*चौपाल-(तब अउ अब)*
तइहा के बेरा मा गांव के चौपाल के बड़ महत्तम राहय कहिथें ...समस्या नान्हे होवय चाहे बड़का...गांव के सब समस्या के हल माने...गांव के चौपाल... समस्या कइसनो राहय ? .... सब चौपालेच मा निपट जावय...कहिथें।
पहिली चौपाल के विषय मा कोनों वर्ग,समाज वाले बातेच घलो नइ राहय तइसे घलो लागथे...भई...तभे तो गांव के कोनों वर्ग,समाज वाले के समस्या राहय...सब के समस्या के हल..निपटारा माने ...चौपाल... अउ वइसने एकर आदेश निर्देश के पालन घलो एकतरफा होवय कहिथें भई...फेर हो सकत हे ,वहु समे मा काहीं कुछु के अभाव मा सियान मन ले थोर मोर गलत नियांव नइते कोनों संग अनियांव भोरहा मा हो जावत रिहिस होही...तेकर भुगतना कोनो गरीब नइते अउ आने परिवार ला पर जावत रिहिस होही....यहु ला माने ला परही..यहु असंभव बात नोहे।
फेर....पहिली के मनखे मन हा कोट,कछेरी अउ थाना वाना के चक्कर मा जादा पड़बेच नइ करयं अउ पड़ना घलो नइ चाहयं तइसे घलो लागथे...काबर.. ओमन समझय के थाना कछेरी जाना मतलब... बड़का समस्या ....अउ बड़का समस्या माने... जेन समस्या के हल चौपाल मा संभव नइहे...?अब तो नान्हे नान्हे बात मा लोगन मन थाना अउ कोट कछेरी ला उमड़े घुमड़े ला धर लेथें ...थोरको धीर नइ धरयं....ताहने.. रेंगत हें कस के टूटत ले..पेशी...अउ पुरखा मन के सकेले जमीन ,जायदाद ला सिरवावत हे... अउ काहे...।
पहिली के सियान मन केहें घलो हे ...थाना अउ कोट, कछेरी के चक्कर...माने सरी धन,दौलत के सिरई... बर्बादी..।
...अब तो अपन-अपन वर्ग समाज के समस्या ला अपन-अपन स्तर मा घलो निपटा डरत हें भई...अउ कुछु सरकारी योजना ले संबंधित समस्या हे ता... पंचायत मा निपट जावत हे... अउ सुग्घर बात घलो हे...होना भी चाही..फेर...डांड़ बोड़ी ले दे के...अउ उही डांड़ बोड़ी के पइसा ले गांव,समाज के विकास करत हन कहना...कहां तक उचित अउ सहीं हे?
...समझ ले परे हे...अउ कोनों गरीब परिवार हा?...हमर इही डांड़ बोड़ी के चक्कर मा... समाज ले दुरिहावत जावत हे...हमर ले दुरिहावत जावत हे...गांव समाज के मुख्य धारा ले दुरिहावत जावत हें--कहिके आज के सियान मन काबर नइ सोचयं ?काबर एक घांव पाछू मुड़क के नइ देखय...काबर विचार मंथन नइ करयं?... के हमन जेन फैसला सुनाए हन, नियांव करे हन,तेन उचित हे के नहीं कहिके...।
काबर के ...तहां ले इही शोषित अउ पीड़ित वर्ग मन ही धीरे-धीरे हमर गांव ,समाज ले दुरिहावत जाथें अउ दूसर मन ,इंकर इही कमजोरी के फायदा उठा के...इन ला अपन शिकार बनाके... कुछ लालच देके...अपन उल्लू सिदहा कर लेत हें अउ अपन जनसंख्या ला बढ़ावत जावत हें...ता कहां ले गांव समाज के विकास...?ये तो सीधा-सीधा गांव समाज के विनाश होवत हे।
पहिली के नियांव करइया मन सोंचय,एक घांव पाछु मुड़ के देखयं,के सामने वाला ला हमर फैसला ले जादा पीरा तो नइ होवत हे...अउ काहीं उन ला लागय ता फैसला मा फेरबदल घलो करयं... तभे तो तइहा के बेरा मा चौपाल के निर्णय विश्वसनीय अउ सर्वमान्य रहय।
....अइसे बात नइहे के पहिली डांड़ बोड़ी नइ होवत रिहिस...!पहिली घलो जिंकर कोनों गलती राहय,नइते जेन मन गांव ,नइते कोनो वर्ग समाज के नीति ,नियांव के उल्लंघन करयं, तेन मन ला चौपाल के माध्यम ले गांव, वर्ग ,समाज के सभ्यता बने रहय अउ इन फेर गांव समाज के मुख्य धारा ले जुड़ जावयं कहिके इन ला सुधार स्वरूप कुछ दंडित जरूर करयं... फेर उन ला गांव ,समाज ले दुरिहावयं नाहीं.... फेर अब काबर उही मन दुरिहा जाथे..? मतलब सीधा हे के वर्तमान व्यवस्था हा कुछ तो दोषपूर्ण हावय...।
अब तो चौपाल सिरिफ नाम मात्र कुछु सरजनिक समस्या अउ कुछु आयोजन करे के निमित्त बर ही सकलाथें तइसे घलो लगथे ...वहू मा कोनो मान मर्यादा घलो नइ रहय...भई...।
कोनो नशापान करके आ जाय रही, ता कोनो अउ कहीं...ता कोनो कुछु बोलत हे ता कोनो अउ काहीं.... कहूं-कहूं जघा अइसनो..देखे सुने मा आथे...।
... हो सकत हे, जेन मन विरोध करथें तेन मन ला,अपन सियाने मन मा ही कुछु खामी नजर आवत होही? नइते इन ला वर्तमान सिस्टमे हा दोषपूर्ण लगत होही...तभे तो इन अंगरी उठाथें अउ विरोध करथें.. एमा काकरो व्यक्तिगत समस्या भी हो सकत हे।
...अउ एक बात..का पाय के ते?अभी के सियानी अउ नियांव मा मनखे मन पहिली जइसे बने बिस्वांस घलो नइ करयं भई.....।
फेर...हां !पहिली के चौपाल के विषय मा एक ठन यहु बात हे के पहिली के सियान मन जइसन निष्पक्ष अउ निःस्वार्थ सियानी अपन समे मा करयं,फैसला सुनावयं...नियांव करयं...। वइसन तो अब संभवेच घलो नइ हे...तइसे घलो लगथे...काबर? तभे तो ओ पहिंत इन ला *पंच परमेश्वर* काहय भई ...अउ तइहा के रहन-सहन,सोंच-विचार ,मान- मर्यादा अउ परिवेश असन...अब कुछु कहां घलो हे?
पहिली चौपाल के निर्णय मतलब सर्व मान्य रहय अउ वइसने निष्पक्ष अउ निःस्वार्थ सियानी घलो होवय भई... सामने वाला के आर्थिक,मानसिक, पारिवारिक अउ शारीरिक क्षमता ले वाकिफ होय के बाद ही सियान मन अपन निर्णय देवयं,नियांव करयं ताकि सामने वाला हा गांव समाज ले झन दुरिहावय कहिके.....?
... अब तो अइसन सिस्टम घलो चलत हे..एक्के घांव मा गांव समाज ले दुरिहा घलो देत हें.....अउ अगड़म सगड़म, डांड़ बोड़ी ले दे के ..एक्के घांव म अपना घलो लेत हें... अइसन तो हाल ...घलो हो गे हावय..लगथे।
... आजकाल एक ठन अउ बात देखे अउ सुने ला मिलथे...के ...अपन समस्या के निमित्त, कोनो चौपाल सकेलवाय रहि ...अउ फैसला ओकर पक्ष मा झन तो होवय... तहां ले देख ले...ओ अपन गलती ला मानबेच नइ करय...अउ एकेकन मा थाना कछेरी ला उमड़े ला धर लेथे...।
मतलब...आज के मनखे मन अपन गलती ला आसानी ले स्वीकारेच घलो नइ करयं अउ स्वारथ मा ही डूबे रहिथें...तइसे घलो लागथे।
....... अउ आजकाल के कुछ अइसने विशेष प्रजाति के सब रंगा ढंगा,चालाबानी अउ लंदर फंदर के सेती... घलो,कुछ हद तक आज हमर चौपाल अस्तित्व विहीन होय के कगार मा खड़े होगे हे तइसे घलो लगथे...... अउ हमर पुरखा मन तो केहे घलो हावय ना !..कुछ गंदा मछरी के सेती जम्मो तरिया बस्साथे अउ मतला जाथे कहिके... अउ लगथे घलो आजकाल के सब चरित्तर ला देख के...अब तो धीरे-धीरे लोगन मन के विश्वास चौपाल ले उठत घलो जावत हे लगथे....भई..तभे तो आज...चौपाल ला सोरियावय ला छोंड़ के गइंज लोगन मन एकर जघा थाना अउ कोट कछेरी के बाट जोहे ला धर लेहें... जेन हा चौपाल के विषय मा हम सब बर... आज बड़ चिंतन अउ मंथन के विषय घलो होगे हे ...काबर के चौपाल मतलब सीधा-सीधा हमर ग्राम्य अंचल के वास्तविक स्वरूप के दर्शन....हमर धरोहर...हमर थाथी....जेला बचाए रखना, हमर ग्राम्य अंचल के अस्मिता ला बचाए राखे के बरोबर हे.....अउ एला बचाए अउ संजोय राखे खातिर ...हम सब के जिम्मेदारी भी बनथे भई...... चाहे एकर बर हम सब ला कतनो जतन करे ला काबर नइ पर जावय...?....।
अमृत दास साहू
ग्राम -कलकसा, डोंगरगढ़
जिला - राजनांदगांव (छ.ग.)
मो.नं.-9399725588
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