Saturday 23 April 2022

कहानी-करमजली**

 **कहानी-करमजली**

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      एड़हा कबे त बेड़हा रेंगय, सीधा बात के उलटा जवाब। जऊन मेर रही हाँव-हाँव, काँव-काँव। नानपन ले अइसने हे।  कोनो ल कभू सीधा मुँह बात नइ करीस। पूस के महीना म जनम लीस त नाव रखीन पुसउतीन!  जनमते ले पूस के ठंडी धर लीस त फेर कभू देंह नइ पइस। जइसने बाढ़त गइस तइसने चिड़चिड़ावत रहय। कोनो आवाज दे; पूसउतीन , त कहे; का पुसउतीन, का होगे पुसउतीन ल, काय देत ह पुसउतीन ल, जेला देखबे ते पुसउतीन कहत रहीं। अब तो लईका मन घलाव ओला जंगवाय बर धर लें। मुठा भर के ओकर शरीर ल देख के कोनो टेटकी कहंय, त कोनो ओकर टेंगराही देख के टेंगरहीन कहंय, त कोनो झगरहीन कहंय, जइसने ओकर काम तइसने तइसने ओकर नाम। ओकर दाई हर समझाय सब ले बने हिलमिल के रहे कर बेटी; सब ले बढ़िया गोठ बात करे कर। अपन दाई बर कउआ जाय। जा तो ओमन ल समझाबे मोला कछू कछू कहत रथें तेमन ल। दाई हर कहे; ये करमजली हर रे! बने सीखाबे त उलटा कथे। ओकर दाई ल ओकर बहुते फिकर होवय।

     जइसने-जइसने बाढ़त रहय वइसने वइसने अउ लड़ंकनीन होवत रहय। स्कूल गइस त जइसने गइस वइसने वापस,  स्कूल म घलाव सब ल लड़ झगड़ के आगे घर म आके बस्ता ल फेंक दीस मोला नइ पढ़ना हे मैं नइ जांव स्कूल! भाई- बहिनी मन ल बोलथे जावा तुमन बड़का पुलिस-कलेक्टर बनिहा। अब गाँव म तो अइसे हे या तो हाथ म स्लेट बत्ती कलम दवात धर नइ तो छेना थाप। पुसउतीन ल छेना थापे जादा भा गे। छेना थापे म ओकर कोनो मुकाबला नइ कर सकंय। ओकर दाई हर कहय कम से कम अपन नाव-गाँव लिखे के पुरता तो पढ़ दारतीस, ये करमजली हर कइसे करही येकर का होही मोर समझ म नइ आय। भाई- बहिनी मन के शादी-बिहाव होगे। बहिनी मन अपन ससुराल जल दिन, घर म भौजाई मन के डेरा होगे। भतीज- भतीजी होके सब रेंगे ल धर लीन अउ बाड़ के स्कुल जाय ल शुरु कर दीन। अब तो संग जंवरिहा सब अपन अपन घर द्वार अपन अपन काम धंधा म लगे रहंय। गाँव म नावा नावा बहु धिया, नावा नावा लोग लइका मन होगे रहंय ओकरे संग म अब ओकर पुसउतीन नाव घलाव नन्दा गय रहय अब तो सब ओला करमजली ही कहंय। अब कोनो करमजली कइके हांक पारय घलव त काये कहय। 

    माँ-बाप के जइसे-जइसे उमर होवत जात रहय, ओमन ल करमजली के चिंता सतावत रहय, हमर बाद येकर काय होही; कोन येला पूछही येकर मुँह देख के। दाई हर ओकर ददा ल कथे, येकरो बर कोनो कती देख के येकरो बर-बिहाव कर देतेन, ददा हर कथे चिंता तो महुं ल हावय महुं वही सोंचत हंव जे तैं सोंचत हस पर येकर अनमिठात रुप रंग अउ अनसुहात गोठ बात कोन बिहाव करही। करमजली के दाई हर कथे;  कोनो मेर दूजहा-मूजहा दिखतीस तभो ले बन जातीस।  पता चलथे गाँव के तीरे म एक दू गाँव के आड़ म एक ठन गाँव रहय तिहें के एक झन बने किसान हे ओहर दू ठन बिहाव कर दारे हे फेर एको झन लोग लइका नइ हे, ओहर तीसरइया खोजत हे। अँधरा ल आँखी नीक, करमजली के दाई-ददा ल लागीस के एही मौका बने हे, तुरंत खबर भेज के ओमन ल बुलवा दारिन, चार झन सियान मन ल जोर के सब कुछ तय होगे आनन-फानन चारे दिन म करमजली अपन ससुराल म। 

         भरे-पूरे घरद्वार कछू के कमी नहीं। कमिया-कमेलीन, नौकर-चाकर, जउन खाना हे जइसे पहिनना ओढ़ना हे, जइसे मन परिस तइसे करे बर सब छुट हे। पति अउ दूनो सउत ल तो ओकर से येही आस हे कि ओकर एक दू ठन लोग लईका हो जाय, घर ल वारिस मिल जाय बाकि ओला जइसे रहना हे रहय का फरक परत हे। करमजली घलाव खुश। अव्वल तो ओला इहां कोनो करमजली नइ कहंय, दूसर जउन मन परे तउन खा पी, रंग-रंग के नावा-नावा लुगरा, पोलका, आनी-बानी के गहना गुठा सब पहिरे बर मिलत रहय। अब तो मइके म घलाव ओकर पूछ पूछारी बढ़ गे। मइके ले ददा हर भाई भतीजा मन संग ओला लेवाय बर आय हे, ससुराल म मइके वाला मन के मान सम्मान तो होईस ससुराल ले करमजली के बिदाई घलाव बड़ा मान-सम्मान के साथ होईस। बड़की सउत हर ओकर हाथ म पइसा देके कथे ये ले अपन भाई-भतीज मन बर कछु ले देबे, सब ल दू दी चार चार पैसा दे देबे अउ जल्दी आ जाबे। करमजली अपन सउत के अतका बात ल सुन के गदगद हो जाथे। मइके जाथे उहाँ सब ओकर रस्ता देखत रहंय। मइके म ये दारी बड़ मान सम्मान मिलीस। गाँव भर ओकर पूछ पूछारी बढ़ गे। कइसे पंद्रह दिन हर कट गे कछु पता नइ चलीस अउ ओकर बिदाई के तियारी शुरु होगे। खुरमी ठेठरी पपची अइरसा गुझिया लड्डू अउ किसिम किसिम के बनत रहय। करमजली आज अपन करम ल संहरावत रहय जतका के गुने नइ रहीस ततका ओला मान-सम्मान मिलत है। ससुराल ले लेवाल आगे   त ओकर दूसर बिदाई घलव होगे। 

       जइसे-तइसे तीन बछर होगे, तीज-तिहार म आना-जाना लगे रहीस अउ दिन हर कइसे निकल गे पता नइ चलीस। येती ओकर सउत मन दिन गिनत रहंय, तीन बछर होगे अभी ले कछू नइ दिखय कइसे! येती करमजली के दाई ददा ल घलाव फिकर होवत रहय, तीन बछर होगे कइसे अभी तक कछू पता नइ चलीस, लोग लइका खातिर ले गे हें, अतक मया दुलार म राखे हें, नइ होही त का होही कहिके चिंता होवत रहय। एक कति ससुराल वाला मन निराश होवत रहंय त एक कति मइके वाला मन ल चिंता होवत रहय। अब धीरे-धीरे ससुराल वाला मन के ब्यवहार घलाव हर ओकर प्रति बदलत रहय। पहिली जउन बात म मया दुलार दिखय वही बात म अब सब रुक्खा रुक्खा लागय।

      करमजली के दाई ल बहुत चिंता होवत रहय, महतारी के मया बेटी के बसे बसाय घर हर ऊजर जाही अइसे सोंच के मन बईठत जात रहय। बेटी ल बने पूजा पाठ करे, सोला सोमवार करे बर कथे। कईनो झन बईगा गुनिया के नाव लेथें जा के बने देखवा सुनवा कथें त कोनों बैद डॉक्टर ल बताय बर कथें। सब करवा दारथें। 

      अब सोला सोमवार के महिमा के बैद डॉक्टर के प्रभाव या कि बईगा गुनिया के किरपा जो भी हो अब्बड़ दिन म सही फेर भगवान चिनहीस करमजली ल। एक बार फेर सब हाथों हाथ लेवत रहंय, पूछ परख बढ़ गे। नव महीना तो सुग्घर कट गे, घर म खुशी के ठिकाना नइ रहय। दिन आगे सब बेटा के आस लगाय रहें फेर करमजली के फूटहा करम येहू मेर नइ छोंड़िस। सब ओला अइसे सुनावत रहंय जइसे ओहर अपन लईका ल जानबूझ के अपन पेट भीतर मार दारिस। करमजली अपन दाई के संग म मईके आगे, ये दारी के अइस त इहें के होगे र गे। ससुराल ले कोई बुलावा नइ अइस। अब फिर वही पहिली जइसे हाल होगे बल्कि पहिली से भी बदतर। अब तो दाई ददा घलव सियान होगे रहंय बुढा़पा के शरीर सम्हलत नइ रहय त बेटी ल काय सम्हालतीन लेकिन बेटी के मया छोंड़ भी नइ सकय। भाई-भौजी के सियानी फेर भाई भौजी के अपन बेटा- बहु नाती-पोता सब भरे-पूरे। दूनों बेरा चाय- रोटी, खाना-पीना मिल जावत रहय ओही म खुश रहय।

       धीरे-धीरे समय बीतत गइस करमजली के ददा स्वर्ग सिधार गे त ओकर दाई घलाव खटिया धर लीस अउ एक दिन ओहू स्वर्ग सिधार गे। दाई-ददा के गए ले करमजली अधर होगे। अब फिर वही चिड़चिड़ापन। जइसे-जइसे ओहर चिड़चिडा़वय लईका मन अउ जंगवाय। भिनसरहा ले उठ के गाय गरुवा मन ल देखना, कोठा के गोबर कचरा साफ करना, खोल गली बहारना रोज के बूता रहय। सब ल बेरा ऊअत ले सुतय देखे त कलल - कलल करे लागथे। ओकर भौजी कहय ये कलकलही हर बिहान ले कलल-कलल शुरु कर देथे, ये करमजली ल न अपन नींद आवय न दूसर ल सूतन दे। कलकलही कहत सुनय तंह ले आगी बर जाय   हमन कलकलही अन, तुमन सरोत्तर अ, हमन करमजली अन, तुंहर भाग हर फहरावत हे। रात भर नींद नइ आवय, बिहान ले बहारना-बटोरना, ग्यारह- बारह बजय तंह ले मूड़ ल धर ले पीरावत हे कह के, ओकर-ओकर ले दवाई पूछय! कोनो कहय जाना ओदे कनेर हर फरे हे दू ठन टोर के खा ले, कोनो कहय धतुरा फर ल खा के सूत जा। सुन के जंगमान हो जाय, दवई पूछबे त रोगहा मन धतुरा फर, कनेर फर ल बताथें, जावा तुमन खा लेवा कनेर फर, धतुरा फर ल, देखिहा रे रोगहा हो तुंहरो समय आही मोर ले अउ बित्तर होइहा अइसने-अइसने कथें त मोर एड़ी के रीस तरुआ म चढ़ जाथे। गाँव म कोनो ल नइ पतियाय सिर्फ चंदु ( चंद्रशेखर ) भर ल पतियाय जब कछू जरुरत होय रेंगे-रेंगे ओकरे करा जावय। कभू बोट डारे नइ जावय, कहय हमन ल काय मिलही अपन-अपन घर ल भरहीं रोगहा मन, पाहीं त धरहीं संदुक-बक्शा म तारा-कुची म, चल बोट डारे कथें, हमन नइ जात हन। 

      एक दिन करमजली के नाव ले के घर म बने लड़ई-झगड़ा होगे त ओकर भाई हर करमजली ल कइ दिस तैं जा तो कोनो कति ए मेर ले टर दे। करमजली ल भाई के बात हर अतेक लाग दिस एकर पहिली ओकर भाई हर ओला कभू कछू नइ कहे रहीस, दाई-ददा के जाय के बाद एक झन ओही तो रहीस जउन ओकर पक्ष ले के बोलय आज ओहू कइ दिस। ओहर ओमेर ल चल दिस, थोड़े देर बाद झगड़ा शांत होगे अउ सब अपन-अपन काम धंधा म लग गइन। मझनिया बेरा जब खाय के बेरा होइस जब सब खाय बर बइठीन त ओकर भौजी हर कथे वो कलकलही कहाँ हे रे! कछु खईस हे के नहीं। तब सबके ध्यान अइस, सब डहर खोज दारिन कहीं पता नइ चलीस, शाम होगे त सब ल चिंता होइस। गाँव म सब घर खोज दारिन कहीं नइ रहय। बिहान होइस त ओकर ससुराल म जाके देख अइन उहां भी नहीं। ममा घर, फूफू घर, मोसी घर अउ जहाँ-जहाँ अंदेशा रहीस सब जगह खोज दारिन कहीं नइ मीलिस। 

      बड़े भतीजा के एक्सीडेंट होगे लंबा चौड़ा ईलाज चलीस दो- दो, तीन-तीन ऑपरेशन, लंबा-चौड़ा खर्चा, खेत बेचे के नौबत आगे। खेत के सौदा होगे लेकिन खेत के रजिस्ट्री नइ होइस पुसउतीन के हस्ताक्षर लगही! फिर एक बार खोज-खबर जोर पकड़ लीस। खेत बेंचना जरुरी रहय, रजिस्ट्रार बिना पुसउतीन के रजिस्ट्री नइ करत रहय। तभे कोर्ट  ले एकठन अउ नोटिस आथे पुसउतीन उर्फ करमजली के नाम से। ओकर नाव के नोटिस, कोर्ट म अनिवार्य रुप से उपस्थित होना हे। ससुराल म पति के मृत्यु अउ दूनों पहिली पत्नी मन के खतम होय के बाद कोर्ट हर उहाँ के जमीन जायदाद सारी चल-अचल संपत्ति जेकर कीमत लगभग पाँच करोड़ ले ऊपर रहय तेकर अकेला वारिस पुसउतीन उर्फ करमजली ल बनाय रहय। गाँव गाँव, शहर-शहर खोजत रहं, ओकर खोज म पुलिस लगे रहय। अखबार म फोटो, रेडियो, टीवी, सिनेमा हाल, बस स्टैंड, रेल्वे स्टेशन, का जमीन खा गे या आसमान निगल गे। येती जमीन के रजिस्ट्री नइ होवत रहय, ओती कोर्ट हर माने बर तैयार नइ रहय। अगर जिंदा नइ है त मृत्यु प्रमाण पत्र चाहिये कहत रहय। कोर्ट हर साफ कइ दे रहय यदि पुसउतीन उर्फ करमजली हर उपस्थित नइ होही त सब जमीन जायदाद ल राजसात कर लिये जाही जेमा गाँव म चार ठन खार म चार-चार एकड़ के चक रहय, चार एकड़ के तलाव कुआं-बावली, गाँव म बाड़ा रहय जेकर करोड़ों म कीमत रहय। पाँच-सात करोड़ के मालकिन आज पता नहीं कोन कति भटकत रहय। आज सब के मन म ग्लानि होवत रहय। जहाँ बइठे वहीं ले ओला उठा दें त ओहर कहय; कुकुर बना दारे हें हर जगह ले दुर्रावत रथें। हमर ठऊर नइ हे कोनो मेर। आज मथुरा, वृंदावन, हरिद्वार, हर ठऊर म ओकर खोज होवत हे कहीं तो मिलय ये करमजली हर!


**अंजली शर्मा **

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

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