Tuesday, 28 October 2025

लोकाक्षर अउ गद्य विधा लेखन एक बूता -एक संदर्भ -मुरारी लाल साव

 लोकाक्षर अउ गद्य विधा लेखन

एक बूता -एक संदर्भ 

        -मुरारी लाल साव

अभी के संदर्भ म लोकाक्षर गद्य विधा के लेखन म जोर देवत दिशा देखाये हे अउ देखावत हे साहित्य ला समृद्ध पोठ विकास की ऒर लेगत हे l

गद्य विधा के सबो विधा म लेखनी होये हे l बढ़वार होइस अउ होवत हे l  नवा जुन्ना सबो बुधियार  हमर साहित्यकार मन उमीहाके के ए कोती धियान देहे l गद्य विधा म लोकाक्षर ले जुड़े सब झन के संहराये के योगदान हे l एखर ले बहुते लाभ होय हे l आदरणीय भाई सुधीर शर्मा अउ आदरणीय अरुण निगम ज़ी के लिखे के बूता  देवत जउन सोच लेके ग्रुप ला बनाइस पूरा पूरा सफल होये हे l गद्य विधा लेखन घलो अतेक सरल नोहय l छत्तीसगढ़ी कहिनी /कहानी, लघु कथा / नान्हे कथा /नानकुन कहानी, 

उपन्यास /लघु उपन्यास  व्यंग्य नाटक /एकांकी, संस्मरण /सुरता, यात्रा विवरण, रिपोर्ट /रिपोरताज, ए विधा म लेखन बढ़िया होइस l 

कहानी, लघु कथा, सुरता, व्यंग्य यात्रा म गजबे बढ़वार होइस l 

सबले बड़े बात अउ जमो लिखय्या मन एक दूसर के लेखनी ला पढ़ के समीक्षा अउ संहराये के अउ सुधार के बूता करिन l कोनो बड़े अउ कोनो नेवरिया के भेद भाव नई करिन l एके सुगघर उद्देश्य रहिस पोठ साहित्य आय  l जुड़े सबो साहित्य कार मन म सम दृष्टि दिखीस l पंदोली जतका दिस ओतके सिरजन मा बढ़वार होइस l व्याकरण कोती गंभीरता ले धियान दे गिस l हिंदी के शब्द प्रयोग  छत्तीसगढ़ी म कउन ढंग ले होय वर्तनी अउ मूल रूप म दिशा मिलिस l जतके जादा लिखाही  साहित्य हित म ये उद्देश्य आघू म रहिस l 

खूब लिखिन भाई मन,मन लगाके चेत करके जिम्मेदारी लेके लिखिन  बढ़िया लिखत हे 

छत्तीसगढ़ी म व्यंग्य लेखन अउ लघु कथा लेखन ला ऊंचाई मिलिस अइसे लागिस मोला l

ग्रुप म लेखनी नियम बद्ध ढंग ले होवत है सबके नजर रहिथे l 

" तेल म चूरत भजिया कहाँ जाबे बोचक के l ओइसने समीक्षक मन के दृस्टि ले लेखनी बढ़िया चूर के पक के  स्वादिस्ट निकलत हे l 

जतका संहाराये रचनाकार मन के रचना बड़े बड़े

नक्सलवाद के भटकाव ल उजागर करत उपन्यास

 नक्सलवाद के भटकाव ल उजागर करत उपन्यास


 अंधियारी रात म अंजोर के आस हे " 

उवत सुरुज के अगोरा "


उपन्यास - उवत सुरुज के अगोरा 

उपन्यासकार - डा. विनोद कुमार वर्मा 

 समीक्षक - ओमप्रकाश साहू "अंकुर" 


नक्सलवाद एक राष्ट्रीय समस्या हरे। निरंकुश शासन ले मुक्ति  अउ शोषित, पीड़ित मन ल उंकर हक दिलाय खातिर नक्सलवाद आंदोलन के जनम होइस। रूस म लेनिन ह ये आंदोलन के जनमदाता हरे। पर रूस म येकर बाद गृह युद्ध चालू होगे मतलब रूस म नक्सलवाद फेल होगे। कारण जउन भी रिहिस होही। हमर भारत के बात करथन त आज ले 58 बछर पहिली चारू मजूमदार अउ कानू सान्याल ह ये आंदोलन ल चालू करिन। ये नक्सलवाद विचारधारा धीरे ले पं. बंगाल के संगे संग बिहार,झारखंड, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना ,महाराष्ट्र ,छत्तीसगढ़ सहित आने राज्य म अपन पांव पसार लिस। हिंसक रसदा ल अपनाके शोषित, पीड़ित मन के हक बर लड़े के उद्देश्य ले चालू होय ये आंदोलन के अब दसा अउ दिसा ह बदल गे हावय। इही बात ल लेके एक बढ़िया उपन्यास के सृजन करे हावय व्याकरणविद्, संपादक, कहानीकार डा. विनोद कुमार वर्मा जी ह जेकर शीर्षक हावय-" उवत सुरूज के अगोरा।"

        

हमर छत्तीसगढ ह अपन कृषि अउ ऋषि संस्कृति बर जाने जाथे।  छत्तीसगढ के सोर शांति अउ भाईचारा के सेति हावय। छत्तीसगढ़ म सद्भाव अउ सुमता के दीया जलथे। पर छत्तीसगढ़ म नक्सलवाद के कारन राष्ट्रीय स्तर म येकर पहचान नक्सली राज्य के रूप म होथे। बस्तर इलाका जिहां घोर जंगल हे अउ भोला- भाला आदिवासी मन निवासरत हे उहां ये समस्या ह सुरसा सहिक अपन मुंहू फइला के हजारों मन के जिनगी ल लीलत हे। नक्सलवाद के कारण वो क्षेत्र के चहुंमुखी विकास घलो नइ

हो पाथे। सड़क, स्वास्थ्य,शिक्षा, बिजली जइसे जरूरी चीज खातिर तरसत हे आदिवासी मन। ये सबो समस्या के जड़ हरे नक्सलवाद। ये मन विकास बर रोड़ा अटकाथे। त इही बात ल उजागर करथे उपन्यास "उवत सुरूज के अगोरा।" येहा कहानी "अग्नि संस्कार'" के विस्तारित रूप हरे।

        उपन्यासकार ह नारी पात्र डा. निर्मला चौधरी  के माध्यम ले उपन्यास ल आगू बढ़ाथे जउन ह वो पत्रकार मन ले मिले खातिर   बस म सफर करत जगदलपुर जावत हावय जउन मन अपहृत पुलिस मन ल छोड़ाय बर नक्सली अउ सरकार के बीच समझौता गोठबात करे के पेशकश करे रिहिन। बिलासपुर के रहवइया 23 बरस के मोटियारी डा.निर्मला के पोस्टिंग डीकेएस हास्पिटल रायपुर म हावय जेन ह रामकृष्ण केयर हास्पिटल म अटैच हावय। वोहा नक्सली घटना म घायल जवान मन के देख रेख करथे अउ हर रोज के रिपोर्ट सासन ल भेजथे। वोकर महतारी ह गृहिणी हे अउ बाबूजी ह किसानी करथे। निर्मला अपन दाई -ददा के एक्केझन बेटी आय।वोहा नानपन ले पढ़ई म हुसियार रिहिन। नवोदय स्कूल म पढ़ें के बाद रायपुर मेडिकल कॉलेज ले एमबीबीएस के पढ़ाई करिस।


निर्मला के सहपाठी झिंटूराम जउन ह हवलदार हे वोला नक्सली मन सुकमा के बजार ले उठा के ले गे हावय। झिंटू राम के कंधा म गोली लगे हावय।निर्मला अपन नवोदय विद्यालय के संगवारी झिंटू राम ल नक्सली मन ले छुड़ाय के उदिम खातिर घोर अंधियारी रतिहा म बस म 

 केसकाल घाटी डहर ले गुजरत हावय। ये जगह कहानीकार ह केसकाल घाटी के हबहू वर्णन करे हावय। इहां निर्मला ल नारी सशक्तिकरण के प्रतीक के रुप म दिखाय गे हावय। । अपन नानपन के संगवारी झिंटराम ल बचाय खातिर कत्तिक खतरा मोल लेके एक्के झन घोर नक्सलाइड क्षेत्र म सफर करत हावय जउन ह वोकर अब्बड़ साहस ल दरसाथे। वोकर निश्छल प्रेम के दरसन होथे। निर्मला कहिथे -" हे भगवान! नक्सली मन ले झिंटू राम के रक्षा करबे।भले मोर जान ले!तोर घर म देर हे फेर अंधेर तो नइ हे! इहां उपन्यासकार ह एक नारी के प्रेम, त्याग अउ संघर्ष के सुघ्घर चित्रण करे हावय।


    बस म सफर करत समय निर्मला के भेंट उपन्यास के मुख्य पात्र कामरेड बालेन्द्रु से होथे। निर्मला ह कामरेड बालेन्द्रु अउ सरकार के माध्यम ले हवलदार झिंटूराम अउ वोकर एक संगवारी ल नक्सली मन ले छोड़वाय म सफल होथे।


उपन्यास के नायक कामरेड बालेन्द्रु कम्युनिस्ट विचारधारा के रस्दा म चलत हावय। येहा आदिवासी मन म अब्बड़ लोकप्रिय हावय काबर कि गरीब मनखे मन के सुघ्घर मदद करथे। ये वो मनखे हरे जेन ल सरकार ह नक्सली मन के समर्थक मान के घेरी बेरी कुछु कांही केस म जबरदस्ती फंसा के  जेल म डार देथे। उपन्यासकार ह कामरेड बालेन्द्रु के गोसइन के माध्यम ले ओकर चरित्र चित्रण करथे। डा. निर्मला संग फार्म हाउस म गोठियात वोकर गोसइन कहिथे कि -" कामरेड हिंसा के बिल्कुल खिलाफ रहिथे। निरदोस आदिवासी मन के पुलिस द्वारा हत्या के विरोध म जन आंदोलन करे खातिर कतको घांव जेल जाय ल पड़े हे। त दूसर कोति नक्सली मन ह मुखबिरी के शक म जन अदालत लगाके कोनो आदिवासी मन ल मार डालथे त अइसन पीड़ित परिवार मन मदद करथे। आर्थिक मदद घलो करथे। कामरेड ले मिले बर देश के बड़का कम्युनिस्ट नेता मिले बर घेरी -बेरी आवत रहिथे। कामरेड ल नक्सली मन ले घलो धमकी मिलत रहिथे। "।कामरेड के फार्म हाउस हे जेहा केशकाल घाटी ले उन्नीस किलोमीटर दूर विश्रामपुरी के तीर बिरान जगह म हे। उपन्यासकार कहिथे कि-" कामरेड के गोठबात अउ चरचा अक्सर होवत रहिथे। आम मनखे मन  के नजर म कामरेड बालेन्द्रु नक्सली मन के सबले बड़का लीडर हे। सफेदपोश लीडर!जेन मन बिना हथियार के थामे नक्सली ल कंट्रोल करथे। कामरेड ह सादा जीवन उच्च विचार के मनखे हरे। वोकर गोसइन ह डा. निर्मला ल बताथे कि -" बेटा तोर अंकल ये जुग के मनखे नोहे।सादा जीवन उच्च विचार वोकर जिनगी के मूलमंत्र हे। विलासिता के कुछु सामान घर म रखना पसंद नइ करय।"‌ कामरेड ह नक्सली अउ सरकार के बीच समझौता कराय के काम करथे। झिंटू राम अपहरण कांड के समय वोहा निर्मला के सुघ्घर मदद करथे।वोकर माध्यम ले हवलदार झिंटूराम अउ वोकर संगवारी ल नक्सली मन ले छुटकारा मिल पाथे। त समझौता के तहत जेल म बंद नक्सली मन ल पुलिस ले छोड़वाथे।





उपन्यास के खलनायक हावय-"  शुभगन "जेन हा दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के कमांडर हे।येहा खुंखार नक्सली लीडर हरे। शराब अउ शबाब के येला लत हे। अपन पद अउ ताकत के खूब फायदा उठाथे अउ जवान लड़की मन के अपहरन करके उंकर इज्जत ले खेलथे। ये आदत ल वोहा अपन शान समझथे। ये दृश्य अउ संवाद के माध्यम ले कहानीकार ह आज के नक्सलवाद आंदोलन के दसा अउ दिसा ल उजागर करथे कि कइसे शोषित, पीड़ित मन बर लड़े ल छोड़ के उल्टा खुदे पद अउ ताकत के दुरूपयोग करत हे। निरंकुश शासन मन जउन बेवहार आम आदमी मन ले करथे उही रसदा ल खुदे अपना डरे हावय त का मतलब अइसन नक्सलवाद आंदोलन के।


   उपन्यास के नायक कामरेड बालेन्द्रु वर्तमान म नक्सलवाद आंदोलन के भटकाव ले अब्बड़ दुखी हावय। एक बुजुर्ग कम्युनिस्ट ले गोठबात के माध्यम ले ये बात ल पाठक वर्ग ल बताय गे हावय कि कइसे शुभगन जइसे नक्सली लीडर मन भोली भाली लड़की मन के हीनमान करथे अउ भोला - भाला आदिवासी मन ल ढाल बना के अपन सुवारथ ल साधत हावय। लूटपाट अउ लाखो- करोड़ों के वसूली करके गुलछर्रा उड़ात हे। निर्दोष आदिवासी अउ पुलिस वाले मन के हत्या करत हे।


     सच म आज बस्तर के आदिवासी मन नक्सली अउ  फ़ोर्स के बीच म पिसावत हावय।जइसे दू गोल्लर के लड़ई म घास ह रौंदा जाथे वइसने दसा आदिवासी मन के हो गे हावय। दूनों डहर ले आदिवासी मन ल  मरना हे। 


  उपन्यास के प्रमुख पात्र कामरेड बालेन्दु 

के बेटा अंकुश जउन ह 10 साल के हे। वोला उपन्यासकार ह  शांति के संदेश देवइया अउ एक वीर बालक के रूप म चित्रित करे हावय। अंकुश ह अपन कामरेड पिता बालेन्द्रु ल एक बात  कहिथे " एकर ले अच्छा गांधी जी के अहिंसक आंदोलन रहिस जेमा जन जागरण के संगे -संग स्वतंत्रता के आंदोलन ल जोड़े गे रहिस।" ये संवाद के माध्यम ले उपन्यासकार ह ये संदेश देवत हावय कि हिंसा ह कोनो समस्या के हल नोहे।अपन समस्या ल गांधी जी द्वारा बताय गे सत्य अउ अहिंसा के रसदा म चलके हल करवाना हे। फेर हिंसा ले हिंसा उपजथे। नक्सली मन खुदे एक दूसर ल मारत हे मुखबिरी के शक म। उपन्यास के मुख्य पात्र  बालेन्दु खुद हिंसा के शिकार हो जाथे जब खुंखार नक्सली लीडर शुभगन अउ उंकर पांच संगवारी उंकरे घर आके गोली म दनादन भून डालथे।येमा वोकर पत्नी ह मर जाथे अउ तीन साल के बेटी पल्लवी ह घायल हो जाथे। त अइसन स्थिति म घर म छुपे वीर बालक अंकुश ह अब्बड़ सूझ बूझ ले काम लेथे। घायल अपन बहिनी पल्लवी के जिनगी के रक्षा करथे।त दूसर कोति अपन पिता, मां के हत्यारा मन ल मारे बर उदिम सोचथे।जिहां खुंखार नक्सली लीडर शुभगन अउ उंकर संगवारी मन शराब पीयत रहिथे वो कमरा के कपाट ल लगा देथे अउ चारों मुड़ा पेट्रोल छिड़क के आगी लगा देथे। अउ ये प्रकार ले हिंसा के रसदा ल अपनइया  खूंखार नक्सली लीडर शुभगन अउ उंकर संगवारी मन हिंसक ढंग ले ही मारे जाथे। माने जइसन करनी वइसन भरनी। बंभूर बोबे त आमा थोड़े फरही। बंभूर करा जाबे त कांटा ह खबखब ले गड़ही।


    22 फरवरी 1954 म छत्तीसगढ़ के गांव फगुरम म जनम धरइया डा. विनोद कुमार वर्मा ह गहन संवेदना के उपन्यासकार हरे। आप मन के कहानी "मछुआरे की लड़की" राष्ट्रीय स्तर म अब्बड़ सराहे गिस।ये कहानी ल बस्तर विश्वविद्यालय के एम.ए. के पाठ्यक्रम म सामिल करे गे हावय। आप मन के छत्तीसगढ़ी के संपूर्ण व्याकरण किताब छात्र मन के संगे संग साहित्यकार ,पाठक वर्ग मन बर अब्बड़ उपयोगी हावय। येमा नाना प्रकार के छंद के नियम के उदाहरण छत्तीसगढ़ी के सियान साहित्यकार के संगे संग छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर,छंद के छ परिवार ले जुड़े बुधियार छंदकार मन के छंदबद्ध रचना के माध्यम ले दे गे हावय।


    त अइसने एक ठाहिल उपन्यास हे -" उवत सुरूज के अगोरा।  ये उपन्यास ह पाठक वर्ग ल रोमांचित करथे। ये लघु उपन्यास ह पाठक वर्ग ल आखिरी तक 

बांध के राखे म सक्षम हे। उपन्यास के भाषा छत्तीसगढ़ी अउ हिंदी मिश्रित हे।  भाषा शैली सरल,सहज अउ प्रवाहमयी हे।


ये उपन्यास ह आज के नक्सलवाद आंदोलन के पोल खोल के रख देथे त दूसर कोति नेतामन के दुहरा चरित्र ल घलो उजागर करथे कि अपन सुवारथ बर का नइ कर दिही। उपन्यासकार ह लिखथे कि कामरेड बालेन्द्रु के भाषण के संबंध म एक बड़े नेता ह कमेंट करिस -" कामरेड यदि लाल झंडा ल छोड़ के हमर पार्टी म सामिल हो जाय त बस्तर संभाग के सबो विधानसभा सीट ल हमर पार्टी ह आराम से जीत लेही "। येकर माध्यम ले उपन्यासकार ह नेतामन के दोगला चरित्र ल उजागर करथे कि  जेला पहिली कोयला समझथे  वोहा जब उंकर पार्टी म आ जाथे त उही मनखे कइसे सोना बन जाथे।





पोठ उपन्यास खातिर आदरणीय डा. विनोद कुमार वर्मा जी ल गाड़ा -गाड़ा बधाई अउ शुभ कामना हे ‌। ये उपन्यास ह छत्तीसगढ़ी साहित्य म एक मील के पथरा साबित होही। 


       - ओमप्रकाश साहू अंकुर 

         सुरगी, राजनांदगांव

भरम

 भरम 

                    कोस्टा पारा के रहवइया मन पानी भरे बर ठेठवार कुँवा म जाय । संझा बिहाने ओकर कुँवा म पनिहारिन मन के रेम लगय । मुलाखात अऊ गोठ बात के बने जगा घला रहय । एक दिन .. पानी भरके जात एक झन बहू छोकरी के हँउला ह .. उँकर घर म कपाट के चौंखट म ठेंसइस ... बहू छोकरी ले दे के सम्हलिस फेर रेंगान म गिरे पानी म गोड़ पर गिस ... हँउला सुद्धा गिरिस । मुड़ फुटगे ... रथिया पीरा उचिस .... पेट भितर लइका मरगे ... बहू घला बिहान होत .. दुनिया ल छोंड़ दिस ।  

                    गाँव भर हल्ला मातगे । बिशाखा ह अपन बहू ल कहत रहय – ठेठवार कुँवा म झन जाय कर ओ ...। तोर बड़े दई ह चौंरा म ... आँखी बटेर के निच्चट निहारत बइठे रहिथे । काकरो सुख देखे नी सकय । चरचर ले अंगुरी फोरत बखाने लगिस - कोढ़ी होके मरही दुखाही हा ... । देख ... फुलकरहिन के बहुरिया के का गत होगिस ... ओकरेच करनी आय । बहुरिया पूछिस – उँकर मनके अब्बड़ बनथे माँ ... ? बिशाखा किहिस – बनथे तभो ये हाल ... हम तो ओला फुटे आँखी नी सुहान ... हमर का नी करही ..। बहुरिया बिगन सवाल दागे हव कहत मुड़ हलइस ।  

                    सांझकुन पानी भरे के बेर .. बिशाखा के मुलाखात पनिहारिन मन संग होइस । पनिहारिन मन पुछे लगिन – अई काकी .. तैं कइसे या । देरानी निये का ... ? समे तो नी आय हे का या ... ? बिशाखा किहिस – समे अइगे हे तेकर सेती मय आय हँव । बइठे बइठे मोरो जांगर खिरत रिहिस .. कुछ दिन मिंही आहूँ ... सऊँख घला नी लागथे तेमा या ... देखव .. उही बहाना सबो बहुरिया संग मेल मुलाखात घला होगे । असल कारन सब समझ गिन । 

                    दूसर दिन बिहाने ले बांगा धरे बिशाखा फेर दिखगे । बिहिनिया बुता काम के बेर काकरो ले जादा गोठ बात नी होइस .. सब लकर धकर अपन बांगा भरिन अऊ चलते चलिन । बिशाखा के उमर जादा नी रिहिस फेर देंहे मोटागे रिहिस .. निहरे नी सकय । माड़ी पिराय ते अलग । टेंड़ा म पानी हेरत बन जाय फेर बाल्टी डोरी म नी सकय । कइसनों करके पानी भर डरय त बांगा ला उचा नी सकय । दूसर बोहाय तब  .. घर तक टेंग रेचेक करत लेगय । चार बेर पानी डोहारत कनिहा कोकरगे ।

                    संझा बिशाखा नी अइस । मुंधियार ओकर बहू .. हँउला धर के निकलिस । पारा के मन पूछिन – अई .. कइसे अभी जाथस या .. ? बहू मुचुक मुचुक करत चल दिस । चौंरा म बड़े दई ले मुलाखात होगे । टपर टपर पाँव परिस । बड़े दई पूछिस – मुंधियार काबर कर डरे बेटी .. संझकेरहा नी आते या .. ? बहुरिया किहिस – थोकुन देरी होगे बड़े दई । बड़े दई हा ... पानी भरे बर मदत करिस .. बांगा ल ओकर मुड़ म मढ़हइस । घर म बहुरिया ह .. बांगा ल उतारे नी सकिस .. ओकर घरवाला उतारिस । उतारत उतारत अपन घरवाला ल पनघट के बात बता पारिस । बिशाखा ललछरहा सुनिस ... रंधनी ले लकर धकर निकलत .. बहुरिया ल खिसियइस .. तहन जेठानी बर शुरू होगे । 

                    बिशाखा केहे लगिस – उही टोनही के सेती मेहा माड़ी पीरा म .. पाँच बछर ले कल्हरत हँव । मोर जांगर चलतिस ते तोला जावन नी देतेंव .. । तोला झन मिलबे .. झन गोठियाबे केहे रेहेंव ... फेर तहूँ  नी मानेस ... भुगतबो ... तैं देख लेबे ... ओकर पांगे फरक नी परे ... । 

                    बिहिनिया ... बहुरिया के पेट पिराना शुरू होगे । पिरा के मारे तहल बितल करे लगिस ।  सुइन ल बलइन । गोड़ डहर ले निथरत लहू देख ... सुइन हाथ उचावत चल दिस अऊ अस्पताल लेजे के सलाह दिस । बिशाखा मन ... रोज कमइया ... रोज खवइया ...  घर म पइसा नी रहय ... फिफियागे ... का करन ... कइसे करन ... समझ नी आत रहय ... बहू के जेवर पहिली ले गहना धराय रहय । माथ धरे बइठे ... सबो झन के बीच ... केवल बिशाखा के मुँहु .. अपन जेठानी ला गारी देवत चलत रहय .. में केहेंव न .. अब भुगतो सबो .. । सुइन के मुलाखात लहुँटती बेर ... बिशाखा के जेठानी ले होइस । उनला सरी बात पता लगिस । 

                    जेठानी मन पइसा वाला रिहिन । तुरत अपन चरपहिया तैय्यार करके रुपया के बंडल धरके पहुँच गिन । सुक्खा हाथ धरे बइठे रहँय ... कोन्हो मना नी कर सकिन । जिंहाँ आपरेशन के सुविधा रहय ते जगा ह ... चालीस किलोमीटर धूर ... । भरती होगिन । लहू बहुत रिस चुके रिहिस । आपरेशन के समे लहू .. कोन दिही ... । बिशाखा अऊ ओकर घरवाला उइसने कमजोर ... बेटा के लहू मिलय निही । बड़े दई के लहू मिलगे ... । कानाफुसी बिशाखा कहे लगिस – अई टोनही के लहू ला चघाबो तेमा ... । ओकर घरवाला हा ... लाल आँखी देखइस ... बिशाखा तरमरात रहिगे । आपरेशन सफल होइस ..  फूल असन लइका निकलिस । सब के हिरदे उछाह ले भर गिस । बिशाखा के मन म गोंजाय भरम अऊ बोजाय मइल दुनों धूर हो गिस । 

                    गाँव भर हल्ला हो चुके रहय ... बिशाखा हा अपन जेठानी ला टोनही कहिथे तेहा गलत नोहे । दू दिन पहिली फुलकरहिन के बहुरिया ला भख दिस ... आज दूसर के नम्बर आगे .. । सांझ होत .. बइसका म ... गाँव निकाला के फैसला होगे । 

                    चार दिन पाछू ... सबो लहुँटिन । रामबाँड़ा म सकलाय रहँय गाँव के सियान मन । सब इही सोंच के आय रहँय के बिशाखा के जेठानी ल खुसरन नी देना हे ... इही मेर ले  बिदा कर देना हे । 

                    गाड़ी दम ले रूकिस । बहू अऊ नानुक लइका ला छोंड़ .. एक एक करके सबो उतरिन । बिशाखा हा जेठानी ला उही तिर अगोरे बर कहत ... घर भितरि निंगिस । जेठानी के गोड़ ठोठकगे । गाँव के मन .. बहू अऊ लइका ला नी देखिन .. सब समझगे ... तुरते फैसला बता दिन । जेठानी पिछ्गुच्चा होवत टप टप आँसू गिरात सुसके लगिस ।  

                    बिशाखा ह ... भितरि ले लोटा म पानी अऊ आरती धरके निकलिस । जेठानी ला आये के इशारा करिस । जेठ हा ... जेठानी के हाथ ला धरके छेंक लिस अऊ हाथ जोरके माफी कहत .. बिदा मांगिस । 

                    बिशाखा के हिरदे म उँकर बर सन्मान जाग चुके रिहिस । बिशाखा ह हाथ म धरे समान ल उहि तिर मढ़ाके भागत आगे ... जेठानी ला पोटार लिस । बम्फार के रो डरिन दुनों । बिशाखा हा न केवल जेठानी ले .. बल्कि पूरा गाँव ले माफी मांगिस । गाड़ी ले उतरत बहुरिया ह .. बड़े दई के हाथ म लइका ल धरा दिस । देरानी जेठानी के मिलन होगे । सरी घटना के जनाकारी गाँव भर ल होगिस । टोनही के भरम ले सब उबर गिन । 

हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा .

झन्नाटा तुँहर द्वार*

 *झन्नाटा तुँहर द्वार*       


         साहित्य लेखन के गद्य विधा में ब्यंग लेखन घलो हे।. जेकर जनम निबंध के रूप में होथे। ब्यंग लेखन मा सपाट बयानी न करके जबानी घात करत अउ हास्य के पुट भरत अपन बात ला पूरा करथे। सही मामने मा सामाजिक सरोकार के उतार चढाव मानवीय संवेदना मा सुख दुख के सबो हिस्सा ला अनुभव करे रथे भोगे रथे देखे रथे खरा खोटा के हिस्सेदारी मा जे खोंचकर हिरदे मा पाये रथे। तब एक जिम्मेदार कलमकार अइसन विधा मा कलम चलाए के साहस करथे। यहू सच हे कि तुकबंदी मा कविताई करना तो सहज हे। फेर व्यवस्था अउ विकृत परिस्थिति ले कलम उठाके दू दू हाथ करना सहज नइये। एकर जानबा के बाद घलो झन्नाटा तुँहर द्वार के सिरजक आदरणीय महेन्द्र कुमार बघेल जी अइसन साहसिक काम रहे हे। एकर बर सादर बधाई।

         एक ठन पाठक होय के नाता ले किताब पढ़े के मौका लगिस। मोर जानकारी मा झन्नाटा तुँहर द्वार बघेल जी के पहिली कृति आय। जेकर भीतर 25 ठन ब्यंग लेख ला सँघेरे गेय हे। ओइसे बघेल जी के गद्य अउ पद्य दुनो मा ब्यंग के तासीर झलकत रथे। एकर सेती घलो इन ला ब्यंगकार कहे मा परहेज नइ होना चाही। अलग अलग विषय के माध्यम ले सामाजिक  राजनैतिक आर्थिक के सँग संसकार अउ संस्कृति के बात ला कटाक्ष करत चले हे। ब्यंग तो है ही सँगे सँग मन ला गुदगुदावत अपन बात ला पूरा करे मा सफलता हासिल करे हे। गरीब शोषित पीड़ित मजदूर किसान गँवई गाँव के बिगड़े हाल इँकर मूल विषय अउ मुद्दा आय। ये हर किताब के कतको विषय संगत शिर्षक के लेख मा देखे ला मिलथे। ये सही हे कि बघेल जी इही भुगतमान समाज के आवाज बनके खड़े होय मा कमी नइ करे हे। इँकर इशारा ब्यंग के माध्यम ले अँधियार मा भटकत धोखा फरेब गिरे ब्यवस्था ले तंग मनखे ला अँजोर देखाए बर हे।

           किताब के जम्मो लेख मा प्रतिनिधि रचना के रूप मा झन्नाटा तुँहर द्वार ला माने जा सकथे ये मोर मत आय। इही शिर्षक हर किताब के नामकरण मा संबलता पाय हवे। आवरण सज्जा मा मौन चित्र दर्शाए गेय हे वो हर घलो ब्यंग के परिभाषा ला बताए बर  सार्थक हे।

          झन्नाटा तुँहर द्वार सुनके ही मन मा हास्य के रस छलके लगथे। फेर असली आनंद तो ब्यंग ला पढे के बाद मिलथे। आज ये झन्नाटा जेन हर मंद मदिरा दारू शराब के पर्यायवाची के रूप मा जगा पाय हवे। अउ यहू आसा करे जा सकथे कि किताब अपन नाम के बल मा ही नाम कमाही।।.     

      गरीब अमीर छोटे बड़े राजा रंक सबो के जिनगी मा झन्नाटा जगा बना डारे हे। जेकर कुप्रभाव मानव समाज ला दीमक अउ घुन्ना कीरा असन फोकला करत हे। जेकर दरद लेखक के ब्यंग मा देखे ला मिलथे।

           ब्यंगकार के भाषा सरल सहज हे। छत्तीसगढ़ी के आत्मा अउ मरियादा ला सम्मान देवत गाँव में आम लोगन तक पहुंच बनाए मा सफल हें। हिन्दी अउ अँगरेजी के शब्द मन ला अइसे समोए हें जइसे मीठा खीर मा काजू किसमिस। लेखक एक शिक्षक होय के नाता ले वाक्य के क्रमबद्धता के पालन बहुते चतुराई ले करे हें। जेकर ले कोनो भी पाठक के पाठन क्रम नइ टूटे अइसे भान होथे। एकरे सँग ब्यंग मा जेन मारक क्षमता होना चाही हमर असन के समझ बर सटीक अउ सार्थक लगथे। पूरा किताब ला पढ़े के बाद कुछ वाक्यांश के उदाहरण तो दिये ही जा सकथे। जेकर ले जान सकथन कि ब्यंग अपन दिशा कोन किसम ले तय करे हे। अउ लेखक कोन किसम ले अपन ब्यंगकार होय के सबूत देथे। अलग अलग विषय मा उकेरे अलग अलग ब्यंग के तासीर ले सने वाक्यांश - -

*.      हाइटेक के जमाना मा जेन हर बात बात मा झूठ लबारी बइमानी करे बर सीखगे उही मन ला पंचायत मा सबले योग्य मनखे समझे जाथे। आइसन धुरंधर मन ला पाँच साल तक कोनों खतरा नइ रहय।।

   *ब्यंगकार अपन प्रतिकार ला दर्शाथे तब प्रतिकात्मक बिम्ब ले सीधा मार करे मा पीछू नइ हटे हे जइसे कि---

   पाँच साल ले कुरसी के चारो खूरा ला सलामत रखना हे तब ओकर बताय रसता मा चल नइते कोन जनी कब कते खूरा हर रट ले टूट जाही।

  *शासन प्रशासन डहर ले एक घाँव मा सोला ठन खरीदी बिक्री के उदारवादी नीति हर गली गली मा पहुंच बनाके कल्याणकारी योजना के नवा इबारत लिखत हे।

         अलग अलग विषय में उकेरे कतको बात जे हर लेखन के देखे सोचे समझे के अउ ओकर उपर कलम चलाय के सामर्थ ला बताथे। कुछ वाक्य जेला अउ रखना उचित लगथे-----

*.      सामाजिक समरसता के वातावरण मा जिन्न अउ हलवाई के बीच मा पहिली छमाही के शिखर वार्ता शुरू हो जाथे। ओकर बाद दुनो महानुभाव मन के बीच भुगतान संतुलन के मामला हर वर्चुअल ढंग ले सेट हो जाथे।

*.    बिहान दिन थुकलू मिडिया के जम्मो राष्ट्रवादी चैनल मा भारी सक्रियता दिखना शुरू हो जाथे। (बँरेडी मा ईमानदारी)

*.       अपन बूध के खइरपा ला उघार के देख गोतियार मिलावटखोर मन हमर रँधनी खोली तक मिलावट के पक्की सडक बना डारे हें।

*.     अइसन दिन घलो मत आय कि हवई चप्पल पहिर के सड़क मा रेंगे बर घलो ठेकेदार डहर ले पाबंदी हो जाय।. (सपना के पंचनामा)

*.        बाकी नब्बे परसेंट वाले के भाग मा तो काल हे। जेन अमृत चाँटे के भरम मा अपन हिस्सा मा मिले अम्मट गोम्मट के भरोसा राष्ट धरम निभावत हे। (अमृत चाँटे के भरम)

      ब्यंग मा हास्य मिँझारे के कला मा यहू वाक्य मन हें--

*.       सबो रद्दा के पाई मन के एके कथा कहानी हे प्रेशर ला थाम्हे लोटा भर पानी। परियावरण ला बचाय खातिर खुल्ला मा खुलासा करे के लोटाई परम्परा ला धरासाई करे बर घर भितरी शौचालय। 

*.      सास हर गद्दी ला छोडऩा नइ चाहे अउ बहू तत्काल गद्दी ला हथिया लेना चाहथें। 

      जेवन पानी के बेरा नाक मुँहुँ ला मुरेरना सास के जनम सिद्ध अधिकार हे। 

*.     गौठान योजना ह गाय के सराय कम पंच सरपंच अउ सचिव मन के सेल्फी जोन जादा लगथे। 

*.   जब ले गुटका पाउच यामू नाम के सनपना मा सवार होके आय हे तब ले पुरकू कला ला नवा जिनगी मिल गेहे। 

*.       बजट के चरचा अउ खरचा के योजना बनावत कते साहेब के भला लार नइ टपकत होही। इहाँ लरहा साहेब के कोनों कमी हे का? 

*.       कलयुगी शिष्टाचार मा नारद मुनि के खानदानी चिराग मन ला रिपोर्टर जर्नलिस्ट अउ किसम किसम के नाम ले जाने जाथे। 

        अइसन किसम के ब्यंग बाण ले किताब भरे पड़े हे। जे हर पढत बेरा मन ला गुदगुदाए के सँग चिंतन करे बर मजबूर कर देथे। समाज ला तुतारी मा हुदरत नवा दिशा देखाए बर सबो बिषय अपन जगा मा सामर्थ्यवान हे। विषय छोटे फेर विषय वस्तु अपन आसपास के गंभीर मुद्दा हे। जेकर भयावह रूप ला इशारा करत चेताए मा चतुराई दिखाए हे। गौठान बराती दारू स्कूल गुटका पाउच साहित्यिक मंच के प्रपंच टूरा टूरी के गैर संस्कारी मौज मस्ती के सँग बाजारवाद के विकराल रूप ला देखावत ब्यंगकार के कलम सहजता मा घलो सजोर चले हे।

           मँय अबूझ पाठक ही आवँव। न तो समिक्षक ना आलोचक।ये हर पाठकीय लेख ही आवे। तभो ले एक बात कहे के मन होगे कि ब्यंग के लम्बाई ला कम करे जा सकत रिहिस। 

जेकर ले पाठक बिचक के संभावना रथे। ओइसे भी आज के बेरा मा पाठक के अंकाल हे। कम मा जादा कहे के सीख घलो आगू चलके काम के हो सकथे। फेर लेखक जब तक अपन बात ला पूरा नइ करे रहय नइ हिताय। ये ओकर मजबूरी हो सकथे। मूल विषय मा कइ ठन पक्ष ला जोड़े मा लेखन के बढना सहज हे। शिर्षक नामकरण घलो बहुत महत्व के होथे। एक दू ठन मा लेख पढ़े मा जानबा होथे कि बात कोन विषय ले अवतरित हे। कुछ कमी के बाद घलो सफल ब्यंगकार के रूप मा बघेल जी के ये कृति पठनीय हे। ये  आपके पहिली कृति आय। अवइया बेरा के संकलन मा सबो भरम टूट जाही इही आसा ले झन्नाटा दार शुभकामना के साथ बधाई।


राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

कहिनी // *भइंसा* //

 कहिनी    

                   // *भइंसा* //

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                  हम जानथन कि सबो जानवर म सबले चउतरा कोलिहा ल माने गे हावे । तभे तो चउतरा मनखे ल कोलिहा कस चउतरा हे कहिथे । जांगर म भइंसा ल कहे गे हावे काबर कि ओहर बहंगर होथे ते पाय के कभू-कभू मनखे ल भइंसा कस कमाथे फेर खाए नि जाने घलो कहि देथे । बिलई ल अशुभ मानथें ओला मारे म भारी पाप होथे कहिथें । कभू कारी बिलई ल देख डारबे त डर - डरावन लागथे । बिलई कभू डहर म ए पार ले ओ पार आर-काट कर दिस त काम नि होय कहिथे । गाय ल बड़ सिधवा माने गे हावे तभे कोनों मनखे के सुभाव ल देख के ओला गउ बरोबर सिधवा हे कहिथें । 

                 जानवर म छेरी के घलो अलगेच चिन्हारी होथे दिन भर लपर - लपर चरई अऊ नरियई ल देख के काकरो सुभाव ल कभू छेरिया कस लपर - लपर करथस कहि देथें । इही जानवर के डांड़ म कुकुर घलो के बड़का नांव हे , कुकुर के बेवहार अऊ सुभाव ले जनाथे कि ओहर गरीबहा लागथे कभू खाय बर नि पाय त लांघन परे रहिथे । संगे - संग स्वामी भक्त घलो होथे । मनखे मन कभू काम - बूता नि करे त ओला कुकुर कस किंजरत हावे कहि देथें ।

               चिराई-चिरगुन मन म घलो अइसनहे देखे जाथे घुघुवा के नरियाय ले अशुभ मानथें । काकरो छानही परवा म घुघुवा चिरई के नरियाय ले ओ घर म मनखे के हानि होथे सियान मन बतावंय । कउँआ कभू छानही म कांव - कांव नरियाइस त समझव घर म पहुना आय के सोर -संदेशा मिल जाथे । तइहा समें म परेंवा चिरई ल सोरिहा के रुप म देखे जावत रहिस । कागज म चिट्ठी लिख के ओकर घेंच म ओरमा देवंय तहं ले परेंवा ल उड़िया देवंय ओहर संदेशा पहुंचा देवंय । घर म मिट्ठु पोसें रहिथे ओला जइसन सिखोय -पढ़ोए रहिथें वइसन ओहर बोलथे । घर म कोनों आथें त ओमन ल राम-राम कहे बर नि छोड़े अऊ आव भगत करत देखे बर मिल जाथे ।

                कतको चिरई-चिरगुन मन शुभ अऊ अशुभ संकेत देवत रहिथें वइसनहे जानवर मन के घलो चिन्हारी करे गे हावे । जिनगी म ये जीव-जन्त मन समे-समे म काम आवत रहिथें ते पाय के चिरई - चिरगुन मन ल मनखे अपन तीर म पोंसे-पाले रहिथें ओमन के दाना - पानी के बेवस्था करथें । चिरई मन ल दाना - पानी देवई घलो बड़का पून के कारज आय ।

            हीरापुर गाँव म हिरउ नांव के एकझन किसान रहिस । ओला चिराई-चिरगुन अऊ गरुवा - भइंसा पोंसे के भारी सउंख रहिस । ओकर घर के कोठा गाय - गरुवा म भरे रहय । ओहर भइंसा घलो राखे रहय एकठन भूरवा अऊ दूसर ह करिया रंग के रहिस। दूनों भइंसा के हुलिया एके बरोबर रहिस सींग-सींघोट उमर म एकठन चार , दूसर छै दांत अऊ पूछी चंउरी रहिस । फेर एकठन भूरवा रंग के खातिर अलगेच दिखत रहिस। भूरवा भइंसा थोरिक फंकटहा रहिस अऊ करिया भइंसा जबर सिधवा रहय । 

           हिरउ दूनों भइंसा के नांव घलो धरे रहिस भूरवा भइंसा के नांव सोन अऊ करिया भइंसा के नांव मणि रखे रहिस। सहिच म दूनों भइंसा हिरउ बर सोन अऊ मणि रहिन । हिरउ अऊ ओकर गोसाईंन मंगली सोन अऊ मणि दूनों ल भारी मया करे । संवारे पुचकारय समे म चराय ले जावय अऊ ओमन बर हरीयर - हरीयर कांदी लूके लाने। तरिया म पैरा धरके रगड़ - रगड़ के धोवय । हरियर कांदी ल खाके भइंसा मन के देहें चिक - चिकावत रहय । कोठा म पखरा के कोटना म पानी - पसिया , कोढ़ा अऊ कूना बोर के खवावय। हिरउ के मया के कारन भइंसा मन घलो हिरउ ल भारी पतियावय। हिरउ कभू - कभार कुछू काम ले एको - दू दिन बर गाँव जावय त दूनों भइंसा मन उदास हो जावंय । हिरउ के गोसाईंन घलो मया करे फेर हिरउ के बिना ओमन ल सुन्ना लागे ।

               एक दिन करिया भइंसा आधा रात के घेंच म बंधाय गेरवा ल छटका के कोला - बारी कोती खुसर के नार - बियांर अऊ भाजी - पाला रहिस तेन ल चर दिस अऊ कुछू नि जानत हौं कहिके कलेचुप आके फेर कोठा म अपन जघा बइठगे । बिहनिया बेरा हिरउ के गोसाईंन मंगली बारी कोती गिस त देख के अब्बक होगे । सब नार - बियांर ल चर दे रहिस । हिरउ के गोसाईंन भइंसा के खूर अऊ ओकर गोबर ले चिन्हारी कर डारिस कि करिया भइंसा बारी के नार बियांर ल चर के खूंद - कचर डारे रहिस फेर करिया भइंसा कोठा म कलेचुप बइठे रहिस त ओला विश्वास घलो नि होवत रहिस कि करिया भइंसा ह चरे हावे ।

             एकदिन हिरउ भइंसा चरा के लूदिया तलाव म धोके घर लानत रहिस , करिया भइंसा आघू म रहे अऊ भूरवा भइंसा पाछू कोती दूनों धीरे - धीरे घर आइन घर के मुहाटी ले  नाहक के जइसे परसार म भइंसा  पहुंचिस त ओमेर हिरउ के लइका माड़ी म गोंगनिया करत खेलत रहिस । हिरउ के गोसाईंन रंधनी कुरिया म खुसरे रहिस । जइसे भइंसा के गोड़ के अवाज ल सुन के सकपकावत ए ! ' मोर लइका '.... चिल्लावत मंगली कहिस ! करिया भइंसा मंगली के अवाज ल ओरख दारिस अऊ तुरते उहीच मेर ठाड़ होगे एको पांव आघू नि बढ़ाइस । लइका खुंदाय बर बांच गिस अऊ जबर अलहन टरगे । जानवर मन मूक जरुर होथें फेर अपन के मालिक बर वफादार अऊ संवेदना घलो रहिथे।

              एक दिन भूरवा भइंसा बीमार पर गिस । करिया भइंसा ओला अपन जीभ म चाट के मया करत रहिस । काबर दूनों एके संग रहंय खाय -पीए अऊ चरे घलो एके संग एके जघा चरंय । दूनों एक दूसर ल भारी मया करंय । हिरउ बइद गुनिया अऊ डाक्टर ल देखाइस । इलाज करवाइस फेर भूरवा भइंसा अपन मुहूँ ल करिया भइंसा के कान म लेगिस अऊ जोर से नरियाइस अऊ अपन परान ल निकाल दिस। अइसे लागिस कि करिया भइंसा ल कुछू कहिस होही ।

              भूरवा भइंसा के मरे ले ओकर संगी करिया भइंसा के आँखी ले आंसू के धार थिरकत नि रहिस।चिरइ - चिरगुन मन म घलो भारी मया के संगे - संग संवेदना घलो रहिथे । हिरउ भूरवा भइंसा ल चार झन मिलके बोह के लेगिन । समे गुजरत गिस थोरिक दिन के पाछू मंगली अपन गोसईंया ल कहिस...' करिया भइंसा एकेठन हावे एला बेच के आने भइंसा बिसा लेतेन '। ' ठीकेच कहत हावस तोर सलाव बने नीक लागत हावे '.....हिरउ कहिस !

             थोरिक दिन गुजरे के पाछू एकझन गरुवा - भइंसा के कोंचिया हिरऊ घर आइस अऊ मोल - भाव करके ओ करिया भइंसा ल बिसा डारिस । जब हिरउ ह कोठा ले भइंसा ल ढिले गिस त भइंसा जान डारिस कि मोला बेंच दिस । करिया भइंसा कोठा ले रोवत निकलिस काबर कि भूरवा भइंसा ओला मरे के बेर कहे रहिस होही कि हिरउ ल कभू झन छोड़बे । फेर ओकर तो वश के बात नि रहिस । मालिक हिरउ के घर अऊ गाँव छुटगे ए दुख म करिया भइंसा ल जबर पीरा होइस।

               ' करिया भइंसा के निकले ले कोठा सून्ना - सून्ना लागथे ' ... उदास मन ले हिरउ कहिस ! ' हव जी महूँ ल सून्ना लागथे '..... भरे गला ले मंगली कहिस ! ' शुक्रवार के भैसमा बजार भराथे एको दिन बजार चल दिहा अऊ भइंसा बिसा के लेके आहा '.....मंगली समझावत कहिस ! ' ले न का होही ए दारी के अवइया बजार म चल देहूँ ' ... धीरज धरावत हिरउ कहिस ! शुक्रवार के दिन आइस तहं ले...' संदूक के रुपिया ल निकाल के देतो बजार जाहूँ '....हिरउ कहिस । सबो रुपिया ल निकाल के दे दिस । ' बढ़िया सही भइंसा लेके आहा जी ' ....मंगली कहिस । ' तैं फिकिर झन कर भूरवा अऊ करिया भइंसा कस लेके आहूँ '.....हिरउ कहिस !

               तीर - तखार म कतको अकन मवेशी बजार लगथे जेमा भैसमा , हरदीबजार (कोरबा ), किरवई (रायपुर) , बेलरगाँव (धमतरी), उतई (दुर्ग), खैरा , डभरा  अऊ घोघरी ( सक्ती ) , बिर्रा, लखाली , खूंटीघाट , आरसमेटा अऊ बलौदा (जाँजगीर -चांपा) , गोंड़खाम्ही , तखतपुर (बिलासपुर) , दरमोहली (मरवाही) , झाबर (पेण्ड्रा) , लटोरी (सरगुजा) अऊ कतको जघा म मवेशी बजार लगथे । जेमा भैसमा बजार कोरबा जिला के सबसे बड़का अऊ नामी मवेशी बजार हावे ओहर शुक्रवार के लगथे । जेकर सोर दूरिहा - दूरिहा ले बगरे हावे। 

               हिरउ शुक्रवार के दिन भैसमा बजार गिस , बजार के छेदहा भांठा म गरुवा - भइंसा , छेरी - पठरु कुकरी - छेमरी के बजार लगे रहिस। हिरउ सबो रुपिया ल गठरी म बांध के कनिहा म कोंथियाय रहिस । ओहा भइंसा के गोहंड़ा ल किंजर - किंजर के देखत जावत रहिस । अपन मन पसंद के छांटत - निमारत रहिस तइसनहे बेरा म ओ करिया भइंसा अपन के जून्ना मालिक हिरउ ल दूरिहा ले चिन्हारी कर डारिस । देखते - देखत ओहर दउंड़ के हिरऊ के तिर म आके ओला अपन जीभ म चाटे लगिस अऊ अपन के पूछी ल घलो टांगे लागिस । हिरउ ओला अपन हाथ म मुड़ी अऊ पीठ ल संवारे लागिस । ' मोला बिसा लेते अऊ अपन घर ले जाते '.... करिया भइंसा रोवत कहिस अइसे लागिस ! फेर भइंसा के भाखा अऊ इशारा ल हिरउ नि समझ पाइस होही।

              बिचारा करिया भइंसा ल लवठी म पीटत अऊ हांकत कोचिया लेगिस । फेर करिया भइंसा उदास होगिस। गोहंड़ा ले छांट के एक रास पड़वा हिरउ बिसा के घर लेके आइस । एक झन किसान समारु ल अंकड़ा भइंसा के जरूरत रहिस ओहर करिया भइंसा ल कोंचिया करा ले बिसा के अपन घर लेगिस। करिया भइंसा ल जोड़ी मिले बर मिल गिस फेर ओकर मन उहां नि लागत रहिस । भूरवा भइंसा के सुरता म ओहर रो दारे । करिया भइंसा ल उंहा खाय - पीए ल बढ़िया देवंय फेर ओकर मन खाय पीए कोती नि लागे भलुक हिरउ के घर सुरता आवय । एक दिन करिया भइंसा रात के गेरवा ल झटक के टोर दिस अऊ कोला कोती के डाहर ले भागत - भागत अपन जून्ना मालिक के घर आ गिस ।

             बिहनिया बेरा मंगली घर के फइरका उघारिस त ओहर अब्बक होगे करिया भइंसा मुहाटी म ठाढ़े रहय । मंगली भइंसा ल भीतर कोती आय बर इशारा करिस तभे ओहर भीतर खुसरिस अऊ कोठा म पखरा के कोटना म भराय पेज पसिया ल एक सांस म सर - सरउवन पी दारिस। अइसे लागत रहिस कि कतका दिन के खाय पीए बर नि पाय रहिस । अपन जून्ना घर म आके ओला बड़ सुग्घर लागिस फेर ओला एहू बात के डर सतावत रहिस कि ओकर नवा मालिक खोजत आही अऊ लेके जाही इही बात ओला संसो धर ले रहिस । जून्ना घर के मालिक अऊ मालकिन के मया दूलार अऊ भूरवा भइंसा के कहे गोठ ओला इंहा तक झिंक लाने रहिस।

             ' हमर करिया भइंसा आ गहे त ओला राख लेथन '..... मंगली कहिस ! ' ठीक कहत हस ले राख लेवत हन '......हिरउ कहिस ! ' ओकर मालिक आही त ओकर कीमत ल दे देबो '....मंगली समझावत कहिस ! ' ले ठीक हे पड़वा मन संग ओहू रहे रही '..... हिरउ कहिस ! पन्दराही के कटे ले ओकर मालिक समारु खोजत आ गिस । ' मोर करिया भइंसा ल लेके जाहूँ ' .... समारू कहिस ! ' अइसे कर समारु ओकर तैं कीमत लेले '....मंगलू कहिस ! ' मोर भइंसा अंकड़ा हावे ओकर जोड़ी बर तो बिसाय हौं '.....समारु कहिस ! ' ठीक बात हे लेजा तोर भइंसा ल '....हिरउ कहिस ! समारु भइंसा ले जाय के कतको उदीम कर देखिस फेर भइंसा जाबेच नि करिस ।

              अपन मालिक के मया अऊ भूरवा भइंसा के सउंपे बात के खातिर करिया भइंसा ओ घर ल नि छोड़िस सहीच म ओहर मणि आय । जेकर चिन्हारी अंधियार म घलो हो जाथे काबर के ओहर रग - रग ले अँजोर दिखथे । जानवर घलो मन म संवेदना अऊ मानवता के गुन रहिथे । करिया भइंसा म ए गुन देखे बर मिलिस । जानवर घलो अपन मालिक बर वफादारी रहिथे अऊ जिनगी भर साथ देथें।

*✍️डोरेलाल कैवर्त " हरसिंगार "*

       *तिलकेजा, कोरबा (छ.ग.)*

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छत्तीसगढ़ी व्यंग्य बछरू के साध अउ गोल्लर के लात

 छत्तीसगढ़ी व्यंग्य

बछरू के साध अउ गोल्लर के लात

वीरेन्द्र ‘सरल‘

चरवाहा मन के मुखिया ह अतराप भर के चरवाहा मन के अर्जेन्ट मीटिंग लेवत समझावत रहय कि ऊप्पर ले आदेश आय हे, अब कोन्हो भी बछरू ला डराना-धमकाना, छेकना-बरजना नइ हे बस अतके भर देखना हे, ओमन  रोज बरदी म आथे कि नहीं? बरदी म आके बछरू मन कतको उतलइन करे फेर हमला राम नइ भजना हे। जउन बछरू बरदी म नइ आवत हे ओखर घर में जाके ओला ढिल के लाना हे अउ भुलियार के बरदी म रखना हे। ओमन चाहे तुमन ला लटारा मारे, चाहे हुमेले ? तुमन ला कहीं नइ कहना हे भलुक प्यार से समझाना हे, - "अइसना नइ हुमेले बेटा। सींग म पेट ला लाग जथे गा। ज्यादा उतलइन नइ करे जी, श्रीमान हो। महोदय मन अतेक काबर अतलंग करथो रे, बाबू हो। "

 बस अइसनेच समझाना हे। न कोन्हो ला हुदरना हे, न काखरो बर लउठी उबाना हे अउ न हर्रे कहिके बरजना हे, इहां तक कि कोन्हो ला लाल आंखी तक नइ देखाना हे अउ न कोन्हो ला करू भाखा कहना हे। कोन्हो भी बछरू कोती ले तुंहर शिकायत मिलही तब तुहर जेवर पानी ला बंद कर दे जाही, समझगेव? अतका समझाय के बाद तुमन नइ मानहूं तब तुम जानो अउ तुहर काम जाने।

मुखिया के गोठ ला सुन के सब चरवाहा एक-दूसर के मुँहू ला देखे लगिन। सबो झन मने-मन गुनत रहय। बड़ा मरना हे यार! संसार के सबो जीव ह ननपन में जउन बात ला सीखे-पढ़े रथे ओखरे असर जिनगी भर रथे। अइसना नियम में हमर नान-नान बछरू मन उजड्ड हो जही। कहीं नीति-नियम ला न तो जानही अउ न बड़े बाढ़ के मानही। फेर हमन ला काय करना हे ददा, जेवर-पानी के सवाल हे। जेवर पानी बंद हो जही तब पेट बिकाली म हमी मन मर जबो, तेखर ले जइसे ऊप्पर ले आदेश आय हे, वइसनेच करे में भलाई हे।

बरदी के नियम कानून ह ढिल्ला होइस तहन सब बछरू मन मनमाने उतलइन होगे। बछरू के गोसान मन सोचे कि चरवाहा मन अलाल अउ कोढ़िया होगे हे। फोकट के जेवर पाके मेछरावत हे अउ खेत म कनिहा तोड़ के कमइया सियान-सियान बइला मन अपन बछरू मन के भविष्य ला सोच के रातदिन संशो-फिकर म बुड़े रहय। ओमन मने मन गुनय कभू हमू मन बछरू रहेन तब हमर गोसान नहीं ते चरवाहा ह हमर असन दु झन बछरू ला जोड़ के एके संघरा रेंगें बर सिखोवय। नांगर म फांद के अघुवा बइला मन के पाछू-पाछू खेत म नांगर के हरिया म रेंगावय। दौड़ी म फांद के सब सियान मन संग रेंगे बर सिखोवय। लइकापन म हमन कोन्हो बरदी के नियम-कायदा ला तोड़ पारन तब छेके बरजे, फेर आजकल अइसन का होगे कि चरवाहा मन कछु बोलबे नइ करय।

येती छेल्ला पाके बछरू मन गजब लाहो ले लगिन। जब मन होवय तब बरदी ला भाग जावय। काखरो बारी - बखरी म खुसरके बेन्दरा बिनास कर देवय। उखर मन में डर नाम के कोन्हो बातेच नइ रहिगे। सबे बछरू मन हरहा होय लगिन।  हरहा बछरू मन कभु रखवार के सपेटा म पड़ घला जाय अउ कांजी हाऊस म धंधाय के सजा मिल जाय तब रखवार तीर तुरते गोल्लर साहब के सिफारिश आ जाय। गोल्लर साहब के डर के मारे रखवार मन तुरते हरहा बछरू मन ला कांजी हाऊस ले छोड़ देवय। गोल्लर साहब के परताप ला देख-सुन अउ समझ के बछरू मन के मन में बस गोल्लर बने के साध रहय। कभु-कभु बछरू मन अपन जहुंरिया संगी-साथी मन संग गोठियावय कि भुंकरे वाला गोल्लर बनना चाही कि आशिरवाद दे वाले गोल्लर ? जिनगी के मजा इही दुनो किसम के गोल्लर बने म हे। जउन बछरू ला आशिरवाद दे वाले गोल्लर बने के साध रहय वोहा नंदिया बइला ला अपन गुरू बना लेवय अउ जउन ला भुंकरे वाले गोल्लर बने के सउख रहय ओमन भूंकरे वाले गोल्लर के आघू-पाछू किंजरय। उखर इशारा म बेन्दरा बरोबर नाचय।

गोल्लर साहब के आघू-पाछू नाचत-नाचत जब एक झन बछरू जवान होगे तब मउका देख के वोहा एक दिन गोल्लर साहब ला कही पारिस-‘‘अब तो आप मन सियान होगे हो। भुंकरे भर ला सकथव तुहंर गतर तो चले नही। अब हमू मन तो गोल्लर बने के मौका देवव साहब।

बछरू के गोठ ला सुन के गोल्लर साहब भड़क गे। कहिस-‘‘तुमन गोल्लर बने के लइक दिखथव रे। नाक बोहावत हे तेला पोछे के ताकत नइहे अउ बड़े-बड़े सपना देखथव। तुमन हमर धरम अउ पारटी के झंडा ला उठा के जिन्दाबाद कहत भुंकरव। जउन ला मन लागे तउन ला हुमेलव। जेखर बारी-बखरी ला रउंदना हे रंउदव। कोन्हो रखवार छेकही बरजही तब हमला बतावव। हमर रहत ले कोन रखवार के हिम्मत हे जउन तुंहला कांजी हाऊस म धांध सके। बस गोल्लर बने के साध झन करव नहीं ते अइसे हकन के लटारा जमाहूं कि जिनगी भर बर गोल्लर बने के साध ला बिसर जाहू, समझ गेस?

हमर रहत ले तुमन  ला गोल्लर बने के अधिकार नइहे। हमर बाद हमरे पिला-पागड़ू मन गोल्लर बनही। ओखर बाद उखर पिला मन गोल्लर बनही। ओखर बाद---। तुंहर काम सेवा करना आय अउ सेवा के बदला ला मेवा पाके मजा उड़ाना हे, समझेस?

फेर ये पइत तो वो बछरू के दिमाग में गोल्लर बने के भूत सवार होगे रिहिस। वोहा गोल्लर साहब के बात ला समझबे नइ करिस अउ अपन जिद में अड़े रिहिस। गोल्लर साहब के दिमाग खराब होइस तब वोहा वो बछरू ला अइसे जमा के लटारा हकनिस कि बछरू ह सोझे पशु औषधालय के आधू में जाके गिरिस।

भकरस ले आवजा ला सुन के अस्पताल के भीतरी में खुसरे डॉक्टर झकनाके खोर  डहर दौड़ीस। देखिस, बछरू उतान पडे रहय। डॉक्टर ह तीर में आके पूछिस-‘‘आपके आगमन कहाँ ले होवत हे बछरू बाबू? सुनके बछरू बगियागे। ओखर एड़ी के रिस तरवा म चढ़गे। वोहा किहिस-‘‘दिमाग खराब झन कर यार! सोझ बाय मरहम-पट्टी कर अउ सूजी पानी दे।"

 डॉक्टर ह मरहम -पट्टी करे लगिस फेर बछरू ह कनिहा पीरा म हकरत-हकरत गोल्लर भैया जिन्दाबाद के नारा ला लगातेच रहय।

--वीरेन्द्र ‘सरल‘

बोडरा ( मगरलोड)

जिला-धमतरी , छत्तीसगढ़

मो 7828243377

ओ माया मोर

 ओ माया मोर 


धान कटोरा छत्तीसगढ़ म संस्कृति, परम्परा अउ आस्था के त्रिवेणी संगम हे। इहाँ के हर परब, उछाह अउ तीज-तिहार प्रकृति ले जुड़़े हवय अउ सबो के अपन-अपन महात्तम हे। नवरात के जवाँरा तको माई के पूजा, अर्चना अउ अराधना के संगे संग प्रकृति -पूजा के एक ठो विशेष शैली हरे।  


नवरात म देवी माँ नौ ठिन रूप म पूजे जाथे। कहिथे जब देवी माँ प्रगट भइस त ओकर हजारो आँखी रिहिसे अउ वो आँखी मन ले नौ दिन ले सरलग जल गिरत रिहिसे। संगे -संग खाए-पीए के जीनिस तको बरसत रिहिसे। जेकर ले सब जीव-जिनावर अउ वनस्पति-प्रकृति के पियास बुझिस। जीव-जिनावर के संगे-संग वनस्पति-प्रकृति के पियास बुझाए के सेति देवी के एक नाम शाकम्भरी तको परिस। इही दिन ले वनस्पति पूजा शुरू होइस। वनस्पति जिनगी के अधार होथे, जेकर ले जीव ल जीवन के  आधारभूत शक्ति मिलथे। उही सेति जेवन माने जीवन के आसरा म लोगन जवाँरा बोथे। प्राचीन भारतीय चिकित्साशास्त्र आयुर्वेद के अनुसार जवाँरा के रसपान ले विटामिन सी अउ रोग प्रतिरोधक क्षमता म बढ़ोतरी होथे। सरगुजा म एला जई बोना त बस्तर म देवी जगार के नाम ले जाने जाथे।


सेऊक मन पंचमी के जस पचरा गाके माता के सोलहो सिंगार के वर्णन करथे त सप्तमी के दिन ल जगराता कहिथे। सप्तमी के दिन रात भर जागके देवी दाई के पूजन अर्चन करे जाथे। बिहान भर माने अष्टमी के कलश चढ़ाके पींवराए जवाँरा ल अउ गाढ़ पींयर देखे के आसरा म हरदी पानी छींचथे जेला हरदाही कहिथे। सेऊक मन देवी जस गीत के अलावा ओकर दिकपाल मन के तको जस गाथे जेमा ब्रम्हा के पुत्र बरमदेव, गहिरा के पुत्र ल गोड़रइया अउ धोबी के पुत्र ल बन के रकसा कहिके संबोधित करे जाथे। 


जवाँरा के फुलवारी ल देख-निहारके सियान मन वो बछर के सुकाल -दुकाल के अनुमान लगा लेथे। फुलवारी कहूँ रिगबिग ले घमाघम जामे ह त सुकाल हे, कहूँ कमजोर हे त दुकाल अउ खण्ड मंडल जागे ह त समझ ले वो बछर खण्ड बरसा के लक्षण हे। 


संसार म सबो रिस्ता ले लहू के रिस्ता ल सगले बड़का माने जाथे। फेर देखे बर मिलथे कि लहू के रिस्ता ले तको बढ़के एक ठन अउ रिस्ता होथे वो होथे मया के रिस्ता। मया के ये रिस्ता म जात पात, ऊँच नीच, छोटे बड़े नइ देखे जाय। धर्म के भाखा म जेला निस्वार्थ प्रेम अउ विज्ञान के भाषा म प्लेटोनिक लव कहे जाथे। इही निस्वार्थ प्रेम ल आधार देहे खातिर छत्तीसगढ़ म मितानी परंपरा के निर्वहन करे  जाथे, जेला मितानी बदना कहे जाथे। जेला महाप्रसाद, गंगाबारू, गंगाजल, गोवर्धन, दौना, भोजली नाम देहे जाथे। इही मितानी परंपरा म जवाँरा बदे के तको रिवाज हवय। भोजली अउ जवाँरा के बदना ये बात के परिचायक हरे कि खून के रिश्ता ले बड़े अऊ रिश्ता होथे जऊन मन ले मन मिले ले बनथे। जऊन ह मनखे मनखे ल एक बनाथे अउ इही असल धरम हरे। धरम कोनो नीत-नियम या अचार-व्यवहार के मोटरा नई होवय जेन मनखे ल बाँधके रखय बल्कि धरम वो ये असार निसार संसार म जिए के रद्दा हरय जउन जिनगी म उछाह अउ मंगल भर देथे। जिनगी ल सजा-सँवार देथे। जिनगी के ये मरम ल समझ के जऊन करम करे जाथे उही धरम ये। अउ आखिर म देवी दाई के नौ रूप के अराधना -

पहिली पूजौं करौं वंदना

पहिला दिन नवरात्रि ।

पर्वत के शिखर म बिराजै 

रानी माँ शैलपुत्री ।।


जल कमण्डल  एक हाथ म 

दूसर हाथ गुलाब धरे ।

दूसरइया दिन ब्रम्हचारिणी 

रूप अनन्त धरे विचरै  ।।

 

दिन तीसर मंदिर देवाला 

गूंजै टनटन घंटा के ।

आधा चंदा माथा सोहै 

दसभुजी चंद्रघंटा ।।


शेर सवारी माँ  कूष्मांडा

प्राणशक्ति देवइया ।

जइसे गोला ब्रम्हांड के 

चौथा दिन म अवइया ।।


ज्ञान कर्म के सूचक मैया 

चार भुजी कमलासन ।

पा¡¡¡चवा दिन स्कंदमाता के

रंग सफेद मनभावन ।।


सत्य धर्म के सिरजन खातिर 

ज्ञान स्वरूपा क्रोध देखावै ।

जगतहित बर छठवा दिन 

माँ कात्यायनी रूप म आवै ।।


रूप भयंकर कालरात्रि के 

लाश (गदहा) म चढे धरे मशाल ।

दिन सातवा बनके आए 

मैया असुर मन के काल ।।


बइला सवार त्रिशूल धरे 

बिजली जस उज्ज्वल गोरी ।

आठवा दिन नवरात्रि में 

आवै मैया महागौरी ।।



अष्टसिद्धि नवनिधि के दात्री

चार भुजा हे तोर ।

अर्धनारीश्वर सिध्दिदात्री 

नौवा दिन हे तोर ।।


धर्मेन्द्र निर्मल

9406096346