Saturday 22 January 2022

छत्तीसगढी ब्यंग """देशी गदहा"""""

 छत्तीसगढी ब्यंग       

       """देशी गदहा"""""


         एक जमाना मा कोनो ला गदहा उपर बइठार के गली मा घुमावय तब वोला राष्ट्रीय स्तर के अपमान माने जाय। अब चतुर सियार मन गदहा मा चढके सम्मान के जगा मा पहुंचगे। भइया जी मॅय बात चौपाया गदहा के निही दुपाया गदहा के बात करत हवॅ। जे मन सावन भादो के हरियर चारा मा तको अघा नइ पावत हे। न पेट भर खावत हे। बस मिहनत अउ इमानदारी ला लादे बिकास के रद्दा मा बिन पनही के रेंगत हे। ये गदहा मन मूक बधिर बनके बेवस्था के मार अउ भार दुनो ला सहत हे। अउ आगू सहत रहीं। बेइमानी चोरी छल कपट दंड भेद के दाॅव खेलिन ओमन चतुर सियार असन  दरबार के हकदार होगे। काग भुसुंडी अउ सियार जइसे चलाकी  करिन अउ सिखिन ओमन प्रजातंत्र के जंगल मा राजगद्दी पागे। सही मायने मा देश भगत अउ राष्ट्रवादी  सोच वाले देशी गदहा हे ओमन भीड़ बढाय अउ वोट डारे भर के काम आवत हे। इही राष्ट्र वादी गदहा मन आज ले उॅकरे मन बर खुरसी खटिया जठावत हे। अति तो तब होथे जब राजधानी के कुकुर कोलिहा मन आथे तब इही देशी गदहा मन चिलचिलात घाम मा सुवागत बर माला धरके खड़े रथे। 

         गदहा मन परबुधिया होथे कि परबुधिया मन गदहा। सोध के बिषय हे। फेर बात सत्य हे कि दूनो मन एके हथे। कोनो मन चतुराई करत हन कहिके बड़े चतुरानंद मन के आगे पीछू होत रथे । फेर जेमन खाॅटी हे मुखौटा पहिरन नइ देवय। आदमी के स्वभाव मा अब पशुता के सबो गुन समावत हे। बड़ शान अउ साहस ले कोनो ला भी कहि देथन  कि वो तो निच्चट गदहा हे कहिके। फेर आप मनके जानकारी बर बता देथों कि गदहा समाज मा जब कोनो गदहा के आदत आचरण चाल चलन नीयत मा प्रदुसन आ जाथे। तब गारी के संबोधन देवत कथे ये नलायक हर बिलकुल आदमी हो गेहे। तभे समझ मा आ जाथे कि गदहा के नजर मा आदमी बर कतका सम्मान हे तेहा। पशु मन ला बिन मुंहूं के जानवार कथे। ये मन ला नाॅगर फाॅद चाहे बोजहा लाद अपन करतब ले पीछू नइ हटे। ये मन काम के बेरा काम के बाकी बेरा बेकाम अउ बेकार रथे। वो देशी गदहा ला अतको मालूम नइये कि रैली जूलुस दंगा के दलदल मा ढकेल के अपन फायदा बर ही उपयोग करथे। इंकर मनके  फसाद मा चपका के मरगेस त काठी कफन के लाईक मुआवजा नइ मिले। उप्पर ले चतुरानंद मन मरे परे लाश मा राजनीतिक लाभ के चक्रब्यूह रचही। जब स्वभिमान गिरवी धरागे सतबुद्धि  सिरागे चलाक कॅऊवा अउ चतुर सियार मन पूरा तंत्र ला अपन हाथ मा तो लेबेच करही। 

         मनखे ला गदहा कहना जादा अपमान जनक तो नइये काबर कि वोला राष्ट्र वादी कहिके सम्मान तो देवत हवॅ। आखिर राष्ट्र निर्माण बर इंकरे पीठ हर तो काम आवत हे। जेमन इंकरे पीठ मा चढके परधान बनगे जनता ले जनार्दन आम ले खास होगे। आज हमर देशी गदहा मन अखंड भारत बर गीत लिखके उही मन ला सुनात हे जे मन कान मा ठेठी गोंजे हे। समय सॅग देशभक्ति अउ  राष्ट्रवादी के परिभाषा बदल गेहे। चाल चलन नियत मा चूना रंग चघा बइमानी झूठ धोखा के कंठी पहिर सिरिफ अउ सिरिफ दौलत बटोरे के जुगत मड़ा बेवस्था के डोंगा बोर विकास मे अड़ंगा डार बिपत्ती देश के रहय चाहे दुनिया के दिखावा के चार आॅसू बोहा तब कहि जा के तोर उपर तिरंगा के कफन चढ पाही। गदहा मन कब खीर खाइन होही भगवाने जाने। देश के अजादी के पहिली खाइन होही तेला नइ बता सकवॅ। सत्तर अस्सी साल ले तो दूबी चाॅटत देखत हन। आज हमर देश विकसित अउ विकास शील देश के बाजू मा खड़े हे। तब देशी गदहा मन के धरम अउ फरज होथे कि मही बासी खावत हन कहिके झन बतावय। तंगहाली मा जीयत हन भूख गरीबी पसरे हे कहिके रेंके ले देश के मान सम्मान उपर आॅच आथे। कोनो कोनो बिरोधी किसम के गदहा मन माईक धर के रेंक रेंक के जग जाहिर करत रथे। अजादी के लड़ाई मा गांधी बबा सॅग रेंगइया एक झन संग्रामी के मुंहूं मा माईक टेकाके एक झन अखबार वाले पूछ पारिस---------कस बबा अब हमर आजाद भारत हर कइसे लागत हे? ओ अतके किहिस-------बबा अउ ओकर पहरो म वन्दे मातरम् कहिके फाॅसी चढिन उप्पर ले देख के इही सोचत होही कि भारत ला अजाद करके जिंकर बर छोड़ेन वो मन सब गदहा निकलगे। एक तो गदहा पना ले गुलामी झेलेन । अउ अब हुंआ हुंआ करइया मन हाॅव हाॅव करत हे तिंकर मन के गुलामी करत हन। दूसर के सोच ला अपन सोच बनाके गदहा होय के परमाण देवत हन। सार बात ये हे कि हाथ पाॅव हर अजाद हे मन हर आज ले गुलाम ही हे। लोकतंत्र के फरिहर पानी ला जात धरम सम्प्रदाय अउ खसवाहा राजनीति के गोड़ मा मतलावत हे तेला देश भगत देशी गदहा मन सोसन भर पीयत हे। आज के दसा दुर्दसा ला देख के घलो पूछत हस तब तोर ले बड़े गदहा कोन हो सकथे। अउ अपन गदहा पन के साॅटीपिकट माईक धर के घुमत हस। 

        आने वाला पाॅच साल ले एको झन मत मरे एकर सेती जियाके पोस के राखथे। सोजहा गोठ मा हम पोसवा अउ पेट पोसवा गदहा आवन। न मर सकत हन न मोंटा सकत हन। अउ कहूं अपन दुखड़ा रोय त ओहू मा विरोध के साजिस दिखथे । अइसन हाल मा मुद्दा जस के तस। सदा सुखी उपाय इही हे कि एको झन मोटहा ठोसहा के झंडा ला धर उॅकर बिचार धारा ला पीठ मा लाद अउ नरी खोल के जयकारा लगा। तोर पीठ  देश के निर्माता मन बर काम आगे माने तैं राष्ट्रीय अउ देशी हरस। फेर आवस तो गदहा तभे देशी गदहा हावस।


राजकुमार चौधरी

टेड़ेसरा राजनादगाॅव🙏

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