Tuesday 3 May 2022

खेती किसानी के नवा बच्छर अकती तिहार म पुतरी-पुतरा बिहाव के परम्परा


खेती किसानी के नवा बच्छर अकती तिहार म पुतरी-पुतरा बिहाव के परम्परा


- दुर्गा प्रसाद पारकर


छत्तीसगढ़ी लोक कथा के मुताबिक बहुत दिन पहिली के बात आय जब रतनपुर के राजा के दरबार म कतको सौंजिया, बइला चरवाहा अउ दरोगा कस कतको कमइया मन सेवा बजाये। कमइया मन के मारे राज दरबार ह भरे-भरे लागे। इहें बइठमल नाव के एक झिन नौकर घलो राहय। निच्चट कोड़िहा राहे बइठमल ह। एकर अलाली ह राजा के आंखी म पहिलीच्च ले खटकत रीहिस हे। उपराहा म एक दिन बइठमल ह दरबार ल बहारे-बटोरे बर बिसर डरिस। दरबार म कचरा ह जतर कतर बगरे राहे। राज दरबार के हालत ल देख के राजा ह बइठमल उपर बिफड़गे। गुस्सा गुस्सा म ओकर हिसाब-किताब घलो कर दिस। का करे बिचारा बइठमल के आंखी ले चिंता के आंसू ह तरतर-तरतर गिरे बर धर लीस। रोवत-रोवत गरीब ह दरबार ले घर जाए बर निकल गे। एकर सिवा तो कोनो अउ चारा नइ रीहिस हे। बइठमल के व्याकुल दशा ल ओरख के रानी ह धरा पसरा राजा करा जा के कथे-बइठमल ल काबर खिसिया देव जोड़ी? दरबार ल नइ सफ्फा करीस तेकर कारण मंय हंव। गलती तो मंय करे हंव राजा जी, जउन भी डाड़ लेना हे मोर ले लेव मोर गलती के सजा बइठमल ल काबर देवत हव। रानी ल अपन सांखी तीरत देख के बइठमल ह घलो लहूट के राजा के चरण ल किटकिटा के धर के विनती करे ल धर लीस। महराज मंय ह रानी दाई के बुता म लगे रेहेंव तिही पाए के दरबार के सफाई करे म बि‍लम होगे। गलती तो मोर ए सजा मोला देव रानी ल झन डाड़व कहि के घर चल दिस बइठमल ह। अकती के दिन सब नौकर चाकर ल बला के राजा किहिस-आज तुंहर दिन पुरगे। अब तुंहर छुट्टी होगे। जिंहा तुंहर कमाए के मन होही उहां कमाहू रे भई मोर डाहर ले कोनो बंधन नइ हे। मोर दरबार म कमाए बर होही ते तुंहला जम जही त चोंगी माखुर झोंक लेहू। राजा के फैसला सुनत नौकर मंत्री मन सुकुड़दुम होगे। सब झिन मुंह ओथरा के अपन-अपन घर चल दिन। बिन कमइया के दरबार ह खाए बर दउंड़े। भांय-भांय लागे। अब न राजा रानी मनके मन माड़े न नौकर चाकर मन के काबर कि राजा ह परजा ल संतान कस मानय। काबर कि‍ ओ समे उंकर एको झिन लोग लइका न राहे। कमइया अउ कमेलिन मन के मुंह ल देख के जीयत रीहिन हे। अपन दुख ल कोन ल बताए राजा-रानी मन। परजा के नजर म तो राजा-रानी सुख भोगत हे। ओती रानी ह संतान के दुख म बोमफार के रोवत राहे। रानी के आंसू निकलय एती राजा दुख ल पीयय। राजा ह रानी ल समझावत कथे-कइसे करबो रानी जउन भाग म नइ हे ओकर बर का रोना। अब तिंही बता हमर हिरदे ल कइसे संतोष होही। रानी ह अचरा म आंसू ल पोसत कथे-जोड़ी एसो मंय पुतरी-पुतरा के बिहाव मड़ाहूं तभे मोर मन ह माड़ही। राजा हामी भर देइस। सबो नौकर चाकर मन ल बिहाव निपटाए बर बलाथे। बिहाव झरे के बाद फेर बच्छर बर कमइया मन चोंगी माखुर झोंकथे। ए लोक कथा के मतलब ए होइस के अकती के दिन पुतरा-पुतरी बिहाव के चलन इही समे ले होइस होही।

नान-नान लइका मन छोटे-छोटे अपन बेटा-बेटी पुतरा-पुतरी के बिहाव बड़ा धूमधाम ले करथे। घर म बिहाव के बखत नेंग जोग के मुताबिक पुतरा-पुतरी के बिहाव करथे। बिहाव खातिर लइका मन सेकला के चंदा बरार के पुतरा-पुतरी बिसाथे। खरचा करे के बाद आधा मन बेटी वाले अऊ आधा मन बेटा वाले के धरम निभाथे। अकती के दिन एके दिन म तेलमाटी, चुरमाटी, मायन, पाणीग्रहण सबो ह निपट जथे जेन ल देख के आज के समे म खर्चीला बिहाव ले बांचे जा सकत हे। बाजा बर थरकुलिया, सुपा, टुकनी अउ कटोरा के जब उपयोग करथे त ए दृश्य ह देखते बनथे। लइका मन सही के बिहाव कस पुतरा-पुतरी के बिहाव ल निपटाए के प्रयास करथे भले गीद के अर्थ जाने या न जाने। लइका मन के मुंह ले जब भड़ौनी गीद ल सुनबे त हांसे बिना नइ रहीबे। जइसे-


खाए बर मखना पिराए बर पेट रे,

का लइका बियाए समधीन हंसिया के बेठ रे।

बड़े-बड़े रमकलिया चानी बीच म गुदा भराए रे,

हमर समधीन चटक चंदैनी घर-घर गोसइया बनाये रे।

नदिया तीर के पटवा भाजी उलव्हा उलव्हा दिखथे रे,

महासमुंद के टूरा मन ह बुढ़वा बुढ़वा दिखथे रे।

नदिया तीर के पटवा भाजी पटपट-पटपट करथे रे,

धमतरी के टूरा मन ह मटमट-मटमट करथे रे।


मड़वा बर बांस के जघा कमचील नही ते बेसरम लकड़ी, करसा के जघा चुकिया, दूलहा बर धोती ल चीर के कुरता, धोती बनाथे अउ पुतरी ल जुन्ना लुगरा के आंछी ल चीर के परिहाथे। सिकारी मन पुतरा-पुतरी बर नान-नान तेलचघनी अउ माई मउंर बनाये रथे। लइका जात भगवान के रूप। पुतरा-पुतरी के बिहाव म सबो जात के लइका मन संघर सकथे। छत्तीसगढ़ म कौमी एकता के सबले बढ़िहा उदाहरण पुतरा-पुतरी के बिहाव आय।

पंगत घलो होथे। लइका मन के उछाह ल देख के सियान मन उंकर काम म हाथ घलो बंटा देथे। जब टिकावन परथे त सियान मन अपन लइका मन बर नता देख देख के गीद गाथे-


इही धरम ले धरम ए वो

आ वो मोर दाई फेर धरम नइ तो पाबे वो

लागत रेहे छूटी डोर वो

आ वो मोर दाई तीनो तिलीक जीत डारे वो

आ वो मोर दाई चना खाए बर पइसा देवे वो...


बइसाख के अंजोरी पाख के तीज के दिन अक्षय तृतीया ल छत्तीसगढ़ म बड़ा धूमधाम ले मनाए जाथे। गोवर्धन श्रीवास बताये रिहिस हे कि बहुत साल पहिली लोहरसी गांव के कड़रा पारा म काकरो घर बिहाव नइ लगीस त पारा वाले मन बड़ा धूमधाम ले पुतरा-पुतरी के बिहाव अकती के दिन करे रीहिस हे। अकती के दिन कोनो डाहर दिशा नइ राहे तिही पाय के ए दिन के भांवर ल बड़ शुभ माने गेहे।

अकती के दिन कोठी के खाल्हे गोड़ा के आगु चार ठन माटी के ढेला उपर करसा म पानी भर के परई तोप के मड़ा देथे। जेकर ले बरसा के जानबा होथे। जउन किसम ले सावन म पूरब दिशा ले अउ भादो म पश्चिम दिशा ले हवा चले ले दुकाल परे के संभावना रहिथे उही किसम ले जउन तनी के ढेला सुक्खा रथे ओ दिशा म बरसा कम होय ले अंकाल परे के संभावना जादा रथे। तिही पाए के अकती के दिन पानी गिरई ल सुकाल के सूचक माने गे हे। जेन गांव म पानी नइ गिरिस उहां सियान मन के पाके चूंदी जान डरथे कि एसो के दिन बादर ठीक नइहे।

किसान मन के नवा साल अकती ले शुरू होथे। तिही पाए के किसानी बूता के जोरा इही दिन ले करथे जइसे पेरा धरई, छेना धरई, धान बोवई के मुहतुर घलो अकती के दिन ले होथे। मउंहा पान के दोना म अपन-अपन कोठी ले धान भर के गांव भर के किसान ठाकुर देव म चघाथे। पूजा पाठ करके बइगा ह पांच झन कुंवारा टूरा मन के हाथ ले कुदारी म कोड़ के सबले पहिली धान बोए के नेंग करवाथे। एकर बाद सबो किसान दोना के धान ल खेत म बो के बांवत के शुरुआत करथे। किसान मन जब बांवत करके घर पहुंचथे त कोतवाल ह गोबर कचरा, पानी कांजी करे बर हांका पारथे। घरो घर तेलई बइठथे। घर के देवता के पूजा पाठ करके सुकाल के कामना करथे। मालिक मन नौकर-चाकर मन संग संघरा बइठ के खाना खाथे। जतका बन जथे मालिक नौकर मन ल उपहार भेंट कर के उंकर छुट्टी करथे। बिदा ले के पहिली नौकर चाकर मन घलो अपन भूल चूक बर माफी मांगे बर नइ चुके। जउन नौकर के मन इही मालिक घर कमाए के रहिथे उमन धरमउत एक दिन अउ कमाथे जेकर ले मालिक ह नौकर के इरादा ल जान डरथे। छत्तीसगढ़ म ए बात विशेष तौर ले देखे बर मिलथे जे नौकर जउन मालिक घर जतके जुन्ना होथे ओकर मान ह जुन्ना धान कस बाढ़ जथे। ओकर ईमानदारी अउ जांगर के सोर दशो कोस तक लाम जथे। इहां तक ले कतको दाऊ मन घर तो यहू देखे बर मिलथे के जम्मो किसानी के देखरेख ल जुन्ना नौकर के मार्फत रहीथे। इहां तक ले ए नौकर के सलाह ल दाऊ मानथे अउ बात ल बनिहार मन मानथे। कतको जघा यहू देखे बर मिलथे कि जउन नौकर ह फागुन म काम छोड़थे वोहा अकती म काम करथे अउ अकती म काम छोड़थे वोहा पंदरा महीना दिन म चोंगी माखुर झोंक के काम धरथे। अकती पानी पाए रथे तेन ह बड़ भागमानी होथे काबर कि पीतर पाख ले अकती तक सरग सिधारे मनखे ल पानी दे जाथे। जउन चोला अकती ले पीतर पाख के बीच इंतकाल होही ओला अकती पानी नइ देवय। सबले महत्वपूर्ण बात ए हे कि जब तक ले अकती पानी नई पाही तब तक ले ओला पीतर नइ मिलाए जाये।


दुर्गाप्रसाद पारकर


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