Tuesday, 28 October 2025

ओ माया मोर

 ओ माया मोर 


धान कटोरा छत्तीसगढ़ म संस्कृति, परम्परा अउ आस्था के त्रिवेणी संगम हे। इहाँ के हर परब, उछाह अउ तीज-तिहार प्रकृति ले जुड़़े हवय अउ सबो के अपन-अपन महात्तम हे। नवरात के जवाँरा तको माई के पूजा, अर्चना अउ अराधना के संगे संग प्रकृति -पूजा के एक ठो विशेष शैली हरे।  


नवरात म देवी माँ नौ ठिन रूप म पूजे जाथे। कहिथे जब देवी माँ प्रगट भइस त ओकर हजारो आँखी रिहिसे अउ वो आँखी मन ले नौ दिन ले सरलग जल गिरत रिहिसे। संगे -संग खाए-पीए के जीनिस तको बरसत रिहिसे। जेकर ले सब जीव-जिनावर अउ वनस्पति-प्रकृति के पियास बुझिस। जीव-जिनावर के संगे-संग वनस्पति-प्रकृति के पियास बुझाए के सेति देवी के एक नाम शाकम्भरी तको परिस। इही दिन ले वनस्पति पूजा शुरू होइस। वनस्पति जिनगी के अधार होथे, जेकर ले जीव ल जीवन के  आधारभूत शक्ति मिलथे। उही सेति जेवन माने जीवन के आसरा म लोगन जवाँरा बोथे। प्राचीन भारतीय चिकित्साशास्त्र आयुर्वेद के अनुसार जवाँरा के रसपान ले विटामिन सी अउ रोग प्रतिरोधक क्षमता म बढ़ोतरी होथे। सरगुजा म एला जई बोना त बस्तर म देवी जगार के नाम ले जाने जाथे।


सेऊक मन पंचमी के जस पचरा गाके माता के सोलहो सिंगार के वर्णन करथे त सप्तमी के दिन ल जगराता कहिथे। सप्तमी के दिन रात भर जागके देवी दाई के पूजन अर्चन करे जाथे। बिहान भर माने अष्टमी के कलश चढ़ाके पींवराए जवाँरा ल अउ गाढ़ पींयर देखे के आसरा म हरदी पानी छींचथे जेला हरदाही कहिथे। सेऊक मन देवी जस गीत के अलावा ओकर दिकपाल मन के तको जस गाथे जेमा ब्रम्हा के पुत्र बरमदेव, गहिरा के पुत्र ल गोड़रइया अउ धोबी के पुत्र ल बन के रकसा कहिके संबोधित करे जाथे। 


जवाँरा के फुलवारी ल देख-निहारके सियान मन वो बछर के सुकाल -दुकाल के अनुमान लगा लेथे। फुलवारी कहूँ रिगबिग ले घमाघम जामे ह त सुकाल हे, कहूँ कमजोर हे त दुकाल अउ खण्ड मंडल जागे ह त समझ ले वो बछर खण्ड बरसा के लक्षण हे। 


संसार म सबो रिस्ता ले लहू के रिस्ता ल सगले बड़का माने जाथे। फेर देखे बर मिलथे कि लहू के रिस्ता ले तको बढ़के एक ठन अउ रिस्ता होथे वो होथे मया के रिस्ता। मया के ये रिस्ता म जात पात, ऊँच नीच, छोटे बड़े नइ देखे जाय। धर्म के भाखा म जेला निस्वार्थ प्रेम अउ विज्ञान के भाषा म प्लेटोनिक लव कहे जाथे। इही निस्वार्थ प्रेम ल आधार देहे खातिर छत्तीसगढ़ म मितानी परंपरा के निर्वहन करे  जाथे, जेला मितानी बदना कहे जाथे। जेला महाप्रसाद, गंगाबारू, गंगाजल, गोवर्धन, दौना, भोजली नाम देहे जाथे। इही मितानी परंपरा म जवाँरा बदे के तको रिवाज हवय। भोजली अउ जवाँरा के बदना ये बात के परिचायक हरे कि खून के रिश्ता ले बड़े अऊ रिश्ता होथे जऊन मन ले मन मिले ले बनथे। जऊन ह मनखे मनखे ल एक बनाथे अउ इही असल धरम हरे। धरम कोनो नीत-नियम या अचार-व्यवहार के मोटरा नई होवय जेन मनखे ल बाँधके रखय बल्कि धरम वो ये असार निसार संसार म जिए के रद्दा हरय जउन जिनगी म उछाह अउ मंगल भर देथे। जिनगी ल सजा-सँवार देथे। जिनगी के ये मरम ल समझ के जऊन करम करे जाथे उही धरम ये। अउ आखिर म देवी दाई के नौ रूप के अराधना -

पहिली पूजौं करौं वंदना

पहिला दिन नवरात्रि ।

पर्वत के शिखर म बिराजै 

रानी माँ शैलपुत्री ।।


जल कमण्डल  एक हाथ म 

दूसर हाथ गुलाब धरे ।

दूसरइया दिन ब्रम्हचारिणी 

रूप अनन्त धरे विचरै  ।।

 

दिन तीसर मंदिर देवाला 

गूंजै टनटन घंटा के ।

आधा चंदा माथा सोहै 

दसभुजी चंद्रघंटा ।।


शेर सवारी माँ  कूष्मांडा

प्राणशक्ति देवइया ।

जइसे गोला ब्रम्हांड के 

चौथा दिन म अवइया ।।


ज्ञान कर्म के सूचक मैया 

चार भुजी कमलासन ।

पा¡¡¡चवा दिन स्कंदमाता के

रंग सफेद मनभावन ।।


सत्य धर्म के सिरजन खातिर 

ज्ञान स्वरूपा क्रोध देखावै ।

जगतहित बर छठवा दिन 

माँ कात्यायनी रूप म आवै ।।


रूप भयंकर कालरात्रि के 

लाश (गदहा) म चढे धरे मशाल ।

दिन सातवा बनके आए 

मैया असुर मन के काल ।।


बइला सवार त्रिशूल धरे 

बिजली जस उज्ज्वल गोरी ।

आठवा दिन नवरात्रि में 

आवै मैया महागौरी ।।



अष्टसिद्धि नवनिधि के दात्री

चार भुजा हे तोर ।

अर्धनारीश्वर सिध्दिदात्री 

नौवा दिन हे तोर ।।


धर्मेन्द्र निर्मल

9406096346

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