कहिनी // *माछी के पीत* //
**************************************
ए दुनिया म अलगेच-अलग सुभाव के मनखे देखे म मिल जाथे।सबो के बेवहार घलो अलगेच होथे कोनों अपनेच सुवारथ म मस्त रहिथें त कोनों काकरो सुख-दुख के संग-संगवारी बनके "*नार असन लपटा*" जाथें अऊ कोनों जतका मिलय सबो ल रपोटे अऊ पोगरिया के धरौ अइसन सुभाव के मनखे घलो रहिथें।कतको झन तो धन जोगानी के पाछू भागत रहिथें।दुनिया म संतोष रुपी धनले बढ़के कोनों धन नइ हें।समे म धन-जोगानी काम नि आवय,मनखे के बेवहार जिनगी भर पूरथे। "*मनखे के सुग्घर बेवहार ओकर असल पूँजी आय*" मनखे के गुन ल आकब करे म घलो पता चल जाथे कोन किसम के आय,जइसे हांड़ी म भात ह चुरे हे के नि चुरे एक-दू दाना ल छूए म पता चल जाथे। "*बेवहार मनखे के असलियत बता देथे*"।
गुमान गंवटिया जबर कंजूस सुभाव के मनखे रहिस।खार म चक के चक खेती रहय।तीन-चार जोड़ी नांगर रहय।घर म कोठी-ढाबा छलकत रहे।मुसवा कोठी तरी बिल बनाके कतको अकन ल नकसान कर देवैं,फेर कोनों गरीबहा ल एक मूठा कभू देहे नि जानिस।गंवटिया घर के बारी म बीही,छीता,अरमपपई,दरमी अऊ आमा बनेच लगे रहे।बारी के चारो कोती थुहा अऊ बोईर कांटा के छेका करे रहे।एतका छेका रहे के टेटका घलो बारी म नि खुसर सके।गुमान ह अपन बारी के बीही,छीता अरमपपई,दरमी अऊ आमा के रखवारी करतेच रहे,लइका तो लइका इहां तक के "*चिलहरा तको ल चाटन*" नि देवै।
गुमान गंवटिया के दस कोस गाँव तक गंवटानी के सोर बगरे रहय,तेन ल सबो मनखे मन जानय।ओखर घर म धन जोगानी भरे रहय,फेर कोनों गरीब दुखिया ल एक मुठा छिटकारे तको नइ।अइसन चीज बस रहे के का काम जेन कोनों ल बांट-बिराज नि खाय जाने। "*सूम के धन ल खाय घून*",गुमान लेहे भर जानय देहे तो अपन जिनगी म कभू जानबेच नि करिस।
दू कोस दूरिहा गाँव के रिझू अपन घर के हालत ल देख के गंवटिया के घर उधार-बाढ़ी मांगे जाथे। "*मुसकुल घरी म मनखे ल आसरा के जरूरत होथे*"। पैलगी जोहार हे गंवटिया साहेब... पांव तरी ढोंकरत रिझू कहिथे।खुशी रह...कइसे आय हावस...आशीष देवत गंवटिया कहिस।पसिया बर लइका मन ललावत हावें दुख ल गोहरावत... रिझू कहिथे। हमन ल कइसनहों करके धान-चउंर उधारी-बाढ़ी दे देतव....रिझू कहिस।तैं अइसे कर कालि बिहनिया आ जाबे आज कोठी ले धान नि हेरे हन अउ आती बेरा म एक कांवर कांटा बोह लानबे...गंवटिया कहिस।जेन दिन कोनों कुछू जिनीस मांगे आतीस त वो दिन गंवटिया तो कभू नि देवय।कुछू न कुछू चीज मंगावत दूसर दिन बलाबेच करे।बपरा पेट के दुख म काय नि करे गंवटिया के कहे मुताबिक लानबेच करे।रिझू घलो दूसर दिन एक कांवर कांटा बोह के लानिस।
गुमान गंवटिया दू किसिम के तामी रखे रहिस।उधारी-बाढ़ी देहे के बेरा अपन छोटकी बहुरिया ल तामी लेके आय बर आरो करे।एकर मतलब रहिस के छोटे तामी ल लाने बर कहय।बाढ़ी लेहे के बेरा अपन के बड़की बहुरिया ल तामी लाने बर आरो करे।एकर मतलब रहिस के बड़े तामी ल मंगावय।देहे के समे छोटे तामी म अऊ लेहे के बेर बड़े तामी बउरे। "*जेन ह दूसर ल धोखा देथे एकदिन अपनेच धोखा खाथे*" ।अइसनहे करके चीज के बढ़ोवन करे रहिस।
गुमान गंवटिया घर फेर दूसर कोनों बाढ़ी मांगे आवय त ओमन ल कहे,अभी बहुरिया मन असनांदे नि हे,ओतका ले कांवर म कांटा हावे वोला थोरिक बारी ल रुंध के आ जाबे तंह ले बहुरिया मन घलो असनान कर के तियार हो जाही।बपरा मन काय करे पेट के खातिर करे बर परे।गुमान गंवटिया के फोकट म सबो बुता हो जावत रहिस।अइसनहे सबो करा बेगारी करावत चीज बस ल जोरे रहिस।कतको झन करा अइसनेच बूता करवातिस।कोनों ल खेत के मुंही भेजे त कोनों ल बिंआरा के रांचर ल बनवातिस अऊ कोनों ल कुछू बूता जोंगबेच करे।
एक दिन गुमान गंवटिया बीमार पर गिस।गोड़-हाथ,मूड़ी पीरा अऊ जर-बुखार म हंकरत रहे।मोर मूड़ी म तेल लगाके थोरिक ठोंक दे... खटिया म सूते-सूते अपन नाती ल कहिस।ओकर नाती काबर करे... नीं करंव कहत गली खोर कोती खेले बर भाग गीस।फेर अपन बड़की बहुरिया ल हंकरत ...गुमान आरो करथे।काय होगे बाबू.....कहत बड़की बहुरिया आइस। गोड़ हाथ के पीरा अऊ जर-बुखार म हंकरत हौं थोरिक डाक्टर ल बलवा देते।हव कहत बड़की बहुरिया चल देथे अऊ डाक्टर बलाय बर अपन लइका ल ओकर संगवारी संग भेज देथे।
थोरिक बेरा म गंवटिया घर डाक्टर आथे।राम-राम गंवटिया जी ...का होगे हावे... डाक्टर पूछथे।राम-राम डाक्टर साहेब आवौ बइठव ... मोला हाथ गोड़ पीरा अऊ बुखार चढ़ाय हावें ...कलहरत गंवटिया कहिथे।डाक्टर अपन थरमामीटर निकाल के झटकारत ओकर खखोरी म चीप दिस।थोरिक बेरा म निकाल के देखिस त एक सौ दू डिगरी बुखार चढ़ाय रहे।गंवटिया तुंहला एक सौ दू डिगरी बुखार चढ़ाय हे थरमामीटर ल देखावत कहिस...। डाक्टर ईलाज करे पातिस तेकर ले पहिली कतेक खरचा आ जाही पूछत....गंवटिया कहिस...।दू सूजी लगही,बोतल चघाय अऊ खून जांच करे परही... डाक्टर बताइस।कतेक खरचा आ जाही.. गंवटिया फेरेच पूछिस।दवाई मांदी,सूजी अऊ बोतल सबो मिलाके बारा तेरा सौ लग जाही।बनेच जादा बतावत हौ,एमा कुछू कम नि होही डाक्टर साहेब....गंवटिया पूछथे।
गुमान तो देहे-लेहे ल कभू जाने नहीं ते पाय के ओला कीमत ह जादा लागिस।डाक्टर साहेब मोला एकोठन गोली अभी दे देवौ पाछू सूजी अऊ बोतल लगवा लेबो... गुमान कहिस।डाक्टर गुमान ल गोली दे दिस अऊ अपन घर चल दिस।एती गंवटिया के गोली म बुखार उतरबे नि करिस।एक गोली म थोरे उतर जाही।अपन के छोटे बेटा सरवन ल बलाइस अऊ कहिस ...जा तैं परउ बईद ल बलाबे थोरिक फूंकतिस अउ जरी-बूटी के दवाई घलो दे देतिस।अऊ ओहर दू बछर होगे धान के बाढ़ी ल घलो नि दे हावे।
परउ बईदराज कहत ले लागय ओकरो नांव ह दस कोस ले जगजाहिर रहिस।अपन झाड़-फूंक अऊ जरी-बूटी ले बनेच बीमरहा मन ल ठीक कर देवै।ओहर ईमानदार घलो रहय।ते पाय के परउ करा एक-दू मनखे रोजेच ईलाज कराय आतेच रहंय। राम-राम बईदराज...गुमान के बेटा सरवन कहिस।राम-राम आ बइठ छोटे गंवटिया..खटिया कोती इशारा करत परउ कहिस।एदे मउंहार भांठा के मन आय रहिन ईलाज कराय बर अभिच घर गइन हे उही मन ल बिदा करके जरी-बूटी खने जंगल कोती जाहूँ सोचत हंव....परउ कहिस।हमर घर थोरिक चलते का हमर सियनहा ल दू दिन होगे हे देहें पीरा अऊ बुखार उतरतेच नि हे... गंवटिया के लइका सरवन कहिस।ले चल आवत हंव...परउ कहिस।अपन झोला झंकर धरिस अऊ गंवटिया घर जाय बर निकल गिस।
परउ लकर-धकर गंवटिया के घर पहुंचिस।राम-राम गंवटिया...जोहारत परउ कहिस।आ बइठ परउ देख तो हाथ नारी ल थोरिक तउल दू दिन होगे पीरा अऊ बुखार उतरतेच नि हे.. डाक्टर घलो चेक करिस अऊ दवाई दे रहिस तेमा छोड़बेच नि करिस तहीं कुछू जरी-बूटी अऊ झाड़-फूंक करके थोरिक देख तो...पीरा म हंकरत गुमान कहिस।तुंहर हाथ ल देखावौ गंवटिया...परउ कहिस।गुमान अपन हाथ ल परउ कोती लमा दिस।परउ ओकर हाथ ल अपन अंदाज लगावत तउलिस।सात दिन के दवाई खाय बर परही तंह ले पूरा ठीक हो जाबे घबराय अऊ चिंता करे के बात नि हे गंवटिया... हिम्मत बढ़ावत परउ कहिस।सात दिन के दवाई के कीमत कतेक लाग जाही ....गुमान पूछिस। "*मनखे ह धन-जोगानी के पीछू भागथे जब तक ओहर मर नि जावे*" जरी-बूटी थोरिक मंहगा मिलथे तभो ले सात दिन के ओई एक हजार के भीतर म हो जाही ...परउ कहिस।
दू बछर के बाढ़ी लेगे हे तेला देहे निहे ठउका मउका मिले हे इही म कटौती करवा देहूं ...मने-मन गुमान सोचत रहिस।सात दिन के खुराक देवत हौं दू प्रकार के दवाई।एकठन ल काढ़ा बनाके पीये ल परही अऊ दूसर ल करंज तेल ल कड़का के ओमा दवाई ल मिलाके बने फेंट के देहे भर चुपरे म सबो पीरा-बीथा छोड़ दीही अऊ बुखार घलो उतर जाही ...परउ समझावत कहिस।सबो झन ल गंवटिया बेगारी करवाथे,अभी मैं ठउका मउका पाय हौं कहिके ....परउ मन म सोचिस।अइसनहे गंवटिया के बदला लेहे बर कतको झन मउका खोजत रहिन। "*बरी के तेल ल बरा*" म निकालहूं...परउ मने-मन खुश होवत रहय। "*राजा खोजे दांव अऊ माछी खोजे घाव*" ।अइसे कर परउ तैं मोला एक खुराक पहिली दे,ठीक लागही त फेर ले लेहूं गांवेच म तो रहिथस...गुमान कहिस।एक खुराक के दवाई दे दिस अऊ परउ घलो अपन घर चल दिस।
परउ के जाय के पाछू बईदराज के कहे मुताबिक गुमान करे लागिस त ओकर बुखार अऊ देहें भर के पीरा छोड़ दिस।एक खुराक म तो छोड़ दिस एकेच खुराक के पइसा ल बाढ़ी लेहे तेमा कटौती करवा देहूं।अब दवाई के जरुरत नि परे....गुमान मन म सोचे धर लीस।बुखार अऊ पीरा छोड़ दिस कहिके गुमान अब दवाई नि लिस। पूरा दवाई नि लेहे के खातिर ओकर बीमारी जरमूल ले नि कटे पाइस फेर उबकगे।ए पइत परउ बईदराज करा ईलाज करवाय पातिस तेकर ले पहिली गुमान के नांव सगरो दिन बर संसार ले गुम होगे। "*समे ह अच्छे-अच्छा मन ल नवा देथे*"।एकरे सेथी कहे गे हावे शरीर के रख-रखाव बर ध्यान देवौ समे म पइसा-कौड़ी धन-जोगानी काम नि आवै।जादा "*माछी के पीत*" हेरे म काम कभू नि बने।
✍️ *डोरेलाल कैवर्त " हरसिंगार "*
*तिलकेजा, कोरबा( छ.ग.)*
****************************************
No comments:
Post a Comment