Friday 14 January 2022

कहानी : घाव*

 *कहानी : घाव*

          

        बुढ़ापा के नींद छुछू-मुसुवा के थोरके खुसुर-मुसुर म उमच जथे। लइका मन के खुसुर-फुसुर तो भाबेच नइ करय। कभू-कभू तो बूढ़त काल के नींद कुकुर नींद सहीं जनाथे। जे एक कान ले अवइया-जवइया के पाँव के आरो भाँप लेथे। कुछु आरो आइस कि चट्टे नींद ले जाग जथे। अइसे तो बुढ़ापा ल कतकोन मन एक ठन बेमारी मानथें। जे न बरोबर पचोये बर जानय अउ न कोनो गोठ ल बने सहीं सुन पावय। रात-दिन जर-बुखार अउ पीरा म कलहरत रहिथे। फेर ए सब हर सोहागा डोकरी बर एकोच कनी फिट नइ बइठय। ओहर बड़ पातर कान वाली डोकरी आय। कान कइसे तीपथे तेला जानबेच नइ करय। जर-बुखार तो जइसे ओकर ले डर्रावत भागथे। .... फेर डोकरी ह खा पी के सुततिच, तहाँ कतको हुँत करा ले जागबे नइ करय, हरहिंछा सुतय। कोनो किसिम के संसोच नइ राहय। न कोनो काम बूता म जाय के संसो। न कखरो तियारी म राँधे गढ़े के संसो। वोहर दिन बुड़तिहा राँध गढ़ के लउहाकन खा डरथे, अउ जूठा-काठा ल बहार बटोर के हाँड़ी मन (सबो बरतन) ल धो-माँज डरथे। कतेक मार ओकर बरतन। एक ठन थारी, एक जोड़ी लोटा-गिलास अउ नानकन बाँगा-कराही। हब-हब माँज के खपल देथे। एती सरी गाँव ह जेवन करे बर बइठे रहिथें, उही अठबज्जी रतिहा सोहागा अपन ओढ़ना दसना दसा डरे रहिथे। गाँव के सोआ परे के बेरा म ओकर एक नींद तको हो जथे। घर के सींग दुआरी के कपाट ल ओधा के भीतरी कोती के दूनो सँकरी ल एक के ऊपर एक अरझा देथे, ओकर ऊप्पर तारा ल घलव ठेंस देथे। अइसे तो ओकर घर आजू-बाजू कोनो कोती ले कुकुर-माकर के खुसरे के कोनो रस्ता ए नइ हे। चोरी-हारी होय के तो बातेच छोड़ दव। एक तो एक झन मनखे, कतेक मार ओखर जिनीस, जेला कोनो चोर चोराही। ओ करमफुटहा चोर होही, जे ओखर घर चोराय बर जाही। वृद्धा पेंशन मिलथे तेकर ले नून, मिरचा अउ तेल बिसा लेथे। राशन कार्ड म मिलइया चाँउर के छोड़ डोकरी तिरन अइसे कुछु जिनिस तो नइ रहिस, जेकर ओहर संसो-फिकर करतिस। चोरी होय के डर तो एकोचकन नइ रहिस ओला। काहय घलव, "मोर घर चोर बर रखे च का हाबय, तेला चोर चोराही।" सिरतोन गोठ घलो आय। कागज पत्तर के नाँव म सिरिफ वृद्धापेंशन कारड, राशन कारड अउ आधार कारड के संग स्मार्ट कारड मन ल कमपापड़ के थइली म तीन चार पुरुत ले लपेट के बड़ जोगासन ले जुन्नटहा संदूक म धरे हवै।  ए संदूक ल पठौनी म धर के लाय रहिस। जनामना इही हर ओकर बर सब ले बड़े पूँजी आय। अइसे कहे जाय त ओकर बर कीमती जिनिसे आय। एकरे ले सरकारी सुविधा मन के फायदा जउन मिलना ए। ए योजना मन के छोड़ ओकर सुध लेवइया कोनो हे च कहाँ। ए योजना ले अतका कन चाउँर अउ पइसा मिल जथे कि ओहर न मोटावत हे अउ न दुबरावत हे। भगवान ल सोरियावत कहिथे, जेन दिन मोर काया थक जही, हाथ गोड़ जुवाप दे ल धरही तेन दिन कलेचुप ले जबे भगवान। चाउँर महीना के महीना बिसाथे अउ वृद्धापेंशन ल झोंके बर जाथे।... जिए के मोह ल कोन ह छोड़ पाय हे। अपन जान के मोह सबो ल रहिथे। इही मोह के डारा धरे धन दोगानी के लालच म कोनो मार धन दय कहिके सबो डर्राथें, इही डर आय जउन ह मनखे ल रतिहा भीतर डाहन सँकरी अरझा के तारा लगाय बर मजबूर करथे। तारा जउन चालीस रूपया के घलव नइ रहय, इही तारा कहूँ बाहिर सँकरी म लटकगे त सबो के मन म तारा लगा देथे। मन म लगइया अइसन तारा के कोनो कूची बजार म मिलबेच नइ करय। अउ जेकर सइता नइ रहय तेकर बर अभू तक अइसन कोनो तारा च नइ बने हे, जे उँकर ले नइ खुल सकही। 

      सोहागा राहय तेन ह मुँधरहा कुकरा बासत चरबज्जी के बेरा जाग जवय। ए अलगे बात आय कि गाँव म घला पहिली सहीं अब कुकरा नइ बासय। आज के नवा पीढ़ी घर म कुकरा-कुकरी पोसई ल नइच भावँय। कहे लगथे कि सगा पहुना के घर-दुआर म जगा-जगा कुकरी मन के चिरकई ह नइ फबहय। ओकर बस्सई कहूँ मेर जाय। कुकरी-छेरी पोसे घर के मुँहाटी म पाँव रखतेच साठ (बेरा/बखत) उँकर बास ले नाक मुँह अपने अपन सिकुड़े लागथे। मन तो नइ होवय वो घर के भीतर जाय के फेर ....।

       इहीच बात आय कि घर के मुरगी दार बरोबर ह अब सिरिफ हाना भर रहिगे हे। कोनो मेर सुने ल नइ मिलय। ए अलगे बात आय कि रोजेच घर म कराही भर कुकरी बोकरा चुरथे। कुकरी नइ त मछरी। अउ मछरी नइ त... नहीं नदान म सादा आलू दिखथेच। फेर कोनो दिन कराही ह ए मन के बिना तीपबे नइ करय। पारा भर म दू-चार घर ह आरुग राहत होही। आजकल के लइकामन बर तो इही मन चना चबेना होगे हवै। अंडा के चीला, करी अउ रोल खवई ह अब फैशन बरोबर होगे हे।

        सोहागा डोकरी बड़ सफईतिन... ओला घर दुआर म कचरा एकोच नइ भावय। कखरो घर जातिस अउ घर-अँगना म कचरा बगरे दिखतिस त तुरते बहिरी खोज के बाहरे बर भिंड़ जथे। बेरा उए के पहिली रोजेच अपन अँगना-परछी ल चुक-चुक ले गोबर म लीप डारथे। घर-मुँहाटी के गली ल खरहरा म मार खरहार के गोबर छिटा घलव दे डारथे। बाँचे-खुचे गोबर ल छेना थोप देथे। ओकर जिनगी के उल्टा गिनती शुरु होगे हावय। पाँच आगर तीन कोरी बछर ले ऊपर के होही। फेर ओकर बूढ़त तन के आगू अब के नोनी मन ओकर संग कोनो च बूता म नइ सकहीं। वो ह काम बूता ले जी नइ चोरावय, अउ न जिनगी भर कभू चोराइस। एक ठन बात इहू हावय कि मरे-जिए बर एके झन बाँच गे हवय। अइसन म तीन कुरिया के पुरखौती घर म रहिके भला काकर भरोसा करही अउ काकर हिजगा करही। गँवई गाँव म किराया म रहवइया घलो तो नइ मिलय। कोनो ल मुँहाचाही बर रख लेतिस त। अपन डोकरा संग जाँगर टोर कमा के एकलउता बेटा ल पढ़ाइन लिखाइन अउ पुरखौती जिनीस ल बेच पढ़ाय बर कोनो कमी नइ करिन। जब काहय जतका काहय ततका पइसा बेटा ल देवत गिन। दूनो परानी अप्पढ़ रहिन, फेर उँकर एके सपना रहिस कि बेटा पढ़ लिख के साहेब बनय। बेटा पढ़िस लिखिस अउ शहर चल दिस। का करथे तउनो खबर नइ हे? उहें बस गे, अउ उहें के पुरती रहिगे। लहुट के नइ निहारिस दाई ददा ल। कइसन मन ले संगति हे, तेकरो पता नइ हे। शहर जा के परबुधिया जउन होगे। बेटा के मुँह फेरे ले डोकरा संसो के गहिर दाहरा म बूड़गे अउ एक दिन डोकरी ल दुनिया म अकेल्ला छोड़ के सरग सिधार गिस। बेटा ह बहू अउ नाती संग दसकरम निपटा के तुरते अपन शहर लहुट गिस। डोकरी ल अकेल्ला छोड़ दिस। डोकरी ल एक भाखा पूछिस घलव नहीं कि संग म जाबे दाई कहिके। नेरवा गड़े ए भुइयाँ म ओकर कुछु नइ हे, कहे बरोबर। पढ़ लिख के माटी अउ महतारी के करजा ल भुला गे। जउन करजा ले मनखे कभू नइ उतरय (उऋण नइ हो सकय)। ददा ह बहू के हाथ के राँधे खाय के अधूरा साध के संग सरग सिधार गे। बेटा के बिहाव ल नइ जानिस। जात सगा बाहिर बिहाव करे रिहिस, त कोन मुँह ले बतातिस। जे ल आज के पीढ़ी प्रेम विवाह कहिथे। सोहागा अपन घर म निराशा के अँधियारी म आस के दीया बारे अपन जिनगी जिए लगिस। 

          उमर भर कभू काकरो चारी-चुगरी नइ जानिस। पारा-परोसिन मन घलव ओकर ले बनेच खुश राहय। सोहागा घलव मन के सफ्फा रहिस। कोनोच कभू ओकर कोनो बात के रिस नइ करिन। सोहागा घलव काकरो कोनो गोठ-बात ल गँठिया के नइ धरिस। परोसिन मन गोठियावँय घलव, "डोकरी के एक कप चहा पिए ले, हमर बर चाय कमतिया नइ जय।'' परोसिन मन अपन लइका मन ले बुलवा के सोहागा ल चहा दे देवत रहिन। सोहागा अपन घर म कभू चहा नइ बनाइस। 

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           पंदरा दिन होगे, सोहागा बड़ मगन हे। मगन काबर नइ रइही। नाती-नतरा मन संग खेले अउ खेलाय के साध कोन ल नइ राहय। आज सोहागा के ए साध ह पूरा होवत हे। ओकर सुन्ना अँगना म लइका मन के चिहुर सुनावत हे। चार पाँच बछर बीते पाछू बेटा बहू मन घर आय हवँय। नाती संग बेटा-बहू ल घर आय पँदरही होगे हवय। तिर तखार के लइका मन ओकर नाती संग ओकरे अँगना म खेले बर आवत रहिन। सोहागा के मया ह नाती बर नदिया के पूरा कस छलकत राहय। सोहागा ह पाछू बेरा के जम्मो दुख पीरा ल बिसरा डरिस। समे के संग जिनगी के सबो घाव भरे लगथे। इही समे ल बेटा बहू लेके आँय हवँय। बेटा बहू के आय ले ओकर जुन्ना घाव म मरहम लगगे। ओकर अकेल्लापन ह मिटगे। दिन भर बने-बने बीत जाय। फेर रतिहा एक्के ठन पीरा ह ओला तरी-तरी घुना कस खाय लगिस। मनेमन सोहागा सोचे लागय, - 'कोन जनी कतेक दिन बर आय हे ते। कहूँ फेर लहुट के...चल दिही...। मँय ..फेर अकेल्ला....। महूँ ल संगे म ...।' ओकर मन म आनी-बानी के बड़ोरा उठत रहिस। मन थीर बाँह नइ धरत रहिस। 

           अभी अठुरिया बीते पाय रहिस हे, जब पारा परोस के लइकामन ओकर नाती संग मन भर खेले लगे रिहिन। अचकहा कोन जनी अइसन का होइस, ते दू दिन ले ओकर घर कोनो नइच आइन। सोहागा गुने धर लिस, कोनो झगरा न लड़ई फेर का होगे? लइकामन काबर नइ आवत हें? लइकामन ल हुत करावत बाहिर निकलिस त परोसिन के बहू ह मुँह अइँठत अपन घर के भीतरी डहन खुसर गिस। जउन ह काकी कहत साग निमेरे बर देत राहय। चहा देवइया बिटावन ह ओला देखतेच साठ अपन डेरउठी के कपाट ल भड़भड़ ले बंद कर दिस। सबो करु करु करे लगिन। कोनो ले कुछु पूछ पातिस तेकर पहिलीच ओकर आगू पुलिस के गाड़ी खड़ा होइस। अउ  चार झिन पुलिस उतरिन। पुलिस वाला मन ओला फोटू दिखावत पूछिस- ए ला चिह्नथव का? सोहागा अपन बेटा ल चिह्नी कइसे नहीं। तब ले पुलिस वाले ले पूछे लगिस, का बात आय? काबर पूछत हव? कोन आय ए हर? पुलिस वाला मन कहिन एहर नक्सली मन के गिरोह के सरगना आय। हमन ल एकर तलाश हे? हम ल खबर मिले हे कि ओहर इही गाँव म लुकाय हे। अइसन काहत एक झिन पुलिस वाला ह अखबार म छपे फोटू दिखाइस। सोहागा नक्सली नाँव सुनतेच साठ... नक्सली...मोर ...बेटा...नक्सली काहत बिचेत होके गिर गिस।

पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह (पलारी)

9977252202

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