Saturday 8 January 2022

लघु कथा गिधवा के बस्ती

 लघु कथा 

गिधवा के बस्ती 


शहर के एक कोन्टा मा गिधवा के बस्ती रहय, अउ बस्ती मा एसो अकाल परगे पानी के बीना गिधवा मनके खेती बारी सूखा गे छोटे बड़े जम्मों भूख मा तिलमिलावत जग जग बनि खोजत फिरँय कहूँ कोनो बड़े आदमी के फेके डारे ला खा के अपन भूख मिटावँय, बड़ करलइ भरे दिन पहावत रहँय तब बस्ती के जुन्ना सियान मन सोचिन के अइसन नइ बनय जम्मों शहर के गिधवा मन बलावव अउ बइठका करव काबर के भूख मा सबो गिधवा मर जही त गिधवा के बंस नइ बाँचही गिधवा बंस बचाए खातिर कुछू तो जुगती मढ़ाए बर परही इही सोच के सियान गिधवा हा सबो गिधवा मन के बइठका बलइस अउ अपन विचार ला सब के आघू रखिस अउ कहिन के जेन ला जेन जुगती आवत होही ओहा अपन अपन कोती ले जुगती मढ़ा डारव अइसे कहिन, जुगती भिड़ाहू तभे गिधवा समाज बाँचही अउ नवा नवा बिस्तार घलो होही, फेर गिधवा मन जुगती मढ़ाए नइ सकिन सबो झन सियान के उपर थोप दिन, सियान गिधवा कथे के मोर डेना मा ताकत नइये तुही मन ला उड़ उड़ के बुता करे बर परही, मैं जइस्ने बताहूँ वइस्नेच करहु, ताहन सियान गिधवा कहिन के काली जुवार भिनसरहा ले उठ के मस्जिद मा जाके चोंच मार मार के टोर फोर कर देहू, कोनो जानय झन तइसे, पढ़े लिखे उड़ानूक गिधवा मन ओइस्नेच करिन, अउ अपन ठिहा मा आगे, बिहिनिया मौलवी साहब देखिस त ओकर तन मन मा आगी बरगे उहू अपन मुस्लिम भाई मन ला बलाके देखाइन अउ मुस्लिम संगठन के बइठका कर के हिन्दू मन के नाँव लगा के झगरा के जुगती भिड़ाइन, फेर झगरा लड़ाई नइ होइन आपस मा एक दूसर समझ गिन, सियान गिधवा ह दूसर दिन अपन उड़ानूक गिधवा मन ला हिन्दू मंदिर मा टोर फोर करे बर भेजिस, बिहान दिन महराज के आगी बर कालिच्चे समझौता करे हन अउ आज हमर मंदिर मा टोर फोर होगे ताहन फेर तँय तँय मँय मँय हिन्दू मुस्लिम करे लागिन लड़त लड़त मार काट मा उतरगे जम्मों शहर उम्हिंयागे अउ लाखो लाख मनखे मन मरिन जलाए पाटे के जगा नइ राहय, गिधवा के बस्ती मा तिहारे तिहार होगे इतरा इतरा के खावत हवंय सियान गिधवा के जय बोलइन, ओकर बाद कब्भो अकाल नइ परिस गिधवा के बस्ती मा सियान गिधवा हा जीये बर बता दिन, गिधवा के बिस्तार कइसे होही कहिके सियान हा सरग सिधार गे तब नव जवान पढ़े लिखे उड़ानूक मन गिधवा बस्ती मा ओकर मूरती मढ़ा के गिधवा चउँक नाव ले जन मानस मा परचार होइस, सियान गिधवा के बताए रद्दा मा रेंगत उँकर पढ़ाए पाठ ला पढ़त जीयत हें अउ मजा करत हें अउ मनखे मनखे मन लड़त मरत हें।। 🙏🏻🙏🏻


सुमित्रा शिशिर "भिलाई छत्तीसगढ़

No comments:

Post a Comment