Tuesday, 28 October 2025

व्याकरणाचार्य हीरालाल काव्योपाध्याय

 


व्याकरणाचार्य हीरालाल काव्योपाध्याय

छत्तीसगढ़ महतारी ह वीर प्रसूता तो आयेच संगे-संग एकर कोरा म संत गुरु घासीदास जइसे संत महात्मा ,कालीदास जइसे महाकवि ,कतको महामानव अउ अमर कलाकार ,कवि ,साहित्यकार मन तको जनम लेये हें।

आदि कवि बाल्मीकि, श्रृंगी रिसि अउ शबरी दाई के तपोवन भुँइयाँ , जगत वंद्य भगवान श्रीराम के महतारी माता कौशिल्या के  मइके ए भुँइयाँ बड़ जागरित अउ पावन हे।

इही पावन भुँइयाँ म महामानव साहित्यकार,महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी के, वो समे जब खड़ी बोली के व्याकरण तक नइ बने रहिसे, व्याकरणाचार्य हीरालाल 'काव्योपाध्याय' ह जन्म लेये रहिन हें।

जीवन परिचय--

श्री हीरालाल 'काव्योपाध्याय'जी के जन्म सन् 1856 म ग्राम--राखी(भाठागांँव), तहसील-कुरुद,  जिला--धमतरी म होये रहिस। पिता जी के नाम--श्री बालाराम चंद्राकर अउ महतारी के नाम--श्रीमती राधा बाई रहिस हे। श्री बालाराम चंद्राकर जी रायपुर म गल्ला के व्यपार करयँ।

'काव्योपाध्याय' जी ह अपन आठ भाई बहिनी म सबले बड़े रहिन।

हीरालाल जी के दू बिहाव होये रहिस।बिहाता के अल्पमृत्यु के बाद दूसरइया बिहाव होये रहिस उहू ह अल्प काल म स्वर्ग सिधार गिन। जेकर सेती उन संतान सुख ले वंचित रहिन।

शिक्षा दीक्षा अउ कार्य--

'काव्योपाध्याय' जी के प्राथमिक शिक्षा दीक्षा रायपुर म होये रहिस। उन मन मेट्रिक के परीक्षा सन 1874  म जबलपुर केंद्र ले पास करे रहिन।

उनकर रूचि पढ़ाये अउ खुदे पढ़े म बहुत जादा रहिसे। स्वाध्याय के बल म उन ला अंग्रेजी, बंगला, मराठी ,संस्कृत आदि भासा मन म अधिकार होगे रहिस।

सन् 1875 म उन ला 19 बरस के उमर म 30 रू० महिना वेतन म रायपुर के जिला स्कूल म सहायक शिक्षक के नौकरी मिलगे।

उन अपन विद्यार्थी, साथी शिक्षक अउ पालक मन म बहुत लोकप्रिय रहिन हें।

बीच म जिला स्कूल बिलासपुर म तको पढ़ाईन तहाँ ले  सन 1882 म हेडमास्टर म पद्दोन्नत होके ,60 रू मासिक वेतन म अपन गृह जिला मुख्यालय धमतरी म आगें अउ उहें बसगें।

'काव्योपाध्याय' के पिताजी ह अपन चंद्राकर समाज के मुखिया रहिन हे। ओकर प्रभाव श्री हीरालाल जी उपर बने परे रहिसे। तेकर सेती समाज सेवा म आपो लगे राहव। आप धमतरी डिस्पैंसरी समिति के सभापति अउ नगरपालिका के अध्यक्ष के रूप म जन सेवा करेव।

साहित्यिक परिचय--

'काव्योपाध्याय' जी ह आशु कवि रहिन । उन कर प्रमुख कृति हें--

शाला गीत चंद्रिका--सन्1881 म लखनऊ के नवल किशोर  प्रकाशन ले प्रकाशित।

गीत रसिक

अंग्रेजी रीडर भाग 1,भाग 2

उपर के कृति मन ल पढ़इया लइका मन बर लिखे रहिन हें।

नवकांड दुर्गायन--ये ह उनकर 'दुर्गा सप्तशती' के आधार लेके लिखे बहुतेच प्रसिद्ध छंद अउ मात्रा म बंँधे रचना आय।

इही कृति म 11 सितम्बर 1884 म एक समारोह म 'बंगाल अकादमी आफ म्यूजिक ' के महाराजा सर सुरेंद्र मोहन ठाकुर ह 'काव्योपाध्याय' के उपाधि अउ सोन के बाजूबंद(स्वर्ण केयूर) दे रहिन।

छत्तीसगढ़ी व्याकरण--

भगवान जाने ,काय बात ये ते। अधिकांश महान रचनाकार मन अपन अमर, कालजयी कृति के रचना अपन जीवन के अंतिम काल म करे हें। 'काव्योपाध्याय' जी ह घलो अपन जीवन के छेवर काल म सन् 1881 ले सन्1885 के चार साल म जगत प्रसिद्ध ग्रंथ  छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रथम छत्तीसगढ़ी व्याकरण के रचना करिन जेला वो समे के प्रसिद्ध भाषा शास्त्री  सर जार्ज ग्रियर्सन  ह अंग्रेजी म अनुवाद करके  'जर्नल आफ एसियाटिक सोसायटी आफ बंगाल ' म जिल्द तीस भाग 1 म सन्1890 म प्रकाशित करवाइस।

ए प्रकाशन ले 'काव्योपाध्याय' के प्रसिद्धि सरी दुनिया म फइल गे।

श्री ग्रियर्सन ह आभार व्यक्त करत लिखे हें- "हीरालाल जैसे विलक्षण महापुरुष के कारण ही हम भिन्न-भिन्न भाषाओं के बीच सेतु बनाने के अपने प्रयास में सफल हो पाते हैं।"

मृत्यु--  हीरालाल 'काव्योपाध्याय' जी ह   ये जगत म अपन भूमिका निभाके सिरिफ 34 साल के उमर म  उदर रोग ले पिड़ित होके सन्1890 म स्वर्ग सिधार गिन।

उन आज भले नइये फेर अपन कृति ले सदा अमर रइहीं।


चोवा राम वर्मा 'बादल '

हथबन्द, छत्तीसगढ़

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