Thursday, 9 January 2025

पूस महीना के महत्तम*

 *पूस महीना के महत्तम*

                                  

                          *डोरेलाल कैवर्त  "हरसिंगार "*

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                    हिन्दी पंचाग के कालगणना मुताबिक एक बछर के बारा महीना होथे अऊ सबो महीना बारा किसीम के अलगेच-अलग होथे। सबो महीना अपन आप म विशेष महत्तम ल तुमा नार असन लपेटे हावे।सबो महीना के अंधियारी अऊ अँजोरी पाख के आरुग पहिचान बने हावे।बारहो महीना के अलगेच चिन्हारी अऊ महत्तम फकफक ले ओग्गर दिख जाथे।

             बारहों महीना ल तीन ऋतु म अलगेच-अलग बांटे गे हावे।चार महीना बरसा ऋतु के होथे जेमा नरवा, नदिया ,तरिया, पोखरी,खेत-खार अऊ कुआँ-बउली जघा-जघा पानीच-पानी दिखथे।धरती दाई हरियर लुगरा पहिरे सोला सिंगार करे कस जनाथे।ओकर बाद चार महीना जाड़ा के ऋतु आथे जेमा जाड़ के मारे हाड़ा तको कांप जाथे,जाड़ दंदोरे लागथे।फेर चार महीना गरमी के ऋतु होथे।गरमी के मउसम म सूरुज ले अँगरा बरसा देथे।भुइयाँ के कुधरा चट ले जरे लागथे।देहें ले नरवा कस पसीना बोहाय ल धर लेथे।जुड़-छांव खोझासथे।चिरइ-चिरगुन,जीव-जन्त मन ल पानी पियाय के पून काम कतको झन मन करथें।

                    वइसे देखे जाय त पूस के महीना सबो ल अगोरा रहिथे, फेर पूस पून्नी के अलगेच महत्तम होथे।सबो किसान मन कोठार म धान के खरही छोटे-बड़े गोल चुकचुक ले गांजे रहिथें।दउंरी अऊ बेलन,टेक्टर ले अपन धान ल मिस-कुट के अन्नकुवांरी दाई ल परघाके घरेच म लानथें।कोठी-ढाबा धान म भराय रहिथे त घर म उछाव रहिथे।ते पाय के अन्नकुवांरी दाई के पाछू म सबो किसान मन गरब करथें अऊ अपन भाग सहरावत रहिथे।

                 पूस के महीना गजब आय बड़ जल्दी बुलक जाथे गम नि मिले।रथिया जबर लम्बा अऊ दिन छोटकून होथे।पूस महीना जाड़ के भराय महीना होथे।जाड़ ह देहें भर ल दंदोरे लगथे,झाँपी म धरे-सइंते सुपेती ,कम्बल ल बउरे बर सबोझन बहिराथें। *" पूस के जाड़ा कंपवा देथे हाड़ा "*। भूर्री बारे,रउनिया लेहे,गोरसी अऊ अंगेठा तापे के गजब मजा आथे।गरमे-गरम चहा अऊ पताल चटनी संग अंगाकर रोटी के सवाद लेहे के अलगेच मजा रहिथे।तरिया,नदिया के पानी सबो ल रहि-रहि के डरवाथे।बबा के गोरसी तपइ,चोंगी पियइ अऊ खोर-खोर खंसइ के आरो मिलत रहिथे।

                  पूस के महीना म सूरुजनारायन अपन सतरंगी रंग ल धरके रुख के छइहाँ म लुकावत ,धुंगिया के चद्दर ओढ़े मुचमुचावत बहिराथे।अइसे लागथे जाना-माना नवा बहुरिया कस लजावत हे।हवा तो बैरी बरोबर जनाथे जून्ना बैरवासी निकालत हावे अइसे लागथे।दांत किटकिटावत घड़ी के कांटा असन सुनावतत रहिथे।छोटे-छोटे बिरवा के ऊपर गोल-गोल शीत के बून्द मोती जइसन चमकत हावे।जेहर देखे म बड़ सुग्घर लागथे।

                  खेत-खार म तिवरा भाजी,चना भाजी,सेरसों भाजी,बटर,बउटरा अऊ मेड़ के राहेर सबो ल लोभावत रहिथे।तिवरा बटकर साग के सवाद लेहे के मजा आथे।बारी-बखरी के साग-भाजी,भांटा, पताल मन भावत हावे।बाम्बी सेमी,चनबुटरी सेमी अऊ पर्री सेमी के नार ढेंखरा म लपटाय अइसे लागथे जइसे मया ल रपोटे अपन छाती म चटकाय हावे।छत्तीसगढ़ के सेव कहाथे बोइर घलो मन भावन हो जाथे । डोहरहा अऊ गेदराय हरियर पिंवर बीही देखत मुहूँ म पानी ओगर जाथे।छत्तीसगढ़ म जघा-जघा रउताही मेला  घुमे अउ रेंहचुल, झूलवा झूले के अलगेच मंजा मिलथे।

               गुनिक सियान मन कहिथे हमर गँवई गाँव म अपन नोनी-बाबू के बर-बिहाव करे बर पूस पून्नी के तिहार मनाय के पाछू वर अऊ कइना खोजे सरेखे निकलंय एकर पाछू कुछू न कुछू कारन जरुर होही ।मोला लगथे जून्ना समे म आय-जाय के साधन सुविधा ओतका जादा नि रहिस ते पाय के रेंगत जावंय,जाड़ अऊ छोटे दिन ,काकरो घर रुके म परेशानी झन होही कहिके पूस महीना नाहक लेवय तेकर पाछू लोग-लइका के सरेखा करे जावंय।कइथे पूस म बरी घलो नि बनावंय।एकरो कारन हावे पूस महीना म बादर घोप देथे जेकर कारन बरी जल्दी नि सुखाय ते पाय के ओकर सवाद अमसुरहा हो जाथे अऊ नि चुरय घलो ।

               हमर देश म बछर भर म कतको अकन परब ल मनाथन।जेमा हमर छत्तीसगढ़ के पहिली तिहार हरेली ले शुरू होके फागुन महीना म मया-दुलार के परब मया के रंग होरी के संगे-संग तिहार ह छेवर होथे।छत्तीसगढ़ म सबो परब ल बड़का उछाव ले मनाय जाथे इहाँ के सबो तिहार म मया-दुलार भराय हावे जेकर सेती सबोझन परब ल मनाय म कोनों प्रकार के कोताही नि करंय।

              पूस पून्नी के दिन हमर छत्तीसगढ़ के लोक संसकृति,लोक परब,दान-पून के तिहार *छेरछेरा* बड़का उछाव ले मनाय जाथे।ये दिन के सबो ल अगोरा रहिथे।लइका रहे चाहे सियान सबो कोनों ल छेरछेरा मांगे जाये के साध लागे रहिथे।छेरछेरा परब बरोबरी के तिहार आय एमा छोटे-बड़े,जात-पांत,ऊंच-नीच के कोनों किसम के भेद नि रहे।येकर सेती ये तिहार ल समरस के तिहार घलो कहे गे हावे।अऊ सबो जुरमिल के मनाथे।

                छेरछेरा परब के दिन गली-खोर म बिहनिया बेरा लइका मन के सेरी-डोरी,आवा-जाही,रेलम-पेला लागे रहिथे।लइका मन के छेरछेरा के गुरतुर बोली कान म मंधरस घोरे रहिथे।झांझ-मंजीरा अऊ मांदर के थाप म कनिहा मटकावत डंडा नाचा गजब सुहाथे।डंडा नाचा के कुहूकी के अलगेच महत्तम रहिथे जेकर भाखा हिरदे ल हिलोर देथे।नोनी मन के सुआ नाचा बिधुन होके नाचथे।सुआ नाचा के सुग्घर गुरतुर गीत अऊ हंथोरी के थाप के सोर ह दुरिहा ले सुनावत रहिथे।

              एती घर के मुहांटी म डोकरी दाई टुकनी म धान धर के ठोम्हा,अँउजरा भर-भर बइठे-बइठे सबो लइका-सियान अऊ छेरछेरा मंगइया मन ल देवत मंजा लेवत हे,जइसे शाकम्भरी दाई सबो ल बइठे -बइठे मया-दुलार बांटत हावे।चूल्हा म माढ़े कराही चन-चन बरा के चुरइ के ममहाई गली-खोर ल तको गमका देवत हे। सबोझन नाचत-गावत,झुमरत खुशियाली मनावत मया-दुलार बांटत छेरछेरा परब मनावत रहिथें।पूस महीना छेरछेरा तिहार के संगे-संग माघ महीना ल सउंपत छेवर हो जाथे।

           आप सबोझन ल जोहार हे।

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