Tuesday, 14 January 2025

आज स्वामी विवेकानंद जी के जयंती हरे। जम्मो देसवासी अउ खास करके युवा मन ल 'युवा दिवस' के कोठी-कोठी बधाई

 आज स्वामी विवेकानंद जी के जयंती हरे। जम्मो देसवासी अउ खास करके युवा मन ल 'युवा दिवस' के कोठी-कोठी बधाई!💐💐💐


(1)

नारी के सम्मान कइसे करना चाही, वोला स्वामी विवेकानंद ले सीखे के जरूरत हे। स्वामी जी के जीवन के कई ठी अइसे प्रसंग हे जेन ल आज अपन आचरण म उतारे के जरूरत हे। आवव एक ठी अइसने रोचक प्रसंग ल जानन।

--------   -------    -------    --------

"मैं तोर संग बिहाव करना चाहथँव, स्वामी जी।"

स्वामी विवेकानंद 1893 के शिकागो धर्म सम्मेलन म अतका नामी होइन के अमरीका म सरलग तीन साल ले जघा-जघा ऊँखर भाषण के कार्यक्रम होय लगिस। उहाँ के महिला मन घलो ऊँखर ले प्रभावित होय बिगन नइ रहि सकिन। कई झिन मन तो ऊँखर संग बिहाव करे के सपना घलो देखे लग गे रिहिन। 

एक बखत के घटना हरय। एक बिदेशी महिला अपन इच्छा ल रोक नइ सकिस अउ एक दिन विवेकानंद ले कहि दिस- "स्वामी जी, मैं तोर संग बिहाव करना चाहथँव।"

स्वामी जी पूछिस, "तैं अइसन काबर सोचथस?"

"स्वामी जी, मैं आपे के समान विद्वान अउ चमत्कारी पुत्र पैदा करे के साध पूरा करे बर आप संग बिहाव करना चाहथँव। अउ ये तभे हो सकथे जब आप मोर संग बिहाव करहू।"

तब स्वामी जी कहिथे- "बिहाव करना तो संभव नइ हे। फेर तोर साध पूरा करे के उपाय मोर पास हे।"

महिला पूछिस, "का उपाय हे?"

"आज ले मोही ल तैं अपन बेटा मान ले। तैं मोर माँ बन जा, मैं तोर बेटा बन जाथँव। तोर जम्मो साध पूरा हो जाही।" महिला सपना म भी नइ सोचे रिहिस के कोनो पुरुष अतका महान घलो हो सकथे। वो वोखर चरन म गिर जाथे, "तैं मनखे नइ हो सकस। तैं तो साक्षात भगवान हरस।" 

ओखर आँखी ले प्रेमरस के धार बोहाय लगथे।


ये रिहिन महामानव विवेकानन्द! कोनो महामानव अइसने नइ बन जाय। अउ आज के मनखे का करत हे, जेला हम नेता कहिथन वो खुलेआम देस के बेटी के इज्जत उतारे बर घलो नइ हिचकय।


(2)

12 जनवरी 'युवा दिवस' विशेष


°उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत"

"उठव, जागव अउ लक्ष्य पाय के पहिली झन रुकव"  


भारत भुँइया के महान गौरव स्वामी विवेकानंद के आज जनम दिन हरय। स्वामी जी के जनम 12 जनवरी सन् 1863 के कलकत्ता (अब कोलकाता) म होय रिहिस। ऊँखर पिताजी के नाँव बाबु विश्वनाथ दत्त अउ महतारी के नाँव सिरीमती भुवनेश्वरी देवी रिहिस। ऊँखर माता-पितामन ऊँखर नाँव नरेन्द्रनाथ रखे रिहिन। बचपन ले ही नरेन्द्रनाथ धार्मिक सुभाव के रिहिन। धियान लगाके बइठे के संस्कार उनला अपन माताजी ले मिले रिहिस। एक बार नरेंद्र एक ठी खोली म अपन संगवारी मन संग धियान लगाय बइठे रिहिन के अकसमात कहूँ ले वो खोली म करिया नाग आके फन काढ़ के फुसकारे लगिस। ओखर संगी साथी मन डर के मारे उहाँ ले भाग के उँखर माता-पिता ल खभर करिन। उन दउड़त-भागत खोली म पहुँचिन अउ नरेन्द्र ल जोर-जोर से अवाज देके बलाय लगिन। फेर नरेन्द्र ल कहाँ सुनना हे। वोतो धियान म मगन हे ते मगने हे। एती नाग देवता अपन फन ल समेट के धीरे-धीरे कोठी ले बाहिर होगे। ये घटना ले माता-पितामन ल आरो हो गे नरेन्द्र कोनो छोटे-मोटे बालक नोहे अउ भगवान जरूर वोला बहुत बड़े काम बर भेजे हे। ये बात बाद म साबित होइस तेला आज सरी दुनिया जानत हे। 


इही नरेन्द्रनाथ अपन गुरू स्वामी रामकृष्ण परमहंस के चेला बने के बाद स्वामी विवेकानंद के नाँव ले दुनियाभर म प्रसिद्ध होइन। स्वामी विवेकानंद आज ले लगभग डेढ़ सौ साल पहिली होइन फेर ऊँखर विचार ल जान के आज के पीढ़ी ल अचरज हो सकथे के ऊँच-नीच, जात-पाँत,  दलित-सवर्ण के जेन झगरा आज देस के बड़े समस्या के रूप धर ले हवय तेखर विरोध उन वो समय म करिन जब समाज म एखर कट्टरता ले पालन करे जाय अउ एखर विरोध करना कोनो हँसी-ठठ्ठा नइ रिहिस। वो समय म उन नारी जागरन, नारी सिक्छा अउ दलित शोषित मनखे बर आवाज उठइन तेन बड़ जीवट के काम रिहिस। नरेन्द्र बचपन ले ही मेधावी, साहसी, दयालु अउ धार्मिक सुभाव के रिहिन। उन रामकृष्ण परमहंस ल गुरू बनाइन फेर ठोक-बजा लिन तब बनइन। हमर छत्तीसगढ़ म एक ठी कहावत हे-"गुरू बनाए जान के पानी पीयय छान के"। अउ नरेन्द्रनाथ अपन गुरू रामकृष्ण परमहंस के महाप्रयान के बाद संन्यास धारन करके स्वामी विवेकानंद कहाइन।


अब वो समय आइस जब दुनियाभर म स्वामी विवेकानंद के नाँव के डंका बजना रिहिस। वो समय रिहिस 11सितंबर 1893 अमरीका के शिकागो सहर म विश्व धर्म महासभा के आयोजन। जेमा स्वामी जी बड़ मुस्किल ले सामिल हो पाइन। अउ जब ऊँखर बोले के पारी आइस तौ अपन गुरुजी के याद करके बोलना सुरू करिन- "अमरीका निवासी बहिनी अउ भाई हो..." बस्स् अतके बोले के बाद धर्म सभा के जम्मो देखइया सुनइया दंग होके खुसी के मारे ताली बजाय लगिन।  हरदम "लेडीज़ एंड जेन्टलमैन" सुनइया मन कभू सपना म नइ सोंचे रिहिन के कोनो वक्ता अइसे घलो हो सकथे जेन उनला बहिनी अउ भाई बोल के सम्मान देही। बाद म अपन भासन म हिन्दू घरम के अइसे ब्याख्या करिन के अमरीकावासी मन सुनते रहि गे। धरम के अतका सुंदर ब्याख्या ओखर पहिली कोनो नइ कर पाय रिहिन। बिहान दिन अमरीका अउ दुनियाभर भर के अखबार स्वामी जी के तारीफ म भर गे राहय। 

30 साल के उमर म स्वामी जी हिंदू धरम के झंडा फहराय बर अमरीका अउ यूरोप सहित दुनियाभर भर म घूमिन अउ अपन जीवन के ये पाँच-छे साल जिहाँ भी गीन उहाँ हिंदू धरम के झंडा गड़ा के ये साबित करिन विश्वगुरु होय के योग्यता यदि कोनो धरम हे तो वो हे हिंदू धरम।

स्वदेस वापिस आके उन जघा-जघा रामकृष्ण मिशन के स्थापना करिन। कुछ दिन बाद उनला आभास होगे के आगे के काम बर ये सरीर के कोई जरूरत नइ रहि गे। अब ये सरीर तियागे समय आ गे हे। स्वामी विवेकानंद 4 जुलाई 1902 महासमाधि धारन करके अपन भौतिक सरीर तियाग दिन अउ मात्र साढ़े 39 बरस म कतको महान कारज करके ये साबित कर दिन के जीवन बड़े होना चाही लंबा नहीं।

सन् 1984 म भारत सरकार दुवारा स्वामी विवेकानंद के जनमदिन ल युवा दिवस के रूप म मनाय के घोसना होय रिहिस। तब से हर साल 12 जनवरी ल युवा दिवस के रूप म मनाय जाथे। ऊँखर देय मूलमंत्र-"उठव, जागव अउ लक्ष्य पाय के पहिली झन रुकव" हमेसा युवा मन बर अटूट प्रेरणास्रोत रइही।


-दिनेश चौहान,

छत्तीसगढ़ी ठिहा, 

सितलापारा, नवापारा-राजिम

Thursday, 9 January 2025

नानूक व्यंग्य लेख " रउनिया बर झगरा "

 नानूक व्यंग्य  लेख 

    "  रउनिया बर झगरा "

       -मुरारी लाल साव 


रात के जाड़ बिहनिया के होवत ले रहिथे l बिहनिया के रउनिया बर शरीर काँपत रहिथे

नान नान लइका मन रउनिया तापे बर झगरा होवत रहिस l  बने सोच  लुकाये रहिस बाहिर निकले ला धरलिस l जतके जाड़ अमाथे  कंबल ल ओढ़े भीतरी के गरमी अउ भड़ास ला निकालथे l 

रउनिया बर लड़ई करत आज पछहत्तर बच्छर सिरा गे l समस्या के बदरी म रउनिया तोपा गे हे l कोनो मेऱ ले दिखथे   लोगन झपट पड़थे l  दिन दहाड़े रूनिया ला  कमरा म कंबल ओढ़ाके  मुरकेट डरिन l रउनिया जेन ला मिलथे तौन चपके ला धरथे l जेकर जतका दम पोटार के धरे हे लुका के राखे हे l देने वाला भगवान अबड़ देवत हे फ़ेर भईया भियाँ म राज करत रउनिया दार मन गड्डी अउ गद्दी के बदौलत बगरन नइ देवय l 

जेती देख ओती झगरा l सबला हिस्से दारी चाही l दस बीस परसेंट तो अइसने  घर पहुँच सेवा होवत हे पद वाले मन ला l दस बीस परसेंट बनाने वाला चपकत हे l चालीस पचास परसेंट के रउनिया ला बाँटत हे l उहू म झगरा  चारो कोती l ओला कम दे हमर आदमी नोहय l हमर आदमी ला मिलही त बने जी परान देके काम करही l अस्पताल म रउनिया कइसे पसरे हे l खोरवा बर गाड़ी हे माड़ी नइ उसलत हे l आँखी दिखय झन दिखय लेंस लगवाये ला परही l झुंझुर झंझर म झंझट म पड़े रहिबे l

नर्स ला बाई झन माई कह तभे बात बनही l डॉक्टर मन देवता होथे  मरन देवय फ़ेर बिन दवाई के  जियन नइ देवय l

रउनिया तो सबो बर होथे रउनिया अमीर नइ देखय ना गरीब l सुरुज देवता नइ जानय  रउनिया कोन कइसे सकेलत हे l गद्दी वाले मन धकियाथे अउ गड्डी वाले मन धकियाथे  येला सब देखत सुनत हे l  गद्दी बर कददावर नेता चाही l गड्डी बर तोप तमंचा नहीं  दाँतनीर्पोरेवा चाही l  आँखी लड़रे ले काम बिगड़ जही आँखी मारे के तरीका बने होना चाही lइहू बात ला सुनत हन  एमन ला उंकर गरमी रहिथे l पइसा के गरमी अउ कुरसी के गरमी तेखर सेती जाड़ के आड़ कर लेथे l 

अतका सुख सुविधा रहे के बावजूद दूसर के हक कोती सबके नजर हे l

पुरुष के पीरा*

 कहानीकार 

डॉ पदमा साहू "पर्वणी" 

 खैरागढ़

                 *पुरुष के पीरा* 


"राम-राम माधव भइया।"

"राम-राम बिसउहा भाई। कहाँ जात हस गा?"

"कहाँ जाहूँ माधव भइया। तोरे करा आवत हाववँ। एक झन तहीं तो हस मोर सुख-दुख के संगवारी।"

"कइसे का होगे?"

"आज मोर मन बड़ भारी हे माधव भइया।"

"बिसउहा भाई का बात हे?" 

"माधव भइया हम पुरुष मन ल अपन अंतस के पीरा ल काबर छुपाए ल पड़थे? हमन गोहरा के काबर नइ रो सकन?"

माधव–"का करबे बिसउहा भाई हमन ल अपन अंतस के पीरा ल छिपा के कठोर बने ल पड़थे। हम पुरुष मन अपन घर के मजबूत पिल्लहर कस होथन जेकर ऊपर घर परिवार के गृहस्थी के बोझ ह लदाय रहिथे। हमी मन ह रो के टूट जाबोन त घर परिवार के का होही तहीं सोच तो भला।"

बिसउहा–"हव माधव भइया सिरतोन काहत हस। तें कइसे हस माधव भइया तोर का हाल-चाल हे।"

माधव–"मोरो मन गजब भारी हे बिसउहा भाई। महूँ ह तोर तीर आहूँ कहिके बड़ दिन के सोचत रेहेंव। बने करेस तहींं आगेस ते। आ भीतरी मा बइठबोन। अउ बता बिसउहा भाई लोग लइका मन सब बनें हे न?" 


बिसउहा –"का बताववंँ माधव भइया तैं तो जानथस मोर घर के घटना ल। अभी घर मा बेटा करन ल अकाल मउत मा गुजरे बछर भर नइ होय हे। में वोकर जब्बर दुख ल भुलायच नइ रेहेंव अउ करन के दाई, बेटा करन के दुख मा रो-रो के सरग सिधार गे। बेटा के दुख ह का कमती रहिस अब यहू दुख के आगी ल राख के भीतरी मा लुकाय अंगरा आगी कस अपन अंतस मा दबाय हँव। करन अउ वोकर दाई के अब्बड़ सुरता आथे त कोनो तीर अकेल्ला बइठ के रो लेथों भइया। काखर तीर जाके दुख ल बाँटहूँ तइसे लागथे।"

माधव–"का करबे भाई बिसउहा, जियत भर ले घर परिवार के सुख-दुख के भंवर जाल ह कभू नइ छूटय इही मा जिये मरे ल पड़थे।"

बिसउहा–"बूढ़त काल मा जवान बेटा अउ जोड़ी परानी के छूटे के दुख हा सहे नइ जात हे। उंँकर मन के बिना मोर जग अंधियार होगे हे माधव भइया।"


माधव–"तोरे कस मोरो हाल हे बिसउहा भाई फेर देख तो नारी होवय चाहे पुरुष सबके ठाठ हा हाड़ मांस के बने हे। इही ठाठ मा परमात्मा के अंश जीव ह जब तक रहिथे तब तक नर हो चाहे नारी सबला सुख-दुख, भूख-पियास, जीवन-मरन के भान होथे। ये संसार मा सब नर-नारी  सुख अउ दुख के कोरा मा अपन जिनगी ल जीथें। फेर नारी मन के अंतस मा समाय दुख पीरा ह सबला दिख जथे अउ पुरुष के अंतस मा समाय पीरा ह काबर नइ दिखय बिसउहा भाई?"


बिसउहा–"का करबे माधव भइया हम पुरुष जात के दुख ल कोनों ह कभू समझबे नइ करँय तइसे लगथे।"

          

      अब इही कर ले सोच ले माधव भइया भगवान राम ह अपन प्रजा मन के खातिर राज धरम ल निभाय बर जब माता सीता ल तियाग दिस त प्रभु राम के दुख जउन अपन छाती मा पथरा ल लदक के लक्ष्मण तीर माता सीता ल घर ले दूरिहा बन मा छोड़े बर कहिस होही त वोकर करेजा ह कुटी-कुटी नइ होइस हाेही? तभो ले प्रभु ह बोमिया के रो नइ सकिस। अंतस मा दुख ल छिपा लिस त का वोला पीरा नइ होइस होही? 

फेर भगवान के दुख ला दुनिया कहांँ समझिस।


माधव –सिरतोन कहिथस बिसउहा। वो तो भगवान रहिस तहू अपन दुख ल अंतस मा छिपा लिस अउ हमन तो साधारन मनखे हरन। ये दुनिया कोनों पुरुष ह कभू बोमिया के रो डरथे त माईलोगिन कस भो-भो-भो-भो रोवत हे घलो कही देथें।


बिसउहा –अइसने गोठमन ल सुरता करके महूँ ह घर परिवार ह तीड़ी-बीड़ी झन होय कहिके बहू खाय-पिये ल दिही तभो नइ दिही तभो ले वोकर दुख ल सोच के अपन नाती-नतरा मा मन ल लगाय रहिथों अउ उंकर आगू मा भीतर ले रोवत बहिरी ले हाँस के गोठियाय के नाटक करथवँ भइया माधव। 

  माधव –  भाई बिसउहा हमन ल अपन दुख ल पाछू मा रख के घर परिवार के सुख-शांति खातिर गृहस्थी के गाड़ी ल आगू बढ़ाय बर पड़थे। जउन पुरस ह एक खाँध मा अपन दुख अउ दूसर खाँध मा परिवार के जिम्मेवारी ल धर के बरोबर चलथे वोकरे घर परिवार मा सुख-शांति रहिथे।

माधव –हव भइया सिरतोंन बात आय। काखरो दुख ह भुलाय ले नइ भुलय तभो ले हाँस के गोठियाय ल पड़थे। हमन अपन दुख के डोंगा मा सवार रहिबो त घर-परिवार, गृहस्थी के डोंगा ह डूब जाही। परिवार खातिर हम पुरुष मन ल अपन दुख ल तियागे ल पड़थे।


बिसउहा–"माधव भइया भउजी नइ दिखत हे कहाँ हे गा?"

माधव–"खेत गेहे गा तोर भउजी हा।"

बिसउहा–माधवके नान्हे-नान्हे नाती नतरा ला देख के कहिथे –"त माधव भइया ये दुवारी मा खेलत नान-नान लइका मन के जतन पानी कोन करथे गा?"

माधव–"का करबे बिसउहा घर के लक्ष्मी कस बहू ल गुजरे दु बछर होगे हे। बहू के सुरता मा बेटा ह पगला कस घुमत रहिथे। दूसरा बहू खोजे बर जाथन त वोकर पाछू मा ये नान-नान तीन झन लइका हे तेला बताथन ताहन कोनो ह बेटी नइ देन कही देथे। भरे जवानी मा बेटा के दुख के आगू मा मोर दुख नानकून हे। बेटा अपने दुख चिंता मा डूबे रहिथे। का करवंँ तइसे लगथे भाई। ये नोनी-बाबू हें तीकरें सेवा जतन करत में घर मा रहिथों तोर भउजी खेत जाथे।"


बिसउहा–"करलई हे माधव भइया फेर रांधे गढ़े बर कइसे करथस गा?"


माधव–"जिनगी मा कभू हांड़ी-पानी ल छुये नइ रेहेंव बिसउहा फेर बहू के गुजरे ले अब मिही ह घर के बहू बनगे हों तइसे लगथे।"


बिसउहा–" करम कमई के खेल अउ प्रारब्ध के कोनों भोग ल भोगत हन तइसे लगथे माधव भइया।"


माधव–"तोर भउजी ह बिहनिया के हांड़ी-पानी ल देखत काम-बूता मा चिथिया जथे। अकेल्ला नान-नान तीनों लइका के जतन करत हलाकान हो जथे। मोर तबियत पानी ठीक नइ रहय त सबो काम-बूता ल करे के पाछू खेती किसानी ल देखथे। त संझा बेरा वोकर आवत ले आगी-पानी, गाय-गरुआ ल देखथवँ भाई। का करबे मोर तीनों तिलिक ह दिख जथे।"


बिसउहा–"घर के बेवस्था बर हम पुरुष ला घलो नारी परानी बनके काम करेच ल पड़ही माधव भैया।"


माधव – “हव बिसउहा भाई कभू-कभू तो आरा-पारा के मन माईलोगिन बनगे हस कही देथे फेर अपन घर के हाल अउ अपन दुख ल अपने जानबे।"


बिसउहा–"माधव भैया जेकर ऊपर बीते रहिथे तिही ह दूसर के दुख ल समझथे ग।"


माधव –विसउहा भाई बिन महतारी के नान-नान लइका मन जतका बेर रोवत "दाई कहाँ हे"? कहिके पूछथे त, न बता सकँव न रो सकँव तइसे हो जथे। बूढ़त काल मा ये दुख ह सहे नइ जात हे। तीन बछर ले लोग लइका के इही चिंता फीकर मा भीतरे-भीतर तोर भउजी सन घुरत हन। ये सब दुख ल तोर भउजी अड़ोसीन-पड़ोसीन, बेटी माई तीर गोठिया के मन ल हल्का कर लेथे। फेर में ह वोकर छोड़ काखर तीर गोहराहूँ तइसे लगथे। त आधा पीरा ल तोर भउजी तीर गोहराके वहू ल दुख झन होय कहिके आधा पीरा ल अंतस मा दबाय रहिथों। बेटा बइहा पगला कस घुमत रहिथे। काखरो कर वहू कुछु नइ गोठियाय। वोकरो दुख भारी हे। वोकरो जिनगी सुधर जतिस त मोर दुख कमतिया जतिस।


बिसउहा–"जब्बर दुख आय हे। भगवान ऊपर भरोसा राखे रहा भइया माधव। का करबे परिवार हे तभो नइ हे तभो सबो डहर ले दुख हे फेर हमन ल अपन अंतस के पीरा ल भीतरी मा धर के नइ रखना हे वोला कखरों न कखरों तीर गोठियायच ल लगही तभे हाँस के जी पाबोन।"


माधव बिसउहा के काँध मा हाथ रख के कहिथे – “हव भाई ये दे दूनों झन सुख-दुख ल गोठियाय हन त मन ह हल्का होगे।”


बिसउहा माधव के पाँव परत कहिथे– “ले अब जावत हौं माधव भइया बड़ देर होगे हे। तहूँ अपन लोग लइका ल देख अउ कभू कभार हमरो घर कोती झाँक ले कर सुख-दुख ला गोठियाय बर आय-जाय कर।”


       हव बिसउहा भाई जिनगी के राहत ले सुख-दुख लगे रहिथे। फेर कतको जब्बर दुख ह अंतस के पीरा बनके भीतरी मा धधकत रहिथे त अइसने गोठ बात ले दुख-पीरा ह थोरिक कमती होय असन लगथे त अइसने दया मया ल धरे आवत जात रहिबे भाई नइ ते हम पुरुष मन के पीरा हा अंतस मा अंगरा आगी कस सुलगतेच रही।


कहानीकार 

डॉ. पदमा साहू *पर्वणी*

खैरागढ़ छत्तीसगढ़ राज्य

सोनकुंवर* चन्द्रहास साहू मो-812057887

 *सोनकुंवर*


  

                                    चन्द्रहास साहू

                               मो-812057887


सन्ना ना नन्ना हो नन्ना...ना नन्ना.... !

सतनाम के हो बाबा ! पूजा करौ मैं सतनाम के.... ।

सतनाम के हो बाबा  ! पूजा करौ मैं जैतखाम के ..।।

गवइया के गुरतुर आरो आइस अउ जयघोष

    "बाबा घासी दास की जय !''

मांदर मंजीरा तान दिस। झांझ- झुमका झंझनाये लागिस । अउ अब जम्मो पन्दरा झन जवनहा मन हलु -हलु हाथ गोड़ कनिहा ला हलाए लागिस। संघरा, सरलग, नवा उछाह अउ नवा जोश के संग नाचत हावय पंथी नृत्य। जम्मो के बरन एक्के बरोबर। मुड़ी मा सादा सांफा, नरी मा कंठी माला, बाजू मा बाजूबंद, सादा धोती माड़ी तक । खुनूर- खुनूर करत घुंघरू दमकत माथ मा सादा के तिलक  गजब सुघ्घर दिखत हावय।

पंथी नाच ! नाच भर नोहे येहा साधना आवय। भक्ति, आराधना आय। समाज मा सदभाव राखे बर बबा के संदेश देये के माध्यम आवय। .....अउ बबा के चमत्कार ला बताये के साधन घला आय। जम्मो गाॅंव गमकत हावय सतनाम चौक मा आज । 

                       महुं तो गेये हंव आज नरियर अउ फूल धरके । पंथी नाच हा अब अपन चरम मा हावय। मांदर के ताल ,झांझ के झंकार झुमका के झम्मक -झम्मक अउ छनन-छनन  करत गोड़ के घुंघरू। सुर मा गाना गावत गवइया, ताल मा ताल मिलावत अहा...अहा... बाबाजी अहा...अहा..। आरो हा नाच के सुघराई ला बढ़ा देथे।

"बाबा ! मोर गुरु बाबा ! मोर बनौती बना दे गुरुजी ।'' 

सी..सी.. सुसके लागिस । ........अउ  चिचियाके किहिस। 

"बाबा जी की जय !'' 

सादा लुगरा वाली मोटियारी हा दुनो हाथ जोर के भुइयां मा घोण्डे लागिस आजू- बाजू। देखइया मन अब मोटियारी के पूजा करिस।  चंदैनी गोंदा के माला पहिरा दिस। गवइया मन अब गुरु महिमा ला उच्चा सुर मा गाये लागिस। जम्मो कोई सतपुरुष समागे काहय। तब कोनो हा देवता चढ़े हे काहय। कतको झन बाबा आ गे हे सौहत किहिस । फेर मोर बर तो मनोरोगी रिहिस।  

नर्स आवव न अब्बड़ पढ़नतिन। 


                   स्वास्थ्य जाॅंच बर गाॅंव ला किंजरत हावन आज। उही मोटियारी घर गेयेंव। सुकुरदुम हो गेंव। लोटा मा पानी लान के दिस गोड़ धोये बर। टुटहा खइरपा । ओदराहा  भसकहा कोठ अउ कोठ मा चिपके बाबा जी के फोटू ..। सुरुज नारायेन कस दमकत चेहरा। सिरतोन अब्बड़ सुघ्घर लागत हावय बाबा जी हा । दू कुरिया के घर। बारी मा छिछले तुमा कुम्हड़ा तोरई के नार  अउ सदा सोहगन के फूल- जम्मो ला देखे लागेंव।

                    " फुटहा करम के  फुटहा दोना, लाई गवागे चारो कोना । अइसना होगे हाबे बहिनी मोर जिनगी हा। जस मोर नाव तस मोर करम के डाढ़ होगे हे। नाव दुखियारीन बाई अउ सिरतोन दुख मा चिभोर डारे हावय परमात्मा हा मोला। हमर ददा हा भलुक गरीब रिहिन। फेर काखरो बईमानी नइ करिस। लबारी नइ मारिस। भलुक हमन ठगागेंन।''

दुखियारीन बाई बताये लागिस।

"का होगे बहिनी ?  बता।''

मेंहा पुछेंव अउ दुखियारीन बताइस। 


"ओ दिन के गोठ आवय। जम्मो कोई बाबा जी के जयंती मनाये बर मगन रेहेंन। सरई रुख के एक्काइस हाथ के खम्बा ला अमरित कुंड के पानी ले नहवा-धोवा के सवांगा करत रेहेंन। भंडारी घर ले पालो ला परघाके जैतखाम कर लानेंन अउ सात हाथ के पोठ बांस  मा बांधेंन। 

"पालो का हरे दीदी !''

"सादा रंग के चकौर कपड़ा आवय। जौन हा धजा बरोबर जैतखाम मा फहरावत रहिथे। मनखे-मनखे एक समान। कोनो बड़का नही कोनो छोटका नही। बबा महतारी जम्मो एक बरोबर। नारी के सम्मान समरसता सदभावना एकता भाईचारा  बाबा जी के सप्त सिद्धांत ला बगरावत कतका सुघ्घर दिखथे पालो हा.... ।''

दुखियारीन भाव विभोर होगे, बतावत हे।

            "फेर ...हमन कोनो बात ला मानत हावन का ? रोज अंगरी धर के रेंगाये बर आगू मा ठाड़े हावय बाबा जी हा । फेर हमर आँखी मा छल कपट के परदा बॅंधाये हावय। काला देखबो ?''

दुखियारीन के आँखी रगरगाये लागिस अब।

               "महुं हा ओ मनमोहना ला देखत रेहेंव अउ ओहा मोला। टुकुर-टुकुर , बिन मिलखी मारे। पंथी नाच होवत रिहिस। आरती भजन होइस। सब मगन रिहिस अउ मेंहा मगन रेहेंव ओखर गुरतुर गोठ मा।''

सुरता मा बुड़गे रिहिस दुखियारीन हा अब। 

"आज साँझकुंन ददा ला पठोहू तुंहर घर। तोला मोर बर मांग लिही । तेहां बलाबे न अपन घर ...?'' 

जवनहा  राजकुमार किहिस। मेंहा मुच ले मुचका देंव लजावत। नवा घर बर नेव कौड़ई होवय कि नवा योजना, बर - बिहाव। आज के दिन अब्बड़ फलदायी होथे। ओमन घर आइस हमर अउ गोठ बात घला करिस।

"तुमन अब्बड़ बड़का हावव अउ हमर बियारी ले दे के होथे।''

"उच्च नीच बड़का छोटका के गोठ नइ हे सगा ! जब मन मिल जाथे तब नत्ता जुरथे।'' 

ददा ला समझाये लागिस राजकुमार के ददा हा। मोर दाई हा घला मोर ददा ला समझाइस मोर बिचार पुछिस तब हाॅंव किहिस। 

हमर दूनो के बिहाव होगे। करजा बोड़ी घला करिस फेर उछाह मा कमती नइ होइस।

                  गरीब के बेटी आवंव कहिके आगू - आगू ले जम्मो जिम्मेदारी ला निभायेंव। सास ससुर देवर जेठ , जम्मो कोई ला दाई ददा अउ भाई भइयां मानेंव। कतका ठोसरा मारिस मोला छोटे घर के बेटी आवय कहिके । खाये पीये बर, पहिरे ओढ़े बर, रांधे गढ़े बर। घर के गोठ ला बाहिर नइ लेगेंव भलुक अगरबत्ती बन के ममहायेंव। जतका जरत गेंव ओतकी ममहावत गेंव। दू बच्छर भर नइ बितन पाइस अउ ताना सुने लागेंव। कोनो बांझ काहय, कोनो ठगड़ी , कोनो निरबंसी। अब्बड़ सहेंव सहत भर ले अउ अब नइ सही सकेंव।

"तोर बेटा जोजवा हावय धुन मोर कोरा मा दुकाल परगे हावय। दूध के दूध अउ पानी के पानी हो जाही। तोर बेटा ला भेज डॉक्टर करा टेस्ट करवाबो दूनो कोई।''

छे बच्छर ले ठोसरा सुनत रेहेंव। आज मुॅॅंहू उघारेंव सास करा।

"बेसिया , घर के मरजाद ला अब गली खोर मा उछरत हावस। तुमन गरीब अउ छोटे घर के मन का जानहूं कूल अउ कूल के मरजाद ला ?  तोर का करनी..? का चाल..? का पाप आय तेन ला तिही जान..कतका सतवंतिन बनत हस तेहां। कोनो पाप करे होबस तेखर डाढ़ ला देवत हे भगवान हा। अउ तोर संग मा मोर बेटा झपावत हाबे।''

सास अब्बड़ बखानिस, मनगड़हन्त लांछन लगाइस । माइलोगिन के पीरा ला, माइलोगिन जान डारतिस ते कतका सुघ्घर होतिस। नारी परानी के रंदीयाये घांव ला अंगरी मा अउ कोचकथे माइलोगिन मन । तब बेटी दुख भोगही कि राज करही....? 

              जम्मो के ताना सुनत रेहेंव तब छइयां मिलत रिहिस रेहे बर। आज मुॅॅंहू उघार देंव छइयां सिरागे। सास तो आगू ले टुंग - टुंगाये रिहिस घर ले निकाले बर। ससुर अउ गोसइया आज चेचकार के निकाल दिस।

" निरबंसी के का बुता ये डेरउठी मा।'' 

नेवरनीन रेहेंव रौंद डारिस मोला।  अब जुन्ना होगेंव मेंहा। अउ जुन्ना कुरता के का बुता ..? तिरिया का आय ? ओन्हा कुरता आवय ओखर बर। 

"मोर बाबा जी जानथे कतका लबारी के चद्दर ओढ़े हावस तेला। वोला झन ठग। आचरण मा ईमान राख समाज मा ओहदा पाये बर उपरछावा पुजारी बने हस तेहां । फेर सब देखत हावय मोर देवता हा..! देख बाबा जी ! मेंहा मन बचन अउ करम ले कोनो पाप नइ करे हंव ते मोर कोरा मा फूल फूलो देबे । मोर जीवित बबा ! मोरो कोख ला हरियाबे । तहुं सुन मोर पतिदेव रातकुन के सुरता ला अंतस मा बसा के जावत हंव।

                पथरा मा पानी ओगर जाही । अतका आस ले ओ घर ले निकलगेंव महुं हा मायके के रद्दा।

दुखियारीन बतावत रिहिस। आनी-बानी के रंग रिहिस ओखर चेहरा मा।

                  रोजिना पूजा करो जैतखाम के अउ बाबा जी ला गोहरावंव। छातागढ़ पहार के औरा- धौरा के रुख मा आज घला जिंदा बिराजे हस। हवा मा कपड़ा टांग के सुखाये हस। पानी मा रेंगे हस। नांगर के पड़की ला बिन धरे खेत जोते हस। साँझकुंन आगी मा लेसाये भूंजाये फसल ला बिहनिया फेर लहलहाये हस। ..कोन नइ जाने तोर चमत्कार ला। महुं ला बना सपूरन माइलोगिन । तेहां भैरा नइ हस। हिचक - हिचक के रोये लागेंव मेंहा। 

आज एक बेरा बाबाजी ऊपर अउ आस्था बाढ़गे । अपन मयारुक बेटा- बेटी के गोहार ला अनसुना नइ करे। दू महीना बितन नइ पाइस अउ कोरा मा डुंहरु धरे के अनभा होये लागिस।  बेरा पंगपंगाइस अउ डुहरू ले फूल फूलगे अपन बेरा मा। छाती मा गोरस के धार फुटिस। अउ लइका के केहेव - केहेव रोवई ...सुघ्घर। जैतखाम मा घीव के दीया बारके असीस लिस ददा हा आज।  

                       गाॅंव भर तिली लाडू बाॅंटिस  ददा हा अउ गौटिया घला । राजकुमार आगे अपन अधिकार जताये बर। 

"मूल ला भलुक छोड़ देबे ब्याज ला भरोसी ले आनबे ।''

"अइसना तो केहे रिहिस सास हा । लइका ला लेगे बर आय हंव ..।''

गोसइया आवय मुचकावत किहिस।

"... अउ मोला ?''

" त तोला कइसे लेगहूं ? आने मोटियारी ला चुरी पहिराके लाने हावंव हप्ता दिन आगू ।''

राजकुमार किहिस छाती फुलोवत।

"सोज्झे कह ना जुन्ना घिसाये पनही ला फेंक के नवा पनही पहिर डारेंव। माइलोगिन ला पनही तो मानथस न ! मोला बांझ ठगड़ी कहिके निकाल देस । फेर बाबा जी ले बिनती करथो मोर सौत के कोरा झटकुन भर दे।''

"लइका ला दे । जादा भाषण झन झाड़ ..।'' 

गोसइया फेर तनियाये लागिस।

मेंहा मांग मा कुहकू भरे ला नइ छोड़ंव, चुरी बिछिया ला नइ उतारो, मंगलसूत्र ला नइ हेरंव तभो ले तेहां मोर बर मरगे हस अब। मोर बेटा ला छू के देख मोर बाबा जी हा छाहत हाबे...। राजकुमार लइका ला धरे लागिस। हाथ गोड़ काॅंपगे । काया पछिना - पछिना होगे। गोसइया राजकुमार झनझनागे फुलकाछ के थारी बरोबर । आगू कोती कतका उज्जर दिखथे फेर पाछू कोती ...करिया, बिरबिट करिया। जम्मो दंभ अउ गरब चूर - चूर होगे रिहिस राजकुमार के। 

               

 चार दिन के बेटी, दू दिन के दमाद।

ओखर ले जादा कुकुर समान। 


अब अइसना ताना सुने लागेंव। बेरा बीतत गिस  दाई ददा घर, अउ अब भइया भौजी के राज हमागे रिहिस। सतनाम भवन के तीर के एक घर मा रेहेंव । निंदई-कोड़ई, रोपा - पानी, रेजा - मजदूरी जौन मिलथे सब कर लेथन । अउ अइसना लइका बाढ़त हे।...... आज अतका बड़का होगे लइका बर संसो नइ हावय मोला।

                           आँसू मा फिले अपन जिनगी के किताब के जम्मो पन्ना ला मोर करा उलट-पुलट डारिस दुखियारीन हा। आँखी के समुन्दर ला पोंछिस। महुं हा  आँखी कोर के आँसू ला पोछेंव। 

खोर के कपाट बाजिस अउ साइकिल के आरो आइस । सांवर बरन, कोवर - कोवर हाथ गोड़, मुचकावत चेहरा.... सुघ्घर। हाथ मा झोला धरे । झोला मा मुर्रा मसाला अउ डिस्पोजल प्लेट। पठेरा मा मड़ाइस अउ आके टुप-टुप पाॅंव परिस।

"का बुता करथस बेटा ? अभिन तो नानकुन हावस।''

"भूख तो छोटका अउ बड़का नइ चिन्हे नरस मैडम जी। जम्मो कोई के पेट लांघन मा बिलबिलाथे।...... मुर्रा भेल बेचथो। उही सुभीत्ता आवय बनाये बर अउ बेचे बर।''

लइका जम्मो  रेसिपी ला घला बताइस । मेंहा लइका के मुॅॅंहू ला देखत रेहेंव। मेहनत के पइसा ला महतारी ला देवत अब्बड़ दमकत रिहिस।

"... अउ पढ़े बर ?''

"सातवी पढ़थो। स्कूल ले छुट्टी होथे तब बेचथो मुर्रा भेल। छुट्टी के दिन, दिनभर बेचथो । अभी जब ले दाई ला गिनहा लागत हाबे तब ले दू-तीन दिन नागा करथो स्कूल जाये बर। तभे तो दाई के ईलाज बर पइसा सकेलहूं।

"अब्बड़ सुघ्घर गोठियाथस। का नाव हाबे तोर ?''

फेर पुछेंव।

"सोनकुंवर नाव हाबे मोर। डॉक्टर बनहूं अउ दाई के ईलाज करहूं । दाई के दू सौ ग्राम के दिल अब्बड़ दुख पीरा सहे हे। ओखरे सेती कुछु बीमारी होगे हे कहिथे। जम्मो ला बने करहूं मेंहा।''

सोनकुंवर किहिस।

"हाॅंव बेटा ! बन जाबे।''

आसीस देयेंव अउ घर जाये बर उठगेंव हाथ जोर के जोहार करेंव।

सिरतोन अब्बड़ दुखियारी हाबे बपरी दुखियारीन हा। कोनो मनोरोगी नइ हावय भलुक गुनवती हाबे दुखियारीन हा। आस्था मा कोनो सवाल नही अउ विज्ञान मा कोनो उत्तर नही।सिरतोन नारी परानी गोड़ के पनही आय का..? मोरो गोसइया महुं ला छोड़ देहे। दहेज मांग के हलाकान करे अउ नइ दे सकेंव तब....।

                     "सोनकुंवर अभी ले कतका कमाबे अभिन पढ़े के उम्मर हावय। पढ़। मोर घर आ। बदला मा अपन घर के अमरित कुंआ ले बाल्टी भर पानी ले आनबे। मोर घर के पानी मा सुवाद नइ हे।''

सोनकुंवर ला अइसना केहेंव। लइका आये लागिस मोर तीर।  कभु चिला फरा खवावंव तब कभु  इडली दोसा उपमा..। घर मा मेंहा पढ़ावंव अउ स्कूल मा...।

"स्कूल के फीस के संसो झन कर।  तोर लइका  होनहार हावय । अब्बड़ उड़याही उप्पर अगास मा।'' 

"तही जान नरस दीदी ! अब तो कोन जन के दिन के संगवारी हावंव मेंहा ते।''

दुखियारीन किहिस ओखर तबियत बिगड़त रिहिस अब। ..... एक दिन दू बेरा हिचकिस अउ पंछी उड़ागे खोन्धरा छोड़ के। 

"दाई ! ''

 मोला पोटार के रो डारिस सोनकुंवर हा। ओला सम्हालेंव समझायेंव। 

             लइका होस्टल मा रही के पढ़त हावय। नव्वी, नव्वी ले दसवी,ग्यारहवी बारवी। पढ़ाई लिखाई तो फोकट मा होवत हावय फेर आने खरच बर पइसा पठो देथंव। सरकार ला धन्यवाद घला देथंव गरीब लइका ला पढ़े बर पंदोली देवत हावय तेखर सेती।

             अब तो मोरो ट्रान्सफर होगे हावय रायपुर। नवा जगा , नवा नत्ता- गोत्ता ,नवा  रस्दा सब नवा। शुरुआत मे हियाव करेंव। फेर तो अपन गिरहस्ती मा महुं रमगेंव। गरीब विधुर के संग मोरो बिहाव होगे रिहिस। पर के लइका बर कतका मोहो राखबे। चिरई चारा चरे ला सीख जाही ! उड़ाये ला तो जानत हावय। सोनकुंवर ला बिसराये लागेंव हलु - हलु।

                 आज जब ले सुने हावंव तब ले मन मंजूर होगे हाबे। अब्बड़ सुने हंव ओखर नाव । बिदेस ले आवत हावय । राज के स्वास्थ्य मंत्री अगवानी करही। डॉ एस के मार्कण्डे आवत  हावय। विश्व प्रसिद्ध हार्ट स्पेशलिस्ट । "हार्ट प्रॉब्लम केअर डायग्नोसिस एंड रिसेंटली इनोवेशन इंस्ट्रूमेंट्स ''  इही  टॉपिक मा डॉक्टर  साहब के उदबोधन रिहिस। पेपर मा छपाये फोटू ला देखेंव। चाकर छाती फड़कत भुजा गरब के अंजोर चेहरा मा , फोटू ला दुलार करेंव। सिरतोन सोनकुंवर बरोबर दिखत रिहिस। फेर ..मन के एक कोंटा ले आरो आइस। जेखर दाई ददा कोनो नइ हाबे अतका बिद्वान कइसे हो जाही..? अतका दिन ले कोनो सोर खबर नइ लेये हंव। हा... एक दू बेर पूछे रेहेंव तब रायपुर भोपाल अउ दिल्ली मा पढ़त हंव केहे रिहिस मेडिकल कालेज मा अउ अब........  बिदेस जाके कइसे अतका पढ़ लिही। कोनो हम सकल घला हो सकत हावय। ..आनी-बानी के बिचार आइस।

                        महुं जाहूं मेडिकल कॉलेज दूध के दूध अउ पानी के पानी हो जाही । आटो करेंव अउ रेंगे लागेंव  रायपुर के मेडिकल कॉलेज।

दिसम्बर के महिना अपन लछमी ला खेत ले कोठार , कोठार ले कोठी मा परघावत हावय।  बाबा घासीदास अउ प्रभु यीशु मसीह के जन्म के उछाह घला मनावत हाबे , ये दुनो पबित्तर दिन के महीना भर।

                 सभागार मा भाषण होइस बड़का शिक्षाविद वैज्ञानिक डॉक्टर  अउ बड़का वक्ता आये रिहिस। अउ भाषण देवत रिहिस । मोला तो गार्ड छेक दे रिहिस। अब्बड़ बिनती करेंव तब खुसरेंव। जम्मो कोई ला ऑटोग्राफ देवत रिहिस ओहा। अब मोला देखिस अउ प्रोटोकॉल ला टोर के आइस । सुघ्घर उही बरन । दमकत चेहरा अउ गमकत मन। मुचकावत आइस अउ टुप-टुप पाॅंव परिस मोर जवनहा हा।

" दाई तोर बेटा सोनकुंवर।''

"अब सोनकुंवर नही बेटा ! डॉक्टर सोनकुंवर।''

आँखी ले अरपा पैरी के धार बोहाये लागिस। पोटार लेंव।

मोर बेटा ! मोर सोनकुंवर !

मोर दाई ! मोर महतारी !

"नानचुन नरस के बेटा ! अतका बड़का डॉक्टर ?''

विभाग के जोन अधिकारी  हमन ला हिरक के नइ देखे वहुं हा मोर तीर आके बधाई दिस। फोटो खिचवाइस। 

"मोर दाई अब्बड़ जतन करिस मोर। अब्बड़ मिहनत करके पढ़ाइस। अउ नेशनल स्कोलरशिप घला लेये हंव तब काबिल बने हंव।''

जम्मो कोई ला बताइस डॉ सोनकुंवर हा। जम्मो कोई थपोली मारिस। 

                    अब अपन घर के रस्दा मा जावत हावंव सोनकुंवर के गाड़ी मा बइठ के ।  आज घला सतनाम चौक मा पंथी नाच होवत रिहिस । सोनकुंवर गाड़ी ला ठाड़े करवाइस । अब प्रोटोकॉल ला टोरत  मंच मा ठाड़े होइस अउ बाबा जी के गोड़ मा माथ नवाइस। राग अलापिस ।

सन्ना ना नन्ना हो नन्ना...ना नन्ना.... !

सतनाम के हो बाबा ! पूजा करौ मैं सतनाम के.... ।

सतनाम के हो बाबा  ! पूजा करौ मैं जैतखाम के ..।।

पंथीनृत्य ....मन अघागे। उछाह के समुन्दर लहरा मारे लागिस। महुं जोर से जय बोलाएव।


"बोलो गुरु घासीदास बाबा की -  जय !''


----------------////// -------------


चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

छत्तीसगढ़ी लघुकथा - " वसीभूत "

 छत्तीसगढ़ी लघुकथा -

     "  वसीभूत "

एक दिन अपन घर के आघू म बैठे रहेंव l एक करिया कुकुर तीर म आथे  अउ टुकुर टुकुर देखथे l ओखर आँखी म लालच के पुतरी एक टक देखत रहिस l अपन हाथ ला बार -बार खीसा म डारंव अउ निकालत रहेंव l 

कुकुर अउ निटोर के देखय एकर सेती कुछु न कुछु दिही l

ओकर लालच अउ बढ़गे l ए दफे मय मुठा भर ला निकाले के आघू म रखेव l  कुकुर अउ तीर म ऊं ऊं ऊं करत आगे l मुट्ठा ला खोल देंव  कुछु नइ गिरिस l कुकुर के जी चुरमुरागे l एक बार फ़ेर हाथ ला खीसा म डारेव अउ निकालेंव  मुठा ला नइ खोलेंव अउ दूसर डहर ला देखे के नाटक करेंव l करिया कुकुर धीरे धीरे सूंघियावत आगे l मुठा ला खोलत ओकर मुड़ी ला खजुवाये ला धर लेंव l कुकुर अपन मुड़ी ला पूरा दता दीस l खजुवाना ओला बने लागिस l तब लालच नइ रहिस ओकर आँखी म बल्कि दूनो आँखी ला मुँद लीस बेफिक्री होगे l शायद जान डरिस देवय नहीं त मारे भगावे तको नहीं l 

कुकुर के भीतर जागे मया भरोसा ला तोड़े के महूँ कोनो उदिम नइ करेंव l ओकर मुड़ी ला छुवत खजूवावत  दस मिनट होगे रहिस होही l बिन हांत -हुत के चुप चाप उठ के दूसर कोती रेंगे ला धर लेंव l कुकुर मोर पीछू पीछू आये ला धर लीस l कुकुर के हिम्मत बढ़गे मोर संग आये ला l दूसर कुकुर मन देख के भूके ला धरिस l करिया कुकुर मोर आघू पाछू घूमत दूसर कुकुर ला ज़वाब दे वत रहिस - " मुठा बंधाये हे अभी नहीं तो कभी भी खोलही मोर हिस्सा हे मोर आदमी हे एखर पाछू संग ला नइ छोड़व l"  

करिया कुकुर ला मोर कुकुर नइ कह पांवत हँव

काबर -"मया अउ लालच म कभू भी ककरो संग ककरो पाछू भाग सकत हे l" 

दूसर दिन फ़ेर अउ  अउ बैठेव l

ए दफे पूरा साहस के साथ मोर गोड़ ला चूमे ला धर लीस l अपन आँखी ला मुँद के लोर्घयाये ला धर लीस l सोचेंव थोकिन मया म अतका अपना पन कुकुर  के मन म आ गेहे l डउकी लइका म नइ दिखय l ओमन तो कुकुर ले जादा मतलबी स्वार्थी होथे l कुकुर के तीर म आये आदत परगे फ़ेर  तीर म रहिके डउकी लइका धुरिहा धुरिहा रहिथे l मौका आही त पूछय  नहीं l 


मुरारी लाल साव 

कुम्हारी

21 दिसंबर - जयंती म विशेष

 21 दिसंबर - जयंती म विशेष 


छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वप्नदृष्टा अउ सामाजिक क्रांति के प्रतीक- पं. सुंदर लाल शर्मा


जब हमर देश ह गुलाम रिहिस त वो समय अशिक्षा अउ छुआछूत के भावना ह समाज म व्याप्त रिहिन। येकर कारण हमर सामाजिक बेवस्था ह खोखला हो गे रिहिस।वइसे छुआछूत के नाता हमर देश से अब्बड़ पुराना हे।विदेशी शासक मन येकर खूब फायदा उठाइस। विदेशी शासक मन भारतीय समाज ल तोड़े बर अउ राजा - महाराजा मन ल आपस म लड़ाय खातिर फूट डालव अउ राज करव के नीति अपनाइस।  विदेशी शासक मुगल, अंग्रेज मन इहां के धार्मिक आस्था ल अब्बड़ चोट पहुंचाइस। मुगल शासन काल म कतको मंदिर तोड़ दे गिस। जनता उपर खूब अतियाचार करे गिस। अइसन बेरा म हमर देस म संत कबीर, गुरुनानक,संत रविदास, धनी धर्मदास साहेब, गुरु घासीदास बाबा अवतरित होइस अउ लोगन मन ल सतमार्ग म चलाय के सुघ्घर कारज करिन। ये सबो संत मन बताइस कि मनखे मनखे एक समान हे। ईश्वर एक हे। ये सबो संत मन धरम के नांव म समाज म व्याप्त छुआछूत, आडंबर,नरबलि, पशुबलि के विरोध करिन। लोगन मन म जागरण फैलाइस कि उंच नीच के भेदभाव ल भगवान नइ मनखे मन अपन सुवारथ खातिर बाद म बनाय हे। आधुनिक काल म स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती, महात्मा ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई फुले, महात्मा गांधी, डा. भीमराव अम्बेडकर जइसन महापुरुष मन हमर देश म फइले छुआछूत, आडंबर ल दूर करे बर अउ शिक्षा खातिर अब्बड़ उदिम करिन। 

  हमर छत्तीसगढ ह सद्भाव अउ समन्वय के धरती कहे जाथे त येकर पाछु गुरु घासीदास बाबा, धनी धर्मदास साहेब अउ पं. सुंदर लाल शर्मा जइसे महापुरुष मन के सतनाम आंदोलन अउ जन जागरण के सुघ्घर कारज हरे।


छत्तीसगढ़ के गांधी नांव ले प्रसिद्ध पं. सुंदर लाल शर्मा ह हमर छत्तीसगढ म सामाजिक अउ राजनीतिक आंदोलन के अगुवा माने जाथे। वोहा बड़का साहित्यकार के संगे -संग स्वतंत्रता सेनानी अउ समाज सुधारक रिहिन। प्रयागराज राजिम के तीर चमसूर गांव म 21 दिसंबर 1881 म अवतरे शर्मा जी ह "दानलीला" प्रबंध काव्य लिख के प्रसिद्धि पाइस त आजादी के आंदोलन म घलो बढ़ चढ़ के भाग लिन। अनुसूचित जाति मन के उद्धार खातिर अब्बड़ योगदान दिस . वोमन ला राजीव लोचन मंदिर म प्रवेश कराके एक बड़का कारज करिस । येकर बर शर्मा जी ल खुद वोकर समाज ले नंगत ताना सुने ला पड़िस। पर वोहा हार नइ मानिस अउ अछूतोद्धार के कारज ल सरलग जारी रखिस।

। ये कारज ला तो वोहा सन 1917 ले चालू कर दे रिहिन तभे तो जब महात्मा गांधी के छत्तीसगढ़ आना होइस त ये काम बर शर्मा जी ल अपन गुरु कहिके अब्बड़ सम्मान दिस।


समित्र मंडल के स्थापना 


 शर्मा जी हा अपन राजनीतिक जीवन के शुरूआत सन 1905 ले करिन। 1906 मा वोहा सामाजिक सुधार अउ जनता मा राजनीतिक जागृति फैलाय खातिर" संमित्र मंडल "के स्थापना करिन। 1907 के सूरत कांग्रेस अधिवेशन मा शर्मा जी हा भाग लिस। इहां उपद्रव के बेरा लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ल मंच म चढ़ाय म जउन लोगन मन के भूमिका रिहिन वोमा नवजवान शर्मा घलो अगुवा रिहिन। ये अधिवेशन म कांग्रेस हा गरम अउ नरम दल म बंटगे। वो समय कांग्रेस अउ देश म गरम दल के नेता लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, लाला लाजपतराय अउ विपिन चन्द्र पाल ह अब्बड़ लोकप्रिय नेता के रूप मा उभरिन ।


शर्मा जी हा रायपुर मा 'सतनामी आश्रम" खोलिस अउ "सतनामी भजनावली" ग्रंथ के रचना करिन, शर्मा जी हा लाल-बाल-पाल युग म सन 1910 मा राजिम म पहली स्वदेशी दुकान लगाय के कारज करिन। शर्मा जी हा सन 1918 म भगवान राजीव लोचन मंदिर राजिम म कहार मन के प्रवेश के आंदोलन चलाइस। 


कंडेल  नहर सत्याग्रह के अगुवाई 


सन 1920 मा असहयोग आंदोलन के बेरा म हमर छत्तीसगढ मा कंडेल सत्याग्रह चलिस। येकर अगुवाई शर्मा जी, नारायण लाल मेघावाले अउ छोटे लाल श्रीवास्तव हा करिन। किसान मन नहर जल कर ले नंगत परेसान रिहिन, शर्मा जी के मिहनत ले 20 दिसंबर 1920 म गांधीजी के रायपुर, धमतरी अउ कुरूद आना होइस।गांधीजी के पहली बार छत्तीसगढ़ आय ले इहां के जनता मा अब्बड़ उछाह छमागे। अइसन बेरा मा अंग्रेजी शासन ला झुके ल पड़िस अउ किसान मन के नहर जल कर ह माफ कर दे गिस।


जंगल सत्याग्रह के नेतृत्व 


21 जनवरी 1922 मा सिहावा नगरी मा जंगल सत्याग्रह होइस, लकड़ी काट के ये सत्याग्रह के शुरूआत करे गिस। येकर मौखिक सूचना वन विभाग के स्थानीय अधिकारी मन ला दे गिस। येकर अगुवाई शर्मा जी अउ नारायण लाल मेघावाले करिन, इंहा वन विभाग के अधिकारी मन आदिवासी जनता ला कम मजदूरी देवय। संगे संग आने प्रकार ले शोषण करय, आंदोलन के जोर पकड़े ले आदिवासी मन के मांग मान ले गिस। इही बेरा मा शर्मा जी ला अंग्रेज शासन हा गिरफ्तार कर लिस। वोला एक बछर अउ मेघावाले ला आठ माह के सजा सुनाय गिस। ये बेरा मा 1922 मा जेल पत्रिका (श्रीकृष्ण जन्म स्थान) रचना लिखिस। शर्मा जी हा 'भारत में अंग्रेजी राज' रचना लिखे रिहिन तेला अंग्रेज सरकार हा प्रतिबंधित कर दिस।


  अछूतोद्धार आंदोलन चलाइस 


23 नवंबर 1925 मा शर्मा जी के अगुवाई म अछूतोद्धार खातिर अस्पृश्य लोगन के एक बड़का समूह हा राजीव लोचन मंदिर मा प्रवेश करके पूजा- पाठ करिन।अनुसूचित जाति मन ला जनेऊ धारन करवाइस। 23 से 28 नवंबर 1933 के बीच गांधीजी के दूसरइया बार छत्तीसगढ़ मा आना होइस, ये बेरा मा गांधी जी हा अछूतोद्धार कारज के अवलोकन करिन अउ अब्बड़ प्रशंसा करिन । 28 दिसंबर 1940 मा शर्मा जी के निधन होइस। ता ये प्रकार ले हम देखथन कि शर्मा जी के सोर साहित्य के संगे संग आजादी के सेनानी के रूप मा बगरिस, वोहा संवेदनशील रचनाकार के संगे संग मंजे हुए राजनीतिज्ञ रीहिन, शर्मा जी हा प्रथम छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम संकल्पना करिन । 


रचनाएं.... 

शर्मा जी ह हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी म समान रूप ले लिखिन। छत्तीसगढ़ी म महाकाव्य लिख के महतारी भाषा ल समृद्ध करिन।

ऊंकर रचना म दानलीला (महाकाव्य), प्रहलाद चरित्र (नाटक), सच्चा सरदास (उपन्यास), ध्रुव अख्यान (नाटक), करूणा पच्चीसी (काव्य संग्रह), कंसवध (खण्डकाव्य), छत्तीसगढ़ी रामायण (काव्य), सतनामी भजन माला, श्री कृश्ण जन्म स्थान पत्रिका (रायपुर जेल पत्रिका) सामिल हे। छत्तीसगढ़ शासन ह उंकर स्मृति ल संजोय खातिर राज्य स्थापना दिवस म छत्तीसगढ़ी भाषा ल अपन लेखनी ले समृद्ध करइया साहित्यकार मन ल हर बछर पं. सुंदर लाल शर्मा सम्मान ले सम्मानित करथे।


         -ओमप्रकाश साहू अंकुर 

      सुरगी, राजनांदगांव

अहसास* (तीन छत्तीसगढ़ी लघुकथायें : वृद्धजनों की व्यथा-कथा)

 .                          *अहसास*

 (तीन छत्तीसगढ़ी लघुकथायें : वृद्धजनों की

    व्यथा-कथा)


                     -डाॅ विनोद कुमार वर्मा 


                             ( 1 )


          बिलासा कला मंच के दीपावली मिलन कार्यक्रम इतवार के दिन मँझनिया तिलक नगर स्कूल मा होवत रहिस। मँय उहाँ सपत्नीक पहुँचे रहेंव। स्कूल के मैदान मा कतकोन छोटे-छोटे खेल बिलासा कला मंच के डहर ले आयोजित रहिस..... फूगड़ी, गेड़ी दौड़, रस्सी खींच,नरियर फेंक अउ कतकोन ठिन। नारियर फेंक मा महूँ शामिल रेहेंव, देखेंव कि कतको झन अधेड़ संगवारी मन के नरियर 15 - 20 फुट ले जादा दूरिहा नि गिरत रहिस। तभे एक झिन कच्चा उमर के टूरा नरियर ला 50 फुट दूरिहा फेंक दीस! एक-दू झिन के नारियर 30 फुट दूरिहा मा घलो गिरिस। मने-मन मैं बहुत खुश रहेंव कि कम से कम दूसरा नंबर तो अइच्च जाहूँ। इनाम ले कोई मतलब नि रहिस, मतलब रहिस सिरिफ ये कि उहाँ अपन-आप ला साबित करना हे। कालेज मा नरियर फेंक मा मैं हमेशा अव्वल आवँव। तभे एक झिन नरियर ला 40 फुट दूरिहा फेंक दीस। एकर बाद मोर नंबर रहिस। मने-मन भगवान ला सुमरेंव अउ नरियर ला पूरा जोर लगा के फेकेंव। मोला उम्मीद रहिस कि नरियर 40 फुट ला नहाक जाही। फेर देखेंव त 15 फुट दूरिहा मा नरियर हा गिरे-परे रहे! एक झिन संगवारी पाछू ले कमेंट करिस- ' बुढ़ापा आ गे हे सर जी!  नरियर फेंक ला जीतना हमर-तुँहर बस के बात नि हे!'

          तब मोला पहिली बार अहसास होइस कि सचमुच बुढ़ापा आ गीस हे,.....  तभो ले ये बात ला माने बर मन हा तियार नइ हे!


.                               ( 2 )       


               पूस के महीना। संझाती 06 बजती बेरा। ठंड बढ़ गे  रिहिस। स्वेटर पहिने अउ कनटोप लगाये स्कूटर मा नेहरू चौक के पेट्रोल पंप मा पहुँचेंव। आघू वाला अपन स्कूटर मा पेट्रोल भराय के बाद मोबाईल म बात करे लगिस। तुरते पेट्रोल पंप के कर्मचारी मीठा आवाज मा बोलिस- ' भाई साहब! उमर के  चेत करव....पाछू मा कोन हवय।अतका उमर मा तो आप रेंगे तक नि सकिहव! '

        आगू के स्कूटर वाला ' साॅरी ' बोलिस अउ तुरते हट गे। ओ दिन सचमुच मोला अहसास होइस कि अब मैं सत्तर पार हो गे हवँ! बुढ़ापा आ गीस हे,.......  तभो ले ये बात ला माने बर मन हा तियार नि हे!


.                              ( 3 )


             ट्रेन मा आज भीड़ रहिस। जनरल बोगी मा चढ़ना मुश्किल रहिस त मैं स्लीपर कोच म चढ़ गेंव। रायपुर ले बिलासपुर के सफर दू घंटा के रहिस। मैं जगा के तलाश बर आघू बढ़ेंव.... ट्रेन मा दू घंटा खड़े रहना मुश्किल रहिस। कालेज के जमाना मा पसिंजर ट्रेन मा कतको बखत चार-पाँच घंटा तक खड़े-खड़े सफर करे रहेंव, फेर अब बात अलग हे। आज ट्रेन मा सबो सीट फुल रहिस। थोरकुन अउ आघू बढ़ेव त देखथों कि दू झिन टीसी कुछ हिसाब-किताब निपटावत सीट मा बइठे रहिन। जी धक् ले करिस!..... कहीं फाइन झन ठोंक दें! एमन के का भरोसा..... रेल्वे के नावा-नावा नियम अउ चेकिंग करइया नावा पीढ़ी के कच्चा उमर के लइका!  

          एक टीसी के नजर मोर उपर परिस। ओ खड़े हो गे। मोर जी धक्-धक् करे लगिस.....पता निहीं कतका फाइन ठोंकही?

         ' दादा जी आप बैठ जायें! '- टीसी के मीठा बोली सुन के मन ला ठंडक जुड़वास मिलिस। 

      ' नहीं, आप लोग बैठें। मैं यहीं ठीक हूँ! '

      ' दादा जी आप बैठें। आपकी उमर सत्तर पार है। आपके सामने हमारा बैठे रहना शोभा नहीं देता! '

            मैं ऊँकर सीट मा बइठ गें। फेर ये अहसास आज फेर होइस कि सचमुच अब बुढ़ापा आ गीस हे। आज मोर उमर ला देख के फाइन करना तो दूर टीसी अपन सीट ला घलो दे दीस! देखव तो समय के फेर! आज पहिली बार अहसास होइस कि बढ़ती उमर के घलो अपन अलग दबाब होथे। शायद एहा हमर देश के एक साँस्कृतिक पहिचान घलो हे। नई तो कतकोन पच्छिम के देश मा बूढ़ा मन ला परे-डरे मनखे समझ के परिवार अउ समाज ले दूरिहा टार देथें! ..... तभो ले ये बात ला माने बर मन हा अभी घलो तियार नि हे कि बुढ़ापा आ गे हे!


Story written by-


      डाॅ विनोद कुमार वर्मा 

व्याकरणविद्, कहानीकार, समीक्षक 


मो-  98263 40331

...........................................................