Saturday 8 January 2022

केंवची कांदा* ------------------

  रामनाथ साहू: -

          *( छत्तीसगढ़ी कहानी )*


                 *केंवची कांदा*

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                           *1.*


"सरपंच बने के बाद छह महीना  तक ल  ये नावा सरपंच समेलाल हर बने रहिस । वोकर बाद वोकर म कार्बन आय के शुरू हो गय भई...! "

"कइसे का हो गय जी ?"

"का का ल बताबे ?"

"अरे तभो ले भी ?" 

"तँय नई हावस का वोकर परजा... जइसन वो कहत रइथे आजकल अउ अउ कुछु सुने हस...तँय?"

"अरे बने फरिया के परच्छर बता धंधा कस झन जनवा !"

"केंवची कांदा... दु -चार के छोड़ बाकी सब मन  वोकर आगू म केंवची कांदा आंय ।... अउ केंवची कांदा के कईसन मुँहू जी ?"


          रात के अंधियार म मुँहरन तो नई दिखत ये कि येमन कोन कोन गोठियात हांवे अइसन फेर अवाज ल लखे ल लागत हे उदल    अउ बृज लाल आंय ये दुनो झन...कोसमलाल अइसन गुनिस । फेर वोकर जी म डर पेल दिस। ये तो राजद्रोह आय ! राजा के खिलाफ कुछु कहना हर राजद्रोह नई होइस त काय ये ।सरपंच माने अभी के राजा । वोकर खिलाफ कुछु बोलइ माने सफा सफा राजद्रोह !अउ राजद्रोह के सजा कुछु भी हो सकत हे...


                          *2.*


                 परेमा सियानीन  एक हाथ म अपन लउठी अउ दूसर हाथ म पीतल बाल्टी म असनाने के तेल -साबुन ल धर के नहाय के नांव म निकल गय हे। वोकर बर नहाय जवई माने पूरा जुआर भर के बुता आय । दु तीन बईठान म वो तरिया के वो मुड़ी म पहुँचही जिंहा नहाय बर बहुत पहिली के बने पचरी हे अउ ठीक अइसन करत वोहर वापिस फिरही ।आज तो घर तीर ल आत वोला चक्कर असन आ गय रहिस ।येला देखके वोकर लइका बंशी लाल कउआ गय रहिस । 

   

             आठ -चार दिन के गय ल वोला पता चलिस कि गांव सरपंच हर तरिया म नहाय बर पचरी बनवाने वाला हे अउ वोहर जुन्ना पचरी ले सटा के ये नावा पचरी ल बनवात हे ।


               ये पारा के मनखे येला सुनके तुरनतेच जुरिया गिन । बैठक  हो गय ।चला जाके कहा जाय सरपंच ल । वोहर ये पचरी ल तरिया के ये मुड़ा म बनवाय । अरे वो कोती नावा -जुन्ना जइसन भी हे पचरी नहाय धोय बर तो होइबे करिस न । ये कहाँ के न्याय ये कि मेखा उपर मेखा ठेंस । मनखे मन जुरिया के गईंन घलव । सरपंच हर हूँ हाँ कूँ काँ कुछु नई करिस अउ जउन करिस वोहर वोकर मन मरजी से होइस । जउन जगहा म तुरत ताही पचरी के जरूरत नई रहिस ,तउन जगहा म पचरी बन गय ।मनखे मन कहिंन -यह तो पूरा के पूरा भेदभाव ये। येहर तो भरे हे तेला भरदे अउ जुच्छा ल ढरका दे असन गोठ हो गय ।


               तरिया के ये पार के मनखे मन अब ले भी वो पार नहाय बर जात रहिन । फेर वोमन के मन म ये बात हर तो घर कर गिस कि जउन भी होवत हे तेहर सबके मन के नई होइस । अकेला जउन चाहत हे वो भर होवत हे।


              अउ पांच साल ल वोहर जइसन चाहिस वइसन होइस । वो हर सब जुन्ना मन ल नावा बना दिस अउ सब नावा ल जुन्ना । अउ का कहे जाय ? सब विरोधी मन ल टोर दिस कि सरिया के अपन कोती मिला लिस , सबो भेवा करके । जउन मन साम म मानिन तउन मन ल साम म , जउन मन इकन्नी - दुअन्नी खोजिन, तउन मन ल दाम म , दण्ड हर  तो सधारण बात रहिस,नहीं त भेद हर तो रईबे करिस ।सब निबट गईंन , फेर एक बाँच गय रहिस...वो  रहिस वंशी  !


    सरपंच समेलाल ल वोकर परामर्शदाता मण्डल मन वंशी के बात बताईंन ।वोकर अब ले  भी नई मिंझरे के गोठ गोठियाइन, तब सरपंच समेलाल कहिस - वो वंशी केंवची कांदा ! अउ केंवची कांदा के का...?


 


                            *3.*


        संजोग अइसन ...ये पईत फेर सरपंची बर समेलाल ल फारम भरत बन गय ।लाटरी सिस्टम ले अनारक्षित हो गय रहिस ये पद हर । समेलाल घलव एइच ल चाहत रहिस ।


         बाजा -रुंजी घिड़कात वोकर फारम भरिस । का जुलूस...देखे के लइक ! चुनाव होवत रहिस ।  देखे के लइक खरचा ,खाय के लइक खरचा, पिये के लइक खरचा सबो होवत रहिस ।


             चुनाव परिणाम आइस । समेलाल एक वोट ल हार गय रहिस ।


           केंवची कांदा के घलव बड़ ताकत हे इहाँ... !



*रामनाथ साहू*

*देवरघटा ( डभरा )*

*जिला -जांजगीर

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समीक्षा

 पोखनलाल जायसवाल: 

कोनो होवय पद पा के तुरते पद के रकम न नइ जाने। दू-चार महीना के बीते ले जब पद के रंग चढ़थे, तब टेटका सही अपन रंग बदले लगथे। अउ जब रंग पूरा चढ़ जथे, कोनो ल नइ घेपय, अइसन म जगा जगा ओकर विरोधी बनबे करथे। अउ ये पद कहूँ चुनई ले मिले पद के होगे, त सबे अपन रोटी सेंके के मउका देखथें। फेर यहू गोठबात रहिथे कि पानी म रहिके मगर ले बइर कइसे करे जाय? डर चाहे कुछु के हो मन म रहिबे करथे। आखिर जेकर हाथ म लाठी रइही, तउने तो भँइस ल हाँकत ले जथे। कतको मन इही डर म अपन मन के भेद (भाव) ल अपने अंतस ले बाहिर नइ आवन दय। अउ विरोध के आगी ल भीतरे -भीतर गुंगवान देथे, सुलगन देथे, सिपचन देथे, अउ मउका पाके उही ह भभकथे। 

       जनता के वोट ले पद पाय के पाछू जेन जनता जनार्दन के हित ल नजरअंदाज करथे अउ मनमानी करथे वो चरदिनियच आय। फेर पद के घमंड म ए बात ल बिसार दे रहिथे। यहू भुला जा रहिथे कि दुबारा इही जनता जनार्दन ले आगू अउ हाथ जोरे ल परही। 

       लाठी के जोर कतेक दिन ले चलही। कपसे मनखे घलव मउका मिलतेच दूसर रस्ता चल देथे। 

         ताकत के जोर म कोनो ल कमती आँकना बने नोहय। जेन ल कमती आँके जाथे उही ह भारी पड़ जथे। अउ घमंड के घर ल एक दिन खाली तो होनच रहिथे। अउ एक वोट ले हार इही  बात के इशारा आय।

         इही सब ल लेके लिखे कहानी केंवची काँदा बड़ सुग्घर हे। पात्र मन अपने चिन्हें पहिचाने सहीं लगथे। गोठ बात अउ चित्रण आँखीं-आँखीं म झूल जथे। अइसे नइ लागय कि मन के कलपना आय। भाषा म सरलता अउ सहजता हे।

       एक आम आदमी के डर ल देखव -

ये तो राजद्रोह आय। राजा के खिलाफ कुछु....। सरपंच माने अभी के राजा।....राजद्रोह के सजा कुछु भी हो सकत हे।

        ए अभिव्यक्ति के अधिकार के हनन के विरुद्ध जनता के गहिर पीरा आय, जेन ल कहानीकार उभारे के कोशिश करे हे। अउ ताना घलव मारे हे, जनाथे। 

       केंवची काँदा ले बढ़िया ए कहानी के अउ आने शीर्षक नइच हो सकय। जेन काँदा केंवची रहिथे ओकर ले नवा अउ सजोर पउधा नइ उपजय के मानता हे। फेर वंशी केंवची काँदा होके घलव जोर लगाइस अउ जनता के ताकत बन समेलाल सहीं समाज ल बँटइया नेता ल दिन म तारा दिखा दिस।

       जनता जनार्दन के दुःख पीरा ले जुरे अइसन कहानी पाठक ल खच्चित पढ़ना चाही।

        आम आदमी के हित बर दिशा देवत कहानी लिखे बर रामनाथ साहू जी ल बधाई।


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी

9977252202

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