Sunday 15 May 2022

व्यंग्य-अपन पाँव के करव भरोसा ...

 व्यंग्य-अपन पाँव के करव भरोसा ... 


          एक ठन भँइसा ला ओकर रखवारी निभइया मन लद्दी म ढपेल के छोंड़ दे रहय । भँइसा हा लद्दी भितरी गोड़ ला चुरमुटाये चभगगे रहय । ओकर रखवारी के जुम्मेवारी उचइया नावधारी लबरा   मन भँइसा ला लद्दी ले बाहिर नइ निकलन देवत रहय । न ओला मरन देवत रहय न मोटावन । साँस चलत रहय .. तेकर पुरतन .. चारा फेंक देवय .. । भँइसा हा इँकर दे हरियर दिखत चारा ला खाना तो धूर के बात .. बलकि हिरक के निहारय तको निही ... अऊ जिंदा रेहे बर अपन असली हितवा पिरितवा मन के मया के सुक्खा पैरा म अपन धोंध के पुरति कर डरय । भँइसा हा लद्दी ले निकले के सोंचय जरूर फेर निकले नइ सकत रहय । ओकर से प्रेम करइया असली मनखे मन ओला निकाले के कोशिस करय .. फेर ओला बाहिर निकाले के उपाय के बीच म ... अतेक बिघन बाधा आ जाय के .. सकय निही । 

          रद्दा म रेंगइया अऊ अपन आप ला भविष्य म .. भँइसा के आश्रयदाता मनइया समझइया .. कुछ लबरा मन ला .. कुछ बछर म .. भँइसा ला लद्दी ले बाहिर निकाले के उदिम के प्रदर्शन करे कराये म फायदा नजर अइस । ओमन अपन छद्म दया के प्रचार प्रसार करे लगिन .. अऊ भँइसा ला लद्दी ले बाहिर निकाले के निकृष्ट सोंच खोजे लगिन । ओमन भँइसा ला अपन मुहुँ म लगे लफर लफर लफलफावत लबरसट्टा तुतारी म हुदरिन .. कोचकिन .. । भँइसा ला इँकर तुतारी हा कतकोन गड़िस फेर ओहा टस ले मस नइ होइस । भँइसा ला लद्दी ले बाहिर निकाल के लाभ कमइया मन अपन छद्म मया के बरसात ला नइ छोड़िन । वाजिम म ओमन भँइसा हा चिखला ले निकालना नइ चाहत रहय तभो ले  फायदा कमाये के फेर म ओला निकाले के केवल नाटक रचत रहय । उदिम करे के कुछ दिन पाछू ... भँइसा हा चिखला म बुड़े के मजा के सेती उचत नइये .. निकल के बाहिर नइ आवत हे कहिके ... प्रचारित करे लगिन अऊ सँहराये बर फोकट के दया मया ला ... एती वोती जतर कतर देखाये लगिन । भँइसा हा इँकर उदिम म एक इंच नइ उचिस । 

          एती भँइसा के असली हितवा पिरितवा मन भँइसा ला लद्दी ले निकाले बर अपन मया पिरीत के अइसे रचना करिन के ... ओकर गरमी के असर म कुछ बछर म ... लद्दी सुखागे । तभो ले भँइसा उचबेच नइ करिस ... उहीच तिर सुक्खा म बइठे रहय । मया पिरीत म सराबोर करइया मन ओला उचाये के गिलहरी कोशिस करत रिहीन फेर ओकरे बीच के , बन बांदुर खरपतवार कस जामे मनखे के विकृत रुख रई मन .. भँइसा ला ओकर जगा ले उठे के अनुमति नइ देवत रिहिन । दूसर कोति .. अतेक अंतराल म .. भँइसा ला उचाये के उदिम से अपन आप ला उचइया लबरा मनखे के .. दूसर पीढ़ी जनम धर डरे रिहिस । वंश परम्परा निभइया मन देखिन के .. भँइसा हा सुक्खा म बिगन हाले डोले बइठे हे ।  सुक्खा जगा ले उठ के .. अपने अपन झन रेंग जाये सोंच के .. अपन भाग जगोये के सपना देखइया मनखे मन के मन म .. डर हमागे । अपन से निकल के भँइसा रेंग दिस त .. येमन ला होवइया नकसान के फिकर धर लिस । भँइसा अपन से झन उचय सोंच .. भँइसा ला आस्वासन के बोझा म लदक दिन । भँइसा उचे नइ सकिस । भँइसा उपर मया करइया ओकर असली मयारुक संगवारी मन चारों मुड़ा हल्ला मचइन अऊ आस्वासन के परे धुर्रा ला भँइसा के मुड़ ले उतारे लगिन । अब भँइसा ला जादा दिन अइसन राख सकना सम्भव नइ दिखे लगिस ... । ओकर उपर माढ़े बोझा ला हरू होवत देख .. फायदा उचइया मन .. मन मार के ... भँइसा ला बाहिर निकाल के .. उपर लाने के सोंचिन । भँइसा ला हलइन .. लालच दिन .. नावा नावा हरियर चारा देखइन ... तब्भो ले भँइसा हा टस ले मस नइ होइस । छ्द्म उचइया मन के सलाहकार मन .. भँइसा के नइ उचे के कारन खोजिन । बहुत बारीकी ले भँइसा ला निहारिन तब पता लगिस के ... भँइसा के गोड़ नइये । लाभ के आसरा म .. आश्रयदाता बनइया मनखे मन ला .. चिखला ले उपर आये के पाछू .. अपन से भँइसा के नइ रेंग सके के ... खमाखम विश्वास जाग गिस । जब सब जान डरिन के भँइसा के गोड़ नइहे .. तब हरेक लबरा मनखे .. भँइसा ला उचा के बाहिर लाने के किरिया खाये लगिन .. ।  भँइसा ला बाहिर निकाले बर गेंड़ा ले आनिन । गेंड़ा ला चारो मुड़ा ले अटासके भँइसा के तरी म अइसे खुसेरिन के यदि ओकर गोड़ तरी म होही त .. ओहा अतका लहुलुहान हो जाय .. के बाहिर म लमाये झन सकय अऊ गोड़ नइ होही तभो .. भविष्य म उही जगा ले गोड़ झन जाम सके । भँइसा ला उचाके बाहिर ले आनिन । 

          भँइसा हा जइसे उचिस तइसने ओकर तरी हा दिख गिस .. । भँइसा ला निकलइया मन मुहुँ ला फार दिन .. जम्मो झन ला पता चलगे के .. भँइसा के चारो गोड़ हाबे । ओहा अपन चारों गोड़ ला सकेल के चिंगुर चांगर बइठे रहय । अब निकलइया मनखे मन के मन म डर हमागे के .. भँइसा हा अपन गोड़ ला तरी डहर रोप के खड़े झन हो जाय । एमन ओला उचा के राखे जरूर रहय फेर ओकर गोड़ ला अइसे चपक के धरे रहय के .. भँइसा हा चाह के भी अपन गोड़ ला झटकार के बाहिर फेंक नइ सकत रहय । भँइसा अपन गोड़ ला भुँइया कोति रोपे बर अऊ इँकर खांध ले उतरे बर छटपटाये लगिस .. । ये पइत भँइसा के छटपटाहट ला शांत करे बर दूसर किसिम के चारा फेंकिन । भँइसा हा चारा कोति हिरक के नइ देखिस । भँइसा ले प्रेम करइया मनखे मन .. भँइसा के तरी म लगे गेंड़ा ला हटाये घुचाये के प्रयास म लग गिन ताकि भँइसा हा अपन गोड़ ला रोप सकय । भँइसा हा अपन से खड़ा होय म सक्षम हे .. ओला उचाये के कोनो आवसकता नइहे .. अइसे गोहार मचाये लगिन । गोहरइया के बुलंद होवत आवाज के खनक म .. भँइसा के तरी म ओकर गोड़ ला चपके बर लगे गेंड़ा .. हाले लगिस । भँइसा के गोड़ झन खुलय .. पाँव भुँइया म झन रोपाये ... निही ते भँइसा हा अपने अपन रेंग जहि .. तहन अपन जिये के साधन खुदे अख्तियार कर डरही .. तब हमर नाव कइसे होही के ... हम हाबन तब भँइसा जियत हे ... लोलुप आश्रयदाता मन .. अइसन माँग करइया मन ला साधे के सोंचिन । 

         भँइसा ले मया करइया मनखे मन के बीच मतभेद के संगे संग मनभेद के डाँड़ खींच दिन । अब कुछ बड़का मन के मन म श्रेय लेहे के होड़ मातगे । बुड़गा हाथ म ताकत नइ रिहिस तभो ले जवान अऊ मजबूत हाथ ला भँइसा के तिर म ओधे बर नइ दिन । भँइसा हा अपन गोड़ ला रोप के खड़े होये बर सहारा दे सकइया हाथ ला .. दायसी ले निहारे लगिस । फेर लोगन केवल भँइसा ला उचाके राखे म नाव पद पइसा पावत रिहीन तब .. ओला ओकर गोड़ काबर रोपन दिही । भँइसा ला उचाये म .. जेला जतका पाना हे ततका पावत गिन ... फेर भँइसा ला अपन गोड़ ला .. बाहिर निकालन नइ दिन । 

          दुनिया के नजर म भँइसा उचगे ... । ओहा खड़े नइ हो सकिस । दूसर के खांध हा ओकर बर बैशाखी बन गिस । अब ओहा एक जगा ले दूसर जगा केवल खांध के सहारा म जाये लगिस । सब सोंचत रहय के हमर भँइसा चलत हे ... । अब भँइसा ला घला .. दूसर के खांध के आदत परगे । अभू वहू ला दूसर के खंधइया लेहे म मजा आये बर धर लिस । अब ओला अपन गोड़ रोपे के इच्छा बिलकुलेच नइ करय । अपन खांध म बोहो के भँइसा ला चलवइया मन .. भँइसा के अइसन चलइ म नाव कमा डरिन । 

          कहूँ अइसे झन होय के अबड़ दिन तक अइसने रेहे रेहे .. अवइया कुछ बछर पाछू ... भँइसा के चारों गोड़ चंगुर जाय अऊ सबर दिन बर भँइसा विकलांग हो जाय ।  


 हमर बोली भाखा छत्तीसगढ़ी हा इही भँइसा आय जेहा चलत तो हे फेर खांध म ... । ओकर गोड़ ला बाहिर रोपे नइ देवत हन .. ते पायके बपरा खड़े नइ हो सकत हे तब रेंगही काला ... । अब तो वहू अपन पाँव उपर भरोसा खो डरे हे ... बैसाखी अऊ खांध के सहारा म रेंगे बर चारों मुड़ा निहारत हे । कोन जनी कब तक .. हमर बोली ला रेंगाये के ठट्ठा मट्ठा उदिम ला त्यागबो अऊ ओकर गोड़ ला भुँइया म रोपे ले रोकइया मन ला चिन्ह के अलगियाबो .. । कब हमर बोली दुनिया म अपन नाव के डंका बजावत सबो ला बताही के .. अपन पाँव के करव भरोसा .. चरदिनियाँ बैसाखी ... । 


हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

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