Friday 14 January 2022

पुरोधा--------- स्वर्ण कुमार साहू "पुष्प"

 पुरोधा---------


स्वर्ण कुमार साहू "पुष्प"

            (गीतकार)

        सांस्कृतिक कला हर सदा दिन पीढी उपर पीढी ले छत्तीसगढ के धरोहर हे। अउ आगू घलो रही। काबर कि येकर भीतर हमर संस्कृति  के  पहिचान  समाये रथे। जब कोनो कला हर मंच ले होके आम जन मानस तक जाथे तब ओकर मान महत्तम ला मजबूती मिलथे। हमर छत्तीसगढ मा नाचा एक ठन अइसे विधा आय जेकर भीतर समाज के हर विसंगती ला, मनखे के जिनगी मा होवत उतार चघाव ला। हांसी ठिठोली के सॅग सुख दुख के घड़ी होनी अनहोनी चरित्तर ला सरल सहज रूप मा जन मानस तक पहुंचाय के दमदारी रखथे। गीत अउ गम्मत के आड़ ले समाज के असली सच ला उजागर करे मा कमती नइ रहय। नाचा मा गीत संगीत के सॅगेसॅग नान नान चुटकुला हाना दोहा ठेही ठेसरा ले  हाॅसी गुदगुदी करे मा घलो कम नइ रहय। ओइसे भी नाचा गम्मत  भरथरी पंड़वानी ढोला मारू लोरिक चंदा के उपर शोध ग्रंथ से लेके लेख विचार लिखे जावत हे । लिखना घलो चाही। काबर कि एकर जानकारी आगू पीढी तक जाना भी जरूरी हे ।

             नाचा विधा मा गीत संगीत के बात आथे तब गम्मत के अधार ले विरह सिंगार हास्य ब्यंग समाजिक सद्भाव धार्मिक आस्था  से लेके हर विसंगती उपर गीत के सिरजन होइस। अउ अभिनय प्रस्तुति ले जन मानस मा जगा बनाइस। गीत कार समय काल के मरियादा ले बॅधाय के बाद घलो ब्यंग बाण चलाके घाव करत निकल जाय । ये गोठ एकर सेती कहना परत हे कि अब के कला मंडली मा अभद्र अउ फुहड़पना हर जगा बना लेहे। एक समे मा कलम के ताकत ले अपन गीत के दम ले जन जन के बीच जगा बनाइस। वो महान गीतकार जेकर नाम स्वर्ण कुमार साहू "पुष्प" जी रिहिन। स्वर्ण कुमार साहू जी के गीत जादातर ब्यंग भरे रहय। ओकर गीत ला वो जमाना के नाचा विधा के पुरोधा मदराजी दाऊ मदन निषाद ठाकुर राम भुलवा फिदाबाई जइसन नामचिन कलाकार मन नाचा गम्मत मा गावत रिहिन ।पुष्प जी के गीत कोनो संकलन किताब तो देखे बर नइ मिले हे । ओकरे जमाना के नचकार ( मोर बाबू जी)  जेकर कापी मा साहू जी के गीत मन लिखाय मिले हे। ओकर सिरजन के कुछ हिस्सा आप सबो तक नइ पहुच पाही त बात अधुरा रहि जाही ।

         ओकर भाषा भाव अउ तरज जेहर मनखे समाज के बीच के विसंगती उपर चोट करत चलय। ऊंच नीच के भेद उपर कटाक्ष करत उन लिखथे------------------------


ले महराज बतादे तुंहर कोन घराना आये ।


जात सिकारी ला नीच बताथो ।

       देखब मा महराज छुवाथो।

तेकर लइका बालमिकी ए।

       जेकर ज्ञान सुहाये-------------


ब्यास मुनि महभारत गाइन।

      ब्रम्ह ज्ञान के भेद बताइन।

आय तउन ढिमरिन के लइका,

   बाम्हन कस कहलाइये----------------।

मुनि यारासर ला जग जानिन,

तेकर दाई जमादारिन।

जनम धरिन हे नीच पेट ले ,

     बाम्हन कस कहलाये----------।


विश्वामित्र रसपूत के कहिथे,

सुनके सुजानिक गुनत रहिथे ।

ब्रम्ह रिसि जेला काहत लागे

तेकर जात मा फरक आये-----------।


बेद मन मे कतका भरे हे,

रन्डी पेट ले जनम धरे हे।

भरतद्वाज मुनिसुद्र पिला आये----------।


दासी के बेटा आय मुनि नारद,

अइसे होइस ते ज्ञान विसारद।

" स्वर्ण" छुवा मे झन हो गारद,

    तोर भेद बिगरे जाये-------------

ले महराज बतादे तुंहर कोन'---------।


      समाज मा पसरे छुवा छूत के कालिख ला मेटे बर अउ जन चेतना ला झझकोरे बर उन अइसे गीत के सिरजन करिन जेहर मंच के प्रस्तुति ले जन जन तक जगा बना लेय रिहिस। उॅकर गीत के बोल बानगी अइसन हे-----


छुवा ला काबर डरे,

      भाई रे छुवा ला कावर डरे।


एके तरिया मा बाम्हन कनोजिया।

      जम्मो जात स्नान करे ।

सबो मिलके पानी मा थूंके,

    तब कामे भेद करे'---------

भाई रे छुवा----------------।


खातू मे उपजे धान कोदइया,

      मैला मे आलू फरे ।

मल मुत्र तोर पेट म खुसरे, 

बाहिर बर साबुन धरे---------

भाई रे छुवा----------------।


मछरी कुकरी साग चुरत हे,

      जौने हा नरख चरे ।

घिनघिन चीज ल लान के,

मुरदा मे पेट भरे-------------

भाई रे छुवा----------------


एक किसम के सबके चोला,

   "स्वर्ण" हा नइ बिसरे ।

सबो जात धरती के बसइया,

सरग मा कोन किंजरे----------

भाई रे छुवा-----------------।


        स्वर्ण कुमार साहू जी के गीत ले यहू पता चलथे कि उॅकर हिरदे मा देश प्रेम के भावना कम नइ रिहिस। आजादी के बाद देश के बटवारा अउ पाकिस्तान के नपाकी ढर्रा ओकर अड़दली पना ले काश्मीर के लड़ई बर पाकिस्तान ला बहुते लताड़ के गीत लिखिस। जेन हर मदन मदराजी नाचा साज के चर्चित गीत रिहिस।जेकर बोल हे----------


पाक दोगला तोर बरोबर कोन रे बइमान ।

अन्न खाए के मुंख मा मैला भखे पाकिस्तान।


काॅख के लड़ई मे गये,

      दाॅत ला निपोरे ।

सुम्मत मा रबो कहिके,

       तिंही हाथ जोरे ।

सीमा मे फौज भेजे,

        तिंही रसता टोरे।

उड़ान- मुंह मा तोर थया नइये 

         का गोठ ला पतियान------


भुट्टो मिया चाल चले,

       रेहे रे कसमीर मे।

छापा मार कतको भेजे,

      रेहेन तूंहर तिर मे ।

धुम धड़ाका करिन जम्मो,

     हबरगे जंजीर मे ।

उड़ान-  मने मन मा बाॅधे रहिना,

   कपसा के मचान-------------


कसमीर मे चुनई करबो ,

    केहेंन तब तै टरके ।

अब काबर दाॅवा करथस,

    अरे बिन गतर के ।

सोला बच्छर होगे हे,

ताकत हस मुंहू परके।

उड़ान---इही बुध मा एको दिन,

        जाही तोर परान-------------।


मरत रेहे कॅगला बिया,

     खंडा अउ फरी मा ।

फौज बर अमरिका के,

     गिरे गोड़ तरी मा ।

" स्वर्ण" मदन बाॅधे हे,

गरदेंवा तोर नरी मा ।

उड़ान-----जबले चीन के सॅग धरे, 

    तोर होगे तिज नहान---------

पाक दोगला-------------।


घर परिवार मा पति पत्नी के बीच के बिथा ला घरू झगरा ला घलो अपन गीत के बिषय बनाके गम्मत गीत मा जगा पाइस। संवाद भरे गीत के अलगे आनंद हे। जेखर बोल अइसन हे-------


जोंड़ी के मोर चाॅउर चुरत नइहे वो ।

उही पाय के जीव हर उलत नइहे वो।

जोड़ी परबुधिया हर जतर कतर होवथे ।

जुंआ अउ मंद मे जम्मो धन दुगानी खोवथे।

मजा ला उड़ावथे पर दुवारी सोवथे ।

अइ कहिथॅव ते चारी करथे कहिथे।

साहूकार जम्मोझन घर मा दते रहिथे ।

नारी के तब का इज्जत नइये वो----------------।

गीत मा संवाद हे लम्बा हे। कम रूप मा भेजे हवॅ। एकर छोड़े अउ कतको गीत हे जेन हर मन भावन अउ जनजागरन ले भरे हे। मोर समझ मा जतका समझ बनिस लिख के भेज पारे हवॅ।


राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनादगाॅव🙏

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