ही लिखे ल पड़ही। वो शब्द के मूल भाषा के लिपि तो छत्तीसगढ़ी म लिखे नइ जा सकय। 

       वाचिक भाषा के शब्द गोठबात तक सीमित रहिथे। समेटा जथे। लिखित तो भाषा ल सुदृढ़ अउ विस्तार देथे। भाषा के लिखित रूप पढ़े-लिखे म उपयोग होथे। एकर सेती अपभ्रंश के शब्द लिखित भाषा म होना च नइ चाही। कहानी म पात्र के संवाद बर अपभ्रंश के प्रयोग करे जा सकत हे। लेकिन संवाद के छोड़ आने जगा अपभ्रंश तो उपयोग होना च नइ चाही।

पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी बलौदाबाजार

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