नानूक व्यंग्य लेख
" रउनिया बर झगरा "
-मुरारी लाल साव
रात के जाड़ बिहनिया के होवत ले रहिथे l बिहनिया के रउनिया बर शरीर काँपत रहिथे
नान नान लइका मन रउनिया तापे बर झगरा होवत रहिस l बने सोच लुकाये रहिस बाहिर निकले ला धरलिस l जतके जाड़ अमाथे कंबल ल ओढ़े भीतरी के गरमी अउ भड़ास ला निकालथे l
रउनिया बर लड़ई करत आज पछहत्तर बच्छर सिरा गे l समस्या के बदरी म रउनिया तोपा गे हे l कोनो मेऱ ले दिखथे लोगन झपट पड़थे l दिन दहाड़े रूनिया ला कमरा म कंबल ओढ़ाके मुरकेट डरिन l रउनिया जेन ला मिलथे तौन चपके ला धरथे l जेकर जतका दम पोटार के धरे हे लुका के राखे हे l देने वाला भगवान अबड़ देवत हे फ़ेर भईया भियाँ म राज करत रउनिया दार मन गड्डी अउ गद्दी के बदौलत बगरन नइ देवय l
जेती देख ओती झगरा l सबला हिस्से दारी चाही l दस बीस परसेंट तो अइसने घर पहुँच सेवा होवत हे पद वाले मन ला l दस बीस परसेंट बनाने वाला चपकत हे l चालीस पचास परसेंट के रउनिया ला बाँटत हे l उहू म झगरा चारो कोती l ओला कम दे हमर आदमी नोहय l हमर आदमी ला मिलही त बने जी परान देके काम करही l अस्पताल म रउनिया कइसे पसरे हे l खोरवा बर गाड़ी हे माड़ी नइ उसलत हे l आँखी दिखय झन दिखय लेंस लगवाये ला परही l झुंझुर झंझर म झंझट म पड़े रहिबे l
नर्स ला बाई झन माई कह तभे बात बनही l डॉक्टर मन देवता होथे मरन देवय फ़ेर बिन दवाई के जियन नइ देवय l
रउनिया तो सबो बर होथे रउनिया अमीर नइ देखय ना गरीब l सुरुज देवता नइ जानय रउनिया कोन कइसे सकेलत हे l गद्दी वाले मन धकियाथे अउ गड्डी वाले मन धकियाथे येला सब देखत सुनत हे l गद्दी बर कददावर नेता चाही l गड्डी बर तोप तमंचा नहीं दाँतनीर्पोरेवा चाही l आँखी लड़रे ले काम बिगड़ जही आँखी मारे के तरीका बने होना चाही lइहू बात ला सुनत हन एमन ला उंकर गरमी रहिथे l पइसा के गरमी अउ कुरसी के गरमी तेखर सेती जाड़ के आड़ कर लेथे l
अतका सुख सुविधा रहे के बावजूद दूसर के हक कोती सबके नजर हे l
No comments:
Post a Comment