Saturday 8 January 2022

गोठ-बात के घाव,दारू के ताव //* =======०००========

 *// गोठ-बात के घाव,दारू के ताव //*

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      अभी-अभी दिन शनिवार, दिनांक-०१ जनवरी/२०२२ के तरोताजा घटना बतावत हौं,बने चेत लगा के सुनिहौ/पढ़िहौ--

      अपन आफिस (शासकीय महाविद्यालय कोतरी जिला-मुंगेली) ले ड्यूटी करके बेलपान से ०१ कि.मी. आगू मउहाकापा-कोटा मोड़ के तिगड्डा (तिराहा) में रोज के भांति एक पुलिया ऊपर  थोकुन तन विश्राम अउ गाड़ी ला घलो थोकुन विश्राम करवाए बर बैठेंव | बेरा आछत के बात आय,तिहां छिन भर बाद ओ पुलिया के तरी ले एक पंचहत्था डउका निकल के मोर डहर आईस, ओकर एक हाथ म तब्बल अउ एक हाथ म दारू के बोतल धरे रहिस, मोर तिर म आवत-आवत  मुंह म  सिगरेट दबा के कहिस- माचिस राखे हस का गुरूजी ? 

     मैं जवाब देहेंव-नइ राखे हंव भईया जी, मैं बिड़ी-सिगरेट नइ पीयंव |

     ओ फेर पूछिस-दारू पीबे ? 

      मैं कहेंव-दारू भी नइ पीयंव भईया जी, गुटका घलो नइ खावौं |

      *तब ओ तुनक के कहिस- तव का गुरूजी अस ? आजकल अधिकांश गुरूजी मन दारू पीथैं*

      *मैं कहेंव-अधिकांश गुरूजी मन पीथैं भाई, लेकिन सब्बो नइ पीयैं*

      *तहूं का गुरूजी, पीना-खाना चाही, पीए-खाए बर तो हम पैदा होए हन, फेर आज नवा साल के पहला दिन खाओ-पीओ मौज उड़ाओ*

   

      *मैं कहेंव-अपन-अपन विचार होथे भाई, मोर ये गोठ पूरा नइ हो पाए रहिसे, ओ दरूहा अपन बोतल से फेर दारू पीए लागिस, मैं पूछेंव-कस भईया, बिना पानी डारे दारू पी लेथस !?*

      *ओ कहिस-हां, मैं बिना पानी डारे दारू पी लेथौं,मोला कुछु नइ होवय,दारू के अलावा,गांजा,भांग, तम्बाकू, गुड़ाखू गुटका सब छकत ले पीथौं-खाथौं | मोर शरीर पक्का जहरीला हो गए हवय, कहूं धोखा से सांप मोला चाब देही,तब खुदे मर जाही समझे गुरूजी ?*

    ‌*मैं कहेंव-ओ हो! सिरतोन म तैं अब्बड़ेच जहरीला हो गए हस !

     *तहां ओ दरूहा कहिस-सुन न गुरूजी, आज मैं ओ फदाकू ला काटे बिना नइ छोड़ौ*

      *मैं पूछेंव-अईसन अलहन काबर करबे भाई?*

      *ओ कहिस-आज नवा साल के दिन ओ फदाकू ह मोर बिज्जती करिस, कहिथै गाड़ी चलाए नइ आवय अउ मोर गाड़ी ले उतर गे ! तेकरे सेती आज ओला कुटी-कुटी काटिहौं अउ बताहूं -ए दईसे गाड़ी चलाथौं समझे !*

    *मैं कहेंव-अईसन अलहन जन करबे भईया | आज नवा साल के दिन खाओ-पीओ सुंदर ऐश करो*

    *ओ दरूहा लड़खड़ाते हुए कहिस- ओहीच तो मोरो कहना हवय गुरूजी, ओ फदाकू अउ मैं खूब गाढ़ी दोस्त अन, दुनो लंगोटिया यार हवन,आज बिहान ले दुनो झन खूब दारू पीए हन,बोतल-बोतल गटक गएन, ओतका बेर बेलपान ले दारू पी के दुनो झन एके गाड़ी म आवत रहेन, मैं गाड़ी चलावत रहेंव,तब बार-बार मोला टोंकत रहिस-गेयर कम कर,ब्रेक लगा,थोकुन धीरे-धीरे चला | जबकि मैं गाड़ी चालू करथौं तिहां सीधा टाप गेयर म चलाथौं, हवाई जहाज म उड़त हौं,तईसे गाड़ी चलाथौं अउ ओ स्साले डरपोकना ह मोर गाड़ी चलवाई ला निनास के उतर गईस ! तेकरे सेती आज मैं शांतिराम ठेठवार ओला कुटी-कुटी काट के बताहूं, -ए दईसे गाड़ी चलाथौं समझे?*

      *मैं शांतिराम अंव रे, आज तोला कुटी-कुटी काट के रहिहौं !*

    *अतका सुन के मोर जीव थर-थर ! थर-थर कांपे लगिस !!!*

       *मैं कल्लेचुप गाड़ी चालू करके भागेंव ....... अरे बाप रे ! ए  दरूहा खूब खतरनाक हवय ! भागौं रे .......*

     *ओ दरूहा चिल्लाए लगिस- रूक तो गुरूजी,माचिस दे ना ......*

      *मैं सोचेंव-"गोठ-बात के घाव,दारू के ताव" म पता नहीं, ये दरूहा कुछ भी अलहन कर सकथे !*


     (दिनांक-०३.०१.२०२२)


आपके अपनेच संगवारी

*गया प्रसाद साहू*

  "रतनपुरिहा"

मुकाम व पोस्ट-करगी रोड कोटा जिला बिलासपुर (छ.ग.)


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