*देख जी आँखी सुन जी कान, मनखे-मनखे एक समान*
18 दिसम्बर सन 1756 के गुरु घासीदास बाबा के अवतरण होइस, ओ समय हमर देश म अंग्रेज मनके फूट डारव अउ शासन करव के नीति ह मनमाड़े डारा-थांघा फेंकत फुलत-फलत रहिस। गाँव-शहर जहाँ देखते भेदभाव ह अपन चरम म दिखतिस। अंग्रेज मन हम भारतीय मन संग रंगभेद करँय अउ हम भारतीय मन अपने भाई-बन्धु मन संग बरन अउ जाति भेद करन। स्थिति अइसे होगे राहय के भेद-भाव के घिन मानसिकता ह हजारों हजार व्यक्ति अउ वोकर घर-परिवार ल रोजे अपमानित करय। कभू-कभू तो मनखे अपन मान-सम्मान, इज्जत-मरजाद के संग जान-माल ल घलो गवाँवय। निसैनी कस खड़े जाति व्यवस्था म ऊपर अउ तरी ल छोड़के बाकी के जाति बर ऊपर के जाति हर बड़े अउ नीचे के जाति हर छोटे होवय। भेदभाव के भरम अउ दंभ म जीयत जाति, एक डहर अपन ले ऊपर वाले जाति कर अपमानित होवय त दूसर डहर अपन ले नीचे पायदान वाले जाति ल अपमानित करय। जाति-भेद के नाँव म गाँव-गाँव खँड़ाय लग गे। झगरा-लड़ाई के बँवर्रा ह गाँव-बस्ती ल उजारे लग गे। माटी के चूल्हा घर-घर हे जिनगी भर सुख-दुख छँइहा-घाम लगेच रहना हे एक जघा जुरमिल के रहिबो त भार ह नइ लगय कहिके गाँव बसा के बसे मनखे मन एक-दूसर ले दूरिहाय लग गें। फूट अउ बिखराव के पोषक भेदभाव के आचरण ह जिनगी अउ जरूरत के हर क्षेत्र म केवल घाटा के ही सौदा साबित होइस, कखरो फुरमान नइ दिखिस। आपसी संघर्ष अउ असहमति के बाढ़े ले सबल समृद्ध देश ह निबल अउ गरीब असन होगे। उन्नति विकास के गति ह दँउड़े के जघा रेंगे लग गे, रेंगे का घिसले लग गे। व्यक्ति विकास तो होइस पर हर देश ल समष्ठि विकास चाही रहिथे, जेन ह नइ हो पाइस। चिंता के चित्र अइसे होगे के बरकस मन खावँय अउ हिनहर मन टुकुर-टुकुर देखँय।
अमानवीय आचरण के काँटा-तार ह अदमी के घर-दुवार, अंगना-बारी, खेत-खार, मेंड़-पार, इचार-बिचार ल कटकटा के घेर लिही त सुमता सलाह समन्वय अउ सहकारिता के उन्नत सोंच धरे अवसर सन वोकर भेंट-मिलाप कइसे हो पाही? माथा म अज्ञानता के अँधियार अउ आँखी म छूत-अछूत के अंधरौटी रइही त मनखे ह मनखेपन के मंजिल ल नइ पा सकय। भेद-भाव के कारण एकता सुमता समता समरसता सद्भावना सहयोग अउ भाईचारा जइसन समाजसेतु भाव-शब्द मन लड़भड़ाय लग गें। पीड़ित मन बर उज्जर भविष्य के सपना ह जइसे सपने रहिगे। घर परिवार, जाति-समाज के मानस म कोर-कपट, किंचा अउ कुमता जइसन करुहा भाव के घर होय लग गे, गोरसी के आगी कस तरीत्तरी सुलगत गुंगवावत अनदेखी-जलन के आगी ह रुमरुम-रुमरुम बरे लग गे। परिणाम ये होइस के एके ठन गाँव के रहवासी मनके अलग-अलग कुआँ, अलग-अलग तरिया अउ अलग-अलग मरघटिया बनगे। नानचन गाँव ह पारा-पारा म बँटागे। फूट के फायदा उठावत मुठा भर अंग्रेज मन हमर अतेक बड़ देश ल अपन मुठ्ठी म कर डारिन अउ हम आँखी म आँसू धरे बोकबाय देखत रहि गेन।
अंतस के अँधियार ल सुरुज ह नइ छाँटे सकय, वोला छाँटे बर संत अउ सतगुरु के अँवतरण होथे। गुरु के बारे ज्ञान के दीया के अँजोर ह बगरथे तब जाके अंतस के अँधियारी ह छँटथे। भेदभाव के कारण उपजे पीरा देवइया स्थिति-परिस्थिति ल देख सुन अउ गुन के गुरु घासीदास बाबा ल घोर पीड़ा अउ दुख होइस, प्रबुद्ध कहाने वाला मनखे से वोला ये उम्मीद नइ रिहिस, वोकर ज्ञान अउ ध्यान अब ये विकृत स्थित-परिस्थिति के सुधार म लगे लग गे। भेदभाव ह मुँह ल कइसे टारय, कई-कईठन कुप्रथा ल मानत मनखे के मइलाय मन कइसे उजरावय तेखर गुनान अउ जुगत म लगे लग गे। गुरु घासीदास बाबा के प्रयास ह रंग लाइस, वोकर ज्ञान के आवा म पक के निकले दीया मन जगमग-जगमग अँजोर करे लग गें। भेदभाव के अँधियार ह छँटे लग गे समता अउ समरसता के उजियार बगरे लग गे। गुरु घासीदास बाबा के योग तप ध्यान ज्ञान-विज्ञान शोध-साधना के केन्द्र छातापहाड़ अउ शहीद वीर नारायण सिंह के धरा धाम सोनाखान के बीच बहत जोंकनदी के कंचफरी पानी ह वो परछइहाँ बनगे जेमा सुख-सुराज के सुखदेवा चित्र ल बेरा ह देखे लगगे। दिसम्बर के पावन महिना मा वो महान सतनाम आंदोलन छिड़गे, जिहाँ हजारों हजार लोग मन सतगुरु घासीदास बाबा के सुर म सुर मिलावत एक सुर म कहे लग गें- देख जी आँखी सुन जी कान, मनखे-मनखे एक समान।
▪️महंत सुखदेव सिंह ‘अहिलेश्वर’
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment