Saturday 29 January 2022

डायरी

 23 जनवरी 2022 दिन इतवार 

                                                                       बिहनिया 9 बजे 

  आज नेता जी के दिन आय ...अभियो नेता जी कहे ले एके झन मनसे के सुरता आथे जेला हम सबो झन सुभाष चंद्र बोस के नांव से जानथन । डायरी अउ कलम दुनों तो मोला अगोरत रहिथें ..समय सुजोग मिलथे त कुछु काहीं लिखथंव जी ...थोरकुन पढ़े लिखे के बान तो  लइकाई च ले पर गए हे न ..।  अक्षर ज्ञान होए के बाद तो सबो झन ल पढ़े आइ जाथे उही जेला साक्षर होना कहिथें फेर पढ़ना घलाय हर एक ठन कला तो आय जेला साधे बर परथे एकरो ले बड़े बात के मन मं विचार आथे पढ़ना काबर , कब , कइसे अउ का पढ़ना चाही जेहर गहन गंभीर अध्ययन के रुप लेहे सकय ...। 

     सुरता आवत हे स्कूल मं जब " नेता जी के तुलादान " कविता पढ़ेवं तभे उंकर बारे में अउ जादा जाने के मन लगिस ...त श्री कृष्ण सरल के लिखे सुभाष चन्द्र बोस , सुभाष चन्द्र की दृष्टि में स्वतंत्रता , चंद्रशेखर आजाद किताब मन ल पढ़ेवं अउ कुछु पढ़े के मन होए लागिस । 

नेहरू पुस्तकालय जांजगीर ले भैया दू ठन किताब लानिन पहिली " एक भारतीय यात्री " (एन इंडियन पिलिग्रिम ) दूसर भारत का संघर्ष ( द इंडियन स्ट्रगल ) दूनों किताब अंग्रेजी मं लिखे हें सुभाष चन्द्र बोस ...मोला तो ये किताब मन नेता जी के आत्मकथा असन लगिन । उन लिखे हें " अपनी ताकत पर भरोसा रखो , उधार की ताकत घातक होती है । " आज गुनत हंव ओ समय तो मोला राजनीति , क्रांति , साम्राज्यवाद , समाजवाद , हिंसा , अहिंसा असन विषय मन समझे च मं नइ आवत रहिन ...। अकबका के फेर श्री कृष्ण सरल के सरन परेवं तब चिटिकन सुराहा मिलिस । ठीक तो आय सुभाष चंद्र बोस तो हिंसावादी रहिबे नइ करिन उन तो ब्रिटिश साम्राज्यवाद से बल्कि कहिन त विश्व साम्राज्यवाद से संसार के सबो देश राज के सबो मनसे के रक्षा करना चाहत रहिन जेकर बर जरूरत परे मं हथियार उठाना , लड़ाई करना ल वाजिब समझत रहिन । तभे तो कांग्रेस से मोहभंग होइस त 16 मार्च 1939 के दिन इस्तीफा दे दिन । आजाद हिंद सेना के गठन , स्थापना तो सन् 1943 मं करे रहिन । ठीके कहिथें के श्री कृष्ण सरल अपन लेखन से क्रांतिकारी , देशभक्त मन ल सबले जादा श्रद्धाजंलि देहे हें ...उही जेला हमन आखर के अरघ कहिथन । 

   अउ सुरता आवत हे उही समय भैया के किताब वाला आल्मारी मं ख़ाकी जिल्द वाला मंझोलन अकार के पुस्तक रहिस " पथेर दावी " शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के बंगला भाषा मं लिखे किताब ...अभी हांसी आवत हे ओ दिन ललही बड़े नोनी मंझनिया ले भैंसा मुंधियार होवत तक पूरा किताब ल पढ़ी च डारिस ...का करवं ..आल्मारी मं किताब ल रखना भी तो रहिस दूसर डर के मां , काकी , बड़े फूफू कोनो देख डारतिन त पढ़न्तिन नोनी ल गारी खाए ले कोन बंहचातिस ? आज गुनत हंव पथेर दावी के प्रकाशन तो सन् 1926 मं होए रहिस त फेर उपन्यास के पात्र डॉक्टर सव्यसाची के चरित्र चित्रण हर दूरदृष्टि वाला  , क्रांतिकारी के रुप मं अतका सटीक कइसे हे ? 

 दूसर बात के पथेरदावी तो एक ठन विप्लवकारी संगठन के नांव रहिस मनसे के नांव थोरे रहिस ? तीसर बात के सव्यसाची हर घलाय तो स्वामी विवेकानन्द अउ अरविंद घोष के विचार मन ल जानय , मानय , समझय । नेता जी असन ओहू हर महात्मा गांघी ल राष्ट्रपिता कहय त रवींद्र नाथ ठाकुर संग सलाह मशविरा , देश के दशा उपर बातचीत करयं । मोला लगते इही सब के चलते शरत बाबू के पथेरदावी ल ओ समय के ब्रिटिश सरकार हर ज़ब्त कर देहे रहिस । 

अतका जरुर हे उपन्यासकार रोचकता बढ़ाये बर ही भारती अउ सुमित्रा असन नारी पात्र ल जघा देहे हंवय एकर फायदा ए होइस के सव्यसाची के सुदृढ मनोबल , अटूट अडिग देशप्रेम वाला चरित्र हर पुन्नी कस चंदा जग जग ले अंजोरी बगरा देहे हे । 

उन भारती से कहे हें " राज करने के लोभ से जिन लोगों ने देश में मनुष्य कहने लायक दस , पांच मनुष्य भी नहीं छोड़ा है , उन लोगों को मैं कभी क्षमा नहीं कर सकता । विदेशी हुकूमत का मुझसे बड़ा शत्रु कोई दूसरा नहीं हो सकता । " 

तलवलकर , गाड़ीवाला , पगला बइहा के रूप धरे बेहाला बजानेवाला , अपूर्व जेहर बढ़िया तनखा वाला नौकरी पाए के लोभ मं संगठन संग गद्दारी करथे अइसन मनसे मन ही ओ समय देशभक्त मन के चारी चुगली सरकार तिरन करत रहिन । सव्यसाची कहिथें ए पराधीन देश के फुटहा करम आय के इहां विभीषण , जयचंद , दाहिर असन मनसे सबो जुग मं होवत आए हें । 

पथेरदावी के संकल्प रहिस हे जल्दी से जल्दी देश ल स्वाधीन बनाना ...अउ नेता जी भी तो कहे रहिन " चलो दिल्ली ...तुम मुझे खून दो , मैं तुम्हें आजादी दूंगा । " 

    पथेरदावी के दरकना हर सव्यसाची ल निराश तो करबे च  करीस तभे तो उन बिरबिट कारी रात मं अहोधार बरसत पानी मं भरोसेदार गाड़ीवाला के सहायता से बर्मा चल दिहिन , गुनिन होहीं नवा पथ के दावेदार के संग़ठन करके देश ल आजाद कराए के सपना ल तो पूरा करे च बर परही ...। 

   पूरा शरत साहित्य डहर नज़र डारिन त पाबो के ये उपन्यास हर लीक से हट के , अनमोल हे । 

सहित्यकार तो युगसृष्टा , युगदृष्टा होबे करथे तभे तो ये उपन्यास ल पढ़े के बाद अभियो मोला डॉक्टर सव्यसाची मं नेता जी सुभाष चंद्र बोस दिखथें । 

  आज तो देश पराक्रम दिवस के ओढ़र मं नेता जी ल ही सुरता करत हे , बड़ खुशी के बात आय ।  अब ए उम्मर मं मोर सुभाव तो बदलही नहीं तभे तो मैं किताब मन के सुरता करत हंव ..। रात पहावत हे , डायरी कलम बंद करके नींद के हांथ पांव जोरे बर परही ...नहीं त नींद के का ठिकाना रात जागा पाखी ( उल्लू ) समझ के खिड़की ले झांक के भाग पराही । 

     सरला शर्मा

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