Friday 14 January 2022

कहानी- नजरिया

 नजरिया 


          बहुत समे के पाछू अपन गाँव गे रेहेंव । जावत ले मुंधियार होगे रिहिस । जाते साठ हाथ गोड़ धो के जइसे अँगना म बइठेंव तइसने म .. हमर परोसी पहटिया कका हा भेंट मुलाखात बर पहुँचगे । गाँव के सबो हालचाल ओकरे ले जब आवँव तब .. घर बइठे मिल जाय । यहू दारी कका ले हमर गाँव के किस्सा सुने ला मिल गिस । कका हा बतावत रहय के गाँव म सब तो बने हे बाबू फेर अभी अभी एक ठन दुख के घटना घटगे । में अकबकाके पूछेंव – का होगे कका ? कका बतइस – लोकतंत्र मरगे किथे गा । में केहेंव – अरे .. कहीं बीमार विमार रिहिस तेमा गा ? कका किथे – नइ जानव बाबू । फेर सरपंच हा कालीचे गाँव के सार्वजनिक सभा म कहत रिहीस के हमर लोकतंत्र जबर मजबूत हे येला कन्हो कतको प्रयास कर लेवय .. नकसान नइ पहुँचा सकय .. । अभी उदुपले मरगे सुनेंव .. त थोकिन सुकुरदुम होगेंव .. अतेक सांगर मोंगर हा कइसे मरगे ते .. बड़ अजगुत लागिस बेटा । में पूछ पारेंव – काकर घर के बात आय गा तेमा ? कति मेर रहत रिहिस ओहा .. । तभे घर म निंगत सुंदरू नऊ ममा हा कहन लागिस – नइ जाने गा पहटिया हा ... । सुंदरू ममा हा .. पहटिया कका कोति मुखातिब होके केहे लगिस - काँही ला जानस न तानस अऊ फलल फलल मार देथस । कति मेर मरे हे तेमा बता भलुक । कका किथे – वा अभीच्चे सुने हँव गा .. तभे तो बतावत हँव । बीते बछर जे लइका हा सरपंच के चुनाव हारे रिहीस तिही छोकरा हा .. गाँव के बीचों बीच ठड़े होके चिचिया चिचियाके बतावत कहत रिहिस के .. सरपंच के गदहा टुरा जेहा गांधी डिवीजन म बारहवीं पास होय हे तेहा गुरूजी बनगे अऊ ओकर बनिहार के लइका जेहा बारहवीं से लेके एमे ले ओमे तक अव्वल नम्बर म पास होय हे तेहा .. उही स्कूल म चपरासी बनगे । अतेक अन्याय होवत हे .. गऊकिन .. लोकतंत्र मरगे .. । 

          सुंदरू ममा हा जोर से हाँसिस अऊ किहीस – सरपंच हा .. फोकट बर अतेक पइसा खरचा करके सरपंच थोरेन बने हे तेमा । बपरा हा विधायक साहेब ला घला अपन पइसा अऊ जनबल के प्रभाव म जिताये रिहिस । त अतका तो ओकरो हक बनथे के ओकर बदला म कुछ वहू ला मिलय । येकरे सेती विधायक साहेब हा अपन नेता ला बोलके .. सरपंच के बेटा ला गुरूजी के नौकरी देवइस हे । लोकतंत्र मर जतिस त गरीब के लइका ला नौकरी मिलतिस का तेमा ... ? नइ मरे हे बेटा लोकतंत्र हा .. जेला खुरसी म जगा नइ मिलिस .. जेला फायदा नइ मिलत हे तिही मन ... लोकतंत्र मरगे लोकतंत्र मरगे कहत ... फोकट चिचियावत हे । 


हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा .

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