. *छत्तीसगढ़ी व्याकरण : विशेषण*
( 1 )
जेन शब्द ले *संज्ञा* या *सर्वनाम* के *आकार* , *अवस्था, रूप, गुण, स्वभाव* अउ *स्थिति* के आधार म विशेषता के बोध होथे ओला *विशेषण* कहिथें। यथा-
अ) *संख्या*: इहाँ *चार* लड़की-मन बइठे रहिन।
ब) *आकार*: मोहन के हाथ म *लम्बा* छड़ी हावय।
स) *अवस्था*: गीता *अड़बड़ेच्च* बिमार हे/आय।
ड) *रूप*: मुस्कान *सुग्घर* लड़की आय।
इ) *गुण*: एहा *पुराना* पेन्ट आय।
फ) *स्वभाव*: सरला दीदी *मिलनसार* लेखिका आय।
क) *स्थिति*: राधा ह ओखर *प्यारी* बेटी आय।
*विशेष्य*
जेन शब्द के विशेषता बताय जाथे, ओला *विशेष्य* कहिथें। जइसे-
*मुस्कान* सुग्घर लड़की आय।
इहाँ *सुग्घर* शब्द द्वारा *मुस्कान* के विशेषता बताये जात हे; एखरे बर मुस्कान *विशेष्य* हे।
*प्रविशेषण*
कभी-कभी विशेषण के घलो विशेषता बताय ला परथे। जेन शब्द ले विशेषण के विशेषता बताये जाथे; उन शब्द ला *प्रविशेषण* कहिथें। जइसे-
मुस्कान *अड़बड़ेच्च* सुग्घर लड़की आय।
इहाँ *अड़बड़/अड़बड़ेच्च* शब्द विशेषण *सुग्घर* के विशेषता बतावत हे। एखरे सेती *अड़बड़ेच्च* प्रविशेषण होही अउ *सुग्घर* विशेषण होही।
नीचे दिये तीनों वाक्य ला देखव तो बात ह फरिया जाही।-
अ) वोह लड़की आय।( सामान्य वाक्य )
ब) वोह *सुग्घर* लड़की आय।( विशेषण सहित वाक्य )
स) वोह *बहुतेच्च* सुग्घर लड़की आय।( प्रविशेषण के साथ वाक्य )
जेन वाक्य म *प्रविशेषण* रइही ओमा *विशेषण* के रहना अनिवार्य हे।
( 2 )
*विशेषण के भेद*
विशेषण मूलतः पाँच प्रकार के होथे-
1) सार्वनामिक विशेषण
2) गुणवाचक विशेषण
3) संख्यावाचक विशेषण
4) परिमाणबोधक विशेषण
5) तुलनात्मक विशेषण
. *1* . *सार्वनामिक विशेषण*
*सर्वनाम* के प्रयोग विशेषण के रूप म घलो होथे- बल्कि ये कहना सही होही कि सर्वनाम के विशेषण के रूप म प्रयोग अक्सर वाक्य बनाय म होत रइथे- एही ला *सार्वनामिक विशेषण* कहिथें।
नोट- अब एक ठिन नवा बात आ गे। ले-दे के सर्वनाम ला जाने-बूझे रहेंन अउ अब नावा समस्या आगे- *सार्वनामिक विशेषण* के रूप मा!..... सचमुच *सर्वनाम* अउ *सार्वनामिक विशेषण* के पहिचान करे म स्कूल म भारि चूक होथे- पढ़त-लिखत आदमी-मन घलो भोरहा म पर जाथन!- एला थोरकुन बारिक ले समझन।-
अ) *मौलिक सार्वनामिक विशेषण* -
जेन सर्वनाम बिना रूपान्तर के याने मौलिक रूप म संज्ञा के पहिली आ के ओखर विशेषता बताथे- ओला *मौलिक सार्वनामिक विशेषण* कहिथन।
*उदाहरण* -
# *येह* मोर किताब आय।( *यह* मेरा किताब है।)
यहाँ *येह ( यह )* किताब के विशेषता बतावत हे कि ये किताब मोरेच्च आय, कोन्हों दूसर के नि होय।
अब एक ठिन अउ उदाहरण ला देखव-
# *येह/वोह* घर श्याम के आय।( यह घर श्याम का है। )
ये उदाहरण म येह/वोह शब्द श्याम के घर के विशेषता बतावत हे कि घर श्याम के ही आय आन कोन्हों के नि होय।
ब) *यौगिक सार्वनामिक विशेषण* -
जब सर्वनाम रूपान्तरित होके संज्ञा शब्द के विशेषता बताथे तब ओला *सार्वनामिक विशेषण* कहिथन। उदाहरण-
*कइसन* आदमी आय? ( *कैसा* आदमी है? )
इहाँ *कइसन ( कैसा )* के प्रयोग विशेषण के रूप म होय हावय।एखर मूल रूप *का /कैसा* हवय। एखरे सेती ये वाक्य म *कइसन ( कैसा )* यौगिक सार्वनामिक विशेषण कहे जाही।
अब एक ठिन अउ उदाहरण ला देखव-
*अइसन* कइसे काम चलही?( ऐसे कैसे काम चलेगा?)
ये उदाहरण म *अइसन ( ऐसा*) के प्रयोग विशेषण के रूप म होय हे। अतएव परिवर्तित रूप ला *यौगिक सार्वनामिक* *विशेषण* कहिबो।.
( 3 )
2.*गुणवाचक विशेषण*
जेन शब्द *संज्ञा* या *सर्वनाम* के गुण-धर्म, स्वभाव के बोध कराथे। ओला *गुणवाचक विशेषण* कहिथें। जइसे-
वोह *झूठर्रा* मइनखे आय। ( वह व्यक्ति *झूठा* है। ) - ये उदाहरण म व्यक्ति के गुण ( झूठर्रा ) के बोध करावत हे। एखरे सेती ये वाक्य म *झूठर्रा* गुण बोधक- गुणवाचक विशेषण आय।
*गुणवाचक विशेषण* कई प्रकार के हो सकत हे।एखर विस्तार ले विवरण नीचे लिखत हौं-
अ) *काल बोधक-* नवा, नया, पुराना, प्राचीन।
" रामायण *प्राचीन* ग्रंथ आय। एला विश्व के सबसे प्राचीन ग्रंथ माने गे हे।अधिकांश इतिहासकार मन के अभिमत हे एखर संकलन पहली बार *1500 ईसा पूर्व* ( अर्थात् 3600 वर्ष पूर्व) करे गय रहिस। एमा 24000 पद हे अउ 07 कांड म विभाजित हे।ये महाकाव्य म आदर्श व्यक्ति के रूप म प्रस्तुत *राम* के कहानी के माध्यम ले मानव जाति के चार उद्देश्य ( पुरूषार्थ ) - *धर्म, अर्थ, काम,* अउ *मोक्ष* ला पाय के विषय म निर्देश दिये गे हे। "
उपरोक्त पैरा म *प्राचीन* शब्द *काल बोधक* ( गुणवाचक ) सर्वनाम हे।( ये उदाहरण म प्रस्तुत *कहानी के सारांश* आप-मन ला जरूर बने लागिस होही! )
ब) *रंग बोधक-* लाली, पिंयर,करिया, मसरंग, हरियर, सादा आदि।
' परसा के फूल *लाली* रंग के होथे। '
स) *दशा बोधक*- मोटलू, दूबर,बुढ़वा, गीला, सूखा, निरोगिल ( निरोगी ) आदि।
' ये टूरा *मोटलू* आय। '
द) *गुण बोधक*- खीक, कपटी, झूठर्रा, पापी, सिधवा, सोज( सरल ), अमसुर, रतनपुरिहा, बने-बने आदि।
' गंगा नहाय ले का ओ *पापी* ला मुक्ति मिल जाही? '
इ) *आकार बोधक* - गोल, तिकोना, लम्बा, चौड़ा, पातर आदि।
' तुमा अड़बड़ *मोटा* आय। ' ( लौकी बहुत मोटा है। )
( 4 )
3. *संख्यावाचक विशेषण*
जेन शब्द *संज्ञा* या *सर्वनाम* के संख्या के बोध कराथे; ओला *संख्यावाचक विशेषण* कहे जाथे। ये दू प्रकार के होथे-
अ) *निश्चित संख्यावाचक* -एमा निश्चित संख्या के बोध होथे। जइसे- दस झन टूरा, पचास रूपिया।
प्रयोग के आधार म एला चार भाग म विभाजित करे गे हे-
# *गणना वाचक* - एक, दू, तीन, चार आदि।
# *क्रम वाचक* - पहिला, दसवाँ, बीसवाँ आदि।
# *आवृति वाचक* - तिगुना, चौगुना आदि।
# *समुदाय वाचक* - चारों, तीनों, आठों आदि।
ब) *अनिश्चय संख्यावाचक* -
एमा अनिश्चित संख्या के बोध होथे। जइसे-
' *कई* लोगन मन आय रहिन। '
' *कुछ* टूरा मन भाग गइन! '
4. *परिमाणबोधक विशेषण*
जेन *संज्ञा* या *सर्वनाम* शब्द ले परिमाण ( मात्रा ) के बोध होथे, ओला *परिमाणबोधक विशेषण* कहे जाथे।
एखर दू भेद हे-
अ) *निश्चित परिमाणबोधक* -
*दस* किलो घीव/घी,
*पाँच* किलो तेल
ब) *अनिश्चित परिमाणबोधक*-
*बहुत* घीव/घी,
*थोरकन* गोरस ( थोड़ा दूध ).
( 5 )
*5. तुलनात्मक विशेषण*
विशेषण के तुलनावस्था ला *तुलनात्मक विशेषण* कहे जाथे। अर्थात जब दू या दू ले जादा वस्तु या भाव के गुण, मान आदि के परस्पर तुलना किये जाथे तब ओला *तुलनात्मक विशेषण* कहे जाथे। अइसन विशेषण के तीन अवस्था होथे-
अ) *मूलावस्था*
ब) *उत्तरावस्था*
स) *उत्तमावस्था*
अ) *मूलावस्था* - मूलावस्था म विशेषण बगैर काकरो ले तुलना किये हुए अपन मूल रूप म रहिथे। एमा केवल एक व्यक्ति, वस्तु आदि के गुण-दोष प्रगट होथे। जइसे-
# मुस्कान *सुघ्घर* आय/हे। ( मुस्कान *सुन्दर* है। )
ब) *उत्तरावस्था* - जब दू व्यक्ति या वस्तु मन के बीच अधिकता या न्यूनता के तुलना किये जाथे तब ओला विशेषण के *उत्तरावस्था* कहे जाथे। जइसे-
# मुस्कान पायल ले *जादा सुग्घर* हे/आय।
स) *उत्तमावस्था* - जब दू ले जादा व्यक्ति या वस्तु के बीच तुलना किये जाथे अउ ओमे ले एक के *श्रेष्ठता* या फेर *निम्नता* प्रतिपादित किये जाथे तब ओला विशेषण के *उत्तमावस्था* कहे जाथे। जइसे-
# मुस्कान अपन स्कूल के सबो लड़की मन ले *बहुतेच्च सुग्घर* आय/हे।
*भाषा मूलावस्था उत्तरावस्था उत्तमावस्था*
*अंग्रेजी* Good Better Best
*हिन्दी* अच्छा बहुत अच्छा बहुत ही अच्छा
*छत्तीसगढ़ी* अच्छा बहुत अच्छा बहुतेच्च अच्छा
*अंग्रेजी* Much More Most
*हिन्दी* अधिक बहुत अधिक अधिकतम
*छत्तीस* जादा बहुत जादा बहुतेच्च जादा
.
*तुलनात्मक विश्लेषण : अंग्रेजी, हिन्दी, छत्तीसगढ़ी अउ संस्कृत*
*अंग्रेजी* अउ *हिन्दी* दुनों भारोपीय भाषा परिवार के समृद्ध भाषा आय। भारोपीय = *भा* (रत)+(यू) *रोपिय*। एला *प्राक् आर्य भाषा परिवार* घलो कहे जाथे। एखर उत्पत्तिकाल 2900 ईसा पूर्व से 2400 ईसा पूर्व माने जाथे। 2400 ईसा पूर्व एखर दू शाखा विकसित होइस- 1. *एनाटोलियन* 2. *भारोपीय* । कालान्तर म एनाटोलियन बूड़ गे अउ भारोपिय बच गे। एही भारोपीय भाषा परिवार के प्राचीन भाषा *लौकिक संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, फ्रांसीसी, अवेस्ता, ग्रीक, लैटिन* आय; जबकि आधुनिक भाषा म *अंग्रेजी, रूसी, जर्मन, स्पेनी, फ्रांसीसी, पुर्तगाली, इतावली, फारसी, हिन्दी, बांग्ला, गुजराती, मराठी, असमी* आदि सैकड़ों बोली अउ भाषा आय जेमा *छत्तीसगढ़ी* घलो शामिल हे। एही भाषा परिवार पूरा विश्व म राज करत हे। 90% ले जादा अनुसंधान, नवाचार आदि एही भाषा मन म होवत हे।
व्याकरण के अनेक सिद्धान्त/ नियम जननी भाषा *संस्कृत* ले उद्भूत हे अउ *अंग्रेजी* ओखर अनुसरण करथे ओमा *तुलनात्मक विशेषण* घलो शामिल हे।
संस्कृत म तुलनात्मक विशेषण के तीन रूप होथे- मूलावस्था, उत्तरावस्था अउ उत्तमावस्था। जइसे-
अधिक अधिकतर अधिकतम
गुरु गुरुतर गुरुतम
महत् महत्तर महत्तम
लघु लघुत्तर लघुत्तम
श्रेष्ठ श्रेष्ठतर श्रेष्ठतम
अंग्रेजी म घलाव तीन रूप होथे-
Positive, Comparative अउ Superlative
Old Older Oldest
Good Better Best
Large Larger Largest
Ugly Uglier Ugliest
संस्कृत अउ अंग्रेजी दुनों म *शब्द रूप* परिवर्तित होवत हे। *संस्कृत* म *तर* अउ *तम* प्रत्यय लगाके तुलना किये जाथे जबकि अंग्रेजी म *er* अउ *est* प्रत्यय लगाके तुलना किये जाथे।
हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी म अक्सर *शब्द रूप* नि बदले बल्कि ओमा शब्द के आघू नवा शब्द जोड़े जाथे।जइसे-
अच्छा बहुत अच्छा बहुत ही अच्छा(हिन्दी)
अच्छा बहुत अच्छा बहुतेच्च अच्छा(छत्तीसगढ़ी)
हिन्दी म घलो *तर* अउ *तम* लगाके विशेषण शब्द बनाए गय हे-
सुन्दर सुन्दरतर सुन्दरतम
सुग्घर बहुत सुग्घर बहुतेच्च सुग्घर(छत्ती)
फेर *सुन्दरतर* के प्रयोग ला आमजन स्वीकार नि करिस अउ ओखर स्थान म *बहुत सुन्दर* के उपयोग करथे। अइसने *सुन्दरतम* के प्रयोग आम बोलचाल म नि हे बल्कि केवल लेखन म हे। आमजन *बहुत ही सुन्दर* या *सबसे ज्यादा सुन्दर* शब्द के प्रयोग करथे।
एही व्याकरण रूप के भिन्नता आन-आन भाषा म देखे ला मिलथे।
*विनोद कुमार वर्मा*
कहानीकार, समीक्षक, संपादक
मो. 98263-40331
ईमेल. vinodverma8070@gmail.com
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