Thursday 19 May 2022

आदर्श पांडुलिपि के विशेषता //*

 *// आदर्श पांडुलिपि के विशेषता //*

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       "कोनो भी रचनाकार के रचना  चाहे गद्य हो या पद्य,जब तक कोई प्रकाशक द्वारा प्रकाशित हो के पुस्तक के रूप म पाठक के हाथ म उपलब्ध नइ होए रहय, तब तक ओ रचना ल "पांडुलिपि" कहे जाथे |

    *पांडुलिपि के सामान्य अर्थ - "जइसे  महतारी के  गर्भ म कोनो बच्चा क्रमश: तैयार होवत रहिथे | ओ बच्चा के संपूर्ण विकास खातिर माता-पिता  ह  नाना प्रकार के पौष्टिक आहार प्रदान करथैं,खूब जतनपूर्वक गर्भ में ही खूब सावधानी रखते हुए बच्चा ल तैयार करथैं |*

     *वईसनेच कोनो भी रचनाकार के रचना ह प्रकाशित होए के पहिली एक  निश्चित स्वरूप प्राप्त करें बर शैशवावस्था म रहिथे | वोही ल "पांडुलिपि" कहे जाथे |*

     *अर्थात पांडुलिपि ल अजन्मा शिशु के भांति कहे जा सकथे |*

    *जब कोई रचनाकार ह अपन पांडुलिपि ल कोनो प्रकाशक ल छापे बर देथे अउ वो पुस्तक ह छप जाथे, तब समझो वो पांडुलिपि ह एक बच्चा के भांति पाठक वर्ग के बीच जन्म लेथे* |

      *छत्तीसगढ़ी म एक कहावत हवय-"जैसे-जैसे  घर-द्वार,तैसे-तैसे फईका, जैसे-जैसे दाई-ददा,तैसे-तैसे लईका*"  

     *रचनाकार के मूल स्वभाव जैसे होथे, तईसनेच ओकर रचना के स्वरूप, विषयवस्तु अउ उद्देश्य भी होथे | कोनो जनवादी,कोनो प्रगतिवादी,कोनो समाजवादी,कोनो धार्मिक,आर्थिक,राजनीतिक सांस्कृतिक, दार्शनिक विचारधारा के होथे,तिंकर रचना ह मुख्य रूप से  वोही विचारधारा से संबंधित होथे* 

      *कोनो सर्वहारा वर्ग (श्रमिक वर्ग) के विषयवस्तु के रचना जादा लिखथें | कोनो आम जनमानस के दुख-सुख, समस्या के संबंध म जादा रचना लिखथें | 

       *कोनो रचनाकार मन लोक विधा ,आम जनजीवन के रहन-सहन, खान-पान, पहनावा, दुख-सुख संस्कृति,के संबंध म जादा लिखथैं, वोही रचनाकार ल "लोक रचनाकार के रूप म लोकप्रियता हासिल होथे* *

     *कोई भी रचनाकार के प्रतिनिधि रचना ह  ओ रचनाकार के विचारधारा ल प्रतिपादित करथे | इहां एक बात विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो जाथे-"कोनो भी लईका के पहचान ओकर दाई-ददा से होथे, लेकिन कोनो साहित्यकार के विशिष्ट पहचान ओकर द्वारा सिरजे (लिखे)  रचना के आधार पर पहचाने जाथे | जैसे तुलसीदास जी के पहचान "रामचरित मानस" से सदैव के लिए अमर हो गे | संत कबीर दास जी के पहचान -कबीर के साखी,भक्त सूरदास जी के पहचान-सूरसागर, प्रेमदीवानी मीराबाई के पहचान-मीरा के भक्ति पद, प्रेमचंद के पहचान- सामाजिक कहानी, उपन्यास से सदैव के लिए अमर हो गे |*

     *अर्थात रचनाकार के रचना ह ओकर संतान आय,तब रचनाकार के पहचान अपन खास संतान से होथे,अउ ओ रचना ह अपन रचनाकार ल अमर बना देथे* |

      *तेकरे सेती रचनाकार मन ल चाही अपन रचना (संतान) ल जन्म देहे के पहिली खूब  सोच-समझ, खूब चिंतन-मनन करके अपन रचना ल विषय विशेषज्ञ से जांच पड़ताल करें बर अर्थात भूमिका लिखे बर देना चाही | भूमिका लिखे बर देहे के पहिली कम्प्यूटर द्वारा टाईप कराके,या सुंदर सुवाच्य अक्षर म लिख के भूमिका लिखे बर निवेदन करना चाही |*

     *भूमिका /संपादकीय लिखैया ह ओ पांडुलिपि ल खूब ध्यानपूर्वक पढ़ के जांच पड़ताल करके जैसे कोई सर्जन ह अनावश्यक अउ हानिकारक भाग ल आपरेशन करके एकदम सटिक,सुंदर, सराहनीय ढंग से  परिमार्जित करके भूमिका लिखथैं | केवल लल्लो-चप्पो , ठकुर सुहाती या औपचारिक ढंग से भूमिका नहीं लिखना चाही |*

     *भूमिका लिखवाय के महत्वपूर्ण कार्य बर रचनाकार ल चाही के भूमिका लिखैया ला संपूर्ण पांडुलिपि के एक फोटो कापी  देना चाही अउ पर्याप्त समय भी देना चाही*

     *कोनो रचनाकार मन अपन किताब के मुख्य पृष्ठ अउ पांच-दस पन्ना लिख के संपादकीय लिखैया ला दे देथें अउ जल्दी से जल्दी संपादकीय लिखे बर बारबार फोन करत रहिथैं | तेकरे सेती  संपादकीय लिखैया ह औपचारिकता पूरा करके रचनाकार के खूब तारीफ करते हुए दु-तीन पन्ने लिख देथे | जो कि एक वास्तविक संपादक  के दायित्व  नोहय*

     *अईसने  कई झन कवि लेखक मन अपन क्षेत्र के विधायक,सांसद या मंत्री द्वारा शुभकामना संदेश लिखवा लेथैं, ओ शुभकामना संदेश लिखैया नेता मन ओकर किताब के दू-चार लाई़न ल घलो नइ पढ़ें रहैं, सिरीफ ठकुर सुहाती  दू-चार लाईन लिख के भेज देथै | तब ओ कवि,लेखक मन आत्म प्रशंसा पढ़के गदगद हो जाथें | ओ रचना ह स्तरहीन हो के दू-चार दिन,महीना बाद भुलाए जाथे अर्थात यादगार नइ बन सके*

    *एक खास बात ये भी होथे- कम्प्यूटर द्वारा टाईप करवाय के बाद  सैकड़ों मात्रिक त्रुटि भी होथे | तऊन ल पढ़त बेर पाठक के मन म खूब दुःख, गुस्सा भी होथे |*

       *कहे गए हवय-"एक से भले दो ! कवि,लेखक ह कोनो विषय म एकदम भावुक हो के लिख तो लेथैं, लेकिन शब्द विन्यास,भाव संप्रेषण म कितना त्रुटि होथे ? तेला संपादकीय,भूमिका लिखैया मन ही समझ सकथैं | तेकरे सेती विषय विशेषज्ञ तिर संपादकीय,भूमिका लिखवाना बहुत ही जरूरी होथे |


     *भूमिका /संपादकीय लिखवाय के बाद कवि ,लेखक ल चाही के  खूब सावधानीपूर्वक स्वयं प्रूफ रिडींग करके अच्छा जानकार कम्प्यूटर आपरेटर से  टाईप करवा के एक-एक शब्द,मात्रा के भली-भांति जांच करवा के ओ पांडुलिपि ल छापे बर प्रकाशक ल देना चाही* 

      

      *पुस्तक छपे के बाद एक खास दिन मुहूर्त निकलवा के पु्स्तक के विमोचन करवाय जाथे | "विमोचन अर्थात  ओ पुस्तक ल आम  लोगन ल अर्पित करके ओ पुस्तक लिखे के उद्देश्य लोगन तक पहुंचाए जाथे*

     *संत तुलसीदास जी लिखे हवंय :-*


*निज कवित्त केहि लागि न नीका*

*सरस होय अथवा अति फीका*


    *तेकरे सेती कोई भी पांडुलिपि ल एक अमर रचना बनाए बर एक से भले दो, दो से भले तीन विषय विशेषज्ञ से खूब जांच पड़ताल करके ही प्रकाशक ल पुस्तक छापे बर देना चाही*

    

(दिनांक-१६.०५.२०२२


*गया प्रसाद साहू*

  ", रतनपुरिहा"

मुकाम व पोस्ट-करगी रोड कोटा जिला बिलासपुर (छ.ग.)

मो नं-9926984606

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