Friday 14 January 2022

कहानी-पथरा

 *पथरा*


                          

                      चन्द्रहास साहू

                      मो .8120578897



"मोला माफी दे दे डॉक्टर नोनी ।''

मुहु ले बक्का नइ फुटिस मोर मनेमन मा केहेव। ....ओला देख के  रो डारेव मेहां।

मेहां तो अइसन अनित करे हंव कि सात जनम ले आगर कोनो माफी नइ देवय। फेर आज मोर आंखी उघरगे हाबे। मन अतका कलपत हावय कि अभिन धरती फाट जातिस अऊ मेहां ओमा समा जातेव। फेर मोर असन पापी ला धरती मइयां घला नइ पोटारे। फेर...नइ मरो मेहां , भलुक घूट-घूट के जिहु । भलुक आंसू मा बुड़ेI राहव, भलुक मोर तन मा किरा पर जावय फेर मेहां जिहु।...अऊ इही जीना हा मोर प्रायश्चित आवय।

मने मन मा गुनत हावव।  सी...सी..गो...गो.....आरो आइस अऊ बम्फाड़ के रो डारेव।

मोर गोसाइया मोला सम्हालिस। आंसू ला पोछेव अऊ फेर देखेव ओ डॉक्टरिन ला टुकुर-टुकुर, एक टक, बिन मिलखी मारे।

गोसाइया घला अचरज मा हाबे आज।

"किरण! देख डॉक्टर नोनी कतका सुघ्घर हावय तोर असन सुघ्घर। गोठियाथे ते तोरेच कस गुरतुर मीठ।..जेवनी गाल के तेलई । तोरे बरोबर डिप्टो, जइसे कोनो फोटो कॉपी आवय।बस, उम्मर भर के अंतर हाबे ताहन रूप -रंग,चाल-ढ़ाल, कद-काठी -सब एक बरोबर।''

गोसाइया पूछत हावय अऊ मेहां मुहु लुकावत हावव। न मोर करा कोनो जवाब हाबे न मेहां कहि ला जानव ?  फेर एक राज के गोठ हावय..। अऊ येहां नानकुन राज नोहे, रगरागावत आगी आवय। जम्मो कोई लेसा जाही, जम्मो कोई भूंजा जाही। ये आगी के आंच मोर उप्पर, गोसाइया उप्पर अऊ ओ गरीब उप्पर घला आही...।

                 अब मोला जम्मो कोई समाज सेविका के नाव ले जानथे। राजनीति मा घला अब्बड़ पहुंच हाबे। चीज बस घर दुवार कोनो जिनिस के कमती नइ हावय। पांच पीढ़ी बइठ के खाही अतका जिनिस हाबे, फेर पीढ़ी बढ़हइयां ..? कोनो नइ हावय। तीरथ-बरत,दरसन-परसन, पूजा-पाठ -जम्मो करेव फेर सब अबिरथा। मेडिकल ट्रीटमेंट पानी-पिसाब खून जम्मो के टेस्ट करवायेव।एक्सरे सोनोग्राफी सब। मोरेच भर ला करवायेव अइसन घला नही, हमर दुनो के जम्मो टेस्ट। पुरुषत्व के घला टेस्ट करवायेव फेर सब अबिरथा,सब पानी। मोर कोरा मा फूल नइ  खिले के कोनो कारण नही, तभो ले डेरउठी मा दीया बरइया कोनो नही।

              लइका मन तो फूल आय,रंग- बिरंगी चिरइया अऊ चंदैनी गोंदा कस। ..अऊ फूल ला कोन नइ भावय। फूल-फुलवारी घला मनमोहना होथे। सिरतोन राम अऊ किशन भगवान के बरन धर के खेलत हावय लइका मन। मेहां देखथो ते मेहां अघा जाथो। माता कौशिल्या अऊ माता यशोदा घला अइसना अघावत रिहिस होही। माता कौशिल्या के भाग जब्बर हावय। अपन कोरा ले सृष्टि के सिरजइया ला जनम दिस। ..अऊ माता यशोदा ओखरो किस्मत जब्बर। अपन गरभ मा नौ महीना ले नइ पालिस-पोसिस ते का होइस, सिरजनहार ला अपन मुहु के जूठा कौरा तो खवाये होही कइसे बाल लीला देखावत ब्रम्हरूप ला देखा दिस भगवान हा। 

छोड़, येमन कथा कंथली आवय । ओ रिक्शा वाला के बाई हा अपन सौत के लइका ला  पालथे-पोसथे खेलाथे अऊ दुलार करथे सगे दाई बरोबर। ओ खोरबाहरीन! अपन बहिनी के लइका ला पढ़ावत लिखावत हाबे। सेठ हा कतका तीरथ-बरत करत हे...। जकही तक हा अपन लइका ले नइ दुरिहाये। चिरई-चिरगुन कुकुर-बिलई मन घला चार दुवारी मा लेगथे लइका ला अऊ पालथे। अऊ मेहां ..?

                      जम्मो ला गुनत-गुनत सिटी गार्डन मा बइठे हव। लइका मन के रेला मोर कोती आथे ते जी घुरघुरासी लागथे। जी मिचलाये लागथे, रुआ ठाड़ हो जाथे। बही हो जाथव,जकही हो जाथव  अऊ रोथव, गिंगियाथो तब सांस बोजाये कस लागथे। पछिना-पछिना हो जाथे जम्मो काया हा। अऊ अब पट्ट ले गिर गेव ...।

"किरण मेहां तोर संग मया के धार ला नइ बोहा सकव। मया अंधरा नइ होवय मया करइया अंधरा हो जाथे। अऊ..मेहां तोर संग अंधरा बनके मया नइ कर सकव। तेहां गौटिया के बेटी अऊ मेहां बइला चरवाहा के टुरा। कभु मेल नइ होवय हमर दुनो घर संग। बीजा जब पिका फूटत रहिथे तभे मसल देबे ते अब्बड़ मिहनत ले रुखवा ला कांटे ला नइ परे। अभिन हमर मया के पिका फूटे हावय,अब दुरिहा जा।''

रमेश आज किहिस अऊ कुरिया ले निकलगे।

                अब स्कूल के पढ़ई पूरा करके कालेज मा अमरगे हन। पहिनई-ओढ़ई, घुमई-फिरई, खवई- पियई के दिन आवय कालेज के दिन हा। अब खेलउना खेले के दिन नोहे भलुक जरत जवानी ला बुझाये के दिन आवय। आने मन अपन जिनगी ला सिरजाये बर कॉलेज मा पढ़थे फेर मोर बर तो कॉलेज के मतलब मौज-मस्ती  इही आवय।

                     ब्रम्हाजी कतकोन जीव जिनावर बनाये हे फेर सबले सुघ्घर बनाये हाबे ते - नारी ला। अऊ नारी के रूप सुंदर अऊ मति ला चंचल बना दिस तब तो ओहा काखरो ले नइ हरा सके। साम दाम दंड भेद राजनीति के प्रपंच आवय फेर मया मा घला आजमाये लागेव मेहां रमेश ला पाये बर। जुग जोड़ी बनके संग जिये बर नही भलुक टाइमपास बर। कतकोन समझाइस संगी संगवारी अऊ रमेश घला फेर मोर मन मा मया के आगी लग गे रिहिस। कोन जन मया आय कि....? 

         कालेज ले लहुटे के बेरा हमर फार्म हाउस के तीर अब्बड़ झमाझम बारिस होइस आज।  रमेश तो कांपत रिहिस अऊ मेहां रगरगावत रेहेव। निझमहा फार्म हाउस मा खुसरगेन दुनो कोई पानी अतरे के अगोरा करत।

       ऋषिमुनि साधु संत कोन बांचे हावय तिरिया चरित्तर ले। रमेश कइसे बांच जाही ? काया मा चिपके भींजे ओन्हा कपड़ा। चुन्दी ले टपकत पानी के बून्द। पडरी काया,दमकत सिकल अऊ रगरगावत छाती। नदियां आज पियास मरत हावय।

रमेश ला पोटार लेव। 'अऊ एक बेरा'..  अऊ एक बेरा... काहत मया के समुंदर मा तौरे लागेव। अथाह समुंदर जिहां कोनो खारापन नही सब मीठ- मीठ...। छुअन मीठ, बोली मीठ,अहसास मीठ अऊ पीरा घला मीठ...। भलुक बिहाव नइ होये हाबे तभो ले नारी के सुख भोगत हव। सिरतोन मया निसा आवय।  फेर मोर कोनो मया के निसा नोहे तन के मिलाप के निसा आवय....महानिसा। बेरा कुबेरा निझमहा जब मौका मिलिस तब ..बस 'अऊ  एक बेरा..।' रातरानी जतका नइ ममहाइस ओखर ले जादा मेहां ममहावत हावव।

                      फूल के ममहासी सुघ्घर लागथे फेर मोर ममहासी...? दाई ददा के नाक कटावत हावय।

                       ददा हा भलुक मोला भोकवी कहिथे  फेर अब्बड़ गुनवंती हावव। पीरियड आये के कतका दिन मा गर्भधारण हो सकथे, कोन जिनिस बउरे ले सुरक्षित होथे, कोनो उच्च नीच होगे तब का दवई खाये ला पड़थे- सब जानथो मेहां। फेर आज अजम नइ पायेव। अऊ कोरा मा डुहरू धरे लागिस।

"बेटी ! आनी-बानी के गोठ सुनत हव मेहां। दुनो कोई मया करथो ते बर बिहाव कर देथव रमेश संग तोर।''

"बिहाव..? तेहां गरभ के पीरा मा दंदरे रहितेस ते अइसना नइ कहिते। ओ गरीब घर अपन राजकुमारी बेटी ला नइ देवन। कभु गोबर के गंध ला सूंघे नइ हे तौन बिहनिया ले कुंदरा ला गोबर मा नइ लीपे। फेकत डारत ले खवइया नोनी हा खाना बर नइ लुलवाये। तोला घर परिवार नइ चलाये ला आवय ते हरिद्वार जाके साधू महात्मा बन जा। फेर हमहा जूठा खवईया जुटहा नंगरा ला समधी नइ बनावन।''

सबरदिन बरोबर दाई मोर सरोटा तिरिस अऊ रगरगावत ददा ला 'जोत' दिस। 

"भोकवी ! ..महतारी बेटी दुनो भोकवी हावव।''

ददा किहिस अऊ चल दिस खेत कोती।

कोरा मा फूल के डुहरू ला रमेश ला बतायेव। उछाह होगे । अपनाये बर तियार होगे फेर मेहां अइसे बरजेव कि कभु आगू मा नइ आइस। 

"मोला तो कोनो सरकारी नौकरी वाला गोसाइया मिलही अऊ अब्बड़ जैजात वाला

घला। हमर कोठा हा पक्का हावय फेर तुंहर घर भसकहा.., का करे बर जाहू... ।''

"जादा गरब झन कर अपन काया के बस्सात ले हो जाबे। किरा परत ले हो जाबे।''

मोर गोठ ला सुनके रमेश अइसना तो केहे रिहिस। 

फेर आज अब्बड़ संकट मा हावव। दाई ला बतायेव। गाल मा लोर उपटत ले मारिस ते मारिस फेर मोर आज अऊ सरोटा तिरिस। दुरिहा गांव के मोसी घर पठो दिस। 

कतका लबारी मारिस । कतका झन ला अंधियारी मा राखेव । धोखा देयेव फेर उही होइस जेखर डर रिहिस। कोनो डॉक्टर नर्स गरभ ला गिराये बर राजी नइ होइस। 

आज महु अज्ञातवास मा हावव नौ महिना के। डुहरू फूल अब छतराये लागिस। काया मा बदलाव होइस। पेट बाढ़गे। ..अऊ अब जीव दुनिया मा आंखी उघारे बर तियार होगे। मोसी सुवईन दाई बन के जतन करिस। कतका सुघ्घर हावय... नोनी लइका हा..... कोवर-कोवर हाथ गोड़..... नान-नान  आंखी .... खोखमा बरन जम्मो काया ...अब्बड़ सुघ्घर लागत हे । छाती मा गोरस उतरिस तब अब्बड़ मया लागिस। फेर दाई के गोठ के आरो आ गे।

"किरण ! लइका ला धर के आबे तब नरक मा बुड़ जाबे। अऊ फेंक के आबे तब ...? तब उछाह मा रहिबे। ये दुनिया मा मालदार टुरा के कोनो कमती नइ हावय बेटी!''

पथरा ले जादा कठोर अऊ जल्लाद ले जादा निष्ठुर होगेव मेहां । भिनसरहा लइका ला फेंक देव। लइका के किलकारी ओखर रोवई तड़प...भैरी होगेव। थोकिन मया पलपलाइस तब मोसी...? तीरत लेगगे ।

              मरइया ले बड़का बचइया होथे। आज  मइनखे मा कुकुर अऊ कुकुर मा मइनखे के गुण आगे। निर्मोही के लइका बर कुकुर हा रखवार होगे। कुतिया, वहु तो मां आवय अपन चार पिला मन ला दूध पियावत मोर लइका ला आंच नइ आवन देवत हे कोनो बैरी ले। कुदरत के करिश्मा ला देख चबरहा-हबरहा के जात हा रखवार होगे। अऊ मइनखे हा ...?

जम्मो ला पेपर मा पढ़ेव। टीवी मा देखेव अऊ चार झन ले सुनेव। 

                 पइसा हाबे तब का नइ मिले ? सब मिल जाथे। मोर बर दुल्हा घला मिलगे। सरकारी नौकरी वाला अऊ मालदार जइसन चाहेव तइसन पायेव। 

.....फेर सब अबिरथा।

                    दु बेरा कोख हरियाइस। एक बेरा कोनो उच्च  नीच होइस अऊ गरभ खसलगे। दुसरिया दरी मरे लइका  ला जनम देयेव।

.........अऊ अब कोरा सुक्खागे। सरगे।


                 मेहां अस्पताल मा भर्ती हावव। बच्चादानी ला निकालही डॉक्टर नोनी हा। ठाकुर देव के महिमा अपरम्पार हावय। डॉक्टर नोनी घला उही आवय मोर फेकल बेटी, कुकुर के दुलार पवइया मोर लइका। 

                   निरबंसी सेठ - सेठानी मन  लइका ला गोद लिस अऊ पढ़हाइस लिखाइस।आज डॉक्टर बनगे हावय। नोनी के डोकरी दाई अइसना तो बताये रिहिस।

                    मोर केंसर वाला बच्चा दानी ला निकालही। पढ़ के आये के बाद के पहेला आपरेशन मोर करही। तेहां लइका ला दुलार नइ सकस तब बच्चा दानी के का बुता..?शायद इही भाव होही परमात्मा के। 

आज सिरतोन नोनी के गोड़ मे गिरगेव अऊ माफी मांगत हावव.... । फेर ओ तो.....? 

            " सिरतोन सेठ तेहां फेंके पथरा ला तराश के पूजा के लइक बना डारे अऊ मेहां हीरा ला  गउदन समझेव.....? डॉक्टर नोनी तो पथरा कस मुक्का होगे अऊ चल दिस ऑपरेशन के तियारी करे बर। कोन जन आज वहु पथरा होगे का.....? फेर मोर जिनगी एक बेरा अऊ पथरा होगे.....!


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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com


समीक्षा- पोखनलाल जायसवाल


जिनगी चार दिन के हे। अउ ए दुनिया घलव अतेक बड़ नइ हे कि जेकर ले हम अपन पिंडा(पाछू) छुड़ाना चाहथन वोकर ले घुम फिर के मेल भेंट नइ होही। करनी(बुरा करम) के पछतावा घलव तो अइसने आय। घुम फिर के करनी ह आगू आ जथे अउ पछतावा होथे। दुनिया अतका सिमटा गे हे कि कखरो ले मेल मुलाकात के संभावना खतम नइ होय। कोनो न कोनो मोड़ म भेंट पयलगी होना खच्चित हो जथे। मनखे ल मन म भोरहा पाल के नइ रहना चाही।

       मनखे तन माटी के पुतला ए त मनखे गलती करइया पुतला आय। जाने-अनजाने कतको गलती कर डरथे। अपनी करनी के फल तो मनखेच ल भोगे परथे। जे ह प्रकृति अउ भगवान के वरदान संग खेलवाड़ करथे, हँसी मजाक करथे। ओकर जिनगी संग घलव घलव खेलवाड़ होथे। वहू म दुनिया म मजाक बन के रहि जथे। दुनिया म एकर कतकोन उदाहरण हें। रावण कंस मन का अपन वंश के समूल नाश नइ करा डरिन। जवानी के जोश म होश गवाँ के मनखे अपन ताकत के घमंड करथे।  ताकत वाला समझ के अपन फूल कस हिरदे ल पथरा बना लेथे अउ दूसर के हिरदे ले खेलथे अउ रउद देथे। सपना ल टोर देथे। फेर समे बदलत नइ लगय। ऊप्पर वाला के राहपट जब परथे त चेत आथे, तब पूरा जिनगी ह पथरा लहुट ज रहिथे। इही सब गोठ बात ल सरेखत कहानी आय पथरा। 

      कहानी के भाषा शैली पाठक ल बाँधे रखथे। बहाव अतेक हे कि कहानी कब पढ़ा जथे पाठक ल आरो नइ मिलय। मन अघा जथे। 

       संवाद मन प्रासंगिक हे। पात्र मन बर संवाद लिखे म चंद्रहास साहू जी बड़ सावचेत लगथे। कभू नइ लगय कि कुछु जादा लिखाय। नपाय जोखाय शब्द ल पढ़ के पाठक ठगागेंव नइ समझय। 

       मनखे ल अइसन करनी करना चाही कि आघू चल के पछतावा झन होवय। मनखे ल भोरहा म नइ रहना चाही कि मोला पछतावा होबे नइ करही। सब समे के हाथ म होथे। समे सब ल नाच नचाथे। अपन मानवीय संवेदना ल कभू झन भुलावन। इही बात के संदेश दे म ए कहानी पूरा सफल हे। शीर्षक पथरा कहानी ल सार्थक करथे। अइसन कहानी ह हर पाठक के मन म चिरकाल बर जगा बना लेथे। अइसन सुग्घर कहानी लिखे बर मँय चंद्रहास साहू जी ल बहुत बहुत बधाई शुभकामना देत हँव।


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी

9977252202

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