Thursday, 9 January 2025

छत्तीसगढ़ के चमकत हीरा मेहत्तर राम साहू-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 *पुण्य तिथि के बेरा मा छत्तीसगढ़ माटी महतारी के दुलरुवा बेटा गायक,कवि रामायणाचार्य मेहत्तर राम साहू जी ल कोटिशः नमन*


छत्तीसगढ़ के चमकत हीरा मेहत्तर राम साहू-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


                  धन धन हे हमर छत्तीसगढ़ के माटी, जिहाँ 01 जुलाई सन 1933 के एक अनमोल हीरा गरियाबंद ले लगे ग्राम पांडुका मा अलालराम साहू अउ सुकवारो बाई के घर जनम धरिन। वो अनमोल, चमकत हीरा आय मेहत्तर राम साहू जी। नान्हेंपन म ददा तेखर पाछू दाई के मया ले दुरिहाय के बाद, मेहतर राम साहू जी ऊपर दुख के पहाड़ लदागे। डोकरी संग, छोटे भाई अउ बहिनी संग पूरा परिवार के जिम्मेदारी ओखरे ऊपर आगे। पेट पाले बर जांगर टोर महिनत अउ बीड़ी बनाए के बूता घलो उन ला करेल लगिस। संझा बिहना जिम्मेदारी के बोझ म लदे लदे कटत रिहिस। लइकुसहा उम्मर मा ही उन मन घर परिवार के नेव ल बोहे रिहिन। साहू जी बचपन ले ही प्रतिभावान रिहिस। भगवान घलो बिरवान के भाग ला गढ़थे। अउ उही होइस घलो। देवदूत बरोबर उजियार लेके नारायण लाल परमार जी गांव पांडुका मा गुरुजी बनके आइन अउ सबले बढ़िया बात ये के गांव भर मा उंखरे घर मा रहे लगिन। ताहन का कहना? परमार गुरुजी के नजर मेहत्तर राम साहू जी के प्रतिभा ला परख डरिस, अउ काम बूता के संगे संग ओखर हाथ मा कलम थमा दिन। उंखर डोकरी दाई ल समझा बुझा के स्कूली शिक्षा बर हामी भरवाइस। परमार गुरुजी के प्रताप ले साहू जी मन काम बूता के संगे संग पढ़ाई लिखाई अउ कला के रदद्दा मा दौड़ेल लगिन। टेलरिंग मा घलो साहू जी के जवाब नइ रिहिस।नाचाकूदा, खेलकूद, गीत संगीत, रंगमंच नाटक, गायन,रामलीला, राम कथा वाचन, गीत कहानी लेखन कस कतकोन सुघर उदिम मा साहू जी मन बचपन के ही अघवा बनके चले लगिन। विद्यार्थी काल मा ही अपन गुरुजी फकीर राम देवांगन जी के मार्गदर्शन मा साहू जी, वो समय आयोजित होवइया परिक्षा ला पास करके रामायणाचार्य के उपाधि पाए रिहिन।

                       पढ़ाई के बेरा मा जीवन लाल साहू जेन बाद मा विधायक बनिन, साहू जी के खाँटी मितान रिहिन। जीवन जी के संगे संग साहू जी के अनन्दराम, चैतराम, उधोराम झकमार, रामप्यारे, नरसिंह, भगीरथ तिवारी जइसे व्यक्तित्व मन संग मेलजोल रिहिन। छत्तीसगढ़ महतारी के खाँटी सेवक मेहत्तर राम साहू जी के नाचा कूदा, कला संगीत, गीत कविता के कोनो शानी नइ रिहिस। तभे तो भूदान आंदोलन ले प्रेरित गीत- "दे देव भुइयाँ के दान ग" आकाशवाणी भोपाल ले प्रसारित होइस। तेखर बाद चैतराम साहू जी के आवाज मा गाए "भुइयाँ ला सरग बनाबों" जइसे मनभावन गीत बजे लगिस। आज के दौर मा कलाकार,कवि लेखक मन प्रसिद्धि बर सामदण्डभेद अउ कतकोन जुगत जुगाड़ बनाथे, फेर वो दौर मा बिन जैक जुगाड़ के घलो असल हीरा के परख करत करत प्रस्तुत कर्ता अउ प्रयोजक मन पा गिन मेहत्तर लाल साहू जी ला। वो बेरा के बड़े छोटे सबे प्रकार के पत्रिका पेपर मन मा साहू जी मन खूब छपे अउ कवि सम्मेलन मा घलो भाग लेवँय। आकाशवाणी रायपुर बने के बाद कोरी ले घलो आगर गीत 1975-76 मा आकाशवाणी रायपुर ले रिकार्डिंग होइस। मेहत्तर राम साहू जी के अइसन अइसन मनभावन गीत, जे छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़िया मन के अन्तस् मा रच बस गिस। कुछ गीत के सुरता महूँ ला आवत हे, यदि आपो मन रेडियो ले जुड़े रेहे होहू ता आपो ला सुरता आ जही--

 सुवा लहकत हे डार मा,

 तहू जाबे महूँ जाहूँ राजिम मेला,

 सारस बोले रे तरैया मा,

 लाल लुगरा रे पिंयर धोती गँवन के,

 झुनकी तरोई रे भाई,

 लक्ष्मण रेखा पारेल लगही,

 मोंगरा फूल फुलगे,

 दे तो दीदी दे तो दीदी,दही वो बासी 

 झूम झूम नाचौ

             ये सब गीत आजो सुने बर मिल जथे, अउ जे बेर सुनबे ते बेर अन्तस् मा समा जथे। साहू जी कलमकार तो रबे करे रिहिन संगे संग उम्दा गायकी घलो करे। लगभग अपन गीत ला खुदे सुर साज में ढाल के गाए। सतत कलम चलावत मेहत्तर राम साहू जी मन अपन जीवन काल मा 13 ठन छत्तीसगढ़ी पुस्तक निकालिन।  न सिर्फ गीत कविता बल्कि कहानी,एकांकी,कथा,लघुकथा अउ गजल जइसे लगभग सबे विधा मा छत्तीसगढ़ी मा सृजन करिन। कुछ पुस्तक के नाम प्रस्तुत हे-

कौवा लेगे कान ला(काव्य संग्रह), 

होही अँजोर (गीत संग्रह),

 मया के बंधना (एकांकी संग्रह),

हमरेच भीतरी सब कुछ हे(कहानी संग्रह),

बूड़े म मोती मिलथे जी(कथा संग्रह),

सब परे हे चक्कर म (गम्मत),

कैकेयी (लघु प्रबंध काव्य),

रतना बपरी ( खंड काव्य),

राजिम लोचन ( कहानी),

                       स्कूली शिक्षा अउ मैट्रिक के बाद साहू जी मन गुरुजी के नौकरी करिन। कुछ बछर बाद उंखर पदस्थापना गरियाबंद ले बागबाहरा खोपली होगिस। उहें बछर 1980 में कला के पुजारी मेहत्तर राम साहू जी मन "तुलसीदल लोककला मंच खोपली बागबाहरा नाम के एक संस्था बनाइन। अउ अपन कमाई ला परिवार ले जादा कला, संस्कृति, साहित्य अउ समाज के बढ़वार मा लगा दिन। साहू जी के सुपुत्र धनराज साहू जी मन अपन ददा के जगाए पौधा ल लगातार बढ़ावत हें, चाहे कला होय, या साहित्य सबे के बढ़वार बर लगातार उदिम करत हें। वइसे तो कला साहित्य के समागम बागबाहरा मा रोजे होथें, फेर बछर मा एक अउ दू तीन बेर घलो छत्तीसगढ़ भर के कला अउ साहित्य प्रेमी मन जुरियाथें। कला अउ साहित्य के क्षेत्र मा कई आवासीय कार्यशाला के संगे संग सुरता श्री मेहत्तर राम साहू जी के बेरा मा, कई सम्मान जइसे--  नारायण लाल परमार, मेहत्तर राम साहू, प्रभंजन शास्त्री, हरिकृष्ण श्रीवास्तव, पी एल कोरी, साहित्य सन्देश, बी सी दास आदि आदि सम्मान  छत्तीसगढ़ भर के साहित्कार मन ला, मेहत्तर राम साहू सृजन संस्थान द्वारा दिये जाथे। मेहत्तर राम साहू जी जब फिंगेश्वर मा प्रामरी स्कूल मा गुरुजी रिहिन ता सन्त कवि पवन दीवान वो समय हाई स्कूल मा पढ़त रिहिन। बागबाहरा के गौटिया अनवर शेख खाँ, प्रभंजन शास्त्री, तरुण सोलंकी,  हरीश पांडे, जग्गू,गौरी, छाया आदि व्यक्तिव मन संग मिलना जुलना अउ बढ़िया सम्बंध साहू जी के रिहिस। कला अउ साहित्य के पुजारी श्री मेहत्तर साहू जी जिनगी भर माटी महतारी के सेवा करिन अउ सेवा करते करत 25 दिसम्बर 2010 के ये दुनिया ले बिदा ले लिन। 

                   मेहत्तर राम साहू जी के कलम ले कुछु नइ छूटे हे, खेती बारी, भर्री भाँठा, संस्कृति समाज, पार परम्परा, तीज तिहार, ऊंच नीच, छोड़े बड़े, दुख सुख, सृंगार, धरती, आगास,पाताल, नदी,ताल,जनजागरूकता आदि आदि---- का विषय मा कलम नइ चलाए हे? आवन कुछ काव्य के बानगी देखथन----


"*धन दौलत, रुपिया पइसा ला तो मनखें मन बिन बोले बाँट डरथें, फेर जब दुख आथे ता मनखें अकेल्ला हो जथे, उहू ला बाँटे के किलौली करत साहू जी मन लिखथें"*--

आवव 

मिलके

बँटवारा कर लेवन

भूख पियास ल,

बासी के हँड़िया

बरोबर

पोटारे-पोटारे,

जुन्ना-जुन्ना

आस ल।।


*"मनखें के अधिकार के बात होय या करम के या फेर जगजागरुकता के साहू जी सबे स्वर ला मुखर रूप मा उठाए हे"*-

जाग जावन

साँप के बिख ल

टोरे बर,

दूध के कटोरा म

मुंह ल बोरे-बर।

संकलप के रुख तरी

सुंता के कुंदरा बनाबो

शब्द कोश म 

नावा अध्याय के

बीज ल उपजाबो।।


*"नायिका ला संबोधित करत प्रकृति के शानदार मानवीकरण करत नायक के माध्यम ले सृंगारिक घटा बगरावत साहू जी मन गजल रूप मा कहिथें"*-

ये रात तोर असन मांग ला,सँवारे हे।

बहार तोर असन, मुस्की घलो ढारे हे।।


*"नई कविता के बानगी घलो साहू जी के रचना मन मे दिखथें। बने चीज के खुल्लम खुल्ला पलोंदी अउ गिनहा के मुँह फटकार के विरोध,साहू जी के रचना मन मा सहज दिखथें"*-

काम के 

साधत ले

धरम के 

नकली धोती ल

पहराथे,

उही ह

फाँसी के 

फांदा होके

हमरे गला मेर

लहराथे

अब तो जानो

मोर कहना मानो।।


*"साहू जी मन के बचपना के समय आजादी के छटपटाहट रिहिस अउ जवानी मा देश आजाद होय के बाद सृजन के चुनौती, दुनों रंग मा रंगे के बाद रचना मन मा देशभक्ति के बिगुल तो बजबे करहीं। ओज, प्रेरणा के कतकोन स्वर साहू जी मन अपन कविता के माध्यम के जनमानस ला दिये हें"*-

हाथ-हाथ ल चलो जोर के

एकता म आघु बढ़ जाबो।

हमर देश हे, हमर भुयां हे

दुश्मन के छाती चढ़ जाबो।।


*"छत्तीसगढ़ के सुख समृद्धि अउ बढ़वार के बात करइया साहू जी मन छत्तीसगढ़ रॉज निर्माण के सपना घलो देखिन अउ उंखर जीते जीयत नवा राज घलो बनिस। फेर रॉज निर्माण के बाद राज करइया आने आगे, जबकि लड़इया कोई दूसर रिहिस। तभे तो  साहू जी मन कथें"*-

छत्तीसगढ़ के राज पाए बर

बहाँ जोर के करिंन लड़ाई।

जे मन खुसरे रिहिन बिला में

नाँचत हावय मेला मड़ाई।।


*"बात बात मा बड़े अउ गाहिर बात ला सरल सहज ढंग ले कहि देना साहू जी जे कलम के गजब के विशेषता रिहिस। बिंब प्रतीक अउ अलंकार के बानगी के तको जवाब नइ रिहिस"*-

साँच बिचारा जीवत हावय,भटक-भटक के।

लबरी मोटियारी नाचत हे, मटक-मटक के।।


संझिया राँड़ी पहिरे हे, चिकमिकहा चूरी।

पुनमासी के रात, चिरागे कूरी -कूरी।।


*"दुख दरद धरे महिनत के थेभा मा सुख के रद्दा खोजइया मेहत्तर राम साहू जी शोषण, ऊंच नीच, गरीबी सब ला खुदे जीये अउ झेले हे"- एखरे बर सब ला सावधान करत कथें कि"*-

सोहबती-मोहबती म मेटागेंन

दार घोटरे कस घेटागेंन।

हमरे तन अउ लहू ह

दिया अउ तेल होथे।

उँकर बर देवारी म

शुभ-लाभ के मेल होथे।।


*"छत्तीसगढिया सबले बढ़िया" ये कोनो हाना नही बल्कि छत्तीसगढिया मन के सिधवापन के पहिचान ए। मनखें मनखें ला एक मनइया,नता रिस्ता के बीड़ा बोह के सबर दिन चलइया, छत्तीसगढिया मन ला जगावत, जेला देखे हे तेला हूबहू शब्द देवत साहू जी कथें"*-

कतका दिन ले ममा-भांचा

अउ मितान मानहौ।

कतका बेरा ले

मनखे तन ल सानहौ।।

कब ले मुँह ताकहौ

पर-पर के।

कब तक जिहौ

मर-मर के।।

पंदोली देथो

तेकरे सेती मरथो।

अपन हाथ म


*"जेन भी राज पाठ संभालिन आखिर मा छोट मंझोलन ल ही रौंदिन। फेर उंखर चालबाजी ला छत्तीसगढिया मन नइ समझ पाए अउ करम ल दोष देय बर धर लेथें, इही बात ला साहू जी कथें"*-

निच्चट होगेंन सिधवा

ओमन होगे, चील-गिधवा

ठोंनक के झींक लेथे मास ल

हमन दोष लगाथन अपन सांस ल।।


*"साहू जी मन अपन जिनगी ला कला, साहित्य,शिक्षा अउ समाज के बढ़वार बर खपा दिन। छत्तीसगढ़ महतारी के रतन बेटा मेहत्तर राम साहू जी,अपन माटी महतारी ला माथ नवावत कहिथें"*-

मेंहा पिलवा हँव,छत्तीसगढ़ महतारी के।

में हँव बजरंगी,छत्तीसगढ़िया संगवारी के।।

मुस्काथँव बादर झर जाथे

कमल फूल मोर हाँसी।

बिजली के रंग घलो लजाथे

अइसे चिगबिग आँखी।।

हँव अलबेला नार बरोबर,

मैंहा तोर फुलवारी के....


*"कथा, कहानी, तीज तिहार, संस्कृति संस्कार के संगे संग प्राकृतिक सुंदरता ला घलो साहू जी मन खूब उकेरें हे। जेमा अलंकारिक छटा ला अलग से खोजे के जरूरत नइहे, साहू जी के रचना मन मा काव्य गत सबो विषेशता दिखे बर मिल जथे"*-

खेतखार म

चिगबिग-चिगबिग,रूप रुपौती

लकलिक-लकलिक

जीव लुभवती।।

जानो-मानो,भूरी भइंस के

जम्मो गोरस,

छलल-छलल बोहाथे

रंग बिरंगी मेड़पार म

इंदर धनुष लजाथे।।

गाँव के बरगद रुख

बबा कस

भाँग पिए अस,डोलत हे

आमा-पीपर एक पार में

जय जय जय जय बोलत हे।।


               अइसने अलग अलग विषय, विधान अउ विशेषता लिए कतकोन रचना हे, सबो ला ओरियाना मोर बस के बात नइहे। ये सब के संगे संग कहानी, एकांकी, जनउला, प्रबन्ध काव्य,गजल, खंडकाव्य,कथा कस अउ कतकोन विषय विधा मा साहू जी मन कलम चलाए हें। फेर यहू बात सच हे कि आज साहू जी के रचना जादा झन तीर बगरे घलो नइहे। वो दौर मा ज्यादातर कवि मन हिंदी मा रचना करें, मेहत्तर राम साहू जी मन घलो हिंदी मा लिखिन,फेर माटी महतारी के करजा उतारे बर छत्तीसगढ़ी के जादा सेवा करिन। साहू जी के रचना मा भावपक्ष बड़ बेजोड़ हे अउ कलापक्ष के सुघराई के का कहना? अलंकार, बिम्ब,प्रतिबिम्ब, प्रतीक, हाना, मुहावरा, बिस्कुटक, लोकोक्ति के संग सरल सहज ठेठ छत्तीसगढ़ी रचना,जे नाना प्रकार के रस ले भरे रसमलाई बरोबर साहू जी के कलम के निकले हें। साहू जी के रचना ला पढ़े बर छत्तीसगढ़ी जानना जरूरी हे, चलती छत्तीसगढ़ी के जघा ठेठ छत्तीसगढ़ी हे, जेमा रायपुर, बिलासपुर के छत्तीसगढ़ी के मिश्रण दिखथें। कतको मन  छत्तीसगढ़ी मा ष,श नइ होय कहिके विवाद घलो पैदा करथें, फेर मेहत्तर राम साहू जी मन ष,श, ढ़, ढ, ङ, ड़, व ,चन्द्रबिन्दु आदि सबे ला बेधड़क बउरें हें। धनराज साहू जी द्वारा मोला भेजे, साहू जी के हस्तलिखित कविता एखर सबूत हे। कोई कोई जघा हिंदी के अपभ्रंश हे, फेर ज्यादातर जब हिंदी के शब्द ल लेना पड़े हे त जस के तस ले हे, जइसे प्रकृति, स्कूल, ऑफिस, पर्यावरण---- आदि आदि। देश के आजादी के पहली ले घलो छत्तीसगढ़ी महतारी के सेवा करइया माटी के दुलरुवा बेटा मेहत्तर राम साहू जी के कला, गीत, संगीत अउ महतारी भाँखा में साहित्यिक योगदान कखरो ले छुपे नइहे, तभो उंखर नाम आज कला साहित्य जगत मा धूमिल हे। उंखर गीत संगीत ला सुन के हम सब खुश हो जाथन फेर नाम ला नइ जानन, ये हमर समाज,राज अउ शासन प्रशासन के दुर्भाग्य ये।


जीतेन्द्र वर्मा" खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


नमन

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