Thursday, 9 January 2025

जस करनी तस भरनी*

 *जस करनी तस भरनी*


केहे जाथे- जस करनी तस भरनी'। ये संसार मा जउन जइसन करनी करथे वइसने फल घलो भोगथे। निक के निक फल अउ गिनहा के गिनहा।

        पड़ोसी सुभाष अउ कातिक संगे पढ़िन। सुभाष पढ़ई-लिखे मा गजब धियान देवे। खरचा घलो सोच-समझ के करे। कातिक गजब खर्चीलहा रिहिस। सुभाष आज के संगे-संग अवइया भविस के बारे मा घलो सोचे। कातिक ल न घर के फिकर न अवइया भविस के। 

       संसार मा सुख अउ दुख एक सिक्का के दू भाग होथे। परानी के जिनगी मा आरी-पारी ले आथे। पहिली सुख मिलथे त पाछु दुख। अउ पहिली दुख मिलथे त पाछु सुख। 

          सुभाष अपन पढ़ई जिनगी मा गजब दुख झेलिस। स्कूल जाय बर घर मा साइकिल घलो नइ रिहिस। कभू संगी मन के साइकिल मा जावय कभू रेंगत। सुभाष रात अउ दिन एक करके कॉलेज के  पढ़ई करिस अउ अव्वल नम्बर मा पास घलो होगे। उहीं  कातिक पढ़े-लिखे बर टालमटोल करय। दसवीं कक्षा ल पास नइ कर सकिस। सुभाष पढ़ लिख के कलेक्टर ऑफिस मा बाबू बनगे अउ कातिक खेतिहार होगे। सुभाष कर आज मोटरसाइकिल अउ कार दुनो हे। कातिक कर साइकिल के टायर लगवाये बर रुपिया नइ हे।

     ए बछर कातिक के नोनी उषा के बिहाव होवइया हे। कुछु जोरा होय नइ हे। मने मन मा कातिक गुनत हे कि नोनी बर गहना लेवाय नइ हे। नइ पहिनाये मा खुदेच के फदित्ता हे। सगा-सोदर, घर-परिवार बर कपड़ा-लत्ता के लेन-देन तो आम बात हे। सबो ल नइ देबे त चल जाही फेर जिंकर घर के कपड़ा-लत्ता ल पहिरे हावन वो मन ल तो देना ही पड़ही। दहेज देना अउ लेना भले कानूनन  अपराध हे। फेर अपन बेटी ल कोनों मॉं-बाप जुच्छा विदा घलो कइसे करे। खुद के इज्जत मा बट्टा लगही। हाँड़ी के मुँह मा परई ल तोपबे, मनखे के मुँह मा का ला। रहि-रहिके ये बात ह कातिक के दिमाग ल अइसे खावत हे जइसे लकड़ी ल घुना।

         कातिक आज अपन बीते दिन ल सुरता करके पछतावत हे। जब कातिक के बाप जीयत रिहिस, तब दू पइसा आवक खातिर कातिक बर किराना दुकान खोलिस। कातिक किराना दुकान ल घलो सफल नइ कर पाइस। काबर कि कातिक के नवा-नवा जघा मा घूमे-फिरे के गजब सउँख रिहिस। कातिक अपन सउँख ल पूरा करे खातिर किराना दुकान मा होय नफा के संगे-संग मूल ल घलो घूमे-फिरे मा उरकाये। कातिक के ददा किसुन कातिक ल गजब समझाये कि- बेटा, कुछ रुपिया बचाय बर सीख। आज बचाबे त तोरेच भविस मा काम आही। समय-बेसमय ल कोनों नइ जाने। जब रुपिया के जरूरत पड़ही, तब काकर कर हाथ फैलाबे? बचा के रखबे त तोरेच परिवार के काम आही। हमर का कब साँस ठग दिही का भरोसा। मनखे ल अपन आवक ले जादा कभू खर्चा नइ करना चाही।  फेर कातिक मा कुछु असर नइ परे। उल्टा खुदे ज्ञान बाँटे लगे कि घूमे-फिरे के दिन मा नइ घुमहूँ तब का बूढ़ा जहूँ तब घुमहूँ? बाप ल सरग सिधारे दू बछर होइस हे अउ कातिक के गृहस्थी बिगड़े लागिस। घर के जरूरत के पूर्ति मुश्किल होय लागिस। कातिक काम-बुता मा धियान तो देवय नहीं, बस खरचा बर ही आगू रहय। आज कातिक ल अहसास होवत हे कि सउँख तो  माँ-बाप के कमई ले ही पूरा होथे, अपन कमई ले तो सिरिफ जरूरत पूरा होथे।

          कातिक के ददा किसुन बहुत मेहनती रिहिस। अपन लहू-पसीना एक करके दू एकड़ जमीन घलो बिसाइस। आज ओकर बेटा कातिक उही जमीन में से एक एकड़ ल बेचे बर तियार हे। वोला अपन बेटी उषा के बिहाव जउन करना हे। रुपिया के आज सख्त जरूरत हे। कातिक ल भरोसा हे कि ओकर जमीन के जादा कीमत राममोहन ही दे सकत हे। काबर कि वो जमीन राममोहन के जमीन ले लगे हे। राममोहन ल घलो ये बात पता हे कि कातिक ल रुपिया के सख्त जरूरत हे। तेकर सेती जादा तान के कीमत दे बर तियार नइ हे। मउका के फायदा सबो मन उठाना चाहथे। तब राममोहन घलो काबर चूकही। अटके बनिया  का करे, गिराहिक के मर्जी ल स्वीकार करे।मजबूरी मा कातिक अपन एक एकड़ जमीन ल चार लाख मा राममोहन कर बेच के पछतावत हे। अपन करम ल सोच-सोच के आँसू ढारत हे। 'जस करनी तस भरनी' के कहावत आज कातिक के जिनगी मा सिरतोन होगे।

           

             राम कुमार चन्द्रवंशी

              बेलरगोंदी (छुरिया)

             जिला-राजनांदगाँव

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