*// पूस के जाड़,किनकिनाथे हाड़ //*
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*" पूस के दिन ठूस ले ! पूस के जाड़ किनकिनाथे हाड़ !"*
*हिन्दू पंचांग के अनुसार पुष्य नक्षत्र में पौष (पूस) महीना साल गणना के दसवां क्रम (दिसंबर-जनवरी) में होथे | पूस के जाड़ ह "चना-चबेना दांत किटकिटाऊल होथे" |*
*जाड़ के भरे जवानी (२५ दिसंबर ले २५ जनवरी के दरम्यान) म कहूं पछुवा/चक्रवाती हवा ले झोर-झोर के बारीस हो जाथे,तब तो जाड़ अउ भयानक हो जाथे ! "देंह-हाथ तो ठिठुरबेच करथे, हाड़ा किनकिनाय लगथे !"*
*एही दरम्यान गली-खोर के कोंटा या कोठार-बयारा के पैरा तिर म जन्मे नान-नान पिल्ला के कंपकपी ला देख के कविता,लेख स्वमेव निकले लागथे ! अत्तेक असहनीय जाड़ ले मनखे मन गरम ओढ़ना ओढ़ के या भुर्री/अलाव ताप के बचाव कर लेथैं,लेकिन छोटे-छोटे जीव-जंतु, पशु-पक्षी के हालत खूब दयनीय हो जाथे ! धन्य हे ! महतारी के अगाध-अपार मया-दुलार ! कईसनो करके महतारी कुतिया,बिल्ली मन अपन पिल्ला के रक्षा करते रहिथैं !*
* *खेत-खार म बूता करैया किसान,बनिहार अउ कल-कारखाना म काम करैया मजदूर मन साल के दसों महीना रोज तलाब-नदिया म तीन बेर हिलखोर के नहाथैं, फेर पूस-माघ के ठिठुरती जाड़ म ऊंकरो हिम्मत जवाब दे देथै ! जाड़ के भयानक असर अत्तेक रहिथै - "रात म पेशाब करे जाय के हिम्मत नइ होवय ! बड़े भिनसार ले जंगल,भांठा,तलाब-नदिया डहर कभू मल त्याग बर जाना मजबूरी हो जाथे, तब मल त्याग के बाद तलाब-नदिया के बर्फीला पानी म धोना अब्बड़ेच मुश्किल हो जाथे !"*
*पूस के रात म ३-४ बजे धान मिसाई बर जब दौरी फांद के बैला हंकालत रहेन, तब जाड़ के भयानकता अकथनीय रहय ! अईसे लागय " जाना गोड़-हाथ है ही नहीं "! एकदम ठिठुर के शून्य हो जावत रहिस ! तब बेलन फांद के धान मिसाई करत रहेन | अब थ्रेसर, हार्वेस्टर के आविष्कार हो गे, धान मिसाई बर किसान मन ला जादा तकलीफ नइ होवय |*
*अहातरा जाड़ म बड़े बिहान ले हाथ-मुंह धोय के हिम्मत नइ होवय, फेर धन्य हे ! ओ मजदूर-किसान भाई-बहिनी मन ला जऊन रवि फसल बर ऊवत ले बूड़त तक माड़ी भर चिखला म रोपा लगाथैं ! रोपा लगैयन ओ भाई-बहनी मन ला सौ-सौ बार प्रंणाम !"*
*जाड़ के संबंध म छत्तीसगढ़ी हाना हवय -*
*लईकन ला छूवंव नहीं*
*जवान मन ला छेड़ौ नहीं*
*सियनहा मन ला छोड़ौं नहीं*
*सिरतोन म ये कनकनी जाड़ ह सियनहा मन ला अब्बड़ेच आफत करथे ! तेकरे सेती ये बखत बबा-बूढ़ी दाई,दादा-दादी, नाना-नानी के खूब तोरा-जतन अउ सेवा करना जरूरी होथे !*
* *अत्तेक ठिठुरती जाड़ म बड़े भिनसार उठ के टठिया बर्तन मंजैया, झाड़ू-पोंछा करैया,गली-खोर ला बुहार के गोबर पानी म छरा-छिंटका करैया जम्मो दाई-बहिनी मन ला खूब आदर पूर्वक जोहार पांयलागी करत हवंव !*
* *अत्तेक जाड़ म बड़े भिनसार ले उठ के नगर पालिका,नगर निगम म झाड़ू करैया जम्मो स्वीपर दाई,भाई मन ला जोहार पांयलागी अउ साधुवाद देवत हौं,जिंकर साफ-सफाई करे ले हमर तन-मन स्वस्थ रहिथै !"*
* *अत्तेक कनकनी जाड़ म नगर पालिका, नगर निगम म ईमानदारी पूर्वक रात भर ड्यूटी करके हमर जान-माल के रक्षा करैया जम्मो होम गार्ड अउ पुलिस दल ला खूब आदर पूर्वक जोहार पांयलागी करत हौं !"*
*शून्य अंश सेंटीग्रेड से भी माईनस १०-१५ सेंटीग्रेड म लद्दाख, सियाचीन भारत-पाकिस्तान,भारत-चीन सीमा म अपन सर्वस्व न्यौछावर करके देस सेवा म समर्पित जम्मो सैनिक, पदाधिकारी मन ला सब ले जादा आत्मीय श्रद्धा भाव से अभिनंदन,वंदन,जोहार पांयलागी करत हौं !*
*अंत में जईसे सब ऋतु अपन-अपन निर्धारित समय म अपन-अपन जवानी के असर दिखाथैं, जऊन हमर जीवन चक्र बर परम जरूरी भी हवय | जेठ-बैसाख के घाम म सूरूज देवता ह जम्मो नदिया,तरिया अउ समुंदर के पानी ला वाष्पीकृत करके भाप बना के वायुमंडल म संचित करथे,फेर अषाढ़-सावन म ओही वाष्पीकृत भाप ह मानसूनी हवा द्वारा धरती माता के प्यास बुझाथे,जम्मो किसान भाई मन अन्न अपजाथैं,फेर सारी जीव-जंतु के भरण-पोषण होथे | तईसनेच ये जाड़ के महीना ह घलो हमर पेट के जठराग्नि ला मजबूत करथे, खूब सुग्घर-सुग्घर हरा साग-भाजी खाय बर मिलथे,हमर शरीर ह बारहों महीना म ये अगहन,पूस,माघ महीना म सब ले जादा स्वस्थ, हृष्ट-पुष्ट रहिथै,तेकरे सेती "ये खूब जाड़ के महीना" ला भी अभिनन्दन,वंदन, जोहार पांयलागी करत हौं !*
*जाड़ महीना म खूब योगा करो,स्वस्थ रहो, तंदुरुस्त रहो*
आपके अपनेच संगवारी
*गया प्रसाद साहू*
"रतनपुरिहा"
*प्रादेशिक महासचिव*
कला परंपरा-कला बिरादरी संस्थान छत्तीसगढ
मु. व पोस्ट करगी रोड कोटा जिला बिलासपुर (छ.ग.)
पिन कोड-495113
Mo no. 9926984606
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