Tuesday, 14 January 2025

आज स्वामी विवेकानंद जी के जयंती हरे। जम्मो देसवासी अउ खास करके युवा मन ल 'युवा दिवस' के कोठी-कोठी बधाई

 आज स्वामी विवेकानंद जी के जयंती हरे। जम्मो देसवासी अउ खास करके युवा मन ल 'युवा दिवस' के कोठी-कोठी बधाई!💐💐💐


(1)

नारी के सम्मान कइसे करना चाही, वोला स्वामी विवेकानंद ले सीखे के जरूरत हे। स्वामी जी के जीवन के कई ठी अइसे प्रसंग हे जेन ल आज अपन आचरण म उतारे के जरूरत हे। आवव एक ठी अइसने रोचक प्रसंग ल जानन।

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"मैं तोर संग बिहाव करना चाहथँव, स्वामी जी।"

स्वामी विवेकानंद 1893 के शिकागो धर्म सम्मेलन म अतका नामी होइन के अमरीका म सरलग तीन साल ले जघा-जघा ऊँखर भाषण के कार्यक्रम होय लगिस। उहाँ के महिला मन घलो ऊँखर ले प्रभावित होय बिगन नइ रहि सकिन। कई झिन मन तो ऊँखर संग बिहाव करे के सपना घलो देखे लग गे रिहिन। 

एक बखत के घटना हरय। एक बिदेशी महिला अपन इच्छा ल रोक नइ सकिस अउ एक दिन विवेकानंद ले कहि दिस- "स्वामी जी, मैं तोर संग बिहाव करना चाहथँव।"

स्वामी जी पूछिस, "तैं अइसन काबर सोचथस?"

"स्वामी जी, मैं आपे के समान विद्वान अउ चमत्कारी पुत्र पैदा करे के साध पूरा करे बर आप संग बिहाव करना चाहथँव। अउ ये तभे हो सकथे जब आप मोर संग बिहाव करहू।"

तब स्वामी जी कहिथे- "बिहाव करना तो संभव नइ हे। फेर तोर साध पूरा करे के उपाय मोर पास हे।"

महिला पूछिस, "का उपाय हे?"

"आज ले मोही ल तैं अपन बेटा मान ले। तैं मोर माँ बन जा, मैं तोर बेटा बन जाथँव। तोर जम्मो साध पूरा हो जाही।" महिला सपना म भी नइ सोचे रिहिस के कोनो पुरुष अतका महान घलो हो सकथे। वो वोखर चरन म गिर जाथे, "तैं मनखे नइ हो सकस। तैं तो साक्षात भगवान हरस।" 

ओखर आँखी ले प्रेमरस के धार बोहाय लगथे।


ये रिहिन महामानव विवेकानन्द! कोनो महामानव अइसने नइ बन जाय। अउ आज के मनखे का करत हे, जेला हम नेता कहिथन वो खुलेआम देस के बेटी के इज्जत उतारे बर घलो नइ हिचकय।


(2)

12 जनवरी 'युवा दिवस' विशेष


°उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत"

"उठव, जागव अउ लक्ष्य पाय के पहिली झन रुकव"  


भारत भुँइया के महान गौरव स्वामी विवेकानंद के आज जनम दिन हरय। स्वामी जी के जनम 12 जनवरी सन् 1863 के कलकत्ता (अब कोलकाता) म होय रिहिस। ऊँखर पिताजी के नाँव बाबु विश्वनाथ दत्त अउ महतारी के नाँव सिरीमती भुवनेश्वरी देवी रिहिस। ऊँखर माता-पितामन ऊँखर नाँव नरेन्द्रनाथ रखे रिहिन। बचपन ले ही नरेन्द्रनाथ धार्मिक सुभाव के रिहिन। धियान लगाके बइठे के संस्कार उनला अपन माताजी ले मिले रिहिस। एक बार नरेंद्र एक ठी खोली म अपन संगवारी मन संग धियान लगाय बइठे रिहिन के अकसमात कहूँ ले वो खोली म करिया नाग आके फन काढ़ के फुसकारे लगिस। ओखर संगी साथी मन डर के मारे उहाँ ले भाग के उँखर माता-पिता ल खभर करिन। उन दउड़त-भागत खोली म पहुँचिन अउ नरेन्द्र ल जोर-जोर से अवाज देके बलाय लगिन। फेर नरेन्द्र ल कहाँ सुनना हे। वोतो धियान म मगन हे ते मगने हे। एती नाग देवता अपन फन ल समेट के धीरे-धीरे कोठी ले बाहिर होगे। ये घटना ले माता-पितामन ल आरो हो गे नरेन्द्र कोनो छोटे-मोटे बालक नोहे अउ भगवान जरूर वोला बहुत बड़े काम बर भेजे हे। ये बात बाद म साबित होइस तेला आज सरी दुनिया जानत हे। 


इही नरेन्द्रनाथ अपन गुरू स्वामी रामकृष्ण परमहंस के चेला बने के बाद स्वामी विवेकानंद के नाँव ले दुनियाभर म प्रसिद्ध होइन। स्वामी विवेकानंद आज ले लगभग डेढ़ सौ साल पहिली होइन फेर ऊँखर विचार ल जान के आज के पीढ़ी ल अचरज हो सकथे के ऊँच-नीच, जात-पाँत,  दलित-सवर्ण के जेन झगरा आज देस के बड़े समस्या के रूप धर ले हवय तेखर विरोध उन वो समय म करिन जब समाज म एखर कट्टरता ले पालन करे जाय अउ एखर विरोध करना कोनो हँसी-ठठ्ठा नइ रिहिस। वो समय म उन नारी जागरन, नारी सिक्छा अउ दलित शोषित मनखे बर आवाज उठइन तेन बड़ जीवट के काम रिहिस। नरेन्द्र बचपन ले ही मेधावी, साहसी, दयालु अउ धार्मिक सुभाव के रिहिन। उन रामकृष्ण परमहंस ल गुरू बनाइन फेर ठोक-बजा लिन तब बनइन। हमर छत्तीसगढ़ म एक ठी कहावत हे-"गुरू बनाए जान के पानी पीयय छान के"। अउ नरेन्द्रनाथ अपन गुरू रामकृष्ण परमहंस के महाप्रयान के बाद संन्यास धारन करके स्वामी विवेकानंद कहाइन।


अब वो समय आइस जब दुनियाभर म स्वामी विवेकानंद के नाँव के डंका बजना रिहिस। वो समय रिहिस 11सितंबर 1893 अमरीका के शिकागो सहर म विश्व धर्म महासभा के आयोजन। जेमा स्वामी जी बड़ मुस्किल ले सामिल हो पाइन। अउ जब ऊँखर बोले के पारी आइस तौ अपन गुरुजी के याद करके बोलना सुरू करिन- "अमरीका निवासी बहिनी अउ भाई हो..." बस्स् अतके बोले के बाद धर्म सभा के जम्मो देखइया सुनइया दंग होके खुसी के मारे ताली बजाय लगिन।  हरदम "लेडीज़ एंड जेन्टलमैन" सुनइया मन कभू सपना म नइ सोंचे रिहिन के कोनो वक्ता अइसे घलो हो सकथे जेन उनला बहिनी अउ भाई बोल के सम्मान देही। बाद म अपन भासन म हिन्दू घरम के अइसे ब्याख्या करिन के अमरीकावासी मन सुनते रहि गे। धरम के अतका सुंदर ब्याख्या ओखर पहिली कोनो नइ कर पाय रिहिन। बिहान दिन अमरीका अउ दुनियाभर भर के अखबार स्वामी जी के तारीफ म भर गे राहय। 

30 साल के उमर म स्वामी जी हिंदू धरम के झंडा फहराय बर अमरीका अउ यूरोप सहित दुनियाभर भर म घूमिन अउ अपन जीवन के ये पाँच-छे साल जिहाँ भी गीन उहाँ हिंदू धरम के झंडा गड़ा के ये साबित करिन विश्वगुरु होय के योग्यता यदि कोनो धरम हे तो वो हे हिंदू धरम।

स्वदेस वापिस आके उन जघा-जघा रामकृष्ण मिशन के स्थापना करिन। कुछ दिन बाद उनला आभास होगे के आगे के काम बर ये सरीर के कोई जरूरत नइ रहि गे। अब ये सरीर तियागे समय आ गे हे। स्वामी विवेकानंद 4 जुलाई 1902 महासमाधि धारन करके अपन भौतिक सरीर तियाग दिन अउ मात्र साढ़े 39 बरस म कतको महान कारज करके ये साबित कर दिन के जीवन बड़े होना चाही लंबा नहीं।

सन् 1984 म भारत सरकार दुवारा स्वामी विवेकानंद के जनमदिन ल युवा दिवस के रूप म मनाय के घोसना होय रिहिस। तब से हर साल 12 जनवरी ल युवा दिवस के रूप म मनाय जाथे। ऊँखर देय मूलमंत्र-"उठव, जागव अउ लक्ष्य पाय के पहिली झन रुकव" हमेसा युवा मन बर अटूट प्रेरणास्रोत रइही।


-दिनेश चौहान,

छत्तीसगढ़ी ठिहा, 

सितलापारा, नवापारा-राजिम

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