Saturday 7 May 2022

कजरौटी**

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       **कजरौटी**

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      " बाबा जी के थैली म का-का चीज, लौंग, सुपारी, धतुरा के बीज।" येकर का मतलब ये तेकर कछु पता नइ रहय फेर तभो ले लईका मन ल येला खेले म बिकट मजा आथे। जइसे बाबाजी के थैली म दुनिया-जहान के चीज भरे रथे वइसने किसम ले अम्मा के बक्सा म न जाने का-का चीज भरे रहय। अम्मा,बाबूजी के दाई जऊन ल बाबूजी हर अम्मा कहय त सब कोई अम्मा कहन, अपन दाई ल माँ कहन,तेकर बाद बड़े दाई, बड़का दाई, कका दाई, बबा दाई, डोकरी दाई, नावा दाई, जून्ना दाई, गिंया दाई,फूफू दाई, पता नहीं कतको रिश्ता रहंय गांव म। अम्मा ल घलाव कइनो झन मन अइसने कछू-कछू कहंय। अम्मा के बक्सा खुले के हमेशा इंतजार रहय। अम्मा के बक्सा म रखे सामान मन ल देखे के उत्सुकता रहय। बक्सा के अंदर ले नावा-नावा जीनिस देखे बर मिलय। हमन पूछन; अम्मा तैं ये सब ल कहाँ ले लाय हावस, बाहर काबर नइ रखस? अम्मा कहय; ये सब तइहा जमाना के आय, अब चलन म नइ हे। फेर हमन ल तो सब हर नावा-नावा लागे। सब सामान मन के नाव सुनके बड़ा मजा आय अउ बड़ा अचंभा घलव होय। बिहान होय तहं ले अम्मा हर माँ मन के पाछू पर जाय ये लईका मन ल नउहा-धोवा देवा न ओ, पहिली नउहा-धोवा देवा तहं ले लईका मन अपन खेलहीं-कूदही तहं ले तुमन छूछिंधा अपन काम बूता ल करिहा। जइसे ही हमन जइसे ही नहा-धो के सकन तहं ले अम्मा हर कहय,लइका मन  ल काजर, पवडर लगा देवा, जा कजरौटी अउ पवडर डब्बा ल ले आन, लईका मन ल टीका लगा देवा, दिठौना ल बने लगा देबे, नजर व नइ लगही। अम्मा करा लोहा के बने लम्बा कजरौटी रहे। कजरौटी कहे त! काजर धरे के। अम्मा हर साल म एक घंव काजर बनाय जब निबौली  आय अउ ओकर तेल निकालंय। अम्मा करा एक ठन बड़े दिया रहय ओही म कपड़ा के लम्बा बाती लगा के लीम तेल ( नीम तेल ) ल भर दे अउ दिया ल बार के एक ठन माटी के खोपरा म ढांक दे। माटी के खोपरा म नानकन छेदा रहे जेमा ले हवा जाय अउ दिया हर जलत हे कि नहीं तेकरो पता चलत रहय। 

       अम्मा हर दिया ल आठ दस दिन ले बारे रहे। बीच-बीच म खोपरा म जमें केरवछ, कभू कइरछा कहे, तेला एक ठन बरतन म निकाल-निकाल के धरत रहे। दूसर तरफ घर के गाय के दूध ल जमों के मथ के ताजा घी बनावत रहे। जब ओकर जरुरत के हिसाब से कइरछा जमा हो जाय तंह ओला घर के ताजा शुद्ध घी म अच्छे से मिला के कजरौटी म भर दे अउ ओकर साल भर बर काजर तियार हो जाय। डॉक्टर ल जतका अपन अस्पताल म भरोसा नइ रहय; तेकर ले जादा अम्मा ल अपन कजरौटी म भरोसा रहे।कजरौटी निकलय त सबके आँखी म भर-भर के काजर, माथा के बीचोबीच बड़का गोल सूरुज अस टीका, माथा के कोना म चंदा बने रहय त गाल म घलव एकठन चँदैनी मार दैवे। कहय; देख अब अतका म कोनो नजर नइ लगांय। आँखी हर सुग्घर बड़े-बड़े दिखथे, आँखी के रोशनी बाढ़थे, आँखी नइ आय, घर के बनाय काजर के अंजन लगाबे त आँखी के घलाव अवरदा बाढ़थे। अब अम्मा नइ हे परंतु, ओकर कजरौटी आज भी खूंटी म टंगाय हे। कोनो उपयोग नइ करें लेकिन, ओकर हाथ के बने काजर आज घलव कजरौटी म भरे हे। 

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**अंजली शर्मा **

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ ).

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