Sunday 15 May 2022

नवा रचनाकार मन बर लेख* *आखर-आखर गोठियाथे*

 *नवा रचनाकार मन बर लेख*


*आखर-आखर गोठियाथे*

 

लेखक के जिनगी के सार ओकर लेखन के प्राण-तत्व होथे। जइसे-जइसे उमर बाढ़त जाथे, जिनगी के अनुभव घलो बाढ़त जाथे। हल्का उमर मा लिखे रचना ला पढ़के लेखक खुदे हाँसथे अउ सोचथे कि पहिली काय अगड़म-बगड़म लिखत रहेंव। अइसन हँसाई हर-उमर मा होथे। हल्का उमर के बहुते कम रचना मन अपनआप ला संतुष्ट कर पाथें। असली लेखन उही हर आय जे अपनआप ला संतुष्ट करय। लेखन जब तक लेखक ला संतुष्ट नइ करही तब तक पाठक ला संतुष्ट नइ कर सकय। उत्कृष्ट लेखन के आखर-आखर गोठियाथे।

लेखक ला प्रचार करे के जरूरत नइ पड़े। 

 

कहूँ पढ़े बर नइ मिलिस कि कविवर रवींद्र नाथ टैगोर हर लिखिस - "मँय गीतांजलि लिखे हँव, किताब छप गेहे। सुग्घर किताब आय। आपमन खचित पढ़व।" कथाकार प्रेमचंद के घलो कथन नइ दिखिस - "मोर गोदान फलाना प्रकाशन के प्रकाशित हो चुके हे। मँगवावव अउ पढ़व।" मैथिलीशरण गुप्त, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला" अइसन कतको साहित्यकार मन होइन, जिनकर लेखन कालजयी होगे हे फेर इनकर कलम ले इनकर किताब मन के प्रचार-वाक्य पढ़े मा नइ आइस। इनकर लेखन के आखर-आखर गोठियाथें। रसिक पाठक मन सुन तको लेथें। 

 

आज के जमाना, सोशल मीडिया के जमाना आय। जउन ला देखव तउने हर मरो जियो लिखत हे। किताब मन मुक्का होके बइठे हें अउ लेखक मन गोठियावत हें - मोर अमका किताब छपगे, मोर ढमका किताब छपगे। खीसा ले खर्चा करव अउ सप्रेम भेंट मा बाँटत रहव। दू चार झन पढ़ लिन त पढ़ लिन नइते प्राप्तकर्ता के आलमारी मा धुर्रा खावत पड़े हे। महाकाव्य के लक्षण नइ जानँय अउ महाकाव्य लिखत हें। प्रबंध काव्य ला खण्ड-काव्य बतावत हें। अरकान अउ बहर ला नइ जानँय अउ गजल संग्रह छपगे। तुकबन्दी ला छन्द बतावत हें। एक ठन पोस्ट ला पचीसों समूह मन मा कॉपी-पेस्ट करत हें। निजी इनबॉक्स ला तको नइ छोड़त हें। अपने खर्चा मा अपन अभिनन्दन करावत हें।इहाँ सम्मान, उहाँ सम्मान….ददा रे! कोन डहर साहित्य के डोंगा जावत हे?

 

कोनो लेखक हो, ओकर समग्र साहित्य के चर्चा (जयंती-विशेष या पुण्यतिथि ला छोड़ के) साहित्यिक मंच मन मा नइ होय। केवल उत्कृष्ट पंक्ति या पैरा ला रेखांकित करे जाथे। इही गिनेचुने पंक्ति मन लेखक ला मरे के बाद घलो जिन्दा रखथे। कहे के मतलब प्रचार, प्रसार, हँगामाबाजी कुछु काम नइ आवय, उत्कृष्ट लेखन हर लेखक ला जिन्दा रखथे। तेपाय के नवा रचनाकार मन बर मोर सलाह हे कि ज्यादा पढ़व, भले कम लिखव फेर उत्कृष्ट लिखव। इसी मा सार हे। बाकी हो-हल्ला अउ प्रचार-प्रसार बेकार हे। सफलता तभे हे जब लेखक चुप रहय अउ आखर-आखर गोठियावैं।

 

*अरुण कुमार निगम*

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