Tuesday 31 May 2022

व्यंग्य-टोनही

 व्यंग्य-टोनही 

                                   मंडल के ब्यारा के बड़े जिनीस परसार म बइठका सकलाये हे । कटकऊँवा मनखे , चारों मुड़ा मुड़ीच मुड़ी । कोन जनी काये होही भऊजी के आज । गाँव के कतको माईलोगिन मन , वोला सुगाये बर धर लेहे । तेकर ले बड़े घर के मन तो अऊ , मरेच जात रिहिन । तिर तखार के आन गाँव तक म , “ टोनही – टोनही ” कहिके बदनाम कर दे रिहिस , बपरी ला । अभू फैसला होही , भऊजी के काये करना हे ? मुड़ी ल तोप ढाँक के समे म हाजिर होगे रहय भऊजी हा ।     

                                कतको कस इल्जाम लगे रहय । बिधायक के टूरा शुरू करिस - रामू कका के नाती ह कतेक सुंदर बाजर खेलत खावत रिहिस । एक दिन येकर बखरी म आमा बीने बर का निंगिस , ओला गारी बखाना करके , अइसे पांगिस के लइका उठ नइ सकिस , सिध्धा ओकर लासे हा उचिस । के जगा नइ घूमे हे इलाज पानी बर , कतको बइगा गुनिया देखा सुना डरिस । फेर येहा अइसे जाहरा टोनही आये के , एकर आघू म काकरो दार नइ गलिस । सही बात आय निही कका ? “ हव सब्बोच सही ताय गा ”  मुड़ी गड़िया के रामू हुँकारू भरत कहत रहय । इही गाँव में एक झिन गुरूजी रहय , ओला नानुक हरस कहिके , जम्मो झिन बछरू गुरूजी कहय । उही टप्प ले कहि पारिस – एक्को झिन डाक्टर ल घला देखाये होबे कका । ओहा काये बतइस ? तेंहा बीच म भांजी झिन मारे कर गा गुरूजी ... , तोर अइसन प्रश्न ल पाछू करत रहिबे , मंडल के टूरा आँखी देखावत किहिस । तभे सरपंच के छोटे टूरा खड़े होके केहे लागिस – बिसाहिन दीदी के बहू कइसे मरिस गा ? कतेक उमेंद ले बिहाव करे रिहिस बिचारी ह , बछर नइ पुरे पइस , चुँहक दिस टोनही हा । एकरेच नाव ल काबर धरिस होही बइगा मन ? वोकर काये दोस रिहिस । ओकर बखरी म , न आमा बिने ल गे रिहिस न अमली । मुंधियार के उही रस्दा ले दिसा मैदान जावय । ओकर सुंदरई , एकर आँखी म गड़गे । अतके म ओकर मन भरिस जी , ओकर पेट के पिला तको ल पेट भीतरी म मुरकेट के मार डरिस । मंडल के टूरा किथे - अरे बाप रे ...... , अतेक पान होही ये बड़का गुरूजी के बई हा कहिके नइ जानत रेहे हन , कई ठन किस्सा हे एकर गा । बिधायक के टूरा केहे लगिस - सुखरू के गोड़ के घाव ल नजर भर का देखिस , ठीकेच नइ होइस । गोड़ काटे बर परगे । कइसे बइगा ? येहा तो अपन घरवाला तको ल भक डरिस , हमन ल काये बचाही ........... । जल्दी उपाय करव , निही ते कोन जनी , काकर नंबर आ जही । अतेक बड़ बड़ घर के लइका मन के आगू कोन हुँकारूँ नइ भरही .... । हव सहीच कहत हस भइया ...... । कलल कलल होये लागिस । सरपंच कथे – गाँव भर ल मतावत हे येहा । अब काये करना हे एकर .... । तुँहीं मन बतावव ....... । 

                               एकरो गोठ ल सुन लेतेन सरपंच साहेब , तभे फइसला करतेन जी , तभे तो न्याय होही –  बछरू गुरूजी फेर पट ले मार पारिस । सरपंच के टूरा किथे - दू अक्षर का लिख पढ़ डरे हे गुरूजी हा , अपन आप ल बड़ होशियार समझथे । वोहा का बताही ? येहा कही का , मिही टोनहांये हँव येमन ला ....... ? वोहा तो जम्मो इल्जाम ले मना करही । कुछ सियान मन किहिन - बने कहथे गुरूजी हा , उहू ल मौका मिलना चाही । हव हव .... कलकलाना शुरू । 

                               सरपंच किथे -  बता छोकरी ...... तोर काये करे जाये ...... ? मंडल के बाबू टप्प ले मारिस - ओला का पूछथस सरपंच साहेब .... गाँव ले निकाल देथन येला , न रही बाँस न बाजही एकर बाँसुरी । कन्हो कहय - एकर हुक्का पानी ल बंद कर दव , एकर ले कन्हो बातचीत गोठियाना बताना सब्बो बंद , ये हा अपने अपन गाँव छोंड़ के भाग जही । भऊजी ल अपन जगा म ठाड़ होवत देखिन ते जम्मो झिन के मुहुँ अपने अपन तोपागे । कले चुप होगे जम्मो । भऊजी कहन लागिस - सरपंच कका ,  हाथ जोर के निबेदन हे  , मोला गाँव ले झिन निकालव । मोर हुक्का पानी ल झिन बंद करव । हमर गुरूजी ह , तुँहरे मन के हाथ म , तुँहरे संरक्षण अऊ भरोसा म मोला छोंड़के सरग चल दिस । तुहींमन अइसन दुत्कार दुहू , त कहाँ जांहूँ ? वा .... हमन तोर ठेका लेहन का ? बिधायक के टूरा बइठे बइठे हकन हकन के केहे लागिस । पहिली अपन आप ल निर्दोष साबित कर , तोला कोन निकाले के हिम्मत करही ? मेंहा निर्दोष हँव भइया , येला तहूँ मन जानत हव , फेर काबर मोर संग अइसन करत हव ... बड़ दायसी ले बोलत रहय भऊजी हा । फेर शुरू होगे कलल कलल ...। मंडल किथे - तेंहा निर्दोष रहिते बहुरिया , त जे तोर सेती भुगते हे , तेमन लबारी मारथें का ? अतेक झन अकारन काबर परेशान होतिन ? भऊजी किथे - सही समे म डाक्टर ले इलाज मिल जतिस , त जम्मो झिन ठीक हो जतिन कका । बिधायक के टूरा कहत रहय - वारे पढ़हंतीन , असली कारन तैं हरस , उही ल लुकाये बर कइसे बहाना मारथे तेला । टोनही , तोला ये गाँव ले जाये ल परही , तें टोनही रेहे , टोनही आस अऊ टोनही रहिबे ।  भऊजी किथे - में नि जाँवव ये गाँव ले ....... । मोर कन्हो दोष निये..... । मंडल के टूरा जम्मो झिन ला उकसावत केहे लागिस - अइसे म नइ माने गा ..... । मारो जम्मो झिन जुर मिल के ...., येकर कपड़ा लत्ता ल हेर के  घुमाऔ गाँव भर , शरम के मारे कइसे नइ छोरही गाँव ल । कलेचुप सुनत रहय सरी गोठ ल , भड़कगे ... बिधायक । कोने रे बड़ गोठियावत हे तेहा .... मार साले ल दू जूता मुँहूँ म .....। हमन ल काबर बइठारे हो , जब तुँहीं मन सबे फइसला ले डरहू ? मेहा कोन पक्ष के बिधायक आँव , तेला नइ जानो रे । मोरे गाँव म अइसने करहू त मोर सरकार के कतका बेइज्जती होही , तेकर कलपना हे तूमन ल .... । सरकार अऊ विज्ञान दूनों , टोनही मोनही नइ माने । तूमन ल जेल के हावा पसंद हे , त बोलव येला टोनही .....। कोई टोनही वोनही नइ होये येहा , .... हां ये माईलोगिन जरूर अपन चरित्तर ले गिरे हे , तइसे लागथे मोला .... अऊ इही आरोप म , अभू ले कन्हो एकर संग झिन गोठियावव , कतका दिन ला अकेल्ला काटे सकही , देखथन ?

                     भऊजी का ...... , जम्मो गाँव के मनखे तको , नावा आरोप ले सुकुरदुम होगे । भऊजी किथे - मोर उप्पर अइसन अरोप झिन लगावव भइया ..। टूरा मन केहे लागिस - गाँव ले निकालो गा एला ..... गाँव ले ....  , चरित्तर ले गिरे प्राणी हा गाँव के नोनी बाबू मन ला घला बिगाड़ दिही अइसन म  ... । एकर का बिगरही ठगड़ी रकठी के । फेर कलल कलल शुरू होगे .........। आगी लगाके , बिधायक , सरपंच अऊ मंडल , कले चुप अपन अपन घर कोत रेंग दिन । अभू ओकरे लइका मन सियानी करत , आठ दिन के भीतर गाँव छोरे के आदेस देवत , बइठका उसले के घोसना कर दिन । 

                 तीन चार दिन नहाकगे । बछरू गुरूजी ला , अपन बड़े गुरूजी के सुरता आवत रहय ।   गुरूजी के बिहाव होये , पाँच छै बछर होये रहय । ले दे के एक झिन लइका नाँदिस , तहू ल भगवान होतेच साठ लेगे । कतको इलाज पानी करवइस , फेर दुब्बारा महतारी नइ बन सकिस भउजी हा । डाक्टर जवाब दे दे रिहिस । कोन जनी काये सोंचत , खेत ले घर आवत गुरूजी हा सइकिल सुद्धा ट्रक के सपेट म आगे । भउजी कठवा पथरा होगे । ससुरार आये ले अभू तक भऊजी अतका मर्यादा म रहय के , गाँव के कन्हो आदमी जात ओकर मुहूँ ल नइ देखे रहय । बछरू गुरूजी सोंचय , भउजी बड़ सुंदर होही कहिके .... । कतको घाँव ओकर घर निंगे रिहिस । गुरूजी के सरग जाये पाछू , एक घाँव देख पारिस , त भ्रम टूटिस । बिगन सूल के .. करिया करिया झंई .. मुहूं भर बगरे रहय । हाथ गोड़ घला उइसने । खैर , ओला काये करना हे । अभू ओकर मानवता धरम ह हुदेलत हे , तोर गाढ़हा समे म मदद करइया के अहेसान ल कब चुकाबे , मउका हे अभीच्चे , तैं जा , अऊ कतका तकलीफ म जियत हे भऊजी , तेकर शोर खबर ले , जतका बन सकही ओकर मदद कर । दूसर कोती गाँव के टूरा मन के ददागिरी आगू दिख जाये , तैं जाबे ते ठीक नइ होही गुरूजी । मन के भीतरी द्वंद चलत रहय । जीतगे मानवता । पाँच किलो चऊंर , एक किलो उरिद के दार , गोंदली , आलू , नून , मिरची , चेंच भाजी अऊ रमकेलिया टोर के , जोर डरिस बछरू गुरूजी के बई । दूनों प्राणी चल दिन भउजी के पारा । 

               एकदमेच सुन्ना रहय गली खोर । मरे रोवइया नइ दिखत रहय । डर्रा डर्रा के पहुंचिन । कपाट उघरा । भउजी किथे - अई .... तूमन काबर अपन जीव ल होम देके , मोर घर आवत हव बाबू । मोर तो बिगड़ीच गेहे । तुँहर झिन बिगड़य । बछरू गुरूजी पूछत हे - तैं कोन अस नोनी । भउजी कहाँ हे । तैं ओकर कहीं लाग मानी अस का ? लजागे नोनी , तुरते मुड़ी ल घुमघुम ले ढाँकिस , बोरा दसइस अऊ  “ आवत हौं “ कहिके भीतरी म खुसरगे । बछरू गुरूजी के सुआरी टोंकिस - कइसे गोठियाथव हो तहूँ मन , जेकर ले मिले बर आहव , उही ल पूछीथौ , कहाँ हे उही कहिके .... । बछरू गुरूजी किथे - भउजी ल तैं भेंटे हस एको घाँव ... । मुहूं भर करिया करिया झंई ... हाथ गोड़ तको करिया । येहा तो एकदम मोटियारी आय । कन्हो लागमानी आये होही , अऊ तेंहा , जाने न सुने , टपर टपर पाँव पैलगी घला कर डारे .... । बछरू गुरूजी के बई किथे – अई ...... महूँ दीदी होही समझेंव या ... । 

                 थोकिन बेर म , भऊजी बाहिर अइस । बछरू गुरूजी किथे - कतिंहा लुका गे रेहे या भऊजी ... बड़ समे लगा देस । भऊजी किथे - गोबर लीपत रेहेंव बाबू .... हांथ गोड़ धो के आवत हंव । हांथ देखावत किहिस , तंहँले फटले हांथ ल लुका दिस , गोड़ ल घलो लुगरा म सटले तोप दिस । काला लुकाथे भउजी .. गुरूजी सोंचे लागिस । भऊजी किथे - तूमन ल नइ आना रिहीस बाबू ... गाँव के मन देखहीं तहन , फेर डम्फान मचाही । गुरूजी किथे - मोर बिपत के समे बड़ मदद करे रिहिस बड़े गुरूजी हा , महूँ ल अपन फर्ज पूरा करन दव भऊजी । गोठ चलत हे । आगू काये करना हे , तेकर फइसला नइ ले पावत हे । बछरू गुरूजी समझाथे - तेकर ले अइसे नइ करते या भऊजी , तोर लागमानी संग , कुछ समे बर ओकरे गाँव चल देते । थोकिन समे काट लेते , हो सकत हे तब तक , गाँव के मनखे मन के मति बदल जाये , तहन गाँव लहुंट जते ।

                  भउजी किथे - बाबू , एक ठिन बात पूछँव - का तहूँमन ल , मोर म टोनही दिखथे ...... ? गुरूजी किथे - काबर अइसना सोंचथस या भऊजी ... । हमन उसन सोंचतेन , त काबर निंगतेन तोर दुआरी म । भऊजी बतावत रहय - मेंहा गाँव के मनखे ल कइसे समझाँवव बाबू । रामू कका के नाती रोज मँझनिया भर आमा बिनय । मँझनिया कुन झिन आये कर बेटा कहिके बरजँव , सांझ कुन ओकर बर गेदराहा आमा सकेल के रांखँव , अऊ बला के देवँव । तभ्भो ले लइका नइ मानिस । रामू कका जानत हे येला । झांझ झोला धर लिस । इलाज छोंड़ , बइगा गुनिया करिस । हाथ नइ अइस लइका । ओ समे रामू कका मोर नाव नइ लगइस । बिसाहिन दीदी के बहू छोकरी के पेटेच भीतरी म लइका मरगे रिहिस , नर्सबई ओमन ल कतको बेर अस्पताल जाये बर किहिस , नइ मानिस । अस्पताल गिस , त लइका ला गर्भ भीतरि मरे एक दिन होगे रिहिस । पीरा म बहू छोकरी घला चल दिस । वो दारी तभ्भो मोर उप्पर कन्हो इल्जाम नइ लगिस । फेर अभू काबर ये होवथे ? सुखरू कका के गोड़ , मोरे बखरी के लकड़ी बोंगत टंगिया म कटाये रिहिस । टिटनेस के सूजी लगवा ले कका , कतको केहेंव । नइ लगवइस , गोड़ काटे ल परगे । अभू तुँही मन बतावव , कोन ल कइसे समझावँव ? उही ल गुनत हँव रात दिन । का तहूँ मन ल लागथे के , में अपने घरवाला ल खाहूँ .... ? रो डरिस । 

                गुरूजी किथे - झिन रो भऊजी । मोर मानथस त , तेंहा कुछेच समे बर कन्हो चल देतेस या । मन एक कनि हलका हो जही । भऊजी किथे - मोर तो दुनिया म कन्होच निये बाबू । गुरूजीमन के दई ददा पहिली ले नइ रिहीस । बिहाव के दूए तीन बछर पाछू , मोरो महतारी बाप मनला , भगवान लेगे । में कहाँ जांहूँ बाबू .... । मोर अंतस के पीरा ल कतिहाँ गोहनावँव बाबू ...... । 

                 अपन जगा ले उठत भऊजी किहिस - रहा , बइठो या , चहा मढ़हात हँव । गोठ बात म भुला गेंव । बछरू गुरूजी किथे - बइठ न भउजी , सगा नोनी ल कहिदे , उही बना दिही । वइसे , कोने वो नोनी हा , बड़ सुंदर हे या , भऊजी ? भऊजी मुसकावत किहिस – उही तो टोनही आय , देवर बाबू...... । गुरूजी किथे - काबर ठट्ठा करथस या भऊजी ? भऊजी किथे - तूमन ल बिश्वास नइ होवत हे , आवव मोर पाछू , देखावत हौं तूमन ल । ओकर सुते के खोली ल नहाकत अँगना म अमर गिन । सुते के खोली म सीसम के सोफा , बहुतेच सुंदर डिजइन के पलंग । रँधनी खोली कोती आँखी किंजरगे , कतेक सुंदर लइन से सजे एके बरोबर साइज के डब्बा डिब्बी । एक ठिन काड़ी कचरा के नाव निही । भितरि डहर परछी म प्लास्टिक के खुरसी बिछा दिस । देखते देखत भऊजी हा , अँगना म मुहुँ कान ल , साबुन चुपर के धोये लागिस । चुँदी छरियागे , भुँइया ले लहसत , बड़े जनीस चुँदी । फेर उप्पर करे , फेर खसले , केऊ बेर करिस .... । एक घाँव त बछरू गुरूजी अऊ ओकर सुआरी तको झझकगे । सही म टोनही आये का रे ....... । झूपे कस लागथे । सुकुरदुम होके देखत रिहिस । लहुँटत ले उठके रेंग दे के मन होत रिहिस । मुहुँ ल पोंछ के जइसे लहुँटीस ....बछरू गुरूजी अऊ ओकर बई एक दूसर ल किड़ किड़ ले धर लिस..... । कइसे रूप बदलत हे .... ये सही म टोनही आय का........। 

               जइसे जइसे भऊजी , ऊंखर तिर म अमरत गिस , दूनों प्राणी के मन के डर बाढ़त गिस । खुरसी म नइ बइठे रहितीस ते , पछघुच्चा होके भाग जतिस .. तइसे , जी होगे रहय । भऊजी ये हा काये या ...... ? बड़ हिम्मत करके बछरू गुरुजी हा पूछिस । भउजी किथे - मिहीं टोनही आँव बाबू ? जोर से हाँसिस ...। टोनही नराज झिन होये कहिके यहू दूनों हाँसे लागिन ....। हाँसत हाँसत रोये लगगे भऊजी अऊ बतावन लागिस - मोला अभू तक करिया बिलई परेतीन कस देखे रेहे न बाबू । फेर ओहा मोर असली रूप नोहे । मोर असली रूप इही आय । मोर इही रूप के सेती , गाँव भर में कुछ समे ले , टोनही के नाव ले बदनाम होवत हँव । बछरू गुरूजी किथे - हमन समझेन निही या भऊजी । अत्तेक सुंदर हस फेर निच्चट कस काबर रहिथस ? हाथ गोड़ मुहू कान ला करिया चुपरके काबर लुकाथस ? 

                 भऊजी अपन राम कहानी बतावत केहे लागिस - मंडल के टूरा , जे ओ दिन बड़ लुबुर लुबुर करत रिहिस , तेहा , तुँहर गुरूजी करा , पढ़ई लिखई के सवाल करे बर रोज आवय । मोर दई बाबू के जम्मो संपति , मुहीं ल मिले हे , तेला तभे ले जानत हे । वोहा कहाय – तेंहा तो हमरो ले मंडल हस गुरूजी । गुरूजी के जाये के पाछू मदद के बहाना कतको बेर अइस । कभू पलंग त कभू सोफा , त कभू खेत खार ल , बने कीमत म बेंचें के बड़ लालच दिस । फेर भगवान के दे , ओकर नौबत नइ अइस । ओकर बात म नइ फँसेंव । अऊ बिधायक ल तो देख , मोला चरित्तर ले गिरे प्राणी किहिस , काबर मोर अनुकम्पा नौकरी बर , ओकर इच्छापूर्ति नइ करेंव , टार तोर नौकरी ल कहिके , ओकर चौंखट ल खूँदे बर नइ गेंव । मेंहा उही दिन ले जान डरेंव के मनखे मोर मदद के बहाना मोर धन के अऊ मोर शरीर के लालच करथे । उही दिन ले निच्चट कस , अपन शरीर म करिया मरिया पोत पुताके बाहिर निकलथंव । फेर एक दिन पक्का आमा खाये के अऊ गाँव के जम्मो संपति म अपन हक जताये के आदत के सेती सरपंच अऊ बिधायक के करबेलवा टूरामन मोर बखरी म निंगिस । मोर असली रूप ल नजर में उतार डरिस , बस .............. पाछू परगे । कतको प्रयास करिन । बात नइ बनिस । तेकर सेती येमन मोला टोनही बना दिन , ताकि मेंहा गाँव ले निकल जाँव , तब बाहिर म येमन मोर संग जोर जबरदस्ती कर सकँय , अपन सुसी बुता सकँय । अभू तुँहीं मन बतावव में जेला टोनही केहेंव , तिही टोनही आये के नहि ..... ?   

हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

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