Saturday 28 May 2022

किताब समीक्षाः *लोक साहित्य ल सजोर करही जयकारी जनऊला*




 

किताब समीक्षाः *लोक साहित्य ल सजोर करही जयकारी जनऊला*

           हमर छत्तीसगढ़ ह लोक संस्कृति अउ लोककला के नाँव ले सरी दुनिया म अपन अलग पहिचान रखथे। संस्कृति अउ कला के संग जुड़े लोक शब्द का आय ? कहिके जब गुनथन त लोक अउ परलोक दू ठन नाँव तुरते जुबान म आथें। जब कोनो मनखे के तन ह ठंडा पर जथे/जुड़ा जथे, साँसा के डोर टूट जथे, त लोगन कहिथें कि वो ह परलोक सिधारगें। अइसन म इही कहे जा सकथे, जिहाँ लोगन रहिथे बसथे वो जगहा ए लोक अउ मनखे अपन माटी के तन ल माटी म छोड़ के जिहाँ चल देथे ओ जगहा आय परलोक। जउन ल कभू-कभू हमन 'ऊपर चल दीस' कहिथन। लोक माने धरती अउ परलोक माने अगास। इही धरती हमर लोक आय। विद्वान मन घलव लोक के संबंध लोगन ले जोर के देखथें अउ बताथें। लोक अउ लोग दूनो म मामूली भेद हे कहिके फरक नइ करँय। ए धरती म लोगन जउन संस्कृति, कला, परम्परा अउ रीत-रिवाज ल मानथें, उही तो आय लोक संस्कृति अउ लोककला। 
      भाषा, मन के भाव ल प्रकटे के माध्यम आय। भाषा ले ही संस्कृति अउ कला आगू बढ़थे। भाषा के दू स्वरूप माने गे हावँय। एक वाचिक अउ दूसर लिखित।
      हमर संस्कृति अउ कला भाषा के माध्यम ले एक पीढ़ी ले दूसर पीढ़ी म सरलग विकास करथें, आगू बढ़थें। लम्बा समय ले हमर संस्कृति अउ कला वाचिक परम्परा ले आगू बढ़े हे अउ अभियो सरलग बढ़त हे। हमर छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति समूह के संस्कृति आय। जिहाँ लोगन जुरमिल के अपन तीज-तिहार अउ परम्परा ल निभाथें। फेर आज लोक संस्कृति ल लिखित रूप म सहेजे के जरूरत हे। लोक संस्कृति के इही लिखित स्वरूप ह लोक साहित्य आय। लोक संस्कृति अउ कला के बढ़ोतरी अउ स्थायित्व बर लोक साहित्य जरूरी हे। हमर छत्तीसगढ़ी लोकसाहित्य म लोकगीत, लोककथा, लोकगाथा, हाना (लोकोक्ति) अउ जनउला मन इहाँ के विपुल खनिज संपदा के जइसे पूरा छत्तीसगढ़ के ओनटा-कोनटा तक चारों मुड़ा फइले हें। जउन ह शिक्षा के अभाव म समय के पूरा म बोहा के नँदाय धर ले रहिन। अभियो लोक साहित्य ल बने चेत करके सिलहोय के जरूरत हे। इही साहित्य लोक संस्कृति अउ कला ल बचा के रखहीं। आज हमर संस्कृति ल नवा-नवा संस्कृति अउ ओकर अंधानुकरण ले बड़ नकसान होवत हे। एला बचाय के जुम्मेवारी हम सब के हे। फेर साहित्यकार मन ए डाहन सरलग अपन कलम ल चलावत अपन जुम्मेवारी ल निभावत हें।
       हमर लोकसाहित्य के भंडार के एक ठन मोती आय जनउला। मनखे खेती-बाड़ी के बूता ले उबर के जब फुरसुदहा म चउँक-चउपाल म बइठथें त एक-दूसर संग अपन मन के गोठ बात ल रखथे। कोनो-कोनो मन अपन विचार ल नवा ढंग ले रखथें। इहेंच हँसी-मजाक अउ मनोरंजन के संग दिमागी कसरत के उदिम घलव देखे मिलथे। ए दिमागी कसरत के नाँव आय जनउला। जनउला तार्किक रूप ले मनखे के दिमाग ल बढ़ाय / विकसित करे के एक उपक्रम आय, जोखा आय, कहे जा सकत हे।
      लोकजीवन म कतको जनउला वाचिक रूप म सदा दिन ले चले आवत हें। प्रचलित जनउला ल लिखित रूप दे के कतको उदिम होय हे। फेर जनउला ल लिखित रूप म लाय के बड़का उदिम करइया कन्हैया साहू अमित मन एमा एक अउ प्रयोग करे हें। उन मन जयकारी जनउला नाँव ले जनउला मन ल पद्य साहित्य के जयकारी/चौपई छंद रूप म सिरजाय के सोचिन। अउ बड़ मिहनत के ए उदिम म उन मन अव्वल दर्जा म पास होय हे। जयकारी छंद चार चरण के होथे। अइसन म कोनो जनउला ल चार चरण म पिरोना अउ पूरा भाव ल सरेखत तुकबंदी घलव खोज लाना बड़ मिहनत के बुता आय। अइसन बुता ल उही मन कर सकथें, जेकर तिर अथाह शब्द भंडार होथे। अमित जी एमा पारंगत हें, कहे जा सकथे काबर कि ओमन दू चार ठन नइ पूरा पूरा ११०० जनउला मन ल जयकारी छंद म लिख डरे हे। ए उँखर लगन समर्पण अउ पारखी नजर के कमाल आय। खान-पान, तीज-परब, नता-गोता, कोला-बारी, रीत-रिवाज, पहनावा, गाड़ी-घोड़ा, खेल-खेलौना, घर-दुआर म बउरे के दैनिक चीज अउ छोटे-बड़े सबो जीव-जंतु, जइसे अउ कोनो विषयच नइ हे, जे अमित जी के नजर ले बाँचे होही। सब म ओकर नजर पड़े हे। ए ह अमित जी के लोक-संस्कृति, लोकपरम्परा अउ रीत-रिवाज के अध्येता होय के सबूत आय। 
        जयकारी जनउला के ए किताब के खास बात ए हे कि एकर भूमिका घलव छत्तीसगढ़ी म लिखे गे हे। जउन ल छंद मर्मज्ञ श्री अरुण कुमार निगम जी मन लिखे हें। जेमा जनउला का आय? लोकजीवन म एकर चलन कब अउ कइसे आइस? एकर आयाम का का हे ? अउ एकर इतिहास का हे? ए सब पाठक ल पढ़े बर मिलही। उहें समीक्षक अउ कहानीकार डॉ. विनोद वर्मा जी मन अपन लिखे भूमिका म छत्तीसगढ़ी साहित्य म मौलिकता के खोज आज के युग के माँग हे काहत जयकारी जनउला ल पीरा के कोख ले प्रसवित हे, बताँय हें।
      हमर संस्कृति म अध्यात्मिकता रचे-बसे हे। ए किताब म जनउला के शुरुआत म एकर दर्शन होथे। पहलइया पन्ना मंगलाचरण के पन्ना आय कहे जाय त कोनो नवा बात नइ होही। इही ए संग्रह म भारतीयता के आरो देथे। अमित जी जनउला के शुरुआत गुरु ले करे हें, जेकर बारे म हम पढ़े हन- गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः, गुरुसाक्षात् परमब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः। 
**पहिली ए पाछू जगदीश। रद्दा खोलय इँखर असीस।।*
*लागय जइसे जुड़हा छाँव। साधक जपथें हरदम नाँव।।*
         इही किसम ले संग्रह के आखरी जनउला दीया ऊप्पर हे। जउन जिनगी म उजियार भरथे। तमसो मा ज्योतिर्गमय...ल चरितार्थ करथे। जिनगी ल निराशा ले उबार के आशा के पटरी म लाय के संदेश देथे। लोक जीवन के जिनगी म आशा के संचार करत अइसन सुग्घर समापन लोकहित के प्रति अमित जी के समर्पण ल उजागर करथें।
*तीन वर्ण के हावय नाम। अँधियार म आवय का।।*
*कटै शुरू ता पक बन जाय। अक्कल वाला तुरत बताय।।*
       ए संग्रह म कोनो-कोनो जगा कर्ता, क्रिया संबंधी व्याकरणिक चूक तो दिखत हे, त छंद के मात्रा मिलाय बर एके शब्द के दू वर्तनी के प्रयोग दिखथे। उदाहरण बर दू चार शब्द ल चिन्हात हँव। पूछी/पुछी, खिला/खीला, ल / ला, म /मा.... जउन बने बात नोहय। संग्रह सिरिफ मनोरंजन के नइ हे, एमा साहित्यिकता हे। साहित्यिक सौंदर्य के बोध होथे। रूपक, उपमा, अनुप्रास, मानवीयकरण अलंकार  मन जनउला के सुघराई ल बढ़ाय हें।  वैज्ञानिक दृष्टि कोण, सामाजिक चेतना, जनजागरण, प्रकृति प्रेम, नशामुक्ति सब ल सरेखत कवि होय के अपन दायित्व ल पूरा करे म अमित जी कोनो मेर पिछुवाय नइ हें। जयकारी जनउला के बाना धरे अगुवानी करत हें। एकर ले अउ साहित्यकार मन ल लोकसाहित्य के अउ स्वरूप मन ऊप्पर लिखे के प्रेरणा मिलहीं। निश्चित रूप म साहित्य के अइसन साधना कभू सरल नइ रेहे हे। लोकजीवन म प्रचलित जनउला मन ल सँघेरत अपन मौलिक जनउला ल जयकारी छंद म छांदना बाँधना एक अभिनव उदिम आय। 1100 जनउला वहू ल छंद बद्ध लिखना खेल तमाशा नोहय। साधना आय, जे अमित जइसन समर्पित साधक के बस के बुता आय। लोक साहित्य ल ए जयकारी जनउला मन सजोर करहीं, एमा कोनो दू मत नइ हे। अइसन किताब ल पढ़े ले लोगन के तार्किक क्षमता के विकास होही। ए किताब नान्हें लइका मन बर रोचक हे। खेल खेल म मानसिक विकास तो करबे करहीं, उँखर अंतस् म काव्यात्मक शैली के घलव विकास करहीं।  दू-चार ठन जनउला ल छाँट के उदाहरण देना बाकी जनउला मन ल अनदेखी करना हो जही। पाठक ल सबो किसम के जनउला पढ़े बर मिलही। ओमन खुद अपन पसंद के जनउला पढ़ँय त जादा आनंद पाही। अइसन सुग्घर किताब के सिरजइया कन्हैया साहू अमित जी ल बहुत बहुत शुभकामना देवत हँव।

( *छत्तीसगढ़ राजभाषा के सहयोग ले प्रकाशित*)
प्रकाशकः वैभव प्रकाशन रायपुर
मूल्य १५०/

पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह पलारी 
जिला-बलौदाबाजार छग.

1 comment:

  1. सोलाआना सिरतोन सार समीक्षा खातिर जायसवाल सर जी ला अंतस ले आभार।

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