Friday 21 January 2022

व्यंग्य-रजिस्ट्रेशन

 रजिस्टेशन 

                    जनता हित के जम्मो बूता के रजिस्टेसन के मुहिम ... सरकार डहर ले चारों मुड़ा चले लगिस । गाँव के मनखे मंगलू के .... अभू तक न कन्हो रजिस्टेशन होय रिहीस .... न कभू कन्हो हित के काम ..... । प्रचार प्रसार के माध्यम ले ओला जनता के हित बर होवत रजिस्टेशन के बारे म जइसे पता लगिस .... तइसने उहू हा ..... रजिस्टेशन कराये बर निकल गिस । सरकार हा जनता ला कन्हो तकलीफ झिन होय सोंचके जगा जगा रजिस्टेशन के आपिस खोले रहय । उहाँ बड़े बड़े मनखे मन के लम्भा लइन देख खुसरे के हिम्मत नइ करत रिहीस । फेर पेट के भूख हा मनखे ला अतेक मजबूर कर देथे के ओला पूरा करे बर जी परान लगा देथे । एक दिन हिम्मत करके लइन म लगगे । पहिली दिन जब ओकर नम्बर अइस तब तक काऊंटर बंद होगे । दूसर दिन बिहिनिया ले लइन लगिस ... नम्बर के आवत ले काउंटर फेर बंद होगे । ओकर भाग म कुछ अइसे रिहीस के ओकर नम्बर आये के पहिली .... काऊंटर बंदेच हो जाये । 

                    एक दिन बिहिनिया चार बजे ले उठिस अऊ लइन म लगगे । ओ दिन मंगलू हा लइन म अकेल्ला रिहीस । ओकर आगू पिछू कन्होच नइ रिहीस । मंगलू आज खुस रिहीस के ओकर रजिस्टेशन आज हो जही । फेर गरीब मजदूर मनखे ला का पता कि देस के सरकारी मनखे बर कन्हो कन्हो दिन छुट्टी के घला होथे । जब ले दुनिया म आहे तबले बिगन कन्हो आराम अऊ बिगन छुट्टी के ....... काम काम अऊ काम म लगे हे ...... बपरा मंगलू ...... । वहू दिन धोखा खागे । फेर हिम्मत नइ हारिस । रजिस्टेशन ले मिलइया मुफत के सुबिधा के लालच म दूसर दिन फेर पहुंचगे । बहुत मुस्किल से रजिस्टेशन करइया बाबू साहेब से मुलाकात होइस । बाबू साहेब हा मंगलू ला देखतेच साठ पूछ बइठिस के ..... तैं काये चीज के रजिस्टेशन कराये बर आये हस ? तैं हा अइसने फटेहाल चुसे शोषित दिखत हस । तोर देंहें अऊ हाव भाव ला देखके कन्हो भी जान डरही के तैं भारतीय अस । तोला कन्हो प्रमान के का आवसकता ........ ? तैं का करबे रजिस्टेशन करवाके .....  ?

                    मंगलू किथे –  हमर कस मनखे के हित बर रजिस्टेशन होवत हे .. सुनेव त महूं ... गाँव ले आगेंव बाबू साहेब । मोरो नाव म कुछु रजिस्टर्ड कर देते । बाबू पूछथे के ..... तोर नाव ला कामे रजिस्टर करँव ? तोला देख के कोन कही के .... तैंहा भारतीय नोहस कहिके ...... ? मंगलू पूछिस – मेंहा अपन नाव के रजिस्टेशन कराये बर थोरेन आहंव बाबू ..... । मेंहा न कन्हो जमीन जायदाद जगा भुंइया के रजिस्टेशन बर आये हँव ...... न नागरिकता के ........ न अऊ कहूँ बड़का चीज के ....... । मेंहा केवल अतके बर आये हँव के ...... मोर हिस्सा के रोटी ला मोर नाव म रजिस्टर्ड कर देवव ....... । मोर हिस्सा के रोटी ला हरेक दारी ... कौंरा ले नंगा लेथे बइरी मन ..... । मोरो नाव म एक बेर रोटी रजिस्टर्ड हो जतिस त ... महूं अपन दमखम ले अपन हांथ के रोटी ला कन्हो ला नँगावन नइ देतेंव । जे हांथ मोर रोटी कोती उठतिस तेला टोरेच के बइठारतेंव । बाबू साहेब हाँसिस अऊ किहीस – मुरूख मनखे ....... रोटी जइसे चीज के रजिस्ट्री मांगथस ....... तोला थोर बहुत शरम तको नइ लागे रे ...... । अपन नाव के रोटी रजिस्टर्ड कराये बर बड़का मनखे बने बर परथे ।

                    मंगलू किथे – बहुत बछर हो चुकिस बाबू साहेब .... हमन ला अइसन भुलियारत ...... । हमन बड़का नइ बन सकन तेला ... तहूँ जानत हस । फेर जब रजिस्टेशन के बात चलिच गेहे त मोरो प्रण हे ....... आज तो मेहा अपन नाव के रोटी रजिस्टर्ड करवइच के जाहूं । ओकर पिछू के लँभा लइन म .... काँव काँव होय लगिस । तब बाबू साहेब हा अपन साहेब तिर बिचार बिमर्स करे बर चल दिस । मौका के नजाकत ला देखत साहेब हा उपर फोन लगइस । उपरवाले किथे – सत्तर पछत्तर बछर पोहागे अब ये पार टरकाना बहुतेच मुस्किल हे । ओकर नाव ले जे चीज रजिस्टर्ड हे तेला देखा दे .... फेर कइसे देखाना हे ते बात के ध्यान राखे जाय । साहेब अऊ ओकर ले उपरवाले के बात ला .... इसारा म बाबू साहेब समझगे । मंगलू ला बाबू साहेब किथे – तोर नाव के चीज के रजिस्ट्री हो जही फेर ..... ओकर एवज म उपरवाले ला घला कुछु दे बर लागही । मंगलू किथे – मोर तिर फूटी कउड़ी निये । में कायेच ला दे डरहूं तेमा ..... ? बाबू किथे – उपर म रहवइया मन .... तोर नाव म पहिली भी बहुत अकन चीज ला फोकट म रजिस्टर्ड कर चुके हे ... फेर ये पइत ..... बिगन बदला के नइ देवय । ओला सिर्फ अपन बोट ला सौंप दे .... । तोर नाव ले रजिस्टर्ड चीज ला देखा दिये जाही ।  

                    मंगलू जानना चहिस के ..... ओकर नाव म काये काये चीज रजिस्टर्ड हे । बाबू साहेब हा फाइल खोल के ऊँकर नाव ले रजिस्टर्ड जम्मो चीज के मालिकाना हक के कागजात निकालिस । अतेक लँभा लिस्ट देखके ..... बिगन परखे .... बिगन आकब करे ...... मंगलू कस जम्मो जनता हा .... ओतके बेर अपन बोट ला उपर वाले मनखे के नाव कर दिस । बदला म ओतके बेर .... भूख .. गरीबी .. बेकारी ... तंगहाली अऊ शोषण के .... मालिकाना हक के कागजात पागे । सरकारी भाखा ला नइ समझ सकइया अपढ़ गँवार मंगलू ..... एक बेर फेर चुचुवागे । अतेक अकन समान के मालिकाना हक ला ढोवत .... समयपूर्व बुढ़ापा ला गिफ्ट मा पाके ..... कनिहा कूबड़ टूटे लगिस । अभू घला ओकर नाव के रोटी हा ...... दूसर के पेट म खुसरके छटपटावत हे ........ अऊ मंगलू बुधारू मन ..... अपन नाव के रजिस्टर्ड रोटी के तलास म  ............ ।  

  हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा .

No comments:

Post a Comment