Sunday 15 May 2022

सरपंच के शपथ ग्रहण

 व्यंग्य-

सरपंच के शपथ ग्रहण 

                          भारी कस्मकस म चुनई जीते रहय बपरा हा । बिपक्ष के हरेक मनखे मन एकमई होके ओला बदनाम करे के बड़ साजिस रचिस । बदनाम करिस घला फेर जनता हा ओला अपन सिर आँखी म बइठार के , ओकर बिरोधी मन के हवा निकाल दिस । चुनई म ओला अबड़ फेंकू आय .... लबरसट्टा आय कहि कहि के .... खूबेच गारी बखाना करे रिहीन । 

                         शपथ ग्रहण के दिन तैयार होके मंच म पहुँचगे । गाँव के जम्मो मनखे मन खइरखा ड़ाड़ तिर पहिली ले सकलागे रहय । मंच म बिराजमान तहसीलदार हा .... सरपंच ला शपथ ग्रहण करवाये बर कागज पातर धरके तैयार बइठे रहय । मंच म जइसे शपथ ग्रहण के शुरुवात के घोषणा होइस तइसने , तहसीलदार साहेब हा सरपंच ला कागज देवत किथे – इही ला दुहराना हे सरपंच साहेब । सरपंच हा कागज ला एक पइत झाँकिस अऊ उही तिर मंच खालहे म फटिक दिस । तहसीलदार किथे – इही ला देख देख के पढ़ना हे सरपंच साहेब .... येला काबर फटिक देहव ? सरपंच किथे – सत्तर बछर ले इही ला देख देख के पढ़त शपथ लेवत हन .... फेर आज तक  , कभू येकर पालन नइ करेन । आज मेंहा अपन तरीका ले बोलके शपथ ग्रहण करहूँ अऊ ओकर खमाखम पालन करके दुनिया ला देखा घला दुहूँ । 

                         सरपंच माइक तिर पहुँचगे अऊ शपथ लेवत केहे लागिस - में फलाना राम , भगवान के कसम खावत सत्यनिष्ठा ले प्रतिज्ञा करत हँव के बिधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान ला एको कनिक नइ मानव । में गाँव के सरपंच के रूप म अपन कर्तव्य के पालन अपन हिसाब से करहूँ अऊ भय पक्षपात .. प्रेम अऊ बिरोध अपनाके ... गाँव के कन्हो मनखे संग संविधान अऊ बिधि अनुसार कभू न्याय नइ करँव । 

                         गाँव के सरपंच के रूप म मोर बिचार बर जे बिषय लाने जाही या मोला जानकारी होही तेला ... में जेला जरूरी समझहूं तिहीच ला बताहूँ .... जेला जरूरी नइ समझहूँ तेला नइ बतावँव । 

                         पांच बछर तक सरपंच हा अपन शपथ ले एक बूंद नइ डिगीस । जे किहीस ते करिस । गाँव के दुर्दशा कर दिस । करथे तो सबो इहीच ... फेर कहि के करइया .... पहिली मनखे बनगे सरपंच हा । पहिली बेर कन्हो निर्वाचित मनखे हा मंच ले अइसन बूता करे के शपथ लिस अऊ पांच बछर ले निभइस घला । निही ते जेन आथे ते संविधान अनुसार काम करहूँ , पक्षपात नइ करँव , अपन गाँव के प्रति कर्तव्य के पालन करहूँ कहिके .... शपथ लेवत बेवकूफ बना देथे । 

                         फेर अइसन सच हा सरपंच ला कहीं के नइ छोंड़िस । ओला अतका मालूम नइ रिहीस के ,  जे बात के शपथ लेना हे .... उहीच करे के .... का परिणाम हो सकत हे । ओहा अभू तक सिर्फ इही ला जानत रिहीस के शपथ कुछ अऊ लेना हे करना कुछ अऊ हे ........ । फेर ये पइत ओकर मुड़ म सच के भूत सवार रिहीस .. जे करना हे तिहीच ला कहना हे ..। बुता करत अऊ बुता बनावत ... सबूत तियार हो चुके रिहिस जेमा ओकरे खखारवृन्द ले निकले बात हा घेरी बेरी गवाही बनके ठड़ा हो जावत रिहिस हे । बात जगा जगा उजागर होगे । थोकिन समे  पाछू ... बपरा ला इही सच हा .... जेल म सरे बर मजबूर कर दिस । जेल के परोसाये भात म भिनभिनावत माछी खेदत .. हाथ ला ... जोर जोर से हलाये लगिस । दसना म सुते ओकर बई ला रट ले परिस । सरपंचिन उठगे । सरपंच के नींद घला टूटगे । जेल अऊ उहाँ के भात के सुरता म सच बोले के सपना ओतके बेर काफूर होगे । बिधि द्वारा स्थापित संविधान के बात मान , लोगन ला पांच बछर बर .... बेवकूफ बनाये बर , तैयार होके एक पइत फेर मंच म शपथ ग्रहण करे बर , बेरा म पहुँचगे हमर गाँव के सरपंच ...... । 

     हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

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