Tuesday 31 May 2022

धनवा के सियानी**

 .  **धनवा के सियानी**

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      धनवा हर गाँव के छोटे से किसान ये, दिन के दिन नइ पुरय। अड़हा के अड़हा रथे, परिवार ल बढ़ा दारे रथे। छः झन बेटा अउ दू झन बेटी। दस झन के परिवार। बाहन-भंइसा, गाय-बछरु, बकरी-मुर्गी  के संग एक ठन कुकुर घलाव राख दारे रथे। तोता-मैना के बोली अलग ले सुनावत रहे। 


     बड़े बेटा हर थोरकन पढ़े रथे, बाकी मन तो दू-चार कक्षा पढ़ के छोंड़ दे रथें। दू झन नान-नान हें तेही मन भर स्कूल जावत रथें तेहु  मन के किताब-कापी, कपड़ा-लस्ता कछु के सोर नइ रहय। किताब-कापी लेहे के नाव म धनवा हर कंझा जाथे। कोनो लइका ल कभु पाँच रुपया घलाव देहे असन नइ करय तभो ले दूनों भाई-बहिनी कइसनों करके पढ़त रथें। दूनो बड़े बेटा मन कछु-कछु काम-बूता धर दारे रथें त धनवा ल समय-समय म दू-चार पइसा के मदद मिल जाथे। 

      दूनों बेटा मन काम-धंधा धर दारे रथें त धनवा हर ओमन के बिहाव करे के सोचथे अउ लड़की देखे बर शुरु कर देथे। बिहाव के खर्चा के बारे म सोंचथे त धनवा ल एकठन उपाय सुझथे, तेकर ले तो चारो बेटा के बिहाव ल एके घंव कर देत हँव त चार फइत के शादी के खर्चा हर बाँच जाही। गरीब आदमी का नइ सोंचय ओकर बर तो दस-बीस रुपया घलाव बहुत होथे। 

      धनवा हर चारों बेटा बर लड़की देख लेथे, एक ले बढ़ के एक सुग्घर रथे चारों लड़की मन। धनवा हर इहाँ-उहाँ सब रिश्तेदार मन ले पइसा-कउड़ी उधार ले के चारों बेटा मन के बिहाव ल निपटा दारथे। चारों बहु के दइज-डोर म घर हर भर जाथे, पाँव मढ़ाय के जगह नइ होवत रहय। सब दइज-डोर के सामान ल बेच के धनवा हर बिहाव के सब कर्जा ल उतार देथे। 

      बिहाव तो बढ़िया निपट गे, घर म चारो बहु के आय ले घर के रौनक बाढ़ गे रहय। चारो बहु ल देख-देख के धनवा गद् गद् हो जाथे। अब समस्या ये हे कि चारो बहु बर चार ठन कुरिया भी चाहिये। धनवा के छोट-छोट चार ठन कुरिया रहय, चारो कुरिया ल अपन चारो बहु ल देके अपन हर अपन घरवाली अउ चारो लइका मन ल धर के परछी म आ जाथे। अब नावा-नावा मेहमान भी आय लगथे। सबो बहु मन के लगजन मन कोनो न कोनो पहुँच जाथें ओमन के मान-गउन, रहे-बइठे के ब्यवस्था सब करे ल परथे, गलती खुद के हे त कोन ल काय कहे, चूपचाप रइ जाथे।

     धनवा हर बड़े बहु के खशखबरी पाथे त बबा बने के खुशी म फूले नइ समाय। एक-एक करके सबो बहु मन ले खुशखबरी मिलथे त धनवा हर गद् गद् हो जाथे। राम,लक्ष्मण, भरत, शत्रुहन जइसे चार झन नाती मोर अँगना म खेलहीं कथे। अब तो धनवा ल अपन नाती मन के आय के बड़ बेसब्री ले अगोरत रहय। वो दिन आ जाथे जब बड़े बहु के लड़का होथे। घर म जम्मो झन के खुशी के ठिकाना नइ रहय। नावा पीढ़ी के नावा लइका तेहु हर लड़का। जम्मों के मन होथे के बने धूमधाम से छट्ठी मनाबो त धनवा कह देथे नहीं चारों के लइका के एक संग ही छठी होही बार-बार हम खर्चा नइ करन। बड़े वाला लड़का तो साफ बोल देथे के तैं नइ करबे त मैं कर लेहौं। जम्मो के जिद के आघु म धनवा ल झुके बर पड़ जाथे अउ चारों झन के लइका के अलग-अलग छट्ठी करे बर परथे। शादी अतका खर्चा पर जाथे। धनवा बोलथे एक संग छट्ठी ल करबो कहें त तुमन नइ माना अब देखा कतका खर्चा होइस हे तेला, लड़का मन बोलथे तोला कोन कहे रहिस हे एके फंइत चारो झन जे शादी करे बर, कउन-कउन काम ल तैं अइसने एके संग करबे।

     धनवा के घर म झगड़ा हर बाढ़ जाथे, बड़े लड़का हर साफ बोल देथे के मोला अब तोर संग नइ रहना हे, मंझला वाला घलव बोल देथे महु ल नइ रहना हे। धनवा हर चारों झन ल अलग रहे बर कइ देथे। कहे बर कइ देथे फेर घर के ब्यवस्था कहाँ ले करय। घर म तो कछु सामान नइ हे का चीज के बँटवारा करय। शादी म जउन कुछ सामान मिले रहिस ओ सब ल तो पहिली ले बेंच दारे हावे अब बँटवारा दे त दे का? चारो कुरिया ल चारो बेटा मन ल रहे बर दे दिही त अपन हर चारो लइका मन ल लेके कहाँ रही। खेती-बाड़ी घलाव घलाव अतका नइ हे। धनवा हर सोंच म पड़गे, ये सब का होगे मैं तो आने सोंचे रहें ये तो आने होगे। मोला लागत रहिस एके घँव शादी कर दिहौं त खर्चा बाँच जाही चार घव के शादी के परेशानी ले बाँच जाहुं सोंचे रहें, जम्मो उल्टा होगे, खर्चा के खर्चा बाढ़ गे, परेशानी के परेशानी। उल्टा फजीहत होगे। मैं होशियारी करें फेर मोर सियानी काम नइ आइस अब ले मोला कछु सियानी करे बर नइ हे। 


**अंजली शर्मा **

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

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