*// गोठ-बात के घाव,दारू के ताव //*
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अभी-अभी दिन शनिवार, दिनांक-०१ जनवरी/२०२२ के तरोताजा घटना बतावत हौं,बने चेत लगा के सुनिहौ/पढ़िहौ--
अपन आफिस (शासकीय महाविद्यालय कोतरी जिला-मुंगेली) ले ड्यूटी करके बेलपान से ०१ कि.मी. आगू मउहाकापा-कोटा मोड़ के तिगड्डा (तिराहा) में रोज के भांति एक पुलिया ऊपर थोकुन तन विश्राम अउ गाड़ी ला घलो थोकुन विश्राम करवाए बर बैठेंव | बेरा आछत के बात आय,तिहां छिन भर बाद ओ पुलिया के तरी ले एक पंचहत्था डउका निकल के मोर डहर आईस, ओकर एक हाथ म तब्बल अउ एक हाथ म दारू के बोतल धरे रहिस, मोर तिर म आवत-आवत मुंह म सिगरेट दबा के कहिस- माचिस राखे हस का गुरूजी ?
मैं जवाब देहेंव-नइ राखे हंव भईया जी, मैं बिड़ी-सिगरेट नइ पीयंव |
ओ फेर पूछिस-दारू पीबे ?
मैं कहेंव-दारू भी नइ पीयंव भईया जी, गुटका घलो नइ खावौं |
*तब ओ तुनक के कहिस- तव का गुरूजी अस ? आजकल अधिकांश गुरूजी मन दारू पीथैं*
*मैं कहेंव-अधिकांश गुरूजी मन पीथैं भाई, लेकिन सब्बो नइ पीयैं*
*तहूं का गुरूजी, पीना-खाना चाही, पीए-खाए बर तो हम पैदा होए हन, फेर आज नवा साल के पहला दिन खाओ-पीओ मौज उड़ाओ*
*मैं कहेंव-अपन-अपन विचार होथे भाई, मोर ये गोठ पूरा नइ हो पाए रहिसे, ओ दरूहा अपन बोतल से फेर दारू पीए लागिस, मैं पूछेंव-कस भईया, बिना पानी डारे दारू पी लेथस !?*
*ओ कहिस-हां, मैं बिना पानी डारे दारू पी लेथौं,मोला कुछु नइ होवय,दारू के अलावा,गांजा,भांग, तम्बाकू, गुड़ाखू गुटका सब छकत ले पीथौं-खाथौं | मोर शरीर पक्का जहरीला हो गए हवय, कहूं धोखा से सांप मोला चाब देही,तब खुदे मर जाही समझे गुरूजी ?*
*मैं कहेंव-ओ हो! सिरतोन म तैं अब्बड़ेच जहरीला हो गए हस !
*तहां ओ दरूहा कहिस-सुन न गुरूजी, आज मैं ओ फदाकू ला काटे बिना नइ छोड़ौ*
*मैं पूछेंव-अईसन अलहन काबर करबे भाई?*
*ओ कहिस-आज नवा साल के दिन ओ फदाकू ह मोर बिज्जती करिस, कहिथै गाड़ी चलाए नइ आवय अउ मोर गाड़ी ले उतर गे ! तेकरे सेती आज ओला कुटी-कुटी काटिहौं अउ बताहूं -ए दईसे गाड़ी चलाथौं समझे !*
*मैं कहेंव-अईसन अलहन जन करबे भईया | आज नवा साल के दिन खाओ-पीओ सुंदर ऐश करो*
*ओ दरूहा लड़खड़ाते हुए कहिस- ओहीच तो मोरो कहना हवय गुरूजी, ओ फदाकू अउ मैं खूब गाढ़ी दोस्त अन, दुनो लंगोटिया यार हवन,आज बिहान ले दुनो झन खूब दारू पीए हन,बोतल-बोतल गटक गएन, ओतका बेर बेलपान ले दारू पी के दुनो झन एके गाड़ी म आवत रहेन, मैं गाड़ी चलावत रहेंव,तब बार-बार मोला टोंकत रहिस-गेयर कम कर,ब्रेक लगा,थोकुन धीरे-धीरे चला | जबकि मैं गाड़ी चालू करथौं तिहां सीधा टाप गेयर म चलाथौं, हवाई जहाज म उड़त हौं,तईसे गाड़ी चलाथौं अउ ओ स्साले डरपोकना ह मोर गाड़ी चलवाई ला निनास के उतर गईस ! तेकरे सेती आज मैं शांतिराम ठेठवार ओला कुटी-कुटी काट के बताहूं, -ए दईसे गाड़ी चलाथौं समझे?*
*मैं शांतिराम अंव रे, आज तोला कुटी-कुटी काट के रहिहौं !*
*अतका सुन के मोर जीव थर-थर ! थर-थर कांपे लगिस !!!*
*मैं कल्लेचुप गाड़ी चालू करके भागेंव ....... अरे बाप रे ! ए दरूहा खूब खतरनाक हवय ! भागौं रे .......*
*ओ दरूहा चिल्लाए लगिस- रूक तो गुरूजी,माचिस दे ना ......*
*मैं सोचेंव-"गोठ-बात के घाव,दारू के ताव" म पता नहीं, ये दरूहा कुछ भी अलहन कर सकथे !*
(दिनांक-०३.०१.२०२२)
आपके अपनेच संगवारी
*गया प्रसाद साहू*
"रतनपुरिहा"
मुकाम व पोस्ट-करगी रोड कोटा जिला बिलासपुर (छ.ग.)
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