Tuesday, 28 October 2025

लोकाक्षर अउ गद्य विधा लेखन एक बूता -एक संदर्भ -मुरारी लाल साव

 लोकाक्षर अउ गद्य विधा लेखन

एक बूता -एक संदर्भ 

        -मुरारी लाल साव

अभी के संदर्भ म लोकाक्षर गद्य विधा के लेखन म जोर देवत दिशा देखाये हे अउ देखावत हे साहित्य ला समृद्ध पोठ विकास की ऒर लेगत हे l

गद्य विधा के सबो विधा म लेखनी होये हे l बढ़वार होइस अउ होवत हे l  नवा जुन्ना सबो बुधियार  हमर साहित्यकार मन उमीहाके के ए कोती धियान देहे l गद्य विधा म लोकाक्षर ले जुड़े सब झन के संहराये के योगदान हे l एखर ले बहुते लाभ होय हे l आदरणीय भाई सुधीर शर्मा अउ आदरणीय अरुण निगम ज़ी के लिखे के बूता  देवत जउन सोच लेके ग्रुप ला बनाइस पूरा पूरा सफल होये हे l गद्य विधा लेखन घलो अतेक सरल नोहय l छत्तीसगढ़ी कहिनी /कहानी, लघु कथा / नान्हे कथा /नानकुन कहानी, 

उपन्यास /लघु उपन्यास  व्यंग्य नाटक /एकांकी, संस्मरण /सुरता, यात्रा विवरण, रिपोर्ट /रिपोरताज, ए विधा म लेखन बढ़िया होइस l 

कहानी, लघु कथा, सुरता, व्यंग्य यात्रा म गजबे बढ़वार होइस l 

सबले बड़े बात अउ जमो लिखय्या मन एक दूसर के लेखनी ला पढ़ के समीक्षा अउ संहराये के अउ सुधार के बूता करिन l कोनो बड़े अउ कोनो नेवरिया के भेद भाव नई करिन l एके सुगघर उद्देश्य रहिस पोठ साहित्य आय  l जुड़े सबो साहित्य कार मन म सम दृष्टि दिखीस l पंदोली जतका दिस ओतके सिरजन मा बढ़वार होइस l व्याकरण कोती गंभीरता ले धियान दे गिस l हिंदी के शब्द प्रयोग  छत्तीसगढ़ी म कउन ढंग ले होय वर्तनी अउ मूल रूप म दिशा मिलिस l जतके जादा लिखाही  साहित्य हित म ये उद्देश्य आघू म रहिस l 

खूब लिखिन भाई मन,मन लगाके चेत करके जिम्मेदारी लेके लिखिन  बढ़िया लिखत हे 

छत्तीसगढ़ी म व्यंग्य लेखन अउ लघु कथा लेखन ला ऊंचाई मिलिस अइसे लागिस मोला l

ग्रुप म लेखनी नियम बद्ध ढंग ले होवत है सबके नजर रहिथे l 

" तेल म चूरत भजिया कहाँ जाबे बोचक के l ओइसने समीक्षक मन के दृस्टि ले लेखनी बढ़िया चूर के पक के  स्वादिस्ट निकलत हे l 

जतका संहाराये रचनाकार मन के रचना बड़े बड़े

नक्सलवाद के भटकाव ल उजागर करत उपन्यास

 नक्सलवाद के भटकाव ल उजागर करत उपन्यास


 अंधियारी रात म अंजोर के आस हे " 

उवत सुरुज के अगोरा "


उपन्यास - उवत सुरुज के अगोरा 

उपन्यासकार - डा. विनोद कुमार वर्मा 

 समीक्षक - ओमप्रकाश साहू "अंकुर" 


नक्सलवाद एक राष्ट्रीय समस्या हरे। निरंकुश शासन ले मुक्ति  अउ शोषित, पीड़ित मन ल उंकर हक दिलाय खातिर नक्सलवाद आंदोलन के जनम होइस। रूस म लेनिन ह ये आंदोलन के जनमदाता हरे। पर रूस म येकर बाद गृह युद्ध चालू होगे मतलब रूस म नक्सलवाद फेल होगे। कारण जउन भी रिहिस होही। हमर भारत के बात करथन त आज ले 58 बछर पहिली चारू मजूमदार अउ कानू सान्याल ह ये आंदोलन ल चालू करिन। ये नक्सलवाद विचारधारा धीरे ले पं. बंगाल के संगे संग बिहार,झारखंड, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना ,महाराष्ट्र ,छत्तीसगढ़ सहित आने राज्य म अपन पांव पसार लिस। हिंसक रसदा ल अपनाके शोषित, पीड़ित मन के हक बर लड़े के उद्देश्य ले चालू होय ये आंदोलन के अब दसा अउ दिसा ह बदल गे हावय। इही बात ल लेके एक बढ़िया उपन्यास के सृजन करे हावय व्याकरणविद्, संपादक, कहानीकार डा. विनोद कुमार वर्मा जी ह जेकर शीर्षक हावय-" उवत सुरूज के अगोरा।"

        

हमर छत्तीसगढ ह अपन कृषि अउ ऋषि संस्कृति बर जाने जाथे।  छत्तीसगढ के सोर शांति अउ भाईचारा के सेति हावय। छत्तीसगढ़ म सद्भाव अउ सुमता के दीया जलथे। पर छत्तीसगढ़ म नक्सलवाद के कारन राष्ट्रीय स्तर म येकर पहचान नक्सली राज्य के रूप म होथे। बस्तर इलाका जिहां घोर जंगल हे अउ भोला- भाला आदिवासी मन निवासरत हे उहां ये समस्या ह सुरसा सहिक अपन मुंहू फइला के हजारों मन के जिनगी ल लीलत हे। नक्सलवाद के कारण वो क्षेत्र के चहुंमुखी विकास घलो नइ

हो पाथे। सड़क, स्वास्थ्य,शिक्षा, बिजली जइसे जरूरी चीज खातिर तरसत हे आदिवासी मन। ये सबो समस्या के जड़ हरे नक्सलवाद। ये मन विकास बर रोड़ा अटकाथे। त इही बात ल उजागर करथे उपन्यास "उवत सुरूज के अगोरा।" येहा कहानी "अग्नि संस्कार'" के विस्तारित रूप हरे।

        उपन्यासकार ह नारी पात्र डा. निर्मला चौधरी  के माध्यम ले उपन्यास ल आगू बढ़ाथे जउन ह वो पत्रकार मन ले मिले खातिर   बस म सफर करत जगदलपुर जावत हावय जउन मन अपहृत पुलिस मन ल छोड़ाय बर नक्सली अउ सरकार के बीच समझौता गोठबात करे के पेशकश करे रिहिन। बिलासपुर के रहवइया 23 बरस के मोटियारी डा.निर्मला के पोस्टिंग डीकेएस हास्पिटल रायपुर म हावय जेन ह रामकृष्ण केयर हास्पिटल म अटैच हावय। वोहा नक्सली घटना म घायल जवान मन के देख रेख करथे अउ हर रोज के रिपोर्ट सासन ल भेजथे। वोकर महतारी ह गृहिणी हे अउ बाबूजी ह किसानी करथे। निर्मला अपन दाई -ददा के एक्केझन बेटी आय।वोहा नानपन ले पढ़ई म हुसियार रिहिन। नवोदय स्कूल म पढ़ें के बाद रायपुर मेडिकल कॉलेज ले एमबीबीएस के पढ़ाई करिस।


निर्मला के सहपाठी झिंटूराम जउन ह हवलदार हे वोला नक्सली मन सुकमा के बजार ले उठा के ले गे हावय। झिंटू राम के कंधा म गोली लगे हावय।निर्मला अपन नवोदय विद्यालय के संगवारी झिंटू राम ल नक्सली मन ले छुड़ाय के उदिम खातिर घोर अंधियारी रतिहा म बस म 

 केसकाल घाटी डहर ले गुजरत हावय। ये जगह कहानीकार ह केसकाल घाटी के हबहू वर्णन करे हावय। इहां निर्मला ल नारी सशक्तिकरण के प्रतीक के रुप म दिखाय गे हावय। । अपन नानपन के संगवारी झिंटराम ल बचाय खातिर कत्तिक खतरा मोल लेके एक्के झन घोर नक्सलाइड क्षेत्र म सफर करत हावय जउन ह वोकर अब्बड़ साहस ल दरसाथे। वोकर निश्छल प्रेम के दरसन होथे। निर्मला कहिथे -" हे भगवान! नक्सली मन ले झिंटू राम के रक्षा करबे।भले मोर जान ले!तोर घर म देर हे फेर अंधेर तो नइ हे! इहां उपन्यासकार ह एक नारी के प्रेम, त्याग अउ संघर्ष के सुघ्घर चित्रण करे हावय।


    बस म सफर करत समय निर्मला के भेंट उपन्यास के मुख्य पात्र कामरेड बालेन्द्रु से होथे। निर्मला ह कामरेड बालेन्द्रु अउ सरकार के माध्यम ले हवलदार झिंटूराम अउ वोकर एक संगवारी ल नक्सली मन ले छोड़वाय म सफल होथे।


उपन्यास के नायक कामरेड बालेन्द्रु कम्युनिस्ट विचारधारा के रस्दा म चलत हावय। येहा आदिवासी मन म अब्बड़ लोकप्रिय हावय काबर कि गरीब मनखे मन के सुघ्घर मदद करथे। ये वो मनखे हरे जेन ल सरकार ह नक्सली मन के समर्थक मान के घेरी बेरी कुछु कांही केस म जबरदस्ती फंसा के  जेल म डार देथे। उपन्यासकार ह कामरेड बालेन्द्रु के गोसइन के माध्यम ले ओकर चरित्र चित्रण करथे। डा. निर्मला संग फार्म हाउस म गोठियात वोकर गोसइन कहिथे कि -" कामरेड हिंसा के बिल्कुल खिलाफ रहिथे। निरदोस आदिवासी मन के पुलिस द्वारा हत्या के विरोध म जन आंदोलन करे खातिर कतको घांव जेल जाय ल पड़े हे। त दूसर कोति नक्सली मन ह मुखबिरी के शक म जन अदालत लगाके कोनो आदिवासी मन ल मार डालथे त अइसन पीड़ित परिवार मन मदद करथे। आर्थिक मदद घलो करथे। कामरेड ले मिले बर देश के बड़का कम्युनिस्ट नेता मिले बर घेरी -बेरी आवत रहिथे। कामरेड ल नक्सली मन ले घलो धमकी मिलत रहिथे। "।कामरेड के फार्म हाउस हे जेहा केशकाल घाटी ले उन्नीस किलोमीटर दूर विश्रामपुरी के तीर बिरान जगह म हे। उपन्यासकार कहिथे कि-" कामरेड के गोठबात अउ चरचा अक्सर होवत रहिथे। आम मनखे मन  के नजर म कामरेड बालेन्द्रु नक्सली मन के सबले बड़का लीडर हे। सफेदपोश लीडर!जेन मन बिना हथियार के थामे नक्सली ल कंट्रोल करथे। कामरेड ह सादा जीवन उच्च विचार के मनखे हरे। वोकर गोसइन ह डा. निर्मला ल बताथे कि -" बेटा तोर अंकल ये जुग के मनखे नोहे।सादा जीवन उच्च विचार वोकर जिनगी के मूलमंत्र हे। विलासिता के कुछु सामान घर म रखना पसंद नइ करय।"‌ कामरेड ह नक्सली अउ सरकार के बीच समझौता कराय के काम करथे। झिंटू राम अपहरण कांड के समय वोहा निर्मला के सुघ्घर मदद करथे।वोकर माध्यम ले हवलदार झिंटूराम अउ वोकर संगवारी ल नक्सली मन ले छुटकारा मिल पाथे। त समझौता के तहत जेल म बंद नक्सली मन ल पुलिस ले छोड़वाथे।





उपन्यास के खलनायक हावय-"  शुभगन "जेन हा दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के कमांडर हे।येहा खुंखार नक्सली लीडर हरे। शराब अउ शबाब के येला लत हे। अपन पद अउ ताकत के खूब फायदा उठाथे अउ जवान लड़की मन के अपहरन करके उंकर इज्जत ले खेलथे। ये आदत ल वोहा अपन शान समझथे। ये दृश्य अउ संवाद के माध्यम ले कहानीकार ह आज के नक्सलवाद आंदोलन के दसा अउ दिसा ल उजागर करथे कि कइसे शोषित, पीड़ित मन बर लड़े ल छोड़ के उल्टा खुदे पद अउ ताकत के दुरूपयोग करत हे। निरंकुश शासन मन जउन बेवहार आम आदमी मन ले करथे उही रसदा ल खुदे अपना डरे हावय त का मतलब अइसन नक्सलवाद आंदोलन के।


   उपन्यास के नायक कामरेड बालेन्द्रु वर्तमान म नक्सलवाद आंदोलन के भटकाव ले अब्बड़ दुखी हावय। एक बुजुर्ग कम्युनिस्ट ले गोठबात के माध्यम ले ये बात ल पाठक वर्ग ल बताय गे हावय कि कइसे शुभगन जइसे नक्सली लीडर मन भोली भाली लड़की मन के हीनमान करथे अउ भोला - भाला आदिवासी मन ल ढाल बना के अपन सुवारथ ल साधत हावय। लूटपाट अउ लाखो- करोड़ों के वसूली करके गुलछर्रा उड़ात हे। निर्दोष आदिवासी अउ पुलिस वाले मन के हत्या करत हे।


     सच म आज बस्तर के आदिवासी मन नक्सली अउ  फ़ोर्स के बीच म पिसावत हावय।जइसे दू गोल्लर के लड़ई म घास ह रौंदा जाथे वइसने दसा आदिवासी मन के हो गे हावय। दूनों डहर ले आदिवासी मन ल  मरना हे। 


  उपन्यास के प्रमुख पात्र कामरेड बालेन्दु 

के बेटा अंकुश जउन ह 10 साल के हे। वोला उपन्यासकार ह  शांति के संदेश देवइया अउ एक वीर बालक के रूप म चित्रित करे हावय। अंकुश ह अपन कामरेड पिता बालेन्द्रु ल एक बात  कहिथे " एकर ले अच्छा गांधी जी के अहिंसक आंदोलन रहिस जेमा जन जागरण के संगे -संग स्वतंत्रता के आंदोलन ल जोड़े गे रहिस।" ये संवाद के माध्यम ले उपन्यासकार ह ये संदेश देवत हावय कि हिंसा ह कोनो समस्या के हल नोहे।अपन समस्या ल गांधी जी द्वारा बताय गे सत्य अउ अहिंसा के रसदा म चलके हल करवाना हे। फेर हिंसा ले हिंसा उपजथे। नक्सली मन खुदे एक दूसर ल मारत हे मुखबिरी के शक म। उपन्यास के मुख्य पात्र  बालेन्दु खुद हिंसा के शिकार हो जाथे जब खुंखार नक्सली लीडर शुभगन अउ उंकर पांच संगवारी उंकरे घर आके गोली म दनादन भून डालथे।येमा वोकर पत्नी ह मर जाथे अउ तीन साल के बेटी पल्लवी ह घायल हो जाथे। त अइसन स्थिति म घर म छुपे वीर बालक अंकुश ह अब्बड़ सूझ बूझ ले काम लेथे। घायल अपन बहिनी पल्लवी के जिनगी के रक्षा करथे।त दूसर कोति अपन पिता, मां के हत्यारा मन ल मारे बर उदिम सोचथे।जिहां खुंखार नक्सली लीडर शुभगन अउ उंकर संगवारी मन शराब पीयत रहिथे वो कमरा के कपाट ल लगा देथे अउ चारों मुड़ा पेट्रोल छिड़क के आगी लगा देथे। अउ ये प्रकार ले हिंसा के रसदा ल अपनइया  खूंखार नक्सली लीडर शुभगन अउ उंकर संगवारी मन हिंसक ढंग ले ही मारे जाथे। माने जइसन करनी वइसन भरनी। बंभूर बोबे त आमा थोड़े फरही। बंभूर करा जाबे त कांटा ह खबखब ले गड़ही।


    22 फरवरी 1954 म छत्तीसगढ़ के गांव फगुरम म जनम धरइया डा. विनोद कुमार वर्मा ह गहन संवेदना के उपन्यासकार हरे। आप मन के कहानी "मछुआरे की लड़की" राष्ट्रीय स्तर म अब्बड़ सराहे गिस।ये कहानी ल बस्तर विश्वविद्यालय के एम.ए. के पाठ्यक्रम म सामिल करे गे हावय। आप मन के छत्तीसगढ़ी के संपूर्ण व्याकरण किताब छात्र मन के संगे संग साहित्यकार ,पाठक वर्ग मन बर अब्बड़ उपयोगी हावय। येमा नाना प्रकार के छंद के नियम के उदाहरण छत्तीसगढ़ी के सियान साहित्यकार के संगे संग छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर,छंद के छ परिवार ले जुड़े बुधियार छंदकार मन के छंदबद्ध रचना के माध्यम ले दे गे हावय।


    त अइसने एक ठाहिल उपन्यास हे -" उवत सुरूज के अगोरा।  ये उपन्यास ह पाठक वर्ग ल रोमांचित करथे। ये लघु उपन्यास ह पाठक वर्ग ल आखिरी तक 

बांध के राखे म सक्षम हे। उपन्यास के भाषा छत्तीसगढ़ी अउ हिंदी मिश्रित हे।  भाषा शैली सरल,सहज अउ प्रवाहमयी हे।


ये उपन्यास ह आज के नक्सलवाद आंदोलन के पोल खोल के रख देथे त दूसर कोति नेतामन के दुहरा चरित्र ल घलो उजागर करथे कि अपन सुवारथ बर का नइ कर दिही। उपन्यासकार ह लिखथे कि कामरेड बालेन्द्रु के भाषण के संबंध म एक बड़े नेता ह कमेंट करिस -" कामरेड यदि लाल झंडा ल छोड़ के हमर पार्टी म सामिल हो जाय त बस्तर संभाग के सबो विधानसभा सीट ल हमर पार्टी ह आराम से जीत लेही "। येकर माध्यम ले उपन्यासकार ह नेतामन के दोगला चरित्र ल उजागर करथे कि  जेला पहिली कोयला समझथे  वोहा जब उंकर पार्टी म आ जाथे त उही मनखे कइसे सोना बन जाथे।





पोठ उपन्यास खातिर आदरणीय डा. विनोद कुमार वर्मा जी ल गाड़ा -गाड़ा बधाई अउ शुभ कामना हे ‌। ये उपन्यास ह छत्तीसगढ़ी साहित्य म एक मील के पथरा साबित होही। 


       - ओमप्रकाश साहू अंकुर 

         सुरगी, राजनांदगांव

भरम

 भरम 

                    कोस्टा पारा के रहवइया मन पानी भरे बर ठेठवार कुँवा म जाय । संझा बिहाने ओकर कुँवा म पनिहारिन मन के रेम लगय । मुलाखात अऊ गोठ बात के बने जगा घला रहय । एक दिन .. पानी भरके जात एक झन बहू छोकरी के हँउला ह .. उँकर घर म कपाट के चौंखट म ठेंसइस ... बहू छोकरी ले दे के सम्हलिस फेर रेंगान म गिरे पानी म गोड़ पर गिस ... हँउला सुद्धा गिरिस । मुड़ फुटगे ... रथिया पीरा उचिस .... पेट भितर लइका मरगे ... बहू घला बिहान होत .. दुनिया ल छोंड़ दिस ।  

                    गाँव भर हल्ला मातगे । बिशाखा ह अपन बहू ल कहत रहय – ठेठवार कुँवा म झन जाय कर ओ ...। तोर बड़े दई ह चौंरा म ... आँखी बटेर के निच्चट निहारत बइठे रहिथे । काकरो सुख देखे नी सकय । चरचर ले अंगुरी फोरत बखाने लगिस - कोढ़ी होके मरही दुखाही हा ... । देख ... फुलकरहिन के बहुरिया के का गत होगिस ... ओकरेच करनी आय । बहुरिया पूछिस – उँकर मनके अब्बड़ बनथे माँ ... ? बिशाखा किहिस – बनथे तभो ये हाल ... हम तो ओला फुटे आँखी नी सुहान ... हमर का नी करही ..। बहुरिया बिगन सवाल दागे हव कहत मुड़ हलइस ।  

                    सांझकुन पानी भरे के बेर .. बिशाखा के मुलाखात पनिहारिन मन संग होइस । पनिहारिन मन पुछे लगिन – अई काकी .. तैं कइसे या । देरानी निये का ... ? समे तो नी आय हे का या ... ? बिशाखा किहिस – समे अइगे हे तेकर सेती मय आय हँव । बइठे बइठे मोरो जांगर खिरत रिहिस .. कुछ दिन मिंही आहूँ ... सऊँख घला नी लागथे तेमा या ... देखव .. उही बहाना सबो बहुरिया संग मेल मुलाखात घला होगे । असल कारन सब समझ गिन । 

                    दूसर दिन बिहाने ले बांगा धरे बिशाखा फेर दिखगे । बिहिनिया बुता काम के बेर काकरो ले जादा गोठ बात नी होइस .. सब लकर धकर अपन बांगा भरिन अऊ चलते चलिन । बिशाखा के उमर जादा नी रिहिस फेर देंहे मोटागे रिहिस .. निहरे नी सकय । माड़ी पिराय ते अलग । टेंड़ा म पानी हेरत बन जाय फेर बाल्टी डोरी म नी सकय । कइसनों करके पानी भर डरय त बांगा ला उचा नी सकय । दूसर बोहाय तब  .. घर तक टेंग रेचेक करत लेगय । चार बेर पानी डोहारत कनिहा कोकरगे ।

                    संझा बिशाखा नी अइस । मुंधियार ओकर बहू .. हँउला धर के निकलिस । पारा के मन पूछिन – अई .. कइसे अभी जाथस या .. ? बहू मुचुक मुचुक करत चल दिस । चौंरा म बड़े दई ले मुलाखात होगे । टपर टपर पाँव परिस । बड़े दई पूछिस – मुंधियार काबर कर डरे बेटी .. संझकेरहा नी आते या .. ? बहुरिया किहिस – थोकुन देरी होगे बड़े दई । बड़े दई हा ... पानी भरे बर मदत करिस .. बांगा ल ओकर मुड़ म मढ़हइस । घर म बहुरिया ह .. बांगा ल उतारे नी सकिस .. ओकर घरवाला उतारिस । उतारत उतारत अपन घरवाला ल पनघट के बात बता पारिस । बिशाखा ललछरहा सुनिस ... रंधनी ले लकर धकर निकलत .. बहुरिया ल खिसियइस .. तहन जेठानी बर शुरू होगे । 

                    बिशाखा केहे लगिस – उही टोनही के सेती मेहा माड़ी पीरा म .. पाँच बछर ले कल्हरत हँव । मोर जांगर चलतिस ते तोला जावन नी देतेंव .. । तोला झन मिलबे .. झन गोठियाबे केहे रेहेंव ... फेर तहूँ  नी मानेस ... भुगतबो ... तैं देख लेबे ... ओकर पांगे फरक नी परे ... । 

                    बिहिनिया ... बहुरिया के पेट पिराना शुरू होगे । पिरा के मारे तहल बितल करे लगिस ।  सुइन ल बलइन । गोड़ डहर ले निथरत लहू देख ... सुइन हाथ उचावत चल दिस अऊ अस्पताल लेजे के सलाह दिस । बिशाखा मन ... रोज कमइया ... रोज खवइया ...  घर म पइसा नी रहय ... फिफियागे ... का करन ... कइसे करन ... समझ नी आत रहय ... बहू के जेवर पहिली ले गहना धराय रहय । माथ धरे बइठे ... सबो झन के बीच ... केवल बिशाखा के मुँहु .. अपन जेठानी ला गारी देवत चलत रहय .. में केहेंव न .. अब भुगतो सबो .. । सुइन के मुलाखात लहुँटती बेर ... बिशाखा के जेठानी ले होइस । उनला सरी बात पता लगिस । 

                    जेठानी मन पइसा वाला रिहिन । तुरत अपन चरपहिया तैय्यार करके रुपया के बंडल धरके पहुँच गिन । सुक्खा हाथ धरे बइठे रहँय ... कोन्हो मना नी कर सकिन । जिंहाँ आपरेशन के सुविधा रहय ते जगा ह ... चालीस किलोमीटर धूर ... । भरती होगिन । लहू बहुत रिस चुके रिहिस । आपरेशन के समे लहू .. कोन दिही ... । बिशाखा अऊ ओकर घरवाला उइसने कमजोर ... बेटा के लहू मिलय निही । बड़े दई के लहू मिलगे ... । कानाफुसी बिशाखा कहे लगिस – अई टोनही के लहू ला चघाबो तेमा ... । ओकर घरवाला हा ... लाल आँखी देखइस ... बिशाखा तरमरात रहिगे । आपरेशन सफल होइस ..  फूल असन लइका निकलिस । सब के हिरदे उछाह ले भर गिस । बिशाखा के मन म गोंजाय भरम अऊ बोजाय मइल दुनों धूर हो गिस । 

                    गाँव भर हल्ला हो चुके रहय ... बिशाखा हा अपन जेठानी ला टोनही कहिथे तेहा गलत नोहे । दू दिन पहिली फुलकरहिन के बहुरिया ला भख दिस ... आज दूसर के नम्बर आगे .. । सांझ होत .. बइसका म ... गाँव निकाला के फैसला होगे । 

                    चार दिन पाछू ... सबो लहुँटिन । रामबाँड़ा म सकलाय रहँय गाँव के सियान मन । सब इही सोंच के आय रहँय के बिशाखा के जेठानी ल खुसरन नी देना हे ... इही मेर ले  बिदा कर देना हे । 

                    गाड़ी दम ले रूकिस । बहू अऊ नानुक लइका ला छोंड़ .. एक एक करके सबो उतरिन । बिशाखा हा जेठानी ला उही तिर अगोरे बर कहत ... घर भितरि निंगिस । जेठानी के गोड़ ठोठकगे । गाँव के मन .. बहू अऊ लइका ला नी देखिन .. सब समझगे ... तुरते फैसला बता दिन । जेठानी पिछ्गुच्चा होवत टप टप आँसू गिरात सुसके लगिस ।  

                    बिशाखा ह ... भितरि ले लोटा म पानी अऊ आरती धरके निकलिस । जेठानी ला आये के इशारा करिस । जेठ हा ... जेठानी के हाथ ला धरके छेंक लिस अऊ हाथ जोरके माफी कहत .. बिदा मांगिस । 

                    बिशाखा के हिरदे म उँकर बर सन्मान जाग चुके रिहिस । बिशाखा ह हाथ म धरे समान ल उहि तिर मढ़ाके भागत आगे ... जेठानी ला पोटार लिस । बम्फार के रो डरिन दुनों । बिशाखा हा न केवल जेठानी ले .. बल्कि पूरा गाँव ले माफी मांगिस । गाड़ी ले उतरत बहुरिया ह .. बड़े दई के हाथ म लइका ल धरा दिस । देरानी जेठानी के मिलन होगे । सरी घटना के जनाकारी गाँव भर ल होगिस । टोनही के भरम ले सब उबर गिन । 

हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा .

झन्नाटा तुँहर द्वार*

 *झन्नाटा तुँहर द्वार*       


         साहित्य लेखन के गद्य विधा में ब्यंग लेखन घलो हे।. जेकर जनम निबंध के रूप में होथे। ब्यंग लेखन मा सपाट बयानी न करके जबानी घात करत अउ हास्य के पुट भरत अपन बात ला पूरा करथे। सही मामने मा सामाजिक सरोकार के उतार चढाव मानवीय संवेदना मा सुख दुख के सबो हिस्सा ला अनुभव करे रथे भोगे रथे देखे रथे खरा खोटा के हिस्सेदारी मा जे खोंचकर हिरदे मा पाये रथे। तब एक जिम्मेदार कलमकार अइसन विधा मा कलम चलाए के साहस करथे। यहू सच हे कि तुकबंदी मा कविताई करना तो सहज हे। फेर व्यवस्था अउ विकृत परिस्थिति ले कलम उठाके दू दू हाथ करना सहज नइये। एकर जानबा के बाद घलो झन्नाटा तुँहर द्वार के सिरजक आदरणीय महेन्द्र कुमार बघेल जी अइसन साहसिक काम रहे हे। एकर बर सादर बधाई।

         एक ठन पाठक होय के नाता ले किताब पढ़े के मौका लगिस। मोर जानकारी मा झन्नाटा तुँहर द्वार बघेल जी के पहिली कृति आय। जेकर भीतर 25 ठन ब्यंग लेख ला सँघेरे गेय हे। ओइसे बघेल जी के गद्य अउ पद्य दुनो मा ब्यंग के तासीर झलकत रथे। एकर सेती घलो इन ला ब्यंगकार कहे मा परहेज नइ होना चाही। अलग अलग विषय के माध्यम ले सामाजिक  राजनैतिक आर्थिक के सँग संसकार अउ संस्कृति के बात ला कटाक्ष करत चले हे। ब्यंग तो है ही सँगे सँग मन ला गुदगुदावत अपन बात ला पूरा करे मा सफलता हासिल करे हे। गरीब शोषित पीड़ित मजदूर किसान गँवई गाँव के बिगड़े हाल इँकर मूल विषय अउ मुद्दा आय। ये हर किताब के कतको विषय संगत शिर्षक के लेख मा देखे ला मिलथे। ये सही हे कि बघेल जी इही भुगतमान समाज के आवाज बनके खड़े होय मा कमी नइ करे हे। इँकर इशारा ब्यंग के माध्यम ले अँधियार मा भटकत धोखा फरेब गिरे ब्यवस्था ले तंग मनखे ला अँजोर देखाए बर हे।

           किताब के जम्मो लेख मा प्रतिनिधि रचना के रूप मा झन्नाटा तुँहर द्वार ला माने जा सकथे ये मोर मत आय। इही शिर्षक हर किताब के नामकरण मा संबलता पाय हवे। आवरण सज्जा मा मौन चित्र दर्शाए गेय हे वो हर घलो ब्यंग के परिभाषा ला बताए बर  सार्थक हे।

          झन्नाटा तुँहर द्वार सुनके ही मन मा हास्य के रस छलके लगथे। फेर असली आनंद तो ब्यंग ला पढे के बाद मिलथे। आज ये झन्नाटा जेन हर मंद मदिरा दारू शराब के पर्यायवाची के रूप मा जगा पाय हवे। अउ यहू आसा करे जा सकथे कि किताब अपन नाम के बल मा ही नाम कमाही।।.     

      गरीब अमीर छोटे बड़े राजा रंक सबो के जिनगी मा झन्नाटा जगा बना डारे हे। जेकर कुप्रभाव मानव समाज ला दीमक अउ घुन्ना कीरा असन फोकला करत हे। जेकर दरद लेखक के ब्यंग मा देखे ला मिलथे।

           ब्यंगकार के भाषा सरल सहज हे। छत्तीसगढ़ी के आत्मा अउ मरियादा ला सम्मान देवत गाँव में आम लोगन तक पहुंच बनाए मा सफल हें। हिन्दी अउ अँगरेजी के शब्द मन ला अइसे समोए हें जइसे मीठा खीर मा काजू किसमिस। लेखक एक शिक्षक होय के नाता ले वाक्य के क्रमबद्धता के पालन बहुते चतुराई ले करे हें। जेकर ले कोनो भी पाठक के पाठन क्रम नइ टूटे अइसे भान होथे। एकरे सँग ब्यंग मा जेन मारक क्षमता होना चाही हमर असन के समझ बर सटीक अउ सार्थक लगथे। पूरा किताब ला पढ़े के बाद कुछ वाक्यांश के उदाहरण तो दिये ही जा सकथे। जेकर ले जान सकथन कि ब्यंग अपन दिशा कोन किसम ले तय करे हे। अउ लेखक कोन किसम ले अपन ब्यंगकार होय के सबूत देथे। अलग अलग विषय मा उकेरे अलग अलग ब्यंग के तासीर ले सने वाक्यांश - -

*.      हाइटेक के जमाना मा जेन हर बात बात मा झूठ लबारी बइमानी करे बर सीखगे उही मन ला पंचायत मा सबले योग्य मनखे समझे जाथे। आइसन धुरंधर मन ला पाँच साल तक कोनों खतरा नइ रहय।।

   *ब्यंगकार अपन प्रतिकार ला दर्शाथे तब प्रतिकात्मक बिम्ब ले सीधा मार करे मा पीछू नइ हटे हे जइसे कि---

   पाँच साल ले कुरसी के चारो खूरा ला सलामत रखना हे तब ओकर बताय रसता मा चल नइते कोन जनी कब कते खूरा हर रट ले टूट जाही।

  *शासन प्रशासन डहर ले एक घाँव मा सोला ठन खरीदी बिक्री के उदारवादी नीति हर गली गली मा पहुंच बनाके कल्याणकारी योजना के नवा इबारत लिखत हे।

         अलग अलग विषय में उकेरे कतको बात जे हर लेखन के देखे सोचे समझे के अउ ओकर उपर कलम चलाय के सामर्थ ला बताथे। कुछ वाक्य जेला अउ रखना उचित लगथे-----

*.      सामाजिक समरसता के वातावरण मा जिन्न अउ हलवाई के बीच मा पहिली छमाही के शिखर वार्ता शुरू हो जाथे। ओकर बाद दुनो महानुभाव मन के बीच भुगतान संतुलन के मामला हर वर्चुअल ढंग ले सेट हो जाथे।

*.    बिहान दिन थुकलू मिडिया के जम्मो राष्ट्रवादी चैनल मा भारी सक्रियता दिखना शुरू हो जाथे। (बँरेडी मा ईमानदारी)

*.       अपन बूध के खइरपा ला उघार के देख गोतियार मिलावटखोर मन हमर रँधनी खोली तक मिलावट के पक्की सडक बना डारे हें।

*.     अइसन दिन घलो मत आय कि हवई चप्पल पहिर के सड़क मा रेंगे बर घलो ठेकेदार डहर ले पाबंदी हो जाय।. (सपना के पंचनामा)

*.        बाकी नब्बे परसेंट वाले के भाग मा तो काल हे। जेन अमृत चाँटे के भरम मा अपन हिस्सा मा मिले अम्मट गोम्मट के भरोसा राष्ट धरम निभावत हे। (अमृत चाँटे के भरम)

      ब्यंग मा हास्य मिँझारे के कला मा यहू वाक्य मन हें--

*.       सबो रद्दा के पाई मन के एके कथा कहानी हे प्रेशर ला थाम्हे लोटा भर पानी। परियावरण ला बचाय खातिर खुल्ला मा खुलासा करे के लोटाई परम्परा ला धरासाई करे बर घर भितरी शौचालय। 

*.      सास हर गद्दी ला छोडऩा नइ चाहे अउ बहू तत्काल गद्दी ला हथिया लेना चाहथें। 

      जेवन पानी के बेरा नाक मुँहुँ ला मुरेरना सास के जनम सिद्ध अधिकार हे। 

*.     गौठान योजना ह गाय के सराय कम पंच सरपंच अउ सचिव मन के सेल्फी जोन जादा लगथे। 

*.   जब ले गुटका पाउच यामू नाम के सनपना मा सवार होके आय हे तब ले पुरकू कला ला नवा जिनगी मिल गेहे। 

*.       बजट के चरचा अउ खरचा के योजना बनावत कते साहेब के भला लार नइ टपकत होही। इहाँ लरहा साहेब के कोनों कमी हे का? 

*.       कलयुगी शिष्टाचार मा नारद मुनि के खानदानी चिराग मन ला रिपोर्टर जर्नलिस्ट अउ किसम किसम के नाम ले जाने जाथे। 

        अइसन किसम के ब्यंग बाण ले किताब भरे पड़े हे। जे हर पढत बेरा मन ला गुदगुदाए के सँग चिंतन करे बर मजबूर कर देथे। समाज ला तुतारी मा हुदरत नवा दिशा देखाए बर सबो बिषय अपन जगा मा सामर्थ्यवान हे। विषय छोटे फेर विषय वस्तु अपन आसपास के गंभीर मुद्दा हे। जेकर भयावह रूप ला इशारा करत चेताए मा चतुराई दिखाए हे। गौठान बराती दारू स्कूल गुटका पाउच साहित्यिक मंच के प्रपंच टूरा टूरी के गैर संस्कारी मौज मस्ती के सँग बाजारवाद के विकराल रूप ला देखावत ब्यंगकार के कलम सहजता मा घलो सजोर चले हे।

           मँय अबूझ पाठक ही आवँव। न तो समिक्षक ना आलोचक।ये हर पाठकीय लेख ही आवे। तभो ले एक बात कहे के मन होगे कि ब्यंग के लम्बाई ला कम करे जा सकत रिहिस। 

जेकर ले पाठक बिचक के संभावना रथे। ओइसे भी आज के बेरा मा पाठक के अंकाल हे। कम मा जादा कहे के सीख घलो आगू चलके काम के हो सकथे। फेर लेखक जब तक अपन बात ला पूरा नइ करे रहय नइ हिताय। ये ओकर मजबूरी हो सकथे। मूल विषय मा कइ ठन पक्ष ला जोड़े मा लेखन के बढना सहज हे। शिर्षक नामकरण घलो बहुत महत्व के होथे। एक दू ठन मा लेख पढ़े मा जानबा होथे कि बात कोन विषय ले अवतरित हे। कुछ कमी के बाद घलो सफल ब्यंगकार के रूप मा बघेल जी के ये कृति पठनीय हे। ये  आपके पहिली कृति आय। अवइया बेरा के संकलन मा सबो भरम टूट जाही इही आसा ले झन्नाटा दार शुभकामना के साथ बधाई।


राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

कहिनी // *भइंसा* //

 कहिनी    

                   // *भइंसा* //

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                  हम जानथन कि सबो जानवर म सबले चउतरा कोलिहा ल माने गे हावे । तभे तो चउतरा मनखे ल कोलिहा कस चउतरा हे कहिथे । जांगर म भइंसा ल कहे गे हावे काबर कि ओहर बहंगर होथे ते पाय के कभू-कभू मनखे ल भइंसा कस कमाथे फेर खाए नि जाने घलो कहि देथे । बिलई ल अशुभ मानथें ओला मारे म भारी पाप होथे कहिथें । कभू कारी बिलई ल देख डारबे त डर - डरावन लागथे । बिलई कभू डहर म ए पार ले ओ पार आर-काट कर दिस त काम नि होय कहिथे । गाय ल बड़ सिधवा माने गे हावे तभे कोनों मनखे के सुभाव ल देख के ओला गउ बरोबर सिधवा हे कहिथें । 

                 जानवर म छेरी के घलो अलगेच चिन्हारी होथे दिन भर लपर - लपर चरई अऊ नरियई ल देख के काकरो सुभाव ल कभू छेरिया कस लपर - लपर करथस कहि देथें । इही जानवर के डांड़ म कुकुर घलो के बड़का नांव हे , कुकुर के बेवहार अऊ सुभाव ले जनाथे कि ओहर गरीबहा लागथे कभू खाय बर नि पाय त लांघन परे रहिथे । संगे - संग स्वामी भक्त घलो होथे । मनखे मन कभू काम - बूता नि करे त ओला कुकुर कस किंजरत हावे कहि देथें ।

               चिराई-चिरगुन मन म घलो अइसनहे देखे जाथे घुघुवा के नरियाय ले अशुभ मानथें । काकरो छानही परवा म घुघुवा चिरई के नरियाय ले ओ घर म मनखे के हानि होथे सियान मन बतावंय । कउँआ कभू छानही म कांव - कांव नरियाइस त समझव घर म पहुना आय के सोर -संदेशा मिल जाथे । तइहा समें म परेंवा चिरई ल सोरिहा के रुप म देखे जावत रहिस । कागज म चिट्ठी लिख के ओकर घेंच म ओरमा देवंय तहं ले परेंवा ल उड़िया देवंय ओहर संदेशा पहुंचा देवंय । घर म मिट्ठु पोसें रहिथे ओला जइसन सिखोय -पढ़ोए रहिथें वइसन ओहर बोलथे । घर म कोनों आथें त ओमन ल राम-राम कहे बर नि छोड़े अऊ आव भगत करत देखे बर मिल जाथे ।

                कतको चिरई-चिरगुन मन शुभ अऊ अशुभ संकेत देवत रहिथें वइसनहे जानवर मन के घलो चिन्हारी करे गे हावे । जिनगी म ये जीव-जन्त मन समे-समे म काम आवत रहिथें ते पाय के चिरई - चिरगुन मन ल मनखे अपन तीर म पोंसे-पाले रहिथें ओमन के दाना - पानी के बेवस्था करथें । चिरई मन ल दाना - पानी देवई घलो बड़का पून के कारज आय ।

            हीरापुर गाँव म हिरउ नांव के एकझन किसान रहिस । ओला चिराई-चिरगुन अऊ गरुवा - भइंसा पोंसे के भारी सउंख रहिस । ओकर घर के कोठा गाय - गरुवा म भरे रहय । ओहर भइंसा घलो राखे रहय एकठन भूरवा अऊ दूसर ह करिया रंग के रहिस। दूनों भइंसा के हुलिया एके बरोबर रहिस सींग-सींघोट उमर म एकठन चार , दूसर छै दांत अऊ पूछी चंउरी रहिस । फेर एकठन भूरवा रंग के खातिर अलगेच दिखत रहिस। भूरवा भइंसा थोरिक फंकटहा रहिस अऊ करिया भइंसा जबर सिधवा रहय । 

           हिरउ दूनों भइंसा के नांव घलो धरे रहिस भूरवा भइंसा के नांव सोन अऊ करिया भइंसा के नांव मणि रखे रहिस। सहिच म दूनों भइंसा हिरउ बर सोन अऊ मणि रहिन । हिरउ अऊ ओकर गोसाईंन मंगली सोन अऊ मणि दूनों ल भारी मया करे । संवारे पुचकारय समे म चराय ले जावय अऊ ओमन बर हरीयर - हरीयर कांदी लूके लाने। तरिया म पैरा धरके रगड़ - रगड़ के धोवय । हरियर कांदी ल खाके भइंसा मन के देहें चिक - चिकावत रहय । कोठा म पखरा के कोटना म पानी - पसिया , कोढ़ा अऊ कूना बोर के खवावय। हिरउ के मया के कारन भइंसा मन घलो हिरउ ल भारी पतियावय। हिरउ कभू - कभार कुछू काम ले एको - दू दिन बर गाँव जावय त दूनों भइंसा मन उदास हो जावंय । हिरउ के गोसाईंन घलो मया करे फेर हिरउ के बिना ओमन ल सुन्ना लागे ।

               एक दिन करिया भइंसा आधा रात के घेंच म बंधाय गेरवा ल छटका के कोला - बारी कोती खुसर के नार - बियांर अऊ भाजी - पाला रहिस तेन ल चर दिस अऊ कुछू नि जानत हौं कहिके कलेचुप आके फेर कोठा म अपन जघा बइठगे । बिहनिया बेरा हिरउ के गोसाईंन मंगली बारी कोती गिस त देख के अब्बक होगे । सब नार - बियांर ल चर दे रहिस । हिरउ के गोसाईंन भइंसा के खूर अऊ ओकर गोबर ले चिन्हारी कर डारिस कि करिया भइंसा बारी के नार बियांर ल चर के खूंद - कचर डारे रहिस फेर करिया भइंसा कोठा म कलेचुप बइठे रहिस त ओला विश्वास घलो नि होवत रहिस कि करिया भइंसा ह चरे हावे ।

             एकदिन हिरउ भइंसा चरा के लूदिया तलाव म धोके घर लानत रहिस , करिया भइंसा आघू म रहे अऊ भूरवा भइंसा पाछू कोती दूनों धीरे - धीरे घर आइन घर के मुहाटी ले  नाहक के जइसे परसार म भइंसा  पहुंचिस त ओमेर हिरउ के लइका माड़ी म गोंगनिया करत खेलत रहिस । हिरउ के गोसाईंन रंधनी कुरिया म खुसरे रहिस । जइसे भइंसा के गोड़ के अवाज ल सुन के सकपकावत ए ! ' मोर लइका '.... चिल्लावत मंगली कहिस ! करिया भइंसा मंगली के अवाज ल ओरख दारिस अऊ तुरते उहीच मेर ठाड़ होगे एको पांव आघू नि बढ़ाइस । लइका खुंदाय बर बांच गिस अऊ जबर अलहन टरगे । जानवर मन मूक जरुर होथें फेर अपन के मालिक बर वफादार अऊ संवेदना घलो रहिथे।

              एक दिन भूरवा भइंसा बीमार पर गिस । करिया भइंसा ओला अपन जीभ म चाट के मया करत रहिस । काबर दूनों एके संग रहंय खाय -पीए अऊ चरे घलो एके संग एके जघा चरंय । दूनों एक दूसर ल भारी मया करंय । हिरउ बइद गुनिया अऊ डाक्टर ल देखाइस । इलाज करवाइस फेर भूरवा भइंसा अपन मुहूँ ल करिया भइंसा के कान म लेगिस अऊ जोर से नरियाइस अऊ अपन परान ल निकाल दिस। अइसे लागिस कि करिया भइंसा ल कुछू कहिस होही ।

              भूरवा भइंसा के मरे ले ओकर संगी करिया भइंसा के आँखी ले आंसू के धार थिरकत नि रहिस।चिरइ - चिरगुन मन म घलो भारी मया के संगे - संग संवेदना घलो रहिथे । हिरउ भूरवा भइंसा ल चार झन मिलके बोह के लेगिन । समे गुजरत गिस थोरिक दिन के पाछू मंगली अपन गोसईंया ल कहिस...' करिया भइंसा एकेठन हावे एला बेच के आने भइंसा बिसा लेतेन '। ' ठीकेच कहत हावस तोर सलाव बने नीक लागत हावे '.....हिरउ कहिस !

             थोरिक दिन गुजरे के पाछू एकझन गरुवा - भइंसा के कोंचिया हिरऊ घर आइस अऊ मोल - भाव करके ओ करिया भइंसा ल बिसा डारिस । जब हिरउ ह कोठा ले भइंसा ल ढिले गिस त भइंसा जान डारिस कि मोला बेंच दिस । करिया भइंसा कोठा ले रोवत निकलिस काबर कि भूरवा भइंसा ओला मरे के बेर कहे रहिस होही कि हिरउ ल कभू झन छोड़बे । फेर ओकर तो वश के बात नि रहिस । मालिक हिरउ के घर अऊ गाँव छुटगे ए दुख म करिया भइंसा ल जबर पीरा होइस।

               ' करिया भइंसा के निकले ले कोठा सून्ना - सून्ना लागथे ' ... उदास मन ले हिरउ कहिस ! ' हव जी महूँ ल सून्ना लागथे '..... भरे गला ले मंगली कहिस ! ' शुक्रवार के भैसमा बजार भराथे एको दिन बजार चल दिहा अऊ भइंसा बिसा के लेके आहा '.....मंगली समझावत कहिस ! ' ले न का होही ए दारी के अवइया बजार म चल देहूँ ' ... धीरज धरावत हिरउ कहिस ! शुक्रवार के दिन आइस तहं ले...' संदूक के रुपिया ल निकाल के देतो बजार जाहूँ '....हिरउ कहिस । सबो रुपिया ल निकाल के दे दिस । ' बढ़िया सही भइंसा लेके आहा जी ' ....मंगली कहिस । ' तैं फिकिर झन कर भूरवा अऊ करिया भइंसा कस लेके आहूँ '.....हिरउ कहिस !

               तीर - तखार म कतको अकन मवेशी बजार लगथे जेमा भैसमा , हरदीबजार (कोरबा ), किरवई (रायपुर) , बेलरगाँव (धमतरी), उतई (दुर्ग), खैरा , डभरा  अऊ घोघरी ( सक्ती ) , बिर्रा, लखाली , खूंटीघाट , आरसमेटा अऊ बलौदा (जाँजगीर -चांपा) , गोंड़खाम्ही , तखतपुर (बिलासपुर) , दरमोहली (मरवाही) , झाबर (पेण्ड्रा) , लटोरी (सरगुजा) अऊ कतको जघा म मवेशी बजार लगथे । जेमा भैसमा बजार कोरबा जिला के सबसे बड़का अऊ नामी मवेशी बजार हावे ओहर शुक्रवार के लगथे । जेकर सोर दूरिहा - दूरिहा ले बगरे हावे। 

               हिरउ शुक्रवार के दिन भैसमा बजार गिस , बजार के छेदहा भांठा म गरुवा - भइंसा , छेरी - पठरु कुकरी - छेमरी के बजार लगे रहिस। हिरउ सबो रुपिया ल गठरी म बांध के कनिहा म कोंथियाय रहिस । ओहा भइंसा के गोहंड़ा ल किंजर - किंजर के देखत जावत रहिस । अपन मन पसंद के छांटत - निमारत रहिस तइसनहे बेरा म ओ करिया भइंसा अपन के जून्ना मालिक हिरउ ल दूरिहा ले चिन्हारी कर डारिस । देखते - देखत ओहर दउंड़ के हिरऊ के तिर म आके ओला अपन जीभ म चाटे लगिस अऊ अपन के पूछी ल घलो टांगे लागिस । हिरउ ओला अपन हाथ म मुड़ी अऊ पीठ ल संवारे लागिस । ' मोला बिसा लेते अऊ अपन घर ले जाते '.... करिया भइंसा रोवत कहिस अइसे लागिस ! फेर भइंसा के भाखा अऊ इशारा ल हिरउ नि समझ पाइस होही।

              बिचारा करिया भइंसा ल लवठी म पीटत अऊ हांकत कोचिया लेगिस । फेर करिया भइंसा उदास होगिस। गोहंड़ा ले छांट के एक रास पड़वा हिरउ बिसा के घर लेके आइस । एक झन किसान समारु ल अंकड़ा भइंसा के जरूरत रहिस ओहर करिया भइंसा ल कोंचिया करा ले बिसा के अपन घर लेगिस। करिया भइंसा ल जोड़ी मिले बर मिल गिस फेर ओकर मन उहां नि लागत रहिस । भूरवा भइंसा के सुरता म ओहर रो दारे । करिया भइंसा ल उंहा खाय - पीए ल बढ़िया देवंय फेर ओकर मन खाय पीए कोती नि लागे भलुक हिरउ के घर सुरता आवय । एक दिन करिया भइंसा रात के गेरवा ल झटक के टोर दिस अऊ कोला कोती के डाहर ले भागत - भागत अपन जून्ना मालिक के घर आ गिस ।

             बिहनिया बेरा मंगली घर के फइरका उघारिस त ओहर अब्बक होगे करिया भइंसा मुहाटी म ठाढ़े रहय । मंगली भइंसा ल भीतर कोती आय बर इशारा करिस तभे ओहर भीतर खुसरिस अऊ कोठा म पखरा के कोटना म भराय पेज पसिया ल एक सांस म सर - सरउवन पी दारिस। अइसे लागत रहिस कि कतका दिन के खाय पीए बर नि पाय रहिस । अपन जून्ना घर म आके ओला बड़ सुग्घर लागिस फेर ओला एहू बात के डर सतावत रहिस कि ओकर नवा मालिक खोजत आही अऊ लेके जाही इही बात ओला संसो धर ले रहिस । जून्ना घर के मालिक अऊ मालकिन के मया दूलार अऊ भूरवा भइंसा के कहे गोठ ओला इंहा तक झिंक लाने रहिस।

             ' हमर करिया भइंसा आ गहे त ओला राख लेथन '..... मंगली कहिस ! ' ठीक कहत हस ले राख लेवत हन '......हिरउ कहिस ! ' ओकर मालिक आही त ओकर कीमत ल दे देबो '....मंगली समझावत कहिस ! ' ले ठीक हे पड़वा मन संग ओहू रहे रही '..... हिरउ कहिस ! पन्दराही के कटे ले ओकर मालिक समारु खोजत आ गिस । ' मोर करिया भइंसा ल लेके जाहूँ ' .... समारू कहिस ! ' अइसे कर समारु ओकर तैं कीमत लेले '....मंगलू कहिस ! ' मोर भइंसा अंकड़ा हावे ओकर जोड़ी बर तो बिसाय हौं '.....समारु कहिस ! ' ठीक बात हे लेजा तोर भइंसा ल '....हिरउ कहिस ! समारु भइंसा ले जाय के कतको उदीम कर देखिस फेर भइंसा जाबेच नि करिस ।

              अपन मालिक के मया अऊ भूरवा भइंसा के सउंपे बात के खातिर करिया भइंसा ओ घर ल नि छोड़िस सहीच म ओहर मणि आय । जेकर चिन्हारी अंधियार म घलो हो जाथे काबर के ओहर रग - रग ले अँजोर दिखथे । जानवर घलो मन म संवेदना अऊ मानवता के गुन रहिथे । करिया भइंसा म ए गुन देखे बर मिलिस । जानवर घलो अपन मालिक बर वफादारी रहिथे अऊ जिनगी भर साथ देथें।

*✍️डोरेलाल कैवर्त " हरसिंगार "*

       *तिलकेजा, कोरबा (छ.ग.)*

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छत्तीसगढ़ी व्यंग्य बछरू के साध अउ गोल्लर के लात

 छत्तीसगढ़ी व्यंग्य

बछरू के साध अउ गोल्लर के लात

वीरेन्द्र ‘सरल‘

चरवाहा मन के मुखिया ह अतराप भर के चरवाहा मन के अर्जेन्ट मीटिंग लेवत समझावत रहय कि ऊप्पर ले आदेश आय हे, अब कोन्हो भी बछरू ला डराना-धमकाना, छेकना-बरजना नइ हे बस अतके भर देखना हे, ओमन  रोज बरदी म आथे कि नहीं? बरदी म आके बछरू मन कतको उतलइन करे फेर हमला राम नइ भजना हे। जउन बछरू बरदी म नइ आवत हे ओखर घर में जाके ओला ढिल के लाना हे अउ भुलियार के बरदी म रखना हे। ओमन चाहे तुमन ला लटारा मारे, चाहे हुमेले ? तुमन ला कहीं नइ कहना हे भलुक प्यार से समझाना हे, - "अइसना नइ हुमेले बेटा। सींग म पेट ला लाग जथे गा। ज्यादा उतलइन नइ करे जी, श्रीमान हो। महोदय मन अतेक काबर अतलंग करथो रे, बाबू हो। "

 बस अइसनेच समझाना हे। न कोन्हो ला हुदरना हे, न काखरो बर लउठी उबाना हे अउ न हर्रे कहिके बरजना हे, इहां तक कि कोन्हो ला लाल आंखी तक नइ देखाना हे अउ न कोन्हो ला करू भाखा कहना हे। कोन्हो भी बछरू कोती ले तुंहर शिकायत मिलही तब तुहर जेवर पानी ला बंद कर दे जाही, समझगेव? अतका समझाय के बाद तुमन नइ मानहूं तब तुम जानो अउ तुहर काम जाने।

मुखिया के गोठ ला सुन के सब चरवाहा एक-दूसर के मुँहू ला देखे लगिन। सबो झन मने-मन गुनत रहय। बड़ा मरना हे यार! संसार के सबो जीव ह ननपन में जउन बात ला सीखे-पढ़े रथे ओखरे असर जिनगी भर रथे। अइसना नियम में हमर नान-नान बछरू मन उजड्ड हो जही। कहीं नीति-नियम ला न तो जानही अउ न बड़े बाढ़ के मानही। फेर हमन ला काय करना हे ददा, जेवर-पानी के सवाल हे। जेवर पानी बंद हो जही तब पेट बिकाली म हमी मन मर जबो, तेखर ले जइसे ऊप्पर ले आदेश आय हे, वइसनेच करे में भलाई हे।

बरदी के नियम कानून ह ढिल्ला होइस तहन सब बछरू मन मनमाने उतलइन होगे। बछरू के गोसान मन सोचे कि चरवाहा मन अलाल अउ कोढ़िया होगे हे। फोकट के जेवर पाके मेछरावत हे अउ खेत म कनिहा तोड़ के कमइया सियान-सियान बइला मन अपन बछरू मन के भविष्य ला सोच के रातदिन संशो-फिकर म बुड़े रहय। ओमन मने मन गुनय कभू हमू मन बछरू रहेन तब हमर गोसान नहीं ते चरवाहा ह हमर असन दु झन बछरू ला जोड़ के एके संघरा रेंगें बर सिखोवय। नांगर म फांद के अघुवा बइला मन के पाछू-पाछू खेत म नांगर के हरिया म रेंगावय। दौड़ी म फांद के सब सियान मन संग रेंगे बर सिखोवय। लइकापन म हमन कोन्हो बरदी के नियम-कायदा ला तोड़ पारन तब छेके बरजे, फेर आजकल अइसन का होगे कि चरवाहा मन कछु बोलबे नइ करय।

येती छेल्ला पाके बछरू मन गजब लाहो ले लगिन। जब मन होवय तब बरदी ला भाग जावय। काखरो बारी - बखरी म खुसरके बेन्दरा बिनास कर देवय। उखर मन में डर नाम के कोन्हो बातेच नइ रहिगे। सबे बछरू मन हरहा होय लगिन।  हरहा बछरू मन कभु रखवार के सपेटा म पड़ घला जाय अउ कांजी हाऊस म धंधाय के सजा मिल जाय तब रखवार तीर तुरते गोल्लर साहब के सिफारिश आ जाय। गोल्लर साहब के डर के मारे रखवार मन तुरते हरहा बछरू मन ला कांजी हाऊस ले छोड़ देवय। गोल्लर साहब के परताप ला देख-सुन अउ समझ के बछरू मन के मन में बस गोल्लर बने के साध रहय। कभु-कभु बछरू मन अपन जहुंरिया संगी-साथी मन संग गोठियावय कि भुंकरे वाला गोल्लर बनना चाही कि आशिरवाद दे वाले गोल्लर ? जिनगी के मजा इही दुनो किसम के गोल्लर बने म हे। जउन बछरू ला आशिरवाद दे वाले गोल्लर बने के साध रहय वोहा नंदिया बइला ला अपन गुरू बना लेवय अउ जउन ला भुंकरे वाले गोल्लर बने के सउख रहय ओमन भूंकरे वाले गोल्लर के आघू-पाछू किंजरय। उखर इशारा म बेन्दरा बरोबर नाचय।

गोल्लर साहब के आघू-पाछू नाचत-नाचत जब एक झन बछरू जवान होगे तब मउका देख के वोहा एक दिन गोल्लर साहब ला कही पारिस-‘‘अब तो आप मन सियान होगे हो। भुंकरे भर ला सकथव तुहंर गतर तो चले नही। अब हमू मन तो गोल्लर बने के मौका देवव साहब।

बछरू के गोठ ला सुन के गोल्लर साहब भड़क गे। कहिस-‘‘तुमन गोल्लर बने के लइक दिखथव रे। नाक बोहावत हे तेला पोछे के ताकत नइहे अउ बड़े-बड़े सपना देखथव। तुमन हमर धरम अउ पारटी के झंडा ला उठा के जिन्दाबाद कहत भुंकरव। जउन ला मन लागे तउन ला हुमेलव। जेखर बारी-बखरी ला रउंदना हे रंउदव। कोन्हो रखवार छेकही बरजही तब हमला बतावव। हमर रहत ले कोन रखवार के हिम्मत हे जउन तुंहला कांजी हाऊस म धांध सके। बस गोल्लर बने के साध झन करव नहीं ते अइसे हकन के लटारा जमाहूं कि जिनगी भर बर गोल्लर बने के साध ला बिसर जाहू, समझ गेस?

हमर रहत ले तुमन  ला गोल्लर बने के अधिकार नइहे। हमर बाद हमरे पिला-पागड़ू मन गोल्लर बनही। ओखर बाद उखर पिला मन गोल्लर बनही। ओखर बाद---। तुंहर काम सेवा करना आय अउ सेवा के बदला ला मेवा पाके मजा उड़ाना हे, समझेस?

फेर ये पइत तो वो बछरू के दिमाग में गोल्लर बने के भूत सवार होगे रिहिस। वोहा गोल्लर साहब के बात ला समझबे नइ करिस अउ अपन जिद में अड़े रिहिस। गोल्लर साहब के दिमाग खराब होइस तब वोहा वो बछरू ला अइसे जमा के लटारा हकनिस कि बछरू ह सोझे पशु औषधालय के आधू में जाके गिरिस।

भकरस ले आवजा ला सुन के अस्पताल के भीतरी में खुसरे डॉक्टर झकनाके खोर  डहर दौड़ीस। देखिस, बछरू उतान पडे रहय। डॉक्टर ह तीर में आके पूछिस-‘‘आपके आगमन कहाँ ले होवत हे बछरू बाबू? सुनके बछरू बगियागे। ओखर एड़ी के रिस तरवा म चढ़गे। वोहा किहिस-‘‘दिमाग खराब झन कर यार! सोझ बाय मरहम-पट्टी कर अउ सूजी पानी दे।"

 डॉक्टर ह मरहम -पट्टी करे लगिस फेर बछरू ह कनिहा पीरा म हकरत-हकरत गोल्लर भैया जिन्दाबाद के नारा ला लगातेच रहय।

--वीरेन्द्र ‘सरल‘

बोडरा ( मगरलोड)

जिला-धमतरी , छत्तीसगढ़

मो 7828243377

ओ माया मोर

 ओ माया मोर 


धान कटोरा छत्तीसगढ़ म संस्कृति, परम्परा अउ आस्था के त्रिवेणी संगम हे। इहाँ के हर परब, उछाह अउ तीज-तिहार प्रकृति ले जुड़़े हवय अउ सबो के अपन-अपन महात्तम हे। नवरात के जवाँरा तको माई के पूजा, अर्चना अउ अराधना के संगे संग प्रकृति -पूजा के एक ठो विशेष शैली हरे।  


नवरात म देवी माँ नौ ठिन रूप म पूजे जाथे। कहिथे जब देवी माँ प्रगट भइस त ओकर हजारो आँखी रिहिसे अउ वो आँखी मन ले नौ दिन ले सरलग जल गिरत रिहिसे। संगे -संग खाए-पीए के जीनिस तको बरसत रिहिसे। जेकर ले सब जीव-जिनावर अउ वनस्पति-प्रकृति के पियास बुझिस। जीव-जिनावर के संगे-संग वनस्पति-प्रकृति के पियास बुझाए के सेति देवी के एक नाम शाकम्भरी तको परिस। इही दिन ले वनस्पति पूजा शुरू होइस। वनस्पति जिनगी के अधार होथे, जेकर ले जीव ल जीवन के  आधारभूत शक्ति मिलथे। उही सेति जेवन माने जीवन के आसरा म लोगन जवाँरा बोथे। प्राचीन भारतीय चिकित्साशास्त्र आयुर्वेद के अनुसार जवाँरा के रसपान ले विटामिन सी अउ रोग प्रतिरोधक क्षमता म बढ़ोतरी होथे। सरगुजा म एला जई बोना त बस्तर म देवी जगार के नाम ले जाने जाथे।


सेऊक मन पंचमी के जस पचरा गाके माता के सोलहो सिंगार के वर्णन करथे त सप्तमी के दिन ल जगराता कहिथे। सप्तमी के दिन रात भर जागके देवी दाई के पूजन अर्चन करे जाथे। बिहान भर माने अष्टमी के कलश चढ़ाके पींवराए जवाँरा ल अउ गाढ़ पींयर देखे के आसरा म हरदी पानी छींचथे जेला हरदाही कहिथे। सेऊक मन देवी जस गीत के अलावा ओकर दिकपाल मन के तको जस गाथे जेमा ब्रम्हा के पुत्र बरमदेव, गहिरा के पुत्र ल गोड़रइया अउ धोबी के पुत्र ल बन के रकसा कहिके संबोधित करे जाथे। 


जवाँरा के फुलवारी ल देख-निहारके सियान मन वो बछर के सुकाल -दुकाल के अनुमान लगा लेथे। फुलवारी कहूँ रिगबिग ले घमाघम जामे ह त सुकाल हे, कहूँ कमजोर हे त दुकाल अउ खण्ड मंडल जागे ह त समझ ले वो बछर खण्ड बरसा के लक्षण हे। 


संसार म सबो रिस्ता ले लहू के रिस्ता ल सगले बड़का माने जाथे। फेर देखे बर मिलथे कि लहू के रिस्ता ले तको बढ़के एक ठन अउ रिस्ता होथे वो होथे मया के रिस्ता। मया के ये रिस्ता म जात पात, ऊँच नीच, छोटे बड़े नइ देखे जाय। धर्म के भाखा म जेला निस्वार्थ प्रेम अउ विज्ञान के भाषा म प्लेटोनिक लव कहे जाथे। इही निस्वार्थ प्रेम ल आधार देहे खातिर छत्तीसगढ़ म मितानी परंपरा के निर्वहन करे  जाथे, जेला मितानी बदना कहे जाथे। जेला महाप्रसाद, गंगाबारू, गंगाजल, गोवर्धन, दौना, भोजली नाम देहे जाथे। इही मितानी परंपरा म जवाँरा बदे के तको रिवाज हवय। भोजली अउ जवाँरा के बदना ये बात के परिचायक हरे कि खून के रिश्ता ले बड़े अऊ रिश्ता होथे जऊन मन ले मन मिले ले बनथे। जऊन ह मनखे मनखे ल एक बनाथे अउ इही असल धरम हरे। धरम कोनो नीत-नियम या अचार-व्यवहार के मोटरा नई होवय जेन मनखे ल बाँधके रखय बल्कि धरम वो ये असार निसार संसार म जिए के रद्दा हरय जउन जिनगी म उछाह अउ मंगल भर देथे। जिनगी ल सजा-सँवार देथे। जिनगी के ये मरम ल समझ के जऊन करम करे जाथे उही धरम ये। अउ आखिर म देवी दाई के नौ रूप के अराधना -

पहिली पूजौं करौं वंदना

पहिला दिन नवरात्रि ।

पर्वत के शिखर म बिराजै 

रानी माँ शैलपुत्री ।।


जल कमण्डल  एक हाथ म 

दूसर हाथ गुलाब धरे ।

दूसरइया दिन ब्रम्हचारिणी 

रूप अनन्त धरे विचरै  ।।

 

दिन तीसर मंदिर देवाला 

गूंजै टनटन घंटा के ।

आधा चंदा माथा सोहै 

दसभुजी चंद्रघंटा ।।


शेर सवारी माँ  कूष्मांडा

प्राणशक्ति देवइया ।

जइसे गोला ब्रम्हांड के 

चौथा दिन म अवइया ।।


ज्ञान कर्म के सूचक मैया 

चार भुजी कमलासन ।

पा¡¡¡चवा दिन स्कंदमाता के

रंग सफेद मनभावन ।।


सत्य धर्म के सिरजन खातिर 

ज्ञान स्वरूपा क्रोध देखावै ।

जगतहित बर छठवा दिन 

माँ कात्यायनी रूप म आवै ।।


रूप भयंकर कालरात्रि के 

लाश (गदहा) म चढे धरे मशाल ।

दिन सातवा बनके आए 

मैया असुर मन के काल ।।


बइला सवार त्रिशूल धरे 

बिजली जस उज्ज्वल गोरी ।

आठवा दिन नवरात्रि में 

आवै मैया महागौरी ।।



अष्टसिद्धि नवनिधि के दात्री

चार भुजा हे तोर ।

अर्धनारीश्वर सिध्दिदात्री 

नौवा दिन हे तोर ।।


धर्मेन्द्र निर्मल

9406096346

भाग्यवती दीदी (संस्मरण )

 भाग्यवती दीदी (संस्मरण )

भाग्यवती दीदी जिसे हम लोग भागो दीदी कहते थे। ममता की मूर्ती थी। बैजनाथ पारा में घर था, अभी भी है। वर्धा से नागपुर आये थे। धनीराम जी की नौकरी स्वतंत्रता आंदोलन के कारण छूट गई थी। नागपूर से आने के बाद रायपुर में बुनियादी संचालक बने थे। तुलेन्द्र को उस समय सेंटपाल स्कूल में भर्ती कराये थे। धनीराम जी बाद में सत्ती बाजार में एक दुकान खोल लिये। श्रीराम स्टोर। यहाँ पर फाऊंटेन पेन बनाया जाता था। नीब जीब मिलता था। पुरानी पुस्तके चौथाई कीमत में खरीदी जाती थी और उसे आधी कीमत में बेचते थे। दुकान के कारण घर का खर्च निकल जाता था।


भागो दीदी दयालु थी। जब भिखारी आते थे तो  उन्हे अपने घर के गलियारे में बैठाकर खाना खिलाती थी। वहाँ पर बड़े बड़े पाटे रखे हुये थे। यदि कोई तम्बूरा या भजन सुनाने वाला आता था तो उसे बैठाकर खाना खिलाती उसके बाद भजन सुनती।"नारायण नारायण भज मन नारायण"


ईश्वर भक्त के साथ साथ गरीबों की मसीहा थी। पाँच बेटे हुये और एक बेटी। बेटी लक्ष्मी तो लक्ष्मी ही थी। बहुत धूमधाम से उसकी शादी किये थे। बड़ा बेटा नरेंद्र जो बाद में आत्मानंद के नाम से प्रसिद्ध हुये। 

उनका जन्म 06 अक्टूबर 1929 को रायपुर जिले के बरबंदा गाँव में हुआ था। उस समय पिता धनीराम जी स्कूल में शिक्षक थे। धनीराम जी ने वर्धा स्थित प्रशिक्षण केंद्र में अपना नामांकन कराया और अपने परिवार के साथ वहीं चले गये। धनीराम जी अक्सर गांधी जी के पास ही स्थित सेवाग्राम आश्रम में जाया करते थे। तुलेन्द्र अपने पिता के साथ सेवाग्राम आते थे। बालक तुलेन्द्र अत्यंत मधुर स्वर में भजन गाते थे। गांधी जी  उनकी आवाज़ के प्रशंसक थे। गाँधी जी की लाठी पकड़ कर चलते थे। यह फोटो आज भी दिखाई देती है।


धीरे-धीरे समय बीतता गया, 1949 में तुलेन्द्र ने शीर्ष ग्रेड के साथ बीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1951 में, उन्होंने एम.एससी (गणित) में प्रथम रैंक हासिल की और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में उच्च अध्ययन के लिए स्थान मिल गया। वे भारत में ही रहे और सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी। अपनी कड़ी तैयारी से उन्होंने जल्द ही सिविल सेवा परीक्षा पास कर ली। उनकी रुचि समाज सेवा के प्रति थी तो वे पुणे के धंतोली में एक आश्रम में अपना पूरा समय देने लगे और अंत में सन्यास लेकर आत्मानंद बन गये


दूसरा बेटा देवेंद्र निखिलानंद के नाम से सन्यासी बने। तीसरा बेटा नरेंद्र पढ़ाई के बाद कालेज मेऔ प्रोफेसर बन गये। बेटों में इन्ही ने शादी की। उसके बाद चौथे बेटे राजेन्द्र वर्मा त्यागात्मानंद के नाम से सन्यासी बने। पाँचवा बेटा ओमप्रकाश वर्मा

आध्यात्मिक भाषण देते हैं और विवेकानंद कालेज की देखरेख करते है। विवाह नहीं किये हैं।

1960 में चैतन्य जी ने संन्यास ले लिया और बाद में स्वामी आत्मानंद जी कहलाये। वह शाम को भजन गाते और धार्मिक ग्रंथों से दार्शनिक प्रवचन पढ़ते हुए बिताते थे। उनके प्रवचनों में भाग लेने वाले लोगों ने दान देना और आर्थिक योगदान देना शुरू कर दिया ताकि वे अधिक लोगों की सेवा कर सकें। जनवरी 1961 में, राज्य सरकार ने उन्हें आश्रम के निर्माण के लिए 93,098 वर्ग फुट जमीन दी। 13 अप्रैल 1962 को इस आश्रम का उद्घाटन हुआ। उसके बाद आश्रम लगातार आगमन बढ़ता रहा। मुफ्त ईलाज के लिये अस्पताल खुला है। सत्संग हॉल बना है। यहाँ पर हर वर्ष वार्षिक उत्सव मेरें बहुत से लोग प्रवचन के लिये आते हैं। आत्मानंद जी व्याख्यान माला भी आयोजित करथे थे। जहाँ स्कूल के बच्चे आते हैं। मैं भी दो बार गई थी। सर्वधर्म व्याख्यान रखा जाता है। हर धर्म के लोग बहुत ही प्यार हे भाषण देने आते हैं। 


छोटा सा ग्रंथालय भी बनाये थे जो आज विशाल रूप ले लिया है। मैनें भी वहाँ एम एस सी की और मेरै पति ने गणित एम एस सी की पुस्तके दान दी थी। अभी बहुत सी साहित्यिक पुस्तकें दान की हूँ। हर रविवार को गीता पर प्रवचन दिया करते थे। हम लोग बैरनबाजार से ईदगाहभाठा अपने घर में रहने आये 1962 में। तब लकड़ी के घेरे से घिरा था आश्रम। हम लोग यहाँ घूमने आते थे। तीन साल के बाद वहां अखबार भी आने लगा तो काका पढ़ने जाते थे। हम वोग भी जाते थे। काका और धनीराम जी का पहले से परिचय था। माँ और भागो दीदी का बहन का रिश्ता था। हमारे घर के पास मंगलवार और शुक्रवार को सब्जी बाजार लगता था तब भागो दीदी सब्जी लेती और हमारे घर.आधा घंटा बैठती थी। उसके बाद आश्रम जाती थी।  बाद में दीदी की शादी हो गाई वह पी एच डी करने आई तब हम लोग आश्रम जाते थे तब माँ भी भागो दीदी के साथ जाती थी। स्वामी जी से बहुत घरेलु बातें और हँसी मजाक होते रहती थी। मुझसे कभी कभी मजाक करते और गणित पूछ लेते थे। हा हा हा। मैं सबका सही जवाब देती थी वे खुश हो जाते थे।भागो दीदी के सब बच्चे एक के बाद एक आश्रम आते गये लक्ष्मी दीदी की शादी हो गई। बस  बहु तारा और धनीरामजी और भागो दीदी ही रह गये। श्रीराम स्टोर तेजी से चलने लगा था। उहें गाँव से आने वाले भी जानते थे। नई पुरानी पुस्तकों का खदान था।

मैं आश्रम के ग्रंथालय की पुस्तकों से एम एस सी तक की पढ़ाई कर ली। मेरा आश्रम जाना कभी रुका नहीं शादी के बाद भी जाती थी और  स्वामी जी से बातें करके प्रणाम करके आती थी। रामकृष्ण जी का मंदिर बना वहाँ बैठ कर ध्यान लगा लेते थे।


भागो दीदी अपने बच्चों से खुश थी। उनका आध्यात्मिक लगाव और दानशीलता का बीज बच्चों में आया था। आश्रम शाम को जाती.और आत्मानंद जी के साथ उनके कमरे में बहुत देर तक बैठती थी। रात होने पर आती थी। तब तो तीन चार किलोमीटर की दूरी पैदल ही तय करथि थे।सभी बेटे गृहस्थ से दूर रहे। अकेली बहू तारा ने सबको सम्हाल लिया।


एक बार आत्मानंद जी अपने भाईयों और माँ के साथ अमरनाथ यात्रा के लिये गये। ये लोग बीच में रुके थे। मौसम खराब था।भागो दीदी की तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी तो वह सभी को बोली तुम लोग जाओ मुझे छोड़ दो। पर आत्मानंद जी बोले मैं रूकता हूँ बाकी सब जाओ। सब चले गये। भागो दीदी ने कहा "सब जा रहे हो देखना मैं तुम लोगों से पहले पहुँच जाऊँगी।" पंचतरणी में रुके थे। श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था जब भागो दीदी आत्मानंद जी के गोद में सिर रखकर लेटी थी। वह बोल रही थी मैं अमरनाथ जी के दर्शन के लिये जाऊंगी। और अचानक साँस रुक गई। आत्मानंद जी ने किसी जाने वाले से खबर भेजा कि माँ शिवधाम चली गई। खबर देने वाला जल्दी ही गया तब तक वे लोग पहुँच रहे थे पर दर्शन नहीं किये थे। सबने याद किया कि माँ ने कहा था मैं तुम लोगों से पहले पहुँच जाऊंगी और सच में आत्मा शिव मे विलिन हो गई। सब लोग वापस आये। लकड़ियों का इंतजाम किया गया और अंतिम संस्कार किया गया।ऐसी थी हमारी भागो दीदी। जिसने ऐसे बेटों को जन्म दिया जो आध्यात्म की जोत जला रहे हैं। ऐसी भाग्यशाली थी भाग्यवती जिसने श्रावण पूर्णिमा के दिन अपने प्राण तियागे, शिव में विलिन हो गई और उसकीअंतिम विदाई सन्यासी बेटों ने किया।

सुधा वर्मा, 27/7/2024

छत्तीसगढ़ी व्यंग्य छत मा जल सग्रंहण -वीरेन्द्र सरल

 छत्तीसगढ़ी व्यंग्य 

 छत मा जल सग्रंहण

-वीरेन्द्र सरल


एकेच दो साल पहिली बने नवा सरकारी भवन के छत उपर गर्मी भर मनमाने बोरझरी और बमरी कांटा ला बगरा के राखे गे रिहिस हावे । रद्दा म रेगंइया ओती ले रेंगें तब छत उपर कांटा ला देख के अचरज मे पड़ जाय।कारण जाने के उदिम करे फेर कारण समझ मा आबे नई करे। फेर जइसे बरसात लगिस तइसे वो कांटा ला टार के छत ऊपर खपरा चढ़ाय जात रिहिस। अब तो देखइया मन के अचरज के ठिकाना नई रिहिस ।सब के दिमाग घूमगे ।सबे सोचे -अरे! अहा काय चरितर आय ददा । बाप पूरखा छत के उपर म खपरा लगे नई देखे रहेन । ये सरकारी भवन वाले साहेब ला काय होगे हावे ।नवा नवा चरित्तर अपनाय हावे। आखिर मोर जीव नई सहाइस । एक दिन मेहा उही रद्दा म रेंगत रहेंव।तब वो भवन तीर म चल देव ।तीर मा जाय के बाद म पूछ झन । मोर दिमाग फ्यूज होगे।

भवन के कालम के तीर म लकड़ी लगा के छत ला टेकाय गे रिहिस हावे ।तभे उहां मोला एक झन साहब दिखिस ।मेहा पुछेव- "काय बात आय साहब आप मन के ये काम काखरो समझ म नई आवत हे।आपके कोन्हो तबियत खराब होही ते इलाज पानी करा लेव। फेर अइसन उटपुटांग काम झन करव कि देखइया के दिमाग घुम जाय।"


साहब खलखला के हांसिस अउ किहिस -"अच्छा ये बात आय। बइठ ,समझबे तहन कहीं अचरज नई लागे । अच्छा ये बता तुमन अपन छानी वाले घर मे कांटा बगरा के काबर राखथव।"

 मैहा कहेव-" जान दे साहब गरमी भर बेंदरा मन छानी म कूदथे। सबो खपरा फूट जाथे अउ बरसात भर पानी टपकथे।"

 साहब किहिस -"उहीच बात तो आय।बेंदरा मन ले छत ला बचाय बर कांटा बगराय रहेंव अउ अब पानी टपके ले बचाय बर छत म खपरा लगवात हवं।ये मे अचरज के काय बात हे बता?" 

मेहा बकबकागेंव अउ कहेंव- "साहब! छानी के खपरा फूटे के बात तो समझ म आथे फेर बेंदरा कुदई म छत के टूटे फूटे के बात समझ म नई आय। मोला लागथे ,छत के ढलाई बने नई होय होही ,तिही पाय के बरसात म छत मा पानी भरत होही अउ छत टपकत होही । निसेनी मंगातेव तब मैहा चढ के देख देतेव।"


सहब हा तुरते पड़ोसी घर ले निसेनी मंगा दिस । मैहा निसेनी टेका के छत म चढे लगेव। 

साहब किहिस -"थोड़कुन देख के चढ़बे भई। "

मैहा पूछेंव-"कइसे निसेनी कमजोर हावे काय साहब"?वोहा किहिस -"निसेनी नही ददा ,छतेच ह कमजोर हावे। देखत नई हस छत हा कालम नही बल्कि लकड़ी के सहार म टेके हावे,डर लागथे तोर वजन के मारे कहूं छत भसक झन जाय।"

 येला सुनके महूं ला हांसी लागिस ।धीरे धीरे मैहा छत म चढ गेंव । छत ह सिरतोन म डिपरा डबरा ढलाय रहय। अउ उहां बरसात के पानी ह भरे रहय।

 मेहां कहेंव -"देखे साहब मैहा जउन बात ला कहत रहेंव उही बात आय ।छत म पानी भरे हावे उही ह टपकथे ।छत ह बेंदरा कुदई म टूटे फूटे नही हे ददा।जब ये भवन बनत रिहिस तब कहूं ठेकादार ला कहे रहितेंव अउ बने देख रेख करे रहितेंव तब अइसन बात नई हो रतिस जाने।"


सहब मुड धर के बइठ गे अउ किहिस- "अरे कहेंव भई, घेरी बेरी कहेव फेर ठेकादार माने तब ना।वोहा तो उल्टा मोला समझावत कहि दिस – देख साहब,हमन जब सरकारी भवन बनाय के ठेका लेथन तब एक  शर्त रहिथे कि भवन के संगे संग रेन वाटर हार्वेटिंग सिस्टम घला बनाना हे ।आप मन जानथव गरमी म पानी के कतेक किल्लत होथे। एक एक बूंद पानी बर लोगन ला तरसे ला पड़ जाथे। पानी बर महाभारत कस लड़ई मच जाथे।मारपीट झगड़ा झंझट काय नई होयव पानी बर ।तिही पाय के सरकार ह जल सग्रंहण करे बर किसम किसम के उपाय करथे। ठौर ठौर मे तरिया ,बांधा बनाथे। सरकार के जल सग्रंहण के अभियान म हमु मन जी पराण देके भिड़े हावन।अउ छत ला अइसे बनाथन कि छत के एक बूंद पानी खाल्हे मे गिर के बिरथा झन बोहावय। अरे!फेर कोन भुंइया ला खन के रेनवाटर हार्वेस्टिग सिस्टम बनाय के झंझट पाले । हम तो धरती माता ला घलो अपने असन समझथन।हमर भावना हे जइसे खेत के पानी खेत म ,तरिया के पानी तरिया म वइसने छत के पानी छतेच म रहय।एखर ले आप मन दू फायदा होही पहिली बात पीये के पानी बर अलग से बोर कराय बर नई लागे अउ दूसर फायदा हे पानी भरे बर छत म अलग से टंकी बनाय बर या ले बर घला नई लागे।बस सोझ बाय पाइप भर लगा अउ पी पानी साल भर ले छत के ।छत के उही पानी ला चिरई चिरगुण मन घला पिही और उही ला आपो मन पियो ।भई संत मन कहिथे ,संसार के सबो जीव जन्तु ह भगवान बर बरोबर होथे ।एके किसम ले खाय पिये ले मया परेम बाढ़थे,समानता के भाव बनथे।"


अतका बता के साहब किहिस –" ले अब बता ,मैहा ठेकादार ला अउ काय कहितेंव। जेखर भावना अतेक पावन हे ।छत उपर जलसंग्रहण करे के नवा तकनीक विकसित कर डारे हावे।तउन महान मनखें संग अउ काय बात करतेव।मैहा कलेचुप रहिगेव भईं।आजकाल के सरकारी भवन मन अतेक नवा तकनीक म बनत जावत हे कि एकेच दू साल मन सफा भवन ला नवा बनय बर लाग जावत हे।"


साहब के पीरा ला समझ के मोरो मुहूं बंद होगे ,गोठबात के अउ कही जगच नई बाचिस। मैहा कलेचुप उहां ले लहुट गेंव।

वीरेन्द्र सरल

बोड़रा

पोस्ट -भोथीडीह

व्हाय-मगरलोड़

जिला-धमतरी।

व्याकरणाचार्य हीरालाल काव्योपाध्याय

 


व्याकरणाचार्य हीरालाल काव्योपाध्याय

छत्तीसगढ़ महतारी ह वीर प्रसूता तो आयेच संगे-संग एकर कोरा म संत गुरु घासीदास जइसे संत महात्मा ,कालीदास जइसे महाकवि ,कतको महामानव अउ अमर कलाकार ,कवि ,साहित्यकार मन तको जनम लेये हें।

आदि कवि बाल्मीकि, श्रृंगी रिसि अउ शबरी दाई के तपोवन भुँइयाँ , जगत वंद्य भगवान श्रीराम के महतारी माता कौशिल्या के  मइके ए भुँइयाँ बड़ जागरित अउ पावन हे।

इही पावन भुँइयाँ म महामानव साहित्यकार,महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी के, वो समे जब खड़ी बोली के व्याकरण तक नइ बने रहिसे, व्याकरणाचार्य हीरालाल 'काव्योपाध्याय' ह जन्म लेये रहिन हें।

जीवन परिचय--

श्री हीरालाल 'काव्योपाध्याय'जी के जन्म सन् 1856 म ग्राम--राखी(भाठागांँव), तहसील-कुरुद,  जिला--धमतरी म होये रहिस। पिता जी के नाम--श्री बालाराम चंद्राकर अउ महतारी के नाम--श्रीमती राधा बाई रहिस हे। श्री बालाराम चंद्राकर जी रायपुर म गल्ला के व्यपार करयँ।

'काव्योपाध्याय' जी ह अपन आठ भाई बहिनी म सबले बड़े रहिन।

हीरालाल जी के दू बिहाव होये रहिस।बिहाता के अल्पमृत्यु के बाद दूसरइया बिहाव होये रहिस उहू ह अल्प काल म स्वर्ग सिधार गिन। जेकर सेती उन संतान सुख ले वंचित रहिन।

शिक्षा दीक्षा अउ कार्य--

'काव्योपाध्याय' जी के प्राथमिक शिक्षा दीक्षा रायपुर म होये रहिस। उन मन मेट्रिक के परीक्षा सन 1874  म जबलपुर केंद्र ले पास करे रहिन।

उनकर रूचि पढ़ाये अउ खुदे पढ़े म बहुत जादा रहिसे। स्वाध्याय के बल म उन ला अंग्रेजी, बंगला, मराठी ,संस्कृत आदि भासा मन म अधिकार होगे रहिस।

सन् 1875 म उन ला 19 बरस के उमर म 30 रू० महिना वेतन म रायपुर के जिला स्कूल म सहायक शिक्षक के नौकरी मिलगे।

उन अपन विद्यार्थी, साथी शिक्षक अउ पालक मन म बहुत लोकप्रिय रहिन हें।

बीच म जिला स्कूल बिलासपुर म तको पढ़ाईन तहाँ ले  सन 1882 म हेडमास्टर म पद्दोन्नत होके ,60 रू मासिक वेतन म अपन गृह जिला मुख्यालय धमतरी म आगें अउ उहें बसगें।

'काव्योपाध्याय' के पिताजी ह अपन चंद्राकर समाज के मुखिया रहिन हे। ओकर प्रभाव श्री हीरालाल जी उपर बने परे रहिसे। तेकर सेती समाज सेवा म आपो लगे राहव। आप धमतरी डिस्पैंसरी समिति के सभापति अउ नगरपालिका के अध्यक्ष के रूप म जन सेवा करेव।

साहित्यिक परिचय--

'काव्योपाध्याय' जी ह आशु कवि रहिन । उन कर प्रमुख कृति हें--

शाला गीत चंद्रिका--सन्1881 म लखनऊ के नवल किशोर  प्रकाशन ले प्रकाशित।

गीत रसिक

अंग्रेजी रीडर भाग 1,भाग 2

उपर के कृति मन ल पढ़इया लइका मन बर लिखे रहिन हें।

नवकांड दुर्गायन--ये ह उनकर 'दुर्गा सप्तशती' के आधार लेके लिखे बहुतेच प्रसिद्ध छंद अउ मात्रा म बंँधे रचना आय।

इही कृति म 11 सितम्बर 1884 म एक समारोह म 'बंगाल अकादमी आफ म्यूजिक ' के महाराजा सर सुरेंद्र मोहन ठाकुर ह 'काव्योपाध्याय' के उपाधि अउ सोन के बाजूबंद(स्वर्ण केयूर) दे रहिन।

छत्तीसगढ़ी व्याकरण--

भगवान जाने ,काय बात ये ते। अधिकांश महान रचनाकार मन अपन अमर, कालजयी कृति के रचना अपन जीवन के अंतिम काल म करे हें। 'काव्योपाध्याय' जी ह घलो अपन जीवन के छेवर काल म सन् 1881 ले सन्1885 के चार साल म जगत प्रसिद्ध ग्रंथ  छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रथम छत्तीसगढ़ी व्याकरण के रचना करिन जेला वो समे के प्रसिद्ध भाषा शास्त्री  सर जार्ज ग्रियर्सन  ह अंग्रेजी म अनुवाद करके  'जर्नल आफ एसियाटिक सोसायटी आफ बंगाल ' म जिल्द तीस भाग 1 म सन्1890 म प्रकाशित करवाइस।

ए प्रकाशन ले 'काव्योपाध्याय' के प्रसिद्धि सरी दुनिया म फइल गे।

श्री ग्रियर्सन ह आभार व्यक्त करत लिखे हें- "हीरालाल जैसे विलक्षण महापुरुष के कारण ही हम भिन्न-भिन्न भाषाओं के बीच सेतु बनाने के अपने प्रयास में सफल हो पाते हैं।"

मृत्यु--  हीरालाल 'काव्योपाध्याय' जी ह   ये जगत म अपन भूमिका निभाके सिरिफ 34 साल के उमर म  उदर रोग ले पिड़ित होके सन्1890 म स्वर्ग सिधार गिन।

उन आज भले नइये फेर अपन कृति ले सदा अमर रइहीं।


चोवा राम वर्मा 'बादल '

हथबन्द, छत्तीसगढ़

पुरखा के सुरता छत्तीसगढ़ी के अमर गीतकार - लक्ष्मण मस्तुरिया

 साहित्यिक तर्पण 


पुरखा के सुरता   


    छत्तीसगढ़ी के अमर गीतकार - लक्ष्मण मस्तुरिया 


                       मोर संग चलव रे, मोर संग चलव जी… मंय छत्तीसगढ़िया अंव… पता दे जा रे गाड़ी वाला… पड़की मैना… मंगनी म मांगे मया नइ मिलय… मन डोले रे माघ फगुनवा… घुनही बंसुरिया… सोना खान के आगी… जइसे गीत के लिखइया जन कवि  श्रद्धेय मस्तुरिया जी हा अपन अपन गीत, कविता अउ गायन के माध्यम ले छत्तीसगढ़िया मन के स्वाभिमान ला जगाइस अउ सुग्घर ढंग ले अपन हक खातिर लड़े के रद्दा बताइस. वोकर गीत म एक डहर छत्तीसगढ़ महतारी के गजब बखान हे त दूसर कोति छत्तीसगढ़वासी मन के भोला पन के वर्णन के संगे- संग किसान, मजदूर ला जगाय के उपाय हे.

जिनगी भर छत्तीसगढ़िया मन के मान मर्यादा बर लड़इया अइसन क्रान्तिकारी कवि अउ गीतकार

के जनम बिलासपुर जिला के मस्तुरी गाँव म 7 जून 1949 के होय रिहिन हे. शुरुआत के जिनगी गजब संघर्ष ले बीतिस. फेर वोहर राजकुमार कालेज रायपुर

म शिक्षक के रूप म अपन सेवा दिस. बाद म हिंदी विभागाध्यक्ष घलो रिहिन.

जउन मन ह दाउ रामचन्द्र कृत चंदैनी गोंदा ल अपन खूब मिहनत ले ऊँचाई तक पहुँचाइस वोमा लक्ष्मण मस्तुरिया ह प्रमुख रिहिन हे. लक्ष्मण मस्तुरिया ह चंदैनी गोंदा के गीत अउ गायन पक्ष ल गजब सजोर बनाइस.

मस्तुरिया जी के लिखे अउ गाये

गीत ह जनता के बीच गजब लोक प्रिय होइस . छत्तीसगढ़ के आकाशवाणी केन्द्र मन म उंकर गीत ह खूब चलिस. रायपुर दूरदर्शन म गीत प्रसारित होइस. उंकर गीत ल सुन के मन ह खुशी से झूमे लागय त कतको गीत ह छत्तीसगढ़िया मन के स्वाभिमान ल जगाइस. वोकर गीत के खूब आडियो अउ वीडियो रूप बनिस. पान ठेला, होटल के संगे संग बर बिहाव, षट्ठी, कोनो भी सार्वजनिक कार्यक्रम म मस्तुरिया जी के गीत रंग झाझर मंता देय. वोकर गीत ल सभा -संगोष्ठी म बजा के / गा के जनता म जोश भरे जाथे. स्कूल /कॉलेज के वार्षिक समारोह म मस्तुरिया के गीत ह कार्यक्रम म जान डाल देथे.

लक्ष्मण मस्तुरिया के बारे म डॉ. बल्देव जी ह लिखथे –“लक्ष्मण मस्तुरिया हमर अग्रज कवि हरि ठाकुर जइसन वीर अउ ऋंगार, क्रांति अउ पीरित के अद्वितीय गायक आय .कहूँ -कहूँ उन बहुत करीब हे, लेकिन शैली के थोर बहुत अन्तर तो रहिबेच करही.”

छत्तीसगढ़वासी मन के स्वाभिमान ल वो कइसे जगाइस वोकर उदाहरण देखव                              –सोन उगाथौं माटी खाथौ ।

मान ल देके हांसी पाथौ ।।

खेती खार संग मोर मितानी ।                                                           घाम मयारु हितवा पानी ।।


मोर इही जिनगानी मंय नगरिया अंव ग

किसन के बड़े भइया हलधरिया अंव रे …

झन कह मोला लेढ़वा डोमी करिया अंव ग

सिधा म सिधा नइ तो डोमी करिया अंव रे…

मैं छत्तीसगढ़िया अंव रे…


मोर संग चलव गीत म वोहर छत्तीसगढ़िया मन ल जगाय के काम करथे. बिपत संग जूझे बर कहिथे.

मोर संग चलव रे, मोर संग चलव जी

वो गिरे थके हपटे मन अउ परे

डरे मनखे मन

मोर संग चलव रे, मोर संग चलव ग

बिपत संग जूझे बर भाई मंय बाना बांधे हंव ।

सरग ल पिरथी म ला देहू प्रन अइसे ठाने हंव ।।

मोर सुमता के सरग निसेनी जुरमिल सबो चढ़व रे….

मोर संग चलव रे, मोर संग चलव जी…

मस्तुरिया जी के ऋंगार गीत ल सुन के मन ह मयूर जइसे नाचे ल लगथे. अंतस ह मगन हो जाथे.


पता दे जा ले जा गाड़ी वाला रे

तोर नाम के तोर गाँव के तोर काम के…

पता दे जा…

जियत जागत रहिबे बयरी

भेजबे कभू ले चिठिया

बिना बोले भेद खोले रोये

जाने अजाने पीरीतिया

बिन बरसे उमड़े घुमड़े

जीव मया के बयरी बदरिया

पता दे जा रे गाड़ी वाला…

अइसने “पड़की मैना “गीत ल सुनके हिरदे ल गजब उछाह लागथे.


वारे मोर पड़की मैना, तोर कजरेली नैना

मिरगिन कस रेंगना तोरे नैना

मारे वो चोंखी बान, हाय रे तोर नैना…


वियोग ऋंगार रस मा मस्तुरिया के गीत ल सुन के मया करइया मन के आंसू ह टपक जाथे.


काल के अवइया कइसे आज ले नइ आये

तोला का होगे, रस्ता नइ दिखे बइरी तोर…

का कहूं रस्ता म काहीं अनहोनी होगे

का कहूं छोड़ मया ल संगवारी जोगी होगे

घेरी बेरी डेरी आंखी कइसे फरकाये

तोला का होगे, टीपकी टीपकी आंसू गिरे मोर…


अइसने अउ उदाहरण प्रस्तुत हे..


सरी रतिहा पहागे तैं नइ आये रे

तोला घेरी बेरी बइरी मंय सपनायेंव रे…

अइसन का होगे काम

भूलिगै देह ल परान

का तो महि हौं अभागिन

अपने होगे आन

आ आ नींद बइरी आंखी ले उड़ि जाय रे…


शोषण करइया मन ल मस्तुरिया जी खूब ललकारय .

हम तो लूट गयेन सरकार तुंहर भरे बीच दरबार

खुल्लम -खुल्ला राज म तुंहर अहा अत्याचार

रइहो रइहो खबरदार…

हाय विधाता दिन -दिन बाढै देस म अत्याचारी

परमिट वाले डाकू भइगे जन सेवक सरकारी

सुतरी सुतरी छांद फांद के लूटै पारी -पारी

हांस रे लछमन करम ठठा नइ रोवे म उबार

हम तो लूट गयेन सरकार तुंहरे भरे बीच दरबार…


मस्तुरिया जी ह “सोनाखान के आगी” म शहीद वीर नारायण सिंह के वीरता ल गजब सुग्घर ढंग ले प्रस्तुत करे हवय .


फेर सुरता आगे उही प्रन के ।                                                        फरकिस भुजा बरन ललियाय ।।                                                          आंखी जले लगिस लक लक l                                                              कटरै  दांत , बदन अटियाय  !!                                 


नहीं नहीं संगी ये मरना तो ।

कायर अउ मन हारे के ।।

मोर जिनगी मोर परजा खातिर।

जे मोला मुखिया माने हे ।।


जमींदार मंय सोना खान के ।

सोना उपजै मोर माटी म ।।

जिहां के भुंईधर भूख मरत हे ।

आग बरै मोर छाता म ।।


रचनायें… 

मस्तुरिया के रचना म हमू बेटा भुइंया के (काव्य संग्रह),

चंदैनी गोंदा में लक्ष्मण मस्तुरिया के गीत ,छत्तीसगढ़ के माटी (छत्तीसगढ़ दर्शन ),सोना खान के आगी, माटी कहे कुम्हार से (निबंध संग्रह) अउ घुनही बंसुरिया (गीत संकलन) प्रमुख हे.

मस्तुरिया जी ह सन् 2000 मा बने मोर छइंहा भुइंया, मंजरी सहित कतको छत्तीसगढ़ी फिलिम बर गीत लिखे के सँगे सँग गायन करिस.

कछ बेरा तक लोकासुर मासिक पत्रिका के संपादन घलो करीस.


सम्मान –  छत्तीसगढ़िया जन जागरण के अग्रदूत मस्तुरिया जी ल राज्य सरकार द्वारा जउन सम्मान मिलना रिहिस वो नइ मिल पइस. आंचलिक साहित्य म गजब लिखइया साहित्यकार मन ला शासन द्वारा पं. सुंदर लाल शर्मा सम्मान देय जाथे. वहू नइ देय गिस. जबकि मस्तुरिया जी के कई ठन गीत ह छत्तीसगढ़ के स्वभिमान गीत हरे. पृथक छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन के समय मस्तुरिया के गीत मोर सँग चलव रे… मयँ छत्तीसगढ़िया अवँ …ह शंखनाद के काम करिस. पर मस्तुरिया जी ह जनता के प्यार ल सबसे बड़े सम्मान माने. एक चैनल म इंटरव्यू देत खानि वोहा पूरा दम खम के साथ येला बोले रिहिस. ये इंटर व्यू देत समय सुप्रसिद्घ गीतकार जनाब मीर अली मीर जी घलो उंकर संग रिहिस.

                        हमर छत्तीसगढ़ के कतको साहित्यिक अउ सांस्कृतिक संस्था मन हा मस्तुरिया जी ल सम्मानित करिस. येमा छत्तीसगढ़ी काव्य भूषण, लोक स्वर, विशेष प्रतिभा सम्मान, स्व. ठाकुर प्यारे लाल सिंह सम्मान, छत्तीसगढ़ी विभूषण, सृजन सम्मान, रामचंद्र देशमुख बहुमत सम्मान ।

  रेडियो म मस्तुरिया जी के गीत ल ननपन ले सुनत हन. गिने चुने जउन गीतकार, गायक मन जनमानस म अपन अलग प्रभाव छोड़िस वोमा लक्ष्मण मस्तुरिया प्रमुख रीहिन हे ।                      मस्तुरिया जी के कवि सम्मेलन म अब्बड़ मांग रहय. छत्तीसगढ़ के सबो प्रमुख शहर अउ कतको गाँव म वोहा काव्य पाठ करे हे.वोकर लोक प्रियता ल देख के भीड़ भाड़ ल रोके बर वोला आखिरी डहर काव्य पाठ कराय जाय.मेहा लक्ष्मण मस्तुरिहा ल लखोली, राजनांदगांव म आयोजित कवि सम्मेलन म काव्य पाठ करत सुने रहेंव. छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के कार्यक्रम म  मस्तुरिया जी ले भेंट होय ।             मस्तुरिया जी ह 20 जनवरी 1974 म नई दिल्ली के लालकिले म गणतंत्र दिवस के अवसर म आयोजित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन म काव्य पाठ करिस. वोहा देश के नामी कवि/गीतकार गोपाल दास नीरज, बाल कवि बैरागी, इन्द्रजीत सिंह तुलसी, रामावतार त्यागी, रमानाथ अवस्थी मन संग अपन प्रस्तुति दिस. वो समय मस्तुरिया जी सिरिफ 25  बछर के रिहिन हे।येहर छत्तीसगढ़ म वोकर लोक प्रियता के सबले बड़का उदाहरण हे .

छत्तीसगढ़ के ये रतन बेटा ह 3 नवंबर 2018 म परम लोक चले गे. श्रद्धेय मस्तुरिया जी ल  सत् सत् नमन हे।


           ओमप्रकाश साहू ‘अंकुर’

         सुरगी, राजनांदगांव ( छत्तीसगढ़)

पुरखा के सुरता : 10 सितंबर - 14 वीं पुण्यतिथि मा विशेष

 साहित्यिक तर्पण 


पुरखा के सुरता : 10 सितंबर - 14 वीं पुण्यतिथि मा विशेष 


जनकवि -विश्वम्भर यादव "मरहा"


आलेख-

-ओमप्रकाश साहू ‘अंकुर’

[ सुरगी-राजनांदगांव ]


हमर छत्तीसगढ़ म जउन समय म हिन्दी लिखइया साहित्यकार मन के गजब जोर रीहिन हे।अइसन बेरा म कुछेक  रचनाकार मन  छत्तीसगढ़ी म साहित्य साधना करके अपन एक अलग चिन्हा छोड़िस वोमा


पं. सुन्दर लाल शर्मा, कोदू राम दलित, पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र , मेहत्तर राम साहू, नारायण लाल परमार,विमल कुमार पाठक, दानेश्वर शर्मा, लक्ष्मण मस्तुरिया, संत कवि पवन दीवान ,  मेहत्तर राम साहू,मुकुन्द कौशल, रामेश्वर वैष्णव, जीवन यदु,सुरेन्द्र दुबे ,विश्वंभर यादव "मरहा " के नांव सामिल हे ।दलित जी जइसे मरहा जी हा घलो हास्य- व्यंग्य के सुघ्घर कवि रिहिन हे । मरहा जी कवि सम्मेलन के मंच म छा जाय ।जइसे दलित जी के सही मूल्यांकन नइ हो पाइस वइसने मरहा जी के घलो उपेक्षा करे गिस । जउन ढंग ले मान -सम्मान के हकदार रिहिन वोहा नोहर होगे. मात्र एक हफ्ता स्कूल जवइया मरहा ला तो कुछ बड़का साहित्यकार मन कवि घलो नइ मानय। लेकिन ये जन कवि ह अपन छत्तीसगढ़ी कविता के माध्यम ले जउन  पहिचान बनाइस वोहा काकरो ले छुपे नइ हे ।


छत्तीसगढ़ के दुलरवा बेटा ,जन कवि विश्वंभर यादव "मरहा" के जनम दुर्ग शहर के तीर बघेरा गाँव मा 6 अप्रैल 1931 मा पहाती 4 बजे होइस । वोकर ददा हा सुग्घर भजन गावय ।साधारण किसान परिवार मा जनम लेवइया विश्वंभर


हा चन्दैनी गोंदा के संस्थापक दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के घर काम करे के संगे -संग चन्देैनी गोंदा मा अभिनय करके अपन लोहा मनवाइस । वोहा 1944 ले रचना लिखे के चालू करिस ।दाऊ रामचंद्र देशमुख ले वोला लिखे के प्रेरणा मिलिस ।


ले देके अपन नांव लिखे बर सीखे मरहा हा सैकड़ों छत्तीसगढ़ी कविता रचिस । कतको कविता वोला मुँहखरा याद रिहिन।अपन रोजी रोटी बर मरहा हा बढ़ई के काम करे अउ सुग्घर ढंग ले कविता के सृजन करे ।शरीर ले वोहा भले दुबला पतला रिहिन पर वोहा अपन कविता पाठ के समय गजब सजोर नजर आय। धोती कुर्ता अउ गांधी टोपी पहन के वोहा


बुराई, भ्रष्टाचार, अत्याचार करइया मन ला ललकार के समाज सुधार अउ देश प्रेम ला जगाय के काम करय ।छत्तीसगढ़िया मन के सोसन करइया अउ छत्तीसगढ़ी भाखा के हीनमान करइया मन बर अलकरहा बिफर जाय ।सादा जिनगी जियइया अउ उच्च बिचार रखइया मरहा हा संत कबीर के समान कोनो शासक अउ नेता के सामने नइ झुकिस ।


सबले पहिली मरहा ला मेहा सुरगी के तीर मोखला गाँव म रामचरित मानस प्रतियोगिता म काव्य पाठ करत देखे रेहेंव ।वो समय मँय हा हाईस्कूल मा पढ़त रेहेंव ।मरहा के कविता ला सुनके हजारों नर- नारी के मन हा गदगद हो जाय । घंटा भर कविता पाठ करे के बाद जब वोहा बताय कि ले अब मेहा बइठत हंव तब श्रोता मन चिल्ला के कहय कि मरहा जी


अउ  कविता सुनाव । तो अइसन वोकर कविता के जादू राहय ।मरहा हा साल भर कवि सम्मेलन, कवि गोष्ठी अउ सभा म व्यस्त राहय ।वोहा 365 दिन मा मात्र 65 दिन घर म रहय ।छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन अउ छत्तीसगढ़ी ल राजभाखा बनाय बर आयोजित कार्यक्रम म घलो उछाह ले भाग लेवय ।


मरहा उपनाम अइसन पड़िस


 6 मई 2005  के बात आय। मंय ह  मोर कवि मितान दिलीप कुमार साहू अमृत ( सुरगी) के छोटे भाई हेमंत साहू के बराती गे रेहेंव । मोर संग रचनाकार संगवारी भूपेन्द्र कुमार साहू "सृजन"( कोटराभांठा) घलो गे रिहिन। खाना खाय के बाद समय के उपयोग करे के बारे म सोचेन।हम दूनों पूछत - पूछत मरहा के घर पहुंच गेन। मरहा जी ल पैलगी करे के बात गोठ -बात के सुरूआत करेंव। पहिली ले एक दूसरा ले परिचित रेहेन। गोठ बात ल मंय ह एक कागज म लिखत गेंव।


 मंय ह पूछेंव कि आप मन के “मरहा ” नाम कइस पड़िस  ।तब वोहा बताइस कि एक बड़का कार्यक्रम म माई पहुना चंदैनी गोंदा के सर्जक दाऊ रामचंद्र देशमुख ह रिहिन अउ पगरईत संत कवि पवन दीवान जी ह करत रिहिन ।


मंच संचालन के कारज ल श्याम लाल चतुर्वेदी जी ह करत रिहिन  । तब विश्वंभर  यादव जी के शरीर ल देखके दाउ रामचंद्र देशमुख जी के मन म बिचार अइस अउ अपन बात ला पवन दीवान जी ल बताइस कि “मरहा ” उपनाम कइसे रही । अब्बड़ हाँसत दीवान जी ह येकर समर्थन करिन । उही दिन ले  विश्वंभर यादव जी के उपनाम "मरहा" पड़गे।


काव्य शिरोमणि ले सम्मानित होइस


एक घांव बिलासपुर के राघवेन्द्र भवन म राष्ट्रीय कवि  गोपाल दास नीरज जी के सम्मान म “नीरज नाईट “आयोजित करे गे रिहिस ।इही समय डॉ. गिरधर शर्मा जी ल मरहा जी के प्रतिभा के बारे म पता चलिस त वोहा एक हफ्ता बाद उही राघवेन्द्र भवन मा” मरहा नाईट ” के आयोजन रख दिस ।एमा लोगन मन के अब्बड़ भीड़ उमड़गे । मरहा जी ह घंटों काव्य पाठ करके सबके दिल जीत लिस ।मरहा के सम्मान मा उच्च न्यायलय बिलासपुर के न्यायधीश रमेश गर्ग जी हा किहिस कि ” पहिली संत कबीर जी के बारे मा सुने रेहेंव, पढ़े रेहेंव ।आज वोला मेहा मरहा के रुप मा साक्षात सुनत हंव ।”ये कार्यक्रम म मरहा जी ला “काव्य शिरोमणि ” के उपाधि ले सम्मानित करे गिस । गिरधर शर्मा जी हा मरहा के कविता के संकलन करके प्रकाशित करवइस अउ कविता ल जन जन तक पहुंचाय के सुग्घर उदिम करिस ।जब सुरगी मा कवि सम्मेलन होइस तब मरहा जी हा महू ला अपन दो ठन कविता संग्रह भेंट करे रिहिस ।ये दूनों कविता संग्रह ल एक झन मोर संगवारी हा पढ़े बर मांगिस तउन हा आज तक मोला नइ लहुंटाइस ।


   सम्मान -


मरहा जी ल काव्य साधना बर रायपुर, बेमेतरा, राजनांदगांव, सुरगी, कुम्हारी, जेवरा सिरसा, भिलाई, गुण्डरदेही, मगरलोड, मुजगहन, बालोद के कई ठन सभा समिति मन सम्मानित करिस । साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगांव ह मरहा जी ल बछर 2008 म साकेत साहित्य सम्मान ले सम्मानित करिस । येहा मोर सौभाग्य रिहिस कि महू हा उही साल मरहा जी के संग साकेत सम्मान ले सम्मानित होयेंव ।मेहा मरहा जी के संग सात बर कवि सम्मेलन मा काव्य पाठ करे रेहेंव । वोकर कविता हा आकाशवाणी अउ दूरदर्शन म

 प्रसारित होवत राहय ।


मरहा जी अब्बड़ अनुशासनप्रिय आदमी रिहिन । कोनो कार्यक्रम हा चालू होय मा देरी हो जाय नइ ते कोनो व्यवस्था ला कमजोरहा पाय ता आयोजक मन बर नंगत भड़के ।


शोषण करइया मन उपर गजब कविता लिखे हे –


साबर -साबर जइसे चुराके,


हक जमा लेव परिया मा ।


सुई जइसे दान करके,


कोड़ा देव तरिया ला ।


भ्रष्टाचार ला देखके वोहा अइसन कलम चलइस –


सिधवा मन लुलवावत हावय,


अउ गिधवा मन मेड़रावत हावय ।


कुकुर मन सुंघियावत हावय,


अउ खीर गदहा मन खावत हावय ।


दुवारी मा रखवारी करथय कुसुवा मन,


अउ भीतरे भीतर भीतरावत हावय मुसुवा मन ।


नवा नवा कानून बनाथे कबरा मन,


अउ बड़े बड़े पद मा हावय लबरा मन ।


दिनों दिन बाढ़त हावय झगरा मन,


भारत ला लीलत हावय दूसर देश के करजा मन ।


स्वार्थी मन के हाथ मा हावय,


भारत के सब बड़े बड़े दर्जा मन ।


दलाल मन सब मजा उड़ावय,


अउ भोगत हावय परजा मन ।


कब सुधरी हमर भारत के हाल हा,


दलाल मन ला कब पूछहू, कहां जाथे माल हा ।


वोकर कविता मा जन जागरण के स्वर देखे ला मिलथे –


गजब सुते हव अब तो जागव ,


अब्बड़ अकन अभी काम पड़े हे ।


अंग्रेज मन चल दिहिन तब ले ,


अभी अंग्रेजी मन के भूत खड़े हे ।


 


दिन अऊ रात इंहा भाषण देथय,


घुघवा मन ह बन के गियानी ।


हंस बिचारा लुकाय फिरत हे ,


देख- देख के उंकर मनमानी ।


 


मान मर्यादा नियाव ल छोड़ के ,


सब कटचीप मन सुख पावत हे ।


सत धरम म चल के सिधवा मन ,


जिनगी भर दुख पावत हे।


 


गॉव शहर म बंगला हे ,


घूसखोर बेईमान अउ गिरहकट के।


हरिशचन्द्र हावय आज के कंगला ,


रखवार बने हे मरघट के ।


 


जगा – जगा बने हावय अड्डा ,


चोर फोर अऊ हड़ताल के ।


अइसन म हे कउन देखइया ,


दीन दुखी कंगाल के ।


भेदभाव ल छोड़, देश के काम म लगव ,


सुतत – सुतत रात बितायेव, अब तो जागव।


 


मरहा जी ल अपन भाखा छत्तीसगढ़ी ले गजब लगाव राहय ।मरहा के कहना राहय कि -” हमन छत्तीसगढ़ मा बोलन, लिखन अउ पढ़न तभे हमर भाखा हा पोठ होही ।”


नवा लिखइया मन ला वोहा काहय कि -” रचना ला शब्द ले अतेक जादा झन सजावव के ओखर चमक उतर जाय ।जमीन मा रहिके जमीन के बात करना चाही ।”


एक घांव सुरगी म कवि सम्मेलन होइस ।येमा मरहा जी ला विशेष रुप ले आमंत्रण करे रेहेन ।कार्यक्रम सुरू होय से पहिली कवि मन के बइठक बेवस्था मोर घर म रिहिस ।ये कवि सम्मेलन मा डोंगरगॉव के तीर मा बसे गाँव माथलडबरी के आशु कवि तिलोक राम साहू बनिहार जी ह घलो आमंत्रित रिहिस ।बड़े भइया कवि महेन्द्र कुमार बघेल मधु जी (कलडबरी) के संग बनिहार जी हा हमर घर पहुंचिस । मरहा जी, निकुम के गीतकार भैया प्यारे लाल देशमुख जी अउ  दुर्गा प्रसाद श्याम कुंवर जी ह पहिली ले हमर घर पहुंच गे रिहिन । मोर बाबू जी मेघू राम साहू जी संग सुग्घर ढंग ले कवि मन गोठियात बतात रिहिन ।इही बीच मा पहुंचे बनिहार जी हा आतेसात मोर बाबू जी ला देखते -देखत कई ठक कविता सुना डारिस ।बाबू जी हा हाव- हाव काहत सुनत गिस ।पर बनिहार जी हा कविता सुनाय के


चक्कर मा अतिरेक कर डारिस ।ये बात ह मरहा जी ला पसन्द नइ आइस अउ भड़क के बनिहार जी ल टोकिस ।


अइसने बछर 2009 म मोखला म आयोजित साकेत के वार्षिक सम्मान समारोह म सोमनी के बस स्टेन्ड ले मोखला लाय के जिम्मेदारी मोर रिहिस हे ।मरहा जी हा बघेरा ले फोन करिस कि  अंकुर मंय ह  अब मोखला बर निकलत हंव । मेहा थोरकुन ये सोच के देरी कर डारेंव कि मरहा जी ल सोमनी आय म समय लगही ।लेकिन वो दिन मरहा जी ल दुर्ग आतेसात सोमनी बर बस मिलगे ।जब मेहा अपन गाड़ी म मरहा जी ला लाय बर पहुंचेव ता ये देख के मेहा दंग रहिगेंव के मरहा जी दंगर& दंगर पैदल रेंगत भर्रेगॉव पुल के तीर पहुंच गे राहय ।मेहा अकबका गेंव । सबले पहिली मेहा मरहा जी ला देरी मा पहुंचे बर मांफी मांगत पैलगी करेंव खुश राहव जरूर किहिस।पर मरहा जी के रिस ह तरवा मा चढ़गे रिहिस । वोहा किहिस मोर जांगर म अभो ताकत हे।वोहा मोर गाड़ी मा नइ बइठ के तुरतुर -तुरतुर रेंगे ला धर लिस ।फेर मेहा मरहा जी के तीर मा जाके फेर केहेंव कि ले बबा मोर गलती ल माफी देवव अउ गाड़ी मा बइठ जावव ।तहां ले मरहा जी हा गाड़ी मा बइठिस । फेर मध्य हऊंकर घर के हाल चाल पूछेंव अउ


मोर घर के हाल चाल मरहा जी ह पूछिस ।मेहा मने -मन सोचेंव बनिस ददा मोर काम हा ।काबर कि मरहा जी के रिस ला तो मेहा दू तीन बेर कार्यक्रम मा देख चुके रेहेंव ।


स्वाभिमानी मनखे


गरीबी के बावजूद वोहा कभू अपन स्वाभिमान ल नइ बेचिस ।


आयोजन म घलो नेता मन के बखिया उधेड़ के रख देय ।कतको विसंगति उपर जमगरहा कविता सुनाके सुधार के बात करय अउ लोगन मन म जन -जागृति फैलाय के काम करिन ।अइसन जन कवि हा 10 सितंबर 2011 मा अपन नश्वर शरीर ला छोड़ के परम धाम म पहुंच गे ।मरहा जी ला शत् शत् नमन हे । 


      ओमप्रकाश साहू "अंकुर"

      सुरगी, राजनांदगांव

छत्तीसगढ़ी कहानी- करगा

छत्तीसगढ़ी कहानी-  करगा 


                                                                    


                                          चन्द्रहास साहू


                                  मो - 8120578897


आज बिहनिया ले बादर गरजत हे, बिजली कड़कत हाबे। कोनो हा उछाह मगन होथे तब कोनो गरीब ला संसो धर लेथे। करिया-करिया बादर आमा-अमली कोती ले आइस अउ गौटिया घर के छानी ऊपर टँगा गे अब। ...अउ बरसे लागिस। 


"तेहां जइसन चाहबे वइसने करहुँ फेर तलाक झन दे। तोर बिना मोर जग अँधियार हो जाही।''


गोसइया अब्बड़ समझावत हे। फेर गोसाइन तो गाँव-गोहार पार डारिस।


"इस बैल के साथ एक पल भी नही रह सकती मैं। आई कैन नॉट लिव विथ दिस बुल। आई वांट डाइवोर्स अदरवाइस आई विल गो कोर्ट एंड पुलिस स्टेशन।''


भूरी डोमी कस फुफकारत हाबे आज वोहा। लहू के संचार बाढ़गे। धड़कन बाढ़गे। आँखी लाल होगे। गुस्सा मा हफरत हे अउ गोड़ काॅंपत हाबे सोनिया के। 


"लिसन, ससुरजी ! तुम लोगो का नाम लिख के मर जाऊँगी। रियली, आई विल डाई।''


ससुर जी भलुक अंगरेजी के आखर ला नइ समझिस फेर भाव ला तो जान डारिस। महाबिपत अवइया हाबे। मुड़ी ला गढ़िया के ठाड़े हाबे। .....अउ गोसाइया दिनेश ? का कर डारही बपरा हा। 


"जौन साध हे तोर जम्मो ला पूरा करहूॅं। गाँव छोड़ के शहर मा रहे के साध हाबे ते वहुँ ला पूरा करहूॅं। ददा-दाई संग तारी नइ पटत हाबे ते चल दुनिया के कोनो शहर मा। जी लेबो लड़-झगड़ के फेर तलाक झन माँग। ये अतराब मा अब्बड़ नाव हाबे मोर ददा के वोकर नाव ला मइलाहा झन कर ...।''


रो डारिस दिनेश हा फेर बहुरिया सोनिया ? भकरस ले भीतिया के कपाट बाजिस अउ तारा-बेड़ी लग गे। रोये चिचियाये बरतन-भाड़ा पटके के आरो आवत हाबे अब। 


                   बिहनिया के पानी अउ पहाती के झगरा जम्मो एक होगे। भीतिया के झगरा परछी मा आगे अब। परछी ले दुवारी, ....अउ दुवारी ले खोर मा अमरगे। अउ खोर मा अमरगे तब का बाचीस ? इज्जत तो गवाॅं डारे हाबे अब गौटिया के लिंगोटी उतारत हे-गाँव वाला मन।      


                 एक मनखे के दस मुँहू होगे। हड़िया के मुँहू ला तोप डारबे फेर मनखे के मुँहू ला कइसे तोपबे। गॉंव भर सोर होगे। खैरागढ़िया गौटिया के बहुरिया-बेटा दुनो झन मा अब्बड़ झगरा माते हाबे। आज उघरा होवत हाबे उकरो ओन्हा हा। खाल्हे पारा के  गरीब के गोठ तो अचरी-पचरी, कुआँ-बावली, खेत-खार नरवा-नदिया मा लसुन मिरचा लगा के, भूंज बघार के गोठियाथे गाँव वाला मन। 


"कतको चद्दर ओढ़ ले गौटिया खजरी तो खजवाबे करही..?"


"सिरतोन खजरी धरे हाबे गौटिया के बहुरिया ला। देवता बरोबर गोसइया के मान नइ राखिस।''


"नांदिया बइला बरोबर समहरे रहिथे। न गोड़ के पनही हीटे न मुँहू के मुहुरंगी मेटाये।''


"रूपसुन्दरी हाबे ओ ! हिरवइन बरोबर। फेर चाल मा कीरा परगे हाबे वोकर।  दिखे बर श्यामसुंदर अउ पादे बर ढ़मक्का।''


"शहर के टूरी अउ उधार मा चूरी कभू नइ माॅंगना चाही। दुनो के रंग झटकुन उतर जाथे। गौटिया के बहुरिया के रंग घला उतरत हाबे।''


आनी-बानी के गोठ गोठियाये लागिस गाँव वाला मन। आधा बस्ती सकेलागे हाबे आज गौटिया घर के गम्मत देखे बर।


                गाँव भर के सुख-दुख मा पंदोली देवइया खैरागढ़िया गौटिया काखरो तीन-पाँच मा नइ राहय। एकलौती बहुरिया ला अउ जादा दुलार देथे फेर बहुलक्ष्मी के रक्सा कस बरन ला देख के मूड़ धर लेहे गौटिया हा। अब्बड़ आगी उलगत हाबे बहुरिया सोनिया हा। दहेज प्रताड़ना टोनही प्रताड़ना घरेलू हिंसा आनी-बानी के धारा के डर देखाथे बहुरिया हा। का करही ?  कोन समझाही वोला ? गौटिया-गौटनिन के जी पोट-पोट करत हे। कभू कोट-कछेरी गेये नइ हाबे। काकरो लन्दर-फंदर मा नइ राहय तभो ले ये अलहन ले कइसे बाँचव भोलेनाथ ! गौटिया मुड़ धर लेथे। 


"बहुरिया ला कुरिया ले बाहिर कोती निकालो भई ! कोनो अनित कर डारही ते फाॅंसी हो जाही हमर ?'' 


अब्बड़ झन उदिम कर डारिन सोनिया ला कुरिया ले निकाले बर। कपाट के गुजर ला उसाल डारिस गोसइया दिनेश हा फेर सोनिया नइ निकलिस। संसो अउ बाढ़गे कोनो अहित कर डारही तब ?


"सिधवा ला जम्मो कोई डरवाथे गौटिया। अइसन पदनी-पाद पदोइया बहुरिया ला झन डर्रा। मोरो चुन्दी हा घाम मा नइ पाके हाबे भलुक अनभव के विद्या ला झोंक के पाके हावय। चेहरा मा झुर्री आय हे तौन सीख अउ परीक्षा के चिन्हारी आवय। जिनगी के पहार ला पैलगी करत कनिहा नवे हाबे अइसन टूरी बर पुरव अउ बाँचव।''


उदुप ले बईगिन डोकरी आइस अउ किहिस। वहुँ तो सुन डारे रिहिन नवा बहुरिया के चरित्तर ला। भलुक कोनो मंतर नइ जाने फेर ये घर के बिपत टरइया आवय-बईगिन डोकरी हा। गौटिया के चेहरा मा संसो के डांड़ कमतियाइस  बईगिन डोकरी ला देख के। 


"ये पहार कस बिपत ला टार दे बईगिन काकी ! मोर सिधवा लइका दिनेश के घर टूटे ले बचा दे। तलाक लुहूॅं कहिथे बहुरिया हा। हमन ला पुलिस कछेरी......।''


"हाॅंव सुन डारेंव गौटिया ! संसो झन कर।''


गौटिया के बात ला अधरे ले काॅंट दिस बईगिन डोकरी हा।


"हेर बेटी ! कपाट ला।''


कोनो आरो नइ आवय अउ आथे तब जइसे जम्मो कोई के करेजा काँप जाथे। 


"मुझे ज्यादा परेशान मत करो। मर जाऊँगी मै। रियली,  आई विल डाई।''


सोनिया के आरो आय, फेर बंबियावत हाबे। बरतन पटकत हाबे, कूदत हाबे बही बरोबर,चिचियावत हाबे, बाय-बैरासु धर लेहे तइसे। जम्मो कोई बरजिस अब। 


अउ अब्बड़ आरो कर डारिस जम्मो कोई  खिसियावत-दुलार करत फेर कपाट नइ उघरिस।


"का करंव ?'' 


बईगिन डोकरी हक्क खा गे। कुछु गुनिस अउ पेरा परसार कोती चल दिस। ..... अउ आइस तब नानकुन झिल्ली मा कुछु धरे हाबे। 


"अब्बड़ मरे के साध हाबे न। तब, ले मर।''


झिल्ली मा कॉकरोच अउ छिपकली रिहिस, कपाट के पोंडा कोती ले ढ़ीलत किहिस। 


"अब सोज्झ मा निकलही अउ टेड़गा मा निकलही। गाँव के कमेलिन मन गउँहा-डोमी संग बुता कर लेथे फेर शहरनिन मन तो कॉकरोच अउ छिपकली ला देख के ठाड़ कुदथे। अब देख तमासा अंगरेजी मीडियम वाली टूरी के।''


डोकरी फुसफुसाइस। अब सिरतोन रोये के, चिचियाये के आरो आवत हाबे।


"प्लीज सेव मी ! बचाओ ! कॉकरोच और छिपकली काॅंट देंगे मुझे, मर जाऊँगी ...। प्लीज सेव मी, प्लीज सेव ।'' 


कपाट हीट गे अब। अउ बईगिन दाई ला पोटार लिस। डर मा लद-लद काँपत हाबे सोनिया हा। चेहरा लाल होगे हे-लाल बंगाला कस। 


"नानचुन कीरा-मकोरा ला डर्राथस बेटी ! कुछु नइ करे। काबर रिसाये हस ओ बता। का जिनिस के कमती होगे  हे तोला ? मेंहा तोर बर लड़हूॅं ये गौटिया-गौटनिन अउ तोर गोसइया दिनेश ले। जम्मो कोई बर पुर जाहू मेंहा।''


बईगिन डोकरी दुलारत किहिस अउ पोटार लिस। ऑंसू ला पोंछत पीठ मा थपकी देवत चुप कराइस सोनिया ला।..... अउ सिरतोन सोनिया ला अइसे लागथे हितु-पिरितु कोनो हाबे ते-इही दाई बईगिन डोकरी हा। सुख-दुख के संगवारी। जम्मो कोई के चरित्तर ला देख डारिस। नाव बड़े दरसन छोटे गौटिया-गौटनिन अउ बइला बरोबर भोकवा गोसइया दिनेश के।


"नाक उच्चा करके बड़का खानदान ले बहुरिया लाने हस तब वोकरो धियान राख। बहुरिया चलाये के ताकत नइ रिहिस तब अइसन बड़का घर ले नत्ता काबर जोरेस गौटिया ! कोनो मरही-पोटरी ला ले आनतेस। ताहन रातदिन गोबर बिनवावत रहिते। बिजनेसमैन के बेटी संग नत्ता जोरे हस। वोकरो तो मान राख।.....अब तो ये बहुरिया इहाँ एक पल नइ राहय। तोला कोट-कछेरी रेंगाही तब चेतबे।''


बड़का अटैची ला तनतीन-तनतीन कुरिया ले निकालिस डोकरी हा। सोनिया जम्मो जोरा-जारी आगू ले कर डारे रिहिन।


"चल जाबो तोर मइके अउ थाना-कछेरी। दहेज प्रताड़ना के केस करबो। तब चेथी के अक्कल आगू कोती आही। .....मालपुआ खाके अब्बड़ मोटा गे हाबे, थोड़को सोंटाही ये गौंटिया हा।''


गौटिया-गौटनिन तो सुकुरदुम होगे बईगिन के गोठ सुनके। 


"ये का अइन्ते-तइन्ते गोठियावत हस काकी ?''


गौटिया गरजिस फेर बईगिन आवय जम्मो के बीख ला उतारत-उतारत अब्बड़ बीखहर हो गे हाबे। 


"मोला छोड़ के झन जा सोनिया ! बईगिन दाई  मोर घर टूटे ले बचा दाई !'' 


दिनेश रोवत हाबे।


"चुप रोनहा नही तो....! तोरे सेती मोर फुलकस बेटी के ये दुरगति होये हाबे।''


बईगिन बिन पेंदी के लोटा निकलगे। गौटिया के बहुरिया ला मनाये-बुझाये बर बलाये हाबे अउ भभकावत हे सोनिया ला। ससन भर देखिस जम्मो कोई ला। सोनिया संग बईगिन डोकरी  घर ले बाहिर निकलगे अउ ऑटो मा बइठ के रायपुर रोड कोती जावत हाबे अब।


                   सोनिया रायपुर के बिजनेसमैन के बेटी आवय। इंजीनियरिंग के पढ़ाई करे हाबे अउ दिनेश ? गाँव के खेती करइया। भलुक बी ए करे हाबे फेर नौकरी नइ मिलिस। खेत-खार कमा लेथे-मेड़ मा बइठ के।


सोनिया अब्बड़ मना करिस बिहाव नइ करो कहिके फेर चीज के लालच कोन ला नइ राहय। "गौटिया के एकलौता बेटा के गोसाइन बनबे बेटी ! राज करबे। धन्धा-पानी चल गे ते मालामाल अउ नइ चलिस तब बंठाधार। पचासों एकड़ अचल संपत्ति के मालकिन हो जाबे। कभू लाँघन नइ मरस। गौटिया-गौटनिन कतक जीही पाँच बच्छर कि दस बच्छर। गौटिया घला अंगरेजी मीडियम वाली शिक्षित सुशील बहुरिया खोजत हाबे। अब्बड़ दुलार करही जम्मो कोई।''


अइसना तो कहे रिहिन सोनिया के ललचहा ददा हा। अउ सोनिया अब्बड़ मना करिस फेर ददा के गोठ ला कहाँ टार सकही ? बिहाव होगे धूमधाम ले। निभत हाबे अब फेर संगी-संगवारी आइस छे महिना पाछू अउ कहे लागिस ओरी-पारी।


सोनिया ! तुम्हारा पति तो  बैल है और उनके साथ खूॅंटे से बॅंधे हुये तुम गाय बन गई हो।''


"गजब की जोड़ी है दोनों की।''


"न बात करने का सऊर है दिनेश को, न रहन सहन का।''


"तुम तो कॉलेज की क्वीन थी। हाई सोसायटी हाई स्टेटस। ....और अब गोबर में सड़ रही हो।'' 


"तलाक ले लो सोनिया ! अभी भी वक्त है। अभी बच्चा भी नही है। कही बाद में न पछताना पड़े।''


"दिलीप और अक्षय तो आज भी तेरा इंतजार कर रहें है।''


"क्या हुआ दोनों अभी बेरोजगार है तो, वेल एजुकेटेड है।''  


संगी-सहेली मन आय रिहिन तब अइसने तो कहि के खिल्ली उड़ाये रिहिन सोनिया के। ...अउ कोनो खिल्ली उड़ाथे तब, आगी लग जाथे तन-बदन मा। आज तो वोकरे संगी-संगवारी मन गाय कहि दे रिहिन। सोनिया तो बेरा खोजत हाबे  तलाक लेये बर। ....अउ आज दिनेश खेत कमाये बर गेये हाबे-रोपा लगाये के दिन ये।


"दोपहर के जेवन अमराये बर चल देये कर बेटी ! अब मोरो जांगर नइ चले। नौकर मन घला आये-जाए मा अब्बड़ बिलमा डारथे। लइका बेरा मा खाही तब सुघ्घर होही ओ !''


"मैं नही जाऊँगी। किसी का खाने-पीने का ठेका नही ली हूँ। जिसको भूख लगे तो समय पर आकर खाये।''


सोनिया सोज्झे सुना दिस अगियावत। गौटिया के मुँहू सिलागे बहुरिया के गोठ सुनके। अपंगहा गोड़ मा रेंगत गिस जेवन अमराये बर गौटिया हा अउ सबरदिन बर खोरवा होगे। बस, एकरे सेती चार गोठ सुना दिस दिनेश हा अउ इही झगरा आवय। तलाक तक गोठ अमरगे। बेरा बखत मा दुलारत समझाइस गौटिया-गौटनिन बईगिन डोकरी हा फेर सोनिया के छाती मा वोकर संगी-संगवारी के गोठ लटक गे हाबे। -"बइला संग बिहाव करके अपन जिनगी ला बरबाद कर देस सोनिया ! अभिन घला कतको झन तोर अगोरा करत हाबे। तलाक लेके रायपुर लहुट जा। गोबर संग गोबर कीरा झन बन।'' 


जम्मो ला सुरता करत करू मुचकावत हाबे सोनिया हा। अपन जीत दिखत हे अब। गाँव के खाल्हे पारा छुटही अउ रायपुर रोड अमर जाही ताहन एक्सप्रेस बस मा बइठ के उड़ा जाहूँ। चेहरा के गुलाबी बाढ़गे सोनिया के। 


"रहा ले, ऑटो वाले बाबू ! हमर घर कोती चल।


बईगिन डोकरी किहिस अउ वोकर मोहाटी मा ठाड़े होगे ऑटो हा।


"रायपुर जाहूॅं दाई !''


"हाॅंव बेटी ! चार पहार रात ला काॅंट ले ताहन चल देबे।''


सोनिया बईगिन डोकरी घर चल दिस अब।


                         सुरुज नरायेन आज झटकुन अपन घर चल दिस फेर कमेलिन मन बिलम के  घर लहुटत हाबे। अँधियार होगे। चिखला-माटी मा सनाये बड़की बहुरिया सुशीला मुचकावत आइस अउ बईगिन डोकरी ला बताये लागिस।


"दाई ! आज रोपा लगाई बुता हा लघियात झर जातिस ओ। फेर भइसासुर वाला खेत मा नाग-नागिन मन अब्बड़ पदोइस।''


"बने पूजा पाठ नइ करे रेहेव का ओ ! भिम्भोरा मा ?''


"गोलू के पापा हा करे रिहिन दाई ! फेर का करबे ? थरहोटी अउ नानकुन टेपरी मा रोपा लगावत अब्बड़ बिलम गे जम्मो कोई। गोलू के पापा हा छुट्टी लेके बुता मा पंदोली दिस तब होइस झटकुन। नही ते रबक जातेंन। काली इतवारी मनाही।''


बईगिन डोकरी के बहुरिया सुशीला किहिस अउ गोड़धोनी कोती चल दिस। 



"गोलू के पापा मिनेश कुमार तो चार दिनिया आवय बेटी ! सबरदिन के किसानी बुता ला सुशीला करथे ओ। रोपा घरी अउ मिंजाई के घरी मा आके वोला पंदोली दे देथे मिनेश हा।''


सोनिया ला बतावत हाबे बईगिन डोकरी हा।


          "भलुक कमती पढ़े हाबे फेर अब्बड़ गढ़े हावय ओ मोर बेटी कस बहुरिया सुशीला हा ! गोठ-बात हिसाब-किताब आदत-बेवहार जम्मो मा अब्बड़ सुघ्घर हाबे सुशीला हा। महिला समूह के अध्यक्ष हाबे अभिन। अवइया बेरा मा सरपंच बनाबो कहिके गाँव वाला मन रुंगरुंगाये हाबे। कलेक्टर के मीटिंग मा जाके हिन्दी अंगरेजी मा गोठिया लेथे अउ गाँव के बइठक मा हमर मयारू भाखा छत्तीसगढ़ी मा। अब सुशीला ला चौथी पढ़े हाबे, कोनो नइ पतियाये। जम्मो ला सीखोये हाबे मोर बेटा मिनेश हा।''


सोनिया हुॅंकारु देवत हे। ससन भर देखथे अब बहुरिया सुशीला ला। सुघ्घर दिखत हाबे। भलुक दिनभर बुता करे हाबे तभो ले नइ कुमलाये हाबे सुशीला के चेहरा हा। सुशीला जेवन के तियारी करत हाबे रंधनी कुरिया मा। अब मिनेश घला घर अमरगे चिखला-माटी मा सनाके। 


"बेटी जात हा धान के थरहा आवय ओ। माइके ले तियार होके ससराल मा गड़िया देथे। बने मया पाके फरथे फुलथे अउ अपन वंश ला बढ़ाथे धान के पौधा बरोबर। बाली के पूजा होथे अउ करगा बोदरा ला फेंक देथे। ममहावत धान के बाली बन सोनिया ।  करगा बोदरा बनबे तब कोनो नइ भावय। आज फोन करके देख ले दिलीप अउ अक्षय ला घला। तोर अगोरा नइ करे भलुक तोला जूठा कहि। जतका मया तोला दिनेश करथे वोतका दुनिया के कोनो मनखे नइ करे। तोर उछाह बर टेक्टर ला बेच दिस अउ फोरव्हीलर बिसाइस। दाई के गहना-जेवर ला बेच के तोला सोना मा बूड़ो दिस-तोर उछाह बर। टूटहा पनही ला पहिर लेथे फेर तोर बर दर्जन भर ले आगर सेंडिल बिसाये बर नइ बरजिस। रिकम-रिकम के लुगरा लिस- तोर उछाह बर। दवई  के पइसा ले तोर बर सेंट बिसाइस। भूखाये रिहिस तभो तोर बर इज्ज़ा-पिज्जा बिसाइस। देवता भलुक नो हरे फेर सुघ्घर इंसान आवय बेटी। अउ ये दुनिया मा  सब मिलथे फेर इंसान नइ मिले। दिनेश हा तोर उछाह बर सब करही ओ ! फेर ओकरो उछाह बर  एककन संसो कर। गोठ-बात, रहन-सहन तौर-तरीका अचार-विचार जम्मो ला सीख जाही मोर सुशीला बरोबर। बेटी ! तलाक झन ले वो !''



सोनिया रोवत हाबे सिरतोन कभू करू जबान नइ देये हाबे दिनेश अउ वोकर दाई ददा मन, गुनत हाबे। 


"चलो दाई ! जेवन करबो। गोलू के पापा ला आरो कर।''


"गोलू के पापा आ गा ! मिनेश आ बेटा।''


बईगिन डोकरी आरो करिस। ... अउ आइस तब तो सोनिया सुकुरदुम होगे। इंजीनियरिंग कॉलेज के इलेक्ट्रॉनिक्स एन्ड टेलीकॉम्युनिकेशन डिपार्टमेंट के एचओडी आवय डॉ मिनेश कुमार। सोनिया तो वोकरे मार्गदर्शन में अपन रिसर्च वर्क ला पूरा करे हाबे।


"गोसाइन-गोसइया हा गाड़ा के चक्का घला आवय सोनिया। अउ दिनेश हा सुघ्घर लइका आवय। मेंहा जानथो। मोर गोसाइन चौथी पढ़े हाबे। फेर मोला गरब हाबे मोर घर परिवार खेत-खार जम्मो ला सम्हाल डारिस। अउ कुछु कमती हाबे दिनेश मा तब तेहां सीखो। सीख जाही जइसे मोर मयारुक सुशीला सीख गे।''


मिनेश किहिस गरब करत अउ जम्मो कोई फुटू साग संग जेवन करे लागिस अब । सोनिया के अंतस मा जागे करगा मरगे अब। अउ ममहावत धान के बाली कस दिनेश के मया ममहाये लागिस। आँखी के आगू मा दिनेश के सुघराई दिखत हाबे अब।........... अब बिहनिया के अगोरा करत हाबे लहुटे बर। 


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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया


आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी


जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़


पिन 493773


मो. क्र. 8120578897


Email ID csahu812@gmail.com

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ओम प्रकाश अंकुर:

 करगा एक ठाहिल अउ संदेशपरक कहानी हे

                       

   कहानी - करगा


   कहानीकार -  चंद्रहास साहू 


    समीक्षक - ओमप्रकाश साहू "अंकुर"


युवा कहानीकार चंद्रहास साहू जी के कहानी मन के बात करथन त वोमा छत्तीसगढ़ के संस्कृति, संस्कार सुघ्घर ढंग ले झलकथे।वोकर कहानी म माटी ह ममहाथे।इंहा के सिधवापन के बरनन करथे त दूसर कोति चालाक मनखे मन के बखिया घलो उधेड़थे। वोकर कहानी म सुघ्घर संदेश समाय रहिथे। अउ उही कहानी ह सफल माने जाथे जेमा कोनो उद्देश्य ल लेके लिखे जाथे जेकर ले समाज म जागरूकता आथे। फकत मनोरंजन बर लिखे कहानी ह भलुक कहानी होथे? अइसने सुघ्घर संदेशपरक कहानी हावय - करगा।

      खैरागढ़ के गौंटिया के एकलौता बेटा के नांव दिनेश हावय। वोहा बीए तक पढ़े हे पर सरकारी नौकरी नइ मिल पाइस अउ  खेती किसानी ल करत हावय। सिधवा लइका दिनेश के बिहाव शहर के बिजनेसमेन के लड़की अउ इंजीनियरिंग के पढ़ाई कर चुके सोनिया ले तय होथे।  बेवहार के मामला म सोनिया दिनेश के बिल्कुल उल्टा हावय। शहरी परिवेश म पले बढ़े सोनिया ल दिनेश ह बइला जइसे लागथे। दिनेश ह वोकर सबो सउक के धियान राखथे पर सोनिया के मन म तो तलाक के भूत सवार होगे हावय कि इंहा ले कइसे छुटकारा पावंव।उंकर सहेली मन के ताना ह एमा अउ जले म नून डारे के काम करे हावय। सोनिया के गोसइया दिनेश ह अउ गौंटिया ह सोनिया ले अरजी करथे कि तलाक के नांव मत ले भले शहर म जाके बस जाबो। दूसर कोति दहेज प्रताड़ना के डर घलो गौंटिया -गउटनिन अउ दिनेश म समागे हावय जइसे कि कइ ठन केस म देखे ल मिलथे जब लड़का पक्ष ल झूठा केस म फंसा जाथे।

   सोनिया के बेवहार ले गौंटिया परिवार के हांसी उड़त हे। गांव म नाना प्रकार के बात होवत हे।कोट कछेरी ल कभू जाने नइ गौंटिया मन ह पर शहरिया बहू के चक्कर म फंस गे हावय?

  इहि झगड़ा के बीच म कहानीकार ह एक पात्र गांव के बइगिन डोकरी के माध्यम ले कहानी ल आगू बढ़ाथे। पहिली तो डोकरी दाई ह सोनिया के पक्ष लेके गोठियाथे त गौंटिया अउ दिनेश ह अकबका जाथे काबर कि समझाय के बजाय वोकरे हां म हां मिलाथे। पर वो सियनहिन के उद्देश्य उंकर घर ल टोरना नइ बल्कि बनाना रहिथे। वोहा सोनिया ल ये समझा के कि काली तोला तोर मइके पहुंचाबो कहिके अपन घर ले जाथे।

  एती बइगिन डोकरी के बहू सुशीला अपन नांव के अनुरूप बने बेवहार सुशील हावय। भले कम पढ़ें लिखे हे पर अब्बड़ मिहनती हावय।संगे संग वोमा संगठन शक्ति घलो हावय तेकर सेति अवइया चुनाव म वोला गांव वाले मन सरपंच पद म लड़ाबो कहिके सोचत हावय। वहीं सुशीला के गोसइया मिनेश अब्बड़ पढ़े लिखे हे। ये उही मिनेश हरे जउन कालेज म इंजीनियरिंग के पढ़ाई करे हावय वोकर विभागाध्यक्ष हरे। जबकि वोकर गोसइन सुशीला ह कम पढ़ें लिखे हे पर दूनों के जिनगी के गाड़ी सुघ्घर ढंग ले चलत हावय। ये सब के पता सोनिया ल चलथे। मिनेश ह घलो वोला

जिनगी के मर्म समझाथे। बइगिन डोकरी ह सोनिया ल वोकर गोसइया दिनेश के कतको अच्छाई ल बताके ये सिद्ध करथे कि तंय ह वोला बइला समझ के कत्तिक बड़े भूल करत हस।

तोर कत्तिक खियाल राखथे। अपन सउक ल तियाग करके तोर सबो मांग ल पूरा करथे। ये प्रकार के संवाद ले कहानीकार ह कहानी के मुख्य पात्र सोनिया के हिरदे परिवर्तन करथे। अउ वोहा सोचथे कि सचमुच आज तक मोर गोसइया दिनेश ह कभू कड़वा बोली नइ बोले हे। मंय ह अपन रूखा बेवहार ले वोला अब्बड़ पीरा पहुंचाय हौं तभो ले आज तक मोला एक चटकन नइ मारे हावय। बइगिन डोकरी ह वोला समझाथे कि बेटी ह धान के थरहा कस होथे बेटी जेला दूसर जगह लाके गड़िया देथे। धान के बाली ह कइसे सुघ्घर लागथे उही म कोनो करगा होगे त वोला उखान के फेंक दे जाथे। त बेटी धान के बाली बनव न कि करगा। ये सब बात ल सुने के संगे -संग मिनेश अउ सुशीला के सुघ्घर जांवर जोड़ी ल देखके सोनिया म हिरदे परिवर्तन होथे। वोला अपन गलती के अहसास होथे।

तलाक अउ मइके जाय के साध ल छोड़के अपन गोसइया के संग सुघ्घर जिनगी बिताय बर राजी हो जाथे।


कहानीकार ह ये कहानी के माध्यम ले बताय हावय कि एक गांव म शहरिया अउ जादा पढ़ें लिखे बहू लाय ले का का परेसानी झेले ल पड़थे। कइसे दहेज प्रताड़ना अउ आने झूठा केस म फंसाथे। शहरिया बहू के नाना प्रकार के सउक ले घर वाले मन कइसे हलाकान हो जाथे। संगे संग कहानीकार ये संदेश देथय कि जब जुग जोड़ी म बंध जाथंव त बात सिर्फ पढ़ाई-लिखाई के हिसाब ले मत आंकव। बेवहार बड़े चीज होथे।  जिनगी म सामंजस्य बिठा के चलना चाही ताकि कोनो घर - परिवार झन टूटय। काकरो दिल झन टूटय। हमला धान के बाली बनना चाही न कि करगा।

  कहानी के भाषा शैली के बात करथन त पात्र के अनुरूप भाषा के प्रयोग करे गे हावय। कहानी के मुख्य पात्र सोनिया जउन ह इंजीनियरिंग के पढ़ाई करे हावय अउ शहर के लड़की हरय वोकर बर हिंदी के संगे -संग अंग्रेजी शब्द के उपयोग करे गे हावय। गंवइहा पात्र मन बर ठेठ छत्तीसगढ़ी के उपयोग होय हे। कहानी म हाना के सुघ्घर उपयोग हे जेकर ले कहानी ह सुगठित हावय। कहानी के शैली सरल,सरस अउ नदिया के धार कस सुघ्घर बहत नजर आथे। एक सफल कहानी "करगा" खातिर कहानीकार आदरणीय चंद्रहास साहू जी ल गाड़ा- गाड़ा बधाई अउ शुभ कामना हे। कहानीकार चंद्रहास साहू के कहानी ह करगा नइ  बल्कि ठाहिल हे। कहानी लंबा हे पर  पाठक मन ल बांध के राखथे।


      ओमप्रकाश साहू "अंकुर"

       सुरगी, राजनांदगांव

लघुकथा) नशा

 (लघुकथा)


नशा

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रतिहा 8 बजे घर आयेवँ त  3 बछर के नाती हा परछी मा घोंडे मनमाड़े चिहुर पार-पार के मम्मी कार्टुन कहि-कहि के रोवत राहय अउ ओती ओकर महतारी हा अपन सास संग टीवी मा सीरियल देखे मा मगन राहय।

मैं हा थोकुन खिसियावत कहेंव-- ये का होवत हे बहू।बाबू ला चुप कराये ला छोंड़ के तैं टीवी मा मगन हच।ये हा काबर रोवत हे?

कार्टुन देखहूँ कहिथे पापा।

त लगा दे।कोंन मार नइ देखय तेमा।रोज तो देखत रहिथे।

लगाये रहेंव पापा।वोला नइ देखवँ कहिथे--वो कहिच।

त जेला देखहूँ कहिथे तेने ल लगा दे।

वो हा पहिली आठ बजे आवय पापा अब रतिहा 9 बजे आथे।

अच्छा अब लइका मन ला तको रात जगाये के उदिम होये ल धरलिच।मैं हा लम्बा साँस लेवत कहेंव-- कइसनो करके एला चुप करा।

वोहा अपन मोबाइल मा गेम लगा के बाबू ला देवत कहिच-- ये ले रे खेल।

अतका ला सुनके बाबू हा चुप होके टुंग ले उठके बइठगे।

मैं अपन माथा ला धरके बइठगेंव।


चोवा राम वर्मा 'बादल '

कहानी - लाला के देवारी

 कहानी  - लाला के देवारी

मोटर हँ दमदमावत आके सड़क के पाई म खड़ा होगे। चकरा सेठ अपन दूकान ले बइठे- बइठे देखत हे। खचाखच सवारी भरे हे। उतरे बर अपन- अपन ले कोलो -कोलो करत हे। 

चौमासा पानी के बरसत ले नरवा- झोरी जइसे उबुक- चुबुक होवत खलबल -खलबल बोहाथे। बरसा थमिस ताहेन भईगे, सुक्खा के सुक्खा। सुक्खा नरवा खल बहुराई। आए के बेरा जम्मो हाँसत गोठियावत आइन। उतर के तैं कोन, मैं कोन। मोटर ठकठक ले खलिया गे।

सवारी मन ल उतरत देखके पसरा वाले, ठेला वाले दुकानदार सबो जोसियागे। कोनो फटाफट माखुर ल मारके दबाइन अउ समान मन सोझियाए जमाए लगिन। कोनो पीयत बीड़ी ल फेंक के नरेटी भर- भर के चिल्लाए लगिन। झुनझुना, पोंगरी वाले मन बजा- बजा के लइका मन ल मोहाए म लगगे। दुकानदार मन दूकान के आगू म निकलके कहत हे - 

‘आ भाई, का लेबे ? का देववँ दीदी, बड़ सस्ता हे वो। ले ले।’ 

चकरा सेठ जस के तस फसकराय दूकान म बइठे हे। अइसन - वइसन धंधा नई करय चकरा सेठ हँ। घर बइठे बारा घाट के पानी पीये हे। ग्राहक के नारी ल रेंगती टमर डारथे। 

जम्मो सवारी बजार म समागे।

वो मोटर ले उतर के अकर- जकर ल देखत हे। चकचकाए सोचत हे - ‘कती जाना चाही ?’ 

मन के बात गड़रिया जानय। चकरा सेठ के नजर ओकर हाव भाव ऊपर हे। उदुप ले ओकर नजर चकरा सेठ ऊपर परिस। चकरा सेठ बड़ प्यार से मुचमुचावत पुचकारे असन हाथ के इशारा म ओला बलाइस। वोह दूकान म घुसरे बर कनुवावत सकुचावत रिहिस हे। चप्पल ल दुवार म निकालते रिहिसे, सेठ टोकत बरजत कहिथे- ‘आजा, अइसने आजा, नई लागय गा चप्पल -उप्पल उतारे बर।’

’भारी भीड़ हे गा’ - सेठ बाते म ओकर पीठ ल सहिलाइस।  

’काला कहिबे तिहरहा ताय सब’- ओह हाथ ल हलावत लमावत कहिस।

ओकर मुँह का उलिस, सेठ ल पाँव राखे बर ठऊर मिलगे। का पूछथस ताहने। बइठन दे त पीसन दे। सुर धरके मुड़ ल हलावत सेठ लमाईस -

’हौ भई, छिन म पूरा मोटर खाली होगे गा।’ 

ओला हाँ म हाँ मिलावत देखके सेठ तुरते फेर पासा फेंकिस - ’आ बइठ। पानी पियाववँ।’

सींका के टूटती बिलई के झपटती होगे। ओकरो मन कोंवरागे।

‘जम्मो तुँहरे गाँव के सवारी आय’- लकड़ी के बेंत लगे कपड़ा के झारा म ‘फट -फट’ कपड़ा मन के धूर्रा ल झर्रावत सेठ कहिस । 

‘वा ....! जम्मो खपरी के ये ............. अऊ देखबे, जाए के बेरा इहाँ ले ‘कोचकिच-ले’ भरा के जाही, उहाँ ‘बरबर-ले’ खाली। कहाँ गए कहूँ नहीं, का लाने कुछु नही’ - वोह हँ एके साँस म सबो बात ल झर्रा डारिस। 

चकरा सेठ ल चकराए बर जगा मिलगे - ‘अरे तोर बरेठ खपरी के चारो मुड़ा शोर उड़े हे भाई, दुरूग ले बइठ, चाहे रइपुर ले, खपरी कहे ते फट्टे टिकिस कटा जथे।’ 

‘हहो सिरतोन काहत हस।’

‘मार्का टेशन होगे हे गा, तुँहर गाँव हँ।’ -सेठ गोटारन कस बड़े -बड़े आँखी ल नटेरत कहिथे।

‘कंडेक्टर-ड्राइवर मन तको हमर गाँव के जम्मो मनखे मन ल चीन्ह डारे हे।’- वोह हँ हाथ ल लमा -लमा के थूक छीटकारत-गिजगिजावत कहिस।

‘झन कहा, चीन्हत होही।’ सेठ अब धीर लगाके गेयर बदलिस- ‘तैं जादा बजार -उजार नई आवस का ?’  

‘मैं गाँवे म नई राहवँ न।’

‘अच्छा - अच्छा- अच्छा। तभे तो सोंचत रेहेंव, जादा दीखस नहीं कहिके।’ 

सेठ के गोठ खतम नई होए पाए रिहिस हे। 

वोहँ चार आँगुर आगू ले लमा दिस - ‘मैं नागपुर म रहिथौं, गजब दिन होगे। भइगे तिहार -बार म आथवँ -जाथवँ। 

सेठ के मुड़ ल हुँकारू संग डोलावत देख, एकर मुँह उले के उले रहिगे। टेटका कस मुड़ ल हलावत कहे लगिस - ‘हमी भर मन दुई के दुआ रोजी मजूरी करथन उहाँ। लोग लइका मन गाँवे म रहिथे दाई -ददा तीरन।’ 

जगहा मिलते साथ सेठ हँ मछरी बर मुँह मारत कोकड़ा कस टप ले जमाइस - ‘तुँहर इहाँ सियनहा के का नाम हे ?......... देख भुलावत हौं, मुँहेच ऊपर हे .......’ .अउ देखौटी अंगरी म अपन माथा ल ‘टुक-टुक’ मारत, जुवाब के अगोरा म ओकर मुँह ल देखे लगिस।

वोहँ तो मोहागे राहय। सेठ ल थोरको अगोरे बर नइ लागिस। बाँचा माने सुआ कस फट्ट ले अपन सियनहा के नाम ल बता दिस - 

‘अलेनी।’ 

हाँ, हाँ !! ठउँका कहे।’- सेठ अब मुड़हेरी साँप कस वोला लपेटा म ले डारिस - ‘मैं तोर चेहरा- मुँहरन ल देख के जान डारे रहेवँ। ओकरेच लइका आवस कहिके।’ 

वोह अब रतियाके बइठगे। 

सेठ अब टाप गेयर म आगे -‘तोर का नाम हे ?’

वोहँ अपन नाम ‘लाला’ बताइस। अब सेठ के मन के मनसूभा अंटियावत खड़ा होगे। दूनो हथेली ल रगड़त पूछथे - ‘ले का देखाववँ लाला ! पहिली लइका मन बर, के सियान मन बर ?’ 

पाके बीही के लाल -लाल गुदा कस मसूड़ा ल उघार के हाँसत लाला कहिस - ‘लइके मन बर पहिली देखा न भई, उंकरेच मन के तो तिहार ये।’ 

सेठ के मन अब गोठबात ले उचट गे । ओकर धियान धंधा म धँसगे हे। एके भाखा कहिस - ‘हौ।’ अउ ओसरी-पारी कपड़ा देखाए म लगगे।

लाला देख परख के परिवार के जम्मो झिन बर कपड़ा -लत्ता छाँट डारिस। कपड़ा देखाए के बेरा सेठ कीमत ल नई बतावय। लाला एक दू घाँव पूछिस-‘एकर का भाव हे सेठ !’ 

सेठ कहि देवय - ‘ले न ते काबर फिकर करथस, तोर ले जादा थोरे ले लेहूँ।‘

‘तभो’ ।

‘घर के लइका होके तहूँ कइसे गोठियाथस लाला !’

मया के भूखाय अऊ मया म मराय मनखे के एके गत होथे।

लाला के मुँह बँधागे। वोला अकबकासी लगे लगिस। अइसे तो वोह कपड़ा के रंग ढंग ल देख के मने मन म कीमत के आकब कर डारे रहय। 

‘भइगे सेठ अब अतके ले जाना हे।’ - लाला कहिस। 

सेठ जानबूझ के ओकर गोठ ल अनसुना कर दीस। चुकचुक ले चमकदार लाल कमीज ल फरिहावत दाँव मारिस - ‘वा, सब झन नवा कपड़ा पहिरही अऊ तैं जुन्ने ल पहिरबे गा ? बारा महीना म एक पइत आए बर, जीयत रहिथे तेकर तिहार।’ 

‘नहीं, नहीं मैं पाछू लेहूँ। अभी तो नवा -नवा सिलवाए हववँ, महीना भर नई होय हे।’ -अपन आगू म रखाए कपड़ा मन ल सेठ कोति सरकाइस - ‘ले बता, येमन कतेक के होइस ?’ 

सेठ अब कापी कलम उठालिस। जोड़ घटा के बताइस - ‘एक्कइस सौ तीन रूपिया।’  

लाला धरम संकट म परगे। कुल एक्कइस सौ रूपिया तो खुदे धरके आए रिहिस हे। डेढ़ दू हजार कपड़ा - लत्ता, फौज-फटका अउ सौ रूपिया, मोटर -गाड़ी, साग-भाजी, बजरहा खरचा हिसाब के। 

सियनहा के कपड़ा ल अलगियावत कहिथे - ‘एला राहन दे, आन दिन ले जाहूँ।’ 

सेठ जान डारिस। सोचिस -‘लेवना हँ ससलत बगरत हे। सकेल के एकथई करे बर परही।’ 

बेचाय माल हँ वापस झन होए पावय, येहँ चकरा सेठ के गुपचुप, भीतरौंधा अउ अनकहा, अनछपा शर्त आवय। 

‘कतेक असन कम परत हे ?’ - सेठ ओकर आँखी म आँखी डारके तिखारिस। 

सब बात ल फोर -फरिहा के बता दिस लाला हँ। 

लाला के पीठ ल सहिलावत सेठ भुलवारथे - ‘बस ! अतके बात हे ?’

अब सेठ मालिस -पालिस वाले जात म उतर गे -‘अइसन लजाए- सकुचाए वाले काम झन करे कर भई ! मोला अच्छा नई लागत हे।’ - कहिते काहत कपड़ा ल झिल्ली म भर डारिस। लाला लजाए असन मुड़ी नवाए खड़ेच हे । सेठ ओला झोला ल बरपेली धरावत कहिस - ‘ले धर ! अभी दूए हजार ल दे दे, बाकी ल पाछू दे देबे, बस ! कहूँ भागे जावत हस गा ?’

सौ रूपट्टी के करजा हँ लाला के आखा- बाखा ल हुदरत -कोचकत रात भर खटिया तीर म खडे रहिगे। वोहँ अलथी -कलथी मार -मार के रात ल आँखी म पहाइस हे। होवत बिहनिया पहिली गाड़ी म फेर खम्हरिया पहुँचगे। 

सेठ बलाइस -‘आ लाला आ।’ 

लाला ल उरमाल के अंटी ले पइसा निकालत देख सेठ के बाँछा खिलगे। घर कोति चाहा बर हूत कराइस। 

लाला मना करिस - ‘अहाँ.. अहाँ ! मैं चाहा -वाहा नइ पीयवँ।’

अभी तो लाला म अउ रसा बाँचें हे। सेठ के पियास तको नइ बुझाए हे। सेठ साहूकार मन तो अइसन माटी के बने होथे जिंकर मन म सरी दिन लालच के दर्रा फाटे रहिथे।

पूछिस--‘त का मँगाववँ ?’

‘कुच्छु नई लागय कहि देवँ।’ 

सेठ कहिस - ‘तोर बर कमीज देखाववँ।’ 

लाला टोक दिस - ‘कमीज-उमीज ल मार गोली ददा ! ए तोर बाँचत पइसा ल धर अउ मोर हिसाब ल नक्की कर। करजा बोहई नई पोसावय, भारी बियापथे। न उधो के लेना, न माधो के देना बने लगथे मोला।’ अउ एक सौ दस रूपिया ल सेठ के हाथ म धरा दिस। 

बनिया बेटा जब हिसाब करे बर बइठथे त ओकर आँखी म रिश्ता -नता, सगा -संबंधी, चीन्ह-पहिचान नई दीखय, सिरिफ पइसा नजर आथे। 

‘अऊ गाँव -घर म सब बने बने लाला !’- हिसाब के बाँचे सात रूपिया म पाँचे रूपिया ल लहुटावत सेठ पूछथे। 

लाला जुवाब दिस - ‘सब बढ़िया हे सेठ ! अपन अपन करम किस्मत के हिसाब से सबो कमावत खावत हे।’ 

सेठ के तिकड़मी दिमाग ले छीनी हथौड़ी निकल के मुँह म आ गे । 

‘तुँहर गाँव म तुहीं भर मन ल देखथवँ लाला, सोला आना ईमानदार !’ 

लाला के छाती हँ बीता भर ले फूलके डेढ़ हाथ होगे। अपन बड़ई कोन ल बने नइ लागय। जना मना कुछु उपलक्ष्य म ओला मानद उपाधि मिलगे। ले दे के उपाधि ल संभालत अहम के हाँसी ल मुसकान म बदल लिस। मुँह ले एक भाखा नइ उलिस।

‘बाकी मन नइहे, सब के सब बइमान हे।’-सेठ आगू कहिस।

लाला दूनो हाथ ल झर्रावत कहिथे - ‘तुमन जानहू सेठ, लेन देन के गोठ बात ल। हम का जानिन।’ 

सेठ, लाला के मुँह ल पढ़ डरिस। हाथ ल हलावत आगू कहिथे - ‘तुँहर गाँव वाले मन अइसे हे ! खाये बर चूना माखुर के डबिया दे देबे, त खाथे कम ओिंंटयाथे जादा। जइसे बफर सिस्टम के खाना म जीछुट्टामन प्लेट के गँवावत ले भर डारथे।’

लाला मुँह बाँधे चुप रहिगे। सेठ नराज झन हो जावय। जे मन ले बँधुवा हो जथे ओला तन ले बँधुआ होवत देरी नइ लागय। बाहिर जाके इही तो सीखिस हे छत्तिसगढ़िया मन। हुसियार मनखे मंघार ल नई मारके मगज ल मारथे। मगज मरे मनखे घुरवा के कचरा बरोबर होथे। 

मुड़ ल हला भर दिस लाला हँ। दूकान ले निकल के बजार कोति रेंग दिस। ओकर कान म सेठ के गोठ गूँजे लगिस। लाला के नजर ले गाँव वाले मन गिरे -बिछले परत हे। अपन जनमें, खेले -खाए भूइँया ऊपर लाला के मन म घिन समागे।

बजार म किंजरत एक जगा ओकर पाँव ठिठक गे। 

‘अई हाय ! गजब दिन म दीखेस परलोखिया नइतो !’ 

लाला झकनका के देखथे - ‘पसरा म बइठे रमौतिन काकी भाजी बेचत हे। लाला ओकर तीर चल दिस। रमौतीन पाँव परत पूछथे - ‘सब बने बने बाबू ?’ 

‘हहो ! का करबे काकी, पेट बिकाली म कुछु न कुछू उदीम करबे तभे तो बनथे।’

रमौतीन हूँकारू भरिस। 

खपरी तीर करमू गाँव हे। जिहाँ के रहइया ये रमौतीन मरारीन। रमौतीन बड़े बिहिनिया मुड़ म डलिया बोहे भाजी तरकारी बेचे बर खपरी पहुँच जावय । वोहँ भाजी बेचत तीर -तखार के सबो गाँव म मुँहाचाही नता जोर डारे रहय। ओकरे भर बात नइहे, जम्मो मनखे एक- दूसर ले अइसेनेहे नता म जुरे रहिथे। गाँव-आन गाँव वाले सबो संग हिल मिल के जिनगी पहाथे। 

मन मिले मनखे जिहाँ मिलथे उहाँ कतको बड़े दुख के बेरा घलो बिलम जथे। गोठ बात म घंटा भर कइसे बुलक गे, पतेच नइ चलिस। 

एमन गोठ बात म भूलाएच हे। ओतके बेरा दूनो के कान म भकरस ले भाखा सुनइस  - 

‘बजार होगे लाला !’ 

चकरा सेठ नारा वाले बड़े जनिक झोला ल हलावत आगू म खड़े हे। रमौतीन हड़बडा गे। काला खाववँ, काला बचाववँ कस किस्सा हो गे। चकरा सेठ के नजर हरियर -हरियर पाला अउ चौंलई म हे। रमौतिन मने मन गारी दे लगिस - ‘ए भड़ुवा कीच्चक कहाँ ले आगे। चाल म कीरा परे हे। हाथ ले पइसा छूटय नही सेठ कहावत हे रोगहा हँ।’ 

सेठ मुसकियावत बइठत पूछिस - ‘का भाव हे भाजी .........?’ 

रमौतीन बीचे म फट्ट ले बात ल काट दिस- ‘बेचागे हे ! जम्मो भाजी बेचागे हे।’ रमौतीन हड़बड़ाए लगिस। फेर का सोचिस- ‘ले न गा तहूँ हँ मोल भाव करके भाजी ल खुल्ला मड़ा दे हवस, बजरहा मन ल भोरहा हो जथे ’-काहत जम्मो भाजी ल सकेलत लाला के झोला म भरे लगिस । लाला ना -नुकुर करे बर धरते रिहिस हे, के रमौतीन मिलखिया दिस। 

लाला कुछू समझतिस तेकर पहिली सेठ कहिथे - ‘लाला हँ सबो भाजी ल थोरे लेही, खाएच के पूरति ल तो लेही, कइसे लाला ?’

लाला के मुँह न लीलत बनय न उलगत तइसे होगे। रमौतीन कउव्वा के कहिस - ‘पाँच रूपिया के दूए जूरी हे, ले बर हे ते ले।’ 

‘वा..हा...! सब जगा चार -चार जूरी देवत हे तेन हँ’ -काहत सेठ हँ चार जूरी भाजी ल झोला म डार लिस। 

‘जेन देवत हे तेकर तीरन जा के ले ले, मोला नइ पोसावय माने नइ पोसावय’ - रमौतीन हटकार दिस। 

लाला नान्हेपन के देखत आवत हे रमौतिन ल। मने मन मुसकाइस -‘ये रोगही ! काकी हँ अब ले जस के तस हे।’ सोचे लगिस -‘ पहिली तको अइसनेच काहय अउ मूठा भर भाजी ल झर्रावत बगरा देवय। नइ पूरावय, नइ पोसावय कहिते राहय, अउ सूपा ल भर देवय।’

तभे तो गाँव म कोनो रमौतीन मरारीन के छोड़ काकरो तीरन भाजी तरकारी नइ लेवय । ओमेर के चार ठन गाँव एकरे गॅँवई रिहिस हे । समे ढरक गे। गाँव -गाँव म बजार लगे लगिस। गाँव वाले मन खम्हरिया के बजार करे लगिन । जब मन होइस मोटर म चढ़के ‘भूर्र ले’ आ जथे अउ ‘फुर्र ले’ लहुट जथे। रमौतिन के गँवई खियागे। गँवई का खियातीस उमर के खसले ले सबो खिया जथे। अब काकी बइठाँगुर हो गे। दस बज्जी गाड़ी म आथे अउ संझौती बेच भाँज के बजार करत गाँव लहुट जथे। 

सेठ हँ पाँचे रूपट्टी ल धरावत राहय। रमौतीन बगियागे - ‘दस रूपिया होही ।’

सेठ कुटुर मुटुर करे लगिस। वो हँ अभीन अभी सरीफी अउ ईमानदारी के तमगा जेन ल पहिराए रहय उही लाला आगू म बइठे हे। हाथ म गुमेटे धरे पइसा ल फरियाइस। दू घाँव अँगरी म सरका- टरका, टमर -मरोर के देख- परख लिस तेकर पीछू दस के नोट ल दिस। पइसा ल देके - ‘ले अब एक जूरी तो उपरहा देबे’ काहत रखाए भाजी ल धरे लगिस। 

रमौतीन टप ले सेठ के मुरूवा ल धर लिस - ‘जब देख तब अइसनेच करथस। तोर पइसा कमई के पइसा ये, हमर मिहनत फोकट के आए हे.. नहीं।’ सेठ अकबका गे। 

रमौतीन आगू कहिस- ‘ले तो मैं तोला काहत हौं, एक रूपिया उपरहा दे। तैं देबे का ?’ 

ओतका म लाला कहिथे- ‘बने तो काहत हे सेठ ! बपुरी अतेक घाम पियास म तन के लहू ल अँऊटावत- चुरोवत बइठे हे । 

लाला के पलौंदी पा रमौतीन के बल बाढ़गे-‘घर -दुवार, लोग- लइका ल छोड़ के चार पइसा कमाए बर चार कोस ले रेंग के आए हवन, फोकट हो जही का ? तुमन तो एकक ठन पइसा के हिसाब करथौ । ले न हमार मिहनत अउ पसीना के हिसाब लगा ।’ 

सेठ के आँखी चिपचिपागे । मुँह पचपचाए लगिस। ओकर हाथ ले भाजी छूटके ‘भद्द ले’ गिर गे। आज घमण्ड के मुड़ी ल लज्झ ले ओरम गे। ‘ले भई’ काहत सेठ उठिस अउ पीछु कोति ल झर्रावत सुटुर- सुटुर रेंगते बनिस।

रमौतीन पसरा सकेले लगिस। सरीफी अउ ईमानदारी के मुकुट ल पहिरे शान से लाला हँ मुर्दा सेठ ल रेंगत जावत देखत हे। 

लाला अब काली ससन भर तिहार मनाही। आज वोहँ दानव ल मारके अयोध्या प्रवेश करइया हे। 

सुरूज अब तब करिया खुमरी ओढ़ ढलगइया हे। साँझ के पाहरा लग गे हे । गाँव म सुरहुत्ती के दीया जगमगाय बर धर लेहे । काली देवारी तिहार हे। 

लाला अउ रमौतीन मोटर चढ़े बर स्टेशन कोति जावत हे।

धर्मेन्द्र निर्मल 

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