Sunday 15 May 2022

बिहाव के नेंग- डोर छेकई --

 बिहाव के नेंग- डोर छेकई --


      हमर छत्तीसगढ़ में किसिम-किसिम के नेंग-जोग हवे। चाहे कोनो बर-बिहाव रहय,चाहे तिहार-बार। ये नेंग-जोग ह हमर छत्तीसगढ़ी संस्कृति के जरूरी हिस्सा आये। अईसन संस्कृति ह हमर मन ल बोधईया अउ सुख देवईया आये। जेकर ले हँसी-दिल्लगी वाले नता-गोत्ता के मनुहार ह नंगत के गाढ़ा होथे।


अईसने एक ठन हमर छत्तीसगढ़ म बिहाव के पहित नेंगहा हवे। जेला डोर छेकई केहे जाथे। वइसे तो छत्तीसगढ़ी संस्कृति के बिहाव म हँसी-मजाक के संग अब्बड़ नेंग होथे। मंडवा छवाई ल लेके बिहाव के झरत ले ढेड़हा-सुवासा, संग उँकर सारा-भांटो-सारी मन अब्बड़ ठठ्ठा-दिल्लगी करत काम पूरा करथे।


दूलहा बरतिया ले वापस अपन घर दुलही सन आथे,त सटका घर रूके रथे। बिहान दिन घर के मन बरतिया ल परघाये बर जाथे,तब बाजा-मोहरी के संग नाचत-गावत  सटका घर जाथे। महतारी ह दूलहा-दुलही ल तेल-हरदी चढ़ाये के बाद गुड़ अउ पानी ले मुँह मीठा करथे। तहन अपन दुलहा बने बेटा संग दुलही बहु ल हाथ धरके घर रेंगत नहिते गाड़ी म बइठार के लाथे। 

अब दफड़ा-गुदुम अउ मोहरी के धिड़कत धुन म बरतिया अउ सगा-सोधर मन मनमाड़े नाचत-कूदत गाँव ल घुमत-घुमत आथे। इही कर गाँव के महतारी दाई मन बरतिया ल छेके के उदिम करथे। पाँच,छह,सात झन के दल म गाँव के दाई मन घर के डोर ल गली के बीचो-बीच लमा के धरे रथे। फेर परघावत बरतिया उही कर रूक जाथे। येकर ले अपन घर कर ले बरतिया मन के नाचा देखे बर मिल जाथे, अउ नवा नेवरनीन दुलही ल घलो बने ढंग ले देख डारथे। जब तक ले दुलहा ह डोर छेकईया मन ल पैसा नई देय,ओमन बरतिया ल जावन नई देय। इही कर मान-मनुहार के सुघ्घर बेरा देखे ल मिलथे। डोर छेकईया मन अपन दल के संख्या के अनुसार पैसा माँगथे, त दुलहा ह ओमन ल कम करे बर अपन ढेड़हा ल सोरियात रथे। इही बखत ग्रामीण संस्कृति के बड़ सुघ्घर छबि देखे ल मिलथे। बाद में अब्बड़ मनाये के पीछू डोर छेकईया दाई-महतारी मन दुलहा ले पैसा लेके मान जाथे। फेर बरतिया अपन घर डहन आघू बढ़ जाथे।


बरतिया ह जइसे घर के मुहाटी म पहुँचथे,घर के दुवार म पानी ओच के स्वागत होथे। दुलहा-दुलही के आरती करें के बाद घर के भीतरी लेजथे। भीतरी म लेगे के पहली एक बार फेर दुलहा-दुलही के रस्ता ल दुलहा के बहिनी अउ फूफू दीदी मन छेक लेथे। ये जगह दुलहा के फेर बड़े जनि परीक्षा हो जथे। दुलहा अउ ढेड़हा के अब्बड़ मान-मनोखी घलो कुछु काम नई आये। जतिक ओमन मांग करही ओतके पैसा देय ल पड़ते। काबर के बहिनी अउ फुदु मन ल नाराज करई नई बने। फेर सबो बहिनी अउ फूफू दीदी मन रस्ता ल छोड़ देथे। भीतरी खोली में लेजे के पीछू दुलहा-दुलही मन ल सुग्घर खाना खवाथे। रस्ता छेकई के पैसा ल बाद म सबो बहिनी अउ फूफू मन बरोबर-बरोबर बांट लेथे।


बरतिया मन ल खवाय-पियाय के बाद बाकी बुता ल करे के तैयारी होथे। इही बेरा म तीर-तखार के सब नेवताये सगा-सोधर मन आये के शुरू हो जथे। घर म सगा मन के जमघट अउ लोग लईका मन के खेलई-कूदई ले घर भरे-भरे लगथे। शाम के भांवर परे के पीछू टिकान बईठारथे। चौथिया मन ल खवाय-पियाय के पीछू सगा मन ल फेर गाँव वाले मन ल खाना खवाय जथे। सबले पीछू नवा-नवा बने समधी मन नंगत गोठियात-बतरात खाना खाथे अउ बाद में चौथिया मन के बिदा करे जथे। गाँव म आज घलो जम्मो गाँव भर के मन बिहाव वाले घर के काम-बुता ल पूरा करे ल लगथे। बिहाव घर वाले ह अपन एककनी लकधीरहा मन ल बिहाव के झरत ले कमाए अउ खाय के नेवता दे दे रथे।


डोर छेकई के पैसा ल एक झन दल के ह धरे रथे। ये डोर छेकई के नेंग जब गाँव भर के बिहाव ह झर जाथे, तब इही पैसा के कुछु-कहीं खजानी-वजानी लेके सबो झन मिल-बाँटके खाथे। मने हमर छत्तीसगढ़ के संस्कृति में हर नेंग-जोग म सामाजिक समरसता के भाव भरे रथे। जेमे आपसी प्रेम-व्यवहार, टीम भाव संग मिल-जुलके रेहे अउ खाय के भाव कूट-कूट के भरे हवे।




         हेमलाल सहारे

मोहगांव(छुरिया)राजनांदगांव

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