Thursday 19 May 2022

पाण्डुलिपि कैसे होना चाही

 पाण्डुलिपि - भाग 1

 

*मोबाइल मा पाण्डुलिपि*

 

मोबाइल मा यूनीकोड फॉन्ट मा टाइप होथे। एला लेखक खुद तैयार कर सकथे। हमेशा google doc मा टाइप करना चाही। मोबाइल फार्मेट करे के बावजूद एकर डाटा सुरक्षित रहिथे जबकि नोट पैड मा सब मिट जाथे। पाण्डुलिपि टाइप करत समय निम्न लिखित बिंदु ध्यान मा रखना चाही - 

 

1. एक्के आकर के फॉन्ट मा टाइप हो।

 

2. व्याकरण संबंधित त्रुटि झन हो।

 

3. गद्य के पाण्डुलिपि मा सही जघा मा अल्प विराम, अर्द्धविराम, पूर्ण विराम के प्रयोग हो। हर दू शब्द के बीच एक स्पेस होना चाही।

 

4. गद्य के पाण्डुलिपि मा पैराग्राफ के ध्यान रखे जाय।

 

5. पद्य के पाण्डुलिपि मा यति अउ पूर्ण विराम, सही जघा मा लगाना चाही। 

 

6. विराम चिन्ह के पहिली स्पेस नइ होना चाही, हमेशा विराम चिन्ह के बाद एक स्पेस देना चाही।


रहिमन विपदा हू भली , जो थोरे दिन होय ।

(ये गलत तरीके आय)

 

रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय।

(ये सही तरीका आय)

 

*विराम चिन्ह के पहिली स्पेस नइ होना चाही, हमेशा विराम चिन्ह के बाद स्पेस होना चाही*

 

6. शीर्षक ला बोल्ड झन करव अउ न वोकर आगू-पाछू स्पेशल कैरेक्टर के प्रयोग करव। ये काम प्रकाशक के कम्पोजर मन कर लेथें।

 

7. कविता के पंक्ति ला एक आकार मा लाये बर अनावश्यक स्पेस नइ देना चाही। सरलग टाइप करव, पंक्ति मन के लंबाई ऊपर ध्यान झन देवव। ये काम प्रकाशक के कम्पोजर मन कर लेथें।

 

8. जहाँ शब्द के दोहराव होथे उहाँ दुनों शब्द के बीच बिना स्पेस दिए डैश के चिन्ह लगाना चाही। जइसे अलग-अलग। द्वंद्व समास वाले शब्द भी अइसने लिखना चाही। सोना-चाँदी, हीरा-मोती आदि।

 

9. रचना के अंत मा स्पेशल कैरेक्टर ***** या ##### या @@@@@ या &&&&& आदि के प्रयोग नइ करना चाही।

 

10. ये टिप्स आपमन ला वाट्सएप या फेसबुक के पोस्ट मा तको अपनाना चाही। (वाट्सएप मा कुछ जघा स्टार के प्रयोग करके शब्द या वाक्य ला बोल्ड करे जा सकथे।)

 

11. *आपके यूनीकोड मा टाइप पाण्डुलिपि ला प्रकाशक मन फॉन्ट कन्वर्टर द्वारा वांछित फॉन्ट मा बदल लेथें। इही कारण अनावश्यक स्पेशल कैरेक्टर या स्पेस के प्रयोग नइ करना चाही।*

 

*अरुण कुमार निगम*

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 पाण्डुलिपि - भाग 2

 

*हस्तलिखित पाण्डुलिपि*

 

पाण्डुलिपि कागज मा लिख के घलो भेजे जा सकथे बशर्ते -


1. लिखावत सुस्पष्ट अउ पठनीय हो।


2. कहूँ काट-छाँट अउ ओवर राइटिंग झन हो।


3. पन्ना-पन्ना आराम से खोल के टेबल ऊपर रखके पढ़े जा सके। (तभे तो टाइपिस्ट टेबल मा पाण्डुलिपि रख के दुनों हाथ से टाइप कर पाही।)


4. हस्तलिखित पाण्डुलिपि अगर रजिस्टर मा रही तो ज्यादा सुविधाजनक होही। 


5. हस्तलिखित पाण्डुलिपि के एक फोटोकापी वाला प्रति अपन रिकार्ड बर जरूर रखना चाही।

 

*अरुण कुमार निगम*

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: पाण्डुलिपि - भाग 3

 

*पाण्डुलिपि के सामग्री अउ आकार-प्रकार*

 

1. धीरज - किताब प्रकाशन के काम हड़बड़ी मा नइ करना चाही। आराम से पाण्डुलिपि तैयार करना चाही। दू-तीन पइत खुद जाँच के संबंधित विधा के जानकार तीर जँचवा लेना चाही। उपयुक्त संशोधन के बादे पाण्डुलिपि ला भूमिका लेखक या प्रकाशक के पास भेजना चाही। 

 

2. पाण्डुलिपि के सॉफ्ट कॉपी - वर्तमान समय हस्तलिपि के नइ रहिगे हे, मोबाइल, लैपटॉप, कम्प्यूटर जइसे अनेक साधन आ चुके हें जेकर प्रयोग ले पाण्डुलिपि के सॉफ्ट-कॉपी बन जाथे। पाण्डुलिपि हमेशा सॉफ्ट-कॉपी मा बनाना चाही ताकि भूमिका लेखक ला, प्रकाशक ला, जाँचकर्ता ला भेजत खानी आसानी हो। 

 

3. सामग्री - एक किताब मा हमेशा एक्के विधा के संकलन होना चाही। अगर कविता/गीत संग्रह प्रकाशित करे के इरादा हे त ओमा गजल जइसे विधा के रचना झन होवय। व्यंग्य संग्रह मा व्यंग्य, नाटक संग्रह मा नाटक, कहानी संग्रह मा कहानी ला संकलित करना चाही। 

 

4. आकार-प्रकार - हर किताब कम से कम 100-125 पेज के होना चाही। 40-50 पेज के किताब, किताब असन नइ लागय। पाठक मन के ल निजी लायब्रेरी मा तको अइसन किताब अलग से नइ दीखय, खोजना पड़थे। 100-125 पेज के किताब के साइड मा घलो किताब अउ लेखक के नाम छपे होथे। लायब्रेरी के थप्पी मा अइसन किताब ला खोजे मा आसानी होथे। *अगर कोनो विशेष बात न हो* (उपन्यास या विशेष संकलन) तो संग्रह वाले किताब ज्यादा मोटा (300-400) पेज के तको नइ होना चाही। ज्यादा मोटा किताब, पाठक के मन मा अरुचि पैदा कर सकथे अउ कहूँ लाए-लेगे मा तको असुविधाजनक होथे। 

 

*अरुण कुमार निगम*

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पाण्डुलिपि - भाग 4 (अंतिम भाग)

 

*सब ले ज्यादा महत्वपूर्ण*

 

रचनाकार के किताब वोकर रचनाधर्मिता के प्रमाण होथे, तेपाय के "किताब छपवाना हे" - ये उद्देश्य ले के किताब नइ छपवाना चाही। एक किताब, पाठक के अन्तस मा रचनाकार के अच्छा-बुरा छबि ला अंकित कर देथे। एक किताब, रचनाकार के अध्ययन अउ अनुभव के प्रमाण होथे, रचनाकार के व्यक्तित्व के दर्पण होथे। आनन-फानन मा कइसनो कलम-घसीटी करके, पन्ना रंग के लिखे किताब, रचनाकार के गरिमा ला बढ़ाये के बजाय माटी मा मिला देथे। दूसर बात ये कि *प्रकाशित किताब के संख्या के आधार मा कोनो रचनाकार अमर नइ हो सके।* रचना के *गुणवत्ता हर रचना ला कालजयी बनाथे* अउ कालजयी रचना के रचनाकार,अमर हो जाथे। 

 

जब तक उत्कृष्ट रचना के संकलन न हो जाय, किताब छपवाए के विचार मन मा नइ लाना चाही। जइसे अकादमिक परीक्षा के अंक-सूची, विद्यार्थी के योग्यता के प्रमाण-पत्र होथे, वइसने एक किताब; रचनाकार के योग्यता के प्रमाण-पत्र होथे। 

 

उत्कृष्ट रचना के संतोषजनक संकलन होए के बादे एक कच्चा पाण्डुलिपि तैयार करके संबंधित विधा वाले कोनो विद्वान ला आवश्यक संशोधन बर पाण्डुलिपि सौंपना चाही। संशोधित प्रति मिले के बाद एक या दू विद्वान साहित्यकार मन ला संशोधित पाण्डुलिपि सौंप के भूमिका लिखे बर निवेदन करना चाही। भूमिका लिखे बर कभी भी आधा-अधूरा पाण्डुलिपि न भेज के पूरा संशोधित पाण्डुलिपि भेजना चाही। भूमिका लिखे बर कभू तुतारी घलो नइ लगाना चाही, हाँ सुरता भले देवा सकथव। भूमिका मिले के बादे अपन संशोधित पाण्डुलिपि के संग वोला प्रकाशक तीर भेजना चाही। कहे के मतलब ये कि *प्रकाशक ला पाण्डुलिपि सौंपत समय, भूमिका अउ संशोधित पाण्डुलिपि अपन आप मा पूर्ण होना चाही।*

 

*प्रकाशक के चयन के आधार, प्रकाशक के अनुभव अउ प्रकाशन के गुणवत्ता होना चाही न कि कम खर्चा।* कम खर्चा मा जउन तथाकथित प्रकाशक मन किताब छापथें वोमन फोटोकॉपी मशीन अउ स्टेपलर के प्रयोग करथें। अइसन तथाकथित मन कव्हर पेज ला कहूँ बाहिर से बनवाथें। वास्तव मा अइसन मन प्रकाशक नोहँय, प्रिंटर हवँय। इन मन कम से कम लागत के चक्कर मा घटिया कागज के प्रयोग करथें। *जइसे दाई-ददा मन चाहथें कि उनकर संतान दीर्घायु हो, कम से कम सौ बछर जीएँ, वइसने रचनाकार ला घलो अपन किताब के दीर्घायु होए के कामना करना चाही* तेपाय के श्रेष्ठ अउ अनुभवी प्रकाशक (पब्लिशर) के चयन करना चाही। कहे बर *18 कैरेट सोन के गहना घलो सोन के गहना कहे जाथे फेर 24 कैरेट के सोन के गहना के आगू गुणवत्ता मा कमजोर पड़ जाथे* वइसने भले कुछ पैसा ज्यादा लगे, उत्तम प्रकाशक के चयन करना चाही। कहावत घलो हे - सस्ता रोवै बार-बार, महँगा रोवै एक बार। 


प्रकाशक जब प्रूफ रीडिंग बर प्रति सौंपे तब एक-एक शब्द के हिज्जा, मात्रा अउ स्पेस ला जाँचना चाही। अगर कहूँ कुछु कमी दिखत हे वोला सुधरवाना चाही। कव्हर पेज के फोटो घलो अप्रूवल बर मांगना चाही। *कव्हर पेज अइसन हो कि देखेच मा साहित्यिक गरिमा के अहसास होवय।* ये सब प्रक्रिया के बाद हम सोच सकथन कि एक उत्कृष्ट किताब "साहित्य-कोठी" ला समृद्ध करे बर तैयार होगे। विमोचन आदि तो एक औपचारिकता मात्र आय। *विमोचन के भव्यता कभू किताब के गुणवत्ता ला नइ बढ़ा सके।* 

 

चंद्रधर शर्मा गुलेरी के एक कहानी "उसने कहा था", बिहारी के एक किताब "दोहा सतसई" अउ अइसने अनेक उदाहरण बताथें कि अगर रचना मा गुणवत्ता हे तो एक्के रचना अउ एक्के किताब कालजयी हो के रचनाकार ला अमर कर देथे। 

 

*अरुण कुमार निगम*

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