Thursday, 9 January 2025

पुरुष के पीरा*

 कहानीकार 

डॉ पदमा साहू "पर्वणी" 

 खैरागढ़

                 *पुरुष के पीरा* 


"राम-राम माधव भइया।"

"राम-राम बिसउहा भाई। कहाँ जात हस गा?"

"कहाँ जाहूँ माधव भइया। तोरे करा आवत हाववँ। एक झन तहीं तो हस मोर सुख-दुख के संगवारी।"

"कइसे का होगे?"

"आज मोर मन बड़ भारी हे माधव भइया।"

"बिसउहा भाई का बात हे?" 

"माधव भइया हम पुरुष मन ल अपन अंतस के पीरा ल काबर छुपाए ल पड़थे? हमन गोहरा के काबर नइ रो सकन?"

माधव–"का करबे बिसउहा भाई हमन ल अपन अंतस के पीरा ल छिपा के कठोर बने ल पड़थे। हम पुरुष मन अपन घर के मजबूत पिल्लहर कस होथन जेकर ऊपर घर परिवार के गृहस्थी के बोझ ह लदाय रहिथे। हमी मन ह रो के टूट जाबोन त घर परिवार के का होही तहीं सोच तो भला।"

बिसउहा–"हव माधव भइया सिरतोन काहत हस। तें कइसे हस माधव भइया तोर का हाल-चाल हे।"

माधव–"मोरो मन गजब भारी हे बिसउहा भाई। महूँ ह तोर तीर आहूँ कहिके बड़ दिन के सोचत रेहेंव। बने करेस तहींं आगेस ते। आ भीतरी मा बइठबोन। अउ बता बिसउहा भाई लोग लइका मन सब बनें हे न?" 


बिसउहा –"का बताववंँ माधव भइया तैं तो जानथस मोर घर के घटना ल। अभी घर मा बेटा करन ल अकाल मउत मा गुजरे बछर भर नइ होय हे। में वोकर जब्बर दुख ल भुलायच नइ रेहेंव अउ करन के दाई, बेटा करन के दुख मा रो-रो के सरग सिधार गे। बेटा के दुख ह का कमती रहिस अब यहू दुख के आगी ल राख के भीतरी मा लुकाय अंगरा आगी कस अपन अंतस मा दबाय हँव। करन अउ वोकर दाई के अब्बड़ सुरता आथे त कोनो तीर अकेल्ला बइठ के रो लेथों भइया। काखर तीर जाके दुख ल बाँटहूँ तइसे लागथे।"

माधव–"का करबे भाई बिसउहा, जियत भर ले घर परिवार के सुख-दुख के भंवर जाल ह कभू नइ छूटय इही मा जिये मरे ल पड़थे।"

बिसउहा–"बूढ़त काल मा जवान बेटा अउ जोड़ी परानी के छूटे के दुख हा सहे नइ जात हे। उंँकर मन के बिना मोर जग अंधियार होगे हे माधव भइया।"


माधव–"तोरे कस मोरो हाल हे बिसउहा भाई फेर देख तो नारी होवय चाहे पुरुष सबके ठाठ हा हाड़ मांस के बने हे। इही ठाठ मा परमात्मा के अंश जीव ह जब तक रहिथे तब तक नर हो चाहे नारी सबला सुख-दुख, भूख-पियास, जीवन-मरन के भान होथे। ये संसार मा सब नर-नारी  सुख अउ दुख के कोरा मा अपन जिनगी ल जीथें। फेर नारी मन के अंतस मा समाय दुख पीरा ह सबला दिख जथे अउ पुरुष के अंतस मा समाय पीरा ह काबर नइ दिखय बिसउहा भाई?"


बिसउहा–"का करबे माधव भइया हम पुरुष जात के दुख ल कोनों ह कभू समझबे नइ करँय तइसे लगथे।"

          

      अब इही कर ले सोच ले माधव भइया भगवान राम ह अपन प्रजा मन के खातिर राज धरम ल निभाय बर जब माता सीता ल तियाग दिस त प्रभु राम के दुख जउन अपन छाती मा पथरा ल लदक के लक्ष्मण तीर माता सीता ल घर ले दूरिहा बन मा छोड़े बर कहिस होही त वोकर करेजा ह कुटी-कुटी नइ होइस हाेही? तभो ले प्रभु ह बोमिया के रो नइ सकिस। अंतस मा दुख ल छिपा लिस त का वोला पीरा नइ होइस होही? 

फेर भगवान के दुख ला दुनिया कहांँ समझिस।


माधव –सिरतोन कहिथस बिसउहा। वो तो भगवान रहिस तहू अपन दुख ल अंतस मा छिपा लिस अउ हमन तो साधारन मनखे हरन। ये दुनिया कोनों पुरुष ह कभू बोमिया के रो डरथे त माईलोगिन कस भो-भो-भो-भो रोवत हे घलो कही देथें।


बिसउहा –अइसने गोठमन ल सुरता करके महूँ ह घर परिवार ह तीड़ी-बीड़ी झन होय कहिके बहू खाय-पिये ल दिही तभो नइ दिही तभो ले वोकर दुख ल सोच के अपन नाती-नतरा मा मन ल लगाय रहिथों अउ उंकर आगू मा भीतर ले रोवत बहिरी ले हाँस के गोठियाय के नाटक करथवँ भइया माधव। 

  माधव –  भाई बिसउहा हमन ल अपन दुख ल पाछू मा रख के घर परिवार के सुख-शांति खातिर गृहस्थी के गाड़ी ल आगू बढ़ाय बर पड़थे। जउन पुरस ह एक खाँध मा अपन दुख अउ दूसर खाँध मा परिवार के जिम्मेवारी ल धर के बरोबर चलथे वोकरे घर परिवार मा सुख-शांति रहिथे।

माधव –हव भइया सिरतोंन बात आय। काखरो दुख ह भुलाय ले नइ भुलय तभो ले हाँस के गोठियाय ल पड़थे। हमन अपन दुख के डोंगा मा सवार रहिबो त घर-परिवार, गृहस्थी के डोंगा ह डूब जाही। परिवार खातिर हम पुरुष मन ल अपन दुख ल तियागे ल पड़थे।


बिसउहा–"माधव भइया भउजी नइ दिखत हे कहाँ हे गा?"

माधव–"खेत गेहे गा तोर भउजी हा।"

बिसउहा–माधवके नान्हे-नान्हे नाती नतरा ला देख के कहिथे –"त माधव भइया ये दुवारी मा खेलत नान-नान लइका मन के जतन पानी कोन करथे गा?"

माधव–"का करबे बिसउहा घर के लक्ष्मी कस बहू ल गुजरे दु बछर होगे हे। बहू के सुरता मा बेटा ह पगला कस घुमत रहिथे। दूसरा बहू खोजे बर जाथन त वोकर पाछू मा ये नान-नान तीन झन लइका हे तेला बताथन ताहन कोनो ह बेटी नइ देन कही देथे। भरे जवानी मा बेटा के दुख के आगू मा मोर दुख नानकून हे। बेटा अपने दुख चिंता मा डूबे रहिथे। का करवंँ तइसे लगथे भाई। ये नोनी-बाबू हें तीकरें सेवा जतन करत में घर मा रहिथों तोर भउजी खेत जाथे।"


बिसउहा–"करलई हे माधव भइया फेर रांधे गढ़े बर कइसे करथस गा?"


माधव–"जिनगी मा कभू हांड़ी-पानी ल छुये नइ रेहेंव बिसउहा फेर बहू के गुजरे ले अब मिही ह घर के बहू बनगे हों तइसे लगथे।"


बिसउहा–" करम कमई के खेल अउ प्रारब्ध के कोनों भोग ल भोगत हन तइसे लगथे माधव भइया।"


माधव–"तोर भउजी ह बिहनिया के हांड़ी-पानी ल देखत काम-बूता मा चिथिया जथे। अकेल्ला नान-नान तीनों लइका के जतन करत हलाकान हो जथे। मोर तबियत पानी ठीक नइ रहय त सबो काम-बूता ल करे के पाछू खेती किसानी ल देखथे। त संझा बेरा वोकर आवत ले आगी-पानी, गाय-गरुआ ल देखथवँ भाई। का करबे मोर तीनों तिलिक ह दिख जथे।"


बिसउहा–"घर के बेवस्था बर हम पुरुष ला घलो नारी परानी बनके काम करेच ल पड़ही माधव भैया।"


माधव – “हव बिसउहा भाई कभू-कभू तो आरा-पारा के मन माईलोगिन बनगे हस कही देथे फेर अपन घर के हाल अउ अपन दुख ल अपने जानबे।"


बिसउहा–"माधव भैया जेकर ऊपर बीते रहिथे तिही ह दूसर के दुख ल समझथे ग।"


माधव –विसउहा भाई बिन महतारी के नान-नान लइका मन जतका बेर रोवत "दाई कहाँ हे"? कहिके पूछथे त, न बता सकँव न रो सकँव तइसे हो जथे। बूढ़त काल मा ये दुख ह सहे नइ जात हे। तीन बछर ले लोग लइका के इही चिंता फीकर मा भीतरे-भीतर तोर भउजी सन घुरत हन। ये सब दुख ल तोर भउजी अड़ोसीन-पड़ोसीन, बेटी माई तीर गोठिया के मन ल हल्का कर लेथे। फेर में ह वोकर छोड़ काखर तीर गोहराहूँ तइसे लगथे। त आधा पीरा ल तोर भउजी तीर गोहराके वहू ल दुख झन होय कहिके आधा पीरा ल अंतस मा दबाय रहिथों। बेटा बइहा पगला कस घुमत रहिथे। काखरो कर वहू कुछु नइ गोठियाय। वोकरो दुख भारी हे। वोकरो जिनगी सुधर जतिस त मोर दुख कमतिया जतिस।


बिसउहा–"जब्बर दुख आय हे। भगवान ऊपर भरोसा राखे रहा भइया माधव। का करबे परिवार हे तभो नइ हे तभो सबो डहर ले दुख हे फेर हमन ल अपन अंतस के पीरा ल भीतरी मा धर के नइ रखना हे वोला कखरों न कखरों तीर गोठियायच ल लगही तभे हाँस के जी पाबोन।"


माधव बिसउहा के काँध मा हाथ रख के कहिथे – “हव भाई ये दे दूनों झन सुख-दुख ल गोठियाय हन त मन ह हल्का होगे।”


बिसउहा माधव के पाँव परत कहिथे– “ले अब जावत हौं माधव भइया बड़ देर होगे हे। तहूँ अपन लोग लइका ल देख अउ कभू कभार हमरो घर कोती झाँक ले कर सुख-दुख ला गोठियाय बर आय-जाय कर।”


       हव बिसउहा भाई जिनगी के राहत ले सुख-दुख लगे रहिथे। फेर कतको जब्बर दुख ह अंतस के पीरा बनके भीतरी मा धधकत रहिथे त अइसने गोठ बात ले दुख-पीरा ह थोरिक कमती होय असन लगथे त अइसने दया मया ल धरे आवत जात रहिबे भाई नइ ते हम पुरुष मन के पीरा हा अंतस मा अंगरा आगी कस सुलगतेच रही।


कहानीकार 

डॉ. पदमा साहू *पर्वणी*

खैरागढ़ छत्तीसगढ़ राज्य

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